Wednesday, June 24, 2015

बोल का मोल


एक आदमी बूढा हो चला था | उसके चार बेटे थे | बेटे यो तो सभी कम जानते थे | किन्तु बोलचाल और आचरण में चारो एक जैसे न थे | पिता ने कई बार उनसे कहा – “यदि तुमने अपनी बोलचाल और आचरण नहीं सुधारा तो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते |” किन्तु पिता की बात को कोरा उपदेश समझकर बेटो ने कभी ध्यान नहीं दिया |
एक बार को बात है | चारो बेटे और पिता लंबी यात्रा पैर जा रहे थे | इस यात्रा के बिच उनके पास खाने  पिने को कुछ भी न बचा था | जो धन था वह भी ख़त्म हो चूका था | वे लोग कई दिन से भूखे थे | बस यही चाहते थे की किसी तरज ज़ल्दी से ज़ल्दी अपने घर पहुच जाये|
पांचो एक जगह सडक के किनारे विश्राम कर रहे थे | तभी एक व्यापारी अपनी बेलगाडी को हांकता हुआ निकला | वह व्यापारी किसी मेले में जा रहा था | उसने बेलगाडी में तरह-तरह के पकवान और मिठाई भर रखी थी वह उन्हें बेचने के लिए जा रहा था |
पकवाने और मिठाईयो की महक से पांचो में मुंह में पानी आने लगा | बूढे ने कहा – “जाओ व्यापारी से मागो | शायद कुछ खाने को दे दे |”
पिता की आज्ञा सुनकर बेटा व्यापारी के पास गया | बोला – “अरे, ओ व्यापारी, इतना मॉल ले जा रहे है, थोडा मुझे दे | भूख बहुत लगी है |”
व्यापारी ने सोचा – यह कितना मुर्ख है } दुसरे से मागंते समय मीठी वाणी बोलनी चाहिए | अच्छा | यह जितनी कठोर वाणी बोल रहा है इसे उतना ही कठोर पकवान दुगा | यह सोचकर उसने एक सुखा हुआ पकवान दे दिया |
व्यापारी थोरी दूर ही गया की दूसरा भाई उसके पास पहुचा | बोला –“बड़े भाई, प्रणाम! क्या छोटे भाई को खाने के लिए कुछ भी न दोगे?”
व्यापारी ने सोचा – इसने उसे भाई कहा है | छोटे भाई को देना मेरा कर्तव्य है | उसने कहा – “लो भाई, मिठाई खाओ |” और उसने एक दोना भर कर मिठाई दे दी |
अब तीसरा भाई व्यापारी के पास गया | वह बोला =”आदरणीय | आप मेरे पिता समान है | मुझे कुछ खाने को दे |”
व्यापारी ने सोचा – यह मुझे अपने पिता जैसा आदर दे रहा है | इसे तो भरपेट मिठाई देनी चाहिए | और उसने कई दोनो से पकवान और मिठाई भरकर दे दी |
अतं में चोथा पुत्र गया | उसे देखकर व्यापारी मुस्कराया तो वह भी मुस्करा दिया | उसने कहा – मित्र, इस मुसीबत की घड़ी में टीम सहारा बे सकते तो | क्या तुम मुझे भूखा ही रखोगे |”
व्यापारी ने सोचा – मित्र पर लोग सब कुछ न्योछावर कर देते है | फिर यह मित्र तो मुसीबत में है | इसकी मदद करनी चाहिए | मेरा क्या है ? – शहर जाकर और मॉल भर ले उगा | उसने कहा – “मित्र | इस गाड़ी से लदे सरे पकवान और मिठाई तुम्हारे लिए है | चलो, कहा ले चलू |”
और वे दोनों वहा आ गए, जहा पिता के साथ बाकि तीनो बेटे बेठे थे | पिता ने उस सबसे कहा – “अब तुम सब अपनी – अपनी मांगी हुई भोजन साम्रगी की तुलना करो | जिसने जैसा बोला और आचरण किया, उसे वेसा ही मिला | क्या अब भी अपने “बोल का मोल” नहीं समझे ?”

Tuesday, June 23, 2015

मनुष्य की इच्छाएँ


मनुष्य की इच्छाएँ कभी खतम  नही होती | मानव की इछाये कुछ देर के लिये तो सुख देती पर मन की शांती नही दे सकती | मन एक प्रकार का रथ है जिसमे कामन, करोध, लोभ, मोह, अंहकर, ओर घृणा नाम के साथ अश्व जुटे है | कामना इन सब से प्रमुख है |
मन के तीन विकार होते है:- तामसिक, राजसिक व् सात्विक | तामसिक मन हमेशा दुसरो को नुकसान पहुचाने में आनंद प्राप्त करता है और राजसिक मन अहंकार व् शासन की बात सोचता है और सात्विक हमेशा प्रेम और शांति ही चाहता है| विवेक से ही मन को शांत और काबू में किया जा सकता है | मनुष्य के भीतर कामना, मोह, व् अंहकार जेसी जो व्रतिया है उनके सकारात्मक रूप भी है | माता पिता अपने बच्चो को कभी दुख नहीं दे सकते इसलिए कामना करते है की उनके बच्चे हमेशा सुखी रहे | मन का प्रेम ही उन्हें सन्तान के लिए बलिदान करने को भी तत्पर करता है | उनका इसमें कोई स्वार्थ नहीं होता है बस होती है तो कामना और आशीर्वाद | इसी तरह मोह का भी उदारण भी है | जब कोई युवक किसी युवती के प्रति आकर्षित होता है तो वह उसके अवगुण नहीं देखता और उसकी तरह खिंचा चला जाता है | पहले तो येन केन प्रकारेण वह उसे पाना चाहता है और पा लिया तो खोना नहीं चाहता है | उसका अंह जब जगता है तो वह खुद को उसकी नजरो में उठाने के लिए तरह-तरह से हाथ पैर मरता है | इस तरह वह अपने प्यार को पाने में सफल होता है |
नकारात्मक रूप में अंह मानव का दुश्मन भी है क्योकि यह दुसरो से बेमतलब मुकाबला करवाता है | इससे ग्रस्त व्यक्ति तरह-तरह की इच्छाएँ पलता है  और जब उससे नहीं मिलती तो बेमतलब दुखी भी हो जाता है | परन्तु अगर अंह सकारत्मक हो तो मानव का जीवन आनंद मय हो जाता है | मन को किस दिशा में ले जाना है वो इन्सान के हाथो में होता है | चाहे तो अच्छी जगह पर लगा दे या बुरी जगह पर | संतो ने कहा है: कामनाओ का अंत विनाश है | तो सवाल उठता है की क्या इनका त्याग कर देना चाहिए? क्या इन्सान को बड़ा बनने का सपना नहीं देखना चाहिए?
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की काम, क्रोध, व् लोभ  ये तीनो नर्क के द्वार है | इस तीनो का त्याग करे क्योकि इनसे आत्मा तक का हनन होता है | कामुक आचार से व्यक्ति भ्रष्ट हो जाता है और क्रोध बुदी को भ्रष्ट करता है और विवेक में कमी लाता है जबकि लोभ उसे भिखारी बना देता है और कामनाओ के पूरा न होने से उसे निराशा होती है |
कुछ साधू – संत यह भी कहते है की कामनाएँ प्रक्रति की देन है इसलिए मानव कामनाओ का त्याग नहीं कर सकता जब तक वो जीवन जी रहा है | इच्छाओ को दबाना मुस्किल ही नहीं अपितु ना मूनकिन ही है मनुष्य इच्छाओ का पुतला है | बस इस का एक ही उपाय है की अपनी इच्छाओ को सकरात्मक दिशा दी जाये | योगी कामनाओ से विमुख होता है और वह इच्छा मुक्ति के लिए, मोक्ष के लिए तप का सहारा लेता है पर ग्रहस्त तो संसार की बिच जीता है और उसे चाहिए की संसार में रह कर अपनी इच्छाओ को एक रूप देना चाहिए और मन में हमेशा दुसरो के कल्याण के बारे में ही सोचना चाहिए और अपना कर्म करते रहना चाहिए |
श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है की कर्म योग ही स्र्वोप्रिये है उन्होंने कहा है: “कर्म मार्ग ग्रहस्त लोगो के लिए है सन्यास या कर्म से विमुख होने से कोई शिकार तक नहीं पहुचता | जो इंदियो को अपने नियंत्रित करके बिना किसी आसिक्त के कर्म मार्ग पैर अग्रसर होता है वाही श्रेष्ठ है|” आज का मनुष्य मोज-मस्ती व् ऐश्वर्य को होड़ में लगा हुआ है और मानव मूल्य के बारे में नहीं और न ही संसार के बारे में, बस पैसा आते ही अपने सुख में वलीन हो जाता है और सब कुछ भूल जाता है |
यह एक विडबना है की मनुष्य तन की गंदगी मल-मल कर धोता है लेकिन मन को गंदगी बे बारे में तनिक भी नहीं सोचता | मानव अपने स्वार्थ के लिए तो दुसरो का गला भी काटने से नहीं डरता | धन जाने, स्वास्थ गिरने और तरह-तरह की बदनामी के बाद ही मानव हो होश आता है और फिर बाद में भगवान को भी अपने बुरे के लिए खरी-कोठी सुनाता है | वो भूल जाता है की उसने क्या किया था दुसरो के साथ बस उसे अपना ही दुख दिखाई देता है और दूसरो का नहीं | अगर वो पहले से ही संभल जाता तो उसका कभी बुरा नहीं होता और अगर दुःख आता भी तो हसी हसी से काट देता अपने दुःख को |
सीख: वक्त चाहे बुरा और या अच्छा, अपने मकसद को कभी न भूलना न आप को सिर्फ और सिर्फ समाज कल्याण करना है और उसी की राह पर चलना है 

Monday, June 22, 2015

जब शत्रु मित्र बन गए


बरगद का एक पुराना पेड़ था | उस पेड़ की जडो के पास दो बिल थे | एक बिल में चूहा रहता था और दुसरे बिल में नेवला | पेड़ के बीच खोखली जगह में बिल्ली रहा करती थी | पेड़ की डाल पर उल्लू रहता था | बिल्ली, नेवला, और उल्लू – तीनो चूहे पर निगाह रखते की कब वह पकड़ में आए और वे उसे खाए | उधर बिल्ली चूहे के आलावा नेवला तथा उल्लू पर भी निगाह रखती थी की इनमे से कोई मिल जाए | इस प्रकार बरगद में रहनेवाले ये चारो प्राणी शत्रु बनकर रहते थे |
चूहा और नेवला बिल्ली के डर से दिन में बाहर न निकलते | केवल रात में भोजन की तलाश करते | उल्लू तो रात में ही निकलता था | उधर बिल्ली इन्हें पकड़ने के लिए रात में भी चुपचाप निकल पडती |
एक दिन वहा एक बहेलिया आया | उसने खेत में जाल लगाया और चला गया | रात में चूहे की खोज में बिल्ली खेत की | और गई | उसने जाल को नहीं देखा और बस उसमे वह फँस गई | कुछ देर बाद द्वे पांव चूहा उधर से निकला | उसने बिल्ली को जाल में फंसा देखा तो बहुत खुश हुआ |
तभी न जाने कहा से धूमते हुए नेवला और उल्लू आ गए | चूहे ने सोचा – ये दोनों मुझे नहीं छोड़ेगे | बिल्ली तो मेरी शत्रु हे ही | अब क्या करूँ |
उसने सोचा – इस समय बिल्ली मुसीबत में है | मदद पाने के लालच में शत्रु भी मित्र बन जाता है | इसलिए इस समय बिल्ली की शरण में जाना चाहिए |
चूहा तुरंत बिल्ली के पास गया और बोला = “मुझे तुम्हारी इस हालत पर दया आ रही है | में जाल काटकर तुम्हे मुक्त कर सकता हु | किन्तु में केसे विश्वास करूँ कि तुम मित्रता का व्यवहार करोगी ?”
बिल्ली ने कहा – “तुम्हारे दो शत्रु इधर ही आ रहे है | तुम मेरे पास आकर छिप जाओ | इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है  कि में तुम्हे मित्र बनाकर छिपा लूगी |”
चूहा बिल्ली के पास छिप गया | उधर नेवला और उल्लू भी घूमते धूमते आगे निकल गए | बिल्ली से कहा – “आज से तुम मेरे मित्र हो | अब जल्दी से जाल काट दो | सवेरा होते ही बहेलिया यहाँ आ जाएगा |”
चूहे ने जाल काट दिया और भागकर फिर से बिल में छिप गया | बिल्ली भी मुक्त होकर आ गई | उसने चूहे को आवाज दी – “अरे मित्र | बहार आओ | अब डरने कि क्या बात है |”
चूहा बोला – “में तुम्हे खूब जानता हु | शत्रु केवल मुसीबत में फंसकर कि मित्र बनता है | बाद में वह फिर शत्रु बन जाता है | में तुमपर विश्वास नहीं कर सकता | “

बीरबल की बेटी


एक दिन बीरबल की बेटी ने बादशाह से मिलने के लिए बहुत जोर दिया | वह 11 वर्ष की थी | वह भी अपने लिटा के समान बुद्धिमान तथा चतुर थी | बीरबल ने उसे खुश करने के लिए महल में ले गया | महल में जाकर उसने सभी कक्ष तथा शाही उधान देखे | उसके बाद वह शाही दरबार में गई | उस समय बादशाह दरबार में बैठे थे | उन्होंने बीरबल की बेटी को देखा तथ उसका स्वागत किया | उसके बाद वह भोजन करने चली गई | भोजन के बाद बादशाह ने उससे पूछा, “बेटी क्या तुम जानती हो कि किस प्रकार बात करनी चाहिए “

“जी महाराज, न अधिक न ही बहुत काम” और यह जवाब सुनकर बादशाह हेरान हो गए, उन्हें समझ नहीं आया कि वह क्या बताना चाहती है, इसलिय उन्होंने उससे पूछा, “तुम क्या कहना चाहती हो, बेटी |”


“मेरा मतलब है कि मुझा बड़ो से काम बाते करनी चाहिए और मित्रो के साथ अधिक”

बीरबल कि बेटी का इतना उतम जवाब सुनकर बादशाह बहुत प्रसन्न हुए और बोले “तो तुम भी अपने बिता के समान चतुर हो | “

Saturday, June 20, 2015

स्व-कर्म करते जाओ


हमारी संस्कति में आध्यात्मिको की नजर में मोक्ष, एक सर्वोच्च कल्पना है। मोक्ष मिलना चाहिए ऐसी हर व्यक्ति की आंतरिक भावना होती है। किंतु हमारे ऋषि-मुनियों ने जिन चार पुरूषार्थों का महत्व दिया है, उनमें मोक्ष चौथा पुरूषार्थ है। धर्म, अर्थ और काम अन्य तीन पुरूषार्थ हैं। इन तीन पुरूषार्थों के लिए काम करते करते ही मोक्ष के बारे में सोचना होता है। यह जरूरी नहीं है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए घर-परिवार, कामकाज छोड़कर जंगलों में घूमते रहो।

अपना निहित काम पूरा करते हुए, अपना उत्तरदायित्व सही ढंग से पूरा करते हुए भी मोक्ष हमें सहजता से मिल सकता है। मराठी के एक संत सावता माली थे। खेती करना, फल-सब्जियां उगाना ही उनका पेशा था। वे विठ्ठल के बड़े भक्त थे। किंतु अपनी जिम्मेदारी छोड़कर उन्होंने कभी ईश्वर की आराधना नहीं की। वे कहते थे -'हम माली हैं। खेती करना,अनाज-फल-सब्जियां उगाना हमारा काम है। हम मोट चलाते हैं, तब पेड़ों को पानी मिलता है। तब सेवंती शांति का रूप लेकर आती है। हम अपने स्व-कर्म में रत होते हैं, तो मोक्ष अपने पैरों से हमें मिलने आता है।

सावता माली की कही हुई दो बातें ध्यान में रखना जरूरी है। मोट चलाकर खेती को पानी देनेवाला माली केवल पानी खींचता नहीं, बल्कि यह काम वह बड़े प्रेम के साथ करता है। इसलिए सेवंती शांति का रूप धारण कर आती है और बेला चमेली के फूलों से प्रेम का ही आविष्कार होता रहता है। माली जो स्व-धर्म करता है, उससे पूरे विश्व को आनंद मिलता है और इसलिए माली मोक्ष के करीब जाता है।


जब हम अपना काम दिल लगाकर, ठीक तरीके से करते हैं, तब भी हम मोक्ष के पास क्यों नहीं जाते? उनके लिए थॉमस एडिसन का कहना उचित है। वह कहते हैं,'मैंने अपने पूरे जीवन में कभी भी काम नहीं किया। जो किया वह मौज-मस्ती थी। मौज और कार्यपूर्ति की खुशी, यही तो काम का प्रयोजन है।' आज भी हम अपने व्यवस्थापन प्रशिक्षण में यही सीख देते हैं कि'वर्क इज फन।' आज आप किसी से भी उसके काम के बारे में पूछिए। हर एक यही कहेगा कि 'मेरे काम में कोई अर्थ नहीं है।'

इसका अर्थ यह नहीं है कि उसे दिए गए काम से या उसके स्वीकृत काम में वह खुश नहीं है। नाखुश इंसान ऐसा काम चुनेगा, जो उसे अच्छा लगे। अगर वह वेतन से नाखुश हो, तो अधिक वेतन देनेवाला काम वह चुनेगा। किंतु वास्तव यह है कि कई लोगों को काम में कोई भी काम हम क्या उद्देश्य मन में रखकर करते हैं, इसे महत्व होता है और जैसा हमारा उद्देश्य हो, वैसा ही फल भी मिलता है। कोई काम सत् प्रवृत्ति से किया जाए तो उसका फल सात्त्विक खुशी देनेवाला ही होगा।

कोई अपेक्षा मन में रखकर किया हुआ काम पूर्ति का आनंद नहीं देता, बल्कि फल न मिलने का दु:ख जरूर देता है, और कोई काम तामसी वृत्ति से किया गया हो, तो उस काम में से शून्य ही हाथ आता है । इसलिए गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, 'कृष्णार्पण वृत्ति से काम करो।' यह काम मुझे ईश्वर के लिए करना है, यह सोचकर कोई काम जब हम करते हैं, तब हमारे पास जो भी अच्छा है, वह सब उस काम में लगाने का प्रयास करते हैं ।

ऐसी समर्पण वृत्ति से किया गया काम सदा अच्छा फल ही देगा। पिछले पचास सालों में जापानी उद्योग ऐसे विकसित हुए कि अमरीका के लिए भी आह्वान बन गए। इतना छोटा देश ऐसी अनहोनी कर सका, इसका कारण है, जापान के हर एक मजदूर की अपने काम पर होनेवाली दृढ़ श्रद्धा। इस संदर्भ में उदाहरण के तौर पर एक कहानी हमेशा सुनाई जाती है।

एक कारखाने में एक मजदूर के पास केवल एक ही काम था और वह यह कि हर मशीन में चार स्क्रू फिट करना। एक बार एक विदेशी मेहमान कारखाना देखने आए, उन्होंने देखा कि वे चार स्क्रू लगाते हुए भी मजदूर अपने काम में एकचित्त हो गया था। उन्होंने मजदूर से पूछा, 'इतना एकचित्त होकर करने लायक क्या है इस काम में?' मजदूर ने उत्तर दिया, 'जब यह मशीन विदेश में जाएगी, तब इसका एक भी स्क्रू ढीला होने से काम नहीं चलेगा ।' लोग कहेंगे,'जापानी मशीन ऐसी ही होती हैं।' कोई मेरे देश के बारे में ऐसा कहे, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा इसलिए मैं अपना काम दिल लगाकर, एकचित्त होकर और अपने कामपर विश्वास रखकर करता हूं।

अपने काम पर इतना विश्वास रखनेवाले अनगिनत मजदूर जापान में हैं, इसलिए विनाश की राख से उठकर जापान फिनिक्स जैसी उड़ान भर सका। अपनी सारी शक्तियां, कुशलता तथा तन-मन-धन का अर्पण कर, अगर हम स्वीकृत किया हुआ काम निष्ठापूर्वक करें तो कीर्ति, सम्पत्ति हमारे सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाएगी। इस बात में किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।'

इसमें क्या रखा है? यह क्यों करना है? इसका क्या फायदा है' यही तकिया कलाम सुनाने से तो अच्छा है कि जो काम हमने हाथ में लिया है, उसे पूर्ण करने के लिए जी-जान से हम कोशिश करें। पूरी शक्ति लगाकर, मन एकचित्त कर उसपर ही ध्यान केंद्रित करें। ऐसा हम कर सके तो किसी भी काम में असफलता नहीं मिलेगी। यह विचार मन में दृढ़ हो जाए, तो स्व-कर्म में रत रहकर भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

सारांश यही कि हमारा काम हम निष्ठापूर्वक नेकी से और श्रद्धा से करते हैं, तो उसकी कीमत सबसे बड़ी होती है। हम किसके लिए क्या करते हैं, इसपर हमारे काम की केवल कीमत ही तय नहीं होती, बल्कि सार्वकालिक मूल्य भी तय होता है। ऐसा मूल्य केवल समर्पण भावना में होता है।



ग्रहण करने का गुण


एक घड़ा पानी से भरा हुआ रखा रहता था। उसके ऊपर एक कटोरी ढकी रहती थी। घड़ा अपने स्वभाव से परोपकारी था। बर्तन उस घड़े के पास आते, उससे जल पाने को अपना मुख नवाते। घड़ा प्रसन्नता से झुक जाता और उन्हें शीतल जल से भर देता। प्रसन्न होकर बर्तन शीतल जल लेकर चले जाते। कटोरी बहुत दिन से यह सब देख रही थी। एक दिन उससे रहा न गया, तो उसने शिकायत करते हुए अपने दिल की टीस घड़े से व्यक्त की, 'बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?' 'पूछो।' घड़े ने शांत स्वर में उत्तर दिया।

कटोरी ने अपने मन की बात कही, 'मैं देखती हूं कि जो भी बर्तन तुम्हारे पास आता है, तुम उसे अपने जल से भरकर संतुष्ट कर देते हो। मैं सदा तुम्हारे साथ रहती हूं, फिर भी तुम मुझे कभी नहीं भरते। यह मेरे साथ पक्षपात है।' अपने शीतल जल की तरह शांत व मधुर वाणी में घड़े ने उत्तर दिया, 'कटोरी बहन, तुम गलत समझ रही हो।

मेरे काम में पक्षपात जैसा कुछ नहीं। तुम देखती हो कि जब बर्तन मेरे पास आते हैं, तो जल ग्रहण करने के लिए विनीत भाव से झुकते हैं। तब मैं स्वयं उनके प्रति विनम्र होते हुए उन्हें अपने शीतल जल से भर देता हूं। किंतु तुम तो गर्व से भरी हमेशा मेरे सिर पर सवार रहती हो।

जरा विनीत भाव से कभी मेरे सामने झुको, तब फिर देखो कैसे तुम भी शीतल जल से भर जाती हो। नम्रता से झुकना सीखोगी तो कभी खाली नहीं रहोगी। मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी बात समझ गई होगी।' कटोरी ने मुस्कराकर कहा, 'आज मैंने ग्रहण करने का गुण सीख लिया।'


भविष्य की चिंता में व्यर्थ समय खराब नहीं करना चाहिए।


एक सेठ भविष्य को लेकर आशंकित रहता था। शाम को जब वह दुकान से घर लौटता तो भविष्य की संभावित कठिनाइयों को लेकर तिल का ताड़ बनाने लगता। घर के सभी लोगों, खासकर उसकी पत्नी को इससे बहुत परेशानी होती। धीरे-धीरे पत्नी समझ गई कि बेवजह नकारात्मक चिंतन में घुलते रहने की वजह से उसके पति की यह हालत हो रही है। पत्नी ने उसे सुधारने के लिए एक नाटक रचा। एक दिन वह चारपाई पर रोनी सूरत बनाकर पड़ गई। उसने घर का कोई काम भी नहीं किया।

शाम को सेठ जब घर आया और पत्नी को चारपाई पर लेटे देखा तो उसकी चिंता बढ़ गई। उसने पत्नी से उदासी का कारण पूछा। इस पर पत्नी बोली,'नगर में एक पहुंचे हुए ज्योतिषी पधारे हैं। लोग कहते हैं कि वे त्रिकालदर्शी हैं और उनका कहा कभी झूठ नहीं होता। पड़ोसन की सलाह पर आज मैं भी उनसे मिलने गई थी। उन्होंने मेरा हाथ देखकर बताया कि मैं सत्तर बरस तक जियूंगी। मैं यह सोच-सोचकर परेशान हूं कि सत्तर बरस में मैं कितना अनाज खा जाऊंगी...'

यह सुनकर सेठ उसे समझाते हुए बोला-'अरी बावरी, यह सब एक दिन में थोड़े ही होगा। समय के साथ आने और खर्च होने का काम चलता रहेगा। तू व्यर्थ ही चिंता करती है।' यह सुनकर पत्नी ने तुरंत कहा-'आप भी तो रोज भविष्य के बारे में सोच-सोचकर खुद भी परेशान होते हैं और हमें भी परेशान करते हैं। ऐसा क्यों नहीं सोचते कि समयानुसार यदि समस्याएं आएंगी, तो उनका हल भी निकालते रहेंगे।' सेठ को अपनी भूल समझ में आ गई। उसने अपनी दुविधा दूर करने के लिए पत्नी को धन्यवाद दिया।


Thursday, June 18, 2015

जब भी आप जिंदगी में बेहद उदास और हताश हो जाएँ तो याद रखें 10 बातें |


हमारे जीवन में अक्सर ऐसे मौके आते हैं जब हमें सारे दरवाजे बंद नजर आते हैं और हम बेहद निराश और  उदासी से घिर जाते हैं। ऐसे मौके पर हमें आपने आप को अपने परिवेश की अच्छी चीजों की याद दिलानी पड़ती है क्यूंकि ऐसी चीजें हमारे आस-पास हमेशा मौजूद रहती हैं, और जब हम अपनी और अपने आस-पास की अच्छाईयों पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो बाकि नकारात्मक चीजें अपने आप विलुप्त हो जाती हैं और हम पहले से कहीं ज्यादा मजबूत और बुलंद इरादों के साथ आगे बढ़ते हैं।

हम ऐसी ही कुछ अद्भुत बातों के बारे में आपको बताएंगए जो हमेशा आपको मजबूती प्रदान करेंगे। तो जब भी उदासी और निराशा का बादल आप पर गहराए तो इन १० बातों को याद रखें : 
 १. वक्त सारे घाव भर देता है : 
आप जिन परिस्थितियों से भी गुजरे हों, या फिर आपके हालत कितने भी बुरे क्यों न रहे हों, ये जल्द ही खत्म होंगे। आप इन हालातों से जूझना सीख जायेंगे और इनके साथ जीना भी सीख जाएंगे, धीरे धीरे आपको इन हालातों की आदत हो जाएगी और सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जायेगा।
२. मौके हर जगह हैं : 
हर दिन के साथ जिंदगी आपको अनगिनत मौके देती है; आपको बस उन्हें पहचानने और उनका सबसे अच्छा इस्तेमाल करने के लिए प्रयासरत होना पड़ेगा।
3. दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है जो आपकी मदद कर सकते हैं और आपको प्रेरित कर सकते हैं : 
हो सकता है आप नकारात्मक सोच और हमेशा जीवन को नकारने वाले बुरे लोगों से घिरे हों जो आपके लक्ष्यों का मजाक उड़ाते हों और हमेशा आपको नीचे दिखाने की कोशिश करते हों; मैं आपसे यही कहूँगा कि ऐसे लोगों से आप दूर ही रहें ; हमें ऐसे लोगों की जरुरत नहीं है, अगर आप ऐसे लोगों के साथ जुड़े रहते हैं तो आप कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
लेकिन यह भी याद रखें की हमारे आस पास अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है जो हमेशा हमें प्रेरित करते है और हमारा उत्साह बढ़ाते है। इंटरनेट के युग में ऐसी वेबसाइटस और ब्लॉग्स भी हैं(जैसे हिंदी साहित्य मार्गदर्शन ) जो आपको बेहतर बनने में आपकी मदद करती हैं। आपको बस उन्हें पहचानना और खोजना है।
4. अगर आपको अपने बारे में कुछ पसंद नहीं है तो उसे आप कभी भी बदल सकते हैं : 
कमियां हम सब में होती हैं।  हो सकता है आपको अपना पतला या मोटा शरीर पसंद न हो या आप सोचते हों की आपके अंदर कुछ विशेष गुण नहीं है या फिर आप दूसरों से बातें करने में शरमाते हैं, लोगों के सामने बोलने में डर लगता है  इत्यादि ।
इन सभी चीजों को बदला सकता है; बस आपको ये जानना है की आप ऐसा बदलाव क्यों लाना चाहते हैं और इसके प्रति हमेशा प्रयासरत रहें। अगर प वास्तव में अपना जीवन बदलना चाहते हैं तो हर दिन अपनी इन कमियों को दूर करने का प्रयास करें।  
5. कुछ भी उतना बुरा नहीं है जितना कि दिखता है : 
कभी-कभी हम हालातों को इतना बढ़ा चढ़ा कर देखने लगते हैं की वो हमारे लिए सबसे बुरा प्रतीत होने लगते हैं जबकि वास्तव में सब कुछ, कुछ ही समय के लिए होता है और बदला जा सकता है।
6. जीवन सुलझा होता है इसे उलझाएं नहीं :
हमें अपने जीवन को हमेशा सुलझाने का प्रयास करना चाहिए इसलिए अपने अति-महत्वकांछी लक्ष्यों को त्याग दें और लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं इसका अनुमान लगाना छोड़ दें।  जिन चीजों का इस्तेमाल आप बिलकुल नहीं करते हैं उनको फेंक दें और अपने डेस्क पर या घर में थोड़ा जगह बनायें। पुरानी बातों और भविष्य की चिंता में समय व्यर्थ न करें और वर्तमान में ध्यान केंद्रित करें।  
7. असफलताएँ और गलतियां आशीर्वाद /वरदान हैं :
असफल होना सफलता के लिए किये गए प्रयास का सबसे बड़ा प्रमाण है, इसका मतलब है कि आप अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं।  
किसी भी कार्य में प्रयास करने पर भी असफलता आपको अनुभव प्रदान करती है और मजबूत बनाती है और आपको सिखाती है कि किन गलतियों को दोहराने से आपको बचना चाहिए जो अगले प्रयास में सफलता सुनिश्चित कर सकती है।  
8. "​जाने दो यारों"  ऐटिट्यूड अपनाएं : हमेशा आप प्रसन्न रहेंगे 
कभी कभी कुछ चीजों को छोड़ देना या किसी को माफ़ कर देना बहुत अच्छा साबित होता है। ऐसा करने से आपको शांति मिलती है और आपके मन से बोझ हल्का हो जाता है। शांत मन से ही आप वर्तमान में जी सकते हैं और अपने कार्यों में ध्यान लगाकर प्रगति कर सकते हैं।  
9. कायनात हमेशा आपके पक्ष में काम करती है न की विरोध में :
जीवन कभी-कभी हमें अन्यायपूर्ण लगता है और हम ये सवाल पूछने लगते हैं की "हमेशा मैं ही क्यों", लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए लगता है कि हम कभी कभी चीजों को कुछ ज्यादा ही व्यक्तिगत ले लेते हैं और कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगा बैठते हैं या फिर उतना प्रयास नहीं करते जितना हमें करना चाहिए था। ब्रम्हाण्ड हमें हमेशा संकेत देता रहता है लेकिन कभी कभी हम बंद दरवाजों की तरफ इतनी देर तक देखते रहते हैं की आगे के मौके हमें दिखाई नहीं देते।  आपको ब्रम्हांड के संकेतो को समझना होगा और आपके लिए जो सही है उसका चुनाव करना होगा।  
10 .  हर अगला दिन आपके लिए नयी उमीदों का भण्डार लेकर आता है :
जब भी मैं बुरा महसूस करता हूँ मैं आपने आप से ये दोहराता हूँ कि अगला दिन नयी उम्मीदों के साथ आएगा और अपने साथ कुछ नया लेकर आएगा और यही सच है। गुजरा दिन कितना ही बुरा क्यों न हो, आने वाला दिन नया होता है और हमें तय करना होता है की इसकी शुरुआत कैसे की जाय और इस कैसे बिताया जाय।  

याद रखिये कठिन परिस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं और कुछ लोग रिकॉर्ड तोड़ते हैं

सुख की माया में फंसा इंसान


एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था। शाम का वक्त था। अंधेरे के कारण कुआं उसे दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया। गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई। नीचे झांका, तो देखा की कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे हैं। वह जिस डाल को पकड़े था, उसे दो चूहे कुतर रहे थे। इतने में एक हाथी कहीं से आया और पेड़ के तने को जोर-जोर से हिलाने लगा। वह घबरा गया और उसने सोचा कि हे भगवान अब मेरा क्या होगा। 
उस पेड़ के ठीक ऊपर मधुमक्खियों का छत्ता था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उड़ने लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं। एक बूंद शहद की लटकते हुए इंसान के होठों पर आ गिरी। उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा। शहद की उस बूंद में अद्भुत मिठास थी। कुछ पल के बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुंह में टपकी। वह इतना मगन हो गया की अपनी मुश्किलों को भूल गया। उस जंगल से शिव पार्वती अपने वाहन से गुजर रहे थे। पार्वती ने शिव से उसे बचने का अनुरोध किया। भगवन शिव ने उसके निकट जा कर कहा, 'मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं। मेरा हाथ पकड़ लो।' उस इंसान ने कहा कि भगवान एक बूंद शहद और चाट लूं, तो चलूं। एक बूंद, फिर एक बूंद। हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार। आखिर में थककर भगवान शिव चले गए। वह जिस जंगल में जा रहा था, वह जंगल है दुनिया और अंधेरा है अज्ञान। पेड़ की डाली है आयु। दिन रात रूपी चूहे उसे कुतर रहे हैं। घमंड का मदमस्त हाथी उस पेड़ को उखाड़ने में लगा हुआ है। शहद की बूंदें संसारिक सुख हैं जिनके कारण मनुष्य आसपास के खतरे को अनदेखा करता है। सुख की माया में खोए मन को खुद भगवान भी नहीं बचा सकते।

कर्म की ताकत


उस समय फ्रांस के महान विजेता नेपोलियन एक साधारण सैनिक थे। वह बेहद मेहनती और अपने काम के प्रति समर्पित थे। एक दिन राह में एक ज्योतिषी कुछ लोगों का हाथ देख रहे थे। नेपोलियन भी वहां ठहर गए और अपना हाथ ज्योतिषी के आगे कर दिया। ज्योतिषी काफी देर तक हाथ पढ़ता रहा और अचानक उनका चेहरा उदास हो गया।
उसके मनोभावों को नेपोलियन समझ गए और बोले, 'क्या हुआ महाराज? क्या मेरे हाथ में कोई अनहोनी बात लिखी है, जिससे आप चिंतित हो उठे हैं।' ज्योतिषी ने अपनी गर्दन उठाई और बोला, 'तुम्हारे हाथ में भाग्य रेखा ही नहीं है। मैं यही देखकर चिंतित था। जिसके हाथ में भाग्य रेखा ही न हो, उसका भाग्य प्रबल कैसे हो सकता है?' ज्योतिषी की बात सुनकर नेपोलियन दंग रह गए।
वह बहुत ही महत्वाकांक्षी थे। उन्हें ज्योतिषी की बात से बहुत आघात पहुंचा। वह ज्योतिषी से बोले, 'महाराज, मैं अपने कर्म से अपना भाग्य ही बदल दूंगा। जीवन हाथ की रेखाओं पर नहीं, कर्म की रेखा पर निर्भर करता है। हमारे सद्कर्मों की रेखा जितनी बड़ी होगी, सफलता भी उसी हिसाब से मिलेगी।' ज्योतिषी बोले, 'बेटा, काश तुम्हारी बात सच साबित हो।'
नेपोलियन को अपने अदम्य साहस और आत्मबल पर पूरा विश्वास था। इसलिए उन्होंने तय कर लिया कि जो सफलता उनके भाग्य में नहीं है, उसे वे कर्म के बल पर मेहनत से पाकर दिखाएंगे। और सचमुच अनेक बाधाओं का सामना करते हुए नेपोलियन एक साधारण सैनिक से सम्राट बने। उन्होंने अपने कर्म से भाग्य रेखा को कर्म रेखा में बदला और दुनिया को एक नई दिशा प्रदान करते हुए दिखा दिया कि कर्म की ताकत से बड़ी कोई ताकत नहीं होती

विपत्ति से डरकर मत भागो

 
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद तीर्थयात्रा के लिए निकले। कई दिन तक दर्शन करते हुए वह काशी आए और विश्वनाथ के मंदिर में पहुंचे। दर्शन करके बाहर आए तो देखते हैं कि कुछ बंदर इधर से उधर चक्कर लगा रहे हैं। स्वामीजी जैसे ही आगे बढ़े कि बंदर उनके पीछे पड़ गए। उन दिनों स्वामीजी लंबा अंगरखा पहना करते थे और सिर पर साफा बांधते थे।
विद्या प्रेमी होने के कारण उनकी जेबें किताबों और कागजों से भरी रहती थीं। बंदरों को भ्रम हुआ कि उनकी जेबों में खाने की चीजें हैं। अपने पीछे बंदरों को आते देखकर स्वामीजी डर गए और तेज चलने लगे। बंदर भी तेजी से पीछा करने लगे। स्वामीजी ने दौड़ना शुरू किया। बंदर भी दौड़ने लगे। स्वामीजी अब क्या करें? बंदर उन्हें छोड़ने को तैयार ही नहीं थे। स्वामीजी का बदन थर-थर कांपने लगा। वे पसीने से नहा गए। लोग तमाशा देख रहे थे, पर कोई भी उनकी सहायता नहीं कर रहा था। तभी एक ओर से बड़े जोर की आवाज आई- 'भागो मत!' ज्यों ही ये शब्द स्वामीजी के कानों में पड़े, उन्हें बोध हुआ कि विपत्ति से डरकर जब हम भागते हैं तो वह और तेजी से हमारा पीछा करती है। अगर हम हिम्मत से उसका सामना करें तो वह मुंह छिपाकर भाग जाती है।

फिर क्या था, स्वामीजी निर्भीकता से खड़े हो गए, बंदर भी खड़े हो गए। थोड़ी देर खड़े रहकर वे लौट गए। उस दिन से स्वामीजी के जीवन में नया मोड़ आ गया। उन्होंने समाज में जहां कहीं बुराई देखी उससे कतराए नहीं, हौसले से उसका मुकाबला किया।

Tuesday, June 16, 2015

काम में संलग्नता


गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूरी करके एक शिष्य अपने गुरु से विदा लेने आया। गुरु ने कहा- वत्स, यहां रहकर तुमने शास्त्रो 06; का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया, किंतु कुछ उपयोगी शिक्षा शेष रह गई है। इसके लिए तुम मेरे साथ चलो।

शिषî 1;य गुरु के साथ चल पड़ा। गुरु उसे गुरुकुल से दूर एक खेत के पास ले गए। वहां एक किसान खेतों को पानी दे रहा था। गुरु और शिष्य उसे गौर से देखते रहे। पर किसान ने एक बार भी उनकी ओर आंख उठाकर नहीं देखा। जैसे उसे इस बात का अहसास ही न हुआ हो कि पास में कोई खड़ा भी है। 

वहां ; से आगे बढ़ते हुए उन्होंने देखा कि एक लुहार भट्ठी में कोयला डाले उसमें लोहे को गर्म कर रहा था। लोहा लाल होता जा रहा था। लुहार अपने काम में इस कदर मगन था कि उसने गुरु-शिष् 351; की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया। 

गु ;रु ने शिष्य को चलने का इशारा किया। फिर दोनों आगे बढ़े। आगे थोड़ी दूर पर एक व्यक्ति जूता बना रहा था। चमड़े को काटने, छीलने और सिलने में उसके हाथ काफी सफाई के साथ चल रहे थे। गुरु ने शिष्य को वापस चलने को कहा।

शिषî 1;य समझ नहीं सका कि आखिर गुरु का इरादा क्या है? रास्ते में चलते हुए गुरु ने शिष्य से कहा- वत्स, मेरे पास रहकर तुमने शास्त्रो 06; का अध्ययन किया लेकिन व्यावहार 67;क ज्ञान की शिक्षा बाकी थी। तुमने इन तीनों को देखा। ये अपने काम में संलग्न थे। अपने काम में ऐसी ही तल्लीनता आवश्यक है, तभी व्यक्ति को सफलता मिलेगी

आपका अच्छा व्यवहार आपके लिए कितना महत्वपूर्ण


यह प्रेरक कहानी  जो यह बताती है कि आपका अच्छा व्यवहार आपके लिए कितना महत्वपूर्ण हो सकता है।
ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक फ्रीजर प्लांट  में काम करता था। वह दिन का अंतिम समय था और सभी लोग घर जाने को तैयार थे। तभी प्लांट में एक तकनीकी समस्या  उत्पन्न हो गयी और वह उसे दूर करने में जुट गया। जब तक वह कार्य पूरा करता, तब तक अत्यधिक देर हो गयी। लाईटें बुझा दी गईं, दरवाजे सील हो गये और वह उसी प्लांट में बंद हो गया। बिना हवा व प्रकाश के पूरी रात आइस प्लांट में फंसे रहने के कारण उसकी कब्रगाह बनना तय था।
लगभग आधा घण्टे का समय बीत गया। तभी उसने किसी को दरवाजा खोलते पाया। क्या यह एक चमत्कार था? उसने देखा कि दरवाजे पर सिक्योरिटी गार्ड टार्च लिए खड़ा है। उसने उसे बाहर निकलने में मदद की।
बाहर निकल कर उस व्यक्ति ने सिक्योरिटी से पूछा "आपको कैसे पता चला कि मै भीतर हूँ?" 
गार्ड ने उत्तर दिया- "सर, इस प्लांट में 50 लोग कार्य करते हैँ पर सिर्फ एक आप हैँ जो मुझे सुबह आने पर हैलो व शाम को जाते समय बाय कहते हैँ। आज सुबह आप ड्यूटी पर आये थे पर शाम को आप बाहर नहीं गए। इससे मुझे शंका हुई और मैं देखने चला आया।'' 
वह व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका किसी को छोटा सा सम्मान देना कभी उसका जीवन बचाएगा। याद रखेँ, जब भी आप किसी से मिलें तो उसका गर्मजोशी और मुस्कुराहट के साथ सम्मान करें। हमें नहीं पता, पर हो सकता है कि ये आपके जीवन में भी चमत्कार दिखा दे

Monday, June 15, 2015

मुफ्त में सलाह देने की आदत


कुछ लोगों को बिना मांगे सलाह देने की आदत होती है. वे किसी को बेवकूफी करते देख चुप नहीं रह पाते और सलाह दे देते हैं. हालांकि उनका उद्देश्य अच्छा होता है. वे सिर्फ सामनेवाले की भलाई चाहते हैं, लेकिन कई लोग इस बात को गलत अर्थ में ले लेते हैं. अब ये कहानी ही पढ़ लें.
बहुत समय पहले की बात है. नर्मदा नदी के किनारे एक विशालकाय वृक्ष था. इस पर बड़ी संख्या में पक्षियों के घोसले थे. पेड़ इतना घना था कि भारी बारिश में भी घोसलों का कुछ नहीं बिगड़ता था. एक दिन मानसून की भारी बारिश हुई. घंटों तक रुकने का नाम नहीं ले रही थी. बारिश के साथ तेज हवा भी चल रही थी. तभी बंदरों का एक झुंड वहां पहुंचा. बंदर बहुत भीग चुके थे और ठंडी हवा के झोंकों से कांप रहे थे.
 घोसलों में बैठे पक्षियों ने बंदरों की यह हालत देखी. उनमें से एक पक्षी बंदरों से बोला, ‘तुम्हें हर बार बारिश में इस तरह परेशान क्यों होना पड़ता है? हमें देखो, हमने सिर्फ घास-फूस और तिनके लाकर ही अपने घोंसले बनाये हैं और आज हम सुरक्षित हैं, लेकिन ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ, दो पैर दिये हैं, जिनका इस्तेमाल तुम इधर-उधर कूदने और खेलने में करते हो. तुम अपने लिए घर क्यों नहीं बना लेते, जो बारिश-धूप में तुम्हारी रक्षा करेगा.’
पक्षी की यह बात सुन कर बंदर आग-बबूला हो गये. उन्हें लगा कि यह पक्षी हमारे बारे में इस तरह से कैसे बात कर रहा है. बंदरों को लगा कि यह पक्षी अपने घोसले में बैठ कर हमें उपदेश दे रहा है. ‘बारिश रुक जाने दो, तब हम इन्हें सबक सिखायेंगे.’ बंदरों के सरदार ने कहा.जैसे ही बारिश थमी, सारे बंदर पेड़ पर चढ़ गये और उन्होंने घोसलों को तबाह कर डाला. घोसलों में रखे अंडों को फोड़ दिया. अब पेड़ पर घोसलों का नामोनिशान नहीं रह गया था. नतीजा यह हुआ कि पक्षियों ने इधर-उधर उड़ कर अपनी जान बचायी. इसलिए कहा गया है कि सलाह हमेशा समझदार को देनी चाहिए और वह भी तब, जब मांगी जाये. मूर्खो को सलाह कभी नहीं देना चाहिए.
 सलाह देना अच्छी बात है, लेकिन सलाह देने के पहले सामने वाले व्यक्ति का स्वभाव देख लें. यह अच्छी तरह समझ लें कि कहीं वह मूर्ख तो नहीं?
- बिना मांगे किसी को सलाह न दें, वरना सलाह की अहमियत कम हो जाती है. सलाह तभी देनी चाहिए, जब खुद सामने वाला आपसे आ कर मांगे.

Sunday, June 14, 2015

इस दुनिया में नामुनकिन कुछ भी नहीं


विल्मा रुडोल्फ का जन्म अमेरिका के टेनेसी प्रान्त के एक गरीब घर में हुआ था| चार साल की उम्र में विल्मा रूडोल्फ को पोलियो हो गया और वह विकलांग हो गई| विल्मा रूडोल्फ केलिपर्स के सहारे चलती थी। डाक्टरों ने हार मान ली और कह दिया कि वह कभी भी जमीन  पर चल नहीं पायेगी।
विल्मा रूडोल्फ की मां सकारात्मक मनोवृत्ति महिला थी और उन्होंने विल्मा को प्रेरित किया और कहा कि तुम कुछ भी कर सकती हो इस संसार में नामुनकिन कुछ भी नहीं| विल्मा ने अपनी माँ से कहा ‘‘क्या मैं दुनिया की सबसे तेज धावक बन सकती हूं ?’’
माँ ने विल्मा से कहा कि ईश्वर पर विश्वास, मेहनत और लगन से तुम जो चाहो वह प्राप्त कर सकती हो|
नौ साल की उम्र में उसने जिद करके अपने ब्रेस निकलवा दिए और चलना प्रारम्भ किया। केलिपर्स उतार देने के बाद चलने के प्रयास में वह कई बार चोटिल हुयी एंव दर्द सहन करती रही लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी एंव लगातार कोशिश करती गयी| आखिर में जीत उसी की हुयी और एक-दो वर्ष बाद वह बिना किसी सहारे के चलने में कामयाब हो गई|
उसने 13 वर्ष की उम्र में अपनी पहली दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सबसे अंतिम स्थान पर आई। लेकिन उसने हार नहीं मानी और और लगातार दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती गयी| कई बार हारने के बावजूद वह पीछे नहीं हटी और कोशिश करती गयी| और आखिरकार एक ऐसा दिन भी आया जब उसने प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया।
15 वर्ष की अवस्था में उसने टेनेसी राज्य विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ उसे कोच एड टेम्पल मिले| विल्मा ने टेम्पल को अपनी इच्छा बताई और कहा कि वह सबसे तेज धाविका बनना चाहती है| कोच ने उससे कहा – ‘‘तुम्हारी इसी इच्छाशक्ति की वजह से कोई भी तुम्हे रोक नहीं सकता और मैं इसमें तुम्हारी मदद करूँगा”.
विल्मा ने लगातार कड़ी मेहनत की एंव आख़िरकार उसे ओलम्पिक में भाग लेने का मौका मिल ही गया| विल्मा का सामना एक ऐसी धाविका (जुत्ता हेन) से हुआ जिसे अभी तक कोई नहीं हरा सका था| पहली रेस 100 मीटर की थी जिसमे विल्मा ने जुता को हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया एंव दूसरी रेस (200 मीटर) में भी विल्मा के सामने जुता ही थी इसमें भी विल्मा ने जुता को हरा दिया और दूसरा स्वर्ण पदक जीत लिया|
तीसरी दौड़ 400 मीटर की रिले रेस थी और विल्मा का मुकाबला एक बार फिर जुत्ता से ही था। रिले में रेस का आखिरी हिस्सा टीम का सबसे तेज एथलीट ही दौड़ता है। विल्मा की टीम के तीन लोग रिले रेस के शुरूआती तीन हिस्से में दौड़े और आसानी से बेटन बदली। जब विल्मा के दौड़ने की बारी आई, उससे बेटन छूट गयी। लेकिन विल्मा ने देख लिया कि दुसरे छोर पर जुत्ता हेन तेजी से दौड़ी चली आ रही है। विल्मा ने गिरी हुई बेटन उठायी और मशीन की तरह तेजी से दौड़ी तथा जुत्ता को तीसरी बार भी हराया और अपना तीसरा गोल्ड मेडल जीता।
इस तरह एक विकलांग महिला (जिसे डॉक्टरों ने कह दिया था कि वह कभी चल नहीं पायेगी) विश्व की सबसे तेज धाविका बन गयी और यह साबित कर दिया की इस दुनिया में नामुनकिन कुछ भी नहीं 

हर मौसम एक सा नहीं होता


एक दिन पिता ने अपने तीनों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा, 'हमारे यहां नाशपाती का कोई पेड़ नहीं है। मैं चाहता हूं, तुम सब चार-चार महीने के अंतराल पर उसके पेड़ की खोज में जाओ और पता लगाओ कि वह कैसा होता है?' तीनों बेटे बारी-बारी से गए और लौट भी आए। पिता ने उन्हें अपने पास बुलाया और पेड़ के बारे में बताने को कहा।

पहला बेटा बोला, 'पिताजी, वह तो बिलकुल उदास और सूखा हुआ पेड़ था।' दूसरे बेटे ने पहले को बीच में ही रोकते हुए कहा, 'नहीं-नहीं, वो बिलकुल हरा-भरा पेड़ था, लेकिन उस पर फल एक भी नहीं लगा था।' तीसरा बेटा बोला, 'भैया, लगता है तुम कोई गलत पेड़ देख आए। मैंने सचमुच नाशपाती का पेड़ देखा, वो तो बहुत शानदार और फलों से लदा था।' तीनों आपस में विवाद करने लगे।

तभी पिताजी बोले, 'तुम्हें ऐसे झगड़ने की कोई जरूरत नहीं है। तुम तीनों ही पेड़ का सही वर्णन कर रहे हो। मैंने जानकर तुम्हें अलग-अलग मौसम में भेजा था। जो तुमने देखा, वो उस मौसम के अनुसार था। अब मैं चाहता हूं कि तुम तीन बातें गांठ बांध लो- पहली, किसी चीज के बारे में सही और पूरी जानकारी चाहिए, तो उसे लंबे समय तक देखो-परखो।

दूसरी, हर मौसम एक सा नहीं होता। जैसे वृक्ष मौसम के अनुसार सूखता, हरा-भरा या फलों से लदा रहता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी बुरे दौर से गुजर रहे हो तो हिम्मत और धैर्य बनाए रखो। समय अवश्य बदलता है। और तीसरी बात- अपनी बात को सही मान कर उसी पर अड़े मत रहो। दूसरों के विचारों को भी सुनो।

Wednesday, June 10, 2015

मित्रता की कसौटी


एक बार दो युवकों में परिचय हुआ। धीरे-धीरे वे एक-दूसरे के घर भी आने-जाने लगे। एक मित्र के घर में शादी हुई तो उसने अपने नए दोस्त को भी आमंत्रित किया। लेकिन मेहमान मित्र की आवभगत में कमी रह गई। खाने-पीने की कमी न थी, लेकिन पूछताछ और अपेक्षित शिष्टाचार व औपचारिकता का निर्वाह नहीं हो पाया। आमंत्रित करने वाला मित्र बीमार हो गया था। मेहमान मित्र ने स्वयं को थोड़ा उपेक्षित और अपमानित महसूस किया।

घर लौटकर उसने इस मित्र को व्यंग्यात्मक लहजे में एक पत्र लिखा- 'विवाह वाले दिन आपकी तबीयत खराब थी, सो मेहमानों की ठीक से देखभाल भी नहीं कर पाए। खैर, अब आपकी तबीयत कैसी है?' कुछ दिनों बाद उत्तर आया। लिखा था- मित्र, विवाह में सैकड़ों रिश्तेदार और मित्र आए, पर किसी ने भी मेरी चिंता नहीं की। किसी ने भी मेरे स्वास्थ्य के बारे में नहीं पूछा। बस मित्र, तुम एकमात्र ऐसे व्यक्ति हो जिसने मेरा हालचाल जानने के लिए पत्र लिखा। मैं आभारी हूं और तुम जैसा मित्र पाकर धन्य भी। उस दिन तो हाल कुछ ठीक नहीं था। अस्वस्थ होने के कारण तुम्हारा अपेक्षित आदर-सत्कार भी न कर सका। पत्र मिलते ही किसी दिन आने का कार्यक्रम बनाओ। बैठकर गपशप करेंगे।

यह पत्र पढ़कर मित्र के सारे गिले-शिकवे दूर हो गए। उसे लगने लगा कि शायद स्वयं वही गलती पर था। कई बार हम किसी की विवशता को समझे बिना ही व्यर्थ के दोषारोपण करने लगते हैं। मित्रता की कसौटी एक-दूसरे से अपेक्षाएं रखना नहीं, एक दूसरे की अपेक्षाओं पर खरा उतरना है। जिस दिन आचरण में यह चीज आ जाती है, असल मित्रता उसी दिन से शुरू होती है।

Monday, June 8, 2015

धूर्त मेंढक, जैसी करनी वैसी भरनी


एक बार की बात है कि एक चूहे और मेंढक में गहरी दोस्ती थी| उन दोनों ने जीवन भर एक दूसरे से मित्रता निभाने का वादा किया लेकिन चूहा तो ज़मीन पर रहता था और मेंढक पानी में| उन्होनें एक दूसरे के साथ रहने की एक तरकीब निकाली| दोनों ने एक रस्सी से खुद को बाँध लिया ताकि हर जगह हम एक साथ जाएँगे और सारे सुख दुख एक साथ भोगेंगे|
जब तक दोनों ज़मीन पर रहे तब तक तो सब कुछ अच्छा चल रहा था अचानक मेंढक को एक शरारत सूझी और उसने पास के ही एक तालाब मे छलाँग लगा दी| बस फिर क्या था रस्सी से बँधे होने के कारण चूहा भी पानी में गिर गया| अब चूहा बहुत परेशान था वह डूब रहा था और बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था| लेकिन मेंढक धूर्त था उसने अपने मित्र चूहे को नज़रअंदाज़ करते हुए टरटरते हुए ज़ोर ज़ोर से तैरना शुरू कर दिया|
अब तो चूहे की जान ही निकल गयी वह बड़ी मुश्किल से मेंढक को तालाब के किनारे तक खींच कर लाया| जैसे ही दोनों ने ज़मीन पर पैर रखा अचानक एक चील आई और चूहे को झपट कर उड़ने लगी अब रस्सी से बँधे होने के कारण मेढक भी पंजे में आ गया उसने छूटने का बहुत प्रयास किया लेकिन रस्सी को तोड़ ना सका और अंत में दोनों को चील ने खा लिया| अब तो चूहे के साथ मेंढक भी बेमौत मारा गया|
इसीलिए कहा जाता है की जो लोग दूसरों का बुरा करते हैं उसके साथ वह भी गड्ढे में गिरते हैं, तो जैसी करनी वैसी भरनी|

बच्चों की कहानियाँ


जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हमें करने या सुनने में बहुत अच्छी नहीं लगतीं लेकिन हमारे आगे बढ़ने में इन बातों का बहुत योगदान होता है जैसे – जब एक पिता अपने बेटे को डाँटता है या टीचर स्कूल में पिटाई करता है या माँ हर बात पूछती है और टोकती है । बच्चों को बहुत बुरा लगता है लेकिन कहीं ना कहीं ये सभी चीज़ें इंसान की प्रगति की जिम्मेदार होती हैं , आइये एक उदाहरण से समझते हैं -
एक शाम एक पिता अपने आठ साल के बच्चे को पतंग उड़ाना सीखा रहा था । धीरे धीरे पतंग काफी ऊँची उड़ने लगी बच्चा ये सब बहुत गौर से देख रहा था काफी मजा आ रहा था उसे । कुछ देर ऐसे ही देखते हुए बच्चा अचानक जोर से बोला – पिताजी ये पतंग ज्यादा ऊपर नहीं जा पा रही है आप ये धागे की डोर तोड़ दो तो ये पतंग बहुत ऊंंची चली जाएगी ।
पिता ने हँसते हुए पतंग की डोर तोड़ दी , पर ये क्या ? अगले ही पल पतंग ऊपर जाने की बजाये नीचे जमीन पर आ गिरी । बच्चा बहुत हैरानी से देख रहा था , पिता ने समझाया कि बेटा यही जीवन का सार है जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं हमें ऐसा लगता है कि कुछ चीज़ें हमें और ऊपर जाने से रोक रहीं हैं जैसे हमारा घर ,परिवार, दोस्त , रिश्तेदार ,माता -पिता , और हम पतंग की डोर तरह इन सब चीज़ों से आजाद होना चाहते हैं लेकिन कहीं ना कहीं यही सब चीज़ें हमारी प्रगति की जिम्मेदार होती हैं । अगर तुम इन सबसे दूर भागोगे तो पतंग के जैसा ही हश्र होगा|

मृत्यु का अनुभव

एक बार नेपोलियन अपने सैनिकों से बिछुड़कर एक गांव में पहुंच गया। तभी उसे अपनी ओर आते रूसी सैनिक नजर आए। वह जान बचाने के लिए एक दर्जी की दुकान में घुस गया। दर्जी ने नेपोलियन को एक कालीन में लपेट दिया। रूसी सैनिक दुकान में घुस कर नेपोलियन को तलाश करने लगे। एक सैनिक ने तो अपनी तलवार ही कालीन में घुसेड़ दी। सैनिकों चले गए तो दर्जी ने नेपोलियन को सही-सलामत पाने पर चैन की सांस ली।

नेपोलियन दर्जी से बोला, 'मैं फ्रांस का सम्राट हूं और तुम्हारी मदद के प्रति कृतज्ञ हूं। तुम्हारी तीन इच्छाएं पूरी करूंगा।' दर्जी बोला, 'महाराज, मेरी छत टपकती है, आप मरम्मत करा दें।' नेपोलियन बोला, 'दूसरी इच्छा।' दर्जी बोला, 'पड़ोस में एक और दर्जी है, उसे आप कहीं और चले जाने के लिए सहमत कर दें।' नेपोलियन बोला, 'तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते हो। फिर ये छोटी इच्छाएं पूरी करने को क्यों कह रहे हो?' दर्जी साहस कर बोला, 'मैं जानना चाहता हूं कि जब रूसी सैनिक की तलवार कालीन में आपके सामने गुजरी तो आपको कैसा लगा?' तभी नेपोलियन के सैनिक वहां आ पहुंचे। उन्हें देखते ही नेपोलियन बोला, 'इस दर्जी को मौत के घाट उतार दो।' और खुद वह घोड़े पर सवार होकर चला गया। सैनिक दर्जी पर गोली चलाने ही वाले थे कि नेपोलियन का सेनापति दौड़ते हुए आया और बोला, 'सम्राट ने इसे क्षमा कर दिया है।'

दर्जी भागने ही वाला था कि सेनापति ने उसे एक कागज के साथ मोहरों से भरी थैली देकर कहा, 'सम्राट ने तुम्हारे लिए भिजवाई है।' कागज पर लिखा था, 'अब तुम्हें पता चल गया होगा कि मुझे तब कैसा लगा था?'

Sunday, June 7, 2015

असफलता सफलता से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है


सभी के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब सभी चीज़ें आपके विरोध में हो रहीं हों | चाहें आप एक प्रोग्रामर हैं या कुछ और, आप जीवन के उस मोड़ पर खड़े होता हैं जहाँ सब कुछ ग़लत हो रहा होता है| अब चाहे ये कोई सॉफ्टवेर हो सकता है जिसे सभी ने रिजेक्ट कर दिया हो, या आपका कोई फ़ैसला हो सकता है जो बहुत ही भयानक साबित हुआ हो |
लेकिन सही मायने में, विफलता सफलता से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है | हमारे इतिहास में जितने भी बिजनिसमेन, साइंटिस्ट और महापुरुष हुए हैं वो जीवन में सफल बनने से पहले लगातार कई बार फेल हुए हैं | जब हम बहुत सारे कम कर रहे हों तो ये ज़रूरी नहीं कि सब कुछ सही ही होगा| लेकिन अगर आप इस वजह से प्रयास करना छोड़ देंगे तो कभी सफल नहीं हो सकते |
हेनरी फ़ोर्ड, जो बिलियनेर और विश्वप्रसिद्ध फ़ोर्ड मोटर कंपनी के मलिक हैं | सफल बनने से पहले फ़ोर्ड पाँच अन्य बिज़निस मे फेल हुए थे | कोई और होता तो पाँच बार अलग अलग बिज़निस में फेल होने और कर्ज़ मे डूबने के कारण टूट जाता| लेकिन फ़ोर्ड ने ऐसा नहीं किया और आज एक बिलिनेअर कंपनी के मलिक हैं |
अगर विफलता की बात करें तो थॉमस अल्वा एडिसन का नाम सबसे पहले आता है| लाइट बल्व बनाने से पहले उसने लगभग 1000 विफल प्रयोग किए थे |
अल्बेर्ट आइनस्टाइन जो 4 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं पता था और 7 साल की उम्र तक निरक्षर था | लोग उसको दिमागी रूप से कमजोर मानते थे लेकिन अपनी थ्ओरी और सिद्धांतों के बल पर वो दुनिया का सबसे बड़ा साइंटिस्ट बना |
अब ज़रा सोचो की अगर हेनरी फ़ोर्ड पाँच बिज़नेस में फेल होने के बाद निराश होकर बैठ जाता, या एडिसन 999 असफल प्रयोग के बाद उम्मीद छोड़ देता और आईन्टाइन भी खुद को दिमागी कमजोर मान के बैठ जाता तो क्या होता?
हम बहुत सारी महान प्रतिभाओं और अविष्कारों से अंजान रह जाते |

सब्र का फल,


बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध विश्व भर में भ्रमण करते हुए बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे थे और लोगों को ज्ञान दे रहे थे|
एक बार महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गाँव में भ्रमण कर रहे थे| उन दिनों कोई वाहन नहीं हुआ करते थे सो लोग पैदल ही मीलों की यात्रा करते थे| ऐसे ही गाँव में घूमते हुए काफ़ी देर हो गयी थी| बुद्ध जी को काफ़ी प्यास लगी थी| उन्होनें अपने एक शिष्य को गाँव से पानी लाने की आज्ञा दी| जब वह शिष्य गाँव में अंदर गया तो उसने देखा वहाँ एक नदी थी जहाँ बहुत सारे लोग कपड़े धो रहे थे कुछ लोग नहा रहे थे तो नदी का पानी काफ़ी गंदा सा दिख रहा था|
शिष्य को लगा की गुरु जी के लिए ऐसा गंदा पानी ले जाना ठीक नहीं होगा, ये सोचकर वह वापस आ गया| महात्मा बुद्ध को बहुत प्यास लगी थी इसीलिए उन्होनें फिर से दूसरे शिष्य को पानी लाने भेजा| कुछ देर बाद वह शिष्य लौटा और पानी ले आया| महात्मा बुद्ध ने शिष्य से पूछा की नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे ले आए| शिष्य बोला की प्रभु वहाँ नदी का पानी वास्तव में गंदा था लेकिन लोगों के जाने के बाद मैने कुछ देर इंतजार किया| और कुछ देर बाद मिट्टी नीचे बैठ गयी और साफ पानी उपर आ गया|
बुद्ध यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा ये जो जीवन है यह पानी की तरह है| जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है, लेकिन जीवन में कई बार दुख और समस्या भी आते हैं जिससे जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है| कुछ लोग पहले वाले शिष्य की तरह बुराई को देख कर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर वापस लौट जाते हैं, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते वहीं दूसरी ओर कुछ लोग जो धैर्यशील होते हैं वो व्याकुल नहीं होते और कुछ समय बाद गंदगी रूपी समस्याएँ और दुख खुद ही ख़त्म हो जाते हैं|
तो मित्रों, इस कहानी की सीख यही है कि समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए जीवन रूपी पानी को गंदा कर सकती है| लेकिन अगर आप धैर्य से काम लेंगे तो बुराई खुद ही कुछ समय बाद आपका साथ छोड़ देगी|

Friday, June 5, 2015

जिंदगी में सब दिन हमेशा एक से नहीं रहते।


एक व्यक्ति भीख मांगकर अपना गुजारा करता था। उसका वृद्ध शरीर इतना जर्जर हो चुका था कि उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी। उसकी आंखों की ज्योति लगभग जा चुकी थी और शरीर में कुष्ठ हो गया था। एक युवक रोज उस भिखारी को देखता। उसे देखकर युवक के मन में घृणा और दया के भाव एक साथ उमड़ते थे। वह सोचता, 'इसके जीने का क्या फायदा? जीवन से इसे इतना लगाव क्यों है? ईश्वर इसे मुक्ति क्यों नहीं दे देते?'

एक दिन जब उससे नहीं रहा गया, तो वह भिखारी के पास जाकर बोला,'बाबा तुम्हारी इतनी बुरी हालत है, फिर भी तुम जीना चाहते हो और भीख मांगते हो। तुम ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें इस नारकीय जीवन से मुक्त कर दे।' इस पर भिखारी कुछ देर तक मौन रहा फिर बोला, 'बेटा, जो तुम कह रहे हो वही बात मेरे मन में भी उठती है। मैं ईश्वर से बार-बार यही प्रार्थना करता हूं। पर वह मेरी सुनता ही नहीं। शायद वह चाहता है कि मैं इसी धरती पर बना रहूं ताकि दुनिया वाले मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं उन्हीं की तरह था, लेकिन कभी वह दिन भी आ सकता है जब किसी कारणवश वे भी मेरी ही तरह हो जाएं। इसलिए किसी को भी अपने ऊपर किसी भी तरह का अभिमान नहीं करना चाहिए। इंसान की जिंदगी में सब दिन हमेशा एक से नहीं रहते।'

युवक भिखारी के शब्दों में छिपी बातों का मर्म समझ गया। उसे लगा कि भिखारी ने उसकी आंखें खोल दी हैं। इसके बाद जीवन भर उसने फिर किसी के जीवन को हेय समझने की गलती नहीं की।



पात्र की पहचान


संत ज्ञानेश्वर हर रोज मिलने आए लोगों को उपदेश देते और कोई न कोई काम की बात अवश्य बताते। संत ज्ञानेश्वर ने एक दिन कहा, 'ज्ञान, विवेक, शक्ति और भक्ति परमात्मा सत्पात्रों को ही देता है।' यह सुनकर एक महिला से न रहा गया। वह बोली, 'तो इसमें भगवान की क्या विशेषता रही? उसे तो सबको समान अनुदान देना चाहिए।' संत ज्ञानेश्वर उस समय शांत रह गए। उस दिन की वार्ता समाप्त हो गई।

दूसरे दिन प्रातः काल संत ने इलाके के एक मूर्ख व्यक्ति को बुलाकर कहा कि उस स्त्री से जाकर उसके आभूषण मांग लाओ। वह व्यक्ति गया और उसने स्त्री से उसके आभूषण मांगे। स्त्री ने झिड़क कर उसे भगा दिया। इसके थोड़ी देर बाद संत ज्ञानेश्वर स्वयं उस स्त्री के पास जा पहुंचे और बोले, 'आप एक दिन के लिए अपने आभूषण दे दीजिए। आवश्यक काम पूरा होते ही आपके आभूषण लौटा देंगे।'

स्त्री ने उनसे बगैर कोई पूछताछ किए अपना संदूक खोला और सहर्ष अपने सारे के सारे आभूषण ज्ञानेश्वर को सौंप दिए। आभूषण हाथ में लेने के बाद संत ज्ञानेश्वर ने पूछा, 'इससे पहले जो एक व्यक्ति आया था, आपने उसके मांगने पर आभूषण क्यों नहीं दिए?' स्त्री ने उत्तर दिया, 'उस मूर्ख को भला मैं कैसे अपने मूल्यवान आभूषण दे देती?'

स्त्री की यह बात सुनकर संत ज्ञानेश्वर मुस्कराए और बोले, 'बहन, जब आप अपने सामान्य से आभूषण बिना सोचे-विचारे किसी कुपात्र को नहीं सौंप सकतीं, तो फिर जरा सोचिए परमात्मा अपने दिव्य अनुदान कुपात्रों को कैसे सौंप सकते हैं? वह भी तो बारंबार इस बात की परीक्षा करता है कि जिसको अनुदान दिया जा रहा है उसमें पात्रता है भी या नहीं।'


Thursday, June 4, 2015

निंदा सुनकर स्वयं को सुधारें



प्रशंसा सदा ही झूठ है। झूठ हो तभी तुम प्रसन्न होते हो प्रशंसा से। अगर सच हो तो प्रशंसा में प्रशंसा जैसा क्या रहा? अगर तुमने गुलाब के फूल को कहा, कोमल हो, तो कौन सी प्रशंसा हुई? हां, जब तुम कांटे को कहते हो, कोमल हो, तब कांटा प्रसन्न होता है। प्रशंसा से तुम तभी प्रसन्न होते हो, जब कुछ ऐसा कहा गया हो, जो तुम सदा से चाहते थे कि हो, लेकिन है नहीं। झूठ ही सुख देता है प्रशंसा में। और उस प्रशंसा से बढ़ता है तुम्हारे भीतर अहंकार, दर्प, अभिमान।

अभिमान तुम्हारे जीवन के सारे झूठ का जोड़ है, निचोड़ है। हजार-हजार तरह के झूठ इकट्ठे करके अहंकार खड़ा करना पड़ता है। अहंकार सब झूठों का जोड़ है, भवन है, महल है। ईंट-ईंट झूठ इकट्ठा करो, तब कहीं अहंकार का महल बनता है। और प्रशंसा ऐसे ही है, जैसे गुब्बारे को हवा फुला देती है। ऐसे ही प्रशंसा तुम्हें फुला देती है। लेकिन ध्यान रखना, जितना गुब्बारा फूलता है, उतना ही फूटने के करीब पहुंचता है। अहंकार गुब्बारे की तरह है। जितना फूलता जाता है, उतना ही कमजोर, उतना ही अब टूटा तब टूटा होने लगता है।

सभी बुद्धिमान पुरुषों ने कहा है, प्रशंसा के प्रति कान बंद कर लेना। उससे हित न होगा। निंदा के प्रति कान बंद मत करना, उससे लाभ ही हो सकता है, हानि कुछ भी नहीं हो सकती। क्यों लाभ हो सकता है? क्योंकि निंदा करने वाला अगर झूठ बोले तो कुछ हर्जा नहीं, क्योंकि उसके झूठ में कौन भरोसा करेगा? निंदा के तो सच में भी भरोसा करने का मन नहीं होता।

सच्चे आदमी को निंदक झूठा कहे, सच्चा आदमी मुस्कराकर निकल जाएगा। इस बात में कोई बल ही नहीं है। इस पर दो क्षण सोचने का कोई कारण नहीं। इस पर क्रोधित होने की तो कोई बात ही नहीं उठती। ध्यान रखना, जब तुम किसी को झूठा कहो और वह क्रोधित हो जाए तो समझना कि तुमने कोई गांठ छू दी, तुमने कोई घाव छू दिया; तुमने कोई सत्य पर हाथ रख दिया। जब वह अप्रभावित रह जाए तो समझ लेना कि तुमने कुछ झूठ कहा। चोर को चोर कहो तो बेचैन होता है। अचोर को चोर कहने से बेचैनी क्यों होगी? उसके भीतर कोई घाव नहीं है, जिसे तुम चोट पहुंचा सको। निरहंकारी को अहंकारी कहने से कोई कांटा नहीं चुभता, अहंकारी को ही चुभता है।

तो अगर कोई तुम्हारी निंदा झूठ करे तो व्यर्थ। लेकिन अगर निंदा सच हो तो बड़े काम की है, क्योंकि तुम्हारी कोई कमी बता गई, तुम्हारा कोई अंधेरा पहलू बता गई। कमियां आंख के सामने आ जाएं तो मिटाई जा सकती हैं। पीठ के पीछे हो जाएं तो बढ़ती हैं, फलती हैं, फूलती हैं।


Wednesday, June 3, 2015

नेकी कभी बेकार नहीं जाती



एक लड़का अपनी पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए फेरी लगाकर घरों में जरूरत का सामान बेचता था। एक दिन वह तेज भूख के कारण व्याकुल हो गया और किसी घर से भोजन मांगने जा पहुंचा। दरवाजा एक लड़की ने खोला, लेकिन लड़के ने संकोचवश केवल एक गिलास पानी मांगा। लड़की समझदार थी, वह लड़के को देखकर ही समझ गई कि वह बहुत भूखा है। उसने उसे एक गिलास दूध पीने को दे दिया। लड़के ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए दूध पी लिया और पूछा कि उसके बदले उसे कितने पैसे देने होंगे। लड़की ने कहा- कुछ नहीं। यह तो मेरा मानवीय दायिव्य है। मां ने कहा है किसी की मदद के बदले पैसा नहीं लेना चाहिए।

लड़के ने उसे धन्यवाद कहा और उसे दृढ़ विश्वास हो गया कि संसार में अभी मानवता बची है। बड़ी होने पर उस लड़की को ऐसी गंभीर बीमारी हो गई जिसका इलाज लोकल अस्पताल में नहीं था। इलाज के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर को बुलाना पड़ा। डॉक्टर को मरीज का विवरण मिला तो उसमें लड़की के निवास का पता भी था। उसे पढ़कर डॉक्टर को कुछ याद आ गया। वह तुरंत लड़की के इलाज के लिए पहुंच गया। उसने देखा कि सचमुच यह वही लड़की थी जिसने उसे कभी गिलास भर दूध पिलाया था।

उसने मन लगाकर लड़की का इलाज शुरू कर दिया। बढ़िया इलाज और देखभाल से वह शीघ्र स्वस्थ हो गई। इलाज का बिल काफी ज्यादा था, लेकिन डॉक्टर ने उसके नीचे कृतज्ञता सहित लिखा- इस बिल का भुगतान काफी पहले एक गिलास दूध से किया जा चुका है। नीचे उसके हस्ताक्षर थे। यह देखकर उस लड़की के मुंह से निकला- नेकी कभी बेकार नहीं जाती।

संकलन: बी.डी.शर्मा


जीवन में खुशी


एक बार एक लड़का किसी जंगल में लकड़ी लेने गया। घूमते-घूमते वह चिल्लाया तो उसे लगा कि वहां कहीं कोई दूसरा लड़का भी है और वह भी चिल्ला रहा है। उसने उससे कहा, 'इधर तो आओ।' उधर से भी आवाज आई-'इधर तो आओ।' लड़के ने फिर कहा,'कौन हो तुम?' आवाज ने कहा-'कौन हो तुम?' लड़के ने उसे डांटा,'तुम बड़े खराब हो, मुझे डरा रहे हो।' सामने से भी यही बात दोहराई गई। यह सुनकर लड़का घबरा गया और डरकर अपने घर लौट आया।

उसने अपनी मां को पूरी घटना सुनाई और बताया, 'मां, जंगल में वह लड़का हू-ब-हू मेरी नकल करता है। मेरी तरह चिल्लाता है। जो मैं कहता हूं, वही कहने लगता है। मैं अब जंगल में नहीं जाउंगा।' उसकी मां समझ गई कि माजरा क्या है? उसने बेटे से कहा,'आज तुम वहीं जाकर उससे नम्रतापूर्वक बोलो। तुम ऐसा करोगे तो वह भी तुम्हारे साथ नम्रतापूर्वक व्यवहार करेगा।'

मां के समझाने पर वह लड़का फिर उसी जंगल में गया। वहां जाकर उसने जोर से कहा,'तुम बहुत अच्छे लड़के हो।' उधर से भी आवाज आई-'तुम बहुत अच्छे लड़के हो।' फिर लड़के ने कहा,'मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं।' उधर से भी यही आवाज आई-'मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं।' यह सुनकर वह लड़का प्रसन्न हो गया। वह लड़का प्रतिध्वनि के संबंध में कुछ नहीं जानता था। शायद हम भी कम ही जानते हैं।

मनुष्य का जीवन भी एक प्रतिध्वनि की तरह है। आप चाहते हैं कि लोग आपसे प्रेम करें तो आप भी दूसरों से प्रेम करें। जिससे भी मिलें, मुस्कुराकर प्रेम से मिलें। प्रेमभरी मुस्कराहट का जवाब प्रेमभरी मुस्कराहट से ही मिलेगा। इस तरह जीवन में हर ओर खुशी ही नजर आएगी।


Tuesday, June 2, 2015

छोटी सी बात


वाशिंगटन में एक बड़ी इमारत थी जिसकी तीसवीं मंजिल पर हार्नवे नामक एक कंपनी का ऑफिस था। उसमें अनेक कर्मचारी काम करते थे। एक दिन इमारत की लिफ्ट खराब हो गई। उसे ठीक करने में काफी समय लगना था। हालांकि तीसवीं मंजिल पर सीढ़ियों से चढ़ना आसान नहीं था। बावजूद इसके हार्नवे के कर्मचारियों ने सीढ़ियों से दफ्तर पहुंचने का फैसला किया।

कर्मचारियों को यह सोच-सोच कर ही पसीना चढ़ा आ रहा था कि इतनी सीढ़ियां आखिर वे कैसे चढ़ेंगे? तभी एक कर्मचारी बोला, 'अगर हम सोचते-सोचते सीढ़ियां चढ़ेंगे तो थक जाएंगे। क्यों न हम मनोरंजक चुटकुले सुनाते और आपस में बातें करते हुए आगे बढ़ें।' इस पर सब सहमत हो गए। सभी एक से बढ़कर एक चुटकुले सुनाते हुए सीढ़ियां चढ़ने लगे।

इन कर्मचारियों के बीच में कंपनी का चपरासी भी था। वह भी कुछ बोलना चाहता था, लेकिन जैसे ही वह बोलने के लिए अपना मुंह खोलता, सब उसे चुप करा देते और कहते, 'तुम बाद में बोलना।' सत्ताइसवीं मंजिल की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते सभी कर्मचारियों के चुटकुलों का स्टॉक खत्म हो चुका था। ऐसे में, उनमें से एक सीनियर कर्मचारी ने चपरासी से कहा, 'चल भाई, अब तू भी सुना ही दे। बड़ी देर से तू कुछ सुनाना चाह रहा था।'


चपरासी बड़ी सहजता से बोला, 'साहब, मैं तो बस ये कहना चाहता था कि आप दफ्तर की चाबी लाना भूल गए हैं।' यह सुनकर सभी कर्मचारियों ने अपना सिर पकड़ लिया। यह देखकर एक कर्मचारी ने कहा, 'कभी किसी को कमतर नहीं आंकना चाहिए। हम सभी इसकी उपेक्षा कर रहे थे, पर यह तो एक जरूरी बात बताना चाह रहा था।' इसके बाद सभी ने तय किया कि वे कभी किसी को छोटा नहीं समझेंगे।


स्वर्ग की सृष्टि

किसी शहर में धार्मिक प्रवृत्ति का एक व्यक्ति रहता था। धर्म-कर्म में उसकी आस्था तो थी, लेकिन उसके भीतर अहंकार भी कम नहीं था। उसकी इच्छा थी कि इस जन्म में चाहे जो करना पड़े, लेकिन मरने के बाद उसे स्वर्ग अवश्य मिले। वह अपनी कमाई का अधिकतर भाग परोपकार में ही लगा देता था, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि ऐसा करने से स्वर्ग की प्राप्ति निश्चित है। लेकिन जैसे-जैसे उसकी परोपकार की भावना बढ़ रही थी, उसके अहंकार में भी वृद्धि हो रही थी।

एक बार एक प्रसिद्ब संत उसके घर के पास आकर रुके। वह फौरन उनकी सेवा में उपस्थित हो गया। उसने उनसे भी स्वर्ग जाने का उपाय पूछा, साथ ही स्वर्ग जाने के उद्देश्य से किए जाने वाले प्रयासों की चर्चा की। संत ने उस व्यक्ति को ध्यानपूर्वक ऊपर से नीचे तक देखा और उपेक्षा से कहा, 'तुम स्वर्ग जाओगे? तुम तो देखने से ही नीच लग रहे हो। मैं नहीं मानता कि तुम कोई परोपकारी या दानी व्यक्ति हो।' इतना सुनते ही वह व्यक्ति क्रोध से भर उठा और उसने संत को मारने के लिए डंडा उठा लिया।

तब संत ने मुस्कराते हुए कहा, 'तुम में तो तनिक भी धैर्य नहीं। इतनी अधीरता और अहंकार के होते हुए तुम स्वर्ग कैसे जा पाओगे?' व्यक्ति को संत की कही बातों का मर्म समझ में आया तो वह उनके चरणों में गिर पड़ा और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगा। संत ने समझाया, 'एक-एक कर सब अवगुणों से मुक्त हो जाओ। जिस दिन विकारों से मुक्त हो जाओगे उसी दिन यहीं पर स्वर्ग की सृष्टि हो जाएगी।'


Monday, June 1, 2015

नर हो, न निराश करो मन को


एक स्कूल में ऊंची कूद प्रतियोगिता के लिए बच्चों को तैयार किया जा रहा था। अध्यापिका पूरी निष्ठा के साथ तैयारियां करवाने में व्यस्त थी। वह उनके चुनाव को लेकर परेशान भी थी। बहुत दिनों तक जब बच्चों की क्षमता और प्रदर्शन में अपेक्षित वृद्धि नहीं दिखाई दी तो प्रधानाध्यापिका ने दूसरी खेल अध्यापिका को प्रशिक्षण का दायित्व सौंपा।

नई शिक्षिका ने सबसे पहले एक बाड़ बनवाई और बच्चों को उसके ऊपर से कूदने को कहा। जब सब उस पर से कूद गए तो उसने उस बाड़ को थोड़ा ऊंचा कर दिया। कुछ बच्चे उस बाड़ से टकराकर गिरकर चोट खा गए। तब बाड़ को और ऊंचा कर दिया गया। इतना कि सब बच्चे टकराकर गिर गए। अब चुनाव को लेकर असमंजस दूर हो गया। जो बच्चे गिरकर, चोट खाकर तुरंत दोबारा प्रयत्न करने के लिए तैयार हो जाते उन्हें सर्वसम्मति से चुन लिया जाता। इसके बाद अध्यापिका उन सबको अवसर देती रही, चाहे वे कूद जाएं या गिर जाएं। वह कुछ-कुछ दिनों में बाड़ ऊंची करती रही। साथ ही बच्चों को इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार करती रही कि किसी भी दिन बाड़ ऊंची हो जाएगी, इसलिए यदि ऊंचा न कूद पाए तो टकराकर गिरने के लिए तैयार रहो। जल्द ही बच्चों की क्षमता में भी अपेक्षित परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा।


ईश्वर भी उस दूसरी शिक्षिका की तरह है। यदि हम समाज में अपनी अलग पहचान बनाना या किसी बड़े उद्देश्य की पूर्ति हेतु निमित्त बनना चाहते हैं तो एक प्रतियोगी के रूप में हमारा चुनाव करने के लिए वो हमारे समक्ष बाधाएं उपस्थित करता है। चुपचाप देखता रहता है कि हम उन बाधाओं का सामना हंसते हुए करते हैं या नहीं। यदि हम उनसे लगी चोट की उपेक्षा करके अपना नैतिक संबल न खोकर उन्हें पार करने की अपनी इच्छाशक्ति बनाए रखते हैं तो वह हमें अधिक स्तरीय कार्य के लिए चुन लेता है। तब हमारे सामने अधिक बड़ी बाधा उपस्थित होती है। ताकि हम अपनी क्षमता का और अधिक विकास कर सकें इसलिए जीवन में आने वाली असफलताओं को व्यक्तित्व-विकास का साधन समझकर उनका स्वागत करना चाहिए।

प्रसिद्ध लेखक बर्नाड शॉ ने पूरे नौ वर्ष लगाकर पांच उपन्यास लिखे। उन्होंने उन्हें साठ अलग-अलग प्रकाशकों के पास भेजा। किंतु सब ने सखेद वापस कर दिए। शॉ इन अस्वीकृतियों से घबराए नहीं। बिना निराश हुए वह लेखन को निखारते गए। एक दिन वह विश्व प्रसिद्ध लेखक के रूप में जाने गए। हर नवागंतुक को अपने क्षेत्र में अपनी प्रतिभा सिद्ध करने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। नूतन प्रयोगों का स्वीकार्य किसी के लिए सहज नहीं होता। पर जो लोग स्वयं को तराशना नहीं छोड़ते वे अंततः सफल हो जाते हैं।