Tuesday, July 8, 2025

उड़ान अभी बाकी है

 छोटे से शहर सीतापुर में रहने वाली एक लड़की थीनेहा। नेहा एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी।उसके पिता सरकारी क्लर्क थे और माँ गृहिणी। बचपन से ही नेहा का सपना था पायलट बननेका। आसमान में उड़ते जहाज़ों को देखकर उसकी आँखें चमक उठती थीं। वह अक्सर अपनी माँ सेकहती

एक दिन मैं भी इन बादलों के ऊपर उड़ूंगीमाँ।


माँ मुस्कुरा देतींलेकिन भीतर से उन्हें डर था कि ये सपना उनकी हैसियत से बहुत ऊपर है।


संघर्ष की शुरुआत


नेहा पढ़ाई में बहुत तेज़ थी। बारहवीं में उसने विज्ञान वर्ग में टॉप कियालेकिन पायलट ट्रेनिंग केलिए लाखों रुपये की ज़रूरत थी। उसके पिता की सैलरी इतनी नहीं थी कि वह उसे फ्लाइंग स्कूलभेज सकें। कई रिश्तेदारों ने कहा,

लड़की हैशिक्षक बन जाए तो अच्छा रहेगा। उड़ने के ख्वाब मत दिखाओ।

पर नेहा का आत्मविश्वास अडिग था। उसने एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाना शुरू किया औरसाथ-साथ छात्रवृत्ति पाने की कोशिश करने लगी।


पहली कोशिश – असफलता


नेहा ने पायलट ट्रेनिंग के लिए कई जगह आवेदन दिएलेकिन सब जगह पैसे या सिफारिश कीज़रूरत थी। एक दिन जब उसका अंतिम इंटरव्यू भी रिजेक्ट हो गयातो वह टूट गई। घर लौटकरमाँ से लिपटकर रोने लगी

शायद मेरा सपना सिर्फ सपना ही रह जाएगा माँ।


माँ ने उसका सिर सहलाते हुए कहा

बेटाएक नाकामी का मतलब ये नहीं कि सब खत्म हो गया। याद रखोजिंदगी की असलीउड़ान अभी बाकी हैजिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।

 

नेहा के भीतर फिर से ऊर्जा भर गई। उसने खुद से वादा किया— अब हार नहीं मानूंगी।


नई दिशा – नई शुरुआत


नेहा ने अब एयर फोर्स की परीक्षा की तैयारी शुरू की। दिन-रात मेहनत कीअपना पूरा समय औरमन लगा दिया। उसने एक बार फिर किताबों से दोस्ती कर ली और खुद को साबित करने के लिएकमर कस ली।


फाइनल मौका – और सफलता


इस बार किस्मत ने साथ दिया। नेहा का चयन भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) में होगया। ट्रेनिंग शुरू हुई तो शुरुआती दिनों में शारीरिक चुनौतियों और कठोर अनुशासन ने उसे थकादिया। लेकिन हर बार जब वह हारने लगतीमाँ की वो बात याद आती

अभी तो उड़ान बाकी है...”

 

और वह फिर उठ खड़ी होती।

 

उड़ान का दिन

 

तीन साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद वह दिन आया जब नेहा पहली बार खुद विमान उड़ाने वालीथी। पूरी यूनिट तालियों से गूंज उठी जब एक सामान्य मध्यम वर्गीय घर की लड़की ने आसमानको छू लिया।

 

जब नेहा अपने वायुसेना की वर्दी में गाँव लौटीतो पूरा इलाका उसके स्वागत में उमड़ पड़ा। वहीरिश्तेदार जो कभी उड़ने के सपने पर हँसते थेअब अपनी बेटियों को नेहा जैसा बनने की सलाह देरहे थे।


अंतिम संदेश:


आज नेहा एक स्क्वाड्रन लीडर है। वह जब भी किसी छात्रा से मिलती हैएक ही बात कहती है:


अगर तुम सपने देख सकती होतो उन्हें पूरा भी कर सकती हो।

रास्ते मुश्किल होंगेलेकिन याद रखना

जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,

जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।

  

सीख:

 

यह कहानी हमें सिखाती है कि सपनों की उड़ान रुकावटों से नहींहिम्मत से तय होती है। अगर मनमें सच्चा इरादा हो और प्रयास ईमानदार होंतो मंज़िल कितनी भी ऊँची क्यों  होपाई जासकती है।

Friday, July 4, 2025

जो अपने हालात से हार मान ले, वो कभी खुद को जीतते हुए नहीं देख पाता

 उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव लालापुर में रहने वाला एक लड़का थाअमित। उसके पिता दर्जीका काम करते थे और माँ घर पर चूड़ियाँ बनाकर कुछ पैसा कमाती थीं। घर की आर्थिक स्थितिबहुत कमजोर थी। लेकिन अमित के भीतर कुछ अलग थाएक सपनाजो हर रोज़ उसकी आँखोंमें चमकता था। वह एक इंजीनियर बनना चाहता था।

गाँव में अच्छे स्कूल नहीं थेलेकिन अमित हर दिन 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाता। कईबार पुराने जूते फट जातेकभी बरसात में भीगकर किताबें खराब हो जातींलेकिन वो रुकता नहींथा। जब दूसरे बच्चे खेलतेवो पेड़ के नीचे बैठकर गणित के सवाल हल करता।


हालात की मार


दसवीं की परीक्षा में अमित ने पूरे जिले में टॉप किया। उसे शहर के एक अच्छे कॉलेज में दाखिलामिला। लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती थीपैसे। दाखिले की फीसकिताबेंहॉस्टलसब कुछमिलाकर इतनी रकम थीजो उसके परिवार के बस से बाहर थी।


पिता ने गाँव की एक छोटी ज़मीन बेच दी और माँ ने अपने गहने गिरवी रख दिए। अमित को शहरभेजा गया। लेकिन शहर की ज़िंदगी आसान नहीं थी। कमरे का किरायाखाना और पढ़ाई कादबाव... सब कुछ बहुत भारी लगने लगा।

 

धीरे-धीरे हालात बिगड़ते गए। कई बार खाना भी नसीब नहीं होता। रात को भूखा सोनादिन मेंथककर क्लास में बैठनाये अमित की रोज़मर्रा की कहानी बन गई थी। एक दिन वो पूरी तरह टूटगया और माँ को फोन करके कहा:


माँमुझसे नहीं हो पाएगा। शायद मैं हार गया।

 

माँ की आवाज़ धीमी लेकिन दृढ़ थी:

 

बेटायाद रखोजो अपने हालात से हार मान लेवो कभी खुद को जीतते हुए नहीं देख पाता।तुझमें हिम्मत हैतू करेगा।


नई ताकत


माँ की बात ने जैसे उसे फिर से ज़िंदा कर दिया। उसने अपने आँसू पोंछे और सोच लियाअबपीछे मुड़कर नहीं देखना। उसने समय का सही उपयोग करना शुरू किया। दिन में क्लासरात मेंकोचिंग सेंटर में साफ-सफाई की नौकरीऔर देर रात तक पढ़ाई।


धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। वह अपनी कक्षा में अव्वल आने लगा। प्रोफेसर भी उसकीलगन देखकर प्रभावित हुए और उसे गाइड करना शुरू किया।


सफलता की पहली सीढ़ी


चार साल बाद अमित ने इंजीनियरिंग की डिग्री शानदार अंकों से पास की। लेकिन कहानी यहींखत्म नहीं हुई। उसने देश की प्रतिष्ठित कंपनी के इंटरव्यू में भाग लिया। जब रिजल्ट आयातोअमित का चयन हो गयाएक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में।


पहली सैलरी आते ही उसने सबसे पहले माँ के गिरवी रखे गहने छुड़ाए और अपने पिता की सिलाईमशीन बदलवाकर नई दिलवाई।


गाँव में वापसी


कुछ सालों बाद अमित गाँव लौटालेकिन अब वह एक सफल इंजीनियर था। गाँव के बच्चों कोइकट्ठा किया और कहा:

 मैं तुम जैसा ही थाकमज़ोर हालातगरीबी और संघर्ष में पला-बढ़ा। लेकिन मैंने हार नहींमानी। अगर तुम हालात से हार मान लोगेतो खुद को जीतते हुए कभी नहीं देख पाओगे। इसलिएडटे रहोसीखते रहोचलते रहो।


अंतिम संदेश:

 

> “हालात चाहे जैसे भी होंअगर इंसान खुद को हारा नहीं मानतातो कोई ताकत उसे रोक नहींसकती।

जो अपने हालात से हार मान लेवो कभी खुद को जीतते हुए नहीं देख पाता।


सीख:

 

यह कहानी बताती है कि असली जीत वही है जो मुश्किलों के बावजूद मिलती है। अगर मन मेंविश्वास और मेहनत करने की आग होतो हालात चाहे जितने भी खराब क्यों  होंइंसान अपनीमंज़िल तक जरूर पहुँचता है।