Saturday, March 29, 2025

हौसले की उड़ान

 आयुष का सपना था कि वह एक IAS अफसर बने।

जब वह अपने दोस्तों और गाँव वालों से कहता कि वह देश की सबसे कठिन परीक्षा पास करेगा, लोग हँसते और कहते,

"अरे, तेरे जैसे गरीब लड़कों के लिए यह सपना नहीं, सिर्फ ख्वाब है।"

उसके पिता भी कहते,

"बेटा, पढ़ाई कर ली, अब कोई नौकरी देख। सपना देखने से पेट नहीं भरता।"

लेकिन आयुष जानता था कि अगर सपने पूरे करने हैं, तो सबसे पहले खुद पर विश्वास करना होगा।

संघर्ष की राह

12वीं के बाद आयुष ने गाँव छोड़कर शहर में दाखिला लिया।

कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ वह छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता, ताकि अपने खर्चे उठा सके।

कम पैसे, साधारण कपड़े, कभी-कभी भूखा सो जाना — ये सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुके थे।

लेकिन उसके इरादे अडिग थे।

वह रोज सुबह 5 बजे उठकर पढ़ाई करता और देर रात तक किताबों के साथ रहता।

IAS परीक्षा की तैयारी के लिए उसके पास न महंगी कोचिंग के पैसे थे, न किताबों का बड़ा स्टॉक।

उसने पुराने नोट्स, ऑनलाइन वीडियो और लाइब्रेरी की मदद से खुद तैयारी की।

उसने अपने कमरे की दीवार पर बड़ा सा लिख रखा था —

"अगर आप ठान लें, तो नामुमकिन भी मुमकिन बन जाता है।"

पहला प्रयास - असफलता

पहले प्रयास में आयुष प्रारंभिक परीक्षा भी पास नहीं कर पाया।

गाँव वाले ताने मारने लगे,

"कहा था न, यह तेरे बस की बात नहीं। अब समय बर्बाद मत कर।"

 

आयुष कुछ देर के लिए टूटा, लेकिन उसने हार नहीं मानी।

उसने अपनी असफलता से सीखा और फिर से तैयारी में जुट गया।

दूसरा प्रयास - और मुश्किलें

दूसरे प्रयास में वह मुख्य परीक्षा तक पहुँचा, लेकिन अंतिम सूची में उसका नाम नहीं आया।

इस बार परिवार का भी धैर्य जवाब देने लगा।

माँ ने कहा,

"बेटा, अब कोई छोटी-मोटी नौकरी देख ले। बहुत समय गंवा दिया।"

लेकिन आयुष के चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी।

उसने माँ से कहा,

"माँ, मैं जानता हूँ कि मेरी मेहनत का फल देर से मिलेगा, लेकिन जब मिलेगा, तो शानदार होगा।"

अंतिम प्रयास - जीत की कहानी

तीसरे प्रयास में आयुष ने खुद से वादा किया कि अबकी बार कोई कमी नहीं छोड़ेगा।

उसने दिन-रात एक कर दिए।

मोबाइल, टीवी, दोस्तों से मिलना — सबकुछ छोड़ दिया।

सिर्फ किताबें, नोट्स और अपने सपने के साथ जीने लगा।

वह खुद से रोज कहता,

"अगर मैं ठान लूँ, तो कोई ताकत मुझे रोक नहीं सकती।"

परीक्षा हुई। परिणाम का दिन आया।

इस बार पूरे गाँव में सन्नाटा था। सबको जानना था कि आयुष का क्या हुआ।

 

और जब रिजल्ट आया —

आयुष ने पूरे राज्य में टॉप किया था।


गाँव के वही लोग जो कभी हँसते थे, अब उसके घर मिठाई लेकर आ रहे थे।

उसके माता-पिता की आँखों में गर्व और आँसू थे।


मंज़िल से संदेश


आयुष ने अपनी सफलता के बाद कहा,

"कभी मत सोचो कि हालात तुम्हारी मंज़िल तय करेंगे। अगर आपके इरादे मजबूत हैं, तो नामुमकिन कुछ भी नहीं।

मैं एक साधारण किसान का बेटा हूँ, लेकिन आज मैंने साबित कर दिया कि सपनों को पाने के लिए हालात नहीं, हौसला चाहिए।"


कहानी से सीख


आयुष की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लोग ताने देंगे, हालात साथ नहीं देंगे।

लेकिन अगर आप ठान लें, तो दुनिया की कोई ताकत आपके सपने पूरे होने से रोक नहीं सकती।

सपनों को सच करने के लिए सबसे पहले खुद पर विश्वास करना पड़ता है।


कहानी का सारांश


"अगर मन में दृढ़ निश्चय हो, तो रास्ते खुद बनते हैं।

नामुमकिन शब्द सिर्फ उन लोगों के लिए होता है, जिन्होंने कभी कोशिश नहीं की।

जो ठान लेते हैं, उनके लिए दुनिया की हर दीवार रास्ता बन जाती है।"


अगर चाहें, तो मैं इस कहानी पर आधारित एक छोटा मोटिवेशनल मैसेज भी लिख दूँ, जिसे आप सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकें।

बोलिए, बना दूँ?

Friday, March 28, 2025

सपने बड़े देखो, मेहनत उससे भी बड़ी करो!

गांव राजपुर की संकरी गलियों में एक छोटा सा घर था, जिसमें अमन नाम का लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता बढ़ई थे और दिन-रात मेहनत करके घर चलाते थे। अमन पढ़ाई में बहुत होशियार था, लेकिन उसके पास अच्छे स्कूल में पढ़ने के लिए पैसे नहीं थे। फिर भी, उसकी आंखों में एक बड़ा सपना थाएक दिन बड़ा इंजीनियर बनने का।


सपना देखने की हिम्मत


अमन रोज़ स्कूल जाता, पुराने फटे किताबों से पढ़ता और जब बिजली नहीं होती, तो लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करता। उसके दोस्त जब नए कपड़े पहनकर स्कूल आते, तब उसे अपनी गरीबी का एहसास होता, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।

एक दिन स्कूल में एक वैज्ञानिक आए और उन्होंने बच्चों को बताया, "अगर तुम बड़े सपने देख सकते हो, तो उन्हें पूरा करने की ताकत भी तुम्हारे अंदर ही होती है। बस मेहनत करने से मत घबराना!" अमन के दिल में यह बात गहरे उतर गई। उसने तय कर लिया कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, वह अपने सपने को जरूर पूरा करेगा।


मेहनत की राह पर चलना आसान नहीं


अमन के घर की हालत खराब थी। उसके पिता की कमाई इतनी नहीं थी कि वह उसे ट्यूशन पढ़ा सकें, लेकिन अमन ने हार नहीं मानी। वह स्कूल से आने के बाद खेतों में मजदूरी करता, लकड़ियां काटता, और रात को पढ़ाई करता।


गांव के लोग उसका मजाक उड़ाते, "अरे, बढ़ई का बेटा इंजीनियर बनेगा? यह तो मजाक है!" लेकिन अमन के हौसले बुलंद थे। उसने नकारात्मक बातों को नजरअंदाज किया और पढ़ाई में और मेहनत करने लगा।


पहली सफलता


दसवीं की परीक्षा में अमन ने पूरे जिले में पहला स्थान प्राप्त किया। यह उसकी मेहनत का पहला बड़ा इनाम था। उसे सरकारी छात्रवृत्ति मिली और अब वह शहर के एक अच्छे कॉलेज में पढ़ सकता था। लेकिन संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ था।


कॉलेज में अमन को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। शहर के बच्चे अंग्रेजी में बातें करते थे, अच्छे कपड़े पहनते थे, और महंगे किताबों से पढ़ते थे। अमन को शुरुआत में बहुत कठिनाई हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह लाइब्रेरी में ज्यादा समय बिताने लगा, पुराने नोट्स से पढ़ने लगा और रात-रात भर मेहनत करने लगा।


धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। परीक्षा में उसने शानदार प्रदर्शन किया और कॉलेज के टॉप स्टूडेंट्स में शामिल हो गया।


सपना पूरा होने की ओर


कॉलेज के आखिरी साल में अमन को एक बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने का मौका मिला। लेकिन यहां भी चुनौती कम नहीं थी। इंटरव्यू अंग्रेजी में था, और अमन की अंग्रेजी इतनी अच्छी नहीं थी।


लेकिन उसने पहले ही तय कर लिया था कि वह मेहनत से हर चुनौती को पार करेगा। उसने रात-रात भर मेहनत की, अंग्रेजी सुधारने के लिए अखबार पढ़ा, और खुद से प्रैक्टिस करता रहा।

इंटरव्यू के दिन, अमन ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखी। कंपनी के अधिकारी उसकी मेहनत और संघर्ष की कहानी से प्रभावित हुए।


और फिर... अमन का सिलेक्शन हो गया!


यह पल उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था। वह जो सपना बचपन में अपनी टूटी-फूटी किताबों के साथ देखा करता था, वह आज सच हो गया था।


संघर्ष से सफलता तक


आज अमन एक सफल इंजीनियर है। उसने न सिर्फ अपने परिवार की गरीबी दूर की, बल्कि गांव के बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी भी बनवाई, ताकि कोई भी बच्चा केवल पैसों की वजह से अपने सपनों से दूर न हो।


वह जब भी गांव आता, तो बच्चों को यही सीख देता

"सपने बड़े देखो, मेहनत उससे भी बड़ी करो! सफलता तुम्हारे कदम जरूर चूमेगी!"

Thursday, March 27, 2025

सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!

छोटे से गांव सूरजपुर में रहने वाला मनोज एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। उसके पिता एक दर्जी थे, जो गांव में लोगों के कपड़े सिलकर घर चलाते थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन मनोज की आंखों में बड़े सपने थे। वह एक आईआईटी इंजीनियर बनना चाहता था, ताकि अपने परिवार को गरीबी से निकाल सके।


गांव के लोग कहते, "छोटे गांव का लड़का बड़े सपने देख रहा है? आईआईटी में जाना आसान नहीं है!" लेकिन मनोज की मां हमेशा कहतीं, "सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!"


पहली चुनौती


मनोज के पास महंगी कोचिंग या अच्छे स्कूल में पढ़ने का साधन नहीं था। वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था, जहां न तो अच्छे शिक्षक थे और न ही पढ़ाई के लिए सही माहौल।


लेकिन मनोज ने हार नहीं मानी। उसने खुद से पढ़ाई करने की ठानी। वह पुराने किताबों से पढ़ता, गांव के बड़े भाई-बहनों से गाइड मांगता और लाइब्रेरी में घंटों बैठकर पढ़ाई करता।


मेहनत का इम्तिहान


बारहवीं की परीक्षा में मनोज ने टॉप किया, लेकिन आईआईटी की तैयारी करना आसान नहीं था। उसके दोस्त महंगी कोचिंग कर रहे थे, लेकिन मनोज के पास पैसे नहीं थे।


इसलिए उसने ऑनलाइन फ्री कोर्सेस से पढ़ाई शुरू की। वह दिन में 10-12 घंटे पढ़ता और हर विषय को गहराई से समझने की कोशिश करता। जब कभी निराशा होती, तो उसे अपनी मां की बात याद आती

"सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!"


असफलता से सीख


पहले प्रयास में मनोज आईआईटी की परीक्षा पास नहीं कर सका। उसे बहुत दुख हुआ, लेकिन उसने हार मानने के बजाय अपनी गलतियों से सीख ली। उसने अपनी कमियों पर काम किया और दुगुनी मेहनत के साथ दोबारा परीक्षा की तैयारी करने लगा।

दूसरे प्रयास में उसने शानदार प्रदर्शन किया और आईआईटी दिल्ली में एडमिशन पा लिया!

सफलता की ओर कदम

जब मनोज के सिलेक्शन की खबर गांव में फैली, तो लोग हैरान रह गए। वही लोग जो उसे ताने मारते थे, अब उसकी तारीफ कर रहे थे।

आईआईटी में पढ़ाई के दौरान भी उसने अपनी मेहनत जारी रखी। उसने अपनी ईमानदारी और मेहनत से कॉलेज में भी टॉप किया और एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी पाई।

सपना हुआ साकार

आज मनोज एक सफल सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसने अपने माता-पिता को गरीबी से बाहर निकाल दिया है। उसने गांव के गरीब बच्चों के लिए एक फ्री कोचिंग सेंटर भी खोला, ताकि कोई भी बच्चा सिर्फ पैसे की वजह से अपने सपने से दूर न रहे

जब लोग उससे उसकी सफलता का राज पूछते, तो वह मुस्कुराकर कहता

"सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!"

Sunday, March 23, 2025

हर चुनौती में एक नया अवसर छिपा होता है

 गाँव के छोटे से घर में रहने वाला अर्जुन बचपन से ही बड़ा सपना देखने वाला लड़का था। उसकेमाता-पिता किसान थेऔर वह खुद भी खेतों में काम करने में उनकी मदद करता था। लेकिनउसका मन हमेशा कुछ नया करने और आगे बढ़ने के लिए उत्सुक रहता था।

संघर्ष की शुरुआत

अर्जुन की पढ़ाई में गहरी रुचि थीलेकिन आर्थिक तंगी के कारण वह हमेशा किताबों की कमीमहसूस करता था। गाँव में अच्छी शिक्षा की सुविधा नहीं थीफिर भी वह जो भी किताबें मिलतींउन्हें पढ़कर ज्ञान अर्जित करता रहता था। स्कूल के बाद खेतों में काम करना उसकी दिनचर्या काहिस्सा थालेकिन पढ़ाई के प्रति उसका जुनून कभी कम नहीं हुआ।

एक दिनगाँव में एक नई प्रतियोगिता की घोषणा हुई। यह प्रतियोगिता जिले के सबसे होशियारछात्रों को शहर में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए थी। अर्जुन ने भी इसप्रतियोगिता में भाग लेने का निश्चय किया। लेकिन समस्या यह थी कि प्रतियोगिता की तैयारी केलिए उसके पास सही संसाधन नहीं थे।

चुनौती और अवसर

अर्जुन को पता था कि यह अवसर उसकी जिंदगी बदल सकता है। लेकिन बिना किसी गाइडेंसऔर सही किताबों के वह कैसे तैयारी करेयह उसकी सबसे बड़ी चुनौती थी। उसने हार नहीं मानीऔर अपने गाँव के शिक्षक से मदद मांगी। शिक्षक ने उसे कुछ किताबें दीं और उसकी पढ़ाई मेंमार्गदर्शन करने लगे।

इसके अलावाअर्जुन ने गाँव के पुस्तकालय में जाकर घंटों तक पढ़ाई की। उसे रात में लालटेनकी रोशनी में बैठकर पढ़ना पड़ता थालेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। दिन में खेतों में कामकरना और रात में पढ़ाई करना उसकी आदत बन गई।

पहली जीत

कड़ी मेहनत और लगन का परिणाम यह हुआ कि अर्जुन ने प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्तकिया। यह उसकी पहली जीत थीजिसने साबित कर दिया कि कठिनाइयों के पीछे अवसर छिपेहोते हैं। उसे शहर में पढ़ने का मौका मिलाऔर वह वहाँ जाकर एक नए जीवन की शुरुआत करनेके लिए तैयार था।

नई दुनियानई चुनौतियाँ

शहर में पढ़ाई आसान नहीं थी। यहाँ के छात्र पहले से ही उन्नत शिक्षा प्राप्त कर रहे थेजबकिअर्जुन को गाँव के साधारण स्कूल से ज्ञान मिला था। उसकी अंग्रेज़ी भी बहुत अच्छी नहीं थीजिससे उसे शुरुआत में दिक्कतें आईं। लेकिन उसने इसे भी एक अवसर के रूप में देखा। उसनेअंग्रेज़ी सुधारने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी शुरू कीऔर धीरे-धीरे वह भी अन्य छात्रों की तरहअच्छा प्रदर्शन करने लगा।

सफलता की ओर

अर्जुन की मेहनत रंग लाई। उसने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और आगे चलकरइंजीनियरिंग में प्रवेश लिया। उसकी यह सफलता सिर्फ उसके लिए नहींबल्कि पूरे गाँव के लिएप्रेरणा बन गई। अब गाँव के अन्य बच्चे भी उच्च शिक्षा का सपना देखने लगे।

सीख और प्रेरणा

अर्जुन की कहानी हमें यह सिखाती है कि हर चुनौती अपने भीतर एक अवसर छिपाए होती है। बसहमें उसे पहचानने और उस पर काम करने की जरूरत होती है। यदि अर्जुन आर्थिक तंगी औरसंसाधनों की कमी के कारण हार मान लेतातो शायद वह कभी आगे नहीं बढ़ पाता। लेकिन उसनेअपनी मुश्किलों को अपनी ताकत बनाया और एक नया रास्ता तैयार किया।

निष्कर्ष

जीवन में जब भी कठिनाइयाँ आएँउन्हें अवसर के रूप में देखें। हर मुश्किल हमें कुछ नया सिखानेऔर आगे बढ़ने का एक नया रास्ता दिखाने आती है। अर्जुन की तरहयदि हम भी चुनौतियों काडटकर सामना करें और अपने सपनों के लिए मेहनत करेंतो सफलता अवश्य मिलेगी।

Monday, March 17, 2025

जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से राज्य में वीर प्रताप नाम का एक योद्धा रहता था। प्रताप अपनी बहादुरी, साहस, और निडरता के लिए प्रसिद्ध था। उसने कई युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और राज्य की रक्षा की थी। उसके मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं था, क्योंकि वह मानता था कि "भय से बचने का एकमात्र उपाय उसका सामना करना है।"

प्रताप का जीवन बहुत ही सरल और अनुशासनप्रिय था, लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे उसकी निडरता को चुनौती मिली। राज्य के पड़ोसी राजा ने अचानक हमला करने की योजना बनाई। वह राजा चालाक और शक्तिशाली था, और उसके सैनिकों की संख्या भी प्रताप के राज्य से कहीं अधिक थी। जब यह समाचार राज्य के लोगों तक पहुंचा, तो हर कोई भयभीत हो गया।

प्रताप के पास भी यह समाचार पहुंचा, और उसे यह एहसास हुआ कि इस बार शत्रु बहुत ताकतवर है। राज्य के मंत्री और अधिकारी भी चिंता में डूबे हुए थे। वे प्रताप के पास गए और उसे सलाह दी कि "इस बार शत्रु बहुत बड़ा है, और हमें उनके खिलाफ लड़ने की बजाय उनके साथ संधि करनी चाहिए।"

प्रताप ने गंभीरता से उनकी बात सुनी, लेकिन उसके मन में शांति नहीं थी। वह जानता था कि संधि करने का मतलब शत्रु के सामने आत्मसमर्पण करना होगा, और ऐसा करना उसकी निडरता और उस राज्य के गौरव के खिलाफ था, जिसकी रक्षा करने का उसने प्रण लिया था।

प्रताप ने अकेले में जाकर गहराई से विचार किया। उसने सोचा, "यह भय केवल शत्रु की संख्या और ताकत का नहीं है, यह मेरे अंदर के भय का परिणाम है। अगर मैं इस भय को अभी समाप्त नहीं करता, तो यह हमेशा मुझे पीछे धकेलेगा।"

तभी उसे अपने गुरु की कही हुई बात याद आई, "जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो।" प्रताप ने निर्णय लिया कि वह इस भय का सामना करेगा, चाहे शत्रु कितना ही बड़ा और ताकतवर क्यों न हो।

अगली सुबह, प्रताप ने सभी मंत्रियों और अधिकारियों को बुलाया और घोषणा की, "हम शत्रु से नहीं डरेंगे। यदि हमने अभी उनके खिलाफ साहस के साथ कदम नहीं उठाया, तो हमेशा के लिए हमें डर के साये में जीना पड़ेगा। हमें अपने भय का सामना करना होगा और युद्ध में विजय प्राप्त करनी होगी।"

प्रताप ने अपने सैनिकों को एकजुट किया और उन्हें उत्साहित किया, "यह युद्ध सिर्फ शत्रु से नहीं, बल्कि हमारे अंदर के भय से भी है। हमें निडर होकर आगे बढ़ना है। यदि हम अभी डरे तो शत्रु को कभी नहीं हरा पाएंगे। याद रखो, डर को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है उसका सामना करना और उसे नष्ट कर देना।"

सैनिकों में नया जोश भर गया। वे प्रताप की बातों से प्रेरित हुए और युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हो गए। प्रताप ने युद्ध की रणनीति बनाई, और अपने छोटे से दल के साथ साहसिक कदम उठाए। शत्रु की सेना बड़ी थी, लेकिन प्रताप और उसके सैनिकों का आत्मविश्वास अडिग था।

युद्ध शुरू हुआ, और प्रताप ने अपनी कुशलता और वीरता का परिचय देते हुए शत्रु के सैनिकों पर आक्रमण किया। वह बिना किसी भय के युद्धभूमि में डटा रहा। उसकी साहसिक रणनीति और निडरता ने शत्रु की सेना को हिला कर रख दिया। धीरे-धीरे, शत्रु सेना कमजोर पड़ने लगी और अंततः पीछे हटने पर मजबूर हो गई।

प्रताप और उसकी सेना ने वह युद्ध जीत लिया, जो शुरुआत में असंभव लग रहा था। राज्य के लोग खुशी से झूम उठे, और प्रताप की वीरता की प्रशंसा हर तरफ होने लगी। राज्य में फिर से शांति स्थापित हो गई, और प्रताप की निडरता ने यह साबित कर दिया कि भय का सामना करने से ही उसे हराया जा सकता है।

युद्ध के बाद प्रताप ने अपनी सेना और प्रजा के सामने खड़े होकर कहा, "हमने शत्रु को हराया, लेकिन असली जीत हमारे भीतर के भय पर हुई है। जब हम डरते हैं, तो हमें कमजोर लगता है, परंतु अगर हम साहस के साथ उसका सामना करें, तो वह हमें कभी नहीं हरा सकता। जैसे ही भय निकट आए, उसका सामना करो, आक्रमण करके उसका नाश कर दो। यही जीवन का सबसे बड़ा सबक है।"

प्रताप की यह बात सुनकर सभी ने सहमति में सिर हिलाया और उसकी प्रशंसा की। उस दिन के बाद से राज्य के हर व्यक्ति ने यह सीख ली कि जीवन में चाहे कोई भी चुनौती क्यों न आए, उसे भय के साथ नहीं, बल्कि निडरता और साहस के साथ सामना करना चाहिए। भय का सामना करने से ही जीत सुनिश्चित होती है।

इस प्रकार, प्रताप की निडरता ने न केवल राज्य की रक्षा की, बल्कि सबको यह सिखाया कि "जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो" ही सच्चे वीर की पहचान है।