Thursday, September 26, 2024

दिव्य मंच की ओर

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक साधारण किसान, रामू, रहता था। रामू का जीवन कठिनाइयों से भरा था, लेकिन उसकी आत्मा में एक अद्भुत जिज्ञासा और एक गहरा विश्वास था। वह हमेशा सोचता था कि कैसे वह अपनी स्थिति से ऊपर उठ सकता है और समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है। वह जानता था कि वाणी की पवित्रता, मन की शुद्धता, इंद्रियों का संयम और दयालुता एक ऐसा गुण है, जो एक व्यक्ति को दिव्य मंच तक पहुँचा सकता है।

रामू के मन में हमेशा एक सपना था - वह गाँव के सबसे सम्मानित व्यक्तियों में से एक बनना चाहता था। लेकिन उसे यह भी पता था कि इसके लिए उसे अपने भीतर के गुणों को निखारना होगा। उसने एक ठान लिया कि वह अपने विचारों, शब्दों और कार्यों को पवित्र बनाएगा।

एक दिन, गाँव में एक बड़ा मेला लगा। गाँव के सभी लोग वहां इकट्ठा हुए थे, और विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा था। रामू ने देखा कि एक विद्वान, जो ज्ञान और विवेक के लिए प्रसिद्ध था, वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने रामू से कहा, "यदि तुम सचमुच दिव्य मंच तक पहुँचने की इच्छा रखते हो, तो तुम्हें अपने भीतर के गुणों को विकसित करना होगा।"

रामू ने विद्वान की बातों को ध्यान से सुना और विचार किया। वह सोचने लगा, "क्या मेरी वाणी पवित्र है? क्या मेरा मन शुद्ध है? क्या मैं दयालुता से भरा हुआ हूँ?" उसने महसूस किया कि उसके अंदर कुछ परिवर्तन की आवश्यकता है।

वापस घर लौटकर, रामू ने अपनी दिनचर्या में बदलाव करने का निश्चय किया। उसने सबसे पहले अपनी वाणी पर ध्यान दिया। वह हमेशा सकारात्मक और प्रेरणादायक बातें करने का प्रयास करता था। उसने अपने गाँव के लोगों के साथ संवाद करते समय धैर्य और समझदारी से बात करना शुरू किया।

इसके बाद, उसने अपने मन की शुद्धता पर ध्यान दिया। वह रोजाना ध्यान लगाने लगा, जिससे उसका मन शांत होने लगा और वह अपने विचारों पर नियंत्रण पाने लगा। रामू ने नकारात्मकता को अपने मन से निकाल फेंका और हर स्थिति में सकारात्मकता देखने की कोशिश की।

इंद्रियों का संयम भी रामू के लिए एक चुनौती थी। उसने तय किया कि वह उन चीजों से दूर रहेगा, जो उसकी प्रगति में रुकावट डाल सकती थीं। उसने उन मित्रों का साथ छोड़ दिया, जो उसे गलत रास्ते पर ले जाते थे। इसके बजाय, उसने उन लोगों के साथ समय बिताना शुरू किया, जो उसे प्रेरित करते थे और उसके लक्ष्यों के प्रति समर्पित थे।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि रामू ने दयालुता को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लिया। वह गाँव के सभी लोगों की मदद करता, चाहे वह किसी की खेती में सहायता करना हो या जरूरतमंदों को भोजन देना। रामू का दिल दया और सहानुभूति से भरा हुआ था।

समय बीतने के साथ, रामू की मेहनत और दृढ़ निश्चय ने उसे गाँव में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बना दिया। लोग उसकी सलाह लेने आने लगे। उसकी वाणी की पवित्रता और उसके कार्यों की दयालुता ने उसे एक अलग पहचान दिलाई।

एक दिन, गाँव में फिर से एक मेला लगा, और इस बार रामू को वहाँ मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया। मंच पर खड़े होकर, रामू ने कहा, "यह मेरी मेहनत और आपके विश्वास का परिणाम है। वाणी की पवित्रता, मन की शुद्धता, इंद्रियों का संयम, और एक दयालु हृदय ही वह गुण हैं जो हमें दिव्य मंच पर पहुँचाते हैं।"

रामू की बातें सुनकर गाँव के लोग मंत्रमुग्ध हो गए। उसने सबको यह सिखाया कि अगर हम अपने अंदर के गुणों को निखारें, तो हम न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा बन सकते हैं।

शिक्षा:

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि एक व्यक्ति की सफलता का आधार उसके भीतर के गुण होते हैं। वाणी की पवित्रता, मन की शुद्धता, इंद्रियों का संयम और दयालुता वे चार स्तंभ हैं जो हमें जीवन में ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं।

रामू की कहानी यह सिखाती है कि यदि हम अपने आप को सकारात्मक और दयालु बनाते हैं, तो हम न केवल अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी बदलाव ला सकते हैं। एक दयालु और पवित्र हृदय हमेशा दिव्य मंच तक पहुँचने की शक्ति रखता है।

Wednesday, September 25, 2024

आलसी का कोई वर्तमान और भविष्य नहीं होता

बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव मेंएक युवक रहता था जिसका नाम रमेश था। रमेश केमाता-पिता उसे बड़े ही प्यार से पालते थे और चाहते थे कि वह जीवन में कुछ बड़ा करे। परंतुरमेश को मेहनत करने में कोई रुचि नहीं थी। वह दिनभर अपने दोस्तों के साथ घूमताबिना किसीलक्ष्य के समय व्यर्थ करताऔर सोने-चुने काम करता। अगर उसे कभी कोई काम करने को कहा जातातो वह हमेशा किसी  किसी बहाने से उसे टाल देता।

गाँव के लोग रमेश के आलस्य के बारे में जानते थे और अक्सर उसके बारे में बातें करते। "रमेश के पास कोई दिशा नहीं है," लोग कहते, "आलसी व्यक्ति का  वर्तमान होता है  भविष्य।"

रमेश की माँ को उसकी चिंता सताती थी। वह अक्सर उसे समझाती, "बेटाजीवन में सफल होनाहै तो मेहनत करनी पड़ेगी। केवल सपने देखने से कुछ नहीं होताउनके लिए काम भी करना पड़ता है।"

परंतु रमेश हमेशा यह कहकर बात को टाल देता, "अरे माँअभी तो मैं युवा हूँबहुत समय है मेरेपास। जब सही समय आएगातब मैं सब कर लूंगा।"

एक दिन गाँव में एक प्रसिद्ध संत का आगमन हुआ। संत अपने ज्ञान और भविष्यवाणी के लिएदूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। गाँव के सभी लोग उनके पास अपनी समस्याओं का हल लेने जाते थे। रमेश की माँ भी उसे संत के पास ले गईं।

संत ने रमेश की ओर देखा और धीरे से मुस्कराते हुए कहा, "बेटातुम्हारे पास अभी भी समय हैलेकिन यह समय अनमोल है। यदि तुम इसे व्यर्थ करते रहोगे तो भविष्य में कुछ भी हासिल नहींकर पाओगे। जो व्यक्ति आलस्य करता हैउसका  वर्तमान में कोई महत्व होता है और  भविष्यमें। जीवन नदी की धारा की तरह हैइसे रोकने की कोशिश मत करो। अगर तुमने इस धारा को रोकातो समय निकल जाएगा और तुम पीछे रह जाओगे।"

रमेश ने संत की बातें सुनींलेकिन उसने इसे भी हल्के में लिया। "अरेसंत महोदयअभी तो बहुतसमय है मेरे पास। मैं जल्द ही कुछ बड़ा करूंगा।"

संत ने रमेश को गहरी नज़रों से देखा और कहा, "बेटाजो व्यक्ति आज आलस्य करता हैउसकाकल कभी नहीं आता। याद रखनाआलसी का कोई वर्तमान और भविष्य नहीं होता।यह कहकर संत ने रमेश को चेतावनी दी और आगे बढ़ गए।

कुछ साल बीत गए। रमेश ने अपनी आदतें नहीं बदलीं। वह वैसे ही आलसी बना रहा। उसकासमय व्यर्थ जाता रहाऔर उसके दोस्तजो कभी उसके साथ समय व्यर्थ करते थेअबअपने-अपने काम में जुट गए थे। गाँव के अन्य युवक मेहनत करने लगेकोई खेती में अच्छा करनेलगातो कोई व्यापार में। कुछ युवक शिक्षा प्राप्त कर शहर चले गए और अच्छे पदों पर कामकरने लगे। पर रमेश का जीवन वहीं का वहीं ठहर गया था।

धीरे-धीरे रमेश को यह महसूस होने लगा कि उसने अपने जीवन के कीमती वर्ष यूं ही गँवा दिए।अब जब वह कुछ करना चाहता थातो उसके पास  तो समय था और  ही साधन। उसकीआलसी प्रवृत्ति ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा था। वह गाँव के बाकी लोगों से पीछे छूट चुका था। उसे संत की कही बात याद आने लगी, "आलसी का  वर्तमान होता है  भविष्य।"

एक दिन रमेश अपने पुराने दोस्तों से मिलाजिन्होंने जीवन में सफलता प्राप्त कर ली थी। उन्होंनेरमेश से पूछा, "तुम अब क्या कर रहे हो?" रमेश के पास कोई उत्तर नहीं था। वह शर्मिंदा महसूसकरने लगालेकिन अब पछतावे के सिवाय कुछ बचा नहीं था। उसके मित्रों ने उसे मेहनत करने की सलाह दीपरंतु रमेश अब जीवन में अपने खोए हुए समय की भरपाई नहीं कर पा रहा था।

समय बीतता गयाऔर रमेश के पास कुछ भी नहीं बचा था -  कोई योजना कोई लक्ष्यऔर कोई अवसर। उसके माता-पिता भी वृद्ध हो गए थेऔर अब वे भी उसकी मदद नहीं कर सकतेथे। रमेश का जीवन बर्बाद हो चुका थाऔर वह इस सच्चाई का सामना करने के लिए मजबूर था कि आलस्य ने उसकी पूरी जिंदगी को नष्ट कर दिया।

एक दिन वह गाँव के किनारे बैठा हुआअपने बीते हुए जीवन पर विचार कर रहा था। उसने देखाकि गाँव के वही लोग जो कभी उसके साथ समय व्यर्थ करते थेअब अपने-अपने जीवन में सफलहो चुके हैं। कोई बड़ा व्यापारी बन चुका थातो कोई सरकारी अधिकारी। सबके पास कुछ  कुछ थासिवाय रमेश के।

रमेश के मन में संत की वह बात गूंजने लगी, "आलसी का कोई वर्तमान और भविष्य नहीं होता।अब उसे यह बात पूरी तरह समझ में  गई थीपर अब कुछ भी करने का समय उसके हाथ से निकल चुका था।

उसने एक गहरी सांस ली और सोचा, "काशमैंने समय रहते संत की बात मानी होती। काशमैंनेअपने आलस्य को त्यागकर मेहनत की होती। आज मेरे पास भी कुछ होताएक सम्मानित जीवनहोता।परंतु अब पछताने से कुछ नहीं हो सकता था।

रमेश का यह हाल देखकर गाँव के युवाओं ने उससे एक महत्वपूर्ण शिक्षा ली। उन्होंने रमेश कीकहानी से सीखा कि आलस्य व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर सकता है। गाँव के बुजुर्ग भी रमेश की कहानी सुनाकर युवाओं को प्रेरित करने लगे कि मेहनत और अनुशासन से ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

रमेश की कहानी एक सजीव उदाहरण बन गई कि "आलसी का  वर्तमान होता है और भविष्य।आलस्य एक ऐसा दोष है जो व्यक्ति को जीवन के हर मोड़ पर पीछे धकेल देता है।केवल परिश्रमअनुशासन और आत्मविश्वास से ही व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है।

अंततःरमेश की कहानी एक चेतावनी बन गई कि समय और अवसर कभी किसी का इंतजार नहींकरते। जो आज आलस्य करता हैवह कल पछताता है। इसलिएहर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि आज का परिश्रम ही आने वाले कल की नींव रखता है।