Thursday, March 27, 2025

सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!

छोटे से गांव सूरजपुर में रहने वाला मनोज एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। उसके पिता एक दर्जी थे, जो गांव में लोगों के कपड़े सिलकर घर चलाते थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन मनोज की आंखों में बड़े सपने थे। वह एक आईआईटी इंजीनियर बनना चाहता था, ताकि अपने परिवार को गरीबी से निकाल सके।


गांव के लोग कहते, "छोटे गांव का लड़का बड़े सपने देख रहा है? आईआईटी में जाना आसान नहीं है!" लेकिन मनोज की मां हमेशा कहतीं, "सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!"


पहली चुनौती


मनोज के पास महंगी कोचिंग या अच्छे स्कूल में पढ़ने का साधन नहीं था। वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था, जहां न तो अच्छे शिक्षक थे और न ही पढ़ाई के लिए सही माहौल।


लेकिन मनोज ने हार नहीं मानी। उसने खुद से पढ़ाई करने की ठानी। वह पुराने किताबों से पढ़ता, गांव के बड़े भाई-बहनों से गाइड मांगता और लाइब्रेरी में घंटों बैठकर पढ़ाई करता।


मेहनत का इम्तिहान


बारहवीं की परीक्षा में मनोज ने टॉप किया, लेकिन आईआईटी की तैयारी करना आसान नहीं था। उसके दोस्त महंगी कोचिंग कर रहे थे, लेकिन मनोज के पास पैसे नहीं थे।


इसलिए उसने ऑनलाइन फ्री कोर्सेस से पढ़ाई शुरू की। वह दिन में 10-12 घंटे पढ़ता और हर विषय को गहराई से समझने की कोशिश करता। जब कभी निराशा होती, तो उसे अपनी मां की बात याद आती

"सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!"


असफलता से सीख


पहले प्रयास में मनोज आईआईटी की परीक्षा पास नहीं कर सका। उसे बहुत दुख हुआ, लेकिन उसने हार मानने के बजाय अपनी गलतियों से सीख ली। उसने अपनी कमियों पर काम किया और दुगुनी मेहनत के साथ दोबारा परीक्षा की तैयारी करने लगा।

दूसरे प्रयास में उसने शानदार प्रदर्शन किया और आईआईटी दिल्ली में एडमिशन पा लिया!

सफलता की ओर कदम

जब मनोज के सिलेक्शन की खबर गांव में फैली, तो लोग हैरान रह गए। वही लोग जो उसे ताने मारते थे, अब उसकी तारीफ कर रहे थे।

आईआईटी में पढ़ाई के दौरान भी उसने अपनी मेहनत जारी रखी। उसने अपनी ईमानदारी और मेहनत से कॉलेज में भी टॉप किया और एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी पाई।

सपना हुआ साकार

आज मनोज एक सफल सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसने अपने माता-पिता को गरीबी से बाहर निकाल दिया है। उसने गांव के गरीब बच्चों के लिए एक फ्री कोचिंग सेंटर भी खोला, ताकि कोई भी बच्चा सिर्फ पैसे की वजह से अपने सपने से दूर न रहे

जब लोग उससे उसकी सफलता का राज पूछते, तो वह मुस्कुराकर कहता

"सफलता उन्हीं को मिलती है जो अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और मेहनती होते हैं!"

Sunday, March 23, 2025

हर चुनौती में एक नया अवसर छिपा होता है

 गाँव के छोटे से घर में रहने वाला अर्जुन बचपन से ही बड़ा सपना देखने वाला लड़का था। उसकेमाता-पिता किसान थेऔर वह खुद भी खेतों में काम करने में उनकी मदद करता था। लेकिनउसका मन हमेशा कुछ नया करने और आगे बढ़ने के लिए उत्सुक रहता था।

संघर्ष की शुरुआत

अर्जुन की पढ़ाई में गहरी रुचि थीलेकिन आर्थिक तंगी के कारण वह हमेशा किताबों की कमीमहसूस करता था। गाँव में अच्छी शिक्षा की सुविधा नहीं थीफिर भी वह जो भी किताबें मिलतींउन्हें पढ़कर ज्ञान अर्जित करता रहता था। स्कूल के बाद खेतों में काम करना उसकी दिनचर्या काहिस्सा थालेकिन पढ़ाई के प्रति उसका जुनून कभी कम नहीं हुआ।

एक दिनगाँव में एक नई प्रतियोगिता की घोषणा हुई। यह प्रतियोगिता जिले के सबसे होशियारछात्रों को शहर में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए थी। अर्जुन ने भी इसप्रतियोगिता में भाग लेने का निश्चय किया। लेकिन समस्या यह थी कि प्रतियोगिता की तैयारी केलिए उसके पास सही संसाधन नहीं थे।

चुनौती और अवसर

अर्जुन को पता था कि यह अवसर उसकी जिंदगी बदल सकता है। लेकिन बिना किसी गाइडेंसऔर सही किताबों के वह कैसे तैयारी करेयह उसकी सबसे बड़ी चुनौती थी। उसने हार नहीं मानीऔर अपने गाँव के शिक्षक से मदद मांगी। शिक्षक ने उसे कुछ किताबें दीं और उसकी पढ़ाई मेंमार्गदर्शन करने लगे।

इसके अलावाअर्जुन ने गाँव के पुस्तकालय में जाकर घंटों तक पढ़ाई की। उसे रात में लालटेनकी रोशनी में बैठकर पढ़ना पड़ता थालेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। दिन में खेतों में कामकरना और रात में पढ़ाई करना उसकी आदत बन गई।

पहली जीत

कड़ी मेहनत और लगन का परिणाम यह हुआ कि अर्जुन ने प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्तकिया। यह उसकी पहली जीत थीजिसने साबित कर दिया कि कठिनाइयों के पीछे अवसर छिपेहोते हैं। उसे शहर में पढ़ने का मौका मिलाऔर वह वहाँ जाकर एक नए जीवन की शुरुआत करनेके लिए तैयार था।

नई दुनियानई चुनौतियाँ

शहर में पढ़ाई आसान नहीं थी। यहाँ के छात्र पहले से ही उन्नत शिक्षा प्राप्त कर रहे थेजबकिअर्जुन को गाँव के साधारण स्कूल से ज्ञान मिला था। उसकी अंग्रेज़ी भी बहुत अच्छी नहीं थीजिससे उसे शुरुआत में दिक्कतें आईं। लेकिन उसने इसे भी एक अवसर के रूप में देखा। उसनेअंग्रेज़ी सुधारने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी शुरू कीऔर धीरे-धीरे वह भी अन्य छात्रों की तरहअच्छा प्रदर्शन करने लगा।

सफलता की ओर

अर्जुन की मेहनत रंग लाई। उसने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और आगे चलकरइंजीनियरिंग में प्रवेश लिया। उसकी यह सफलता सिर्फ उसके लिए नहींबल्कि पूरे गाँव के लिएप्रेरणा बन गई। अब गाँव के अन्य बच्चे भी उच्च शिक्षा का सपना देखने लगे।

सीख और प्रेरणा

अर्जुन की कहानी हमें यह सिखाती है कि हर चुनौती अपने भीतर एक अवसर छिपाए होती है। बसहमें उसे पहचानने और उस पर काम करने की जरूरत होती है। यदि अर्जुन आर्थिक तंगी औरसंसाधनों की कमी के कारण हार मान लेतातो शायद वह कभी आगे नहीं बढ़ पाता। लेकिन उसनेअपनी मुश्किलों को अपनी ताकत बनाया और एक नया रास्ता तैयार किया।

निष्कर्ष

जीवन में जब भी कठिनाइयाँ आएँउन्हें अवसर के रूप में देखें। हर मुश्किल हमें कुछ नया सिखानेऔर आगे बढ़ने का एक नया रास्ता दिखाने आती है। अर्जुन की तरहयदि हम भी चुनौतियों काडटकर सामना करें और अपने सपनों के लिए मेहनत करेंतो सफलता अवश्य मिलेगी।

Monday, March 17, 2025

जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से राज्य में वीर प्रताप नाम का एक योद्धा रहता था। प्रताप अपनी बहादुरी, साहस, और निडरता के लिए प्रसिद्ध था। उसने कई युद्धों में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और राज्य की रक्षा की थी। उसके मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं था, क्योंकि वह मानता था कि "भय से बचने का एकमात्र उपाय उसका सामना करना है।"

प्रताप का जीवन बहुत ही सरल और अनुशासनप्रिय था, लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे उसकी निडरता को चुनौती मिली। राज्य के पड़ोसी राजा ने अचानक हमला करने की योजना बनाई। वह राजा चालाक और शक्तिशाली था, और उसके सैनिकों की संख्या भी प्रताप के राज्य से कहीं अधिक थी। जब यह समाचार राज्य के लोगों तक पहुंचा, तो हर कोई भयभीत हो गया।

प्रताप के पास भी यह समाचार पहुंचा, और उसे यह एहसास हुआ कि इस बार शत्रु बहुत ताकतवर है। राज्य के मंत्री और अधिकारी भी चिंता में डूबे हुए थे। वे प्रताप के पास गए और उसे सलाह दी कि "इस बार शत्रु बहुत बड़ा है, और हमें उनके खिलाफ लड़ने की बजाय उनके साथ संधि करनी चाहिए।"

प्रताप ने गंभीरता से उनकी बात सुनी, लेकिन उसके मन में शांति नहीं थी। वह जानता था कि संधि करने का मतलब शत्रु के सामने आत्मसमर्पण करना होगा, और ऐसा करना उसकी निडरता और उस राज्य के गौरव के खिलाफ था, जिसकी रक्षा करने का उसने प्रण लिया था।

प्रताप ने अकेले में जाकर गहराई से विचार किया। उसने सोचा, "यह भय केवल शत्रु की संख्या और ताकत का नहीं है, यह मेरे अंदर के भय का परिणाम है। अगर मैं इस भय को अभी समाप्त नहीं करता, तो यह हमेशा मुझे पीछे धकेलेगा।"

तभी उसे अपने गुरु की कही हुई बात याद आई, "जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो।" प्रताप ने निर्णय लिया कि वह इस भय का सामना करेगा, चाहे शत्रु कितना ही बड़ा और ताकतवर क्यों न हो।

अगली सुबह, प्रताप ने सभी मंत्रियों और अधिकारियों को बुलाया और घोषणा की, "हम शत्रु से नहीं डरेंगे। यदि हमने अभी उनके खिलाफ साहस के साथ कदम नहीं उठाया, तो हमेशा के लिए हमें डर के साये में जीना पड़ेगा। हमें अपने भय का सामना करना होगा और युद्ध में विजय प्राप्त करनी होगी।"

प्रताप ने अपने सैनिकों को एकजुट किया और उन्हें उत्साहित किया, "यह युद्ध सिर्फ शत्रु से नहीं, बल्कि हमारे अंदर के भय से भी है। हमें निडर होकर आगे बढ़ना है। यदि हम अभी डरे तो शत्रु को कभी नहीं हरा पाएंगे। याद रखो, डर को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है उसका सामना करना और उसे नष्ट कर देना।"

सैनिकों में नया जोश भर गया। वे प्रताप की बातों से प्रेरित हुए और युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हो गए। प्रताप ने युद्ध की रणनीति बनाई, और अपने छोटे से दल के साथ साहसिक कदम उठाए। शत्रु की सेना बड़ी थी, लेकिन प्रताप और उसके सैनिकों का आत्मविश्वास अडिग था।

युद्ध शुरू हुआ, और प्रताप ने अपनी कुशलता और वीरता का परिचय देते हुए शत्रु के सैनिकों पर आक्रमण किया। वह बिना किसी भय के युद्धभूमि में डटा रहा। उसकी साहसिक रणनीति और निडरता ने शत्रु की सेना को हिला कर रख दिया। धीरे-धीरे, शत्रु सेना कमजोर पड़ने लगी और अंततः पीछे हटने पर मजबूर हो गई।

प्रताप और उसकी सेना ने वह युद्ध जीत लिया, जो शुरुआत में असंभव लग रहा था। राज्य के लोग खुशी से झूम उठे, और प्रताप की वीरता की प्रशंसा हर तरफ होने लगी। राज्य में फिर से शांति स्थापित हो गई, और प्रताप की निडरता ने यह साबित कर दिया कि भय का सामना करने से ही उसे हराया जा सकता है।

युद्ध के बाद प्रताप ने अपनी सेना और प्रजा के सामने खड़े होकर कहा, "हमने शत्रु को हराया, लेकिन असली जीत हमारे भीतर के भय पर हुई है। जब हम डरते हैं, तो हमें कमजोर लगता है, परंतु अगर हम साहस के साथ उसका सामना करें, तो वह हमें कभी नहीं हरा सकता। जैसे ही भय निकट आए, उसका सामना करो, आक्रमण करके उसका नाश कर दो। यही जीवन का सबसे बड़ा सबक है।"

प्रताप की यह बात सुनकर सभी ने सहमति में सिर हिलाया और उसकी प्रशंसा की। उस दिन के बाद से राज्य के हर व्यक्ति ने यह सीख ली कि जीवन में चाहे कोई भी चुनौती क्यों न आए, उसे भय के साथ नहीं, बल्कि निडरता और साहस के साथ सामना करना चाहिए। भय का सामना करने से ही जीत सुनिश्चित होती है।

इस प्रकार, प्रताप की निडरता ने न केवल राज्य की रक्षा की, बल्कि सबको यह सिखाया कि "जैसे ही भय निकट आए, आक्रमण करके उसका नाश कर दो" ही सच्चे वीर की पहचान है।

Sunday, March 16, 2025

संसार की सबसे बड़ी शक्ति नारी का यौवन और सुन्दरता है

कहानी की शुरुआत एक प्राचीन राज्य से होती है, जहां वीरता, ज्ञान और शक्ति के लिए राजा सूर्यसेन प्रसिद्ध थे। उनके शासनकाल में राज्य खूब फला-फूला, परंतु एक बात राजा के मन को सदा कचोटती थी – उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। राजा की एक ही पुत्री थी, राजकुमारी संजना, जो अपने सुंदर और यौवन से भरपूर व्यक्तित्व के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध थी। उसकी सुंदरता और आभा को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता, परंतु उसकी सबसे बड़ी पहचान उसकी बुद्धिमत्ता और निडरता थी।

राजा सूर्यसेन को इस बात का डर था कि एक दिन उनके बाद, राज्य पर कोई अन्य आक्रमण करेगा और राज्य की सुरक्षा कमजोर हो जाएगी। उन्हें विश्वास था कि केवल पुरुष ही राज्य की रक्षा और शासन कर सकता है, इसलिए उन्होंने संजना की ताकत और क्षमताओं पर कभी विशेष ध्यान नहीं दिया। उन्हें लगता था कि नारी केवल अपनी सुंदरता और यौवन के कारण सराही जाती है, और शासन का कार्य उनके बस का नहीं होता।

लेकिन संजना का विचार कुछ और था। उसने अपने पिता से यह सोच विरासत में नहीं ली थी। वह जानती थी कि नारी का यौवन और सुंदरता उसकी केवल बाहरी शक्ति नहीं है, बल्कि उसका आत्मबल, धैर्य और बुद्धिमत्ता उसकी असली ताकत है। उसने अपने पिता से कई बार आग्रह किया कि वह उसे राज्य के मामलों में शामिल होने का अवसर दें, लेकिन राजा ने उसे हमेशा यह कहकर मना कर दिया कि "राज्य चलाना पुरुषों का कार्य है, नारी का नहीं।"

समय बीतता गया, और एक दिन राजा सूर्यसेन अचानक बीमार पड़ गए। उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि उन्हें राजकाज से दूर रहना पड़ा। इसी दौरान, राज्य पर एक शक्तिशाली शत्रु ने हमला करने की योजना बनाई। चारों ओर अफरा-तफरी मच गई, और राज्य के मंत्री भी असमंजस में पड़ गए कि क्या करना चाहिए। जब यह समाचार संजना तक पहुंचा, तो उसने तुरंत एक निर्णय लिया। वह जानती थी कि यह समय उसके साहस और नेतृत्व का परिचय देने का है

संजना ने राज्य की सेना का नेतृत्व संभालने का निश्चय किया। उसने अपने यौवन और सुन्दरता को मात्र आकर्षण का साधन नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली अस्त्र के रूप में देखा। वह जानती थी कि उसकी सुन्दरता और शालीनता उसे राज्य के लोगों और सैनिकों के बीच विश्वास और आदर दिलाएगी। संजना ने अपनी चतुराई से सेना को प्रेरित किया, और अपनी कूटनीति का उपयोग करके शत्रु के खिलाफ एक सशक्त रणनीति तैयार की।

युद्ध का दिन आ गया। संजना ने शत्रु के खिलाफ अपनी योजना को अंजाम दिया और अपने नेतृत्व के बल पर सेना को जीत के पथ पर ले गई। उसकी उपस्थिति से ही सैनिकों में एक नया जोश और उत्साह भर गया। उसकी सुंदरता और यौवन से शत्रु पक्ष भी प्रभावित हुआ, लेकिन उसे समझ नहीं आया कि इस नारी के भीतर इतनी शक्ति और साहस कहाँ से आया।

युद्ध के बाद, संजना की बुद्धिमत्ता और निडरता ने शत्रु को पराजित कर दिया। राज्य की रक्षा हो गई, और चारों ओर संजना की प्रशंसा होने लगी। राज्य के लोग अब उसे केवल उसकी सुंदरता और यौवन के लिए नहीं, बल्कि उसकी नेतृत्व क्षमता और शक्ति के लिए आदर करने लगे। उन्होंने देखा कि नारी का यौवन और सुंदरता केवल बाहरी नहीं होती, बल्कि उसका असली सौंदर्य उसकी आंतरिक शक्ति, आत्मविश्वास और बुद्धिमानी में छिपा होता है।

राजा सूर्यसेन ने भी इस घटना के बाद अपनी सोच बदल ली। उन्होंने महसूस किया कि नारी की सबसे बड़ी शक्ति केवल उसकी सुंदरता नहीं, बल्कि उसकी बुद्धिमानी, धैर्य और आत्मबल है। उन्होंने संजना से माफी मांगी और उसे राज्य का अगला शासक घोषित किया।

राजकुमारी संजना ने यह साबित कर दिया कि नारी का यौवन और सुंदरता संसार की सबसे बड़ी शक्ति हो सकती है, लेकिन यह शक्ति केवल बाहरी नहीं होती, बल्कि उसके साहस, आत्मविश्वास और नेतृत्व में होती है। सुंदरता को केवल शारीरिक रूप में देखने वाले लोग उसकी असली ताकत को नहीं पहचान पाते। संजना ने यह दिखा दिया कि एक नारी न केवल सुंदर हो सकती है, बल्कि वह एक सशक्त शासक, योद्धा और नेता भी बन सकती है।

संजना की कहानी राज्य के हर कोने में फैल गई, और उसकी वीरता और सुन्दरता की मिसाल दी जाने लगी। लोगों ने यह सीख ली कि नारी का यौवन और सुंदरता केवल बाहरी नहीं, बल्कि उसकी आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास ही उसे सबसे बड़ी शक्ति बनाता है।

Tuesday, March 11, 2025

अगर सांप जहरीला न भी हो तो भी उसे जहरीला होने का ढोंग करना चाहिए

बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में "कुंडल" नाम का एक सांप रहता था। कुंडल बहुत शांत और सरल स्वभाव का था। हालांकि, वह सांपों की उस प्रजाति से था जो जहरीली नहीं होती थी। उसके पास किसी को काटने या नुकसान पहुंचाने की शक्ति नहीं थी, लेकिन फिर भी वह अपनी प्रकृति के कारण दूसरों से दूरी बनाए रखता था।

जंगल के अन्य जानवर कुंडल की इस कमजोरी को जानते थे, इसलिए वे उसे गंभीरता से नहीं लेते थे। हिरण, बंदर, खरगोश, और अन्य छोटे जानवर बिना किसी डर के उसके पास से गुजरते थे और कभी-कभी उसका मजाक भी उड़ाते थे। कुंडल को यह सब देखकर बहुत दुख होता था, परंतु उसके पास कोई उपाय नहीं था। वह सोचता था, "मुझे ऐसा ही क्यों बनाया गया? मेरे पास ज़हर क्यों नहीं है, जिससे मैं अपने आपको और अपने अस्तित्व को बचा सकूं?"

एक दिन जंगल में एक बूढ़े और अनुभवी साँप, "नागराज" का आगमन हुआ। नागराज अपनी बुद्धिमानी और अनुभव के लिए पूरे जंगल में प्रसिद्ध था। कुंडल ने नागराज से अपनी परेशानी साझा की और कहा, "नागराज, मैं एक ऐसा सांप हूँ जिसके पास ज़हर नहीं है। इस कारण जंगल के अन्य जानवर मुझे गंभीरता से नहीं लेते। वे मुझसे डरते नहीं, मेरा मजाक उड़ाते हैं और मेरी स्थिति को कमजोर समझते हैं। मुझे समझ नहीं आता कि मैं क्या करूं।"

नागराज ने कुंडल की बात ध्यान से सुनी और थोड़ी देर सोचा। फिर वह कुंडल की ओर मुस्कराते हुए बोले, "बेटा, यह सही है कि तुम जहरीले नहीं हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम कमजोर हो। याद रखो, दुनिया में डर का भी एक अलग महत्व है। अगर तुम्हारे पास ज़हर नहीं है, तो भी तुम्हें ज़हरीले होने का ढोंग करना चाहिए। यह तुम्हारे बचाव और सम्मान का सबसे अच्छा तरीका है।"

कुंडल ने थोड़ा हैरान होकर पूछा, "लेकिन अगर मैं जहरीला नहीं हूँ, तो लोग मुझसे डरेंगे कैसे?"

नागराज ने जवाब दिया, "डर का निर्माण करना एक कला है। जब तक दूसरों को यह नहीं पता कि तुम जहरीले नहीं हो, वे तुम्हें कमज़ोर समझेंगे। तुम अपनी हरकतों, अपनी चाल-ढाल और अपने आचरण से ऐसा दिखा सकते हो कि तुम किसी भी वक्त खतरनाक साबित हो सकते हो। अगर सांप जहरीला न भी हो, तो उसे ज़हरीला होने का ढोंग करना चाहिए, ताकि उसकी सुरक्षा बनी रहे और दूसरे उसे हल्के में न लें।"

कुंडल ने नागराज की इस बात को ध्यान में रखा और उसे अपनी रणनीति का हिस्सा बना लिया। अब कुंडल ने अपनी चाल-ढाल बदल दी। जब भी कोई जानवर उसके पास से गुजरता, वह अपने फन को ऊंचा कर लेता, आँखों में चमक लाता, और अपने शरीर को इस तरह घुमाता कि लगे जैसे वह किसी भी क्षण हमला कर सकता है। उसका यह नया व्यवहार देखकर जंगल के अन्य जानवर डरने लगे।

धीरे-धीरे, कुंडल के बारे में अफवाह फैल गई कि वह बेहद जहरीला है। अब कोई भी जानवर उसके पास जाने की हिम्मत नहीं करता था। पहले जो जानवर उसका मजाक उड़ाते थे, वे अब उससे दूरी बनाए रखते थे और उसकी ओर देखते ही रास्ता बदल लेते थे। कुंडल ने देखा कि उसके जीवन में कितना बदलाव आ गया है। अब उसे न तो कोई तंग करता और न ही कोई उसका मजाक उड़ाता था।

कुंडल के लिए यह नया अनुभव बहुत सुखद था। वह समझ गया कि डर का निर्माण करना भी एक ताकत है। भले ही वह वास्तव में जहरीला नहीं था, लेकिन उसने अपनी आक्रामकता और आत्मविश्वास के जरिए दूसरों को यह एहसास दिला दिया कि वह खतरनाक हो सकता है। उसकी इस चतुराई ने उसे सम्मान और सुरक्षा दिलाई।

कुछ समय बाद, नागराज फिर से उस जंगल में आया और कुंडल से मिला। नागराज ने देखा कि कुंडल अब आत्मविश्वास से भरपूर और खुशहाल है। नागराज ने पूछा, "तो कुंडल, अब बताओ, तुम्हें कैसा लग रहा है?"

कुंडल ने हंसते हुए कहा, "आपकी सलाह ने मेरी जिंदगी बदल दी, नागराज। मैंने सीखा कि डर का निर्माण करना भी एक प्रकार की शक्ति है। भले ही मैं जहरीला नहीं हूँ, पर अब कोई मुझे कमजोर नहीं समझता।"

नागराज ने गर्व से कुंडल की ओर देखा और कहा, "यही जीवन का सबसे बड़ा सबक है। हर परिस्थिति में हमें अपनी कमजोरी को ताकत में बदलने की कला आनी चाहिए। जो व्यक्ति अपनी सीमाओं को समझते हुए उन्हें पार करने का तरीका सीख लेता है, वह सच्चा विजेता बनता है।"

इस प्रकार, कुंडल ने यह सीखा कि अगर सांप जहरीला न भी हो, तो भी उसे ज़हरीला होने का ढोंग करना चाहिए, ताकि वह सम्मान और सुरक्षा प्राप्त कर सके

Monday, March 10, 2025

वक्त कम है, काम करें

रवि एक छोटे से शहर में रहने वाला महत्वाकांक्षी युवक था। वह हमेशा बड़े सपने देखता था लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए कदम उठाने में देर कर देता था। उसका हर काम "कल से शुरू करूंगा" के वादे पर टल जाता था। रवि के दोस्त और परिवार वाले उसे समझाते रहते थे कि समय बहुमूल्य है और इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, लेकिन रवि उनकी बातों को हल्के में लेता था।

एक दिन का बदलाव

एक दिन रवि के कॉलेज में एक सेमिनार हुआ। वहां एक प्रसिद्ध उद्योगपति, अजय मेहरा, ने भाषण दिया। उन्होंने कहा, "अगर आप समय की कद्र नहीं करेंगे, तो समय भी आपकी कद्र नहीं करेगा। आपकी जिंदगी का हर पल महत्वपूर्ण है, और जो भी आप करना चाहते हैं, उसे अभी शुरू करें।"

रवि को उनकी बात ने झकझोर दिया। उसने सोचा, "मैं भी कुछ बड़ा करना चाहता हूं, लेकिन मेरी आदतें मुझे पीछे खींच रही हैं। वक्त तेजी से गुजर रहा है, और मैं उसे बेकार कर रहा हूं।"

पहला कदम

उस दिन रवि ने तय किया कि अब वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए काम करना शुरू करेगा। उसने एक नोटबुक ली और उसमें अपने लक्ष्यों को लिखा। वह एक लेखक बनना चाहता था, लेकिन अब तक उसने न तो लिखना शुरू किया था और न ही किसी योजना पर काम किया था

रवि ने हर दिन का टाइम टेबल बनाया। उसने सुबह जल्दी उठने की आदत डाली और सबसे पहले अपने लेखन पर ध्यान दिया। शुरुआत में, उसे अपनी आदत बदलने में मुश्किल हुई, लेकिन उसने खुद को प्रेरित रखा

संघर्ष और मेहनत

रवि ने पाया कि अपने सपनों को पूरा करने का सफर आसान नहीं है। उसे अपने दोस्तों के साथ घूमने का समय कम करना पड़ा, देर रात तक जागकर काम करना पड़ा, और कई बार असफलताएं भी झेलनी पड़ीं। लेकिन वह हर बार खुद से कहता, "वक्त कम है, मुझे काम करना होगा। अगर आज मैंने मेहनत नहीं की, तो कल पछताने के अलावा मेरे पास कुछ नहीं रहेगा।"

पहला मुकाम


कई महीनों की मेहनत के बाद, रवि ने अपनी पहली किताब लिख ली। उसने उसे एक प्रकाशक को भेजा, लेकिन पहले प्रयास में उसकी किताब अस्वीकार कर दी गई। यह रवि के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपनी किताब पर और मेहनत की और उसे फिर से प्रकाशित करने की कोशिश की। इस बार उसकी किताब प्रकाशित हो गई और लोगों ने उसे काफी पसंद किया।


समय की ताकत


रवि की यह सफलता उसकी मेहनत और समय के सही उपयोग का नतीजा थी। उसने महसूस किया कि समय किसी का इंतजार नहीं करता। अगर उसने पहले कदम नहीं उठाया होता, तो शायद वह कभी सफल नहीं हो पाता।


संदेश


रवि की कहानी हमें यह सिखाती है कि वक्त बहुमूल्य है। हर गुजरता पल हमें यह याद दिलाता है कि हमारे पास सीमित समय है और हमें इसे बेकार नहीं गंवाना चाहिए। जो भी लक्ष्य हम अपने जीवन में हासिल करना चाहते हैं, उसके लिए हमें अभी काम शुरू करना चाहिए।

"वक्त कम है, काम करें, क्योंकि हर बीता हुआ पल कभी वापस नहीं आता।"रवि एक छोटे से शहर में रहने वाला महत्वाकांक्षी युवक था। वह हमेशा बड़े सपने देखता था लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए कदम उठाने में देर कर देता था। उसका हर काम "कल से शुरू करूंगा" के वादे पर टल जाता था। रवि के दोस्त और परिवार वाले उसे समझाते रहते थे कि समय बहुमूल्य है और इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, लेकिन रवि उनकी बातों को हल्के में लेता था।

एक दिन का बदलाव

एक दिन रवि के कॉलेज में एक सेमिनार हुआ। वहां एक प्रसिद्ध उद्योगपति, अजय मेहरा, ने भाषण दिया। उन्होंने कहा, "अगर आप समय की कद्र नहीं करेंगे, तो समय भी आपकी कद्र नहीं करेगा। आपकी जिंदगी का हर पल महत्वपूर्ण है, और जो भी आप करना चाहते हैं, उसे अभी शुरू करें।"

रवि को उनकी बात ने झकझोर दिया। उसने सोचा, "मैं भी कुछ बड़ा करना चाहता हूं, लेकिन मेरी आदतें मुझे पीछे खींच रही हैं। वक्त तेजी से गुजर रहा है, और मैं उसे बेकार कर रहा हूं।"


पहला कदम

उस दिन रवि ने तय किया कि अब वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए काम करना शुरू करेगा। उसने एक नोटबुक ली और उसमें अपने लक्ष्यों को लिखा। वह एक लेखक बनना चाहता था, लेकिन अब तक उसने न तो लिखना शुरू किया था और न ही किसी योजना पर काम किया था।

रवि ने हर दिन का टाइम टेबल बनाया। उसने सुबह जल्दी उठने की आदत डाली और सबसे पहले अपने लेखन पर ध्यान दिया। शुरुआत में, उसे अपनी आदत बदलने में मुश्किल हुई, लेकिन उसने खुद को प्रेरित रखा।


संघर्ष और मेहनत


रवि ने पाया कि अपने सपनों को पूरा करने का सफर आसान नहीं है। उसे अपने दोस्तों के साथ घूमने का समय कम करना पड़ा, देर रात तक जागकर काम करना पड़ा, और कई बार असफलताएं भी झेलनी पड़ीं। लेकिन वह हर बार खुद से कहता, "वक्त कम है, मुझे काम करना होगा। अगर आज मैंने मेहनत नहीं की, तो कल पछताने के अलावा मेरे पास कुछ नहीं रहेगा।"


पहला मुकाम


कई महीनों की मेहनत के बाद, रवि ने अपनी पहली किताब लिख ली। उसने उसे एक प्रकाशक को भेजा, लेकिन पहले प्रयास में उसकी किताब अस्वीकार कर दी गई। यह रवि के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपनी किताब पर और मेहनत की और उसे फिर से प्रकाशित करने की कोशिश की। इस बार उसकी किताब प्रकाशित हो गई और लोगों ने उसे काफी पसंद किया।


समय की ताकत


रवि की यह सफलता उसकी मेहनत और समय के सही उपयोग का नतीजा थी। उसने महसूस किया कि समय किसी का इंतजार नहीं करता। अगर उसने पहले कदम नहीं उठाया होता, तो शायद वह कभी सफल नहीं हो पाता।


संदेश

रवि की कहानी हमें यह सिखाती है कि वक्त बहुमूल्य है। हर गुजरता पल हमें यह याद दिलाता है कि हमारे पास सीमित समय है और हमें इसे बेकार नहीं गंवाना चाहिए। जो भी लक्ष्य हम अपने जीवन में हासिल करना चाहते हैं, उसके लिए हमें अभी काम शुरू करना चाहिए।

 

"वक्त कम है, काम करें, क्योंकि हर बीता हुआ पल कभी वापस नहीं आता।"