यह कहानी है एक आदिवासी गाँव की, जहाँ एक युवक नामकरण निवास करता था। गाँव के लोग आदिवासी संस्कृति, आदतों, और रिवाजों के पक्षपात में उलझे रहते थे। नामकरण ने खुद को उन बंधनों से मुक्त करने का निर्णय लिया और अकेले ही नई दिशा में कदम बढ़ने का फैसला किया।
नामकरण का आदिवासी समुदाय में से उठने का प्रयास उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। उन्हें आदिवासी संगठन के खिलाफ खड़ा होना पड़ा, जो उनकी पहुँच बड़ी स्थानीय समुदाय के लोगों तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा था। यह उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि लोग नामकरण को एक मात्र व्यक्ति के रूप में देखना चाहते थे जो अकेले कुछ करने की कोशिश कर रहा था।
नामकरण ने समुदाय के लोगों के मन में यह बात स्पष्ट करने का प्रयास किया कि आदिवासी समुदाय का विकास उनके आत्मनिर्भरता और शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सकता है। वे लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते रहे कि समुदाय की सशक्तिकरण के लिए आवश्यक है कि हम खुद अपने कदम बढ़ाने का प्रयास करें, बिना किसी की मदद के।
नामकरण ने खुद को शिक्षा में लगाया और वह स्वयं से पढ़ने का प्रयास करने लगे। उन्होंने स्थानीय ग्रंथों का अध्ययन किया और उनके संग्रह को बढ़ावा दिया। उन्होंने खुद को समुदाय में शिक्षक के रूप में प्रस्तुत किया और अपने साथी आदिवासीयों को बढ़ती शिक्षा की महत्वपूर्णता समझाई।
नामकरण का संघर्ष बड़े समय तक चलता रहा, लेकिन उनका संघर्ष उनकी महत्वपूर्णता को साबित करता गया। उन्होंने समुदाय के लोगों की सोच में बदलाव लाने का संकल्प किया और उन्हें सिखाया कि खुद के विकास के लिए हमें अपने संस्कृति और आदतों के साथ रहकर भी आगे बढ़ना होगा।
नामकरण की मेहनत, संघर्ष और संघर्ष के फलस्वरूप उन्होंने समुदाय के लोगों को एक नई दिशा में मोड़ दिया। उनकी मेहनत ने उन्हें न केवल शिक्षा के क्षेत्र में सफलता दिलाई, बल्कि उन्होंने उनकी मानसिकता को भी बदल दिया। आज वह समुदाय के एक मान्यवर नेता हैं जिन्होंने खुद को बुराईयों और समाज के परिस्थितियों के बीच से निकाल कर उन्हें एक नई दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि कभी-कभी हमें आदतों, समाज की सोच और परिस्थितियों के खिलाफ खड़ा होने का साहस दिखाना पड़ता है। दुनिया ज्ञान देती हैं, परंतु कबhi-कबhi हमें अपने मार्ग पर चलते रहने की बहुत बड़ी जरूरत होती है, चाहे हम अकेले ही क्यों ना हों।