Saturday, March 2, 2019

शब्दों का प्रयोग

18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को 
80 वर्ष जैसा कर दिया था... शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी !

उसकी आंखे मानो किसी खड्डे में धंस गई थी, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था !

श्याम वर्ण और अधिक काला हो गया था... युद्ध से पूर्व प्रतिशोध की ज्वाला ने जलाया था और, युद्ध के उपरांत पश्चाताप की आग तपा रही थी !

ना कुछ समझने की क्षमता बची थी ना सोचने की ।  कुरूक्षेत्र मेें चारों तरफ लाशों के ढेर थे ।  जिनके दाह संस्कार के लिए न लोग उपलब्ध थे न साधन । 

शहर में चारों तरफ विधवाओं का बाहुल्य था..  पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और, उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को ताक रही थी । 

तभी, * श्रीकृष्ण* कक्ष में दाखिल होते है !

द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है ... कृष्ण उसके सर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं !
थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं । 

*द्रोपती* : यह क्या हो गया *सखा* ??
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

*कृष्ण* : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !
हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है..
तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी ! 

तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ... सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए !
तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए ! 

*द्रोपती*: सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या, उन पर नमक छिड़कने के लिए ?

*कृष्ण* : नहीं द्रौपदी, मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं । 
हमारे कर्मों के परिणाम को हम, दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं.. तो, हमारे हाथ मे कुछ नहीं रहता ।

*द्रोपती* : तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदाई हूं कृष्ण ? 

*कृष्ण* : नहीं द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो...
लेकिन, तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी भी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

*द्रोपती* : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

*कृष्ण*:- 👉जब तुम्हारा स्वयंबर हुआ... 
तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती 
और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का 
एक अवसर देती तो, शायद परिणाम 
कुछ और होते ! 

👉इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया...
तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती 
तो भी, परिणाम कुछ और होते । 
             और 
उसके बाद तुमने अपने महल में  दुर्योधन को अपमानित किया... वह नहीं करती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता... तब भी शायद, परिस्थितियां कुछ और होती । 

हमारे *शब्द* भी हमारे *कर्म* होते हैं द्रोपदी...

और, हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत जरूरी होता है... अन्यथा, उसके *दुष्परिणाम* सिर्फ स्वयं को ही नहीं.... अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।

संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है... जिसका " जहर " उसके " दांतों " में नही,
*"शब्दों " में है...

इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करिये। 
ऐसे शब्द का प्रयोग करिये... जिससे, किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे।

Wednesday, February 20, 2019

नटखट श्री कृष्ण

माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।

उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।

बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे।

श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया।

बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:-

"देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना"

घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी"

बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

ख़ूब बंदरों को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया , त्यों ही घंटी बज उठी।

घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। 
ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई।
सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।

बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी , तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो , पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ...क्यों री घंटी...तू बजी क्यो...मैंने मना किया था न...?"

घंटी क्षमा माँगती हुई बोली - "प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया , मैं नहीं बजी...आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया , मैं नहीं बजी , किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था...मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु...मंदिर में जब पुजारी  भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं...इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी और बजी..."

Monday, February 18, 2019

बेटी

एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई~~!!
लड़का बड़े अच्छे घर से था!
तो पिता बहुत खुश हुए!
लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव~~!!
बड़ा अच्छा था!
तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया~~!!
एक दिन शादी से पहले!
लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया~~!!

पिता की तबीयत ठीक नहीं थी~~!!
फिर भी वह ना न कह सके!
लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया~~!!
फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई~~!!
शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था~~!!

लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली~~!!
चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चोक से गये!चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी~~!! 
और इलायची भी डली हुई थी!

वो सोच मे पड़ गये कि ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं~~!!

दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर!उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया~~!!

वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे मुझे क्या खाना है~~!!
क्या पीना है!मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है!
ये परफेक्टली आपको कैसे पता है!
.
तो बेटी कि सास ने धीरे से कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था~~!!

ओर उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं!
बोलेंगे कुछ नहीं प्लीज अगर हो सके!
तो आप उनका ध्यान रखियेगा!
.
पिता की आंखों मे वहीँ पानी आ गया था~~!!
लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया~~!!

जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो!
तो लडकी का पिता बोले-मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है~~!!
बल्कि वो तो मेरी बेटी!
के रुप में इस घर में ही रहती है!

और फिर पिता की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक कर रो पड़े

दुनिया में सब कहते हैं ना!
कि बेटी है
एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी!

मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ
कि बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जाती
बल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है

Tuesday, February 12, 2019

पत्नि हो तो ऐैसी

बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...इसलिए  बात-बात पर  अपनी माँ से झगड़ पड़ता था .... ये  वही माँ थी जो बेटे के  लिए पति से भी लड़ जाती थी।मगर अब फाइनेसिअली   इंडिपेंडेंट बेटा  पिता के कई बार समझाने पर भी  इग्नोर  कर देता और कहता, "यही तो उम्र है शौक की, खाने पहनने की, जब  आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा।"
बहू खुशबू  भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इसलिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी। बेटे की नौकरी  अच्छी थी तो  फ्रेंड सर्किल  उसी हिसाब से मॉडर्न थी । बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती .....वो कहता "कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो। क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।"
और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि  लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।"
आज अचानक पापा   आई. सी. यू. में एडमिट  हुए थे। हार्ट अटेक आया  था। डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, तीन लाख और जमा करने थे। डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था मगर अब ये तीन लाख भारी लग रहे थे। वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे..... उसने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ बहाना कर दिया। आँखों में आँसू थे और वह उदास था।.....तभी खुशबू  खाने का टिफिन लेकर आई और बोली, "अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। ऐसे उदास होने से क्या होगा? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा आप चिन्ता मत करो । कुछ खा लो  फिर पैसों का इंतजाम भी तो करना है आपको।.... मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये। ".......पति की आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे।
"कहा न आप चिन्ता मत कीजिये। जिन दोस्तों के साथ आप मॉडर्न पार्टियां करते हैं आप उनको फ़ोन  कीजिये , देखिए तो सही, कौन कौन मदद को आता हैं।"......पति खामोश और सूनी निगाहों से जमीन की तरफ़ देख रहा था। कि खुशबू का   का हाथ  उसकी पीठ  पर आ गया। और वह पीठ  को सहलाने लगी।
"सबने मना कर दिया। सबने कोई न कोई बहाना बना दिया खुशबू ।आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है जब तक जेब में पैसा है। किसी ने  भी  हाँ नहीं  कहा  जबकि उनकी पार्टियों पर मैंने लाखों उड़ा दिये।"
"इसी दिन के लिए बचाने को तो माँ-बाबा कहते थे। खैर, कोई बात नहीं, आप चिंता न करो, हो जाएगा सब ठीक। कितना जमा कराना है?"
"अभी तो तनख्वाह मिलने में भी समय है, आखिर चिन्ता कैसे न करूँ खुशबू ?"
"तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा है।"
"क्या मतलब?"
"तुम जो नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए मुझे पैसे देते थे वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं। माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं। मेरे पास दो लाख थे। बाकी मैंने अपने भैया से मंगवा लिए हैं। टिफिन में सिर्फ़ एक ही डिब्बे में खाना है बाकी में पैसे हैं।" खुशबू  ने थैला टिफिन सहित उसके हाथों में थमा दिया।

"खुशबू ! तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें मॉडर्न बनाना चाहता था, हवा में उड़ रहा था। मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े.... आज वही काम आए हैं। "

सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू थे  उसे आज  खुद के नहीं  बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था  और वो  बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपरवाले का शुक्रिया अदा कर रही थी।

Sunday, February 10, 2019

मायने

एक   जंगल में दोपहर के वक्त एक खोह के बाहर एक खरगोश जल्दी-जल्दी अपने computer
 से कुछ टाइप कर रहा था l
तभी वहां एक लोमड़ी आई उसने खरगोश से पूछा ...
लोमड़ी - तुम क्या कर रहे हो ?
खरगोश - मैं थीसिस लिख रहा हूँ !
लोमड़ी - अच्छा ! किस बारे में लिख रहे हो ?
खरगोश - विषय है -- खरगोश किस तरह लोमड़ी को मार के खा जाता है ?

लोमड़ी - क्या बकवास है !! कोई मूर्ख भी बता देगा कि खरगोश कभी लोमड़ी को मार कर खा नहीं सकता ...

खरगोश - आओ मैं तुम्हें प्रत्यक्ष दिखाता हूँ  ...

ये कह कर खरगोश लोमड़ी के साथ खोह में घुस जाता है और कुछ मिनट बाद लोमड़ी की हड्डियाँ लेकर वापस आता है....

और दोबारा से टाइपिंग में व्यस्त हो जाता है..
थोड़ी देर बाद वहां एक भेड़िया घूमता-घामता आता है वो खरगोश से पूछता है ...
भेड़िया- क्या कर रहे हो इतने ध्यान से ....

खरगोश - थीसिस लिख रहा हूँ
भेड़िया - हा हा ह l!  किस बारे में जरा बताओ तो ?

खरगोश - विषय है - एक खरगोश किस तरह एक भेड़िये को खा गया ...

भेड़िया - गुस्से में .. मूर्ख ये कभी हो नहीं सकता ...

खरगोश - अच्छा !! आओ सबूत देता हूँ ..
और कह कर भेड़िये को उस खोह में ले गया ...

 थोड़ी देर बाद खरगोश भेड़िये की हड्डी लेकर बाहर आ गया....

और फिर टाइपिंग ...

उसी वक्त एक भालू वहां से गुजरा उसने पूछा ये हड्डियाँ कैसी पड़ी हैं ...

खरगोश ने कहा एक खरगोश ने इन्हें मार दिया ....

भालू हंसा ... और बोला मजाक अच्छा करते हो .. अब बताओ ये क्या लिख रहे हो .... ?

खरगोश - थीसिस लिख रहा हूँ ...एक खरगोश ने एक भालू को मार के कैसे खा लिया .....

भालू -- क्या कह रहे हो ?? ये कभी नहीं हो सकता !

खरगोश - चलो दिखाता हूँ ...

और खरगोश भालू को खोह में ले गया .....

जहां एक शेर बैठा था ......

इसी लिए ये मायने नहीं रखता कि आपकी थीसिस कितनी बकवास है या बेबुनियाद है

मायने रखता है ...
आपका गाइड कितना ताकतवर है 

Sunday, January 20, 2019

तकलीफ का स्वाद

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।

उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।*

कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था।

वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था।

मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी।

वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा।

परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था।

ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।

नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया।

वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"

 बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी।

दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।

 कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा।

उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे।

कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया।

वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया।

नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ।

 बादशाह ने दार्शनिक से पूछा : "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था। अब देखो, कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"

दार्शनिक बोला : "खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।"

Wednesday, January 9, 2019

बुद्धिमान व्यक्ति

एक गाँव में एक बुद्धिमान व्यक्ति रहता था। उसके पास 19 ऊंट थे। एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को, उसका एक चौथाई मेरी बेटी को, और उसका पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?

19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार फिर??

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।

सबने पहले तो सोचा कि एक वो पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10 बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5 बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4 नौकर को दे दिए।

10+5+4=19 बच गया एक ऊँट जो बुद्धिमान व्यक्ति का था वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

सो हम सब के जीवन में 5 ज्ञानेंद्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 प्राण, और 4 अंतःकरण चतुष्टय( मन,बुद्धि, चित्त, अहंकार) कुल 19 ऊँट होते हैं। सारा जीवन मनुष्य इन्हीं के बँटवारे में उलझा रहता है और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन (आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता) नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।