Wednesday, April 12, 2017

गरीब बेसहारा

एक पाँच छ: साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर मंदिर के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था । कपड़े में मैल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे । बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था । जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा  "क्या मांगा भगवान से "उसने कहा : -"मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्ग, मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र, मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे".. "तुम स्कूल जाते हो"..? अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था । हां जाता हूं, उसने कहा । किस क्लास में पढ़ते हो ? अजनबी ने पूछा नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ । बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है । बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था । "तुम्हारा कोई रिश्तेदार" न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा । पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता, माँ झूठ नहीं बोलती, पर अंकल, मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है, जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है । जब कहता हूँ माँ तुम भी खाओ, तो कहती है मैने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है । बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ? "बिल्कुलु नहीं" "क्यों" पढ़ाई करने वाले, गरीबों से नफरत करते हैं अंकल, हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं । अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी । फिर उसने कहा "हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँ, कभी किसी ने नहीं पूछा - यहाँ सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता । "बच्चा जोर-जोर से रोने लगा" अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ? मेरे पास इसका कोई जवाब नही था... ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं । बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतीमों, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए .........................
मंदिर मे सीमेंट या अन्न की बोरी देने से पहले अपने आस - पास किसी गरीब को देख लेना शायद उसको आटे की बोरी की ज्यादा जरुरत हो ।
कुछ समय के लिए एक गरीब बेसहारा की आँख मे आँख डालकर देखे, आपको क्या महसूस होता है ।
 

Sunday, April 9, 2017

निस्वार्थ कर्म

एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला। ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी,ऐ लड़के इधर आ। लड़का दौड़कर आया। उसने पानी का गिलास भरकर सेठ की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा, कितने पैसे में? लड़के ने कहा - पच्चीस पैसे। सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में देगा क्या?
यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ आगे बढ़ गया। उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे, जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्कराय मौन रहा। जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा। महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के पीछे- पीछे गए। बोले : ऐ लड़के ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?
वह लड़का बोला, महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास तो लगी ही नहीं थी। वे तो केवल पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे। महात्मा ने पूछा - लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी। लड़के ने जवाब दिया - महाराज, जिसे वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट नहीं पूछता। वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है। फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं? पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास लगी ही नहीं है। वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन में कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते।
पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती, वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं। वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते.
अगर भगवान नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यो?? और अगर भगवान हे तो फिर फिक्र क्यों ??? " मंज़िलों से गुमराह भी ,कर देते हैं कुछ लोग ।। हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता.. अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया ... तो बेशक कहना... जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी और जो भी पाया वो रब की मेहेरबानी थी! खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच में ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वो देता नही.... जन्म अपने हाथ में नहीं ; मरना अपने हाथ में नहीं ;  पर जीवन को अपने तरीके से जीना अपने हाथ में होता है  मस्ती करो मुस्कुराते रहो ;  सबके दिलों में जगह बनाते रहो ।I जीवन का 'आरंभ' अपने रोने से होता हैं  और जीवन का 'अंत' दूसरों के रोने से, इस "आरंभ और अंत" के बीच का समय भरपूर हास्य भरा हो.  ..बस यही सच्चा जीवन है.. निस्वार्थ भाव से कर्म करो
              क्योंकि.....
           इस धरा का...
           इस धरा पर...
      सब धरा रह जायेगा।
  आपका हर पल खुशानुमा हो

Wednesday, April 5, 2017

पति ने कठोरता

पति के घर में प्रवेश करते ही पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा  पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता किया, वहाँ भी नहीं पहुँचे! मामला क्या है?” “वो-वो… मैं…” पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, “बोलते नही? कहां चले गये थे। ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये?” “वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।” पति थोड़ी हिम्मत करके बोला। “क्या कहा? तुम्हारी मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हे क्या तकलीफ है?” आग बबूला थी पत्नी! उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं। “इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता। तुम समझ क्यों नहीं रहीं।” पति ने दबीजुबान से कहा। “क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ!” पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था।
“अब ये हमारे पास ही रहेगी।” पति ने कठोरता अपनाई। “मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ। वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महारानीजी को भी यहाँ आते जरा भी लाज नहीं आई?”
कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी! झेंपते हुए पत्नी बोली: “मां, तुम?”“हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया। 

Sunday, April 2, 2017

कुबड़े से निजात

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।*

*वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।*

*एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"*

*दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..*

*वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"*

*वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की-"कितना अजीब व्यक्ति है,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"*

*एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली-"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"*

*और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..

Saturday, April 1, 2017

टेढ़ी पूड़ीयाँ

बहू ! आज  माताजी का पूजन करना है घर में ही पूड़ीयाँ , हलवा  और चने का प्रशाद बनेगा ।"
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"ओहो ! ये त्योहार भी आज ही आना था और ऊपर से ये पुराने रीतिरिवाज ढ़ोने वाली ये सास । इनके मुंह में तो जुबान  ही नहीं है जो कुछ  कह सकें माँ से ! "
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"अरे! यार कभी तो माँ की भी मान लिया करो  , हमेशा अपनी ही चलाती हो । इस बार तो अपनी मनमर्जी  को लगाम  दो! "
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"तुम्हें मालूम है न ....मुझसे ये सब  नहीं होने वाला है । रही बात बच्चियों में देवी माँ को देखने की तो मैं समझती हूँ कि अब जिस तरह से छोटी -छोटी देवियाँ राक्षसों द्वारा हलाल की जा  रहीं हैं , पूजा  से ज्यादा उन्हें बचाने की जरूरत है ।"
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"ये तुम  और तुम्हारी  समाज सेवा मैं  तो समझ सकता हूँ  मगर माँ  नहीं समझेगी और ज्यादा देर हुई तो  वो खुद   बैठ जाएंगी रसोई में और फिर जो होगा तुम जानती ही हो । "
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"कोई चिंता की  जरूरत नहीं है मुझे मालूम था कि आज  ये सब होने वाला है और मैं पहले ही इंतजाम करके आई थी रात को ही । पंडित जी सुबह नौ बजे आएंगे और साथ ही  बच्चियाँ भी आएंगी ।"
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लगभग एक घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी तो पंडित जी  के साथ दस बारह बच्चियाँ भी थी । पूजा स्थान पर पंडित जी को सामान देकर वह सास को भी बुला लाई । पूजा  अच्छी तरह से सम्पन्न हुई अब भोग लगाने की बारी थी । 
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"जाओ बहू  भोग का सामान ले आओ !"
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"लंच  बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की कई थैलियाँ बहू ने सामने रख दीं । "
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"अरे! ये क्या है ? कन्या पूजन करना है मुझे ! देवी को भोग लगाना है । प्रसाद क्या बनाया है वो लेकर आओ ।"
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"माँ ! देवी तो कोई प्रसाद नहीं खाती उन्हें जो भी भोग लगा दो वे ग्रहण कर लेती है । ये बच्चियाँ भी देवी का ही रूप हैं । मैंने इनके लिए पनीर, पुलाव  बनाया  है और रोटियाँ हैं मिठाई बाहर से मँगवा ली  है । इसी का भोग लगेगा आज !"
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"राम राम राम ! कैसी बात कर रही हो बहू ? क्या तुम पूजा को भी मज़ाक समझती हो ? देवी माँ नाराज  हो जाएंगी !"
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"माँ जी ! ये तो मैं नहीं जानती कि देवी माँ नाराज  होंगी या नहीं पर ये जरूर जानती हूँ कि ये बच्चियाँ जो मैंने पास की गरीब बस्ती से बुलाई  हैं आज जरूर खुश होंगी और दूसरों को खुशी देना ही पूजा है मेरे लिए । "
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सास हैरान और परेशान उस सामान को देख रही थी और साथ  ही बहू को । 
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"पंडित जी से देवी माँ को मिठाई और भोजन का भोग लगवाकर पूजा समाप्त करें ताकि बच्चियों को भोजन करवाया जा सके ।"
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बच्चियों को अच्छे और नए आसनों पर बैठाया गया । सब के सामने भोजन परोसा गया और प्रेम से बच्चियों को भोजन करवाया गया । 
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"आइये माँ  जी ! लीजिये कन्याओं को अपने हाथों से उपहार  दीजिये !"
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अनमने मन से सास आगे आई तो बहू ने पचास -पचास के नोट उनके हाथों  में थमा दिये । हर बच्ची को लंच  बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की थैली के साथ पचास रुपये दिये ।
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"बहू ! तू तो पैसे लुटा रही है बेकार में इन गरीबों पर और ये मनमानी ठीक नहीं    है ।" 
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"माँ जी ! ये जिंदा देवियाँ हैं , इनकी मदद ही हमारी पूजा है । जो प्रसाद गलियों में फेंक दिया जाय और अनादर हो, मैं पसंद नहीं करती , इसलिए मैंने जरूरत का सामान उन्हें दिया है जिस से सही में खुशी हासिल हो । वैसे भी पूजा के बदले हम चाहते भी क्या हैं खुशी ही न ! अब मेरी टेढ़ी-मेढ़ी पूड़ीयाँ ये खुशी कहाँ दे पाती !"
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"सही कह रही है बहू ! मैं ही न समझ सकी तेरी बात । तेरी पूजा  ही सफल है ।" और बहू को गले लगा लिया ।

Friday, March 24, 2017

कुत्ते की नींद

मैं दोपहर को बरामदे में बैठा था कि तभी एक अलसेशियन नस्ल का हष्ट पुष्ट लेकिन बेहद थका थका सा कुत्ता कम्पाउंड में दाखिल हुआ। उसके गले में पट्टा भी था। मैंने सोचा जरूर किसी अच्छे घर का पालतू कुत्ता है। मैंने उसे पुचकारा तो वह पास आ गया। मैंने उस पर प्यार से हाँथ फिराया तो वो पूँछ हिलाता वहीं बैठ गया। बाद में मैं जब उठकर अंदर गया तो वह कुत्ता भी मेरे पीछे पीछे हॉल में चला आया और खिड़की के पास अपने पैर फैलाकर बैठा और मेरे देखते देखते सो गया। मैंने भी हॉल का द्वार बंद किया और सोफे पर आ बैठा।
करीब एक घंटे सोने के बाद कुत्ता उठा और द्वार की तरफ गया तो उठकर मैंने द्वार खोल दिया। वो बाहर निकला और चला गया। मैंने सोचा जरूर अपने घर चला गया होगा। अगले दिन उसी समय वो फिर आ गया।
खिड़की के नीचे एक घंटा सोया और फिर चला गया। उसके बाद वो रोज आने लगा। आता, सोता और फिर चला जाता। कई दिन गुजर गए तो मेरे मन में उत्सुकता जागी कि आखिर किसका कुत्ता है ये ? एक रोज मैंने उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बाँध दी जिसमें लिख दिया--- आपका कुत्ता रोज मेरे घर आकर सोता है। ये आपको मालूम है क्या ? " अगले दिन रोज के समय पर कुत्ता आया तो मैंने देखा कि उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बँधी है। उसे निकालकर मैंने पढ़ा। उसमे लिखा था---" वो एक अच्छे घर का कुत्ता है, मेरे साथ ही रहता है लेकिन मेरी बीवी की दिनरात की किटकिट, पिटपिट, चिकचिक, बड़बड़ के कारण वो, थोड़ी बहुत तो नींद हो जाए,  ये सोचकर रोज हमारे घर से कहीं चला जाता है। कल से मैं भी उसके साथ आ सकता हूँ क्या ...??
कृपया पट्टे में चिठ्ठी बाँधकर आपकी सहमति की सूचना देने का कष्ट करें !! "

Monday, March 13, 2017

अच्छी सोच

दो भाई थे आपस में बहुत प्यार था। खेत अलग अलग थे आजु बाजू। बड़ा भाई शादीशुदा था ।
छोटा अकेला । एक बार खेती बहुत अच्छी हुई अनाज बहुत हुआ । खेत में काम करते करते बड़े भाई ने बगल के खेत में छोटे भाई को खेत देखने का कहकर खाना खाने चला गया। उसके जाते ही छोटा भाई सोचने लगा...... खेती तो अच्छी हुई इस बार अनाज भी बहुत हुआ। मैं तो अकेला हूँ, बड़े भाई की तो गृहस्थी है। मेरे लिए तो ये अनाज जरुरत से ज्यादा है । भैया के साथ तो भाभी बच्चे है । उन्हें जरुरत ज्यादा है। ऐसा विचारकर वह 10 बोरे अनाज बड़े भाई के अनाज में डाल देता है। बड़ा भाई भोजन करके आता है । उसके आते ही छोटा भाई भोजन के लिए चला जाता है। भाई के जाते ही वह विचारता है । मेरा गृहस्थ जीवन तो अच्छे से चल रहा है... भाई को तो अभी गृहस्थी जमाना है... उसे अभी जिम्मेदारी सम्भालना है... मै इतने अनाज का क्या करूँगा... ऐसा विचार कर उसने 10 बोरे अनाज छोटे भाई के खेत में डाल दिया...। दोनों भाईयों के मन में हर्ष था... अनाज उतना का उतना ही था और हर्ष स्नेह वात्सल्य बढ़ा हुआ था...। सोच अच्छी रखो प्रेम बढेगा...
दुनिया बदल जायेंगी....
जैसी जिसकी भावना वैसा फल पावना :-)