वृंदावन मे बिहार से एक परिवार आकर रहने लगा..
परिवार मे केवल दो सदस्य थे-राजू और उसकी पत्नी।
राजू वृंदावन मे रिक्शा चलाकर अपना जीवन यापन करता था और रोज राधारमण जी की शयन आरती में जाता था...
पर जिंदगी की भागम भाग मे धीरे-धीरे उसे राधा रमण लाल जू के दर्शन का सौभाग्य ना मिलता।
हरि कृपा से उसके घर एक बेटी हुई लेकिन वो जन्म से ही नेत्रहीन थी.. उसने बड़ी कोशिश की.. पर हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी।
बेचारा गरीब करता भी क्या ? इसे ही किस्मत समझ कर खुश रहने की कोशिश करने लगा।
उसकी दिनचर्या बस इतनी थी। वृंदावन में भक्तों को इधर से उधर लेकर जाना।
लोगों से राधा रमण लाल जू के चमत्कार सुनता और सोचता मैं भी राधा रमण लाल जू से जाकर अपनी तकलीफ कह आता हूँ..
फिर ये सोचकर चुप हो जाता राधा रमण लाल जू के पास जाऊं और वो भी कुछ माँगने के लिए ही,नही ये ठीक नही है..
पर एक दिन पक्का मन करके राधा रमण लाल जू के मंदिर तक पहुँचा और देखा गोस्वामी जी बाहर आ रहे हैं।
उसने पुजारी से कहा, क्या मैं ठाकुर जी के दर्शन कर सकता हूँ ?
पुजारी जी बोले, मंदिर तो बंद हो गया है।तुम कल आना।
पुजारी जी बोले, क्या तुम मुझे घर तक छोड़ दोगे ?
राजू ने रोती आंखों को छुपाते हुए, हाँ में सिर को हिला दिया।
पुजारी जी रिक्शा पर बैठ गए और राजू से पूछा, ठाकुर जी से क्या कहना था ?
राजू ने कहा, ठाकुर जी से अपनी बेटी के लिए आंँखों की रोशनी माँगनी थी.. वो बचपन से देख नही सकती।
बातों बातों मे पुजारी जी का घर कब आ गया... पता ही ना चला पर..
घर आकर राजू ने जो देखा सुना वो हैरान कर देने वाला था..,!!
घर आकर राजू ने देखा उसकी बेटी दौड़ भाग कर रही है..
उसने अपनी बेटी को उठाकर पूछा ये कैसे हुआ..?
बेटी बोली पिताजी..! आज एक लड़का मेरे पास आया और बोला तुम राजू की बेटी हो...
मैंने जैसे ही हाँ कहा उसने अपने दोनों हाथ मेरी आँखों पर रख दिए.. फिर मुझे सब दिखने लगा.. पर वो लड़का मुझे कहीं नही दिखा।
राजू भागते-भागते पुजारी जी के घर पहुँचा..
पर पुजारी जी बोले.. मैं तो दो दिन से बीमार हूँ... मैं तो दो दिन से राधा रमण लाल जू के दर्शन को मंदिर ही नही गया..!!
जय जय श्री राधे