एक पंडितजी थे वो श्रीबांके बिहारी लाल को बहुत मानते थे सुबह-शाम बस
ठाकुरजी ठाकुरजी करके व्यतीत होता ...पारिवारिक समस्या के कारण उन्हें धन
की आवश्यकता हुई ...तो पंडित जी सेठ जी के पास धन मांगने गये ...सेठ जी धन
दे तो दिया पर उस धन को लौटाने की बारह किस्त बांध दी ...पंडितजी को कोई
एतराज ना हुआ ...उन्होंने स्वीकृति प्रदान कर दी ....अब धीरे-धीरे पंडितजी
ने ११ किस्त भर दीं एक किस्त ना भर सके ...इस पर सेठ जी १२ वीं किस्त के
समय निकल जाने पर पूरे धन का मुकद्दमा पंडितजी पर लगा दिया कोर्ट-कचहरी हो
गयी ...जज साहब बोले पंडितजी तुम्हारी तरफ से कौन गवाही देगा ....इस पर
पंडितजी बोले की मेरे ठाकुर बांकेबिहारी लाल जी गवाही देंगे ...पूरा कोर्ट
ठहाकों से भर गया ...अब गवाही की तारीख तय हो गयी ...पंडितजी ने अपनी अर्जी
ठाकुरजी के श्रीचरणों में लिखकर रख दी अब गवाही का दिन आया कोर्ट सजा हुआ
था वकील, जज अपनी दलीलें पेश कर रहे थे पंडित को ठाकुर पर भरोसा था ....जज
ने कहा पंडित अपने गवाह को बुलाओ पंडित ने ठाकुर जी के चरणों का ध्यान
लगाया तभी वहाँ एक वृद्व आया जिसके चेहरे पर मनोरम तेज था उसने आते ही
गवाही पंडितजी के पक्ष में दे दी ...वृद्व की दलीलें सेठ के वहीखाते से मेल
खाती थीं की फलां- फलां तारीख को किश्तें चुकाई गयीं अब पंडित को ससम्मान
रिहा कर दिया गया ...ततपश्चात जज साहब पंडित से बोले की ये वृद्व जन कौन थे
जो गवाही देकर चले गये ....तो पंडित बोला अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर
था .....जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया ...इतना
सुनना था की जज पंडित जी के चरणों में लेट गया .....और ठाकुर जी का पता
पूछा ...पंडित बोला मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है वो हर जगह है अब जज ने घरबार
काम धंधा सब छोङ ठाकुर को ढूंढने निकल पङा ...सालों बीत गये पर ठाकुर ना
मिला ...अब जज पागल सा मैला कुचैला हो गया वह भंडारों में जाता पत्तलों पर
से जुठन उठाता ...उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी मूर्ति को अर्पित करता आधा
खुद खाता ...इसे देख कर लोग उसके खिलाफ हो गये उसे मारते पीटते ....पर वो
ना सुधरा जूठन बटोर कर खाता और खिलाता रहा ...एक भंडारे में लोगों ने अपनी
पत्तलों में कुछ ना छोङा ताकी ये पागल ठाकुरजी को जूठन ना खिला सके पर उसने
फिर भी सभी पत्तलों को पोंछ-पाछकर एक निवाल इकट्ठा किया और अपने मुख में
डाल लिया ....पर अरे ये क्या वो ठाकुर को खिलाना तो भूल ही गया अब क्या करे
उसने वो निवाला अन्दर ना सटका की पहले मैं खा लूंगा तो ठाकुर का अपमान हो
जायेगा और थूका तो अन्न का अपमान होगा ....करे तो क्या करें निवाल मुँह में
लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगा रहा था की एक सुंदर ललाट चेहरा लिये
बाल-गोपाल स्वरूप में बच्चा पागल जज के पास आया और बोला क्यों जज साहब आज
मेरा भोजन कहाँ है जज साहब मन ही मन गोपाल छवि निहारते हुये अश्रू धारा के
साथ बोले ठाकुर बङी गलती हुई आज जो पहले तुझे भोजन ना करा सका ...पर अब
क्या करुं ...?
तो मन मोहन ठाकुर जी मुस्करा के बोले अरे जज तू तो निरा पागल हो गया है रे जब से अब तक मुझे दूसरों का जूठन खिलाता रहा ...आज अपना जूठन खिलाने में इतना संकोच चल निकाल निवाले को आज तेरी जूठन सही ...जज की आंखों से अविरल धारा निकल पङी जो रुकने का नाम ना ले रही और मेरा ठाकुर मेरा ठाकुर कहता-कहता बाल गोपाल के श्रीचरणों में गिर पङा और वहीं देह का त्याग कर दिया ....और मित्रों वो पागल जज कोई और नहीं वही (पागल बाबा) थे जिनका विशाल मंदिर आज वृन्दावन में स्थित है तो दोस्तो भाव के भूखें हैं प्रभू और भाव ही एक सार है ...और भावना से जो भजे तो भव से बेङा पार है ...तो बोलिए नन्द के आनंद की जय बोल वृन्दावन बिहारी लाल की जय ...बांके बिहारी लाल की जय
तो मन मोहन ठाकुर जी मुस्करा के बोले अरे जज तू तो निरा पागल हो गया है रे जब से अब तक मुझे दूसरों का जूठन खिलाता रहा ...आज अपना जूठन खिलाने में इतना संकोच चल निकाल निवाले को आज तेरी जूठन सही ...जज की आंखों से अविरल धारा निकल पङी जो रुकने का नाम ना ले रही और मेरा ठाकुर मेरा ठाकुर कहता-कहता बाल गोपाल के श्रीचरणों में गिर पङा और वहीं देह का त्याग कर दिया ....और मित्रों वो पागल जज कोई और नहीं वही (पागल बाबा) थे जिनका विशाल मंदिर आज वृन्दावन में स्थित है तो दोस्तो भाव के भूखें हैं प्रभू और भाव ही एक सार है ...और भावना से जो भजे तो भव से बेङा पार है ...तो बोलिए नन्द के आनंद की जय बोल वृन्दावन बिहारी लाल की जय ...बांके बिहारी लाल की जय
No comments:
Post a Comment