KUCH KHAS PAL
जीवन का बड़ा सबक
तर्कशास्त्री पं. रामनाथ एक छोटी-सी जगह में बने गुरुकुल में छात्रों को पढ़ाते थे। कृष्णनगर के राजा शिवचंद्र को यह पता लगा तो उन्हें बहुत दुख हुआ कि ऐसा महान विद्वान भी गरीबी में रह रहा है। एक दिन वह स्वयं पंडितजी से मिलने उनकी कुटिया में जा पहुंचे और बोले-'पंडित जी, मैं आपकी कुछ सहायता करना चाहता हूं।' पं. रामनाथ ने कहा-'राजन, भगवान की कृपा ने मेरे सारे अभाव मिटा दिए हैं। मुझे अब कोई आवश्यकता नहीं रही।' राजा बोले-'मैं घर खर्च के बारे में पूछ रहा हूं। हो सकता है उसमें कुछ परेशानी होती हो।' उन्हें जवाब मिला-'इस बारे में तो गृहस्वामिनी अधिक जानती हैं। आप उन्हीं से पूछ लें।'
यह सुनकर राजा गृहिणी के पास जा पहुंचे-'माता, आपके घर के खर्च के लिए कोई कमी तो नहीं?' गृहिणी का जवाब था- 'भला सर्व-समर्थ परमेश्वर के रहते उनके भक्तों को क्या कमी रह सकती है। पहनने को कपड़े हैं। सोने को बिछौना है। पानी रखने के लिए मिट्टी का घड़ा है। भोजन की खातिर विद्यार्थी सीधा ले आते हैं। बाहर खड़ी चौलाई का साग हो जाता है। इससे अधिक की जरूरत भी क्या है?' राजा श्रद्धावनत हो गए, फिर भी बोले-'हम चाहते हैं कि आपको कुछ गांवों की जागीर प्रदान करें। इससे आपको भी अभाव नहीं रहेगा और गुरुकुल भी ठीक से चलता रहेगा।'
राजा की यह बात सुनकर वृद्ध गृहिणी मुस्कराई-'देखिए राजन, इस संसार में परमात्मा ने हर मनुष्य को जीवन रूपी जागीर पहले से दे रखी है। जो इसे अच्छी तरह से संभालना सीख लेता है, उसे फिर किसी चीज का अभाव नहीं रह जाता।' यह सुनकर राजा शिवचंद्र का मस्तक झुक गया। आज उन्हें एक बड़ा सबक मिल गया था।
यह सुनकर राजा गृहिणी के पास जा पहुंचे-'माता, आपके घर के खर्च के लिए कोई कमी तो नहीं?' गृहिणी का जवाब था- 'भला सर्व-समर्थ परमेश्वर के रहते उनके भक्तों को क्या कमी रह सकती है। पहनने को कपड़े हैं। सोने को बिछौना है। पानी रखने के लिए मिट्टी का घड़ा है। भोजन की खातिर विद्यार्थी सीधा ले आते हैं। बाहर खड़ी चौलाई का साग हो जाता है। इससे अधिक की जरूरत भी क्या है?' राजा श्रद्धावनत हो गए, फिर भी बोले-'हम चाहते हैं कि आपको कुछ गांवों की जागीर प्रदान करें। इससे आपको भी अभाव नहीं रहेगा और गुरुकुल भी ठीक से चलता रहेगा।'
राजा की यह बात सुनकर वृद्ध गृहिणी मुस्कराई-'देखिए राजन, इस संसार में परमात्मा ने हर मनुष्य को जीवन रूपी जागीर पहले से दे रखी है। जो इसे अच्छी तरह से संभालना सीख लेता है, उसे फिर किसी चीज का अभाव नहीं रह जाता।' यह सुनकर राजा शिवचंद्र का मस्तक झुक गया। आज उन्हें एक बड़ा सबक मिल गया था।
नि:स्वार्थ भाव से मदद
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दो लड़के पढ़ते थे। एक समय उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने महान पियानो वादक इगनैसी पैडरेस्की को बुलाने की सोची। पैडरेस्की के मैनेजर ने 2000 डॉलर की गारंटी मांगी। उन्होंने गारंटी के लिए 1600 डॉलर जमा कर लिए और 400 डॉलर बाद में चुकाने का करारनामा दे दिया। लेकिन वे शेष राशि इकट्ठा नहीं कर पाए।
पैडरेस्की को यह पता चला तो उन्होंने करारनामा फाड़ा और 1600 डॉलर लौटाते हुए कहा-'मुझे पढ़ाई के प्रति लगनशील बच्चों से कुछ नहीं चाहिए। इसमें से अपने खर्चे के लायक डॉलर निकाल लो और बची रकम में से 10 प्रतिशत अपने मेहनताने के तौर पर रख लो। बाकी रकम मैं रख लूंगा।' दोनों लड़के पैडरेस्की की महानता के आगे नतमस्तक हो गए।
समय गुजरता गया। पहला विश्वयुद्ध हुआ और समाप्त हो गया। पैडरेस्की अब पोलैंड के प्रधानमंत्री थे और अपने देश के हजारों भूख से तड़पते लोगों के लिए भोजन जुटाने का संघर्ष कर रहे थे। उनकी मदद केवल यू.एस फूड एंड रिलीफ ब्यूरो का अधिकारी हर्बर्ट हूवर कर सकता था। हूवर ने बिना देर किए हजारों टन अनाज वहां भिजवा दिया। पैडरेस्की हर्बर्ट हूवर को धन्यवाद देने के लिए पेरिस पहुंचे।
उन्हें देखकर हूवर बोला,'सर, धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है। कॉलेज में आपने मेरी पढ़ाई जारी रखने में मदद की थी। यदि उस समय मेरी मदद न होती तो आज मैं इस पद पर नहीं होता।' यह सुनकर पैडरेस्की की आंखें नम हो गईं। उन्हें दो विद्यार्थियों की पुरानी बात याद आ गई और वह बोले,'किसी ने सच ही कहा है कि नि:स्वार्थ भाव से की गई मदद का मूल्य कई गुना होकर लौटता है।'
पैडरेस्की को यह पता चला तो उन्होंने करारनामा फाड़ा और 1600 डॉलर लौटाते हुए कहा-'मुझे पढ़ाई के प्रति लगनशील बच्चों से कुछ नहीं चाहिए। इसमें से अपने खर्चे के लायक डॉलर निकाल लो और बची रकम में से 10 प्रतिशत अपने मेहनताने के तौर पर रख लो। बाकी रकम मैं रख लूंगा।' दोनों लड़के पैडरेस्की की महानता के आगे नतमस्तक हो गए।
समय गुजरता गया। पहला विश्वयुद्ध हुआ और समाप्त हो गया। पैडरेस्की अब पोलैंड के प्रधानमंत्री थे और अपने देश के हजारों भूख से तड़पते लोगों के लिए भोजन जुटाने का संघर्ष कर रहे थे। उनकी मदद केवल यू.एस फूड एंड रिलीफ ब्यूरो का अधिकारी हर्बर्ट हूवर कर सकता था। हूवर ने बिना देर किए हजारों टन अनाज वहां भिजवा दिया। पैडरेस्की हर्बर्ट हूवर को धन्यवाद देने के लिए पेरिस पहुंचे।
उन्हें देखकर हूवर बोला,'सर, धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है। कॉलेज में आपने मेरी पढ़ाई जारी रखने में मदद की थी। यदि उस समय मेरी मदद न होती तो आज मैं इस पद पर नहीं होता।' यह सुनकर पैडरेस्की की आंखें नम हो गईं। उन्हें दो विद्यार्थियों की पुरानी बात याद आ गई और वह बोले,'किसी ने सच ही कहा है कि नि:स्वार्थ भाव से की गई मदद का मूल्य कई गुना होकर लौटता है।'
वास्तविक उपलब्धि
एक युवा ब्रह्मचारी ने दुनिया के कई देशों में जाकर अनेक कलाएं सीखीं। एक देश में उसने धनुष बाण बनाने और चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। कुछ दिनों के बाद वह दूसरे देश की यात्रा पर निकल गया। वहां जहाज बनाए जाते थे, इसलिए उसने जहाज बनाने की कला सीख ली। इसके बाद वह किसी तीसरे देश में पहुंच गया। वहां वह कई ऐसे लोगों के संपर्क में आया जो घर बनाने का काम करते थे। इस प्रकार वह सोलह देशों में गया और कई कलाएं सीख कर अपने घर लौट आया।
वापस आने के बाद वह अहंकार में भरकर लोगों से पूछता-'इस संपूर्ण पृथ्वी पर मुझ जैसा कोई गुणी व्यक्ति नजर आता है?' लोग हैरत से उसे देखते। धीरे-धीरे यह बात भगवान बुद्ध तक भी पहुंची। बुद्ध उसके बारे में सब जानते थे। वह उसकी प्रतिभा से भी परिचित थे। लेकिन वे इस बात से चिंतित हो गए कि कहीं उसका अभिमान उसका नाश ही न कर दे। एक दिन वे एक भिखारी का रूप धरकर, भिक्षा पात्र लिए उसके सामने चले गए। ब्रह्मचारी ने बड़े अभिमान से पूछा-'कौन हो तुम?' बुद्ध बोले-'मैं आत्मविजय का पथिक हूं।'
ब्रह्मचारी ने उनके कहे शब्दों का अर्थ जानना चाहा तो वे बोले-'एक मामूली हथियार निर्माता भी बाण बना लेता है, जहाज का चालक उस पर नियंत्रण रख लेता है, गृह निर्माता भी घर बना लेता है। केवल ज्ञान से कुछ नहीं होने वाला। मनुष्य की वास्तविक उपलब्धि तो है उसका निर्मल मन। अगर मन पवित्र नहीं हुआ तो सारा ज्ञान व्यर्थ है। अहंकार से मुक्त व्यक्ति ही ईश्वर को पा सकता है।' ब्रह्मचारी ने बुद्ध के ये वचन सुने तो उसे अपनी भूल का अहसास हो गया।
वापस आने के बाद वह अहंकार में भरकर लोगों से पूछता-'इस संपूर्ण पृथ्वी पर मुझ जैसा कोई गुणी व्यक्ति नजर आता है?' लोग हैरत से उसे देखते। धीरे-धीरे यह बात भगवान बुद्ध तक भी पहुंची। बुद्ध उसके बारे में सब जानते थे। वह उसकी प्रतिभा से भी परिचित थे। लेकिन वे इस बात से चिंतित हो गए कि कहीं उसका अभिमान उसका नाश ही न कर दे। एक दिन वे एक भिखारी का रूप धरकर, भिक्षा पात्र लिए उसके सामने चले गए। ब्रह्मचारी ने बड़े अभिमान से पूछा-'कौन हो तुम?' बुद्ध बोले-'मैं आत्मविजय का पथिक हूं।'
ब्रह्मचारी ने उनके कहे शब्दों का अर्थ जानना चाहा तो वे बोले-'एक मामूली हथियार निर्माता भी बाण बना लेता है, जहाज का चालक उस पर नियंत्रण रख लेता है, गृह निर्माता भी घर बना लेता है। केवल ज्ञान से कुछ नहीं होने वाला। मनुष्य की वास्तविक उपलब्धि तो है उसका निर्मल मन। अगर मन पवित्र नहीं हुआ तो सारा ज्ञान व्यर्थ है। अहंकार से मुक्त व्यक्ति ही ईश्वर को पा सकता है।' ब्रह्मचारी ने बुद्ध के ये वचन सुने तो उसे अपनी भूल का अहसास हो गया।
उद्देश्य के प्रति समर्पण जरूरी
एक किशोर ने 14 साल की उम्र में ही अपने माता-पिता को पत्र लिखा और बताया कि वह भविष्य में इंजिनियर बनना चाहता है। जर्मनी में पढ़ाई पूरी करने के बाद उसका अधिकांश समय अविष्कारों के लिए शोध और नए-नए प्रयोगों के बीच ही निकलने लगा। काम के प्रति उसका समर्पण देखकर हर कोई चकित था। एक दिन जब वह अपनी वर्कशॉप में प्रयोग कर रहा था, अचानक उसके इंजन में बहुत जोरदार विस्फोट हुआ। इस विस्फोट से उसका वर्कशॉप बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। बहुत-सी महत्वपूर्ण चीजें जलकर खाक हो गईं। वह खुद भी बुरी तरह घायल था। उसे लंबे समय तक उपचार के लिए अस्पताल में रुकना पड़ा। इतने बड़े हादसे के बावजूद वह डरा नहीं। न तो उसने हिम्मत छोड़ी और न ही मायूसी और निराशा को अपने करीब फटकने दिया।
स्वस्थ होने के बाद वह फिर अपने वर्कशॉप जा पहुंचा। इतने बड़े हादसे के बावजूद उसके चेहरे पर किसी प्रकार का अफसोस या शिकन नहीं। वह पूरे उत्साह के साथ नए सिरे से अपने काम में जुट गया। लोग उसके इस जुझारू और प्रेरणादायक जज्बे को देखकर हैरान थे। इसके बाद उसने कई सफल आविष्कार किए और कई भाप इंजनों का डिजाइन तैयार किया। उसके आविष्कारों में डीजल इंजन प्रमुख रहा। यह महान इंजिनियर था रुडोल्फ डीजल। आज का डीजल इंजन रुडोल्फ डीजल के मौलिक सिद्धांत का परिष्कृत और उन्नत संस्करण है। अनेक अविष्कारों के प्रति इस समर्पित भाव और कभी हार न मानने की प्रवृत्ति के कारण रुडोल्फ डीजल आज भी नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं
स्वस्थ होने के बाद वह फिर अपने वर्कशॉप जा पहुंचा। इतने बड़े हादसे के बावजूद उसके चेहरे पर किसी प्रकार का अफसोस या शिकन नहीं। वह पूरे उत्साह के साथ नए सिरे से अपने काम में जुट गया। लोग उसके इस जुझारू और प्रेरणादायक जज्बे को देखकर हैरान थे। इसके बाद उसने कई सफल आविष्कार किए और कई भाप इंजनों का डिजाइन तैयार किया। उसके आविष्कारों में डीजल इंजन प्रमुख रहा। यह महान इंजिनियर था रुडोल्फ डीजल। आज का डीजल इंजन रुडोल्फ डीजल के मौलिक सिद्धांत का परिष्कृत और उन्नत संस्करण है। अनेक अविष्कारों के प्रति इस समर्पित भाव और कभी हार न मानने की प्रवृत्ति के कारण रुडोल्फ डीजल आज भी नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं
परिवार का प्रेम
एक नगर सेठ को एक रात स्वप्न में देवी लक्ष्मी ने दर्शन दिए और कहा,'सेठ, तुम्हारा पुण्य शीघ्र समाप्त होने वाला है। उसके बाद मैं यहां से चली जाऊंगी। इसलिए यदि तुम्हें कुछ मांगना हो तो अभी मुझसे मांग लो।' सेठ ने लक्ष्मी जी से हाथ जोड़कर कहा कि वह अपने परिवार के सदस्यों से सलाह करके जो मांगना होगा अगली रात मांग लेगा।
अगले दिन सेठ ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को एकत्र किया और उनसे स्वप्न के बारे में चर्चा की। बड़े पुत्र ने हीरे-मोती और महल आदि मांगने को कहा। बीच वाले पुत्र ने स्वर्ण मुद्राएं और अपार राशि मांग लेने को कहा। छोटे पुत्र ने सुझाव दिया कि हमें लक्ष्मी जी से अन्न का भंडार मांगना चाहिए। इसी प्रकार बड़ी सेठानी और उसकी पुत्रवधुओं ने भी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ न कुछ अलग ही मांगने को कहा।
अंत में सबसे छोटी पुत्रवधू की बारी आई तो उसने आदरपूर्वक अपने ससुर से कहा,'पिताजी, जब लक्ष्मी ही चली जाएंगी तो ये वस्तुएं किस प्रकार हमारे पास रहेंगी? इसलिए यदि आपको मांगना है तो आप यह मांगिए कि हमारे परिवार में सदैव प्रेम बना रहे।' परिवार के सभी सदस्यों को छोटी बहू की यह बात बड़ी अच्छी लगी।
जब रात के समय लक्ष्मी ने फिर स्वप्न में दर्शन दिए तो सेठ ने हाथ जोड़कर उनसे कहा,'हे देवी! मुझे केवल एक ही वरदान दीजिए कि हमारे परिवार में सब एक-दूसरे का आदर करें, हममें परस्पर विश्वास बना रहे और हम प्रेम की डोर में बंधे रहें।' लक्ष्मी जी मुस्कराईं और बोलीं, 'फिर तो मैं भी यहीं रहूंगी।'
अगले दिन सेठ ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को एकत्र किया और उनसे स्वप्न के बारे में चर्चा की। बड़े पुत्र ने हीरे-मोती और महल आदि मांगने को कहा। बीच वाले पुत्र ने स्वर्ण मुद्राएं और अपार राशि मांग लेने को कहा। छोटे पुत्र ने सुझाव दिया कि हमें लक्ष्मी जी से अन्न का भंडार मांगना चाहिए। इसी प्रकार बड़ी सेठानी और उसकी पुत्रवधुओं ने भी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ न कुछ अलग ही मांगने को कहा।
अंत में सबसे छोटी पुत्रवधू की बारी आई तो उसने आदरपूर्वक अपने ससुर से कहा,'पिताजी, जब लक्ष्मी ही चली जाएंगी तो ये वस्तुएं किस प्रकार हमारे पास रहेंगी? इसलिए यदि आपको मांगना है तो आप यह मांगिए कि हमारे परिवार में सदैव प्रेम बना रहे।' परिवार के सभी सदस्यों को छोटी बहू की यह बात बड़ी अच्छी लगी।
जब रात के समय लक्ष्मी ने फिर स्वप्न में दर्शन दिए तो सेठ ने हाथ जोड़कर उनसे कहा,'हे देवी! मुझे केवल एक ही वरदान दीजिए कि हमारे परिवार में सब एक-दूसरे का आदर करें, हममें परस्पर विश्वास बना रहे और हम प्रेम की डोर में बंधे रहें।' लक्ष्मी जी मुस्कराईं और बोलीं, 'फिर तो मैं भी यहीं रहूंगी।'
दीर्घकालिक सोच ही समझदारी
एक बकरी के पूरे शरीर पर नर्म-मुलायम लंबे बाल थे। वह खुद को बहुत होशियार समझती थी। एक दिन वह घास चर रही थी, तभी शिकारी वहां आ पहुंचे। जैसे ही उनकी नजर बकरी पर पड़ी, वे उसे पाने के लिए लालायित हो उठे। उनका इरादा भांप बकरी जान बचाने के लिए भागने लगी। भागते-भागते वह एक ऐसी जगह पहुंची जहां नर्म पत्तों वाली कुछ घनी झाड़ियां लगी हुई थीं। बकरी उनके पीछे जाकर छिप गई। थोड़ी देर में शिकारी भी पीछा करते हुए वहीं आ पहुंचे। पर वे बकरी को देख नहीं पा रहे थे। इधर-उधर खोजने के बाद वे आगे बढ़ गए। यह देख बकरी अपनी चतुराई पर बड़ी खुश हुई।
कुछ देर पहले तक डर की वजह से उसका ध्यान झाड़ियों की बेलों के नर्म पत्तों की ओर गया ही नहीं था। उसने तेजी से उन्हें खाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसने काफी सारी झाड़ी चट कर डाली। तभी शिकारी उसे खोजते हुए वापस उसी जगह आ पहुंचे। उन्होंने घेरकर बकरी को पकड़ लिया। वे उसे अपने साथ ले जाते हुए बात कर रहे थे कि यदि बकरी ने झाड़ियां साफ न कर दी होतीं तो शायद वह उनकी पकड़ में ही नहीं आती। यह सुनकर बकरी को अपनी भूल समझ में आ गई। उसने खुद अपने हाथों से अपना आश्रय मिटा दिया। सफलता के नशे में कई बार प्राणी अपने आश्रयदाता को छोटा समझकर उसकी उपेक्षा करने या उसे नुकसान पहुंचाने से भी गुरेज नहीं करते। जो जीवन में ऐसी चतुराई साथ लेकर चलते हैं, वे कभी-कभी बड़ा धोखा खा जाते हैं। समझदारी वही कारगर है जिसमें फौरी लाभ की आशा नहीं, बल्कि दीर्घकाल की सोच रहती है।
कुछ देर पहले तक डर की वजह से उसका ध्यान झाड़ियों की बेलों के नर्म पत्तों की ओर गया ही नहीं था। उसने तेजी से उन्हें खाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसने काफी सारी झाड़ी चट कर डाली। तभी शिकारी उसे खोजते हुए वापस उसी जगह आ पहुंचे। उन्होंने घेरकर बकरी को पकड़ लिया। वे उसे अपने साथ ले जाते हुए बात कर रहे थे कि यदि बकरी ने झाड़ियां साफ न कर दी होतीं तो शायद वह उनकी पकड़ में ही नहीं आती। यह सुनकर बकरी को अपनी भूल समझ में आ गई। उसने खुद अपने हाथों से अपना आश्रय मिटा दिया। सफलता के नशे में कई बार प्राणी अपने आश्रयदाता को छोटा समझकर उसकी उपेक्षा करने या उसे नुकसान पहुंचाने से भी गुरेज नहीं करते। जो जीवन में ऐसी चतुराई साथ लेकर चलते हैं, वे कभी-कभी बड़ा धोखा खा जाते हैं। समझदारी वही कारगर है जिसमें फौरी लाभ की आशा नहीं, बल्कि दीर्घकाल की सोच रहती है।
आप अपनी बनायीं हुई company से fire कैसे हो सकते हैं ? Well, जैसे-जैसे company grow की, हमने एक ऐसे talented आदमी को hire किया ,जिसे मैंने सोचा कि वो मेरे साथ company run करेगा , पहले एक साल सब-कुछ ठीक-ठाक चला…. लेकिन फिर company के future vision को लेके हम दोनों में मतभेद होने लगे. बात Board Of Directors तक पहुँच गयी, और उन लोगों ने उसका साथ दिया,so at thirty , मुझे निकाल दिया गया…publicly निकाल दिया गया. जो मेरी पूरी adult life का focus था वह अब खत्म हो चुका था, और ये बिलकुल ही तबाह करने वाला था. मुझे सचमुच अगले कुछ महीनो तक समझ ही नहीं आया कि मैं क्या करूं.
मुझे महसूस हुआ कि ये सबकुछ इतनी आसानी से accept करके मैंने अपने पहले कि generation के entrepreneurs को नीचा दिखाया है. मैं David Packard* और Bob Noyce* से मिला और उनसे सबकुछ ऐसे हो जाने पर माफ़ी मांगी. मैं एक बहुत बड़ा public failure था, एक बार तो मैंने valley* छोड़ कर जाने की भी सोची.पर धीरे – धीरे मुझे अहसास हुआ की मैं जो काम करता हूं, उसके लिए मैं अभी भी passionate हूँ. Apple में जो कुछ हुआ उसकी वजह से मेरे passion में ज़रा भी कमी नहीं आई है….मुझे reject कर दिया गया है, पर मैं अभी भी अपने काम से प्यार करता हूँ. इसलिए मैंने एक बार फिर से शुरुआत करने की सोची. मैंने तब नहीं सोचा पर अब मुझे लगता है की Apple से fire किये जाने से अच्छी चीज मेरे साथ हो ही नहीं सकती थी. Successful होने का बोझ अब beginner होने के हल्केपन में बदल चूका था , मैं एक बार फिर खुद को बहुत free महसूस कर रहा था…इस स्वछंदता की वज़ह से मैं अपनी life की सबसे creative period में जा पाया.
अगले पांच सालों में मैंने एक company … NeXT और एक दूसरी कंपनी Pixar start की और इसी दौरान मेरी मुलाक़ात एक बहुत ही amazing lady से हुई ,जो आगे चलकर मेरी wife बनी. Pixar ने दुनिया की पहली computer animated movie , “ Toy Story” बनायीं, और इस वक्त यह दुनिया का सबसे सफल animation studio है. Apple ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए NeXT को खरीद लिया और मैं Apple में वापस चला गया. आज Apple, NeXT द्वारा develop की गयी technology use करती है….अब Lorene और मेरा एक सुन्दर सा परिवार है. मैं बिलकुल surety के साथ कह सकता हूँ की अगर मुझे Apple से नहीं निकाला गया होता तो मेरे साथ ये सब-कुछ नहीं होता. ये एक कड़वी दवा थी …पर शायद patient को इसकी ज़रूरत थी.कभी-कभी जिंदगी आपको इसी तरह ठोकर मारती है. अपना विश्वाश मत खोइए. मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि मैं सिर्फ इसलिए आगे बढ़ता गया क्योंकि मैं अपने काम से प्यार करता था…I loved my work.
आप really क्या करना पसंद करते हैं यह आपको जानना होगा, जितना अपने love को find करना ज़रूरी है, उतना ही उस काम को ढूँढना ज़रूरी जिसे आप सच-मुच enjoy करते हों आपका काम आपकी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा होगा, और truly-satisfied होने का एक ही तरीका है की आप वो करें जिसे आप सच-मुच एक बड़ा काम समझते हों...और बड़ा काम करने का एक ही तरीका है की आप वो करें जो करना आप enjoy करते हों.यदि आपको अभी तक वो काम नहीं मिला है तो आप रूकिये मत..उसे खोजते रहिये. जैसा कि दिल से जुडी हर चीज में होता है…वो जब आपको मिलेगा तब आपको पता चल जायेगा…और जैसा की किसी अच्छी relationship में होता है वो समय के साथ-साथ और अच्छा होता जायेगा ….इसलिए खोजते रहिये…रूकिये मत.
मेरी तीसरी कहानी death के बारे में है. जब मैं 17 साल का था तो मैंने एक quote पढ़ा , जो कुछ इस तरह था, “ यदि आप हर रोज ऐसे जियें जैसे की ये आपकी जिंदगी का आखीरी दिन है ..तो आप किसी न किसी दिन सही साबित हो जायेंगे.” इसने मेरे दिमाग पे एक impression बना दी, और तबसे…पिछले 33 सालों से , मैंने हर सुबह उठ कर शीशे में देखा है और खुद से एक सवाल किया है , “ अगर ये मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होता तो क्या मैं आज वो करता जो मैं करने वाला हूँ?” और जब भी लगातार कई दिनों तक जवाब “नहीं” होता है , मैं समझ जाता हूँ की कुछ बदलने की ज़रूरत है. इस बात को याद रखना की मैं बहत जल्द मर जाऊँगा मुझे अपनी life के बड़े decisions लेने में सबसे ज्यादा मददगार होता है, क्योंकि जब एक बार death के बारे में सोचता हूँ तब सारी expectations, सारा pride, fail होने का डर सब कुछ गायब हो जाता है और सिर्फ वही बचता है जो वाकई ज़रूरी है.इस बात को याद करना की एक दिन मरना है…किसी चीज को खोने के डर को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है.आप पहले से ही नंगे हैं.ऐसा कोई reason नहीं है की आप अपने दिल की ना सुने.
करीब एक साल पहले पता चला की मुझे cancer है . सुबह 7:30 बजे मेरा scan हुआ, जिसमे साफ़-साफ़ दिख रहा था की मेरे pancreas में tumor है. मुझे तो पता भी नहीं था की pancreas क्या होता है. Doctor ने लग-भग यकीन के साथ बताया की मुझे एक ऐसा cancer है जिसका इलाज़ संभव नहीं है..और अब मैं बस 3 से 6 महीने का मेहमान हूँ. Doctor ने सलाह दी की मैं घर जाऊं और अपनी सारी चीजें व्यवस्थित कर लूं, जिसका indirect मतलब होता है कि , “आप मरने की तैयरी कर लीजिए.” इसका मतलब कि आप कोशिश करिये कि आप अपने बच्चों से जो बातें अगले दस साल में करते , वो अगले कुछ ही महीनों में कर लीजिए. इसका ये मतलब होता है कि आप सब-कुछ सुव्यवस्थित कर लीजिए की आपके बाद आपकी family को कम से कम परेशानी हो.इसका ये मतलब होता है की आप सबको गुड-बाय कर दीजिए.
मैंने इस diagnosis के साथ पूरा दिन बिता दिया फिर शाम को मेरी biopsy हुई जहाँ मेरे मेरे गले के रास्ते, पेट से होते हुए मेरी intestine में एक endoscope डाला गया और एक सुई से tumor से कुछ cells निकाले गए. मैं तो बेहोश था , पर मेरी wife , जो वहाँ मौजूद थी उसने बताया की जब doctor ने microscope से मेरे cells देखे तो वह रो पड़ा…दरअसल cells देखकर doctor समझ गया की मुझे एक बहुत ही दुर्लभ प्रकार का pancreatic cancer है जो surgery से ठीक हो सकता है. मेरी surgery हुई और सौभाग्य से अब मैं ठीक हूँ.
मौत के इतना करीब मैं इससे पहले कभी नहीं पहुंचा , और उम्मीद करता हूँ की अगले कुछ दशकों तक पहुँचूं भी नहीं. ये सब देखने के बाद मैं ओर भी विश्वाश के साथ कह सकता हूँ की death एक useful but intellectual concept है.कोई मरना नहीं चाहता है, यहाँ तक की जो लोग स्वर्ग जाना चाहते हैं वो भी…फिर भी मौत वो मजिल है जिसे हम सब share करते हैं.आज तक इससे कोई बचा नहीं है. और ऐसा ही होना चाहिए क्योंकि शायद मौत ही इस जिंदगी का सबसे बड़ा आविष्कार है . ये जिंदगी को बदलती है, पुराने को हटा कर नए का रास्ता खोलती है. और इस समय नए आप हैं. पर ज्यादा नहीं… कुछ ही दिनों में आप भी पुराने हो जायेंगे और रस्ते से साफ़ हो जायेंगे. इतना dramatic होने के लिए माफ़ी चाहता हूँ पर ये सच है.आपका समय सीमित है, इसलिए इसे किसी और की जिंदगी जी कर व्यर्थ मत कीजिये. बेकार की सोच में मत फंसिए,अपनी जिंदगी को दूसरों के हिसाब से मत चलाइए. औरों के विचारों के शोर में अपनी अंदर की आवाज़ को, अपने intuition को मत डूबने दीजिए. वे पहले से ही जानते हैं की तुम सच में क्या बनना चाहते हो. बाकि सब गौड़ है.
जब मैं छोटा था तब एक अद्भुत publication, “The Whole Earth Catalogue” हुआ करता था, जो मेरी generations की bibles में से एक था.इसे Stuart Brand नाम के एक व्यक्ति, जो यहाँ … MelonPark से ज्यादा दूर नहीं रहता था, और उसने इसे अपना poetic touch दे के बड़ा ही जीवंत बना दिया था. ये साठ के दशक की बात है, जब computer और desktop publishing नहीं हुआ करती थीं., पूरा catalogue ..typewriters, scissors और Polaroid cameras की मदद से बनाया जाता था. वो कुछ-कुछ ऐसा था मानो Google को एक book के form में कर दिया गया हो….वो भी गूगल के आने के 35 साल पहले.वह एक आदर्श था, अच्छे tools और महान विचारों से भरा हुआ था.
Stuart और उनकी team ने “The Whole Earth Catalogue”के कई issues निकाले और अंत में एक final issue निकाला. ये सत्तर के दशक का मध्य था और तब मैं आपके जितना था. Final issue के back cover पे प्रातः काल का किसी गाँव की सड़क का द्दृश्य था…वो कुछ ऐसी सड़क थी जिसपे यदि आप adventurous हों तो किसी से lift माँगना चाहेंगे. और उस picture के नीचे लिखा था, “Stay Hungry, Stay Foolish”.. ये उनका farewell message था जब उन्होंने sign-off किया…,“Stay Hungry, Stay Foolish” और मैंने अपने लिए हमेशा यही wish किया है, और अब जब आप लोग यहाँ से graduate हो रहे हैं तो मैं आपके लिए भी यही wish करता हूँ , stay hungry, stay foolish. Thank you all very much.”