गाँव में एक युवक था जिसका नाम था विवेक। विवेक एक साधारण परिवार से था, लेकिन उसकी ख्वाहिशें बहुत बड़ी थीं। वह हमेशा यह सोचता था कि कैसे वह अपने जीवन को बेहतर बना सकता है। उसके चारों ओर कई दोस्त थे, लेकिन उनमें से कुछ अमीर थे और कुछ गरीब। विवेक अक्सर सोचता था कि अगर वह उन अमीर दोस्तों के साथ रहे, तो उसकी ज़िंदगी में सुख-समृद्धि आएगी।
एक दिन विवेक ने अपने कॉलेज में एक अमीर लड़के, समीर, से दोस्ती करने का फैसला किया। समीर के पास सुंदर कपड़े, महंगी गाड़ियाँ, और हर प्रकार की सुविधाएँ थीं। विवेक को लगा कि समीर की दोस्ती उसे एक अलग दुनिया में ले जाएगी।
समीर ने विवेक को अपने घर बुलाया। विवेक ने देखा कि समीर का घर बहुत बड़ा और शानदार था। वहाँ सभी सुविधाएँ थीं, लेकिन जब समीर ने विवेक से बातें करना शुरू किया, तो उसे यह समझ में आया कि समीर अपने पैसे और स्थिति पर बहुत गर्व करता था। वह अक्सर विवेक से कहता, "तुम्हें मेरी तरह जीने के लिए मेहनत करनी चाहिए।" विवेक को यह बात खटकने लगी, लेकिन उसने समीर की दोस्ती को छोड़ने का साहस नहीं किया।
एक दिन, समीर ने विवेक को अपने दोस्तों के साथ एक पार्टी में बुलाया। वहाँ सभी अमीर लोग थे, और विवेक को वहाँ बहुत असहज महसूस हुआ। उसने देखा कि सभी लोग एक-दूसरे की हैसियत का मजाक उड़ा रहे थे। विवेक को यह समझ में आया कि ऐसी दोस्ती उसे कभी खुशी नहीं देगी। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वह समीर के साथ अपने रिश्ते को तोड़ नहीं सका।
कुछ समय बाद, विवेक ने एक नया दोस्त बनाया, जिसका नाम था राजू। राजू एक गरीब लड़का था, लेकिन उसकी आत्मा में एक अद्भुत ऊर्जा थी। वह हमेशा मुस्कुराता और लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहता। विवेक ने राजू के साथ समय बिताना शुरू किया। उसने महसूस किया कि राजू की मित्रता में सच्चाई थी, और वह कभी भी पैसे या हैसियत की बात नहीं करता था।
एक दिन, गाँव में एक बड़ा मेला लगा। विवेक और राजू ने मिलकर वहाँ जाने का निर्णय लिया। मेले में बहुत सारे स्टॉल और गतिविधियाँ थीं। विवेक ने देखा कि राजू ने छोटे-छोटे खिलौने खरीदने के लिए अपनी जेब से पैसे निकाले, जबकि वह खुद समीर के साथ अपने अमीर दोस्तों के साथ रहकर सिर्फ महंगे सामान खरीदने का सोच रहा था।
राजू ने विवेक से कहा, "चलो, हम कुछ साधारण खिलौने खरीदते हैं और उन्हें उन बच्चों में बाँटते हैं, जिनके पास कुछ नहीं है।" विवेक ने राजू की बात सुनकर सोचा कि यह तो एक अद्भुत विचार है। उन्होंने मिलकर बच्चों को खिलौने दिए और उन बच्चों की खुशी को देखकर विवेक का दिल खुशी से भर गया।
उस दिन विवेक ने समझा कि सच्ची मित्रता का अर्थ है एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होना और एक-दूसरे की मदद करना। राजू की दोस्ती ने उसे सिखाया कि पैसे और हैसियत से ऊपर एक और दुनिया है, जहाँ सच्ची दोस्ती और इंसानियत का मूल्य होता है।
समय के साथ, विवेक ने अपने रिश्ते को समीर के साथ तोड़ने का निर्णय लिया। उसने समीर से कहा, "मैं तुमसे दोस्ती नहीं कर सकता। तुम्हारी दुनिया में खुशियाँ नहीं हैं। मुझे सच्ची दोस्ती की तलाश है।" समीर ने हंसते हुए कहा, "तुम बिना पैसे के खुश रह नहीं सकते।" विवेक ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, "खुशी पैसे से नहीं, बल्कि सच्चे रिश्तों से आती है।"
इसके बाद, विवेक ने राजू के साथ और भी समय बिताना शुरू किया। दोनों ने मिलकर गाँव में कई सामाजिक काम किए, जैसे कि गरीबों की मदद करना, शिक्षा का प्रचार करना और बच्चों को खेल-कूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना। विवेक ने महसूस किया कि सच में खुशी उसी में है जब हम एक-दूसरे के साथ खड़े होते हैं।
कहानी का अंत इस बात पर होता है कि विवेक ने समझा कि कभी भी ऐसे लोगों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए जो हैसियत में आपसे ऊपर या नीचे हों। ऐसी दोस्ती न तो सच्ची होती है और न ही आपको खुशी देती है। सच्ची दोस्ती उन लोगों से होती है, जो आपके दिल के करीब होते हैं, चाहे उनकी हैसियत कुछ भी हो।
इस प्रकार, विवेक ने अपनी ज़िंदगी में सच्ची खुशी पाई और उसने समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश की। उसकी मित्रता ने उसे सिखाया कि जीवन का असली सुख केवल धन में नहीं, बल्कि प्यार, सहयोग और सच्चे रिश्तों में है