छोटे से गांव प्रतापपुर में रहने वाला रवि एक गरीब परिवार से था। उसके पिता खेतों में मजदूरी करते थे और मां दूसरों के घरों में काम करके परिवार का पेट पालती थी। बचपन से ही रवि के सपने बड़े थे। वह पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना चाहता था, लेकिन उसकी गरीबी हमेशा उसके रास्ते में दीवार बनकर खड़ी रहती थी।
गांव में अच्छे स्कूल नहीं थे, लेकिन रवि को पढ़ाई से बहुत लगाव था। वह पुराने, फटे-पुराने किताबों से पढ़ाई करता और गांव के बड़े बुजुर्गों से ज्ञान लेता। जब भी उसे कठिनाई महसूस होती, तो उसकी मां उसे समझाती, "अगर खुद पर यकीन है, तो अंधेरे रास्ते भी रोशन हो जाते हैं!"
संघर्ष और हौसले की जंग
रवि का सपना था कि वह शहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करे, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। गांव के लोग भी उसे ताने देते, "गरीब का बेटा अफसर बनेगा? पहले अपना पेट तो भर ले!"
लेकिन रवि ने हार नहीं मानी। उसने गांव के छोटे बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया और खुद के लिए पैसे बचाने लगा। दिन में खेतों में काम करता और रात को पढ़ाई करता। उसके अंदर मेहनत और लगन की कोई कमी नहीं थी।
पहली बड़ी चुनौती
रवि ने जैसे-तैसे बारहवीं कक्षा पूरी की और एक सरकारी कॉलेज में दाखिला मिल गया। लेकिन अब समस्या थी—शहर में रहने और पढ़ाई करने के लिए पैसे कहां से आएंगे?
उसने फिर खुद पर भरोसा रखा। कॉलेज के साथ-साथ उसने एक छोटी सी नौकरी करनी शुरू कर दी। वह दिन में कॉलेज जाता और रात को एक दुकान पर काम करता। कई बार उसे भूखे पेट भी सोना पड़ता, लेकिन उसने कभी शिकायत नहीं की।
खुद पर यकीन का असली इम्तिहान
एक दिन कॉलेज में एक बड़ी कंपनी का इंटरव्यू था, जिसमें सिलेक्शन होने पर रवि को अच्छी नौकरी मिल सकती थी। लेकिन उसकी अंग्रेजी कमजोर थी, और बाकी छात्र अंग्रेजी में धाराप्रवाह बात कर सकते थे।
एक दोस्त ने ताना मारा, "तू इंटरव्यू देगा? अंग्रेजी भी ठीक से नहीं आती तुझे!"
लेकिन रवि ने हार नहीं मानी। उसने खुद पर भरोसा रखा और तीन महीने तक दिन-रात मेहनत की। उसने अंग्रेजी के अखबार पढ़े, खुद से प्रैक्टिस की और यूट्यूब से सीखने की कोशिश की।
सफलता की ओर पहला कदम
इंटरव्यू के दिन रवि घबराया हुआ था, लेकिन जैसे ही उसने खुद से कहा "अगर खुद पर यकीन है, तो अंधेरे रास्ते भी रोशन हो जाते हैं," उसकी घबराहट दूर हो गई। उसने आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू दिया और अपनी सच्ची मेहनत की कहानी सुनाई।
इंटरव्यू लेने वाले अधिकारी उसकी मेहनत और जज़्बे से प्रभावित हुए और उसे नौकरी दे दी। यह रवि की पहली बड़ी जीत थी!
सपना हुआ साकार
कुछ सालों बाद रवि एक सफल इंजीनियर बन गया। उसने अपने माता-पिता की गरीबी को खत्म किया और गांव के बच्चों के लिए एक स्कूल भी खोला, ताकि कोई भी बच्चा सिर्फ पैसे की वजह से अपने सपनों से दूर न हो।
जब भी कोई उससे उसकी सफलता का राज पूछता, तो वह सिर्फ एक बात कहता—
"अगर खुद पर यकीन है, तो अंधेरे रास्ते भी रोशन हो जाते हैं!"