Sunday, July 10, 2016

भगवान बहुत ही मासूम हैं


एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था पर मिलने की तमन्ना भरपूर थी।उसकी चाहत थी कि एक समय की रोटी वो भगवान के सांथ खायेगा।
1 दिन उसने 1 थैले में 5 - 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को को ढूंढने निकल पड़ा।
चलते चलते वो बहुत  दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।
उसने देखा नदी के तट पर 1 बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं,जिनकी आँखों में बहुत  गजब की चमक थी, प्यार था,और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठी उसका रस्ता देख रहीं हों।
वो 6 साल का मासूम बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।
फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली , माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आँसू भी थे,,,,
बच्चा माता को देखे जा रहा था , जब माता ने रोटी खा ली बच्चे ने 1 और रोटी माता को दी।
माता अब बहुत खुश थी। बच्चा भी बहुत  खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
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जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत ले घर की ओर चलने लगा
वो बार बार पीछे मुड़ कर देखता ! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती।
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बच्चा घर पहुँचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,
बच्चा बहुत  खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा,
तो बच्चे ने बताया!
माँ,....आज मैंने भगवान के सांथ बैठ क्ऱ रोटी खाई, आपको पता है उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,,माँ भगवान् बहुत  बूढ़े हो गये हैं,,,मैं आज बहुत खुश हूँ माँ☺
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उस तरफ बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची  तो गाँव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं,तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा????
माता जी बोलीं,,,,मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी,,मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।
आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे साथ बैठ के रोटी खाई मुझे भी बहुत  प्यार से खिलाई,बहुत प्यार से मेरी और देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया,,भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।
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इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है।
असल में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में ईश्वर के लिए प्यार बहुत in सच्चा है ।
और ईश्वर ने दोनों को ,दोनों के लिये , दोनों में ही ( ईश्वर)खुद को भेज दिया।
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जब मन ईश्वर भक्ति में रम जाता है तो
हमे हर शय में वो ही नजर आता है।

Saturday, July 9, 2016

खुश रहने का राज़

कठिनाईयां लेकर आते थे और ऋषि उनका मार्गदर्शन करते थे| एक दिन एक व्यक्ति, ऋषि के पास आया और ऋषि से एक प्रश्न पूछा| उसने ऋषि से पूछा कि “गुरुदेव मैं यह जानना चाहता हुईं कि हमेशा खुश रहने का राज़ क्या है ऋषि ने उससे कहा कि तुम मेरे साथ जंगल में चलो, मैं तुम्हे खुश रहने का राज़ बताता हूँ|

ऐसा कहकर ऋषि और वह व्यक्ति जंगल की तरफ चलने लगे| रास्ते में ऋषि ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और उस व्यक्ति को कह दिया कि इसे पकड़ो और चलो| उस व्यक्ति ने पत्थर को उठाया और वह ऋषि के साथ साथ जंगल की तरफ चलने लगा|
कुछ समय बाद उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा लेकिन वह चुप रहा और चलता रहा| लेकिन जब चलते हुए बहुत समय बीत गया और उस व्यक्ति से दर्द सहा नहीं गया तो उसने ऋषि से कहा कि उसे दर्द हो रहा है| तो ऋषि ने कहा कि इस पत्थर को नीचे रख दो| पत्थर को नीचे रखने पर उस व्यक्ति को बड़ी राहत महसूस हुयी|
तभी ऋषि ने कहा – “यही है खुश रहने का राज़ | व्यक्ति ने कहा – गुरुवर मैं समझा नहीं|
तो ऋषि ने कहा-
 जिस तरह इस पत्थर को एक मिनट तक हाथ में रखने पर थोडा सा दर्द होता है और अगर इसे एक घंटे तक हाथ में रखें तो थोडा ज्यादा दर्द होता है और अगर इसे और ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे तो दर्द बढ़ता जायेगा उसी तरह दुखों के बोझ को जितने ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे उतने ही ज्यादा हम दु:खी और निराश रहेंगे| यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों के बोझ को एक मिनट तक उठाये रखते है या उसे जिंदगी भर| अगर तुम खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं

Thursday, July 7, 2016

उम्मीदवार की योग्यता

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

 भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

 वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

 ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

 ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

 सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

 अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

 लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

 हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

 हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

 यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

शायद 65 साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

Wednesday, July 6, 2016

इंतजार और प्रार्थना

एक भिखारी, एक सेठ के घर के बाहर खडा होकर भजन गा रहा था और बदले में खाने को रोटी मांग रहा था।
सेठानी काफ़ी देर से उसको कह रही थी , रुको आ रही हूं | रोटी हाथ मे थी पर फ़िर भी कह रही थी की रुको आ रही हूं |
भिखारी भजन गा रहा था और रोटी मांग रहा था।
सेठ ये सब देख रहा था , पर समझ नही पा रहा था,
आखिर सेठानी से बोला - रोटी हाथ में लेकर खडी हो, वो बाहर मांग रहा हैं , उसे कह रही हो आ रही हूं तो उसे रोटी क्यो नही दे रही हो ?
सेठानी बोली हां रोटी दूंगी, पर क्या है ना की मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा हैं, अगर उसको रोटी दूंगी तो वो आगे चला जायेगा,
मुझे उसका भजन और सुनना हैं !!
यदि प्रार्थना के बाद भी भगवान आपकी नही सुन रहा हैं तो समझना की उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही हैं इसलिये इंतज़ार करो और प्रार्थना करते रहो।
जीवन मे कैसा भी दुख और कष्ट आये पर भक्ति मत छोडिए।
क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड देते है?
क्या बीमारी आती है तो आप सांस लेना छोड देते हैं? नही ना ?
फिर जरा सी तकलीफ़ आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हो ?
कभी भी दो चीज मत छोड़िये- - भजन और भोजन !
भोजन छोड़ दोंगे तो ज़िंदा नहीं रहोगे, भजन छोड़ दोंगे तो कहीं के नही रहोगे।
सही मायने में भजन ही भोजन है।

Saturday, July 2, 2016

माँ बाप बोझ क्यो

एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया।
खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया।

रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था।

खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गया। उसके कपड़े साफ़ किये, उसका चेहरा साफ़ किया, उसके बालों में कंघी की,चश्मा पहनाया और फिर बाहर लाया।

सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के साथ 
बाहर जाने लगा।

तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा " क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ 
अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?? "

बेटे ने जवाब दिया" नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर 
नहीं जा रहा। "

वृद्ध ने कहा " बेटे, तुम यहाँ 
छोड़ कर जा रहे हो, 
प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)। "

दोस्तो आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसँद नही करते

और कहते है क्या करोगो आप से चला तो जाता
नही ठीक से खाया भी नही जाता आपतो घर पर ही रहो वही अच्छा होगा.

क्या आप भूल गये जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया 
करते थे,

आप जब ठीक से खा नही 
पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी

फिर वही माँ बाप बुढापे मे बोझ क्यो लगने लगते है???
माँ बाप भगवान का रूप होते है उनकी सेवा कीजिये और प्यार दीजिये...

क्योकि एक दिन आप भी बुढे होगे फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद मत करना.

Friday, July 1, 2016

भाव के भूखें

एक पंडितजी थे वो श्रीबांके बिहारी लाल को बहुत मानते थे सुबह-शाम बस ठाकुरजी ठाकुरजी करके व्यतीत होता ...पारिवारिक समस्या के कारण उन्हें धन की आवश्यकता हुई ...तो पंडित जी सेठ जी के पास धन मांगने गये ...सेठ जी धन दे तो दिया पर उस धन को लौटाने की बारह किस्त बांध दी ...पंडितजी को कोई एतराज ना हुआ ...उन्होंने स्वीकृति प्रदान कर दी ....अब धीरे-धीरे पंडितजी ने ११ किस्त भर दीं एक किस्त ना भर सके ...इस पर सेठ जी १२ वीं किस्त के समय निकल जाने पर पूरे धन का मुकद्दमा पंडितजी पर लगा दिया कोर्ट-कचहरी हो गयी ...जज साहब बोले पंडितजी तुम्हारी तरफ से कौन गवाही देगा ....इस पर पंडितजी बोले की मेरे ठाकुर बांकेबिहारी लाल जी गवाही देंगे ...पूरा कोर्ट ठहाकों से भर गया ...अब गवाही की तारीख तय हो गयी ...पंडितजी ने अपनी अर्जी ठाकुरजी के श्रीचरणों में लिखकर रख दी अब गवाही का दिन आया कोर्ट सजा हुआ था वकील, जज अपनी दलीलें पेश कर रहे थे पंडित को ठाकुर पर भरोसा था ....जज ने कहा पंडित अपने गवाह को बुलाओ पंडित ने ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगाया तभी वहाँ एक वृद्व आया जिसके चेहरे पर मनोरम तेज था उसने आते ही गवाही पंडितजी के पक्ष में दे दी ...वृद्व की दलीलें सेठ के वहीखाते से मेल खाती थीं की फलां- फलां तारीख को किश्तें चुकाई गयीं अब पंडित को ससम्मान रिहा कर दिया गया ...ततपश्चात जज साहब पंडित से बोले की ये वृद्व जन कौन थे जो गवाही देकर चले गये ....तो पंडित बोला अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर था .....जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया ...इतना सुनना था की जज पंडित जी के चरणों में लेट गया .....और ठाकुर जी का पता पूछा ...पंडित बोला मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है वो हर जगह है अब जज ने घरबार काम धंधा सब छोङ ठाकुर को ढूंढने निकल पङा ...सालों बीत गये पर ठाकुर ना मिला ...अब जज पागल सा मैला कुचैला हो गया  वह भंडारों में जाता पत्तलों पर से जुठन उठाता ...उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी मूर्ति को अर्पित करता आधा खुद खाता ...इसे देख कर लोग उसके खिलाफ हो गये उसे मारते पीटते ....पर वो ना सुधरा जूठन बटोर कर खाता और खिलाता रहा ...एक भंडारे में लोगों ने अपनी पत्तलों में कुछ ना छोङा ताकी ये पागल ठाकुरजी को जूठन ना खिला सके पर उसने फिर भी सभी पत्तलों को पोंछ-पाछकर एक निवाल इकट्ठा किया और अपने मुख में डाल लिया ....पर अरे ये क्या वो ठाकुर को खिलाना तो भूल ही गया अब क्या करे उसने वो निवाला अन्दर ना सटका की पहले मैं खा लूंगा तो ठाकुर का अपमान हो जायेगा और थूका तो अन्न का अपमान होगा ....करे तो क्या करें निवाल मुँह में लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगा रहा था की एक सुंदर ललाट चेहरा लिये बाल-गोपाल स्वरूप में बच्चा पागल जज के पास आया और बोला क्यों जज साहब आज मेरा भोजन कहाँ है जज साहब मन ही मन गोपाल छवि निहारते हुये अश्रू धारा के साथ बोले ठाकुर बङी गलती हुई आज जो पहले तुझे भोजन ना करा सका ...पर अब क्या करुं ...?
तो मन मोहन ठाकुर जी मुस्करा के बोले अरे जज तू तो निरा पागल हो गया है रे जब से अब तक मुझे दूसरों का जूठन खिलाता रहा ...आज अपना जूठन खिलाने में इतना संकोच चल निकाल निवाले को आज तेरी जूठन सही ...जज की आंखों से अविरल धारा निकल पङी जो रुकने का नाम ना ले रही और मेरा ठाकुर मेरा ठाकुर कहता-कहता बाल गोपाल के श्रीचरणों में गिर पङा और वहीं देह का त्याग कर दिया ....और मित्रों वो पागल जज कोई और नहीं वही (पागल बाबा) थे जिनका विशाल मंदिर आज वृन्दावन में स्थित है तो दोस्तो भाव के भूखें हैं प्रभू और भाव ही एक सार है ...और भावना से जो भजे तो भव से बेङा पार है ...तो बोलिए नन्द के आनंद की जय बोल वृन्दावन बिहारी लाल की जय ...बांके बिहारी लाल की जय

Thursday, June 30, 2016

जीवन में विनम्रता

जाकिर हुसैन के घर पर एक अधेड़ उम्र का नौकर था। वह रोज देर से सोकर उठता था। उसकी इस आदत से घर वाले उससे परेशान थे। उन्होंने उस नौकर की शिकायत जाकिर हुसैन साहब से कर दी और उसे निकाल बाहर करने को कहा। इसके जवाब में जाकिर साहब ने केवल यही कहा-'उसे समझाओ।' सबने उसे समझाया, पर इसके बावजूद उस पर कोई असर न हुआ। 'अब आप ही समझाकर देखिए उस नौकर को!' घरवालों ने जाकिर साहब से निवेदन किया। 

अगले दिन सवेरे जाकिर साहब उठे। एक लोटा पानी भरकर उस नौकर के सिर के पास जाकर खड़े हो गए। नौकर अभी तक गहरी नींद में ही था। वे उसे धीरे से उठाते हुए बोले-'उठिए मालिक! जागिए! सवेरा हो गया। मुंह हाथ धो लीजिए। मैं अभी आपके लिए चाय और स्नान के पानी का इंतजाम करता हूं।' इतना कहकर वे चले गए। इधर नौकर परेशान कि ये हो क्या रहा है, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं। वह अभी बैठा-बैठा यह सोच ही रहा था, तभी जाकिर साहब चाय लेकर आते दिखाई दिए। 

वे आकर बोले-'मालिक, लीजिए चाय पीकर स्नान करने चलिए।' नौकर बहुत घबराया। क्षमा मांगते हुए बोला-'हुजूर! आज के बाद से मेरे देर तक सोकर उठने की शिकायत किसी को नहीं होगी।' इस पर जाकिर साहब मुस्करा दिए। अगले दिन सभी घरवालों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि वह नौकर सबसे पहले उठकर घर का सारा काम कर रहा था। नौकर डॉक्टर जाकिर हुसैन की विनयशीलता से अभिभूत हो गया। जाकिर साहब ने अपने घर के लोगों को समझाया- व्यक्ति के आचरण में निहित विनम्रता का कमाल यही है कि वह सामने वाले व्यक्ति पर बेहद सरलता के साथ अपना प्रभाव डाल देता है। समाज में अपने व्यवहार द्वारा प्रभाव पैदा करना है तो जीवन में विनम्रता को स्थान दें।

Wednesday, June 29, 2016

प्रेममयी भक्ति

बरसाने में एक संत किशोरी जी का भजन करते थे और रोज ऊपर दर्शन करने जाते राधा रानी के महल में ।

उनकी बड़ी निष्ठा ,बड़ी श्रद्धा थी किशोरी जी के चरणों में ।

एक बार उन्होंने देखा की भक्त राधा रानी को पोशाक अर्पित कर रहे थे तो उस महात्मा का भाव भी की मैंने आज तक किशोरी जी को कुछ भी नहीं चढ़ाया ।
और लोग आ रहे है तो कोई फूल चढ़ाता है , कोई भोग लगाता है , कोई पोशाक पहनाता है और मैंने कुछ भी नही दिया , अरे कैसा भगत हूँ ।

तो उस महात्मा ने उसी दिन निश्चय कर लिया की में अपने हाथो से बनाकर राधा रानी को सूंदर पोशाक पहनाउंगा।

ये सोचकर उसी दिन से वो महात्मा तैयारी में लग गए और बहुत प्यारी पोशाक बनाई , पोशाक तैयार होने में एक महीना लगा। कपड़ा लेकर आया , अपने हाथो से गोटा लगाया और बहुत प्यारी पोशाक बनाई।

सूंदर पोशाक जब तैयार हो गई तो वो पोशाक अब लेकर वो ऊपर किशोरी जी के चरणों में अर्पित करने जा रहा थे ।

वो महात्मा मंदिर की आधी सीढियो तक ही पहुँचा होगा तभी बरसाने की एक छोटी सी लड़की उस महात्मा को बोलती है की बाबा ये क्या ले जा रहे हो आप ? आपके हाथ में ये क्या है ?

वो महात्मा बोले की लाली ये में किशोरी जी के लिए पोशाक बनाके उनको पहनाने के लिए ले जा रहा हूँ ।

वो लड़की बोली अरे बाबा राधा रानी पे तो बहोत सारी पोशाक है तो तू ये मोकू दे दे ना ।

तो महात्मा बोले की बेटी तोकू में दूसरी बाजार से दिलवा दूंगा ये तो मै अपने हाथ से बनाकर राधा रानी के लिये लेकर जा रहा हूँ तोकू ओर दिलवा दूँगो ।

लेकिन उस छोटी सी बालिका ने उस महात्मा का दुपट्टा पकड़ लिया बाबा ये मोकू देदे ।

पर सन्त भी जिद करने लगे की दूसरी दिलवाऊंगा ये नहीं दूंगा ।

लेकिन वो बच्ची भी इतनी तेज थी की संत के हाथ से छुड़ाकर पोशाक भागी ,

अब महात्मा तो दुखी हो गए बूढ़े महात्मा अब कहाँ ढूंढे उसको ।

तो वही सीढियो पर बैठकर रोने लगे ओर सन्त वहाँ से निकले तो पूछा महाराज क्यों रो रहे हो ?

तो सारी बात बताई की जैसे-तैसे तो बुढ़ापे में इतना परिश्रम करके ये पोशाक बनाकर लाया राधा रानी को पहनाता पर वासे पहले ही एक छोटी सी लाली लेकर भाग गई तो कहा करूँ में अब ?

वो बाकी संत बोले अरे अब गई तो गई कोई बात नहीं अब कब तक रोते रहोगे चलो ऊपर दर्शन करने ।

रोना बन्द हुआ लेकिन मन उनका उदास था, क्योंकि कामना पूरी नहीं हुई ।

अनमने मन से राधा रानी का दर्शन करने संत जा रहे थे और मन में ये ही सोच रहे है की मुझे लगता है की किशोरी जी की इच्छा नहीं थी ।

शायद राधा रानी मेरे हाथो से बनी पोशाक पहनना ही नहीं चाहती थी ऐसा सोचकर बड़े दुःखी होकर जा रहे है ।

और अब जाकर अंदर खड़े हुए दर्शन खुलने का समय हुआ और जैसे ही श्री राधा जी का दर्शन पट खुले तो वो महात्मा देखते है की जो पोशाक वो बालिका लेकर भागी थी वो ही पोशाक पहनकर मेरी राधा रानी बैठी हुई है ।

ये देखते ही महात्मा की आँखों से आँसू बहने लगे और महात्मा बोले की किशोरी जी में तो आपको देने ही ला रहा था लेकिन आपसे इतना भी सब्र नहीं हुआ मेरे से छीनकर भागी आप ।

तो किशोरी जी ने कहा की बाबा ये केवल वस्त्र नहीं नहीं,
ये केवल पोशाक नहीं है,
इसमें में तो तेरो प्रेम छुपो भयो है और प्रेम को पाने के लिए तो दौड़ना ही पड़ता है , भागना ही पड़ता है ।

भगवान कीमती सामान के नहीं प्रेम की और आकर्षित होते है ।
अपने इष्ट के प्रति प्रेममयी भक्ति ही श्रेष्ठ भक्ति है ।

Tuesday, June 28, 2016

अतिश्रेष्ठ व्यक्ति

एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे, एक दिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला की मुझे अपना खेत उधार दे दीजिये, मैं उसमें खेती करूँगा और खेती करके कमाई करूँगा ....

वह अतिश्रेष्ठ व्यक्ति बहुत दयालु थे ...
उन्होंने उस निर्धन व्यक्ति को अपना खेत दे दिया और साथ में पांच किसान भी सहायता के रूप में खेती करने को दिये और कहा की इन पांच किसानों को साथ में लेकर खेती करो, खेती करने में आसानी होगी ...
इस से तुम और अच्छी फसल की खेती करके कमाई कर पाओगे।

वो निर्धन आदमी ये देख के बहुत खुश हुआ की उसको उधार में खेत भी मिल गया और साथ में काम करने के लिय पांच सहायक किसान भी मिल गये।

लेकिन वो आदमी अपनी इस ख़ुशी में बहुत खो गया और वह पांच किसान अपनी मर्ज़ी से खेती करने लगे और वह निर्धन आदमी अपनी ख़ुशी में डूबा रहा .....
और जब फसल काटने का समय आया तो देखा की फसल बहुत ही ख़राब हुई थी, उन पांच किसानो ने खेत का उपयोग अच्छे से नहीं किया था और ना ही उसमें अच्छे बीज ही डाले थे, जिससे फसल अच्छी हो सके |

जब उस अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति ने अपना खेत वापस माँगा तो वह निर्धन व्यक्ति रोता हुआ बोला की मैं बर्बाद हो गया, मैं अपनी ख़ुशी में डूबा रहा और इन पांचों किसानो को नियंत्रण में ना रख सका और ना ही इनसे अच्छी खेती करवा सका।

अब यहाँ ध्यान दीजियेगा-

वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति हैं - "भगवान" ....

और वह निर्धन व्यक्ति हैं -"हम"

खेत है -"हमारा शरीर"

और वह पांच किसान हैं हमारी इन्द्रियां-:
आँख, कान, नाक,जीभ और मन।

प्रभु ने हमें यह शरीर रुपी खेत अच्छी फसल (कर्म) करने को दिया है और हमें इन पांच किसानो को अर्थात इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रख कर अपनें कर्म करने चाहियें, जिससे जब वो दयालु प्रभु जब ये शरीर वापस मांग कर हमारा हिसाब करें तो हमें रोना ना पड़े।

Sunday, June 26, 2016

बीते हुए दिन

कभी हमारे जहाज भी चला करते थे। हवा में भी। पानी में भी। दो दुर्घटनाएं हुई। सब कुछ डूब गया।
जहाज हवा मे उड़ाना छूट गया। पानी में तैराना छूट गया। एक बार क्लास में हवाई जहाज उड़ाया।
मैडम के पिछबाड़े से टकराया। स्कूल से निकलने की नौबत आ गई। बहुत फजीहत हुई। कसम दिलाई गई।
औऱ जहाज उडा़ना छूट गया। वारिश के मौसम में,मां ने अठन्नी दी। चाय के लिए दूध लाना था।कोई मेहमान आया था। हमने गली की नाली में तैरते अपने जहाज में बिठा दी। तैरते जहाज के साथ हम चल रहे थे।
ठसक के साथ।खुशी खुशी। अचानक तेज बहाब आया। जहाज डूब गया। साथ में अठन्नी भी डूब गई।
ढूंढे से ना मिली। मेहमान बिना चाय पीये चला गया। फिर जमकर ठुकाई हुई। घंटे भर मुर्गा बनाया गया।
औऱ हमारा पानी में जहाज तैराना भी बंद हो गया।  आज प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें उन दिनों की याद दिलाती हैं।  बच्चे ने आठ हजार का मोबाइल गुमाया तो मां बोली, कोई  बात नहीं, पापा दूसरा दिला देंगे।
हमें अठन्नी पर मिली सजा याद आ गई।  फिर भी आलम यह है कि आज भी हमारे सर मां-बाप के
चरणों में श्रद्धा से छुकते हैं। औऱ हमारे बच्चे 'यार पापा,यार मम्मी' कहकर बात करते हैं। हम प्रगतिशील से प्रगतिवान हो गये हैं।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।।

Saturday, June 25, 2016

हूं तो इंसान ही

मैं एक दुकान में खरीददारी कर रहा था, तभी मैंने उस दुकान के कैशियर को एक 5-6 साल की लड़की से
बात करते हुए देखा | कैशियर बोला :~ "माफ़ करना बेटी, लेकिन इस गुड़िया को  खरीदने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|" फिर उस छोटी सी लड़की ने मेरी ओर  मुड़ कर मुझसे पूछा:~
"अंकल,
क्या आपको भी यही लगता है  कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?''  मैंने उसके पैसे गिने  और उससे कहा:~ "हाँ बेटे,
यह सच है कि तुम्हारे पास इस गुड़िया को खरीदने के लिए पूरे पैसे नहीं हैं"| वह नन्ही सी लड़की
अभी भी अपने हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ी थी | मुझसे रहा नहीं गया | इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे
पूछा कि यह गुड़िया वह किसे देना चाहती है? इस पर उसने उत्तर दिया कि यह वो गुड़िया है, जो उसकी बहन को बहुत प्यारी है | और वह इसे, उसके जन्मदिन के लिए उपहार में देना चाहती है | बच्ची ने कहा यह गुड़िया पहले मुझे  मेरी मम्मी को देना है,  जो कि बाद में मम्मी  जाकर मेरी बहन को दे देंगी"| यह कहते-कहते
  उसकी आँखें नम हो आईं थी मेरी बहन भगवान के घर गयी है... और मेरे पापा कहते हैं कि मेरी मम्मी भी जल्दी-ही भगवान से  मिलने जाने वाली हैं| तो, मैंने सोचा कि क्यों ना वो इस  गुड़िया को अपने साथ ले जाकर, मेरी बहन को दे दें...|" मेरा दिल धक्क-सा रह गया था | उसने ये सारी बाते  एक साँस में ही कह डालीं और फिर मेरी ओर देखकर बोली - "मैंने पापा से कह दिया है कि मम्मी से  कहना कि वो अभी ना जाएँ|  वो मेरा,
दुकान से लौटने तक का इंतजार करें|  फिर उसने मुझे एक बहुत प्यारा-  सा फोटो दिखाया जिसमें वह खिलखिला कर हँस  रही थी |  इसके बाद उसने मुझसे कहा:~ "मैं चाहती हूँ कि मेरी मम्मी, मेरी यह फोटो भी अपने साथ ले जायें, ताकि मेरी बहन मुझे भूल नहीं पाए| मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती हूँ और मुझे नहीं लगता कि वो मुझे ऐसे छोड़ने के लिए राजी होंगी, पर पापा कहते हैं कि  मम्मी को मेरी छोटी बहन के साथ रहने के लिए जाना ही पड़ेगा क्योंकि वो बहुत छोटी है, मुझसे भी छोटी है | उसने धीमी आवाज मैं बोला। इसके बाद फिर से उसने उस  गुड़िया को ग़मगीन आँखों-से खामोशी-से देखा|  मेरे हाथ जल्दी से अपने बटुए ( पर्स ) तक
पहुँचे और मैंने उससे कहा:~ "चलो एक बार  और गिनती करके देखते हैं  कि तुम्हारे पास गुड़िया के लिए पर्याप्त पैसे हैं या नहीं?'' उसने कहा-:"ठीक है| पर मुझे लगता है शायद मेरे पास पूरे पैसे हैं"| इसके बाद मैंने
उससे नजरें बचाकर  कुछ पैसे उसमें जोड़ दिए और फिर हमने उन्हें गिनना शुरू किया | ये पैसे उसकी
गुड़िया के लिए काफी थे यही नहीं, कुछ पैसे अतिरिक्त बच भी गए थेl | नन्ही-सी लड़की ने कहा:~ "भगवान्
का लाख-लाख शुक्र है मुझे इतने सारे पैसे देने के लिए!  फिर उसने  मेरी ओर देख कर कहा कि मैंने कल
रात सोने से पहले भगवान् से  प्रार्थना की थी कि मुझे इस गुड़िया को खरीदने के लिए पैसे दे देना,  ताकि मम्मी इसे मेरी बहन को दे सकें |  और भगवान् ने मेरी बात सुन ली| इसके अलावा मुझे मम्मी के लिए एक सफ़ेद गुलाब खरीदने के लिए भी पैसे चाहिए थे, पर मैं भगवान से इतने ज्यादा पैसे मांगने की हिम्मत नहीं कर पायी थी पर भगवान् ने तो मुझे इतने पैसे दे दिए हैं कि अब मैं गुड़िया के साथ-साथ एक सफ़ेद गुलाब भी खरीद सकती हूँ ! मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत पसंद हैं| "फिर हम वहा से निकल गए | मैं अपने दिमाग से उस छोटी- सी लड़की को  निकाल नहीं पा रहा था | फिर,मुझे दो दिन पहले  स्थानीय समाचार पत्र में छपी एक
घटना याद आ गयी जिसमें  एक शराबी  ट्रक ड्राईवर के बारे में लिखा था| जिसने नशे की हालत में मोबाईल फोन पर  बात करते हुए एक कार-चालक  महिला की कार को  टक्कर मार दी थी, जिसमें उसकी 3 साल की बेटी की
घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गयी थी  और वह महिला कोमा में  चली गयी थी| अब एक महत्वपूर्ण निर्णय उस परिवार को ये लेना था कि, उस महिला को जीवन रक्षक मशीन पर बनाए रखना है अथवा नहीं? क्योंकि वह कोमा से बाहर आकर, स्वस्थ हो सकने की अवस्था में नहीं थी | दोनों पैर , एक हाथ,आधा चेहरा कट चुका था । आॅखें जा चुकी थी । "क्या वह परिवार इसी छोटी-  लड़की का ही था?" मेरा मन रोम-रोम काँप उठा |
मेरी उस नन्ही लड़की के साथ हुई मुलाक़ात के 2 दिनों बाद मैंने अखबार में  पढ़ा कि उस महिला को बचाया नहीं जा सका,  मैं अपने आप को रोक नहीं सका और अखबार  में दिए पते पर जा पहुँचा,  जहाँ उस महिला को  अंतिम दर्शन के लिए  रखा गया था वह महिला श्वेत धवल कपड़ों में थी- अपने हाथ में एक सफ़ेद गुलाब और उस छोटी-सी लड़की का वही हॅसता हुआ फोटो लिए हुए और उसके सीने पर रखी हुई  थी -  वही गुड़िया |
मेरी आँखे नम हो गयी । दुकान में मिली बच्ची और सामने मृत ये महिला से मेरा तो कोई वास्ता नही था लेकिन हूं तो इंसान ही ।ये सब देखने के बाद अपने आप को सभांलना एक बडी चुनौती थी
मैं नम आँखें लेकर वहाँ से लौटा

Thursday, June 23, 2016

एक पैग़ाम

मैं एक दुकान में  खरीददारी कर रहा था,  तभी मैंने उस दुकान के कैशियर को एक 5-6  साल की लड़की  से
बात करते हुए देखा | कैशियर बोला  "माफ़ करना बेटी, लेकिन इस गुड़िया को खरीदने के लिए तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं|" फिर उस छोटी सी लड़की ने मेरी ओर मुड़ कर मुझसे पूछा:~ "अंकल,  क्या आपको भी यही लगता है  कि मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं?'' मैंने उसके पैसे गिने  और उससे कहा:~ "हाँ बेटे, यह सच है कि तुम्हारे पास इस गुड़िया को खरीदने के लिए पूरे पैसे  नहीं हैं"|  वह नन्ही सी लड़की  अभी भी अपने हाथों में गुड़िया थामे हुए खड़ी थी | मुझसे रहा नहीं गया |  इसके बाद मैंने उसके पास जाकर उससे  पूछा कि यह गुड़िया वह किसे  देना चाहती है?  इस पर उसने उत्तर दिया कि यह वो गुड़िया है, जो उसकी बहन को बहुत प्यारी है | और वह इसे, उसके जन्मदिन के लिए उपहार में देना चाहती है |  बच्ची ने कहा यह गुड़िया पहले मुझे  मेरी मम्मी को देना है, जो कि बाद में मम्मी  जाकर मेरी बहन को दे देंगी"| यह कहते-कहते उसकी आँखें नम हो आईं थी मेरी बहन भगवान के घर गयी है... और मेरे पापा कहते हैं  कि मेरी मम्मी भी जल्दी-ही भगवान से मिलने जाने वाली हैं| तो, मैंने सोचा कि क्यों ना वो इस  गुड़िया को अपने साथ ले जाकर, मेरी बहन  को दे दें...|" मेरा दिल धक्क-सा रह गया था | उसने ये सारी बातें  एक साँस में ही कह डालीं
और फिर मेरी ओर देखकर बोली -  "मैंने पापा से कह दिया है कि मम्मी से  कहना कि वो अभी ना जाएँ|
वो मेरा, दुकान से लौटने तक का इंतजार  करें| फिर उसने मुझे एक बहुत प्यारा- सा फोटो दिखाया जिसमें वह  खिलखिला कर हँस रही थी | इसके बाद उसने मुझसे कहा: "मैं चाहती हूँ कि मेरी मम्मी,  मेरी यह
फोटो भी अपने साथ ले जायें,  ताकि मेरी बहन मुझे भूल नहीं पाए|  मैं अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती हूँ और  मुझे नहीं लगता कि वो मुझे ऐसे छोड़ने के लिए राजी होंगी,  पर पापा कहते हैं कि   मम्मी को मेरी छोटी  बहन के साथ रहने के लिए जाना ही पड़ेगा क्योंकि वो बहुत छोटी है, मुझसे भी छोटी है | उसने धीमी आवाज मैं बोला। इसके बाद फिर से उसने उस  गुड़िया को ग़मगीन आँखों-से खामोशी-से  देखा|  मेरे हाथ जल्दी से  अपने बटुए ( पर्स ) तक  पहुँचे और मैंने उससे कहा:~ "चलो एक बार  और गिनती करके देखते हैं
कि तुम्हारे पास गुड़िया के लिए पर्याप्त पैसे हैं या नहीं?'' उसने कहा-:"ठीक है|  पर मुझे लगता है  शायद मेरे पास पूरे पैसे हैं"|  इसके बाद मैंने  उससे नजरें बचाकर कुछ पैसे  उसमें जोड़ दिए और फिर हमने उन्हें
गिनना शुरू किया | ये पैसे उसकी  गुड़िया के लिए काफी थे यही नहीं, कुछ पैसे अतिरिक्त बच भी गए थेl |
नन्ही-सी लड़की ने कहा:~
"
भगवान्
का लाख-लाख शुक्र है
मुझे इतने सारे पैसे
देने के लिए!

फिर उसने  मेरी ओर देख कर  कहा कि मैंने कल  रात सोने से पहले भगवान् से  प्रार्थना की थी कि मुझे इस  गुड़िया को खरीदने के  लिए पैसे दे देना,  ताकि मम्मी इसे मेरी बहन को दे सकें | और भगवान् ने मेरी बात सुन ली|  इसके अलावा मुझे मम्मी के लिए एक सफ़ेद गुलाब खरीदने के लिए भी पैसे चाहिए थे, पर मैं भगवान से  इतने ज्यादा पैसे मांगने  की हिम्मत नहीं कर पायी थी  पर भगवान् ने तो  मुझे इतने पैसे दे दिए हैं  कि अब मैं गुड़िया के साथ-साथ एक सफ़ेद  गुलाब भी खरीद सकती हूँ ! मेरी मम्मी को सफेद गुलाब बहुत पसंद हैं| "फिर हम वहा से निकल गए | मैं अपने दिमाग से उस छोटी- सी लड़की को
निकाल नहीं पा रहा था | फिर,मुझे दो दिन पहले  स्थानीय समाचार पत्र में छपी एक घटना याद गयी
जिसमें एक शराबी ट्रक ड्राईवर के बारे में लिखा था| जिसने नशे की हालत में मोबाईल फोन पर बात करते हुए एक कार-चालक  महिला की कार को टक्कर मार दी थी,  जिसमें उसकी 3 साल  की बेटी की  घटनास्थल पर ही  मृत्यु हो गयी थी  और वह महिला कोमा में चली गयी थी| अब एक महत्वपूर्ण निर्णय उस परिवार को ये लेना था कि,  उस महिला को जीवन रक्षक मशीन पर बनाए रखना है अथवा नहीं?
क्योंकि वह कोमा से बाहर आकर, स्वस्थ हो सकने की अवस्था में नहीं थी | दोनों पैर , एक हाथ,आधा चेहरा कट चुका था आॅखें जा चुकी थी   "क्या वह परिवार इसी छोटी- लड़की का ही था?" मेरा मन रोम-रोम काँप उठा |  मेरी उस नन्ही लड़की के साथ हुई मुलाक़ात के 2 दिनों बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि उस महिला को बचाया नहीं जा सका, मैं अपने आप को रोक नहीं सका और अखबार में दिए पते पर जा पहुँचा,
जहाँ उस महिला को  अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था  वह महिला श्वेत धव कपड़ों में थी- अपने हाथ में
एक सफ़ेद गुलाब और उस छोटी-सी लड़की का वही हॅसता हुआ फोटो लिए हुए और उसके सीने पर रखी हुई
थी - वही गुड़िया | मेरी आँखे नम हो गयी दुकान में मिली बच्ची और सामने मृत ये महिला से मेरा तो कोई वास्ता नही था लेकिन हूं तो इंसान ही ।ये सब देखने के बाद अपने आप को सभांलना एक बडी चुनौती थी मैं नम आँखें लेकर वहाँ से लौटा|  उस नन्ही-सी लड़की का  अपनी माँ और  उसकी बहन के लिए जो बेपनाह अगाध प्यार था,  वह शब्दों में  बयान करना मुश्किल है | और ऐसे में, एक शराबी चालक ने अपनी घोर लापरवाही से क्षण-भर में उस लड़की से उसका सब कुछ छीन लिया था....!!! ये दुख रोज कितने परिवारों की सच्चाइ बनता है मुझे पता नहीं!!!!  शायद ये मार्मिक घटना सिर्फ एक पैग़ाम देना चाहती है कि:::::::::::::
कृपया~
कभी भी शराब
पीकर और
मोबाइल पर बात
करते समय
वाहन ना चलायें
क्यूँकि आपका आनन्द
किसी के लिए
श्राप साबित हो सकता हैँ।