Thursday, May 16, 2019

स्त्री की चाहत

एक विद्वान को फांसी लगने वाली थी।

राजा ने कहा, आपकी जान बख्श दुंगा यदि सही उत्तर बता देगा तो

*प्रशन : आखिर स्त्री चाहती क्या है ??*

विद्वान ने कहा, मोहलत मिले तो पता कर के बता सकता हूँ।

राजा ने एक साल की मोहलत दे दी और साथ में बताया कि अगर उतर नही मिला तो फांसी पर चढा दिये जाओगे,

विद्वान बहुत घूमा बहुत लोगों से मिला पर कहीं से भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।

आखिर में किसी ने कहा दूर एक जंगल में एक चुड़ैल रहती है वही बता सकती है।

चुड़ैल ने कहा कि मै इस शर्त पर बताउंगी  यदि तुम मुझसे शादी करो।

उसने सोचा, जान बचाने के लिए शादी की सहमति देदी।

शादी होने के बाद चुड़ैल ने कहा, चूंकि तुमने मेरी बात मान ली है, तो मैंने तुम्हें खुश करने के लिए फैसला किया है कि 12 घन्टे मै चुड़ैल और 12 घन्टे खूबसूरत परी बनके रहूंगी,
अब तुम ये बताओ कि दिन में चुड़ैल रहूँ या रात को।
उसने सोचा यदि वह दिन में चुड़ैल हुई तो दिन नहीं कटेगा, रात में हुई तो रात नहीं कटेगी।

अंत में उस विद्वान कैदी ने कहा, जब तुम्हारा दिल  करे परी बन जाना, जब दिल करे चुड़ैल बनना।

ये बात सुनकर चुड़ैल ने प्रसन्न हो के कहा, चूंकि तुमने मुझे अपनी मर्ज़ी की  करने की छूट देदी है, तो मै हमेशा ही परी बन के रहा करूँगी।

यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है।

*स्त्री अपनी मर्जी का करना चाहती है।*

*यदि स्त्री को अपनी मर्ज़ी का करने देंगे तो*,

*वो परी बनी रहेगी वरना चुड़ैल*

Saturday, April 20, 2019

बादशाह का रफूगर

कहते हैं एक बादशाह ने रफूगर रखा हुआ था, 

जिसका काम कपड़ा रफू करना नहीं, बातें रफू करना था.!!

दरसल वो बादशाह की हर बात की कुछ ऐसी वज़ाहत करता के सुनने वाले सर धुनने लगते के वाकई बादशाह सलामत ने सही फरमाया,

एक दिन बादशाह दरबार लगाकर अपनी जवानी के शिकार की कहानी सुनकर रियाया को मरऊब कर रहे थे,

जोश में आकर कहने लगे के एकबार तो ऐसा हुआ मैंने आधे किलोमीटर से निशाना लगाकर जो एक हिरन को तीर मारा तो तीर सनसनाता हुआ गया और हिरन की बाईं आंख में लगकर दाएं कान से होता हुआ पिछले पैर की दाईं टांग के खुर में जा लगा,

बादशाह को तवक़क़ो थी के अवाम दाद देंगे लेकिन अवाम ने कोई दाद नहीं दी,

वो बादशाह की इस बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थे,

इधर बादशाह भी समझ गया ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी छोड़ दी.. और अपने रफूगर की तरफ देखने लगा,

रफूगर उठा और कहने लगा.. हज़रात मैं इस वाक़ये का चश्मदीद गवाह हूँ,

दरसल बादशाह सलामत एक पहाड़ी के ऊपर खड़े थे हिरन काफी नीचे था,

हवा भी मुआफ़िक चल रही थी वरना तीर आधा किलोमीटर कहाँ जाता है..

जहां तक ताअल्लुक़ है "आंख "कान और "खुर का, तो अर्ज़ करदूँ जिस वक्त तीर लगा था उस वक़्त हिरन दाएं खुर से दायाँ कान खुजला रहा था,

इतना सुनते ही अवाम ने दादो तहसीन के लिए तालियां बजाना शुरू कर दीं

अगले दिन रफूगर बोरिया बिस्तरा उठाकर जाने लगा..

बादशाह ने परेशान होकर पूछा कहाँ चले?


Sunday, April 14, 2019

कंजक पूजन

मुहल्ले की औरतें कंजक पूजन के लिए तैयार थी,

मिली नहीं कोई लड़की, उन्होंने हार अपनी मान ली।

फिर किसी ने बताया, अपने मोहल्ले के है बाहर जी,

बारह बेटियों का बाप,  है सरदार जी।

सुन कर उसकी बात , हसकर मैंने यह कह दिया,


बेटे के चक्कर में, सरदार, बेटियां बारह कर के बैठ गया।

पड़ोसियों को साथ लेकर, जा पुहाचां उसके घर पे,

सत श्री अकाल कहा, मैंने प्रणाम उसे कर के।

कंजक पूजन के लिए आपकी बेटियां घर लेकर जानी है,

आपकी पत्नी ने कंजके बिठा ली, या बिठानी है ?

सुन के मेरी बात बोला , कोई गलतफहमी हुई है।

किसकी पत्नी जी ,  मेरी तो अभी शादी नहीं हुई है।

सुन के उसकी बात, मै तो चक्करा गया,

बातों बातों में वो मुझे क्या क्या बता गया।

मत पूछो इनके बारे में, जो बातें मैंने छुपाई है,

क्या बताओ आपको, की मैंने कहां कहां से उठाई है।

मां बाप इनके हैवानियत की हदें सब तोड़ गए,

मन्दिर मस्ज़िद कई हस्पतालों में थे छोड़ गए।

बड़े बड़े दरिंदे है, अपने इस जहान में,

यह जो दो छोटियां है, मिली थी मुझे कूड़ेदान में।

इसका बाप कितना निर्दयी होगा, जिसे दया ना आई नन्ही सी जान पे,

हम मुर्दों को लेकर जाते हैं, वो जिन्दा ही छोड़ गया इसे श्मशान में।

यह जो बड़ी प्यारी सी है, थोड़ा लंगड़ा के चल रही थी,

मैंने देखा के तलाब के पास एक गाड़ी खड़ी थी।

बैग फेक भगा ली गाड़ी, जैसे उसे जल्दी बड़ी थी।

शायद उसके पीछे कोई आफ़त पड़ी थी।

बैग था आकर्षित, मैंने लालच में  उठाया था,

देखा जब खोल के, आंसू रोक नहीं पाया था।

जबरन बैग में डालने के लिए, उसने पैर इसके मोड़ दिये,

शायद उसे पता नहीं चला, की उसने कब पैर इसके तोड़ दिये।

सात साल हो गए इस बात को, ये दिल पे लगा कर बैठी है,

बस गुम सुम सी रहती हैं, दर्द सीने में छुपा कर बैठी है।

सुन के बात सरदार जी की, सामने आया सब पाप था,

लड़की के सामने जो खड़ा था कोई और नहीं उसका बाप था।

देखा जब पडोसियों के तरफ़, उनके चेहरे के रंग बताते थे,     

वो भी किसी ना किसी लड़की के, मुझे मां बाप नजर आते थे।

दिल पे पत्थर रख कर , लड़कियों को घर लेकर आ गया,

बारी बारी सब को हमने पूजा के लिए बिठा दिया।

जिन हाथों ने अपने हाथ से , तोड़े थे जो पैर जी,

टूटे हुए पैरों को छू कर, मांग रहे थे ख़ैर जी।

क्यों लोग खुद की बेटी मार कर,

दूसरों की पूजना चाहते हैं।


कुछ लोग कंजक पूजन ऐसे ही मनाते हैं


Sunday, March 31, 2019

कान्हा जी से विरक्ति

गौरी रोटी बनाते-बनाते कान्हा नाम का जाप कर रही थी।
अलग से जाप करने का समय कहां निकाल पाती थी बेचारी,
तो बस काम करते-करते ही कान्हा का नाम जप लिया करती थी।
एकाएक धड़ाम से जोरों की आवाज हुई और साथ में एक दर्दनाक चीख।
कलेजा धक से रह गया जब आंगन में दौड़कर‌ झांका।
आठ साल का उसका बेटा चुन्नू चित्त पड़ा था खून से लथपथ। 
मन हुआ दहाड़ मारकर रोये।
परंतु घर में उसके अलावा कोई था नहीं,
तो रोकर भी किसे बुलाती।
फिर चुन्नू को संभालना भी तो था।
दौड़ कर नीचे गई तो देखा चुन्नू आधी बेहोशी में मां-मां की रट लगाए हुए है।
अंदर की ममता ने आंखों से निकलकर अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया।
फिर दस दिन पहले करवाये अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बावजूद ना जाने कहां से इतनी शक्ति आ गयी,
कि चुन्नू को गोद मे उठाकर पड़ोस के नर्सिंग होम की ओर दौड़ी।
रास्ते भर कान्हा जी को जी भर कर कोसती रही और बड़-बड़ करती रही- हे कान्हा जी ! क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा,
जो मेरे ही बच्चे को तकलीफ दी।
खैर! डॉक्टर साहब मिल गए और समय पर इलाज होने पर चुन्नू बिल्कुल ठीक हो गया।
चोटें गहरी नहीं थी बस ऊपरी थीं,
तो कोई खास परेशानी नहीं हुई।
रात को घर पर जब सब टीवी देख रहे थे,
तब गौरी का मन बेचैन था।
कान्हा जी से विरक्ति होने लगी थी।
एक मां की ममता कान्हा जी को चुनौती दे रही थी।
उसके दिमाग में दिन की सारी घटना चलचित्र की तरह चलने लगी।
कैसे चुन्नू आंगन में गिरा,
कि एकाएक उसकी‌ आत्मा सिहर उठी।
कल ही तो पुराने लोहे के पाइप का टुकड़ा आंगन से हटवाया था,
और वो ठीक उसी जगह था जहां चिंटू गिरा पड़ा था।
अगर कल मिस्त्री न आया होता, तो?
उसका हाथ अब अपने पेट की तरफ गया,
जहां ऑपरेशन के टांके अभी हरे ही थे।
आश्चर्य हुआ कि उसने बीस-बाइस किलो के चुन्नू को उठाया कैसे?
कैसे वो आधा किलोमीटर तक दौड़ती चली गयी?
फूल सा हल्का लग रहा था चुन्नू।
वैसे तो वो कपड़ों की बाल्टी तक छत पर नहीं ले जा पाती थी।
फिर उसे ख्याल आया कि डॉक्टर साहब तो दो बजे तक ही रहते हैं,
पर जब वो पहुंची थी तो साढ़े तीन बज रहे थे।
उसके जाते ही तुरंत इलाज हुआ,
मानो किसी ने डाॅक्टर साहब को रोक रखा था।
उसका कान्हा जी की श्रद्धा में झुक गया।
अब वो सारा खेल समझ चुकी थी।
मन ही मन कान्हा जी से अपने शब्दों के लिए क्षमा मांगी।
टीवी पर प्रवचन आ रहा था,
कान्हा जी कहते हैं-
मैं तुम्हारे आने वाले संकट को रोक नहीं सकता,
लेकिन तुम्हें इतनी शक्ति दे सकता हूँ,
कि तुम आसानी से उन्हें पार कर सको,
और तुम्हारी राह आसान कर सकता हूं।
तुम बस परमार्थ के मार्ग पर चलते रहो ,फिर
कान्हा जी का जाप करते-करते अश्रुओं की धारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी .. उसके अंतर में पछतावा और सच्ची तड़फ थी ... उसकी रूह ऊपर चढ़ गई...
गौरी ने अंतर में झांक कर देखा,
कान्हा जी मुस्कुरा रहे थे. !!

Friday, March 29, 2019

दान का महत्व

एक बार द्रोपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी। 

भोर का समय था तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी.

साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोके से उड़कर पानी मे चली गयी और बह गयी. 

सँयोगवस साधु ने जो लँगोटी पहनी थी वो भी फटी हुई थी. साधु सोच में पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए थोडी देर में सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड़ बढ़ जाएगी. 

साधु तेजी से पानी से बाहर आया और झाड़ी मे छिप गया. 

द्रोपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साड़ी जो पहन रखी थी उसमे से आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी और उसे आधी साड़ी देते हुए बोली, 

तात मै आपकी परेशानी समझ गयी इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए.

साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया क़ि जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान् तुम्हारी लाज बचाएगें. 

और जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रोपदी की करुण पुकार नारद जी ने भगवान् तक पहुचायी तो भगवान् ने कहा, 

कर्मो के बदले मेरी कृपा बरसती है क्या कोई पुण्य है द्रोपदी के खाते मे ? 

जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब में मिला जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ गया था जिसको चुकता करने भगवान् पहुंच गये द्रोपदी की मदद करने, 

दुस्सासन चीर खीचता गया और हज़ारों गज कपड़ा बढता गया.

इन्सान जैसा कर्म करता है परमात्मा उसे वैसा ही उसे लौटा देता है.!!

Monday, March 25, 2019

हमारे परिधान

तन्वी को सब्जी मण्डी जाना था..
उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मण्डी की ओर चल पड़ी...
तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी : —
'कहाँ जायेंगी माता जी...?''
तन्वी ने ''नहीं भैय्या'' कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया.
अगले दिन 
तन्वी अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी...
तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :—
''बहनजी चन्द्रनगर जाना है क्या...?''
तन्वी ने मना कर दिया...
पास से गुजरते उस ऑटोवाले को देखकर
तन्वी पहचान गयी कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था.
आज तन्वी को 
अपनी सहेली के घर जाना था.
वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो की प्रतीक्षा
करने लगी.
तभी एक ऑटो आकर रुका :—
''कहाँ जाएंगी मैडम...?'' 
तन्वी ने देखा 
ये वो ही ऑटोवाला है
जो कई बार इधर से गुज़रते हुए उससे पूछता रहता है चलने के लिए..
तन्वी बोली :—
''मधुबन कॉलोनी है ना सिविल लाइन्स में, वहीँ जाना है.. चलोगे...?''
ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला :— 
''चलेंगें क्यों नहीं मैडम..आ जाइये...!"
ऑटो वाले के ये कहते ही तन्वी ऑटो में बैठ गयी.
ऑटो स्टार्ट होते ही तन्वी ने जिज्ञासावश उस ऑटोवाले से पूछ ही लिया : —
''भैय्या एक बात बताइये...?
दो-तीन दिन पहले 
आप मुझे माताजी कहकर
चलने के लिए पूछ रहे थे,
कल बहनजी और आज मैडम, ऐसा क्यूँ...?''
ऑटोवाला थोड़ा झिझककर शरमाते हुए बोला :—
''जी सच बताऊँ...
आप चाहे जो भी समझेँ 
पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है.
आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थीं तो एकाएक मन में आदर के भाव जागे,
क्योंकि,
मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है.
इसीलिए मुँह से 
स्वयं ही *"माताजी'"* निकल गया.
कल आप 
सलवार-कुर्ती में थीँ, 
जो मेरी बहन भी पहनती है.
इसीलिए आपके प्रति
*स्नेह का भाव* मन में जागा और
मैंने *''बहनजी''* कहकर आपको आवाज़ दे दी.
आज आप जीन्स-टॉप में हैं, और *इस लिबास में माँ या*
*बहन के भाव तो नहीँ जागते*.
इसीलिए मैंने 
आपको *"मैडम"* कहकर पुकारा.
*कथासार*
हमारे परिधान का न केवल हमारे विचारों पर वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करता है.
टीवी, फिल्मों या औरों को देखकर पहनावा ना बदलें, बल्कि विवेक और संस्कृति की ओर भी ध्यान दें.

Sunday, March 24, 2019

दिमाग का उपयोग

गधे ने बाघ से कहा!   घास नीले रंग की होती है ! 
  बाघ ने कहा!   नहीं  घास का रंग हरा है ! 
 दोनों के बीच चर्चा तेज हो गई।  चर्चा विवाद का रूप ले ही रही थी ,  कि किसी ने सुझाया ,  क्योंना जंगल के राजा से निर्णय करवाते ! 
 दोनों ही अपने-अपने तर्को पर दृढ़ता से अड़े थे !    इस विवाद को 

  समाप्त करने के लिए, दोनों जंगल के राजा शेर के पास गए !  

 पशु साम्राज्य के बीच में, सिंहासन पर एक शेर बैठा था !  
  बाघ के कुछ कहने से पहले ही गधा चिल्लाने लगा ! ! 
   महाराज! !    
  घास नीला है ना?  
  शेर ने कहा, 
   'हाँ! 
   घास नीली है। 

गधा बोला !    ये बाघ नहीं मान रहा!    उसे ,  ठीक से इसकी  सजा दी जाए।   
  राजा ने घोषणा की !   
 " बाघ को एक साल की जेल होगी " राजा का फैसला गधे ने सुना , और वह पूरे जंगल में खुशी से झूमता फिरे , कि   
 " बाघ को एक साल की जेल की सजा सुनाई गई " ! ! 

 बाघ शेर के पास गया  और पूछा ! !    
  क्यों महाराज ?    घास हरी है ,  
  क्या यह सही नहीं है?? ?  
  शेर ने कहा !    हाँ!    घास हरी है !  मगर . .  तुम को  सज़ा !   उस मूर्ख , गधे के साथ बहस करने केलिये दी गई हैं ! ! . . .   आप जैसे बहादुर और बुद्धिमान जीव , ने , गधे से बहस की ! ! !  
  और निर्णय कराने ,  
  मेरे पास , चले आये  ! ! ! 

कहानी का सार ! ? ! 
गधों से , बहस ना ,  करें !    गधों के जोर जोर से चोर चोर चिल्लाने से चौकीदार चोर नही हो जाता अपने दिमाग का उपयोग करे