Thursday, October 11, 2018

दानें दानें पर लिखा हैं खाने वाले का नाम

एक' सेठ "कृष्ण" जी का परम भक्त था, निरंतर उनका जाप, और सदैव उनको अपने दिल में बसाए रखता था, 
वो रोज स्वादिष्ट पकवान बना कर कृष्ण जी की मंदिर निकलता पर रास्तें में ही उसे नींद आ जाती और उसके पकवान चोरी हो जाते, 
वहाँ बहुत दुखी होता और कान्हा से शिकायत करते हुये कहता हे_राधे 
ऐसा क्यूँ होता हैं
मैं आपको भोग क्यू नही लगा पाता हूँ
कान्हा कहते हे_वत्स दानें_दानें पे लिखा हैं खाने वाले का नाम, वो मेरे नसीब में नही हैं, इसलिए मुज तक नही पहुंचता, 
सेठ थोड़ा गुस्सें से कहता हैं ऐसा नही हैं, प्रभु कल मैं आपको भोग लगाकर ही रहूंगा आप देख लेना, और सेठ चला जाता हैं...

...दूसरे दिन सेठ सुबह_सुबह जल्दी नहा धोकर तैयार हो जाता हैं, और अपनी पत्नी से चार डब्बें भर बढिया_बढिया स्वादिष्ट पकवान बनाता हैं, और उसे लेकर मंदिर के लिए निकल पड़ता हैं, और रास्तें भर सोचता हैं, आज जो भी हो जाए सोऊगा नही कान्हा को भोग लगाकर रहूंगा,

...मंदिर के रास्तें में ही उसे एक भूखा बच्चा दिखाई देता हैं, और वो सेठ के पास आकर हाथ फैलातें हुये कुछ देने की गुहार लगाता हैं, सेठ उसे ऊपर से नीचे तक देखता हैं एक 5_6 साल का बच्चा हड्डियों का ढाँचा उसे उस पर तरस आ जाता हैं और वो एक लड्डू निकाल के उस बच्चें को दे देता हैं,
जैसे ही वहाँ उस बच्चें को लड्डू देता हैं, बहुत से बच्चों की भीड़ लग जाती हैं, ना जाने कितने दिनो के खाए पीए नही, सेठ को उन पर करूणा आ जाती है उन सब को पकवान बाँटने लगता हैं, देखते ही देखते वो सारे पकवान बाँट देता हैं, फिर उसे याद आता हैं, आज तो मैंने राधें को भोग लगाने का वादा किया था, पर मंदिर पहुंचने से पहले ही मैंने भोग खत्म कर दिया, अधूरा सा मन लेकर वहाँ मंदिर पहुँच जाता हैं, और कान्हा की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े बैठ जाता हैं...

"कान्हा प्रकट होते हैं और सेठ को चिढ़ाते हुये कहते हैं, लाओ जल्दी लाओ मेरा भोग मुजे बहुत भूख लगी हैं, मुजे पकवान खिलाओं,
सेठ सारा कम्र कान्हा को बता देता हैं, कान्हा मुस्कुराते हुये कहते हैं, मैंने तुमसे कहा था ना, दानें_दानें पर लिखा हैं खानें वाले का नाम, जिसका नाम था उसने खा लिया तुम क्यू व्यर्थ चिंता करते हो, 
सेठ कहता हैं, प्रभु मैंने बड़े अंहकार से कहा था, आज आपको भोग लगाऊंगा पर मुजे उन बच्चों की करूणा देखी नही गयी, और मैं सब भूल गया,
कान्हा फिर मुस्कुराते और कहते हैं, चलो आओ मेरे साथ, और वो सेठ को उन बच्चों के पास ले जाते हैं जहाँ सेठ ने उन्हें खाना खिलाया था, और सेठ से कहते हैं जरा देखो, कुछ नजर आ रहा हैं...

"सेठ" की ऑखों से ऑसूओं का सैलाब बहने लगता हैं, स्वंय बाँके_बिहारी लाल, उन भूखे बच्चों के बीच में खाना के लिए लड़ते नजर आते हैं, कान्हा कहते हैं वही वो पहला बच्चा हैं जिसकी तुमने भूख मिटाई, मैं हर जीव में हूँ, अलग_अलग भेष में, अलग_अलग कलाकारी में, अगर तुम्हें लगें मैं ये काम इसके लिए कर रहा था, पर वो दूसरे के लिए हो जाए, तो उसे मेरी ही इच्छा समझना, क्यूकि मैं तो हर कही हूँ, बस दानें नसीब की जगह से खाता हूँ, जिस_जिस जगह नसीब का दाना हो वहाँ पहुँच जाता हूँ, फिर इसको तुम क्या कोई भी नही रोक सकता, क्यूकि नसीब का दाना, नसीब वाले तक कैसे भी पहुँच जाता हैं, चाहें तुम उसे देना चाहों या ना देना चाहों अगर उसके नसीब का हैं, तो उसे प्राप्त जरूर होगा....

"सेठ" कान्हा के चरणों में गिर जाता हैं,
और कहता हैं आपकी माया, आप ही जानें, प्रभु मुस्कुराते हैं और कहते हैं कल मेरा भोग मुजे ही देना दूसरों को नही, प्रभु और भक्त हंसने लगते हैं.....!!

"आप लोगो के भी साथ ऐसा कई बार हुआ होगा मित्रों, किसी और का खाना, या कोई और चीज किसी और को मिल गयी, पर आप कभी इस पर गुस्सा ना करें, ये सब प्रभु की माया हैं, उसकी हर इच्छा में उनका धन्यवाद करें".

Tuesday, October 9, 2018

दौड़

एक दस वर्षीय लड़का प्रतिदिन अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर करने जाता था। एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पर लगी उस झंडी को छू लेगा वह दौड़ जीत जाएगा।”
 पिताजी तैयार हो गए। दूरी अधिक थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना आरंभ किया।
कुछ देर दौड़ने के बाद ही पिताजी अचानक रुक गए।
 “क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
 “नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ”, पिताजी बोले।
 लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, लेकिन यदि मैं रुक गया तो दौड़ हार जाऊँगा…”, और यह कहता हुआ वह तेज़ी से आगे भागा।
पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे़, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का अनुभव हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके समीप आने लगे थे।
 लड़के के पैरों में कष्ट देख पिताजी पीछे से चिल्लाए, “क्यों नहीं तुम भी अपने जूते में से कंकड़ निकाल लेते?”
 “मेरे पास इसके लिए समय नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा। कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।
चुभते कंकडों की कारण लड़के का कष्ट बहुत बढ़ चुका था और अब उससे चला भी नहीं जा रहा था। वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता।”
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आए और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था। वे उसे झटपट घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
 जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने ने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था न कि पहले अपने कंकडों को निकाल लो और फिर दौड़ो।”
 “मैंने सोचा यदि मैं रुका तो दौड़ हार जाऊँगा।” बेटा बोला।
 “ऐसा नही है बेटा, यदि हमारे जीवन में कोई समस्या आती है तो हमें उसे यह कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है। वास्तव में होता क्या है, जब हम किसी समस्या की अनदेखी करते हैं तो वह धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितनी हानि पहुँचा सकती थी उससे कहीं अधिक हानि पहुँचा देती है। तुम्हें कंकड़ निकालने में अधिक से अधिक एक मिनट का समय लगता पर अब उस एक मिनट के बदले तुम्हें एक सप्ताह तक पीढ़ा सहनी होगी।” पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
 मित्रों, हमारा जीवन तमाम ऐसे कंकडों से भरा हुआ है, कभी हम अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर परेशान होते हैं तो कभी हमारे रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है तो कभी हमें अपने साथ काम करने वाले सहकर्मी से समस्या होती है।
 आरंभ में ये समस्याएँ छोटी प्रतीत होती हैं और हम इनके बारे में बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा होता जाता है। जैसे कोई ऋण जिसे हम समय रहते एक हज़ार रुपये देकर चुका सकते थे उसके लिए बाद में 5000 रूपये चाहिए होते हैं… रिश्ते की जिस कड़वाहट को हम ‘खेद है’ कहकर दूर कर सकते थे वह अब टूटने की कगार पर आ जाता है और एक छोटी सी बातचीत से हम अपने सहकर्मी का भ्रम दूर कर सकते थे वह कुछ समय बाद कार्य-स्थल की राजनीति  में परिवर्तित हो जाता है।
 समस्याओं का समाधान समय रहते कर लेना चाहिए अन्यथा देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।

Saturday, October 6, 2018

घरवालों की आदत

बेटा घर में घुसते ही बोला," मम्मी कुछ खाने को दे दो यार बहुत भूख लगी है. यह सुनते ही मैंने कहा," बोला था ना ले जा कुछ कॉलेज, सब्जी तो बना ही रखी थी". बेटा बोला," यार मम्मी अपना ज्ञान ना अपने पास रखा करो. अभी जो कहा है वो कर दो बस और हाँ, रात में ढंग का खाना बनाना .  पहले ही मेरा दिन अच्छा नहीं गया है". कमरे में गई तो उसकी आंख लग गई थी. मैंने जाकर उसको जगा दिया कि कुछ खा कर सो जाए. चीख कर वो मेरे ऊपर आया कि जब आँख लग गई थी तो उठाया क्यों तुमने? मैंने कहा तूने ही तो कुछ बनाने को कहा था.  वो बोला,"मम्मी एक तो कॉलेज में टेंशन ऊपर से तुम यह अजीब से काम करती हो. दिमाग लगा लिया करो कभी तो". 

तभी घंटी बजी तो बेटी भी आ गई थी. मैंने प्यार से पूछा ,"आ गई मेरी बेटी कैसा था दिन?" बैग पटक कर बोली ,"मम्मी आज पेपर अच्छा नहीं हुआ". मैंने कहा," कोई बात नहीं. अगली बार कर लेना". 

मेरी बेटी चीख कर बोली," अगली बार क्या रिजल्ट तो अभी खराब हुआ ना. मम्मी यार तुम जाओ यहाँ से. तुमको कुछ नहीं पता". 

मैं उसके कमरे से भी निकल आई. 

शाम को पतिदेव आए तो उनका भी मुँँह लाल था . थोड़ी बात करने की कोशिश की , जानने की कोशिश कि तो वो भी झल्ला के बोले ,"यार मुझे अकेला छोड़ दो. पहले ही बॉस ने क्लास ले ली है और अब तुम शुरू हो गई". 

आज कितने सालों से यही सुनती आ रही थी. सबकी पंचिंंग बैग मैं ही थी. हम औरतें भी ना अपनी इज्ज़त करवानी आती ही नहींं. 

मैं सबको खाना खिला कर कमरे में चली गई. अगले दिन से मैंने किसी से भी पूछना कहना बंद कर दिया. जो जैसा कहता कर के दे देती. पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती. पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा था?

बेटा कॉलज और बेटी स्कूल से आती तो मैं कुछ ना बोलती ना पूछती. यह सिलसिला काफी दिन चला. 

संडे वाले दिन तीनो मेरे पास आए और बोले तबियत ठीक है ना?क्या हुआ है इतने दिनों से चुप हो. बच्चे भी हैरान थे. थोड़ी देर चुप रहने के बाद में बोली. मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या?जो आता है अपना गुस्सा या अपना चिड़चिड़ापन मुझपे निकाल देता है. मैं भी इंतज़ार करती हूं तुम लोंगो का. पूरा दिन काम करके कि अब मेरे बच्चे आएंगे ,पति आएंगे दो बोल बोलेंगे प्यार के और तुम लोग आते ही मुझे पंच करना शुरु कर देते हो. अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहींं गया तो क्या वो मेरी गलती है? हर बार मुझे झिड़कना सही है?

कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई. तीनो चुप थे. सही तो कहा मैंने दरवाजे पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे. जो आता है मुक्का मार के चलता बनता है. तीनों शरमिंदा थे. 

दोस्तोंं हर माँ, हर बीवी अपने बच्चों और पति के घर लौटने का इंतज़ार करती है . उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक था या नहीं.  लेकिन कभी - कभी हम उनको ग्रांटेड ले लेते हैं. हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकालते हैं. कभी- कभी तो यह ठीक है लेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए तो आप आज से ही सबका पंचिंंग बैग बनना बंद कर दें .                            
 सभी महिलाओं को समर्पित*

Thursday, October 4, 2018

तुम धन्य हो

एक पंडित था, वो रोज घर घर जाके भगवत गीता का पाठ करता था |
एक दिन उसे एक चोर ने पकड़ लिया और उसे कहा तेरे पास जो कुछ भी है मुझे दे दो ,

तब वो पंडित जी बोला की बेटा मेरे पास कुछ भी नहीं है,

तुम एक काम करना मैं यहीं पड़ोस के घर मैं जाके भगवत गीता का पाठ करता हूँ,
वो यजमान बहुत दानी लोग हैं, जब मैं कथा सुना रहा होऊंगा

तुम उनके घर में जाके चोरी कर लेना!
चोर मान गया

अगले दिन जब पंडित जी कथा सुना रहे थे तब वो चोर भी वहां आ गया तब पंडित जी बोले की यहाँ से मीलों दूर एक गाँव है वृन्दावन, वहां पे एक लड़का आता है जिसका नाम कान्हा है,वो हीरों जवाहरातों से लदा रहता है,
अगर कोई लूटना चाहता है तो उसको लूटो वो रोज रात को इस पीपल के पेड़ के

नीचे आता है,। 

जिसके आस पास बहुत सी झाडिया हैं चोर ने ये सुना और ख़ुशी ख़ुशी वहां से चला गया!
वो चोर अपने घर गया और अपनी बीवी से बोला आज मैं एक कान्हा नाम के बच्चे को

लुटने जा रहा हूँ ,

मुझे रास्ते में खाने के लिए कुछ बांध कर दे दो ,पत्नी ने कुछ सत्तू उसको दे दिया

और कहा की बस यही है जो कुछ भी है,
चोर वहां से ये संकल्प लेके चला कि अब तो में उस कान्हा को लुट के ही आऊंगा,
वो बेचारा पैदल ही पैदल टूटे चप्पल में ही वहां से चल पड़ा, 

रास्ते में बस कान्हा का नाम लेते हुए, वो अगले दिन शाम को वहां पहुंचा जो जगह उसे

पंडित जी ने बताई थी!
अब वहां पहुँच के उसने सोचा कि अगर में यहीं सामने खड़ा हो गया तो बच्चा मुझे देख कर

भाग जायेगा तो मेरा यहाँ आना बेकार हो जायेगा,

इसलिए उसने सोचा क्यूँ न पास वाली झाड़ियों में ही छुप जाऊँ,

वो जैसे ही झाड़ियों में घुसा, झाड़ियों के कांटे उसे चुभने लगे!
उस समय उसके मुंह से एक ही आवाज आयी…

कान्हा, कान्हा , उसका शरीर लहू लुहान हो गया पर मुंह से सिर्फ यही निकला,

कि कान्हा आ जाओ! कान्हा आ जाओ!
अपने भक्त की ऐसी दशा देख के कान्हा जी चल पड़े

तभी रुक्मणी जी बोली कि प्रभु कहाँ जा रहे हो वो आपको लूट लेगा!
प्रभु बोले कि कोई बात नहीं अपने ऐसे भक्तों के लिए तो मैं लुट जाना तो क्या

मिट जाना भी पसंद करूँगा!
और ठाकुर जी बच्चे का रूप बना के आधी रात को वहां आए वो जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे

चोर एक दम से बहार आ गया और उन्हें पकड़ लिया और बोला कि

ओ कान्हा तुने मुझे बहुत दुखी किया है, अब ये चाकू देख रहा है न, अब चुपचाप अपने

सारे गहने मुझे दे दे…

कान्हा जी ने हँसते हुए उसे सब कुछ दे दिया!
वो चोर हंसी ख़ुशी अगले दिन अपने गाँव में वापिस पहुंचा,

और सबसे पहले उसी जगह गया जहाँ पे वो पंडित जी कथा सुना रहे थे,
और जितने भी गहने वो चोरी करके लाया था उनका आधा उसने पंडित जी के

चरणों में रख दिया!
जब पंडित ने पूछा कि ये क्या है, तब उसने कहा आपने ही मुझे उस कान्हा का पता दिया था

मैं उसको लूट के आया हूँ, और ये आपका हिस्सा है , पंडित ने सुना और उसे यकीन ही

नहीं हुआ!
वो बोला कि मैं इतने सालों से पंडिताई कर रहा हूँ

वो मुझे आज तक नहीं मिला, तुझ जैसे पापी को कान्हा कहाँ से मिल सकता है!
चोर के बार बार कहने पर पंडित बोला कि चल में भी चलता हूँ तेरे साथ वहां पर,

मुझे भी दिखा कि कान्हा कैसा दिखता है, और वो दोनों चल दिए!
चोर ने पंडित जी को कहा कि आओ मेरे साथ यहाँ पे छुप जाओ,

और दोनों का शरीर लहू लुहान हो गया और मुंह से बस एक ही आवाज निकली

कान्हा, कान्हा, आ जाओ!
ठीक मध्य रात्रि कान्हा जी बच्चे के रूप में फिर वहीँ आये ,

और दोनों झाड़ियों से बहार निकल आये!
पंडित जी कि आँखों में आंसू थे वो फूट फूट के रोने लग गया, और जाके चोर के चरणों में गिर गया और बोला कि हम जिसे आज तक देखने के लिए तरसते रहे, 

जो आज तक लोगो को लुटता आया है, तुमने उसे ही लूट लिया तुम धन्य हो,

आज तुम्हारी वजह से मुझे कान्हा के दर्शन हुए हैं,

तुम धन्य हो……!!
ऐसा है हमारे कान्हा का प्यार, अपने सच्चे भक्तों के लिए ,

जो उसे सच्चे दिल से पुकारते हैं, तो वो भागे भागे चले आते हैं…..!!

प्रेम से कहिये श्री राधे ~ हे राधे ! जय जय श्री राधे—–

मेरो तो गिरधर-गोपाल, दूसरो न कोई

Monday, October 1, 2018

गज़ब की एकता

किसी गाँव में चार मित्र रहते थे।

चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते,
 योजनाएँ बनाते।

एक ब्राह्मण

एक ठाकुर
 
एक बनिया और
एक नाई था

पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था,

 गज़ब की एकता थी।

इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने, चने आदि चीजे उखाड़ कर खाते थे।

एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े...

और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे।

खेत का मालिक किसान आया.....

चारों की दावत देखी

उसे बहुत क्रोध आया

उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे

पर चार के आगे एक?

वो स्वयं पिट जाता

सो उसने एक युक्ति सोची।

चारों के पास गया,

ब्राह्मण के पाँव छुए,

ठाकुर साहब की जयकार की

बनिया महाजन से राम जुहार

और फिर नाई से बोला--

देख भाई....

ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं,

ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं अन्नदाता हैं,

महाजन सबको उधारी दिया करते हैं.....

ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं

*तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू?*

 तू तो ठहरा नाई तूने चने क्यों उखाड़े?*

*इतना कहकर उसने नाई के दो तीन लट्ठ रसीद किये।*

बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया.....

क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी।

अब किसान बनिए के पास आया और बोला-

तू साहूकार होगा तो अपने घर का

पण्डित जी और ठाकुर साहब तो नहीं है ना!

तूने चने क्यों उखाड़े?

बनिये के भी दो तीन तगड़े तगड़े लट्ठ जमाए।

पण्डित और ठाकुर ने कुछ नहीं कहा।

अब किसान ने ठाकुर से कहा--

ठाकुर साहब....

 माना आप अन्नदाता हो...

पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है....

अरे पण्डित महाराज की बात दीगर है

उनके हिस्से जो भी चला जाये दान पुन्य हो जाता है.....

पर आपने तो बटमारी की!

ठाकुर साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया,

पण्डित जी कुछ बोले नहीं,

नाई और बनिया अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे।

जब ये तीनों पिट चुके....

तब किसान पण्डितजी के पास गया और बोला--

माना आप भूदेव हैं,

पर इन तीनों के गुरु घण्टाल आप ही हैं

आपको छोड़ दूँ

ये तो अन्याय होगा

तो दो लट्ठ आपके भी पड़ने चाहिए।

मार खा चुके बाकी तीनों बोले.....
 
हाँ हाँ, पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए।

अब क्या पण्डित जी भी पीटे गए।

किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके पीटा....
 
किसी ने किसी के पक्ष में कुछ नहीं कहा,

उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये।

मित्रों पिछली दो तीन सदियों से हिंदुओं के साथ यही होता आया है,

कहानी सच्ची लगी हो तो समझने का प्रयास करो और......

अगर कहानी केवल कहानी लगी हो.......

तो आने वाले समय के लट्ठ तैयार हैं।

Sunday, September 30, 2018

ये बेटिया

 ​​पापा मैने आपके लिए हलवा बनाया है 11 साल की बेटी​​ बोली
 ​​अपने पिता से बोली जो की अभी ऑफिस से घर में पहुंचे ही थे 
 ​​पिता​ - वाह क्या बात है,लाकर खिलाओ फिर पापा को !!​ 
 ​​बेटी दौड़ती हुई फिर रसोई में गई और बड़ा कटोरा भरकर हलवा लेकर आई​​ 
 ​​पिता ने खाना शुरू किया और बेटी को देखा पिता की आखों में आंशू आ गये  
 ​क्या हुआ पापा हलवा अच्छा नहीं लगा​ क्या 
 ​पिता - नहीं मेरी बेटी बहुत अच्छा बना है , और देखते देखते पूरा कटोरा खाली कर दिया​ 
 ​इतने में माँ बाथरूम से नहाकर बाहर आई, और बोली : ला मुझे खिला अपना हलवा !!​ 
 ​पिता ने बेटी को 50 रुपए इनाम में दिये ।​
 ​बेटी खुशी से मम्मी के लिए रसोई से हलवा लेकर आई​ 
 ​मगर ये क्या जेसे ही उसने हलवा की पहली चम्मच मुँह में डाली तो तुरंत थूक दिया ।​ 
 ​और बोली ये क्या बनाया है ... ये कोई हलवा है​ ​इसमें चीनी नहीं नमक भरा है,​ 
 ​और आप इसे कैसे खा गए ये तो एकदम कड़वा है !!​ 
 ​पत्नी :- मेरे बनाये खाने में तो कभी नमक कम है कभी मिर्च तेज है कहते रहते हो​ 
 ​और बेटी को बजाय कुछ कहने के इनाम देते हो !!​ 
 ​पिता हँसते हुए : पगली ... तेरा मेरा तो जीवन भर का साथ है ...​
 ​रिश्ता है पति पत्नी का, जिसमे नोक झोक .. रूठना मनाना सब चलता है !!​ 
 ​मगर ये तो बेटी है कल चली जाएगी ।​
 ​आज इसे वो अहसास ... वो अपनापन महसूस हुआ जो मुझे इसके जन्म के समय हुआ था ।​ 
 ​आज इसने बड़े प्यार से पहली बार मेरे लिए कुछ बनाया है ,​ 
 ​फिर बो जैसा भी हो मेरे लिए सबसे बेहतर और सबसे स्वादिष्ट है !!​ 
 ​ये बेटिया अपने पापा की परीया और राजकुमारी होती है जैसे तुम अपने पापा की परी हो !!​ 
 ​वो रोते हुए पति के सीने से लग गई और सोच रही थी ... इसी लिए हर लड़की अपने पति में  अपने पापा की छवि ढूंढ़ती है !!​ 
 ​दोस्तों ... यही सच है,​ 
 ​हर बेटी अपने पिता के बड़े करीब होती है या यूँ कहें कलेजे का टुकड़ा​ 
 ​इसलिए शादी में विदाई के समय सबसे ज्यादा पिता ही रोता है !!​
 ​कई जन्मों की जुदाई के बाद बेटी का जन्म होता है ,​  ​इसलिए तो कन्या दान करना सबसे बड़ा पूण्य होता है 

Friday, September 28, 2018

संसार स्त्रीप्रधान है

एक राजा था ।.. उसने एक सर्वे करनेका सोचा कि 
मेरे राज्य के लोगों की घर गृहस्थि पति से चलती है या पत्नि से..। 
उसने एक ईनाम रखा कि "  जिसके घर में पतिका हुकम चलता हो उसे मनपसंद घोडा़ ईनाम में मिलेगा और जिसके घर में पत्नि की सरकार हो वह एक सेब ले जाए.. 
एक के बाद एक सभी नगरजन सेब उठाकर जाने लगे । राजाको चिंता होने लगी.. क्या मेरे राज्य में सभी सेब ही हैं ?
इतने में एक लम्बी लम्बी मुछों वाला, मोटा तगडा़ और लाल लाल आखोंवाला जवान आया और बोला 
" राजा जी मेरे घर में मेरा ही हुकम चलता है .. ला ओ घोडा़ मुझे दिजीए .."
राजा खुश हो गए और कहा जा अपना मनपसंद घोडा़ ले जा ..। जवान काला घोडा़ लेकर रवाना हो गया । 
घर गया और फिर थोडी़ देरमें दरबार में वापिस लौट आया।
राजा: " क्या हुआ जवामर्द ? वापिस क्यों आया !
जवान : " महाराज, घरवाली कहती है काला रंग अशुभ होता है, सफेद रंग शांति का प्रतिक होता है तो आप मुझे सफेद रंग का घोडा़ दिजिए
राजा: " घोडा़ रख ..और सेब लेकर चलती पकड़ ।
इसी तरह रात हो गई .. दरबार खाली हो गया लोग सेब लेकर चले गए ।
आधी रात को महामंत्री ने दरवाजा खटखटाया..
राजा : " बोलो महामंत्री कैसे आना हुआ ?
महामंत्री : " महाराज आपने सेब और घोडा़ ईनाम में रखा ,इसकी जगह एक मण अनाज या सोना महोर रखा होता तो लोग लोग कुछ दिन खा सकते या जेवर बना सकते ।
राजा :" मुझे तो ईनाम में यही रखना था लेकिन महारानी ने कहा कि सेब और घोडा़ ही ठीक है इसलिए वही रखा 
महामंत्री : " महाराज आपके लिए सेब काट दुँ..!!
राजा को हँसी आ गई । और पुछा यह सवाल तुम दरबारमें या कल सुबह भी पुछ सकते थे । तो आधी रात को क्यों आये ??
महामंत्री : " मेरी धर्मपत्नि ने कहा अभी जाओ और पुछ के आओ सच्ची घटना का पता चले ..।
राजा ( बात काटकर ) : " महामंत्री जी , सेब आप खुद ले लोगे या घर भेज दिया जाए ।"
 समाज चाहे पुरुषप्रधान हो लेकिन संसार स्त्रीप्रधान है