Wednesday, February 21, 2018

जीवन में खुशियाँ

एक दिन अचानक मेरी पत्नी मुझसे बोली - "सुनो, अगर मैं तुम्हे किसी और के साथ डिनर और फ़िल्म के लिए बाहर जाने को कहूँ तो तुम क्या कहोगे"।
मैं बोला - " मैं कहूँगा कि अब तुम मुझे प्यार नहीं करती"।
उसने कहा - "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन मुझे पता है कि यह औरत भी आपसे बहुत प्यार करती है और आप के साथ कुछ समय बिताना उनके लिए सपने जैसा होगा"। 

वह अन्य औरत कोई और नहीं मेरी माँ थी। जो मुझ से अलग अकेली रहती थी। अपनी व्यस्तता के कारण मैं उन से मिलने कभी कभी ही जा पाता था। 

मैंने माँ को फ़ोन कर उन्हें अपने साथ रात के खानेे और एक फिल्म के लिए बाहर चलने के लिए कहा।

"तुम ठीक तो हो,ना। तुम दोनों के बीच कोई परेशानी तो नहीं" माँ ने पूछा

मेरी माँ थोडा शक्की मिजाज़ की औरत थी। उनके लिए मेरा इस किस्म का फ़ोन मेरी किसी परेशानी का संकेत था।
" नहीं कोई परेशानी नहीं। बस मैंने सोचा था कि आप के साथ बाहर जाना एक सुखद अहसास होगा" मैंने जवाब दिया और कहा 'बस हम दोनों ही चलेंगे"।

उन्होंने इस बारे में एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, 'ठीक है।' 

शुक्रवार की शाम को जब मैं उनके घर पर पहुंचा तो मैंने देखा है वह भी दरवाजे पर इंतजार कर रही थी। वो एक सुन्दर पोशाक पहने हुए थी और उनका चहेरा एक अलग सी ख़ुशी में चमक रहा था।

कार में माँ ने कहा " 'मैंने अपनी friends को बताया कि मैं अपने बेटे के साथ बाहर  खाना खाने के लिए जा रही हूँ। वे काफी प्रभावित थी"।

हम लोग माँ की पसंद वाले एक रेस्तरां पहुचे जो बहुत सुरुचिपूर्ण तो नहीं मगर  अच्छा और आरामदायक था। हम बैठ गए, और मैं मेनू देखने लगा। मेनू पढ़ते हुए मैंने आँख उठा कर देखा तो पाया कि वो मुझे ही देख रहीं थी और एक उदास सी मुस्कान उनके होठों पर थी। 

'जब तुम छोटे थे तो ये मेनू मैं तुम्हारे लिए पढ़ती थी' उन्होंने कहा।

'माँ इस समय मैं इसे आपके लिए पढना चाहता हूँ,' मैंने जवाब दिया।

खाने के दौरान, हम में एक दुसरे के जीवन में घटी हाल की घटनाओं पर चर्चा होंने लगी। हम ने आपस में इतनी ज्यादा बात की, कि पिक्चर का समय कब निकल गया हमें पता ही नही चला।

बाद में वापस घर लौटते समय माँ ने कहा कि अगर अगली बार मैं उन्हें बिल का पेमेंट करने दूँ, तो वो मेरे साथ दोबारा डिनर के लिए आना चाहेंगी।
मैंने कहा "माँ जब आप चाहो और बिल पेमेंट कौन करता है इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है।
माँ ने कहा कि फ़र्क़ पड़ता है और अगली बार बिल वो ही पे करेंगी।

"घर पहुँचने पर पत्नी ने पूछा" - कैसा रहा।
"बहुत बढ़िया, जैसा सोचा था उससे कही ज्यादा बढ़िया" - मैंने जवाब दिया।

इस घटना के कुछ दिनबाद, मेरी माँ का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। यह इतना अचानक हुआ कि मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पाया । 

माँ की मौत के कुछ समय बाद, मुझे एक लिफाफा मिला जिसमे उसी रेस्तरां की एडवांस पेमेंट की रसीद के साथ माँ का एक ख़त था जिसमे माँ ने लिखा था " मेरे बेटे मुझे पता नहीं कि मैं तुम्हारे साथ दोबारा डिनर पर जा पाऊँगी या नहीं इसलिए मैंने दो लोगो के खाने के अनुमानित बिल का एडवांस पेमेंट कर दिया है। अगर मैं नहीं जा पाऊँ तो तुम अपनी पत्नी के साथ भोजन करने जरूर जाना।
उस रात तुमने कहा था ना कि क्या फ़र्क़ पड़ता है।  मुझ जैसी अकेली रहने वाली बूढी औरत को फ़र्क़ पड़ता है, तुम नहीं जानते उस रात तुम्हारे साथ बीता हर पल मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन समय में एक था।
भगवान् तुम्हे सदा खुश रखे।
I love you".
तुम्हारी माँ

उस पल मुझे अपनों को समय देने और उनके प्यार को महसूस करने का महत्त्व मालूम हुआ।

जीवन में कुछ भी आपके अपने परिवार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है।

ना व्हाट्सएप

ना फेसबूक

ना मोबाइल

ना लैपटॉप

और

ना ही टीवी।

अपने परिजनों को उनके हिस्से का समय दीजिए क्योंकि आपका साथ ही उनके जीवन में खुशियाँ का आधार है।


Sunday, February 18, 2018

जीवन में निर्णय

दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें | 2 कहानियाँ 

पहली कहानी :

ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे.

24 वर्षीय पुत्र खिड़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं !
पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया. ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई.

तब तक वो लड़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं !

युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े – आप अपने लड़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?

लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं. मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है.

दूसरी कहानी :

एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जोकि इस प्रकार है –

एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है. इस मौके पर आदमी ने औरत को धक्का दिया और नाव पर कूद गया.

डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा.
अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?

ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !

प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ?

वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना !

प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?

लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी.

प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है !

प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया. कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली.

डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे.

ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया और लाइफबोट पर कूद गया. उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन को कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा.

जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की तो, पूरी क्लास में शांति थी.

          —————

इस संसार में कईयों सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं. इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता.

– कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो. हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो.

– दोस्तों के साथ खाते-पीते, पार्टी करते समय जो दोस्त बिल पे करता है, जरुरी नहीं उसकी जेब नोटों से ठसाठस भरी हो. हो सकता है उसके लिए दोस्ती के सामने पैसों की अहमियत कम हो.

– जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों. वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है.

आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है. थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है. जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें

Friday, February 16, 2018

ज़रूरतमंद

एक पाँच छ: साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर मंदिर के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था ।

कपड़े में मैल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे ।

बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था ।

जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा : -
"क्या मांगा भगवान से"
उसने कहा : -
"मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्ग,
मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र,
मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे".. 

"तुम स्कूल जाते हो"..?
अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था ।

हां जाता हूं, उसने कहा ।

किस क्लास में पढ़ते हो ? अजनबी ने पूछा

नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ ।
बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है ।
बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था ।

"तुम्हारा कोई रिश्तेदार"
न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा ।

पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता,
माँ झूठ नहीं बोलती,
पर अंकल,
मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है,
जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है ।
जब कहता हूँ 
माँ तुम भी खाओ, तो कहती है मैने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है ।

बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?
"बिल्कुलु नहीं"

"क्यों"
पढ़ाई करने वाले, गरीबों से नफरत करते हैं अंकल,
हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं ।

अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी ।

फिर उसने कहा
"हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँ,
कभी किसी ने नहीं पूछा - यहाँ सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता ।

"बच्चा जोर-जोर से रोने लगा"

 अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?

मेरे पास इसका कोई जवाब नही था... 

ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं ।
बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतीमों, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए 


Wednesday, February 14, 2018

हमारा अहंकार

एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे ।
रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्र भु – एक जिज्ञासा है  मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?
श्री कृष्ण ने कहा – अर्जुन , तुम मुझसे बिना किसी हिचक , कुछ भी पूछ सकते हो ।
तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ?
यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा ।
श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया ।
इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो ।
अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया ।
उसने सभी गाँव वालों को बुलाया ।
उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया ।
गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी ।
अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए ।
लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे ।
उनमे अब तक अहंकार आ चुका था ।
गाँव के लोग वापस आ कर दोबारा से लाईन में लगने लगे थे ।
इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे ।
जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी ।
उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि अब  मुझसे यह काम और न हो सकेगा ।
मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए ।
प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया  ।
उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो ।
कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये ।
उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा – यह सोना आप लोगों का है , जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये ।
ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए ।
यह देख कर अर्जुन ने कहा कि ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया ?
श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को शिक्षा
इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हे सोने से मोह हो गया था ।
तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है ।
उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे ।
तुम में दाता होने का भाव आ गया था ।
दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया ।
वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए ।
वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे ।
उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता ।
यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है 
इस तरह श्री कृष्ण ने खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया , अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ।
निष्कर्ष
दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है ।*
यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए ।
ताकि यह हमारा सत्कर्म हो,
न कि हमारा अहंकार ।

Sunday, February 11, 2018

संस्कार क्या है

एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थी Iकुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था ।

बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया, इस पर घोड़ी बोली: बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया ।

यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: मां मैं इसका बदला लूंगा ।

मां ने कहा राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये, पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली ।

एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया ।

इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है ।

तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है ।

यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं ।

हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं ! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा ।

अत: हमें प्रतिदिन कोशिश करनी चाहिए  कि हमसे जान बूझ कर कोई धोखा ना हो, गलत काम ना हो और हम किसी के साथ कोई भी धोखा ना करें।

Saturday, February 10, 2018

आदतें नस्लों का पता देती हैं

एक बादशाह के दरबार मे एक अजनबी नौकरी की तलब के लिए हाज़िर हुआ ।

क़ाबलियत पूछी गई, 
कहा, 
"सियासी हूँ ।" ( अरबी में सियासी  अक्ल ओ तदब्बुर से मसला हल करने वाले मामला फ़हम को कहते हैं ।) 

बादशाह के पास सियासतदानों की भरमार थी, उसे खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना लिया। 
चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के मुताल्लिक़ पूछा, 
उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।"

बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से साईस को बुला कर दरियाफ्त किया..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है। 

बादशाह ने अपने मसूल को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?" 
 
""उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।"""

बादशाह उसकी फरासत से बहुत मुतास्सिर हुआ, उसने मसूल के घर अनाज ,घी, भुने दुंबे, और परिंदों का आला गोश्त बतौर इनाम भिजवाया। 

और उसे मलिका के महल में तैनात कर दिया। 
चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो मलिका जैसे हैं लेकिन शहज़ादी नहीं हैं ।"
बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं,  कि आपके वालिद ने मेरे खाविंद से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपकी बादशाहत से करीबी ताल्लुक़ात क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"

बादशाह ने अपने मुसाहिब से पूछा "तुम को कैसे इल्म हुआ ?"

""उसने कहा, "उसका खादिमों के साथ सुलूक जाहिलों से भी बदतर हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक मुलाहजा एक अदब होता हैं, जो शहजादी में बिल्कुल नहीं । """

बादशाह फिर उसकी फरासत से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे मुतय्यन कर दिया। 

कुछ वक्त गुज़रा, मुसाहिब को बुलाया,अपने बारे में दरियाफ्त किया ।

मुसाहिब ने कहा "जान की अमान ।"

बादशाह ने वादा किया । 

उसने कहा, "न तो आप बादशाह ज़ादे हो न आपका चलन बादशाहों वाला है।"

बादशाह को ताव आया, मगर जान की अमान दे चुका था, सीधा अपनी वालिदा के महल पहुंचा ।

वालिदा ने कहा, 
"ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे लेकर हम ने पाला ।"

बादशाह ने मुसाहिब को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे इल्म हुआ ????"

उसने कहा "बादशाह जब किसी को "इनाम ओ इकराम" दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें इनायत करते हैं...ये असलूब बादशाह ज़ादे का नही,  किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।" 

किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी मुल्लम्मा हैं । 
इंसान की असलियत, उस के खून की किस्म उसके व्यवहार, 
उसकी नियत से होती हैं...

*तब चाय बेचने बाले की सोच, पकौडें बेचने से ऊपर नही उठ सकती,

**इंसान की हैसियत बदल जाती है,
पर समझ और औकात नहीं...

Wednesday, February 7, 2018

आपकी बेटी

एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा"आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी"।
पति-अगर हमारा लड़का होता है तो मैं उसे गणित पढाऊगा,हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।
पत्नी -"अगर लड़की हुई तो "?
पति-अगर हमारी लड़की होगी तो
मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत
ही नही होगी क्योंकि ,
उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।
 एक तरह से वो मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी चाहे मैं उसके लिए
कुछ खास करू या ना करू। 
जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी। वो
हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी।यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।
 वो मेरे लिए संसार से लडेगी जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी।
पत्नी -कहने का मतलब है कि आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा।
पति- नहीं नहीं क्या पता मेरा बेटा
भी ऐसा ही करेगा पर वो सिखेगा।
परंतु बेटी इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है।
पत्नी - पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी।
पति- हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे। 
इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए।
बेटियाँ परी होती हैं ,!
जो सदा बिना
शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।