Wednesday, February 7, 2018

आपकी बेटी

एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा"आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी"।
पति-अगर हमारा लड़का होता है तो मैं उसे गणित पढाऊगा,हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।
पत्नी -"अगर लड़की हुई तो "?
पति-अगर हमारी लड़की होगी तो
मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत
ही नही होगी क्योंकि ,
उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।
 एक तरह से वो मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी चाहे मैं उसके लिए
कुछ खास करू या ना करू। 
जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी। वो
हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी।यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।
 वो मेरे लिए संसार से लडेगी जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी।
पत्नी -कहने का मतलब है कि आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा।
पति- नहीं नहीं क्या पता मेरा बेटा
भी ऐसा ही करेगा पर वो सिखेगा।
परंतु बेटी इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है।
पत्नी - पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी।
पति- हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे। 
इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए।
बेटियाँ परी होती हैं ,!
जो सदा बिना
शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।

Sunday, February 4, 2018

श्रद्धा की लाज

एक राजा ने भगवान कृष्ण का एक मंदिर बनवाया
और पूजा के लिए एक पुजारी को लगा दिया. पुजारी बड़े भाव से
बिहारीजी की सेवा करने लगे. भगवान की पूजा-अर्चना और
सेवा-टहल करते पुजारी की उम्र बीत गई. राजा रोज एक फूलों की
माला सेवक के हाथ से भेजा करता था.पुजारी वह माला बिहारीजी
को पहना देते थे. जब राजा दर्शन करने आता तो पुजारी वह माला बिहारीजी के गले से उतारकर राजा को पहना देते थे. यह रोज का
नियम था. एक दिन राजा किसी वजह से मंदिर नहीं जा सका.
उसने एक सेवक से कहा- माला लेकर मंदिर जाओ. पुजारी से कहना
आज मैं नहीं आ पाउंगा. सेवक ने जाकर माला पुजारी को दे दी और
बता दिया कि आज महाराज का इंतजार न करें. सेवक वापस आ
गया. पुजारी ने माला बिहारीजी को पहना दी. फिर उन्हें विचार आया कि आज तक मैं अपने बिहारीजी की चढ़ी माला
राजा को ही पहनाता रहा. कभी ये सौभाग्य मुझे नहीं
मिला.जीवन का कोई भरोसा नहीं कब रूठ जाए. आज मेरे प्रभु ने
मुझ पर बड़ी कृपा की है. राजा आज आएंगे नहीं, तो क्यों न माला
मैं पहन लूं. यह सोचकर पुजारी ने बिहारीजी के गले से माला
उतारकर स्वयं पहन ली. इतने में सेवक आया और उसने बताया कि राजा की सवारी बस मंदिर में पहुंचने ही वाली है.यह सुनकर
पुजारी कांप गए. उन्होंने सोचा अगर राजा ने माला मेरे गले में देख
ली तो मुझ पर क्रोधित होंगे. इस भय से उन्होंने अपने गले से
माला उतारकर बिहारीजी को फिर से पहना दी. जैसे ही राजा
दर्शन को आया तो पुजारी ने नियम अुसार फिर से वह माला
उतार कर राजा के गले में पहना दी. माला पहना रहे थे तभी राजा को माला में एक सफ़ेद बाल दिखा.राजा को सारा माजरा समझ गया
कि पुजारी ने माला स्वयं पहन ली थी और फिर निकालकर
वापस डाल दी होगी. पुजारी ऐसाछल करता है, यह सोचकर राजा
को बहुत गुस्सा आया. उसने पुजारी जी से पूछा- पुजारीजी यह
सफ़ेद बाल किसका है.? पुजारी को लगा कि अगर सच बोलता हूं
तो राजा दंड दे देंगे इसलिए जान छुड़ाने के लिए पुजारी ने कहा- महाराज यहसफ़ेद बाल तो बिहारीजी का है. अब तो राजा गुस्से
से आग- बबूला हो गया कि ये पुजारी झूठ पर झूठ बोले जा रहा
है.भला बिहारीजी के बाल भी कहीं सफ़ेद होते हैं. राजा ने कहा-
पुजारी अगर यह सफेद बाल बिहारीजी का है तो सुबह शृंगार के
समय मैं आउंगा और देखूंगा कि बिहारीजी के बाल सफ़ेद है या
काले. अगर बिहारीजी के बाल काले निकले तो आपको फांसी हो जाएगी. राजा हुक्म सुनाकर चला गया.अब पुजारी रोकर
बिहारीजी से विनती करने लगे- प्रभु मैं जानता हूं आपके
सम्मुख मैंने झूठ बोलने का अपराध किया. अपने गले में डाली
माला पुनः आपको पहना दी. आपकी सेवा करते-करते वृद्ध हो
गया. यह लालसा ही रही कि कभी आपको चढ़ी माला पहनने का
सौभाग्य मिले. इसी लोभ में यह सब अपराध हुआ. मेरे ठाकुरजी पहली बार यह लोभ हुआ और ऐसी विपत्ति आ पड़ी है. मेरे
नाथ अब नहींहोगा ऐसा अपराध. अब आप ही बचाइए नहीं तो
कल सुबह मुझे फाँसी पर चढा दिया जाएगा. पुजारी सारी रात रोते
रहे. सुबह होते ही राजा मंदिर में आ गया. उसने कहा कि आज
प्रभु का शृंगार वह स्वयं करेगा. इतना कहकर राजा ने जैसे ही मुकुट
हटाया तो हैरान रह गया. बिहारीजी के सारे बाल सफ़ेद थे. राजा को लगा, पुजारी ने जान बचाने के लिए बिहारीजी के बाल रंग
दिए होंगे. गुस्से से तमतमाते हुए उसने बाल की जांच करनी
चाही. बाल असली हैं या नकली यब समझने के लिए उसने जैसे
ही बिहारी जी के बाल तोडे, बिहारीजी के सिर से खून
कीधार बहने लगी. राजा ने प्रभु के चरण पकड़ लिए और क्षमा
मांगने लगा. बिहारीजी की मूर्ति से आवाज आई- राजा तुमने आज तक मुझे केवल मूर्ति ही समझा इसलिए आज से मैं तुम्हारे
लिए मूर्ति ही हूँ. पुजारीजी मुझे साक्षात भगवान् समझते हैं.
उनकी श्रद्धा की लाज रखने के लिए आज मुझे अपने बाल सफेद
करने पड़े व रक्त की धार भी बहानी पड़ी तुझे समझाने के लिए.

 कहते हैं- समझो तो देव नहीं तो पत्थर.श्रद्धा हो तो उन्हीं पत्थरों में भगवान सप्राण
होकर भक्त से मिलने आ जाएंगे ।।

Wednesday, January 31, 2018

व्यस्त रहिये, स्वस्थ रहिये

एक दिन एक कुत्ता 🐕 जंगल में रास्ता खो गया..

तभी उसने देखा, एक शेर 🦁 उसकी तरफ आ रहा है..

कुत्ते की सांस रूक गयी..
"आज तो काम तमाम मेरा..!" 

He thought, & applied A lesson of
MBA..

फिर उसने सामने कुछ सूखी हड्डियाँ ☠ पड़ी देखी..

वो आते हुए शेर की तरफ पीठ कर के बैठ गया..

और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा,
और जोर जोर से बोलने लगा..

 "वाह ! शेर को खाने का मज़ा ही कुछ और है..
एक और मिल जाए तो पूरी दावत हो जायेगी !"

और उसने जोर से डकार मारी..
इस बार शेर सोच में पड़ गया..

उसने सोचा-
"ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है ! जान बचा कर भागने मे ही भलाइ है !"

और शेर वहां से जान बचा के भाग गया..

पेड़ पर बैठा एक बन्दर 🐒 यह सब तमाशा देख रहा था..

उसने सोचा यह अच्छा मौका है,
शेर को सारी कहानी बता देता हूँ ..

शेर से दोस्ती भी हो जायेगी,
और उससे ज़िन्दगी भर के लिए जान का खतरा भी दूर हो जायेगा.. 

वो फटाफट शेर के पीछे भागा..

कुत्ते ने बन्दर को जाते हुए देख लिया और समझ गया की कोई लोचा है..

उधर बन्दर ने शेर को सारी कहानी बता दी, की कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ बनाया है..

शेर जोर से दहाडा -
"चल मेरे साथ, अभी उसकी लीला ख़तम करता हूँ".. 

और बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ चल दिया..

Can you imagine the quick "management" by the DOG...???

कुत्ते ने शेर को आते देखा तो एक बार फिर उसके आगे जान का संकट आ गया,

मगर फिर हिम्मत कर कुत्ता उसकी तरफ पीठ करके बैठ गया l

He applied Another lesson of MBA ..

और जोर जोर से बोलने लगा..

"इस बन्दर को भेजे 1 घंटा हो गया..
साला एक शेर को फंसा कर नहीं ला सकता !"

यह सुनते ही शेर ने बंदर को वही पटका और वापस पिछे भाग गया ।

*शिक्षा 1:- मुश्किल समय में अपना आत्मविश्वास कभी नहीं खोएं*

*शिक्षा 2:- हार्ड वर्क के बजाय स्मार्ट वर्क ही करें क्योंकि यहीं जीवन की असली सफलता मिलेगी*

*शिक्षा 3 :- आपका ऊर्जा, समय और ध्यान भटकाने वाले कई बन्दर आपके आस पास    हैं, उन्हें पहचानिए और उनसे सावधान रहिये*

Saturday, January 27, 2018

माँ का धैर्य

अक्सर माँ डिब्बे में भरती रहती थी  कंभी मठरियां , मैदे के नमकीन  तले हुए काजू ..और कंभी मूंगफली  तो कभी कंभी बेसन के लड्डू 
आहा ..कंभी खट्टे मीठे लेमनचूस  थोड़ी थोड़ी कटोरियों में  जब सारे भाई बहनों को  एक सा मिलता  न कम न ज्यादा तो अक्सर यही  ख्याल आता  माँ ..ना सब नाप कर देती हैं काश मेरी कटोरी में थोड़ा ज्यादा आता  फिर सवाल कुलबुलाता  माँ होना कितना अच्छा है ना 
ऊँचा कद लंबे हाथ  ना किसी से पूछना ना किसी से माँगना रसोई की अलमारी खोलना कितना है आसान  जब मर्जी खोलो और खा लो 
लेकिन रह रह सवाल कौंधता  पर माँ को तो कभी खाते नहीं देखा ओह शायद  तब खाती होगी जब हम स्कूल चले जाते होगे  या फिर रात में हमारे सोने के बाद  पर ये भी लगता ये डिब्बे तो वैसे ही रहते  कंभी कम नही होते  छुप छुप कर भी देखा  माँ ने डिब्बे जमाये करीने से 
बिन खाये मठरी नमकीन या लडडू  ओह्ह  अब समझी शायद माँ को ये सब है नही पसन्द  एक दिन माँ को पूछा माँ तुम्हें लड्डू नही पसन्द  माँ हँसी और बोली  बहुत है पसन्द और खट्टी मीठी लेमनचूस भी  अब माँ बनी पहेली  अब जो सवाल मन मन में था पूछा मैंने 
माँ तुमको जब है सब पसन्द  तो क्यों नही खाती  क्या डरती हो पापा से  माँ हँसी पगली  मैं भी खूब खाती थी जब मै बेटी थी  अब माँ हूँ जब तुम खाते हो तब मेरा पेट भरता है  अच्छा छोडो जाओ खेलो  जब तुम बड़ी हो जाओगी सब समझ जाओगी  आज इतने अरसे बाद 
बच्चे  की पसन्द की चीजें भर रही हूँ  सुन्दर खूबसूरत डिब्बों में  मन हीं मन बचपन याद कर रही सच कहा था माँ ने   माँ बनकर हीं जानोगी  माँ का धैर्य माँ का प्यार माँ का संयम 
सच है माँ की भूख बच्चे संग जुड़ी है
आज मैं माँ हूँ 

Wednesday, January 24, 2018

हमारे कर्म

एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।

एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।

दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।

और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।

अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?

वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।

उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।

अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।

फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।

वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।

फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।

अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है...?

तो चलिये हम आपको बताते है इस कथा का सार।

जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते है।

सब से पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर' हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।

दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी' जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।

और तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म' जो सदा ही साथ जाते है।

अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता। जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।

दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है। तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।

और तीसरा मित्र आपके कर्म है।

कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।

अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी

Sunday, January 21, 2018

देने वाला कौन

आज हमने भंडारे में भोजन करवाया। आज हमने ये बांटा, आज हमने वो दान किया...
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 हम अक्सर ऐसा कहते और मानते हैं। इसी से सम्बंधित एक अविस्मरणीय कथा सुनिए...
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एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।
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एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
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कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला। 
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।"
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समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा---
"ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।"
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अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया। 
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लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। 
उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
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लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। 
यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
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कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---"ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।"
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साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया। 
इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।"
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कथासार- *किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो  ये मैंने दिया*!
दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं, तो कहते हैं मैंने दिलाया । 
वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निमित्त मात्र बनाया हैं। ताकी उन तक उनकी जरूरते पहुचाने के लिये। तो निमित्त होने का घमंड कैसा ??
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दान किए से जाए दुःख, दूर होएं सब पाप।।
नाथ आकर द्वार पे, दूर करें संताप।।

Friday, January 19, 2018

नदी में..."धक्का

एक कम्पनी का बॉस अपने स्टॉफ के कामकाज से इतना खुश हुआ कि, एक विदेशी टूर परिवार सहित सबको गिफ्ट किया...!
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परिवार के सदस्यों के साथ, जब स्टॉफ नदी के मझधार में था.....तभी बॉस ने कहा कि........जो सदस्य, मगरमच्छों से भरी इस नदी को तैर कर पर करेगा उसे 5 करोड़ का ईनाम मिलेगा......!!
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और हां यदि जान चली गई तो, आश्रितों को 2 करोड़ दीये जायेंगे.....!!!

सबको सांप सूंघ गया,
सभी के हाथ पांव सुन्न हो गए,
गला सूखा और बोलती बंद थी,
सब एक दूसरे की तरफ देख रहे थे...???
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तभी यह क्या....
एक पुरुष झटके से नदी में कूदा और फटाफट,
तैरते हुए नदी की धार को पार कर, किनारे जा लगा...!!
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सभी हक्के-बक्के थे...!!
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सभी उसकी हिम्मत की दाद दे रहे थे, तथा उसे करोड़पति बनने की बधाई दे रहे थे, कोई भविष्य का प्लान पूछ रहा था, तो कोई जानना चाह रहा था, कि वह अब कम्पनी की नौकरी करेगा या नहीं....??
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पर उसकी पत्नी खामोश थी.....!!
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उधर नदी पार करने वाले की सांस, 
धीमी होने का नाम ही नहीं ले रही थी....!!
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वह जानना चाह रहा था कि आखिर उसे
नाव से नदी में..."धक्का"....किसने दिया....???
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और जब धक्का देने वाले के बारे में पता चला...!
तभी से यह कहावत बनी कि..... 

"हर पुरुष की कामयाबी की पीछे महिला का हाथ होता है"