Wednesday, June 21, 2017

टेढ़ी पूड़ीयाँ

बहू ! आज  माताजी का पूजन करना है घर में ही पूड़ीयाँ , हलवा  और चने का प्रशाद बनेगा ।"
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"ओहो ! ये त्योहार भी आज ही आना था और ऊपर से ये पुराने रीतिरिवाज ढ़ोने वाली ये सास । इनके मुंह में तो जुबान  ही नहीं है जो कुछ  कह सकें माँ से ! "
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"अरे! यार कभी तो माँ की भी मान लिया करो  , हमेशा अपनी ही चलाती हो । इस बार तो अपनी मनमर्जी  को लगाम  दो! "
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"तुम्हें मालूम है न ....मुझसे ये सब  नहीं होने वाला है । रही बात बच्चियों में देवी माँ को देखने की तो मैं समझती हूँ कि अब जिस तरह से छोटी -छोटी देवियाँ राक्षसों द्वारा हलाल की जा  रहीं हैं , पूजा  से ज्यादा उन्हें बचाने की जरूरत है ।"
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"ये तुम  और तुम्हारी  समाज सेवा मैं  तो समझ सकता हूँ  मगर माँ  नहीं समझेगी और ज्यादा देर हुई तो  वो खुद   बैठ जाएंगी रसोई में और फिर जो होगा तुम जानती ही हो । "
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"कोई चिंता की  जरूरत नहीं है मुझे मालूम था कि आज  ये सब होने वाला है और मैं पहले ही इंतजाम करके आई थी रात को ही । पंडित जी सुबह नौ बजे आएंगे और साथ ही  बच्चियाँ भी आएंगी ।"
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लगभग एक घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी तो पंडित जी  के साथ दस बारह बच्चियाँ भी थी । पूजा स्थान पर पंडित जी को सामान देकर वह सास को भी बुला लाई । पूजा  अच्छी तरह से सम्पन्न हुई अब भोग लगाने की बारी थी । 
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"जाओ बहू  भोग का सामान ले आओ !"
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"लंच  बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की कई थैलियाँ बहू ने सामने रख दीं । "
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"अरे! ये क्या है ? कन्या पूजन करना है मुझे ! देवी को भोग लगाना है । प्रसाद क्या बनाया है वो लेकर आओ ।"
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"माँ ! देवी तो कोई प्रसाद नहीं खाती उन्हें जो भी भोग लगा दो वे ग्रहण कर लेती है । ये बच्चियाँ भी देवी का ही रूप हैं । मैंने इनके लिए पनीर, पुलाव  बनाया  है और रोटियाँ हैं मिठाई बाहर से मँगवा ली  है । इसी का भोग लगेगा आज !"
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"राम राम राम ! कैसी बात कर रही हो बहू ? क्या तुम पूजा को भी मज़ाक समझती हो ? देवी माँ नाराज  हो जाएंगी !"
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"माँ जी ! ये तो मैं नहीं जानती कि देवी माँ नाराज  होंगी या नहीं पर ये जरूर जानती हूँ कि ये बच्चियाँ जो मैंने पास की गरीब बस्ती से बुलाई  हैं आज जरूर खुश होंगी और दूसरों को खुशी देना ही पूजा है मेरे लिए । "
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सास हैरान और परेशान उस सामान को देख रही थी और साथ  ही बहू को । 
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"पंडित जी से देवी माँ को मिठाई और भोजन का भोग लगवाकर पूजा समाप्त करें ताकि बच्चियों को भोजन करवाया जा सके ।"
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बच्चियों को अच्छे और नए आसनों पर बैठाया गया । सब के सामने भोजन परोसा गया और प्रेम से बच्चियों को भोजन करवाया गया । 
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"आइये माँ  जी ! लीजिये कन्याओं को अपने हाथों से उपहार  दीजिये !"
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अनमने मन से सास आगे आई तो बहू ने पचास -पचास के नोट उनके हाथों  में थमा दिये । हर बच्ची को लंच  बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की थैली के साथ पचास रुपये दिये ।
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"बहू ! तू तो पैसे लुटा रही है बेकार में इन गरीबों पर और ये मनमानी ठीक नहीं    है ।" 
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"माँ जी ! ये जिंदा देवियाँ हैं , इनकी मदद ही हमारी पूजा है । जो प्रसाद गलियों में फेंक दिया जाय और अनादर हो, मैं पसंद नहीं करती , इसलिए मैंने जरूरत का सामान उन्हें दिया है जिस से सही में खुशी हासिल हो । वैसे भी पूजा के बदले हम चाहते भी क्या हैं खुशी ही न ! अब मेरी टेढ़ी-मेढ़ी पूड़ीयाँ ये खुशी कहाँ दे पाती !"
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"सही कह रही है बहू ! मैं ही न समझ सकी तेरी बात । तेरी पूजा  ही सफल है ।" और बहू को गले लगा लिया ।

Thursday, June 15, 2017

वृंदावन की एक गोपी

वृंदावन की एक गोपी रोज दूध दही बेचने मथुरा जाती थी, एक दिन व्रज में एक संत आये, गोपी भी कथा सुनने गई, संत कथा में कह रहे थे, भगवान के नाम की बड़ी महिमा है, नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते है.  नाम तो भव सागर से तारने वाला है, यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोडना. कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली, बीच में यमुना जी थी. गोपी को संत की बात याद आई, संत ने कहा था भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है, जिस भगवान का नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता ? ऐसा सोचकर गोपी ने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई. अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर गई, पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई, और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया पार जाने का, रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने पड़ेगे. एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये, अगले दिन गोपी जब दही बेचने गई, तब संत से घर में भोजन करने को कहा संत तैयार हो गए, अब बीच में फिर यमुना नदी आई. संत नाविक को बुलने लगा तो गोपी बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे है. हम ऐसे ही यमुना जी में चलेगे. संत बोले - गोपी ! कैसी बात करती हो, यमुना जी को ऐसे ही कैसे पार करेगे ?*
गोपी बोली - बाबा ! आप ने ही तो रास्ता बताया था, आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है. तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते ? और मै ऐसा ही करने लगी, इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती. संत को विश्वास नहीं हुआ बोले - गोपी तू ही पहले चल ! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ, गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई. अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से पानी में गिर गए, संत को बड़ा आश्चर्य, अब गोपी ने जब देखा तो कि संत तो पानी में गिर गए है तब गोपी वापस आई है और संत का हाथ पकड़कर जब चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे जमीन पर चल रहे हो संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े, और बोले - कि गोपी तू धन्य है ! वास्तव में तो सही अर्थो में नाम का आश्रय तो तुमने लिया है और मै जिसने नाम की महिमा बताई तो सही पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया.. सच मे भक्त मित्रो हम भगवान नाम का जप एंव आश्रय तो लेते है पर भगवान नाम मे पूर्ण विश्वाव एंव श्रद्धा नही होने से हम इसका पूर्ण लाभ प्राप्त नही कर पाते.. शास्त्र बताते है कि भगवान श्री कृष्ण का एक नाम इतने पापो को मिटा सकता है जितना कि एक पापी व्यक्ति कभी कर भी नही सकता.. अतएव भगवान नाम पे पूर्ण श्रद्धा  एंव विश्वास रखकर ह्रदय के अंतकरण से भाव विह्वल होकर जैसे एक छोटा बालक अपनी माँ के लिए बिलखता है ..उसी भाव से सदैव नाम प्रभु का सुमिरन एंव जप करे कलियुग केवल नाम अधारा ! सुमिर सुमिर नर उताराहि ही पारा!!*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

Monday, June 12, 2017

दौलत कमाऊँगा

कल रात मैंने एक "सपना"  देखा.! मेरी Death हो गई.... जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे  इसलिये यमराज मुझे  स्वर्ग में ले गये... देवराज इंद्र ने  मुस्कुराकरमेरा स्वागत किया... मेरे हाथ में Bag देखकर पूछने लगे ''इसमें क्या है..?" मैंने कहा... '' इसमें मेरे जीवन भर की कमाई है, पांच करोड़ रूपये हैं ।" इन्द्र ने 'BRP-16011966'  नम्बर के Locker की ओर  इशारा करते हुए कहा- ''आपकी अमानत इसमें रख दीजिये..!'' मैंने Bag रख दी... मुझे एक Room भी दिया... मैं Fresh होकर  Market में निकला... देवलोक के Shopping मॉल मे  अदभूत वस्तुएं देखकर  मेरा मन ललचा गया..! मैंने कुछ चीजें पसन्द करके Basket में डाली, और काउंटर पर जाकर  उन्हें हजार हजार के करारे नोटें देने लगा... Manager ने नोटों को देखकर कहा, ''यह करेंसी यहाँ नहीं चलती..!'' यह सुनकर मैं हैरान रह गया..! मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि, ''आप व्यापारी होकर  इतना भी नहीं जानते..? कि आपकी करेंसी बाजु के मुल्क पाकिस्तान,  श्रीलंका  और बांगलादेश में भी  नही चलती... और आप  मृत्यूलोक की करेंसी स्वर्गलोक में चलाने की  मूर्खता कर रहे हो..?'' यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया..! मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर रोने लगा. और परमात्मा से दरखास्त करने लगा, ''हे भगवान्.ये...  क्या हो गया.?'' ''मैंने कितनी मेहनत से  ये पैसा कमाया..!'' ''दिन नही देखा, रात नही देखा,"'' पैसा कमाया...!'' 'माँ बाप की सेवा नही की, पैसा कमाया, बच्चों की परवरीश नही की, पैसा कमाया... पत्नी की सेहत की ओर ध्यान नही दिया, पैसा कमाया...!'' ''रिश्तेदार, भाईबन्द, परिवार और यार दोस्तों से भी किसी तरह की हमदर्दी न रखते हुए पैसा कमाया.!!" ''जीवन भर हाय पैसा हाय पैसा किया...!
ना चैन से सोया, ना चैन से खाया...  बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!'' ''और यह सब व्यर्थ गया..?'' ''हाय राम,  अब क्या होगा..!'' इंद्र ने कहा,- ''रोने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है.!! " जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।" "जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये,
 धीरू भाई अम्बानी के  29 हजार करोड़ अमेरिकन डॉलर... सबका पैसा यहां पड़ा है...!" मैंने इंद्र से पूछा-
"फिर यहां पर कौनसी करेंसी चलती है..?" इंद्र ने कहा- "धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म किये है...! जैसे किसी दुखियारे को मदद की, किसी रोते हुए को हसाया, किसी गरीब बच्ची की शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया...! किसी को व्यसनमुक्त किया...!  किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया...!" "ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को यहाँ पर एक Credit Card मिलता है...! और उसे वापर कर आप यहाँ स्वर्गीय सुख का उपभोग ले सकते है..!'' मैंने कहा, "भगवन....  मुझे यह पता नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!" "हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये..!'' और मैं गिड़गिड़ाने लगा.! इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!! इंद्र ने तथास्तु कहा और मेरी नींद खुल गयी..! मैं जाग गया..! अब मैं वो दौलत कमाऊँगा
जो वहाँ चलेगी..!!

Friday, June 9, 2017

आपसी प्रेम

एक सुनार  से लक्ष्मी  जी  रूठ गई । जाते वक्त  बोली मैं जा रही  हूँ और मेरी जगह  नुकसान आ रहा है । तैयार  हो जाओ। लेकिन  मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ। मांगो जो भी इच्छा  हो। सुनार बहुत समझदार  था।
उसने  विनती  की नुकसान आए तो आने  दो । लेकिन  उससे कहना की मेरे परिवार  में आपसी  प्रेम  बना रहे। बस मेरी यही इच्छा  है। लक्ष्मी  जी  ने  तथास्तु  कहा। कुछ दिन के बाद  सुनार की सबसे छोटी  बहू  खिचड़ी बना रही थी। उसने नमक आदि  डाला  और अन्य  काम  करने लगी। तब दूसरे  लड़के की  बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई। इसी प्रकार  तीसरी, चौथी  बहुएं  आई और नमक डालकर  चली गई  उनकी सास ने भी ऐसा किया। शाम  को सबसे पहले सुनार  आया। पहला निवाला  मुह में लिया। देखा बहुत ज्यादा  नमक  है। लेकिन  वह समझ गया  नुकसान (हानि) आ चुका है। चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया। इसके बाद  बङे बेटे का नम्बर आया। पहला निवाला  मुह में लिया। पूछा पिता जी  ने खाना खा लिया क्या कहा उन्होंने ? सभी ने उत्तर दिया-" हाँ खा लिया, कुछ नही बोले।" अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ  नही  बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ। इस प्रकार घर के अन्य  सदस्य  एक -एक आए। पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए। रात  को नुकसान (हानि) हाथ जोड़कर सुनार से कहने लगा  -,"मै जा रहा हूँ।" सुनार ने पूछा- क्यों ? तब नुकसान (हानि ) कहता है, " आप लोग एक किलो तो नमक खा गए  ।
लेकिन  बिलकुल  भी  झगड़ा  नही हुआ। मेरा यहाँ कोई काम नहीं।" निचोङ  झगड़ा कमजोरी, हानि, नुकसान  की पहचान है। जहाँ प्रेम है, वहाँ लक्ष्मी  का वास है। सदा प्यार -प्रेम  बांटते रहे। छोटे -बङे  की कदर करे ।
जो बङे हैं, वो बङे ही रहेंगे । चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई   से बङी हो।

Sunday, June 4, 2017

गरीब आदमी

जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई, एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए।
" ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।" कह टीसी आगे चला गया।
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। " साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।" टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी।देश में बुलेट ट्रेन जो आ रही है।एक लाख करोड़ का खर्च है।कहाँ से आयेगा इतना पैसा ? रसीद बना-बनाकर ही तो जमा करना है।ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।" इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो। पास ही खड़े दो यात्री बतिया रहे थे।" ये बुलेट ट्रेन क्या बला है ? "
" बला नहीं जादू है जादू।बिना पासपोर्ट के जापान की सैर। जमीन पर चलने वाला हवाई जहाज है, और इसका किराया भी हबाई सफ़र के बराबर होगा, बिना रिजर्वेशन उसे देख भी लो तो चालान हो जाएगा। एक लाख करोड़ का प्रोजेक्ट है। राजा हरिश्चंद्र को भी ठेका मिले तो बिना एक पैसा खाये खाते में करोड़ों जमा हो जाए।
सुना है, "अच्छे दिन " इसी ट्रेन में बैठकर आनेवाले हैं। "
उनकी इन बातों पर आसपास के लोग मजा ले रहे थे। मगर वे दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे
ऐसे बैठे थे मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके सोग में जा रहे हो। कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए? क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं। आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।" पत्नी के कहा। " मगर मुन्ने के कम करना....""
और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-" इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।" उसकी आँख फिर छलके पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें
मोदीजी को वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत

Thursday, June 1, 2017

आपको भी सर्दी लगती है क्या

रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे कृष्ण प्रेरणा से ब्रज में आकर बस गये उनका कन्हैया से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया पर्दा हटाकर देखा तो हलवे में छोटी छोटी उँगलियों के निशान थे  जिसे देख कर 'निक्सन' की आखों से अश्रु धारा बहने लगी  क्यूँ कि इससे पहले भी वे कई बार भोग लगा चुके थे पर पहलेकभी ऐसा नहीं हुआ था | और एक दिन तो ऐसी घटना घटी कि सर्दियों का समय था, निक्सन जी कुटिया के बाहर सोते थे | ठाकुर जी को अंदर सुलाकर विधिवत रजाई ओढाकर फिर खुद लेटते थे | एक दिन निक्सन सो रहे थे मध्यरात्रि को अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें आवाज दी हो... दादा ! ओ दादा ! उन्होंने उठकर देखा जब कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे हो सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया.... दादा ! ओ दादा ! उन्होंने अंदर जाकर देखा तो पता चला की वे ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाना भूल गये थे | वे ठाकुर जी के पास जाकर बैठ गये और बड़े प्यार से बोले... ''आपको भी सर्दी लगती है क्या...?'' निक्सन का इतना कहना था कि ठाकुर जी के श्री विग्रह से आसुओं की अद्भुत धारा बह चली... ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सनजी भी फूट फूट कर रोने लगे.....
उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी | हे ठाकुर जी ! हम इस लायक तो नहीं कि ऐसे भाव के साथ आपके लिए रो सकें..... पर फिर भी इतनी प्रार्थना करते हैं कि.... ''हमारे अंतिम समय में हमे दर्शन भले ही न देना पर अंतिम समय तक ऐसा भाव जरूर दे देना जिससे आपके लिए तडपना और व्याकुल होना ही हमारी मृत्यु का कारण बने....''

Monday, May 29, 2017

पत्नी का गुस्सा

पति के घर में प्रवेश करते ही
पत्नी का गुस्सा फूट पड़ा :

“पूरे दिन कहाँ रहे? आफिस में पता किया, वहाँ भी नहीं पहुँचे! मामला क्या है?”

“वो-वो… मैं…”

पति की हकलाहट पर झल्लाते हुए पत्नी फिर बरसी, “बोलते नही? कहां चले गये थे। ये गंन्दा बक्सा और कपड़ों की पोटली किसकी उठा लाये?”

“वो मैं माँ को लाने गाँव चला गया था।”
पति थोड़ी हिम्मत करके बोला।

“क्या कहा? तुम्हारी मां को यहां ले आये? शर्म नहीं आई तुम्हें? तुम्हारे भाईयों के पास इन्हे क्या तकलीफ है?”

आग बबूला थी पत्नी!
उसने पास खड़ी फटी सफेद साड़ी से आँखें पोंछती बीमार वृद्धा की तरफ देखा तक नहीं।

“इन्हें मेरे भाईयों के पास नहीं छोड़ा जा सकता। तुम समझ क्यों नहीं रहीं।”
पति ने दबीजुबान से कहा।

“क्यों, यहाँ कोई कुबेर का खजाना रखा है? तुम्हारी सात हजार रूपल्ली की पगार में बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च कैसे चला रही हूँ, मैं ही जानती हूँ!”
पत्नी का स्वर उतना ही तीव्र था।

“अब ये हमारे पास ही रहेगी।”
पति ने कठोरता अपनाई।

“मैं कहती हूँ, इन्हें इसी वक्त वापिस छोड़ कर आओ। वरना मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी और इन महारानीजी को भी यहाँ आते जरा भी लाज नहीं आई?”

कह कर पत्नी ने बूढी औरत की तरफ देखा, तो पाँव तले से जमीन ही सरक गयी!

झेंपते हुए पत्नी बोली:
“मां, तुम?”

“हाँ बेटा! तुम्हारे भाई और भाभी ने मुझे घर से निकाल दिया। दामाद जी को फोन किया, तो ये मुझे यहां ले आये।”

बुढ़िया ने कहा, तो पत्नी ने गद्गद् नजरों से पति की तरफ देखा और मुस्कराते हुए बोली।

“आप भी बड़े वो हो, डार्लिंग! पहले क्यों नहीं बताया कि मेरी मां को लाने गये थे?”