Tuesday, January 21, 2025

सच्चा पुत्र आज्ञाकारी होता है, सच्चा पिता प्रेम करने वाला होता है, और सच्चा मित्र ईमानदार होता है

गंगा नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा गाँव था, जहाँ एक किसान परिवार रहता था। इस परिवार में एक पिता, रामनारायण, और उनका पुत्र, अर्जुन, रहते थे। रामनारायण सरल स्वभाव के व्यक्ति थे और अपनी मेहनत से अपने परिवार की देखभाल करते थे। अर्जुन भी बहुत मेहनती और होनहार था। बचपन से ही उसे सिखाया गया था कि जीवन में सफलता और सुख के लिए सच्चाई, प्रेम, और आज्ञाकारिता आवश्यक हैं।

रामनारायण अपने बेटे से बहुत प्रेम करते थे और उसकी हर इच्छा को पूरा करने की कोशिश करते थे। हालांकि, वह अर्जुन को यह भी सिखाते थे कि जीवन में हर सफलता के लिए मेहनत और अनुशासन जरूरी होता है। अर्जुन एक आज्ञाकारी पुत्र था और अपने पिता के हर निर्देश को बिना किसी सवाल के मानता था। उसने कभी भी अपने पिता की बातों को हल्के में नहीं लिया और हमेशा उनका सम्मान किया।

एक दिन अर्जुन ने अपने पिता से पूछा, "पिताजी, क्या मैं एक अच्छा पुत्र हूँ?"

रामनारायण ने मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, सच्चा पुत्र वही होता है जो आज्ञाकारी हो, अपने माता-पिता की बातों का सम्मान करे, और उनके निर्देशों का पालन करे। तुम वही करते हो, इसलिए तुम सच्चे पुत्र हो।"

अर्जुन ने गर्व से अपने पिता के पैरों को छुआ और कहा, "मैं हमेशा आपकी बातें मानूँगा, पिताजी।"

समय बीता और अर्जुन की दोस्ती गाँव के एक अन्य लड़के, भीम, से हो गई। भीम गरीब परिवार से था, परंतु वह ईमानदारी और निष्ठा में सबसे आगे था। अर्जुन और भीम एक-दूसरे के अच्छे मित्र बन गए। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि वे एक-दूसरे के बिना कुछ भी नहीं करते थे। भीम हमेशा अर्जुन को सही राह पर चलने के लिए प्रेरित करता था और कभी भी झूठ या छल-कपट का सहारा नहीं लेता था।

एक दिन गाँव में एक बड़ा मेला लगा। अर्जुन और भीम दोनों ने वहाँ जाने का निर्णय किया। मेला गाँव से कुछ दूरी पर था, इसलिए अर्जुन ने अपने पिता से मेले में जाने की अनुमति मांगी। रामनारायण ने थोड़ी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "अर्जुन, मेले में कई तरह की भीड़ और झमेले होते हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम सावधानी से जाओ और समय पर वापस आओ।"

अर्जुन ने वादा किया, "पिताजी, मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा और समय पर वापस आ जाऊँगा।"

रामनारायण ने अपने पुत्र के ऊपर विश्वास किया और उसे जाने की अनुमति दे दी। अर्जुन और भीम मेले में पहुंच गए और वहां खूब आनंद लिया। लेकिन जब लौटने का समय आया, तो अर्जुन ने देखा कि मेला समाप्त होने के बावजूद समय का ध्यान नहीं रखा था, और अब वे काफी देर कर चुके थे।

भीम ने अर्जुन से कहा, "अर्जुन, तुम्हें समय पर घर लौटने का वादा किया था, अब देर हो गई है। हमें जल्दी चलना चाहिए, ताकि तुम्हारे पिता नाराज़ न हों।"

अर्जुन ने भीम की बात मानी और दोनों जल्द ही घर की ओर चल पड़े। रास्ते में अर्जुन के मन में डर था कि वह अपने पिता के विश्वास को तोड़ चुका है। जब वे घर पहुंचे, तो अर्जुन ने देखा कि रामनारायण बाहर खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

अर्जुन ने सिर झुका कर कहा, "पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। मैं समय पर नहीं लौट पाया, मैंने आपकी आज्ञा का पालन नहीं किया।"

रामनारायण ने धीरे-से मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, मैं जानता हूँ कि तुमने कोई गलत इरादा नहीं रखा था। समय की भूल हो जाती है, लेकिन तुमने अपनी गलती स्वीकार की, यही तुम्हारी सच्चाई और आज्ञाकारिता का प्रमाण है। सच्चे पिता का काम केवल डांटना नहीं होता, वह अपने पुत्र को प्रेम और समझ से सही राह दिखाता है।"

यह सुनकर अर्जुन को अपने पिता के प्रेम और विश्वास की गहराई समझ में आई। उसने अपने पिता से वादा किया कि वह भविष्य में और अधिक ध्यान रखेगा।

भीम, जो यह सब देख रहा था, ने अर्जुन से कहा, "सच्चे मित्र की ईमानदारी यही होती है कि वह अपने दोस्त को सही समय पर सही बात कह सके, चाहे वह कितनी भी कठिन क्यों न हो। अगर मैंने तुम्हें मेला छोड़ने के लिए न कहा होता, तो शायद हम और देर कर देते।"

अर्जुन ने भीम की ओर देखते हुए कहा, "तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे मेरी गलती का एहसास कराया, और सच्चे मित्र वही होते हैं जो एक-दूसरे को सच कहने से पीछे नहीं हटते।"

इस प्रकार अर्जुन ने उस दिन सीखा कि सच्चा पुत्र आज्ञाकारी होता है, सच्चा पिता प्रेम करने वाला होता है, और सच्चा मित्र ईमानदार होता है। ये तीनों गुण जीवन में सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, और इन्हीं के बल पर रिश्ते मजबूत बनते हैं।--

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