एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले।
पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे, पुराने डोंगे, कटोरियां, प्याले और थालियां आदि।
सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।
फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और नए लाए हुए बर्तन करीने से रखकर सजा दिए।
बड़ा ही पॉश लग रहा था अब किचन।
फिर वो सोचने लगी कि अब ये जूनापुराना सामान भंगारवाले को दे दिया तो समझो हो गया काम।
इतने में उस महिला की कामवाली आ गई।
दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या?
और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।
महिला बोली- अरी नहीं! ये सब तो भंगारवाले को देने हैं।
कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर बोली- मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं? (साथ ही साथ में उसकी आंखों के सामने घर में पड़ा हुआ उसका तलहटी में पतला हुआ और किनारे से चीर पड़ा हुआ इकलौता पतीला नजर आ रहा था)
महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा।
उतना ही पसारा कम होगा।
कामवाली की आंखें फैल गईं- क्या! सब कुछ?
उसे तो जैसे आज अलीबाबा की गुफा ही मिल गई थी।
फिर उसने अपना काम फटाफट खतम किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर के ओर निकली।
आज तो जैसे उसे चार पांव लग गए थे।
घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना जूना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किया, और फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिया।
आज उसके एक कमरेवाला किचन का कोना पॉश दिख रहा था।
तभी उसकी नजर अपने जूने पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई- अब ये जूना सामान भंगारवाले को दे दिया कि समझो हो गया काम।
तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- मां! पानी दे।
कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।
जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली- फेंक दो कहीं भी।
वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए?
क्या मैं रख लूं मेरे पास?
कामवाली बोली- रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ।
और फिर उसने जो-जो भी भंगार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।
वो भिखारी खुश हो गया।
पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।
आज ऊसकी फटी झोली पॉश दिख रही थी।
सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।
हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है।
जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं।
और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है l
No comments:
Post a Comment