Friday, June 13, 2025

जागते हुए सपने

 छत्तीसगढ़ के एक छोटे से कस्बे भानुप्रतापपुर में रहने वाला रवि एक सामान्य परिवार का लड़का था। उसके पिता एक बढ़ई थे और मां घरों में काम करती थीं। रवि पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन परिस्थितियाँ उसकी राह को कठिन बना रही थीं। 

रवि का सपना थाएक दिन बड़ा अफसर बनकर अपने मां-बाप को आराम की जिंदगी देना। जब भी वो आंखें बंद करता, खुद को पुलिस की वर्दी में देखता। पर जैसे ही आंखें खुलतीं, टूटे चप्पल, किताबों की कमी और दो वक्त की रोटी की चिंता सामने खड़ी मिलती।


एक दिन स्कूल में शिक्षक ने पूछा, "तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?"

सब बच्चों ने जल्दी-जल्दी जवाब दिएडॉक्टर, इंजीनियर, टीचर...

रवि चुप था। जब गुरुजी ने उसे टोका, तो उसने धीरे से कहा, "मैं IPS बनना चाहता हूं।"

क्लास हँसने लगी। एक लड़का बोला, "तेरे जैसे गरीब लड़के के लिए सपना देखना ही गुनाह है!"


रवि की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उस दिन घर आकर वह बहुत देर तक सोचता रहा। फिर उसने एक पेन उठाया और अपने कमरे की दीवार पर लिखा:

"सपने वो नहीं जो नींद में आएं, सपने वो हैं जो नींद को तोड़ दें!"


अगले दिन से रवि की जिंदगी बदल गई। वह सुबह 4 बजे उठता, खेत के कोने में बैठकर टॉर्च की रोशनी में पढ़ता। स्कूल से लौटकर मां के काम में हाथ बंटाता और फिर रात को फिर से पढ़ाई करता। उसके दोस्त खेलते, त्योहार मनाते, लेकिन रवि के पास सिर्फ एक ही त्योहार थाउसका सपना।


धीरे-धीरे उसके शिक्षक भी उसके जुनून को समझने लगे और मदद करने लगे। किताबें जुटाईं, पुराने नोट्स दिए और मोटिवेशन दिया।

 

पर रास्ता आसान नहीं था। एक बार उसके पिता बीमार पड़ गए और घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया। मां बोली, "रवि, पढ़ाई बाद में कर लेना, पहले कुछ काम कर लो।"


रवि ने मां का हाथ थामा और कहा, "अम्मा, अगर मैं अभी रुक गया, तो हम हमेशा ऐसे ही जिएंगे। थोड़ी तकलीफ और सही, पर एक दिन मैं सब बदल दूंगा।"


उसने दिन में सब्जी बेचने का काम शुरू किया और रात में पढ़ाई करता रहा। जिस उम्र में बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं, रवि अपनी किताबों के पन्नों में भविष्य तलाशता रहा।


सालों की मेहनत के बाद वह दिन आया जब UPSC का रिजल्ट आया। गांव में किसी के पास इंटरनेट नहीं था, तो रवि साइकिल से 10 किलोमीटर दूर साइबर कैफे गया। रोल नंबर डाला, स्क्रीन पर लिखा था—“Qualified – IPS”


रवि की आंखों से आंसू बह निकले। वो भागकर अपने गांव लौटा और अपनी मां को गले लगाकर कहा, "अम्मा, अब तुम दूसरों के घर नहीं जाओगी। अब सब बदल जाएगा।"


पूरा गांव चकित था। वही लड़का, जिस पर कभी हंसी उड़ाई गई थी, अब गर्व का प्रतीक बन गया था।

रवि ने दीवार से वह पुराना कागज निकाला और एक नई फ्रेम में सजाकर अपने ऑफिस में लगाया

"सपने वो नहीं जो नींद में आएं, सपने वो हैं जो नींद को तोड़ दें!"


सीख:

सपने वो नहीं होते जो सोते वक्त सुंदर लगें। असली सपने वो होते हैं जो इंसान को सोने न दें, जो हर सुबह एक मकसद के साथ उठने को मजबूर करें, और जो हिम्मत, जुनून और मेहनत से पूरे किए जाएं।

Tuesday, June 10, 2025

नई सुबह, नया रास्ता

छोटे से गांव रामपुर में एक लड़का रहता थानाम था अर्जुन। अर्जुन एक साधारण किसान परिवार से था, लेकिन उसके सपने साधारण नहीं थे। वह कुछ बड़ा करना चाहता था, पर उसे खुद पर विश्वास नहीं था।


हर सुबह वह खेतों में अपने पिता के साथ काम करता, लेकिन उसका मन अक्सर शहर की ओर भागता। वह सोचता, "काश! मैं भी कुछ अलग कर पाता।" पर जैसे ही वह कुछ करने की कोशिश करता, डर और असफलता का ख्याल उसे पीछे खींच लेता।

 

एक दिन गांव में एक वृद्ध व्यक्ति आए। उनका नाम था श्रीमान प्रसाद। उन्होंने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। अर्जुन भी उनके पास सीखने जाने लगा। एक दिन प्रसाद जी ने बोर्ड पर एक वाक्य लिखा

"हर सुबह एक नया मौका है खुद को बेहतर बनाने का। उठो, जागो और आगे बढ़ो!"


अर्जुन ने वह पंक्ति ध्यान से पढ़ी और पूछा, “गुरुजी, क्या हर सुबह सच में कोई नया मौका लाती है?”


प्रसाद जी मुस्कराए और बोले, “बिलकुल, बेटा। जब सूरज उगता है, तो वह सिर्फ रोशनी नहीं लाता, बल्कि उम्मीद और नए सपनों की किरणें भी लाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कौन उस रोशनी में चलने का साहस करता है।

 

उस दिन के बाद अर्जुन ने तय किया कि वह हर दिन को एक नए मौके की तरह जीएगा। उसने अपनी दिनचर्या बदली। सुबह जल्दी उठता, पढ़ाई करता, खेती में मदद करता और शाम को प्रसाद जी से ज्ञान लेता।


धीरे-धीरे उसमें आत्मविश्वास आने लगा। उसने एक दिन गांव में ही एक छोटा लाइब्रेरी खोल दी ताकि बाकी बच्चे भी पढ़ सकें। कुछ लोग हँसे, बोले, “किसान का बेटा क्या किताबों का काम करेगा?” पर अर्जुन ने ध्यान नहीं दिया।


हर सुबह वह खुद से कहता, “उठो, जागो और आगे बढ़ो!” और यही मंत्र उसका संबल बन गया।


समय बीता। अर्जुन ने सरकारी परीक्षा पास की और एक शिक्षक बन गया। उसने गांव में एक स्कूल की नींव रखी। अब वह दूसरों को भी वही सिखाता था जो उसने सीखाहर दिन एक नई शुरुआत है।


गांव के लोग अब अर्जुन पर गर्व करते थे। वह न केवल खुद को बेहतर बना पाया, बल्कि गांव के बच्चों के भविष्य को भी रोशन कर पाया।

एक दिन, उसी बोर्ड पर वह पंक्ति दोबारा लिखी गई

"हर सुबह एक नया मौका है खुद को बेहतर बनाने का। उठो, जागो और आगे बढ़ो!"

लेकिन इस बार, वह पंक्ति सिर्फ एक सीख नहीं थी, वह अर्जुन की ज़िंदगी की कहानी बन चुकी थी।


सीख:

हर इंसान की ज़िंदगी में मौका आता है, फर्क बस इतना है कि कौन उस मौके को पहचानकर उसका उपयोग करता है। सुबह की पहली किरण के साथ हम सबको एक नई शुरुआत का वरदान मिलता है। बस ज़रूरत है तो उठने, जागने और आगे बढ़ने की।

Thursday, June 5, 2025

रास्ता ही मंज़िल की पहचान है

उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में एक लड़की रहती थीनेहा। उसका सपना था पहाड़ों के बीचबसे अपने गांव के बच्चों को शिक्षा की रोशनी देना। लेकिन उसके गांव में  स्कूल था शिक्षक।लोग मानते थे कि लड़कियों को पढ़ाने का कोई फायदा नहींवे तो घर ही संभालेंगी।


नेहा बचपन से ही जिद्दी और जुझारू थी। जब उसके भाई खेलते थेवह किताबें पढ़ती थी। गांवके बाहर एक छोटा स्कूल थाजो पहाड़ी रास्तों से होकर 5 किलोमीटर दूर था। वहां तक पहुंचने केलिए उसे रोज़ पत्थरीले रास्तों सेनदी पार करके जाना होता था।


लोग कहते, "इतनी दूर क्यों जाती हैक्या करेगी पढ़-लिखकर?"

नेहा मुस्कराकर कहती, "अगर रास्ता खूबसूरत है तो ज़रूर मंज़िल शानदार होगीबस रुको मतचलते रहो!"


हर दिन की शुरुआत सूरज से पहले होती। सिर पर पानी का घड़ाहाथ में किताबें और मन मेंहौसला। स्कूल पहुंचते-पहुंचते उसके कपड़े कीचड़ से गंदे हो जातेपैर थक जातेलेकिन वह कभीनहीं रुकी।


एक बार बारिश में नदी का पुल बह गया। दूसरे बच्चों ने स्कूल जाना बंद कर दियालेकिन नेहा नेपास की चट्टानों से होकर एक नया रास्ता बना लिया। जब शिक्षक ने पूछा, "इतनी मेहनत क्योंकरती हो?"

उसने कहा, "मुझे मंज़िल से प्यार हैइसलिए रास्ता कितना भी मुश्किल होमैं चलती रहूंगी।"


12वीं पास करने के बाद वह आगे पढ़ने के लिए शहर गई। वहां सब नया थाभाषामाहौललोग। कई बार हिम्मत डगमगाईलेकिन मां की बात याद आती"बेटीतू रुकी तो तुझे रोकनेवाले जीत जाएंगे।"


कॉलेज में उसने समाज सेवा से जुड़ना शुरू किया। हर छुट्टी में वह अपने गांव आती और बच्चों कोपढ़ाती। गांव वालों ने पहले विरोध कियालेकिन धीरे-धीरे बदलाव दिखने लगा। जो बच्चे स्कूलनहीं जाते थेअब पढ़ने लगे।

नेहा ने बी.एडकी पढ़ाई पूरी की और शिक्षक बन गई। लेकिन उसने नौकरी किसी बड़े शहर मेंनहीं कीवह अपने गांव लौटी और वहां पहला स्कूल खोला। खुद पढ़ातीखुद बच्चों के घरजाकर उन्हें बुलाती।


अब वह वही रास्ता रोज़ तय करती थीलेकिन अकेली नहीं। उसके साथ बच्चों की लंबी कतारहोती थी। जो रास्ता कभी डराता थाअब उम्मीद बन चुका था।


गांव का हर कोना अब बच्चों की हँसी से गूंजता था। लोग कहते, “हमने तो सोचा नहीं था कि एकलड़की ये सब कर पाएगी।


नेहा मुस्कराकर कहती,

"रास्ता चाहे कठिन हो या आसानअगर इरादे पक्के होंतो हर मोड़ मंज़िल की ओर ले जाता है।"


उसने स्कूल की दीवार पर एक वाक्य बड़े अक्षरों में लिखा:

"अगर रास्ता खूबसूरत है तो ज़रूर मंज़िल शानदार होगीबस रुको मतचलते रहो!"

Tuesday, May 20, 2025

विश्वास की जीत

बिहार के एक छोटे से गांवमधुपुर में एक लड़का रहता थानाम था करन। साधारण परिवारसीमित संसाधनलेकिन सपने असीम। उसका सपना थादेश के ग्रामीण बच्चों के लिए एकऐसा स्कूल बनानाजो शहरों से बेहतर हो।


गांव में शिक्षा को कोई गंभीरता से नहीं लेता था। करन जब भी अपने दोस्तों से पढ़ने की बातकरतावे हँसते और कहते, "तू किताबों में क्या ढूंढता हैआखिर में सबको तो खेत ही जोतना है!"


करन चुप रहतालेकिन उसका मन बोलता,

"जो खुद पर भरोसा रखते हैंवही दुनिया को बदलने का दम रखते हैं!"


करन के पिता एक किसान थे और माँ घर पर कपड़े सिलती थीं। घर की आर्थिक स्थिति बहुतखराब थी। लेकिन करन को पढ़ाई का जुनून था। वह रोज़ स्कूल 6 किलोमीटर पैदल जाकर पढ़ताऔर लौटकर खेतों में मदद करता।


रात को लालटेन की रोशनी में पढ़ते हुए वह खुद से वादा करता"एक दिन मैं ऐसा स्कूलबनाऊंगाजहां हर बच्चा बिना डर के सपने देख सके।"


गांव के हालात ऐसे थे कि दसवीं के बाद ज़्यादातर बच्चे पढ़ाई छोड़ देते। लेकिन करन ने हार नहींमानी। उसने 12वीं में जिला टॉप किया। अखबार में उसका नाम आया तो गांव में पहली बार लोगउसकी ओर अलग नजर से देखने लगे।


पर असली परीक्षा अभी बाकी थी।


कॉलेज की पढ़ाई के लिए शहर जाना थालेकिन पैसे नहीं थे। करन ने छोटे-मोटे काम किएकभी होटल में बर्तन धोएकभी स्टेशन पर किताबें बेचीं। इन सबके बीच भी उसने पढ़ाई नहींछोड़ी।


एक दिन उसके प्रोफेसर ने पूछा, "इतनी तकलीफों के बावजूद तुम क्यों नहीं हारते?"

करन ने मुस्कराकर जवाब दिया,

"सरमुझे खुद पर भरोसा है। जब तक मैं खुद को नहीं छोड़तादुनिया मुझे नहीं हरा सकती।"


कॉलेज के आखिरी साल में करन ने एक प्रोजेक्ट तैयार किया"गांव के बच्चों के लिए डिजिटलशिक्षा योजना।उसने सरकार को प्रस्ताव भेजालेकिन कई महीनों तक कोई जवाब नहीं आया।दोस्तों ने कहा, "तू क्यों वक्त बर्बाद कर रहा हैनौकरी करजिंदगी चला।"


लेकिन करन का जवाब वही था"जो खुद पर भरोसा रखते हैंवही दुनिया को बदलने का दमरखते हैं!"


आख़िरकारएक दिन करन को राज्य सरकार की ओर से फोन आया। उनका प्रस्ताव पास हो गयाथा। उन्हें एक छोटा अनुदान और जमीन मिलीअपने गांव में पहला मॉडल स्कूल बनाने के लिए।


करन ने खुद मिट्टी उठाईदीवारें बनाईंलोगों को जोड़ापुराने लैपटॉप मंगवाए और एक छोटालेकिन आधुनिक स्कूल खड़ा कर दिया"विश्वास पब्लिक स्कूल"

 

अब गांव के बच्चे जो कभी स्कूल से डरते थेवे डिजिटल क्लास में बैठकर विज्ञानगणित औरकंप्यूटर सीखते थे। जो मां-बाप कभी पढ़ाई को बेकार समझते थेवे खुद बच्चों को स्कूल छोड़नेआए।


करन अब सिर्फ एक लड़का नहीं थावह गांव की आशा और बदलाव की मिसाल बन चुका था।


एक दिन स्कूल की दीवार पर एक बड़ा पोस्टर लगाया गयाजिस पर लिखा था:

"जो खुद पर भरोसा रखते हैंवही दुनिया को बदलने का दम रखते हैं!"


सीख:

दुनिया आपको तब तक नहीं पहचानती जब तक आप खुद को नहीं पहचानते। हालात चाहे जैसेभी होंअगर खुद पर विश्वास होतो असंभव भी संभव बन जाता है।

आख़िरी कोशिश