एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक लड़का नाम रवि रहता था। वह लड़का अपने पड़ोसी राजू के साथ बड़ी दोस्ती करता था। रवि बड़ा सोचने वाला और लक्ष्यों को पाने के लिए मेहनत करने वाला बच्चा था। वह हमेशा सोचता था कि कैसे वह सफलता के मार्ग में आगे बढ़ सकता है और अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकता है।
रवि की पहली आदत यह थी कि वह हमेशा लक्ष्य निर्धारित करता था। वह अपने आप को एक सपने या मिशन से जोड़ता था और उसे पूरा करने के लिए कठिनाइयों का सामना करता था। उसका दृढ़ निर्णय उसे आगे बढ़ने में मदद करता था और उसकी दृढ़ता उसे विपरीत परिस्थितियों के साथ सामना करने की क्षमता प्रदान करती थी।
दूसरी आदत जो रवि की थी, वह आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की विशेषता थी। वह खुद को उसके करतव्यों के लिए योग्य समझता था और खुद के कार्यों पर विश्वास रखता था। रवि जानता था कि यदि वह खुद को सच मानता है और अपनी क्षमताओं का सही उपयोग करता है, तो वह किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
तीसरी आदत जो रवि की थी, वह स्वयं को समय का सही उपयोग करने की आदत थी। वह समय को महत्व देता था और उसे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ाने के लिए उपयोग करता था। उसने यह सीख लिया था कि बिना समय के नियंत्रण के, कोई भी लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए, रवि हमेशा अपने लक्ष्य की प्राथमिकता को समय के साथ सम्बंधित करता था और समय के साथ अपनी मेहनत और प्रैक्टिस करता था।
चौथी आदत जो रवि की थी, वह योग्यताओं का विकास करने की आदत थी। रवि जानता था कि सफलता के लिए उसे अपने कौशल को परिपक्व करना होगा और नई कौशल का अभ्यास करना होगा। उसने सोचा कि जब वह नए कौशल प्राप्त करेगा, तब वह अधिक अवसरों को प्राप्त करेगा और अपनी सफलता को नई सीमाएं पहुंचाएगा। इसलिए, रवि नए कौशलों को सीखने के लिए समय निकालता था और अपनी प्रैक्टिस में निरंतर उन्नति करता था।
पांचवीं आदत जो रवि की थी, वह निरंतरता और संयम की आदत थी। रवि जानता था कि सफलता के लिए संयम और निरंतरता आवश्यक होती हैं। उसकी आदत थी कि वह निरंतर प्रैक्टिस करेगा और अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर होगा। उसने यह सीख लिया था कि सफलता आपको बिना किसी रुकावट के तभी मिलती है जब आप अपनी मेहनत और प्रयासों को निरंतरता के साथ जारी रखते हैं।
छठी और अंतिम आदत जो रवि की थी, वह सहयोग की आदत थी। वह जानता था कि सफलता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए उसको दूसरों के साथ सहयोग करना होगा। रवि अकेले कोई काम नहीं करना चाहता था, वह अपने दोस्तों और परिवार के साथ एक टीम का हिस्सा बनना चाहता था। वह जानता था कि जब वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए दूसरों के साथ मिलकर काम करेगा, तब वह अधिक समर्पित और प्रभावी बनेगा।
रवि ने ये आदतें अपनी जीवन में अपनाई और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए दुनिया के सामरिक क्रिकेटर बनने का संकल्प लिया। वह हर दिन सड़क पर बाल्टी लेकर क्रिकेट की प्रैक्टिस करता था। उसने समय और मेहनत दोनों की कीमत को समझा था और वह निरंतरता के साथ अपने कौशल को सुधारता रहा। उसने स्वयं को विजेता के रूप में देखा और सफलता की ओर बढ़ता रहा।