Wednesday, May 23, 2018

भाग्य

एक सेठ जी थे
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी. 
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.  
जिससे सब धन समाप्त हो गया. 
 बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, 
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?
सेठ जी कहते कि 
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये... 

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये...
दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया.
उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया. 
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली...
सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा... 
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में.
इसलिये कहते हैं कि भाग्य से 
ज्यादा
और... 
समय
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो...
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।
सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।
जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
बहुत ही खूबसूरत लाईनें.
.किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!
डरिये वक़्त की मार से,बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..!
अकल कितनी भी तेज ह़ो,नसीब के बिना नही जीत सकती..!
बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,कभी बादशाह नही बन सका...!!
""ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!
इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!
रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है!!

Tuesday, May 22, 2018

सही प्यार

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा....

छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया...

अब फाइनल इंटरव्यू
कंपनी के डायरेक्टर को लेना था...

और डायरेक्टर को ही तय
करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं...

डायरेक्टर ने छात्र का सीवी (curricular vitae)  देखा और पाया  कि पढ़ाई के साथ- साथ यह  छात्र ईसी (extra curricular activities)  में भी हमेशा अव्वल रहा...

डायरेक्टर- "क्या तुम्हें  पढ़ाई के दौरान
कभी छात्रवृत्ति (scholarship)  मिली...?"

छात्र- "जी नहीं..."

डायरेक्टर- "इसका मतलब स्कूल-कॉलेज  की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."

छात्र- "जी हाँ , श्रीमान ।"

डायरेक्टर- "तुम्हारे पिताजी  क्या काम  करते  है?"

छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं..."

यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ तो दिखाना..."

छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...

डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी  कपड़े धोने में अपने  पिताजी की मदद की...?"

छात्र- "जी नहीं, मेरे  पिता हमेशा यही चाहते थे 
कि मैं पढ़ाई  करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें
पढ़ूं...

हां , एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी  से कपड़े धोते हैं..."

डायरेक्टर- "क्या मैं तुम्हें  एक काम कह सकता हूं...?"

छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."

डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना...
फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."

छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया...
उसे लगा कि अब नौकरी  मिलना तो पक्का है,

तभी तो  डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है...

छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा...

पिता को थोड़ी हैरानी हुई...
लेकिन फिर भी उसने बेटे
की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके
हाथों में दे दिए...

छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया। कुछ देर में ही हाथ धोने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे...

पिता के हाथ रेगमाल (emery paper) की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे...

यहां तक कि जब भी वह  कटे के निशानों पर  पानी डालता, चुभन का अहसास
पिता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था...।

छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये
वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके
लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे...

पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक
कामयाबी का...

पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने  उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले...

उसके पिता रोकते ही रह गए , लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया...

उस रात बाप- बेटे ने काफ़ी देर तक बातें कीं ...

अगली सुबह छात्र फिर नौकरी  के लिए कंपनी के  डायरेक्टर के ऑफिस में था...

डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं...

डायरेक्टर- "हूं , तो फिर कैसा रहा कल घर पर ?
क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे....?"

छात्र- " जी हाँ , श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...

नंबर एक... मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है...
मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था...

नंबर दो... पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है...

नंबर तीन.. . मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार
इतनी शिद्दत के साथ महसूस की..."

डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं...

मैं यह नौकरी केवल उसे  देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे,
ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे...

ऐसा शख्स जिसने
सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो...

मुबारक हो, तुम इस नौकरी  के पूरे हक़दार हो..."

आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें,
बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें...

लेकिन साथ ही  अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है ?

उन्हें  भी अपने हाथों से ये  काम करने दें...

खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें...

ऐसा इसलिए
नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते,
बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं...

आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर
क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं...

सबसे अहम हैं आप के बच्चे  किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें...

एक दूसरे का हाथ
बंटाते हुए काम करने का जज्ब़ा अपने अंदर 
लाएं...

यही है सबसे बड़ी सीख..............

 उक्त कहानी यदि पसंद आई हो तो अपने परिवार में सुनाएँ और अपने बच्चों को सर्वोच्च शिक्षा प्रदान कराये

आँखे बन्द करके जो प्रेम करे वो 'प्रेमिका' है।
आँखे खोल के जो प्रेम करे वो 'दोस्त' है।
आँखे दिखाके जो प्रेम करे वो 'पत्नी' है।
अपनी आँखे बंद होने तक जो प्रेम करे वो 'माँ' है।
परन्तु आँखों में प्रेम न जताते हुये भी जो प्रेम करे वो 'पिता' है।
 दिल से पढ़ो और ग़ौर करो

Sunday, May 20, 2018

मूर्ख कौन

किसी गांव में एक सेठ रहता था. उसका एक ही बेटा था, जो व्यापार के काम से परदेस गया हुआ था. सेठ की बहू एक दिन कुएँ पर पानी भरने गई. घड़ा जब भर गया तो उसे उठाकर कुएँ के मुंडेर पर रख दिया और अपना हाथ-मुँह धोने लगी. तभी कहीं से चार राहगीर वहाँ आ पहुँचे. एक राहगीर बोला, "बहन, मैं बहुत प्यासा हूँ. क्या मुझे पानी पिला दोगी?"

   सेठ की बहू को पानी पिलाने में थोड़ी झिझक महसूस हुई, क्योंकि वह उस समय कम कपड़े पहने हुए थी. उसके पास लोटा या गिलास भी नहीं था जिससे वह पानी पिला देती. इसी कारण वहाँ उन राहगीरों को पानी पिलाना उसे ठीक नहीं लगा.

   बहू ने उससे पूछा, "आप कौन हैं?"

   राहगीर ने कहा, "मैं एक यात्री हूँ"

   बहू बोली, "यात्री तो संसार में केवल दो ही होते हैं, आप उन दोनों में से कौन हैं? अगर आपने मेरे इस सवाल का सही जवाब दे दिया तो मैं आपको पानी पिला दूंगी. नहीं तो मैं पानी नहीं पिलाऊंगी."

   बेचारा राहगीर उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे पाया.

   तभी दूसरे राहगीर ने पानी पिलाने की विनती की.

   बहू ने दूसरे राहगीर से पूछा, "अच्छा तो आप बताइए कि आप कौन हैं?"

   दूसरा राहगीर तुरंत बोल उठा, "मैं तो एक गरीब आदमी हूँ."

   सेठ की बहू बोली, "भइया, गरीब तो केवल दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?"

   प्रश्न सुनकर दूसरा राहगीर चकरा गया. उसको कोई जवाब नहीं सूझा तो वह चुपचाप हट गया.

   तीसरा राहगीर बोला, "बहन, मुझे बहुत प्यास लगी है. ईश्वर के लिए तुम मुझे पानी पिला दो"

   बहू ने पूछा, "अब आप कौन हैं?"

   तीसरा राहगीर बोला, "बहन, मैं तो एक अनपढ़ गंवार हूँ."

   यह सुनकर बहू बोली, "अरे भई, अनपढ़ गंवार तो इस संसार में बस दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?'

   बेचारा तीसरा राहगीर भी कुछ बोल नहीं पाया.

   अंत में चौथा राहगीह आगे आया और बोला, "बहन, मेहरबानी करके मुझे पानी पिला दें. प्यासे को पानी पिलाना तो बड़े पुण्य का काम होता है."

   सेठ की बहू बड़ी ही चतुर और होशियार थी, उसने चौथे राहगीर से पूछा, "आप कौन हैं?"

   वह राहगीर अपनी खीज छिपाते हुए बोला, "मैं तो..बहन बड़ा ही मूर्ख हूँ."

   बहू ने कहा, "मूर्ख तो संसार में केवल दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?"

   वह बेचारा भी उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका. चारों पानी पिए बगैर ही वहाँ से जाने लगे तो बहू बोली, "यहाँ से थोड़ी ही दूर पर मेरा घर है. आप लोग कृपया वहीं चलिए. मैं आप लोगों को पानी पिला दूंगी"

   चारों राहगीर उसके घर की तरफ चल पड़े. बहू ने इसी बीच पानी का घड़ा उठाया और छोटे रास्ते से अपने घर पहुँच गई. उसने घड़ा रख दिया और अपने कपड़े ठीक तरह से पहन लिए.

   इतने में वे चारों राहगीर उसके घर पहुँच गए. बहू ने उन सभी को गुड़ दिया और पानी पिलाया. पानी पीने के बाद वे राहगीर अपनी राह पर चल पड़े.

   सेठ उस समय घर में एक तरफ बैठा यह सब देख रहा था. उसे बड़ा दुःख हुआ. वह सोचने लगा, इसका पति तो व्यापार करने के लिए परदेस गया है, और यह उसकी गैर हाजिरी में पराए मर्दों को घर बुलाती है. उनके साथ हँसती बोलती है. इसे तो मेरा भी लिहाज नहीं है. यह सब देख अगर मैं चुप रह गया तो आगे से इसकी हिम्मत और बढ़ जाएगी. मेरे सामने इसे किसी से बोलते बतियाते शर्म नहीं आती तो मेरे पीछे न जाने क्या-क्या करती होगी. फिर एक बात यह भी है कि बीमारी कोई अपने आप ठीक नहीं होती. उसके लिए वैद्य के पास जाना पड़ता है. क्यों न इसका फैसला राजा पर ही छोड़ दूं. यही सोचता वह सीधा राजा के पास जा पहुँचा और अपनी परेशानी बताई. सेठ की सारी बातें सुनकर राजा ने उसी वक्त बहू को बुलाने के लिए सिपाही बुलवा भेजे और उनसे कहा, "तुरंत सेठ की बहू को राज सभा में उपस्थित किया जाए."

   राजा के सिपाहियों को अपने घर पर आया देख उस सेठ की पत्नी ने अपनी बहू से पूछा, "क्या बात है बहू रानी? क्या तुम्हारी किसी से कहा-सुनी हो गई थी जो उसकी शिकायत पर राजा ने तुम्हें बुलाने के लिए सिपाही भेज दिए?"

   बहू ने सास की चिंता को दूर करते हुए कहा, "नहीं सासू मां, मेरी किसी से कोई कहा-सुनी नहीं हुई है. आप जरा भी फिक्र न करें."

   सास को आश्वस्त कर वह सिपाहियों से बोली, "तुम पहले अपने राजा से यह पूछकर आओ कि उन्होंने मुझे किस रूप में बुलाया है. बहन, बेटी या फिर बहू के रुप में? किस रूप में में उनकी राजसभा में मैं आऊँ?"

   बहू की बात सुन सिपाही वापस चले गए. उन्होंने राजा को सारी बातें बताई. राजा ने तुरंत आदेश दिया कि पालकी लेकर जाओ और कहना कि उसे बहू के रूप में बुलाया गया है.

   सिपाहियों ने राजा की आज्ञा के अनुसार जाकर सेठ की बहू से कहा, "राजा ने आपको बहू के रूप में आने के ले पालकी भेजी है."

   बहू उसी समय पालकी में बैठकर राज सभा में जा पहुँची.

   राजा ने बहू से पूछा, "तुम दूसरे पुरूषों को घर क्यों बुला लाईं, जबकि तुम्हारा पति घर पर नहीं है?"

   बहू बोली, "महाराज, मैंने तो केवल कर्तव्य का पालन किया. प्यासे पथिकों को पानी पिलाना कोई अपराध नहीं है. यह हर गृहिणी का कर्तव्य है. जब मैं कुएँ पर पानी भरने गई थी, तब तन पर मेरे कपड़े अजनबियों के सम्मुख उपस्थित होने के अनुरूप नहीं थे. इसी कारण उन राहगीरों को कुएँ पर पानी नहीं पिलाया. उन्हें बड़ी प्यास लगी थी और मैं उन्हें पानी पिलाना चाहती थी. इसीलिए उनसे मैंने मुश्किल प्रश्न पूछे और जब वे उनका उत्तर नहीं दे पाए तो उन्हें घर बुला लाई. घर पहुँचकर ही उन्हें पानी पिलाना उचित था."

   राजा को बहू की बात ठीक लगी. राजा को उन प्रश्नों के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता हुई जो बहू ने चारों राहगीरों से पूछे थे.

   राजा ने सेठ की बहू से कहा, "भला मैं भी तो सुनूं कि वे कौन से प्रश्न थे जिनका उत्तर वे लोग नहीं दे पाए?"

   बहू ने तब वे सभी प्रश्न दुहरा दिए. बहू के प्रश्न सुन राजा और सभासद चकित रह गए. फिर राजा ने उससे कहा, "तुम खुद ही इन प्रश्नों के उत्तर दो. हम अब तुमसे यह जानना चाहते हैं."

   बहू बोली, "महाराज, मेरी दृष्टि में पहले प्रश्न का उत्तर है कि संसार में सिर्फ दो ही यात्री हैं–सूर्य और चंद्रमा. मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर है कि बहू और गाय इस पृथ्वी पर ऐसे दो प्राणी हैं जो गरीब हैं. अब मैं तीसरे प्रश्न का उत्तर सुनाती हूं. महाराज, हर इंसान के साथ हमेशा अनपढ़ गंवारों की तरह जो हमेशा चलते रहते हैं वे हैं–भोजन और पानी. चौथे आदमी ने कहा था कि वह मूर्ख है, और जब मैंने उससे पूछा कि मूर्ख तो दो ही होते हैं, तुम उनमें से कौन से मूर्ख हो तो वह उत्तर नहीं दे पाया." इतना कहकर वह चुप हो गई.

   राजा ने बड़े आश्चर्य से पूछा, "क्या तुम्हारी नजर में इस संसार में सिर्फ दो ही मूर्ख हैं?"

   "हाँ, महाराज, इस घड़ी, इस समय मेरी नजर में सिर्फ दो ही मूर्ख हैं."

   राजा ने कहा, "तुरंत बतलाओ कि वे दो मूर्ख कौन हैं."

   इस पर बहू बोली, "महाराज, मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं इसका उत्तर दूं."

   राजा को बड़ी उत्सुकता थी यह जानने की कि वे दो मूर्ख कौन हैं. सो, उसने तुरंत बहू से कह दिया, "तुम निःसंकोच होकर कहो. हम वचन देते हैं तुम्हें कोई सज़ा नहीं दी जाएगी."

   बहू बोली, "महाराज, मेरे सामने इस वक्त बस दो ही मूर्ख हैं." फिर अपने ससुर की ओर हाथ जोड़कर कहने लगी, "पहले मूर्ख तो मेरे ससुर जी हैं जो पूरी बात जाने बिना ही अपनी बहू की शिकायत राजदरबार में की. अगर इन्हें शक हुआ ही था तो यह पहले मुझसे पूछ तो लेते, मैं खुद ही इन्हें सारी बातें बता देती. इस तरह घर-परिवार की बेइज्जती तो नहीं होती."
   ससुर को अपनी गलती का अहसास हुआ. उसने बहू से माफ़ी मांगी. बहू चुप रही.
   राजा ने तब पूछा, "और दूसरा मूर्ख कौन है?"
   बहू ने कहा, "दूसरा मूर्ख खुद इस राज्य का राजा है जिसने अपनी बहू की मान-मर्यादा का जरा भी खयाल नहीं किया और सोचे-समझे बिना ही बहू को भरी राजसभा में बुलवा लिया."

   बहू की बात सुनकर राजा पहले तो क्रोध से आग बबूला हो गया, परंतु तभी सारी बातें उसकी समझ में आ गईं. समझ में आने पर राजा ने बहू को उसकी समझदारी और चतुराई की सराहना करते हुए उसे ढेर सारे पुरस्कार देकर सम्मान सहित विदा किया

Saturday, May 19, 2018

लोहे और हीरे में फर्क

एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई।
चेहरे पर झलकता आक्रोश...
संत ने पूछा - बोलो बेटी क्या बात है?
बालिका ने कहा- महाराज हमारे समाज में लड़कों को हर प्रकार की आजादी होती है।
वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती।
इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है।
यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ आदि।
संत मुस्कुराए और कहा...
बेटी तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं?
ये गार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहते हैं।
इसके बावजूद इनका कुछ नहीं बिगड़ता और इनकी कीमत पर भी कोई अन्तर नहीं पड़ता।
लड़कों के लिए कुछ इसी प्रकार की सोच है समाज में।
अब तुम चलो एक ज्वेलरी शॉप में।
एक बड़ी तिजोरी, उसमें एक छोटी तिजोरी।
उसमें रखी छोटी सुन्दर सी डिब्बी में रेशम पर नज़ाकत से रखा चमचमाता हीरा।
क्योंकि जौहरी जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी।
समाज में बेटियों की अहमियत भी कुछ इसी प्रकार की है।
पूरे घर को रोशन करती झिलमिलाते हीरे की तरह।
जरा सी खरोंच से उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं बचता।
बस यही अन्तर है लड़कियों और लड़कों में।
पूरी सभा में चुप्पी छा गई।
उस बेटी के साथ पूरी सभा की आँखों में छाई नमी साफ-साफ बता रही थी लोहे और हीरे में फर्क

Wednesday, May 16, 2018

आराधना में शक्ति

एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था, रोज कथा शुरू करने से पहले "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे।

एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई। उन्हें लगा कि महाराज रोज "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहते हैं, तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे ?

अत: वकील साहब ने महात्मा जी से पूछ ही डाला! महाराज जी आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं, हमें बड़ा रस आता है, परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उस पर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं ?

साधु महाराज ने कहा: हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है, कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं।

वकील ने कहा: महाराज ऐसे बात नहीं बनेगी, हनुमान जी यहां आते हैं इसका कोई सबूत दीजिए। आपको साबित करके दिखाना चाहिए, कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं।

महाराज जी ने बहुत समझाया, कि भैया आस्था को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए, यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्घा का विषय है। आप कहो तो मैं प्रवचन करना बंद कर दूँ, या आप कथा में आना छोड़ दो।

लेकिन वकील नहीं माना। कहता ही रहा, कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं। यह बात और स्थानों पर भी कहते होंगे, इसलिए महाराज आपको तो साबित करना होगा, कि हनुमान जी कथा सुनने आते हैं।

इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा। मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया। हारकर साधु महाराज ने कहा... हनुमान जी हैं या नहीं उसका सबूत कल दिलाऊंगा। कल कथा शुरू हो तब प्रयोग करूंगा।

जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने को कहता हूं आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना, कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर आना और फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूंगा।

कथा से पहले हनुमानजी को बुलाएंगे, फिर आप गद्दी ऊँची उठाना। यदि आपने गद्दी ऊँची कर दी तो समझना कि हनुमान जी नहीं हैं। वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया।

महाराज ने कहा: हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ? यह तो सत्य की परीक्षा है।

वकील ने कहा: मैं गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूंगा। आप पराजित हो गए तो क्या करोगे ? 

साधु ने कहा: मैं कथा वाचन छोड़कर आपके ऑफिस का चपरासी बन जाऊंगा।

अगले दिन कथा पंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग रोजाना कथा सुनने नहीं आते थे, वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आए, काफी भीड़ हो गई, पंडाल भर गया। श्रद्घा और विश्वास का प्रश्न जो था।

साधु महाराज और वकील साहब कथा पंडाल में पधारे। गद्दी रखी गई।

महात्मा जी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण किया और फिर बोले: "आइए हनुमंत जी बिराजिए" ऐसा बोलते ही साधु महाराज के नेत्र सजल हो उठे। मन ही मन साधु बोले... प्रभु! आज मेरा प्रश्न नहीं, बल्कि रघुकुल रीति की पंरपरा का सवाल है। मैं तो एक साधारण जन हूँ। मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना।

फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया गया, आइए गद्दी ऊँची कीजिए। लोगों की आँखे जम गईं। वकील साहब खड़ेे हुए।

उन्होंने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर सके! जो भी कारण रहा, उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया, किन्तु तीनों बार असफल रहे।

महात्मा जी देख रहे थे, गद्दी को पकड़ना तो दूर वकील साहब गद्दी को छू भी न सके। तीनों बार वकील साहब पसीने से तर-बतर हो गए। वकील साहब साधु महाराज के चरणों में गिर पड़े और बोले, महाराज गद्दी उठाना तो दूर, मुझे नहीं मालूम कि क्यों मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुंच पा रहा है।

अत: मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं। कहते है कि श्रद्घा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है। मानो तो देव नहीं तो पत्थर।

प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है, लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है, तो प्रभु बिराजते है

Monday, May 14, 2018

सही-गलत

ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे.
24 वर्षीय पुत्र खिड़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं !
पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया. ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई.
तब तक वो लड़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं !
युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े – आप अपने लड़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?
लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं. मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है.

आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है. थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है. जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें.

Saturday, May 12, 2018

मुसीबत

उद्धव ने कृष्ण से पूछा,जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी,तब आपने उसे वस्त्र देकर द्रौपदी के शील को बचाने का दावा किया!

लेकिन आप यह यह दावा भी कैसे कर सकते हैं?

उसे एक आदमी घसीटकर भरी सभा में लाता है, और इतने सारे लोगों के सामने निर्वस्त्र करने के  लिए छोड़ देता है! एक महिला का शील क्या बचा? आपने क्या बचाया?

अगर आपने संकट के समय में अपनों की मदद नहीं की तो आपको आपाद-बांधव कैसे कहा जा सकता है?

बताईए, आपने संकट के समय में मदद नहीं की तो क्या फायदा? क्या यही धर्म है?" इन प्रश्नों को पूछते-पूछते उद्धव का गला रुँध गया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।

ये अकेले उद्धव के प्रश्न नहीं हैं। महाभारत पढ़ते समय हर एक के मनोमस्तिष्क में ये सवाल उठते हैं!

उद्धव ने हम लोगों की ओर से ही श्रीकृष्ण से उक्त प्रश्न किए।

भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले-
"प्रिय उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि विवेकवान ही जीतता है।

उस समय दुर्योधन के पास विवेक था, धर्मराज के पास नहीं।

यही कारण रहा कि धर्मराज पराजित हुए।"

उद्धव को हैरान परेशान देखकर कृष्ण आगे बोले- "दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसाऔर धन तो बहुत था, लेकिन उसे पासों का खेल खेलना नहीं आता था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि का द्यूतक्रीड़ा के लिए उपयोग किया। यही विवेक है। धर्मराज भी इसी प्रकार सोच सकते थे और अपने चचेरे भाई से पेशकश कर सकते थे कि उनकी तरफ से मैं खेलूँगा।

जरा विचार करो कि अगर शकुनी और मैं खेलते तो कौन जीतता?

पाँसे के अंक उसके अनुसार आते या मेरे अनुसार?

चलो इस बात को जाने दो। उन्होंने मुझे खेल में शामिल नहीं किया, इस बात के लिए उन्हें माफ़ किया जा सकता है। 

लेकिन उन्होंने विवेक-शून्यता से एक और बड़ी गलती की! और वह यह- उन्होंने मुझसे प्रार्थना की कि मैं तब तक सभा-कक्ष में न आऊँ, जब तक कि मुझे बुलाया न जाए!

क्योंकि वे अपने दुर्भाग्य से खेल मुझसे छुपकर खेलना चाहते थे।

वे नहीं चाहते थे, मुझे मालूम पड़े कि वे जुआ खेल रहे हैं!

इस प्रकार उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना से बाँध दिया! मुझे सभा-कक्ष में आने की अनुमति नहीं थी!

इसके बाद भी मैं कक्ष के बाहर इंतज़ार कर रहा था कि कब कोई मुझे बुलाता है! भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब मुझे भूल गए! बस अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे! 

अपने भाई के आदेश पर जब दुस्साशन द्रौपदी को बाल पकड़कर घसीटता हुआ सभा-कक्ष में लाया, द्रौपदी अपनी सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही!

तब भी उसने मुझे नहीं पुकारा!
उसकी बुद्धि तब जागृत हुई, जब दुस्साशन ने उसे निर्वस्त्र करना प्रारंभ किया!

जब उसने स्वयं पर निर्भरता छोड़कर-
'हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम'-
की गुहार लगाई, तब मुझे उसके शील की रक्षा का अवसर मिला।

जैसे ही मुझे पुकारा गया, मैं अविलम्ब पहुँच गया। अब इस स्थिति में मेरी गलती बताओ?"

उद्धव बोले-
"कान्हा आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई! 
क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?"

कृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा-
"इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा? क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे?"

कृष्ण मुस्कुराए-
"उद्धव इस सृष्टि में हरेक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर संचालित होता है।

न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ।

मैं केवल एक 'साक्षी' हूँ।

मैं सदैव तुम्हारे नजदीक रहकर जो हो रहा है उसे देखता हूँ।

यही ईश्वर का धर्म है।"

"वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण! तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे?"

हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप हमें साक्षी बनकर देखते रहेंगे?

आप क्या चाहते हैं कि हम भूल करते रहें? पाप की गठरी बाँधते रहें और उसका फल भुगतते रहें?" उलाहना देते हुए उद्धव ने पूछा!

तब कृष्ण बोले- "उद्धव, तुम शब्दों के गहरे अर्थ को समझो।"

जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे नजदीक साक्षी के रूप में हर पल हूँ, तो क्या तुम कुछ भी गलत या बुरा कर सकोगे?

तुम निश्चित रूप से कुछ भी बुरा नहीं कर सकोगे।

जब तुम यह भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो,तब ही तुम मुसीबत में फँसते हो!