Wednesday, August 24, 2016

आनदं की अनुभूति

एक बार स्वामी रामदास जी भिक्षा मांगते हुए किसी घर के सामने खड़े हुए और उन्होने आवाज लगाई,
"रघुवीर समर्थ !'
घर की स्त्री बाहर आई। उसने उनकी झोली में भिक्षा डाली और कहा, महात्मा जी कोई उपदेश दीजिये।
स्वामी रामदास जी बोले,
" आज नहीं कल दूंगा!'
दूसरे दिन स्वामी रामदास जी ने पुन: उस घर के सामने आवाज लगाई,
" रघुवीर समर्थ!'
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनाई थी। वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आई।
स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया।
वह स्त्री जब खीर डालने लगी तो उसने देखा कि कमंडल में कूड़ा भरा है। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली,
" महाराज कमंडल तो गदां है!'
रामदास जी बोले, " हां गंदा तो है, किंतु खीर इसमें डाल दो।'
स्त्री बोली, " नहीं महाराज तब तो खीर खराब हो जाएगी।
लावों कमंडल मै धो लाती हू।'
स्वामी जी बोले, मतलब जब कमंडल साफ होगा तभी खीर डालोगी।'
स्त्री बोली, "जी महाराज।' स्वामी जी बोले, " मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिंताओ का कूड़ा-- करकट और बुरे संस्कार रुपी गोबर भरा है।
तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ नहीं होगा।
मन साफ हो, तभी आनदं की अनुभूति प्राप्त होती है।

Sunday, August 21, 2016

चींटी और टिड्डा

एक समय की बात है एक चींटी और एक टिड्डा था .
गर्मियों के दिन थे,🐜चींटी दिन भर मेहनत करती और अपने रहने के लिए घर को बनाती, खाने के लिए भोजन भी इकठ्ठा करती जिस से की सर्दियों में उसे खाने पीने की दिक्कत न हो और वो आराम से अपने घर में रह सके !!
जबकि 🐝टिड्डा दिन भर मस्ती करता गाना गाता और 🐜चींटी को बेवकूफ समझता !!
मौसम बदला और सर्दियां आ गयीं !!
 🐜चींटी अपने बनाए मकान में आराम से रहने लगी उसे खाने पीने की कोई दिक्कत नहीं थी परन्तु
🐝 टिड्डे के पास रहने के लिए न घर था और न खाने के लिए खाना !!
वो बहुत परेशान रहने लगा .
दिन तो उसका जैसे तैसे कट जाता परन्तु ठण्ड में रात काटे नहीं कटती !!

एक दिन टिड्डे को उपाय सूझा और उसने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई.
सभी  न्यूज़ चैनल वहां पहुँच गए !

🐝 टिड्डे ने कहा कि ये कहाँ का इन्साफ है की एक देश में एक समाज में रहते हुए 🐜चींटियाँ तो आराम से रहें और भर पेट खाना खाएं और और हम 🐝टिड्डे ठण्ड में भूखे पेट ठिठुरते रहें ..........?

मिडिया ने मुद्दे को जोर - शोर से उछाला, और जिस से पूरी विश्व बिरादरी के कान खड़े हो गए.... !
बेचारा 🐝टिड्डा सिर्फ इसलिए अच्छे खाने और घर से महरूम रहे की वो गरीब है और जनसँख्या में कम है बल्कि 🐜चीटियाँ बहुसंख्या में हैं और अमीर हैं तो क्या आराम से जीवन जीने का अधिकार उन्हें मिल गया !
बिलकुल नहीं !!
ये 🐝टिड्डे के साथ अन्याय है !
 इस बात पर कुछ समाजसेवी, 🐜चींटी के घर के सामने धरने पर बैठ गए तो कुछ भूख हड़ताल पर,
कुछ ने 🐝टिड्डे के लिए घर की मांग की.
कुछ राजनीतिज्ञों ने इसे पिछड़ों के प्रति अन्याय बताया.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने🐝 टिड्डे के वैधानिक अधिकारों को याद दिलाते हुए भारत सरकार की निंदा की !

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर
🐝 टिड्डे के समर्थन में बाड़ सी आ गयी, विपक्ष के नेताओं ने भारत बंद का एलान कर दिया. कमुनिस्ट पार्टियों ने समानता के अधिकार के तहत 🐜चींटी पर "कर" लगाने और 🐝टिड्डे को अनुदान की मांग की,

एक नया क़ानून लाया गया "पोटागा" (प्रेवेंशन ऑफ़ टेरेरिज़म अगेंस्ट ग्रासहोपर एक्ट).
🐝टिड्डे के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर दी गयी.

अंत में पोटागा के अंतर्गत🐜 चींटी पर फाइन लगाया गया उसका घर सरकार ने अधिग्रहीत कर टिड्डे को दे दिया ....!
इस प्रकरण को मीडिया ने पूरा कवर किया और 🐝 टिड्डे को इन्साफ दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की  !!
समाजसेवकों ने इसे समाजवाद की स्थापना कहा तो किसी ने न्याय की जीत, कुछ राजनीतिज्ञों ने उक्त शहर का नाम बदलकर 🐝"टिड्डा नगर" कर दिया !
रेल मंत्री ने🐝 "टिड्डा रथ" के नाम से नयी रेल चलवा दी और कुछ नेताओं ने इसे समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की संज्ञा दी ।।
🐜चींटी भारत छोड़कर अमेरिका चली गयी और वहां उसने फिर से मेहनत की और एक कंपनी की स्थापना की जिसकी दिन रात
 तरक्की होने लगी तथा अमेरिका के विकास में सहायक सिद्ध हुई !!

🐜चींटियाँ मेहनत करतीं रहीं और 🐝टिड्डे खाते रहे ........!
फलस्वरूप धीरे धीरे 🐜चींटियाँ भारत छोड़कर जाने लगीं और 🐝टिड्डे झगड़ते रहे ........!
 एक दिन खबर आई की अतिरिक्त आरक्षण की मांग को लेकर सैंकड़ों 🐝🐝🐝टिड्डे मारे गए.........!

ये सब देखकर अमेरिका में बैठी 🐜चींटी ने कहा " इसीलिए शायद भारत आज भी विकासशील देश है"

Saturday, August 13, 2016

केकड़ों का स्‍वभाव

गर्मी का महिना चल रहा था। एक मछुआरा रोज की तरह मछलियां पकड़ने गया, लेकिन आज का दिन उसके लिए कुछ ज्‍यादा अच्‍छा नहीं था। लगभग शाम हो गई थी और वापस घर लौटने की इच्‍छा से उसने जब नदी में फैंके गए अपने जाल को बाहर निकाला, तो उसमें कुछ मछलियां और कुछ केकड़े फंस गए थे।
मछुआरे के पास दो टोकरियां थीं। इसलिए उसने एक टोकरी में मछलियां भर दी और उस पर ढक्‍कन लगा दिया जबकि दूसरी टोकरी में केकड़े भरकर उसे खुला ही छोड़ दिया।
नदी के किनारे टहलने वाले लोगों में से कुछ टोकरियों के पास रूक गए और उस मछुआरे की ये सारी हरकते देखने लगे। तभी उनमें से एक ने मछुआरे को सम्‍बोधित करते हुए कहा, “ओ मछुए… तुमने दिनभर जो मेहनत की है, उसे खराब करके अब घर खाली हाथ लौटना चाहते हो क्‍या?
मछुआरे ने उनकी ओर देखकर पूछा, “मैं कुछ समझा नहीं, आप ऐसा क्‍यों कह रहे हैं?
वह आदमी बोला, “तुमने एक टोकरी में मछलिया भरकर उसे ढ़क्‍कन से ढ़क दिया है, जबकि इस केकड़े वाली टोकरी को खुला ही किनारे पर क्‍यों छोड़ दिया है? देखो, केकड़े बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं। एक-एक कर वे सारे टोकरी से बाहर आकर नदी में चले जाऐंगे।
मछुआरा उनकी ओर देखकर हंसते हुए कहने लगा, “साहब… आप चिंता मत कीजिए। मैं इन केकड़ों का स्‍वभाव जानता हूँ। ये रात भर उछल-कूद करते रहेंगे, लेकिन फिर भी ये इस टोकरी से बाहर नहीं आ सकते, क्‍योंकि जो केकड़े ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे, नीचे वाले उनकी टांगे खींचकर ऊपर चढ़ने की कोशिश करेंगे और उसे भी नीचे ले जाऐंगे। जब तक इस टोकरी में एक से ज्‍यादा केकड़े मॉजूद हैं, एक भी केकड़ा बाहर नहीं निकल सकेगा।

Friday, August 12, 2016

छोटे बदलाव

एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था | आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था | वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी | एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची
वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला ” नमस्ते आंटी ! मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ़ करते हुए देखता हूँ आप ऐसा किस वजह से करते हो ?”  महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और  इस पर लड़के को जवाब दिया ” मैं हर रविवार यंहा आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ़ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूँ |”  क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचता जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है | कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहे तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ़ करती हूँ |
यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था | उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला “बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे भी बुरी हालत में है जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकते तो उनका क्या क्योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा न |
महिला ने बड़ा ही संक्षिप्त लेकिन असरदार जवाब दिया कि भले ही मेरे इस कर्म से दुनिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा लेकिन सोचो इस एक कछुवे की जिन्दगी में तो बदल्वाव आयेगा ही न | तो क्यों हम छोटे बदलाव से ही शुरुआत करें |

Monday, August 8, 2016

क्यों भटकाया?'

विद्यार्थी धन्वंतरी की पीठ में एक फोड़ा हो गया था। उस फोड़े के उपचार के लिए संजीवनी बूटी की बेहद जरूरत थी। आरोग्य आश्रम के अधिष्ठाता ने धन्वंतरी से कहा, 'इसके लिए तो तुम्हें स्वयं परिश्रम करना होगा। तुम अकेले जाओ और संजीवनी बूटी को वन में खोजो। बूटी मिलने पर उसे फोड़े पर लगा लेना।' 
अधिष्ठाता की बात शिरोधार्य करके धन्वंतरी संजीवनी बूटी की खोज में निकल पड़े। बूटी खोजते-खोजते पूरा एक वर्ष व्यतीत हो गया। उन्होंने वन के कोने-कोने में संजीवनी बूटी को खूब खोजा। इस अंतराल में लगभग एक हजार बूटियों को उन्होंने खोजा और उनकी परीक्षा कर डाली, पर संजीवनी का पता नहीं चला। इधर उनका फोड़ा बढ़ता ही जा रहा था। 
इतने दिन के कठोर परिश्रम से निढाल होकर वे एक दिन आश्रम के अधिष्ठाता के पास पहुंचे। आश्रम के अधिष्ठाता आचार्य धन्वंतरी की असफलता ताड़ गए। सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने धन्वंतरी से धैर्य रखने को कहा। दूसरे दिन वे स्वयं धन्वंतरी को लेकर एक वन में पहुंचे और संजीवनी बूटी तुरंत खोज निकाली। उसे फोड़े पर लगा दिया। 
संजीवनी बूटी के असर से धीरे-धीरे फोड़ा ठीक होने लगा। एक दिन अवसर पाकर धन्वंतरी ने आचार्य से पूछा, 'गुरुजी! जब आपको संजीवनी बूटी मिलने के स्थान का ठीक-ठीक पता ही था तो फिर आपने मुझे एक वर्ष तक क्यों भटकाया?' 

Saturday, August 6, 2016

एक सफ़र

एक अंग्रेज ट्रेन से सफ़र कर रहा था ..... सामने एक बच्चा बैठा था... अंग्रेज ने बच्चे से पूछा यहाँ  सबसे ज्यादा खतरनाक कौन सी समाज  हैं ??? बच्चा:" महाराष्ट्रीयन,पंजाबी, गुजराती, हरयाणवी,और सबसे ज्यादा तो  लाला कायस्थ अंग्रेज : "क्यों ... क्या ये बाकी कम खतरनाक हैं क्या ???" बच्चा : " नहीं ... ये सब खुद में महाभारत हैं ....." अंग्रेज : 'ओह ~~~ इनके पास जाना डेंजरस है'.. [कुछ देर पश्चात] अंग्रेज : 'मैं कैसे जान सकता हूँ कि कौन सा व्यक्ति कितना खतरनाक है ?' बच्चा: 'बैठा रह शान्ति से ... अभी दस घंटे के सफ़र में सबसे मिलवा दूंगा'.... कुछ ही देर बाद हरियाणा का एक चौधरी मूंछों पे ताव देता हुआ बैठ गया । बच्चा: 'भाई ये हरियाणवी है ...' अंग्रेज : 'इससे बात कैसे करूँ?' बच्चा: "चुपचाप बैठा रह और मूंछों पर ताव देता रह.. ये खुद बात करेगा तेरे से'... अंग्रेज ने अपनी सफाचट मूछों पर ताव दिया.. चौधरी उठा और अंग्रेज के दो कंटाप जड़े - 'बिन खेती के ही हल चला रिया है तू ..? थोड़ी देर बाद एक मराठी आ के बैठ गया ... बच्चा : 'भाई ये मराठी है ...' अंग्रेज : 'इससे बात कैसे करूँ ?' बच्चा : 'इससे बोल कि बाम्बे बहुत बढ़िया ..' अंग्रेज ने मराठी से यही बोल दिया.. मराठी उठा और थप्पड़ लगाया - "साले बाम्बे नहीं मुम्बई ... समझा क्या" थोड़ी देर बाद एक गुजराती सामने आकर बैठ गया। बच्चा : 'भाई ये गुजराती है ...' अंग्रेज गाल सहलाते हुए : 'इससे कैसे बात करूँ ?' बच्चा : 'इससे बोल सोनिया गांधी जिंदाबाद ...' अंग्रेज ने गुजराती से यही कह दिया गुजराती ने कसकर घूंसा मारा - 'नरेन्द्र मोदी जिंदाबाद...एक ही विकल्प- मोदी'..
थोड़ी देर बाद एक सरदार जी आकर बैठ गए । बच्चा : 'देख भाई ये पंजाबी है ...' अंग्रेज ने कराहते हुए पूछा - 'इससे कैसे बात करूँ ..' बच्चा : 'बात न कर बस पूछ ले कि 12 बज गए क्या ?' अंग्रेज ने ठीक यही किया ... अंग्रेज : 'ओ सरदार जी 12 बज गए क्या ? सरदार जी ने आव देखा न ताव अंग्रेज को उठा के नीचे पटक दिया... सरदार : साले खोतया नू ... तेरे को मैं मनमोहन सिंह लगता हूँ जो चुप रहूँगा'.... पहले से परेशान अंग्रेज बिलबिला गया . खीझ के बच्चे से  बोला : इन सबसे
मिलवा दिया अब लाला कायस्थ से भी मिलवा दो बच्चा  बोला - "तेरे को पिटवा कौन रहा । है

Thursday, August 4, 2016

भावनाऐं ही भाग्‍य

राह पर चलते भिखारियों को देखकर हमेंशा दु:खी होता और भगवान से प्रार्थना करता कि:
हे भगवान! मुझे इस लायक तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को कम से कम 1 रूपया दे सकता।
भगवान ने उसकी सुन ली और उसे एक अच्‍छी Multi-National Company में कम्‍पनी में Job मिल गई। अब उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह उन्‍हें 1 रूपया अवश्‍य देता, लेकिन वह 1 रूपया देकर सन्‍तुष्‍ट नहीं था। इसलिए वह जब भी भिखारियों को 1 रूपए का दान देता, ईश्‍वर से प्रार्थना करता कि:
हे भगवान! 1 रूपए में इन बेचारों का क्‍या होगा? कम से कम मुझे ऐसा तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को 10 रूपया दे सकता। एक रूपए में आखिर होता भी क्‍या है।
संयोग से कुछ समय बाद उसी MNC (Multi-National Company) में उसकी तरक्‍की हो गई और वह उसी कम्‍पनी में Manager बन गया, जिससे उसका Standard High होगा। उसने अच्‍छी सी महंगी Car खरीद ली, बडा घर बनवा लिया। फिर भी उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह अपनी अपनी कार रोककर उन्‍हें 100 रूपया दे देता, मगर फिर भी उसे खुशी नहीं थी। वह अब भी भगवान से प्रार्थना करता कि:
100 रूपए में इन बेचारों का क्‍या भला होता होगा? काश मैं ऐसा बन पाता कि जो भी भिखारी मेरे सामने से गुजरता, वो भिखारी ही न रह जाता।
संयोग से नियति ने फिर उसका साथ दिया और वो Corporate जगत का Chairman चुन लिया गया। अब उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी। मंहगी Car, बंगला, First Class AC Rail Ticket आदि उसके लिए अब पुरानी बातें हो चुकी थीं। अब वह हमेंशा अपने स्‍वयं के Private हवाई जहाज में ही सफर करता था और एक शहर से दूसरे शहर नहीं बल्कि एक देश से दूसरे देश में घूमता था, लेकिन उसकी प्रार्थनाऐं अभी भी वैसी ही थीें, जैसी तब थीं, जब वह एक गरीब व्‍यक्ति था।