Tuesday, May 31, 2016

कृष्ण टेढ़े क्यों है


एक बार की बात है - वृंदावन का एक साधू अयोध्या की गलियों में राधे कृष्ण - राधे कृष्ण जप रहा था । अयोध्या का एक साधू वहां से गुजरा तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण सुनकर उस साधू को बोला - अरे जपना ही है तो सीता राम जपो, क्या उस टेढ़े का नाम जपते हो ?

 वृन्दावन का साधू भडक कर बोला - ज़रा जुबान संभाल कर बात करो, हमारी जुबान भी पान भी खिलाती हैं तो लात भी खिलाती है । तुमने मेरे इष्ट को टेढ़ा कैसे बोला ?

 अयोध्या वाला साधू बोला इसमें गलत क्या है ? तुम्हारे कन्हैया तो हैं ही टेढ़े । कुछ भी लिख कर देख लो-
उनका नाम टेढ़ा - कृष्ण
 उनका धाम टेढ़ा - वृन्दावन

 वृन्दावन वाला साधू बोला चलो मान लिया, पर उनका काम भी टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़ा है, ये तुम कैसे कह रहे हो ?

 अयोध्या वाला साधू बोला - अच्छा अब ये भी बताना पडेगा ? तो सुन -
जमुना में नहाती गोपियों के कपड़े चुराना, रास रचाना, माखन चुराना - ये कौन सीधे लोगों के काम हैं ? और आज तक ये बता कभी किसी ने उसे सीधे खडे देखा है कभी ?

 वृन्दावन के साधू को बड़ी बेइज्जती महसूस हुई , और सीधे जा पहुंचा बिहारी जी के मंदिर । अपना डंडा डोरिया पटक कर बोला - इतने साल तक खूब उल्लू बनाया लाला तुमने ।
 ये लो अपनी लुकटी, ये लो अपनी कमरिया, और पटक कर बोला ये अपनी सोटी भी संभालो ।
 हम तो चले अयोध्या राम जी की शरण में ।
 और सब पटक कर साधू चल दिये ।

 अब बिहारी जी मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके पीछे पीछे । साधू की बाँह पकड कर बोले अरे " भई तुझे किसी ने गलत भडका दिया है "

पर साधू नही माना तो बोले, अच्छा जाना है तो तेरी मरजी , पर ये तो बता राम जी सीधे और मै टेढ़ा कैसे ? कहते हुए बिहारी जी कूंए की तरफ नहाने चल दिये ।

 वृन्दवन वाला साधू गुस्से से बोला -

" नाम आपका टेढ़ा- कृष्ण,
धाम आपका टेढ़ा- वृन्दावन,
काम तो सारे टेढ़े- कभी किसी के कपडे चुरा, कभी गोपियों के वस्त्र चुरा,
और सीधे तुझे कभी किसी ने खड़े होते नहीं देखा। तेरा सीधा है किया"।
अयोध्या वाले साधू से हुई सारी झैं झैं और बइज़्जती की सारी भड़ास निकाल दी।

बिहारी जी मुस्कुराते रहे और चुप से अपनी बाल्टी कूँए में गिरा दी ।
 फिर साधू से बोले अच्छा चला जाइये, पर जरा मदद तो कर जा, तनिक एक सरिया ला दे तो मैं अपनी बाल्टी निकाल लूं ।

 साधू सरिया ला देता है और कृष्ण सरिये से बाल्टी निकालने की कोशिश करने लगते हैं ।

 साधू बोला अब समझ आइ कि तौ मैं अकल भी ना है।
 अरै सीधै सरिये से बाल्टी भला कैसे निकलेगी ?
सरिये को तनिक टेढ़ा कर, फिर देख कैसे एक बार में बाल्टी निकल आवेगी ।

बिहारी जी मुस्कुराते रहे और बोले - जब सीधापन इस छोटे से कूंए से एक छोटी सी बालटी नहीं निकाल पा रहा, तो तुम्हें इतने बडे भवसागर से कैसे पार लगा सकेगा ?
अरे आज का इंसान तो इतने गहरे पापों के भवसागर में डूब चुका है कि इस से निकाल पाना मेरे जैसे टेढ़े के ही बस की है

Sunday, May 29, 2016

प्रेममयी भक्ति

बरसाने में एक संत किशोरी जी का भजन करते थे और रोज ऊपर दर्शन करने जाते राधा रानी के महल में ।
उनकी बड़ी निष्ठा ,बड़ी श्रद्धा थी किशोरी जी के चरणों में ।
एक बार उन्होंने देखा की भक्त राधा रानी को पोशाक अर्पित कर रहे थे तो उस महात्मा का भाव भी की मैंने आज तक किशोरी जी को कुछ भी नहीं चढ़ाया ।
और लोग आ रहे है तो कोई फूल चढ़ाता है , कोई भोग लगाता है , कोई पोशाक पहनाता है और मैंने कुछ भी नही दिया , अरे कैसा भगत हूँ ।
तो उस महात्मा ने उसी दिन निश्चय कर लिया की में अपने हाथो से बनाकर राधा रानी को सूंदर पोशाक पहनाउंगा।
ये सोचकर उसी दिन से वो महात्मा तैयारी में लग गए और बहुत प्यारी पोशाक बनाई , पोशाक तैयार होने में एक महीना लगा.
कपड़ा लेकर आया , अपने हाथो से गोटा लगाया और बहुत प्यारी पोशाक बनाई।
सूंदर पोशाक जब तैयार हो गई तो वो पोशाक अब लेकर वो ऊपर किशोरी जी के चरणों में अर्पित करने जा रहा थे ।
वो महात्मा मंदिर की आधी सीढियो तक ही पहुँचा होगा तभी बरसाने की एक छोटी सी लड़की उस महात्मा को बोलती है की बाबा ये क्या ले जा रहे हो आप ? आपके हाथ में ये क्या है ?
वो महात्मा बोले की लाली ये में किशोरी जी के लिए पोशाक बनाके उनको पहनाने के लिए ले जा रहा हूँ ।
वो लड़की बोली अरे बाबा राधा रानी पे तो बहोत सारी पोशाक है तो तू ये मोकू दे दे ना ।
तो महात्मा बोले की बेटी तोकू में दूसरी बाजार से दिलवा दूंगा ये तो मै अपने हाथ से बनाकर राधा रानी के लिये लेकर जा रहा हूँ तोकू ओर दिलवा दूँगो ।
लेकिन उस छोटी सी बालिका ने उस महात्मा का दुपट्टा पकड़ लिया बाबा ये मोकू देदे ।
पर सन्त भी जिद करने लगे की दूसरी दिलवाऊंगा ये नहीं दूंगा ।
लेकिन वो बच्ची भी इतनी तेज थी की संत के हाथ से छुड़ाकर पोशाक भागी ,
अब महात्मा तो दुखी हो गए बूढ़े महात्मा अब कहाँ ढूंढे उसको ।
तो वही सीढियो पर बैठकर रोने लगे ओर सन्त वहाँ से निकले तो पूछा महाराज क्यों रो रहे हो ?
तो सारी बात बताई की जैसे-तैसे तो बुढ़ापे में इतना परिश्रम करके ये पोशाक बनाकर लाया राधा रानी को पहनाता पर वासे पहले ही एक छोटी सी लाली लेकर भाग गई तो कहा करूँ में अब ?
वो बाकी संत बोले अरे अब गई तो गई कोई बात नहीं अब कब तक रोते रहोगे चलो ऊपर दर्शन करने ।
रोना बन्द हुआ लेकिन मन उनका उदास था, क्योंकि कामना पूरी नहीं हुई ।
अनमने मन से राधा रानी का दर्शन करने संत जा रहे थे और मन में ये ही सोच रहे है की मुझे लगता है की किशोरी जी की इच्छा नहीं थी ।
शायद राधा रानी मेरे हाथो से बनी पोशाक पहनना ही नहीं चाहती थी ऐसा सोचकर बड़े दुःखी होकर जा रहे है ।
और अब जाकर अंदर खड़े हुए दर्शन खुलने का समय हुआ और जैसे ही श्री राधा जी का दर्शन पट खुले तो वो महात्मा देखते है की जो पोशाक वो बालिका लेकर भागी थी वो ही पोशाक पहनकर मेरी राधा रानी बैठी हुई है ।
ये देखते ही महात्मा की आँखों से आँसू बहने लगे और महात्मा बोले की किशोरी जी में तो आपको देने ही ला रहा था लेकिन आपसे इतना भी सब्र नहीं हुआ मेरे से छीनकर भागी आप ।
तो किशोरी जी ने कहा की बाबा ये केवल वस्त्र नहीं नहीं,
ये केवल पोशाक नहीं है,
इसमें में तो तेरो प्रेम छुपो भयो है और प्रेम को पाने के लिए तो दौड़ना ही पड़ता है , भागना ही पड़ता है ।
भगवान कीमती सामान के नहीं प्रेम की और आकर्षित होते है ।
अपने इष्ट के प्रति प्रेममयी भक्ति ही श्रेष्ठ भक्ति है ।

Thursday, May 26, 2016

खुश होकर जियो

एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से करती थी !
गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के भी खूब खुश थी क्योंकि उसके मालिक, जंगल के राजा शेर ने उसे दस बोरी अखरोट देने का वादा कर रखा था।
गिलहरी काम करते करते थक जाती थी तो सोचती थी कि थोडी आराम कर लूँ
वैसे ही उसे याद आता,
कि शेर उसे दस बोरी अखरोट देगा -
गिलहरी फिर काम पर लग जाती !
गिलहरी जब दूसरे गिलहरीयों को खेलते देखती थी तो उसकी भी इच्छा होती थी कि मैं भी खेलूं पर उसे अखरोट याद आ जाता,
और वो फिर काम पर लग जाती !
ऐसा नहीं कि शेर उसे अखरोट नहीं देना चाहता था, शेर बहुत ईमानदार था !
ऐसे ही समय बीतता रहा....
एक दिन ऐसा भी आया जब जंगल के राजा शेर ने गिलहरी को दस बोरी अखरोट दे कर आज़ाद कर दिया !
गिलहरी अखरोट के पास बैठ कर सोचने लगी कि अब अखरोट मेरे किस काम के ?
पूरी जिन्दगी काम करते - करते दाँत तो घिस गये, इन्हें खाऊँगी कैसे !
यह कहानी आज जीवन की हकीकत बन चुकी है !
इन्सान अपनी इच्छाओं का त्याग करता है, पूरी ज़िन्दगी नौकरी, व्योपार, और धन कमाने में बिता देता है !
६० वर्ष की ऊम्र में जब वो सेवा निवृत्त होता है, तो उसे उसका जो फन्ड मिलता है, या बैंक बैलेंस होता है, तो उसे भोगने की क्षमता खो चुका होता है, तब तक जनरेशन बदल चुकी होती है, परिवार को चलाने वाले बच्चे आ जाते है।
क्या इन बच्चों को इस बात का अन्दाजा लग पायेगा की इस फन्ड, इस बैंक बैलेंस के लिये : -
कितनी इच्छायें मरी होंगी ?
कितनी तकलीफें मिली होंगी ?
कितनें सपनें अधूरे रहे होंगे ?
क्या फायदा ऐसे फन्ड का, बैंक बैलेंस का, जिसे पाने के लिये पूरी ज़िन्दगी लग जाये और मानव उसका भोग खुद न कर सके !
इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सके।

इसलिए हर पल को खुश होकर जियो व्यस्त रहो, पर साथ में मस्त रहो सदा स्वस्थ रहो।

Monday, May 23, 2016

अपने आपको -अर्पण कर दों

एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवो में  घूम रहा था ,,, घूमते-घूमते उसके कुर्ते का बटन टूट गया,,, उसने. अपने मंत्री को कहा कि, पता करो की इस गाँव में कौन सा दर्जी हैं,जो मेरे बटन  को सिल सके,,, मंत्री ने पता किया ,, उस. गाँव में सिर्फ एक ही दर्जी था,, जो कपडे सिलने का काम करता था,,, उसको राजा के सामने ले जाया गया,, राजा ने कहा,कय़ा तुम मेरे कुर्ते का बटन सी सकते हो,,, दर्जी ने कहा,यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है,,, उसने मंत्री से बटन ले लिया,,, धागे से उसने राजा के कुर्ते का बटन फोरन सी दिया,,, क्योंकि बटन  भी राजा के पास था,, सिर्फ उसको. अपना धागे का प्रयोग करना था,,, .. राजा ने दर्जी से पूछा कि,, कितने पैसे दू ,,, उसने कहा, महाराज रहने दो,,, छोटा सा काम था,, उसने मन में सोचा  कि,बटन  भी राजा के पास था,, उसने तो सिर्फ धागा ही लगाया हैं,,, राजा ने फिर से दर्जी को कहा, कि,,, नहीं नहीं बोलो कितनीे माया दू,,, दर्जी ने सोचा कि,, 2 रूपये मांग लेता हूँ,,, फिर मन में सोचा कि; कहीं राजा यह ने सोचलें,कि ,,, बटन. टाँगने के मुझ से 2 रुपये ले रहा हैं,,, तो गाँववालों से कितना लेता होगा,,, क्योंकि उस जमाने में २ रुपये की कीमत बहुत होती थी,,, दर्जी ने राजा से कहा, कि,, महाराज जो  भी आपको उचित लगे ,, वह दे दो,, अब था  तो राजा ही,,उसने अपने हिसाब से देना  था,, कहीं देने में उसकी पोजीशन ख़राब न
हो जाये,,, उसने अपने मंत्री से कहा कि,, इस दर्जी को २ गाँव दे दों, यह हमारा हुकम है ,,, कहाँ वो दर्जी सिर्फ २ रुपये की मांग कर. रहा था,, और कहाँ राजा ने उसको २ गाँव दे दिए ,, जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ देते हैं, तो वह अपने हिसाब से देता हैं,, सिर्फ हम. मांगने में कमी कर जाते है,,, देने वाला तो पता नही क्या देना चाहता हैं,,, इसलिए  संत-महात्मा कहते है,,, प्रभु के चरणों पर अपने आपको -अर्पण कर दों,,  देने वाला तो पता नही क्या देना चाहता हैं,, फिर देखो उनकी
लीला,,

Saturday, May 21, 2016

सब्र का इम्तेहान

एक अमीर ईन्सान था। उसने समुद्र मेँ अकेले  घूमने के लिए एक  नाव बनवाई।  छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र  की सेर करने निकला।  आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक  एक जोरदार  तुफान आया।  उसकी नाव पुरी तरह से तहस-नहस  हो गई लेकिन वह  लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र मेँ कूद  गया। ब तूफान शांत  हुआ तब वह  तैरता-तैरता एक टापू पर  पहुंचा  लेकिन वहाँ भी कोई नही था।  टापू के चारो और समुद्र के अलावा कुछ  भी नजर नही आ  रहा था।  उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने  पूरी जिदंगी मेँ  किसी का कभी भी बुरा नही किया तो मेरे  साथ ऐसा क्यूँ  हुआ..?  उस ईन्सान को लगा कि खुदा ने मौत से  बचाया तो आगे  का रास्ता भी खुदा ही बताएगा।  धीरे-धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-फल-पत्ते  खाकर दिन बिताने  लगा।  अब धीरे-धीरे उसकी आस टूटने लगी,  खुदा पर से  उसका यकीन उठने लगा।  फिर उसने सोचा कि अब  पूरी जिंदगी यही इस टापू पर  ही बितानी है तो क्यूँ ना एक  झोपडी बना लूँ ......?  फिर उसने झाड की डालियो और पत्तो से  एक  छोटी सी झोपडी बनाई।  उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपडी मेँ  सोने  को मिलेगा आज से बाहर  नही सोना पडेगा।  रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला  बिजलियाँ जोर जोर से कड़कने लगी.!  तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर  आ गिरी और  झोपडी धधकते हुए जलने लगी।  यह देखकर वह ईन्सान टूट गया।
आसमान  की तरफ देखकर  बोला  या खुदा ये तेरा कैसा इंसाफ है?  तूने मुज पर अपनी रहम की नजर क्यूँ नहीं की?  फीर वह ईन्सान हताश होकर सर पर हाथ  रखकर रो रहा था।  कि अचानक एक नाव टापू के पास आई।
नाव से उतरकर  दो आदमी बाहर आये  और बोले कि हम तुम्हे बचाने आये हैं।  दूर से इस वीरान टापू मे जलता हुआ   झोपडा देखा  तो लगा कि कोई उस टापू  पर मुसीबत मेँ है।  अगर तुम अपनी झोपडी नही जलाते तो हमे
पता नही चलता कि टापू पर कोई है।  उस आदमी की आँखो से आँसू गिरने लगे।  उसने खुदा से माफी माँगी और
बोला कि "या रब मुझे  क्या पता कि तूने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपडी जलाई  थी।यक़ीनन तू अपने बन्दों का हमेशा ख्याल रखता है। तूने मेरे सब्र का इम्तेहान लिया लेकिन मैं उसका फ़ैल हो गया। मुझे माफ़ फरमा दे।"
   
दिन चाहे सुख के हों या दुख के,
खुदा अपने बन्दों के साथ हमेशा रहता है 

Friday, May 20, 2016

कैरियर का भूत

मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं  तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैंसुबह आठ बजे नौकरियों पर जाते हैं  रात ग्यारह तक ही वापिस आते है. अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं. अकेले रह कर वह  कैरियर  बनाते हैं  कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं  भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं  मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
अपने नन्हे मुन्ने को पाल  नहीं पाते हैं  फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते  हैं. उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते है  परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है केवल आया'आंटी को ही पहचानता है  दादा -दादी, नाना-नानी कौन होते  है?  अनजान है सबसे किसी को न मानता है. आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है  टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है
यूनिफार्म पहना के स्कूल कैब में बिठाती हैछुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है  जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है उसे सुलाने में अक्सरवोभीसोजातीहैकभी.जब मचलता है तो टीवी दिखाती जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता  है वीक ऐन्ड पर मौल में पिकनिक मनाता है संडे की छुट्टी मौम-डैड के  संग बिताता है  वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है. वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है  कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है. वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है  धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है  मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है  कुछ  दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है  जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है  माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है  बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं  जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं  घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं  हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं  दाढ़- दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं. कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं  सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।  बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।  ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।  बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार  चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।
ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।  दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।  बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर ।

Thursday, May 19, 2016

माँ- बाप का दिल

दम्पति ने कहा "बेटा हमें फेसबुक का अकाउंट बना दो।"लड़के ने कहा- "लाइये अभी बना देता हूँ, कहिये किस नाम से बनाऊँ?" बुजुर्ग ने कहा- "लड़की के नाम से कोई भी अच्छा सा ना रख लो।"  लड़का ने अचम्भे से पूछा- "फेक अकाउंट क्यों ??" बुजुर्ग ने कहा- "बेटा, पहले बना तो दो फिर बताता हूँ क्यों ?? बड़ो का मान करना उस लड़के ने सीखा था तो उसने अकाउंट बना ही दिया।अब उसने पूछा- "अंकल जी, प्रोफाइल इमेज क्या रखूँ?" तो बुजुर्ग ने कहा- "कोई भी हीरोइन जो आजकल के बच्चों को अच्छी लगती हो।" उस लड़के ने गूगल से इमेज सर्च करके डाल दी, फेसबुक अकाउंट ओपन हो गया। फिर बुजुर्ग ने कहा- "बेटा कुछ अच्छे लोगो को ऐड कर दो।" लड़के ने कुछ अच्छे लोगो को रिक्वेस्ट सेंड कर दी। फिर बुजुर्ग ने अपने बेटे का नाम सर्च करवा के रिक्वेस्ट सेंड करवा दी। . लड़का जो वो कहते करता गया जब काम पूरा हो गया तो. उसने कहा....
"अंकल जी अब तो आप बता दीजिये आपने ये फेक अकाउंट  क्यों बनवाया?" बुजुर्ग की आँखे नम हो गयी, उनकी पत्नी की आँखों से तो  आँसू बहने लगे।  उन्होंने कहा- "मेरा एक ही बेटा है और शादी के बाद वो हमसे अलग रहने लगा। सालो बीत गए वो हमारे पास नहीं. आता। शुरू शुरू में हम उसके पास जाते थे तो वो नाराज हो जाता था। कहता आपको मेरी पत्नी पसंद नहीं करती। आप अपने घर में रहिये, हमें चैन से यहाँ रहने दीजिये। कितना अपमान. सहते इसलिए बेटे के यहाँ जाना छोड़ दिया। एक पोता है और एक प्यारी पोती है, बस उनको देखने का बड़ा मन करता है। किसी ने कहा कि फेसबुक में लोग अपने फैमिली की और फंक्शन की इमेज डालते है, तो सोचा फेसबुक में ही अपने बेटे से जुड़कर उसकी फैमिली के बारे में जान लेंगे. और अपने पोता पोती को भी देख लेंगे, मन को शांति मिल जाएगी। अब अपने नाम से तो अकाउंट बना नहीं सकते। वो हमें ऐड करेगा नहीं, इसलिए हमने ये फेक अकाउंट बनवाया।" बुजुर्ग दंपत्ति के नम आँखों को उनके पत्नी के बहते आँसुओं को देखकर उस लड़के का दिल भर आया और सोचने लगा कि माँ- बाप का दिल कितना बड़ा होता है जो औलाद के कृतघ्न होने के बाद भी उसे प्यार करते हैं और औलाद कितनी जल्दी माँ- बाप के प्यार और त्याग को भूल जाती है। 

Monday, May 16, 2016

बीतता हुए समय

एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से करती थी !

गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के भी खूब खुश थी क्योंकि उसके मालिक, जंगल के राजा शेर ने उसे दस बोरी अखरोट देने का वादा कर रखा था।

गिलहरी काम करते करते थक जाती थी तो सोचती थी कि थोडी आराम कर लूँ 
वैसे ही उसे याद आता,
कि शेर उसे दस बोरी अखरोट देगा -
गिलहरी फिर काम पर लग जाती !

गिलहरी जब दूसरे गिलहरीयों को खेलते देखती थी तो उसकी भी इच्छा होती थी कि मैं भी खेलूं पर उसे अखरोट याद आ जाता,
और वो फिर काम पर लग जाती !

ऐसा नहीं कि शेर उसे अखरोट नहीं देना चाहता था, शेर बहुत ईमानदार था !

ऐसे ही समय बीतता रहा....

एक दिन ऐसा भी आया जब जंगल के राजा शेर ने गिलहरी को दस बोरी अखरोट दे कर आज़ाद कर दिया !

गिलहरी अखरोट के पास बैठ कर सोचने लगी कि अब अखरोट मेरे किस काम के ?
पूरी जिन्दगी काम करते - करते दाँत तो घिस गये, इन्हें खाऊँगी कैसे !

यह कहानी आज जीवन की हकीकत बन चुकी है !

इन्सान अपनी इच्छाओं का त्याग करता है, पूरी ज़िन्दगी नौकरी, व्योपार, और धन कमाने में बिता देता है !
६० वर्ष की ऊम्र में जब वो सेवा निवृत्त होता है, तो उसे उसका जो फन्ड मिलता है, या बैंक बैलेंस होता है, तो उसे भोगने की क्षमता खो चुका होता है, तब तक जनरेशन बदल चुकी होती है, परिवार को चलाने वाले बच्चे आ जाते है।

क्या इन बच्चों को इस बात का अन्दाजा लग पायेगा की इस फन्ड, इस बैंक बैलेंस के लिये : -

कितनी इच्छायें मरी होंगी ?
कितनी तकलीफें मिली होंगी ?
कितनें सपनें अधूरे रहे होंगे ?

क्या फायदा ऐसे फन्ड का, बैंक बैलेंस का, जिसे पाने के लिये पूरी ज़िन्दगी लग जाये और मानव उसका भोग खुद न कर सके !

इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सके।

इसलिए हर पल को खुश होकर जियो व्यस्त रहो, पर साथ में मस्त रहो सदा स्वस्थ रहो।

Saturday, May 14, 2016

खुश होकर जियो

एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से करती थी !
गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के भी खूब खुश थी क्योंकि उसके मालिक, जंगल के राजा शेर ने उसे दस बोरी अखरोट देने का वादा कर रखा था।  गिलहरी काम करते करते थक जाती थी तो सोचती थी कि थोडी आराम कर लूँ   वैसे ही उसे याद आता,  कि शेर उसे दस बोरी अखरोट देगा -  गिलहरी फिर काम पर लग जाती !
गिलहरी जब दूसरे गिलहरीयों को खेलते देखती थी तो उसकी भी इच्छा होती थी कि मैं भी खेलूं पर उसे अखरोट याद आ जाता,  और वो फिर काम पर लग जाती !   ऐसा नहीं कि शेर उसे अखरोट नहीं देना चाहता था, शेर बहुत ईमानदार था !   ऐसे ही समय बीतता रहा....   एक दिन ऐसा भी आया जब जंगल के राजा शेर ने गिलहरी को दस बोरी अखरोट दे कर आज़ाद कर दिया !   गिलहरी अखरोट के पास बैठ कर सोचने लगी कि अब अखरोट मेरे किस काम के ?  पूरी जिन्दगी काम करते - करते दाँत तो घिस गये, इन्हें खाऊँगी कैसे ! यह कहानी आज जीवन की हकीकत बन चुकी है !  इन्सान अपनी इच्छाओं का त्याग करता है, पूरी ज़िन्दगी नौकरी, व्योपार, और धन कमाने में बिता देता है !  ६० वर्ष की ऊम्र में जब वो सेवा निवृत्त होता है, तो उसे उसका जो फन्ड मिलता है, या बैंक बैलेंस होता है, तो उसे भोगने की क्षमता खो चुका होता है, तब तक जनरेशन बदल चुकी होती है, परिवार को चलाने वाले बच्चे आ जाते है। क्या इन बच्चों को इस बात का अन्दाजा लग पायेगा की इस फन्ड, इस बैंक बैलेंस के लिये : -   कितनी इच्छायें मरी होंगी ?  कितनी तकलीफें मिली होंगी ?  कितनें सपनें अधूरे रहे होंगे ?
क्या फायदा ऐसे फन्ड का, बैंक बैलेंस का, जिसे पाने के लिये पूरी ज़िन्दगी लग जाये और मानव उसका भोग खुद न कर सके ! इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सके।
इसलिए हर पल को खुश होकर जियो व्यस्त रहो, पर साथ में मस्त रहो सदा स्वस्थ रहो।

Friday, May 13, 2016

उसकी प्रार्थनाऐं

एक गरीब आदमी राह पर चलते भिखारियों को देखकर हमेंशा दु:खी होता और भगवान से प्रार्थना करता कि:
हे भगवान! मुझे इस लायक तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को कम से कम 1 रूपया दे सकता।
भगवान ने उसकी सुन ली और उसे एक अच्‍छी Multi-National Company में कम्‍पनी में Job मिल गई। अब उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह उन्‍हें 1 रूपया अवश्‍य देता, लेकिन वह 1 रूपया देकर सन्‍तुष्‍ट नहीं था। इसलिए वह जब भी भिखारियों को 1 रूपए का दान देता, ईश्‍वर से प्रार्थना करता कि:
हे भगवान! 1 रूपए में इन बेचारों का क्‍या होगा? कम से कम मुझे ऐसा तो बनाता कि मैं इन बेचारे भिखारियों को 10 रूपया दे सकता। एक रूपए में आखिर होता भी क्‍या है।
संयोग से कुछ समय बाद उसी MNC में उसकी तरक्‍की हो गई और वह उसी कम्‍पनी में Manager बन गया, जिससे उसका Standard High होगा। उसने अच्‍छी सी महंगी Car खरीद ली, बडा घर बनवा लिया। फिर भी उसे जब भी कोई भिखारी दिखाई देता, वह अपनी अपनी कार रोककर उन्‍हें 100 रूपया दे देता, मगर फिर भी उसे खुशी नहीं थी। वह अब भी भगवान से प्रार्थना करता कि:
100 रूपए में इन बेचारों का क्‍या भला होता होगा? काश मैं ऐसा बन पाता कि जो भी भिखारी मेरे सामने से गुजरता, वो भिखारी ही न रह जाता।
संयोग से नियति ने फिर उसका साथ दिया और वो Corporate जगत का Chairman चुन लिया गया। अब उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी। मंहगी Car, बंगला, First Class AC Rail Ticket आदि उसके लिए अब पुरानी बातें हो चुकी थीं। अब वह हमेंशा अपने स्‍वयं के Private हवाई जहाज में ही सफर करता था और एक शहर से दूसरे शहर नहीं बल्कि एक देश से दूसरे देश में घूमता था, लेकिन उसकी प्रार्थनाऐं अभी भी वैसी ही थीें, जैसी तब थीं, जब वह एक गरीब व्‍यक्ति था।

Wednesday, May 11, 2016

मार्गदर्शक

दोस्तों आप दुनिया के सबसे अमिर इन्सान को जानते ही होगे उनका नाम है ‘बिल गेट्स’, एक दिन बिल गेट्स् एक होटल उनके दोस्त के साथ मै खाना खाने गये, खाना खाने बाद वह काम करने वाला वेटर बिल लेकर आया तभी बिल गेट्स् ने खाये हुये खाने का बिल दिया और साथ मे अच्छी सर्विस देने के लिए वेटर 10 डॉलर टिप भी दी, और वहा से निकालने लगे लेकिन वेटर उनके तरफ देखता रहा और वो बात गेट्स के समज में आयी बिल गेट्स् ने इसके लिये वेटर को पूछा – क्यू भाई क्या हुआ तुम मुझे ऐसे घुर क्यू रहे हो…. ?
तो वेटर ने जवाब दिया – की अभी कुछ दिन पहले की ही बात है हमारे यहाँ इसी होटल में आपकी बेटी आयी थी उसने और उसके कुछ दोस्तों ने यहाँ खाना खाया था, और जाते वक्त मुझे टिप में 100 डॉलर दिये थे, और आप उनके पिता दुनिया के सबसे अमीर इन्सान होकर भी मुझे केवल 10 डॉलर टिप दी है.
तभी थोडा हसकर बिल गेट्स् जी ने जवाब दिया – हां भाई, क्योकि वो दुनिया के सबसे आमिर इन्सान कि बेटी है और मै एक गरीब इन्सान का बेटा हूं.
मुझे मेरा अतीत हमेशा याद रहता है, क्योकि वह मेरा मार्गदर्शक है और मैं उसे कभी नहीं भूलता.