Thursday, July 30, 2015

समय पर विजय

एक दिन दोपहर का समय था महाराज युवराज अपने दरबारियों के साथ सभा में व्यस्त थे तभी द्वारपाल सभा में आया और बोला, महाराज, “बाहर खड़ा एक व्यक्ति आपके दर्शन करने की आज्ञा चाहता है |
महाराज ने कहा, “उन्हें अंदर ले आओ और यह कहकर अपने कार्य में व्यस्त हो गए | थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति दरबार में आ आया और हाथ जोड़कर महाराज के सामने खड़ा हो गया | परन्तु महाराज ने उसकी तरफ नहीं देखा और प्रतीक्षा करने लगा की महाराज अपनी बात रख सके | बहुत देर हो गई पंरतु महाराज अपने काम में इतने व्यस्त थे की उन्हें समय ही नहीं मिला उस व्यक्ति से बात करने का |
उस व्यक्ति ने बहुत प्रयास किया अपनी बात महाराज को बताने की परन्तु हर बार वो असफल रहा | परन्तु वह वहा से गया नहीं | वह खड़ा रहा | महाराज को जब अपने कार्य से फुर्सत मिली तो उन्होंने उस व्यक्ति की और देखा | उसे देखते ही उसे याद आ गया की उसने ही द्र्वर्पल को कहा था उस व्यक्ति को बुलाने के लिए कहा था |
महाराज इतने व्यस्त थे अपने काम में की उन्होंने उस व्यक्ति को कल आने को कहे दिया और कहा की जो भी आपकी इच्छा होगी, पूरी की जाएगी |
यह सुनकर वो वहा से चला गया | परन्तु उनमे से एक दरबारी को महाराज का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा और सोचने लगा की कल का क्या भरोसा | कल कोई रहे या नहीं रहे | महाराज को उसकी बात सुन लेनी चाहिए थी | उन्होंने ठीक नहीं किया |
यह सब सोचते – सोचते रवि राजसभा से बाहर आ गया ओ द्वार पर रखी हुई दुंदुभी उठाकर बजाने लगे | उनके आस पास खड़े दरबारी चकित हो गए, परन्तु किसी की हिम्मत नहीं हुई उनसे पूछने की क्या हुआ | रवि ने सभी को दुंदुभी बजाने को कहा और कहा, जोर जोर से बोले, “महाराज की जय हो, महाराज की जय हो, महाराज ने समय पर विजय प्राप्त कर ली | सभी दरबारी यह बोलते बोलते राज्यसभा में आ गए |
यह सुनकर महाराज आचर्यचकित रहे गए और बोले यह क्या हो रहा है | यह कैसे आडम्बर है ? यह सुनकर रवि बोले, महाराज की जय हो, महाराज की जय हो, आप ने समय पर विजय प्राप्त कर ली है | यह सुनकर राजा को और गुस्सा आ गया |
महाराज गुस्से से बोले, “क्या मतलब है तुम्हारा, समय पर विजय | यह सुनकर रवि बोले, “महाराज आप ने ही तो उस मनुष्य को कल बुलाया है | इस का मतलब तो यही हुआ की आप अपना कल जानते है तो इसका मतलब यही है की आप ने समय पर विजय प्राप्त कर ली | इसलिए हम लोग आप की जय जय कार कर रहे है |
यह सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने माफी मांगी | और तभी उनसे अपने एक सिपाही को भेज कर उस आदमी को बुलवाया और उसकी परेशानी का निवारण किया |

Wednesday, July 29, 2015

अधूरा पाठ : पैसा पेसे को खींचता है

एक गुरु अपने शिष्यों को कुछ समझा रहे थे। तभी एक चोर उधर से निकला। उसने सोचा- जरा देखें, गुरुजी अपने शिष्यों को क्या ज्ञान दे रहे हैं। लेकिन कुछ संकोच और कुछ डर से वह वहां रुक नहीं सका। उसके कान में यही शब्द पड़े- 'पैसा पैसे को खींचता है।' चोर जल्दी में आगे बढ़ गया और आगे गुरुजी ने और क्या कहा उसने नहीं सुना। लेकिन उसने जो बात सुनी थी, उसी को आजमाने की सोची। वह राजा के खजाने में चोरी के लिए जा रहा था। सेंध लगाकर आधी रात को जब उसने खजाने में प्रवेश किया तो सामने सोने के सिक्कों का ढेर लगा देखा। बस, वह अपनी जेब से एक सिक्का निकाल कर खड़ा हो गया कि देखें कैसे पैसा पैसे को अपनी तरफ खींचता है। लेकिन उसके हाथ के पैसे की ओर कोई पैसा खुद खिंचकर नहीं आया।

चोर का मन यह मानने को तैयार नहीं था कि गुरुजी अपने शिष्यों को झूठी शिक्षा दे रहे होंगे। उन पर भरोसा रख वह वहीं खड़ा रहा। आखिरकार उसके हाथ का सिक्का ही ढेर में जाकर गिर गया। वह बेहद दुखी हुआ। उधर सिक्के के गिरने से हुई आवाज से पहरेदार आ गए और चोर पकड़ा गया। अगले दिन जब राजा के दरबार में चोर को पेश किया गया तो उसने गुरुजी की शिक्षा और अपने प्रयोग की बात बताई। जब यह सारी बात गुरुजी तक पहुंची तो वह बहुत हंसे और उन्होंने राजा से कहा- चोर ने मेरे शब्दों के भाव को नहीं समझा, वह शब्दार्थ में ही उलझ गया। उसने अधूरा पाठ सुना था इसलिए ऐसा हुआ। मैंने आगे कहा था- ज्यादा पैसा कम पैसे को खींच लेता है।

Tuesday, July 28, 2015

मन की शांति

बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म चीन पहुंचे तो हर जगह उनकी चर्चा होने लगी। राजा को पता चला कि उसके राज्य में परम ज्ञानी संत आए हैं, तो वह भी दर्शन के लिए पहुंच गया। अभिवादन के बाद राजा बोला-'कृपया बताएं, मेरा मन कैसे शांत होगा?' बोधिधर्म ने कहा-'अब आप जब भी आएं, अपने मन को भी साथ लेते आएं। कोई उपाय सोचेंगे।' राजा हैरान कि कैसा अजीब संत है, मन साथ लेने को कह रहा है। मन क्या कोई अलग पुर्जा है जिसे उठाकर लाया जा सके? किंतु क्या करता, संत की आज्ञा जो थी।

वह एक दिन फिर बोधिधर्म के पास जा पहुंचा-'भगवन, मन ऐसी वस्तु नहीं है जिसे व्यक्ति अलग रखता हो।' 'तो यह तय हुआ कि मन आप में ही है,' बोधिधर्म ने कहा-'अब आप शांत चित्त होकर आंखें बंद कर बैठ जाएं। फिर खोजें कि मन कहां है। जब उसे ढूंढ लें तो मुझे बता दें कि वह कहां है। मैं उसे शांत कर दूंगा।' राजा शांत चित्त होकर बैठ गया और अपने अंदर मन को ढूंढने लगा।

ज्यों-ज्यों वह अंदर झांकता गया त्यों-त्यों उसमें डूबता गया। उसने ध्यान से देखा कि मन नाम की कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे ढूंढा जा सके। उसे समझ आई कि जो वस्तु है ही नहीं, उसके बारे में कुछ किया ही नहीं जा सकता। यह मात्र एक क्रिया है। राजा ने बोधिधर्म के सामने सिर झुकाकर कहा-'अब मुझे समझ में आ गया कि मेरे विचार की शैली ही मुझे बेचैन किए थी।' बोधिधर्म ने कहा-'जब भी आपको बेचैनी हो, आप विचारों को उलटकर विचार करने की आदत बना लें। सारी ऊर्जा, एक दृष्टि, एक सोच और एक विचार बन जाएगी और मन शांत हो जाएगा।'

Monday, July 27, 2015

ऊपर उठने के लिए

एक बार अमेरिका के एक छोटे शहर में मेला लगा। वहां बहुत सारे दुकानदार अपना सामान बेचने के लिए आए हुए थे। उनमें रंग-बिरंगे गुब्बारे बेचने वाला भी था। गुब्बारों में गैस भरी होने की वजह से वे आसमान में उड़े जा रहे थे। उनका एक सिरा दुकान के पास लगे एक खंभे से बंधा था। जैसे ही गुब्बारेवाले के गुब्बारों की बिक्री कम होने लगती, वह एक गुब्बारा खोलकर फौरन हवा में छोड़ देता। देखते-देखते गुब्बारा ऊपर उठता चला जाता। गुब्बारा ऊपर उड़ता देख मेले में आए बच्चे खूब उत्साह में वहां आ जाते। कुछ ही देर में उसके पास गुब्बारे खरीदने के लिए बच्चों की भीड़ लग जाती।

एक अश्वेत किशोर काफी देर से यह दृश्य बड़े ध्यान से देख रहा था। बड़ी हिम्मत जुटाकर वह गुब्बारे वाले के पास पहुंचा और बोला- 'सर, अगर आप इजाजत दें तो मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं।' गुब्बारे वाले ने दूसरे ही पल उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा, 'हां-हां, क्यों नहीं। बेधड़क होकर पूछो। तुम क्या जानना चाहते हो?' किशोर ने मासूमियत से पूछा, 'कुछ खास नहीं, बस यही जानना चाहता हूं कि क्या काले रंग का गुब्बारा भी आसमान में ऐसे ही उड़ेगा?'

उसका यह अनोखा सवाल सुनकर गुब्बारे वाला हैरान रह गया। उसकी आंखें नम हो उठीं। उसने बड़े प्रेम से किशोर को अपने पास की कुर्सी पर बैठाया और समझाते हुए कहा- 'देखो बेटा, गुब्बारा हो चाहे मनुष्य, उसके ऊपर उठने से उसके रंग का कोई संबंध कभी नहीं होता। ऊपर उठने के लिए तो उसके भीतर भरी चीज ही काम आती है। गुब्बारा गैस से उठता है और इंसान अपने हौसले से।'

Saturday, July 25, 2015

सबसे बड़ा काम

ने एक धनी व्यक्ति की मेज पर बीस डॉलर की सोने की गिन्नी रखते हुए कहा, 'सर, आपने बुरे वक्त में मेरी सहायता की थी। उसके लिए मैं बहुत आभारी हूं। लेकिन अब मैं अपनी मेहनत के बल पर इतना सक्षम हो गया हूं कि आपका वह कर्ज लौटा सकूं।' यह सुनकर वह व्यक्ति उन्हें गौर से घूरते हुए बोला, 'क्षमा कीजिए, पर मैंने आपको पहचाना नहीं। न ही मुझे याद है कि मैंने किसी को बीस डॉलर उधार दिए थे।'

बेंजामिन बोले, 'मैं उन दिनों एक प्रेस में अखबार छापने का काम करता था। एक दिन अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई। तभी मैंने आपसे बीस डॉलर लिए थे।' उस व्यक्ति ने अपने बीते दिनों के बारे में सोचा तो उसे याद हो आया कि काफी पहले एक लड़का प्रेस में काम किया करता था और एक दिन उसने उसकी मदद भी की थी। इस पर वह बोला, 'हां मुझे याद आ गया। लेकिन दोस्त, यह तो मनुष्य का सहज धर्म है कि वह मुसीबत में सहायता करे। इन गिन्नियों को अब अपने पास ही रखें। कभी कोई जरूरतमंद आए तो उसे दे दें।'

उसकी यह बात सुनकर बेंजामिन फ्रैंकलिन बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अभिवादन कर वे गिन्नियां अपने साथ लौटा लाए। इसके बाद एक दिन उन्होंने एक जरूरतमंद व्यक्ति को वह गिन्नियां दे दीं। उस व्यक्ति ने बेंजामिन से गिन्नियां लौटाने की बात कही तो वह उससे बोले, 'दोस्त, जब तुम सक्षम हो जाओगे तो अपने जैसे किसी जरूरतमंद को ये गिन्नियां दे देना। मैं समझूंगा कि मेरी गिन्नियां मुझे मिल गईं। किसी जरूरतमंद की वक्त पर मदद करना ही सबसे बड़ा काम है।'

Thursday, July 23, 2015

ज्ञान का महत्व

एक जौहरी के निधन के बाद उसका परिवार संकट में पड़ गया। खाने के भी लाले पड़ गए। एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को नीलम का एक हार देकर कहा- 'बेटा, इसे अपने चाचा की दुकान पर ले जाओ। कहना इसे बेचकर कुछ रुपये दे दो।' बेटा वह हार लेकर चाचा जी के पास गया। चाचा ने हार को अच्छी तरह से देख परखकर कहा- बेटा, मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है। थोड़ा रुककर बेचना, अच्छे दाम मिलेंगे। उसे थोड़े से रुपये देकर कहा कि तुम कल से दुकान पर आकर बैठना।

अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान पर जाने लगा और वहां हीरों की परख का काम सीखने लगा। एक दिन वह बड़ा पारखी बन गया। लोग दूर-दूर से अपने हीरे की परख कराने आने लगे। एक दिन उसके चाचा ने कहा, 'बेटा अपनी मां से वह हार लेकर आना और कहना कि अब बाजार बहुत तेज है, उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे।' मां से हार लेकर उसने परखा तो पाया कि वह तो नकली है। वह उसे घर पर ही छोड़ कर दुकान लौट आया।

चाचा ने पूछा, 'हार नहीं लाए?' उसने कहा, 'वह तो नकली था।' तब चाचा ने कहा, 'जब तुम पहली बार हार लेकर थे, तब मैं उसे नकली बता देता तो तुम सोचते कि आज हम पर बुरा वक्त आया तो चाचा हमारी चीज को भी नकली बताने लगे। आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो गया तो पता चल गया कि हार सचमुच नकली है। सच यह है कि ज्ञान के बिना इस संसार में हम जो भी सोचते, देखते और जानते हैं, सब गलत है।'

Wednesday, July 22, 2015

बीरबल का राज

एक दिन बीरबल ने जब बादशाह अकबर के दरबार में प्रवेश किया तो उसने देखा की सभी दरबारी हंस रहे है | उसने बादशाह से पूछा, “मगराज| आज सभी दरबारी इतने खुश क्यों है?

“अरे, कोई खास बात नहीं, बीरबल |” अकबर ने जवाब दिया |” हम लोगो की त्वचा के रंगो के विषय में चर्चा कर रहे थे | अधिकतर दरबारी और स्वंय में गोरे में हु | तुम हमसे काले कैसे?” हमेशा की तरह बीरबल का जवाब तेयार था | ओह: शायद आप मेरी त्वचा के रंग के रजके विषय में नहीं जानते?”

“राज ! कैसा राज |” अकबर ने पूछा |

“बहुत समय पहले भगवान ने इस संसार को पेड़-पोधो, पशु-पक्षियों आदि से भरपूर बनाया था | पर बे इस रचना से संतुष्ट नहीं थे | इसलिए उन्होंने मनुष्य की रचना की | अपनी इस नई रचना की देखकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए | इसलिए उन्होंने तोहफे के तोर पर रूप, दिमाग तथा धन देने का निर्णय किया | उन्होंने घोषणा की कि प्रत्येक व्यक्ति को पांच मिनट का समय दिया जायगा ताकि सभी अपनी इच्छाअनुसार कोई भी तोहफा चुन सके | मेने सारा समय बुद्धि इकट्ठा करने में लगा दिया जिससे दूसरी वस्तु चुनने का समय ही नहीं बचा | आप सभी रूप और धन इकट्ठा करने में लगे रहे और बाकि तो सब जानते ही है | “ बीरबल ने जवाब दिया |

यह सब सुनकर सभी दरबारी सन्न रह गए| किसी के पास भी इसका प्रत्युत्तर न था | बादशाह अकबर बीरबल की इस हाजिर-जवाबी पर खिलखिलाकर हंस पड़े |



Tuesday, July 21, 2015

चालाकी का फल

बहुत पुरानी बात है| किसी गाँव में एक व्यापारी रहता था | उसका नाम मोहन था | मोहन गाँव नहर के किनारे बसा हुआ था | वह नमक का व्यापार करता था | उसके पास एक गधा था | वह रोज एक बोरी नमक गधे पर लादकर शहर ले जाता था | रोजाना एक ही रास्ते से आने-जाने के कारण व्यापारी का गधा शहर का रास्ता पहचान गया था |

मोहन भी समझ गया था की गधा शहर का रास्ता पहचाना गया है, इसलिए अब वह गधे पर नमक लादकर उसे अकेला ही शहर भेज देता था | उस शहर का व्यापारी गधे के ऊपर लदी नमक की बोरी उतार लेता था | इसके बाद गधा वापस लोट आता था | गाँव और शहर का रास्ते में नहर पडती थी, लेकिन नहर पर कोई पुल नहीं बना था, इसलिए नहर को उसमे से चलकर ही पार करना पड़ता था | बरसात के कारण एक दिन नहर में पानी बहुत बढ़ गया | जिससे गधे पर लदी हुई नमक की बोरी भीग गई |

पानी में भीग जाने से थोडा नमक पानी में घुल गया | जिससे बोरी कुछ हलकी हो गई | इससे गधे ने यह समझा की पानी में भीगने से बोझ कम हो जाता है | अब तो गधा रोज नहर के बीच में पहुचकर पानी में थोड़ी देर बेठ जाता | इससे बोरी गीली हो जाती और गीली होने से कुछ नमक पानी में बह जाता | इधर शहर के व्यापारी ने देखा की कुछ दिनों से नमक को बोरी पानी में भीगी हुई होती है | एक दिन उसने बोरी को तोलकर देखा | यह क्या? बोरी का भार तो सचमुच बहुत कम है | व्यापारी की समझ में कुछ नहीं आया की बोरी में नमक क्यों कम होने लगा है उसने मोहन को एक कागज पर यह सब लिखकर भेजा |

व्यापारी ने कागज पढने में नमक कम होने की शिकायत लिखी थी | मोहन ने कागज पढने के बाद दुसरे दिन गधे की पीछा किया | कुछ देर बाद गधा खड़ा हुआ और किनारे की तरफ चलने लगा | वह गधे की चालाकी समझ गया | उसने सोचा की गधे की सबक सिखाना चाहिए | दुसरे दिन उसने नमक की जगह गधे पर रुई का बोरा लाद दिया | रुई हलकी होती है और पानी में भीगने से भरी हो जाती है | हर रोज की तरह उस दिन भी गधा नहर के बीच में पहुचकर पानी में बेठ गया | इससे रुई के बोरे में पानी भर गया और बोरा बहुत भारी हो गया | अब तो गधे से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था पानी से भीगी हुई रुई के भार से दबा गधा जैसे-तैसे पानी से निकलकर नहर के किनारे पर पहुच गया | इतने अधिक भार से उसे नानी याद आ गई थी |

उसके बाद गधा नहर में फिर कभी नहीं बेठा | उसे अपनी चालाकी का फल मिल गया था |


Monday, July 20, 2015

फुट पतन का कारण बनती है |


एक बार की बात है की एक जंगल में तीन साड रहते थे | वे तीनो बहुत ही बलवान थे और तीनो ही पक्के दोस्त भी थे | वो जहा भी जाते सबे साथ साथ जाते थे | वो हमेशा एक साथ ही रहते थे और उनकी यह एकता देख कर सभी जंगल के जानवर उनसे डरते थे | किसी की भी हिमत नहीं थी उनसे लड़ने की | फलत: वह अपने दुश्मनों से पूरी तरह से सुरक्षित थे | उन्हें एक साथ देख कर वन का राजा सिंह भी उनके पास आने से डरता था |

उसी वन में एक लोमड़ी भी रहती थी | वह जब भी उन सांडो को एक साथ देखती तो उसके मुह में पानी आ जाता था | परन्तु उनके पास जाने से डरता थी | लोमड़ी ने एक दिन बहुत सोच समझकर एक योजना बनाई |

उसने सांडो में फुट डालने की योजना बनाई | उसने इस योजना में अपने दोस्त लोमड़ी की भी मदद ली | दोनों लोमडियो ने एक एक सांड के पास गए | पहले तो उनकी बहुत तारीफ की और फिर उन्होंने एक दुसरो ने कान भरने सुरु कर दिए और उनमे शत्रुता का बीज बो दिया | फलत: वे परस्पर अलग हो गए |

और इसी का फायदा उठा कर उस लोमड़ी ने एक सांड पर आक्रमण कर उसे अपना भोजन बना लिया | इसी प्रकार उसने दुसरे दोनों सांडो को बारी बारी मार कर अपना भोजन बना लिया |



Wednesday, July 15, 2015

भाग्य को न कोसे

वर्षा ऋतू का सुहावना दिन था | जंगल के सभी जानवर, पशु पक्षी बहुत खुश थे | उसी वन में एक मोर भी रहता था और वह मोर वन में अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक नाच रहा था | नाचते समय अचानक उसे अपने भदे और अप्रिय स्वर का ध्यान आ गया और वो चुप हो गया | वह बहुत उदास हो गया और उसकी आँखों में आंसू आ गए |

ठीक उसी समय उसे सामने एक पड़े पर एक बुलबुल दिखाई पड़ गई | उसे सुन कर वह और दुखी हो गया और सोचने लगा, “कैसा मीठा स्वर है इसका और सभी उसकी प्रंशसा करते है | और मेरा स्वर सुन कर सभी मेरा मजाक उड़ाते है | कितन अभागा हु में |

उसी जंगल में एक ऋषि भी रहते थे और वो इस प्रकार मोर को दुखी देखकर बोले, “प्रिय मोर. इस प्रकार उदास मत हो और न ही अपने भाग्य लो कोसे | इस संसार में भगवान ने सभी जीवो को भिन्न भिन्न देन दी है जैसे आपको सुन्दरता, गरुड को बल, बुलबुल को सुरीला स्वर और सभी को अलग अलग देन दी है | आप इस प्रकार दुखी को कर न तो अपने भाग्य को और न ही अपने ईश्वर को कोसे | बल्कि आप उस परमात्मा को ध्यान्वाद दे की उसने आप को इतना सुन्दर बनाया है की सभी आप को देख आर मोहित हो जाते है |



Tuesday, July 14, 2015

मोची का लालच,

किसी गाँव में एक धनी(Rich) सेठ रहता था उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची की एक खास आदत थी कि जो जब भी जूते सिलता तो भगवान(God) के भजन गुनगुनाता रहता था लेकिन सेठ ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया ।

एक दिन सेठ व्यापार(Business) के सिलसिले में विदेश गया और घर लौटते वक्त उसकी तबियत बहुत ख़राब हो गयी । लेकिन पैसे की कोई कमी तो थी नहीं सो देश विदेशों से डॉक्टर, वैद्य, हकीमों को बुलाया गया लेकिन कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका । अब सेठ की तबियत दिन प्रतिदिन ख़राब होती जा रही थी। वह चल फिर भी नहीं पाता था , एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पे लेता था अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी, आज मोची के भजन कुछ अच्छे लग लग रहे थे सेठ को, कुछ ही देर में सेठ इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे वो साक्षात परमात्मा से मिलन कर रहा हो। मोची के भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर लेते जा रहे थे कुछ देर के लिए सेठ भूल गया कि वह बीमार है उसे अपार आनंद की प्राप्ति हुई । कुछ दिन तक यही सिलसिला चलता रहा, अब धीरे धीरे सेठ के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। एक दिन उसने मोची को बुलाया और कहा – मेरी बीमारी का इलाज बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाये लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरा स्वास्थ्य सुधार दिया ये लो 1000 रुपये इनाम, मोची खुश होते हुए पैसे लेकर चला गया ।

लेकिन उस रात मोची को बिल्कुल नींद नहीं आई वो सारी रात यही सोचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छुपा कर रखूं और इनसे क्या क्या खरीदना है? इसी सोच की वजह से वो इतना परेशान हुआ कि अगले दिन काम पे भी नहीं जा पाया। अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था, मन में खुशी थी पैसे की। अब तो उसने काम पर जाना ही बंद कर दिया और धीरे धीरे उसकी दुकानदारी भी चौपट होने लगी । इधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी ।

एक दिन मोची सेठ के बंगले में आया और बोला सेठ जी आप अपने ये पैसे वापस रख लीजिये, इस धन की वजह से मेरा धंधा चौपट हो गया, मैं भजन गाना ही भूल गया। इस धन ने तो मेरा परमात्मा से नाता ही तुड़वा दिया। मोची पैसे वापस करके फिर से अपने काम में लग गया ।

Monday, July 13, 2015

सफलता का सूत्र

एक बार एक लड़का परीक्षा में फेल हो गया। साथियों ने उसके फेल होने का खूब मजाक बनाया। वह बरर्दाश्त नहीं कर पाया और घर लौटकर तनाव में डूब गया। उसके माता-पिता ने उसे बहुत समझाया- 'बेटा, फेल होना इतनी बड़ी असफलता नहीं है कि तुम इतने परेशान हो जाओ और आगे के जीवन पर प्रश्नचिन्ह लगा बैठो। जब तक इंसान अच्छे-बुरे, सफलता-असफलता के दौर से खुद नहीं गुजरता, तब तक वह बड़े काम नहीं कर सकता।' लेकिन उसे उनकी बातों से संतुष्टि नहीं हुई। अशांति और निराशा में जब उसे कुछ नहीं सूझा और रात में वह आत्महत्या करने लिए चल दिया। रास्ते में उसे एक बौद्ध मठ दिखाई दिया। वहां से कुछ आवाजें आ रही थीं। वह उत्सुकतावश बौद्ध मठ के अंदर चला गया।
वहां उसने सुना, एक भिक्षुक कह रहा था-'पानी मैला क्यों नहीं होता? क्योंकि वह बहता है। उसके मार्ग में बाधाएं क्यों नहीं आतीं? क्योंकि वह बहता रहता है। पानी का एक बिंदु झरने से नदी, नदी से महानदी और फिर समुद्र क्यों बन जाता है? क्योंकि वह बहता है। इसलिए मेरे जीवन तुम रुको मत, बहते रहो। कुछ असफलताएं आती हैं पर तुम उनसे घबराओ मत। उन्हें लांघकर मेहनत करते चलो। बहना और चलना ही जीवन है। असफलता से घबराकर रुक गए तो उसी तरह सड़ जाओगे जैसे रुका हुआ पानी सड़ जाता है।'

यह सुनकर लड़के ने मन में यह ठान लिया कि उसे भी बहते जल की तरह बनना है। इसी सोच के साथ वह घर की ओर मुड़ गया। अगले दिन वह सामान्य होकर स्कूल की ओर चल दिया। बाद में वह वियतनाम के राष्ट्रनायक हो ची मिन्ह के नाम से जाना गया।

Sunday, July 12, 2015

एक हाथ से लो, दूसरे से दो


किसी नगर में एक लालची आदमी रहता था। ज्यों-ज्यों उसके पास पैसा आता गया त्यों-त्यों उसका लोभ बढ़ता गया। उसे सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं उपलब्ध थीं। धन के बल पर वह प्रत्येक वस्तु प्राप्त कर सकता था। लेकिन उसके जीवन में एक चीज का अभाव था- उसका कोई पुत्र नहीं था। उसकी युवावस्था बीतने लगी, परंतु धन-संपत्ति के प्रति उसकी चाहत में कोई अंतर नहीं आया।

एक रात बिस्तर पर लेटे-लेटे उसने देखा कि सामने कोई अस्पष्ट आकृति खड़ी है। उसने घबराकर पूछा,'कौन?' उत्तर मिला,'मृत्यु।' फिर वह आकृति गायब हो गई। उस दिन से जब भी वह एकांत में होता, आकृति उसके सामने आ जाती। उसका सारा सुख मिट्टी हो गया। कुछ ही दिनों में वह बीमार पड़ गया। वह वैद्य के पास गया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। दवा की, पर रोग घटने के बजाय बढ़ता गया। लोगों ने उसकी दशा देखकर कहा, 'नगर के उत्तरी छोर पर एक महात्मा रहते हैं। वह सभी प्रकार की व्याधियों को दूर कर देते हैं।'

उस आदमी ने महात्मा के पास पहुंचकर रोते हुए प्रार्थना की,'आप मेरा कष्ट दूर करें। मौत मेरा पीछा नहीं छोड़ रही है।' महात्मा ने कहा,'भले आदमी, मोह और मृत्यु परम मित्र हैं। जब तक तुम्हारे पास मोह है तब तक मृत्यु आती रहेगी। मृत्यु से तभी छुटकारा मिलेगा जब तुम मोह रहित हो जाओगे।' आदमी ने कहा-'महाराज मैं क्या करूं, मोह छूटता ही नहीं।' महात्मा बोले-'कल से तुम एक हाथ से लो और दूसरे हाथ से दो। मुट्ठी मत बांधो, हाथ को खुला रखो। तुम्हारा रोग दूर हो जाएगा।' महात्मा की बात मानकर उस आदमी ने नए जीवन का आरंभ किया। रोग तो दूर हुआ ही, उसे अच्छा भी लगने लगा।



Saturday, July 11, 2015

आत्मविश्वास और चुनौतियों का महत्त्व - एक प्रेरणात्मक कहानी

कभी-कभी जीवन में ऐसा समय आता हैं जो की मुश्किलों और समस्याओ से भरा होता हैं। ऐसे समय में अगर हम खुद पर भरोसा न करे और चुनोतियो का सामना करने से घबराए तो तनाव और निराशा हमें घेर लेती हैं। ऐसा ही एक मुश्किल समय मेरे जीवन में भी कुछ वर्ष पहले आया था। निराशा और तनाव ने मुझे कमजोर बना दिया था। उस समय मैंने एक कहानी पढ़ी थी जिसने मुझमे फिर से आत्मविश्वास भर दिया था। आज में आपके साथ उस कहानी को साझा करना चाहता हु ताकि आपके जीवन में भी कभी ऐसा दौर आये तो यह छोटी कहानी आपको प्रेरणा दे सके।
Self Confidence : Wings for Success एक आदमी हर रोज सुबह बगीचे में घुमने जाता था। एक बार उसे किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून (छत्ता) दिखाई दिया। अब वह हर रोज उसे देखता था। एक दिन उसने देखा की उस कोकून में एक छोटा सा छेद हो गया हैं। वह उत्सुकता से उसे देखने के लिए वही बैठ गया। उसने आगे देखा की एक तितली उस छेद में से बहार आने की कोशिश कर रही हैं परन्तु बेहद कोशिश करने के बाद भी उसे बहार आने में तकलीफ हो रही हैं। उस आदमी ने तितली की तकलीफ देखकर सोचा की उसकी मदत की जाए। वह उठा और उसने उस कोकून का छेद इतना बड़ा कर दिया की अब तितली उस कोकून के बड़े छेद से आसानी से बाहर निकल सके। कुछ समय बाद तितल बाहार तो आ गयी पर उसका शरीर सुजा हुआ था और पंख सूखे पड़े थे। आदमी ने सोचा की तितली अब उडेंगी पर तितली सुजन के कारण उड़ने में विफल रही और उस तितली को अपना सारा जीवन घसीटते हुए बिताना पड़ा। वह व्यक्ति यह समझ नहीं पाया की कुदरत ने ही तितली के कोकून से बहार निकलने की प्रक्रिया को इतना कठिन बनाया हैं जिससे की तितली के शरीर पर मौजूद तरल उसके पंखो तक पहुच सके और वह उड़ने में कामयाब हो जाए। यह संघर्ष ही उस तितली को अपने क्षमताओ का एहसास कराता हैं।


Friday, July 10, 2015

बुद्धिमान व्यापारी

एक व्यापारी था, बहुत ही बुद्धिमान और बहूत ही धनवान, उसका करोड़ो का कारोबार था, उसके शहर में आए दिन कोई न कोई चोरी होती रहती थी ,

मगर चोर कभी भी पकड़ा नही गया, क्योंकि वो हर बार चकमा देकर भाग जाता था,

उस व्यापारी ने अपने बारे में ये अफवाह फेला रखी थी की रत को उसे कुछ दिखाई नही देता क्योंकि उसे रतोंधी नामक बीमारी हे, उधर जब चोरों को ये पता चला की उसे रतोंधी नामक बीमारी हे, तो उन चोरो ने व्यापारी के घर चोरी करने की योजना बनाई, अभी तक चोर उसके घर पर चोरी करने में सफल नही हो सके थे,

एक रात जब चोर उस व्यापारी के घर चोरी करने पहोंचा तो व्यापारी की अंक खुल गई,

और उसने चोर को देख लिया पर सोचा चोर के पास कोई हथियार भी हो सकता हे, फिर उसने एक चाल सोची, और वो अपने पास सो रही अपनी पत्नी से जोर से बोला सुनती हो अभी अभी मेने एक सुंदर सपना देखा हे , पत्नी ने पूछा क्या देखा हे",

सुबहा होते ही कच्चे रेशम के दाम दोगुने होने वाले हें, अपने घर तो ढेर सारा रेशम का धागा हे न?''' हाँ हे तो मगर रात को क्या करना हे, पत्नी ने पुच्छा ,

पत्नी को नही पता था की घर में चोर घुसा हुआ हे, पति ने इशारे से बताया की चोर खम्बे के पिच्छे छुपा हुआ हे, अगर मुझे रतोंधी नही होती तो इसी वक्त सारा धागा नाप कर देखता की आखिर कितना मुनाफा सूरज निकलते ही हो जाएगा,

रहने भी दो पत्नी बोली सुबहा ही नाप कर देखलेना,

पति बोला क्या मुझे अपने ही घर में नही पता चलेगा की कोंसी चीज कन्हा हे आओ उठ कर नापे की रेशम कितना हे बस खम्बे के चरों और लपेट लपेट कर अंदाजा लगा लूँगा की धागा कितना हे.

ठीक हे में तो सो रही हु आप ही नाप लो, उसकी पत्नी ने कहा और सोने का नाटक करने लगी, इधर व्यापारी ने अन्धे पन का नाटक करते हुए रेशम को खम्बे के चरों और लपेटना शुरू करदिया,

इस तरह वो खम्बे के पास से कई बार गुजरा जंहा चोर खम्बे से सटकर खड़ा था , व्यापारी बार बार ये ही दिखा रहा था की उसे कुछ नही दिख रहा इस तरहां उसने खम्बे के कई चकर लगाये और चोर के लिए अब हिलना भी मुस्किल हो गया

चोर ने ये सोचा था की रेशम के धागों को तोडकर वो एक दम से भाग निकलेगा, मगर उन कोमल धागों ने मिलकर इतना मजबूत रूप धारण कर लिया की वो उनमें बंध कर ही रहगया,

इसके बाद व्यापारी ने पुलिस को फोन कर दिया और चोर को उनके हवाले कर दिया, चोर ने ये जाल लिया की कच्चे धागे जुडकर जब एक हो जाते हें तो वो भी मजबूत हो जाते हें, अर्थात एकता की ताकत सबसे मजबूत हे ,


Thursday, July 9, 2015

अकबर का प्रशन – कोन सा मोसम अच्छा?

एक बार बादशाह अकबर ने अपने दरबारियों से प्रशन किया, “बताओ सबसे अच्छा मोसम किस ऋतू में होता है|”

दरबारी सदेव बादशाह को प्रसन्न करके ईनाम पाने के लिए तेयार रहते थे | उनमे से एक दरबारी उठा और बोला, “ महाराज सबसे अच्छा मोसम बसंत ऋतू में होता है? इस समय मंद-मंद हवा बहती है, रंग-बिरंगे फूल खिलते है, तापमान भी कम होता है तथा ठंडा मोसम सबको प्रसन्नता देता है|”

तभी एक और दरबारी उठा और बोला, “नहीं महाराज सबसे अच्छा मोसम सर्दी का होता है | इस समय हमे कई प्रकार की सब्जिया मिलती है तथा कई प्रकार की मदिरा भी मिलती है | इस मोसम में मुंगफलिया तथा गर्म कम्बल हमे गरमाहट भी देते है|”

तभी एक अन्य देबारी ने बिच में टोकते हुए कहा, “महाराज, गर्मिया का मोसम ही सबसे अच्छा मोसम होता है | यह गर्म तो होता है परन्तु ठण्डी मदिरा और नोक विहार मन को प्रसन्नता देते है |”

अब जवाब देने की बारी बीरबल की थी वह उठा और बोला, “महाराज सबसे अच्छा मोसम वह होता है, जब मनुष्य को उचित भोजन मिले | जब उसका पेट भरा हो| यदि कोई व्यक्ति भूखा होगा तो ठण्डी हवा उसे ख़ुशी नहीं देगी| ठंड उसे कटेगी और गर्मियों तो उसे और अधिक बेचेन क्र देगी | परन्तु यदि व्यक्ति का पेट भरा हो तो वह मोसम की बारिश, गर्मियों की ठण्डी हवा तथा गर्म कपड़ो का आनंद ले सकता है | एक भूखे पेट व्यक्ति तो भोजन के अतिरिक्त कुछ और सोच ही नहीं सकता |”

बादशाह अकबर एक बार फिर बीरबल की चतुर हाजिरजवाबी से चकित रह गए |


Wednesday, July 8, 2015

चिंपू और चींची

किसी जंगल में एक बहुत बड़ा पेड़ था | उस पेड़ पर एक बंदर रहता था | उसका नाम चिंपू था | वह हमेशा सबसे लड़ता और उनका नुकसान करता था | उसी पेड़ पर एक चिड़िया भी रहती थी | उसका नाम चींची था | वह एक समय मीठे मीठे गीत गाती थी | गरमी का मोसम चला गया और बरसात का मोसम आ गया | चींची ने बरसात आने से पहले ही अपना घोंसला बला लिया था |
आकाश में काले – काले बादल आकर गरजने लगे | मोर नाचने लगे | देखते – ही – देखते बरसात होने लगी | बारिश के जल से जंगल की मिटटी महक उठी | धीरे – धीरे बारिश और तेज हो गई | चींची अपने घोसले में दुबककर बेठ गई | चिंपू बेचारा पेड़ पर बेठा – बेठा भीगता रहा | चिंपू को भीगता देख चींची हसने लगी |
हँसते – हँसते उसने चिंपू से कहा – अरे, मामा जी | आपसे मेने पहले ही कहा था, अपने लिए घर बना लो, लेकिन मेरी बात नहीं सुनी | अब भीगते रहिए | भगवान ने आपको दो हाथ दिए है | मुझे देखो मेरे पास तो हाथ भी नहीं है | फिर भी मेने अपनी चोंच से यह घोंसला बनाया | चाहते तो आप भी अपने लिए एक घर बना सकते थे |
चिंपू बोला – “ देखो, मुझे सीख मत दो | तुम चुप हो जाओ |” चींची ने कहा – “देखिए आप मुझे से बहुत बड़े है | आपके हाथ, पैर, सिर, कान, नाक सब कुछ इंसानों जैसा है | आप मुझसे अधिक ताकतवर भी है | यदी आपने समय रहते अपने लिए घर बना लिया होता टी, आज मजे से उसमे बेठे होते | अब भीगते रहिये, मुझे क्या |”
चींची की बात सुनकर चिंपू नाराज हो गया | वह जोर से बोला – “ मेने तुझे मना किया था की मुझे सीख मत दे, लेकिन तू नहीं मानी | मेरी बहुत हंसी उड़ा रही है | में तुझे अभी मजा चखाता हु |” यह कहकर चिंपू ने चींची का घोसला तोडकर फेक दिया |

Tuesday, July 7, 2015

भगवान सबको देखता है

एक किसान था | उसका एक बेटा था रामू | एक दिन को बात है, किसान अपने खेत में काम कर रहा था | रामू भी वही था | पड़ोंसी के खेत में गाजर उगी हुई थी | रामू ने वहा जाकर एक गाजर खींचकर निकल ली | गाजर खींचते देख किसान अपने बेटे से बोला – “बेटा | वह खेत दुसरे किसान का है | तुमने उसके खेत से गाजर क्यों निकाली ??
रामू बोला – “में जानता हु, यह हमारा नहीं है | यह खेत राधे काका का है, परंतु काका इस समय नहीं नहीं |” बेटे की बात सुन किसान बोला – “बेटा, राधे ने तुम्हे नहीं देखा, परंतु भगवान तो देख रहा है | वह सबको देखता है |” रामू को अपने पिता की कही बात समझ आ गई |
एक बार की बात है, बरसात नहीं हुई | बरसात न होने से सभी किसानो के खेत सुख गए | खाने के लिए भी किसी के घर में अनाज नहीं था | सभी किसान बहुत परेशान थे |
भूख से बेचेन ही रामू को पिता सोचने लगा – “क्या करू? अनाज कंहा से लाऊ?” गाँव में केवल पड़ोसी राधे के खलियान में ही अनाज था | पिछले साल उसके खेत में गेहू की खूब पैदावार हुई थी | रामू के पिता ने राधे के खलियान से अनाज चोरी करने जी योजना बनाई |
यह रात को दो बजे उठा | उसने अपने बेटे रामू को जगाया | दोनों राधे के खलियान पर पहुचे | किसान बोला –“बेटा, तुम देखते रहना | यदि कोई इस तरफ आए, तो मुझे जल्दी से बता देना |”
बेटे को समझाकर किसान राधे के खलियान में धुस गया | जेसे ही किसान के अनाज उठाना शुरू किया, उसी समय रामू बोला –“पिता जी रुक जाइये |” किसान जल्दी से रामू के पास आकर बोला –“क्या कोई यहाँ आ रहा है या कोई देख रहा है?” रामू ने बड़े भोलेपन से कहा – “पिता जी! इस तरफ कोई आ तो नहीं रहा, लेकिन भगवान देख रहा है |”
रामू के मुख से यह सुनकर किसान की गरदन शरम से झुक गई | उसका हाथ कापने लगा | अनाज की बोरी हाथ से छुट गई | वह बोला – “हा बेटे, भगवान तो देख ही रहा है | में भूल गया था | अच्छा हुआ तुमने याद दिला दिया | किसान ने अपने बेटे को छाती से लगा लिया और भगवान से माफी मागने लगा | फिर दोनों भगवान को याद करते हुए अपने घर की तरफ चल दिए |”

Monday, July 6, 2015

सबसे कीमती

एक बार रानी से कुछ गलती हो गई | बादशाह अकबर ने उन्हें क्रोध में आदेश दिया, “में चाहता हूँ की तुम चोबीस घंटे के अंदर राजमहल छोडकर चली जाओ | चाहे तो अपने साथ अपनी सबसे कीमती वस्तु ले जा सकती हो |”
रानी बहुत घबरा गई | ऐसे में उन्हें बीरबल ही एकमात्र सहारा नजर आया, इसलिए वह तुरंत मदद के लिए बीरबल के पास पहुची| बीरबल ने उनकी समस्या सुनी और बहुत सोच-विचर कर उन्हें एक योजना समझाई | उस योजना के अनुसार अपने कक्षमें आकर रानी ने अपनी सेविका को जल्दी ही अपना सामान बाधने के निदेश दिए | सब तेयारी जल्दी ही पूर्ण होने पैर रानी ने बादशाह को बुलवाया | बादशाह के आने पर वह बोली, “क्या आप हमारे हाथ से एक गिलास शरबत पि सकते है?”
बादशाह तेयार हो गए | रानी ने शरबत में नीद की दवा मिला गी थी | शरबत पिटे ही बादशाह गहरी नीद में सो गए | तब रानी ने सेनिको से पालकी मंगाकर बादशाह अकबर को उसमे लिटा दिया | फिर अपने सामान और बादशाह अकबर के साथ राजमहल छोड़ क्र अपने पिता के घर चली गई |
वंहा पहुचकर बादशाह को उन्होंने पलंग पर लिटा दिया | बादशाह अब तक नीद में थे | जब रानी के पिता ने उनसे इस सब का कारण पूछा तो उन्होंने उन्हें कुछ देर प्रतिक्षा करने को कहा | कुछ घंटो के पश्चात बादशाह की नीद खुली | उन्होंने अपने आस – पास देखा | रानी को उन्होंने खिड़की के पास खड़े पाया |
“में यहाँ क्या कर रहा हु?” में किस प्रकार तुम्हारे पिता के घर पहुंचा?” बादशाह ने गुस्से में कहा |
“महाराज, नाराज मत होइए, आपने मुझे अपनी सबसे कीमती वस्तु के साथ महल से जाने को कहा था | आपसे अधिक कीमती तो मेरे लिए कुछ भी नहीं है | इसलिए में आपको अपने साथ ले आई|”
रानी के शब्दों को सुनकर बादशाह अकबर मुस्कराए और बोले, “प्रिय, तुमने बहुत चतुराई से यह योजना बनाई है |”
“नहीं….नहीं, महाराज,” रानी ने सफाई देते हुए कहा |
“यह योजना मेरी नहीं थी, मुझे तो बीरबल ने ऐसा करने के लिए कहा था |”
“अच्छा तो इस सब के पीछे भी बीरबल का हाथ है | एक बार फिर तुम्हारे जरिए उसने हमे मात दे दी | अच्छा अब चलो राजमहल वापस चलते है |” फिर बादशाह और रानी वापस महल चले आए | इस बार बीरबल को उसकी इस बुद्धिमता के लिए पुरस्क्त किया गया |

Sunday, July 5, 2015

जाओ और आओ

एक गाँव में एक धनी किसान रहता था | उसके पास बहुत सी जमीन थी | उसके यहाँ बहुत –से आदमी काम करते थे | उस किसान के दो लडके थे |

जब दोनों लडके बड़े हो गये, तो किसान ने उन्हें आधी – आधी जमीन बाँट दी | साथ ही उसने काम करने वाले आदमी भी बराबर – बराबर संख्या में बाँट दिये |

बड़ा लड़का बहुत सुस्त और लालची था | वह कभी अपने खेतो को देखने तक नहीं जाता था | वह अपने आदमियों से कहा करता था  “जाओ, खेतो पर जाकर काम करो |”

उसके आदमी मनमाना काम करते थे | काम कम करते थे, बाते अधिक | वे चिलम पिटे हुए इघर उघर की गप्पे उड़ाया करते थे | न समय पर हल चलते थे | न बीच बोते थे | न ठीक वक्त पर खाद डालते थे, न सिंचाई करते थे | धीरे – धीरे उपज घटने लगी और बहुत कम हो गई | किसान का बड़ा लड़का गरीब हो गया |

उघर छोटा लड़का बहुत मेहनती था | वह सवेरा होते ही कंधे पर हल रखकर अपने आग्मियो को पुकारता था – “आओ, खेतो पर चलकर काम करे |”

वह आदमियों को साथ लेकर खेतो पर जाता | डटकर काम करता था | उसे देखकर उसके आदमी भी खूब मेहनत करते थे | उसके आदमी खेतो में समय पर हल चलाया करते, समय पर बीच बोये करते और सिंचाई भी करते |

उसकी उपज दिनों – दिन बदती गई | वह अपने आदमियों को अधिक काम करने पर पुरस्कार भी देता था |

कुछ ही वर्षो में वह और धनी हो गया |

चतुर पिता दोनों बेटो में फर्क समझता था | एक दिन उसने दोनों बेटो को बुलाया | बड़े लडके ने पूछा – “क्या हाल है?” उसने कहा – “में तो गरीब हो गया हु | मेरा भाग्य हो खराब है |“

फिर उसने छोटे लडके से हाल – चाल पूछा | छोटा लड़का मुस्करा कर बोला – “आपकी क्रपा से दिन दुनी और रात चोगुनी उन्नति हो रही है | आनन्द आ रहा है |”

बूढ़े किसान ने कहा – “देखो, तुम दोनों को मेने बराबर – बराबर भाग दिया | वह भागही तुम्हारा भाग्य था | तुम्हारे भाग्य में कोई अंतर नहीं | अंतर केवल है ‘जाओ’ और ‘आओ’ में |

बढ़े लडके ने हेरान होकर पूछा – “बापू! जाओ और आओ क्या है ?”

पिता ने कहा – “तुम सदा अपने आदमियों से कहते हो – जाओ, काम करो|” तुम्हारा छोटा भाई अपने आदमियों से कहता है – “आओ, काम करे|”

पिता की बात सुनकर बढ़े लडके की आँखे खुल गई | उस दिन से वह भी ठीक ढंग से काम करने लगा | उसके खेतो की भी उपज बढने लगी |




Friday, July 3, 2015

संगत का असर

एक शाम अकबर और बीरबल शाही उधान में प्रसन्नतापूर्वक टहल रहे थे | बीरबल ने बादशाह अकबर से टिप्पणी करते हुए कुछ कहा, जो बादशाह को पसंद नहीं आया | परन्तु बीरबल ने इस पैर ध्यान नहीं दिया | वह अप्रत्यक्ष रूप से बादशाह के साथ मजाक करता रहा | कुछ समय बाद जब बादशाह अपने क्रोध पैर काबू नहीं रख पाए तो वे चिल्लाते हुए बोले, “अपने बादशाह की शान में इस प्रकार कहने की तुम्हारी हिम्मत केसे हुई?” यह सच है की में तुम्हारी बुदिमता से प्रभावित होता हु | परन्तु में यह देख रहा हु की तुम अपनी सीमाओं को पार कर रहे हो | में यह देख रहा हु की तुम्हारा व्यवहार असभ्य हो गया है |

और हमेशा की तरह अपनी बुदी का प्रयोग करते हुए वह बादशाह अकबर के सामने झुका और बोला, “महाराज, यह मेरी गलती नहीं है, यह सब मेरी संगत का असर है | आपके साथी आपके व्यवहार को प्रभावित करते है |”

यह सुनकर बादशाह ठहाके मार कर हंसे | वह जानते थे की बीरबल अपना सर्वाधिक समय स्वंय बादशाह के साथ ही बिताता है | इस प्रकार बीरबल ने एक बार फिर अपनी बुद्धिमता से बादशाह को प्रभावित किया |


Thursday, July 2, 2015

आज्ञाकारी बीरबल

बीरबल अकबर के दरबार का सबसे ईमानदार और वफादार मंत्री था | एक बार बादशाह अकबर कि सबसे प्रिय पत्नी ने बादशाह से मिलने के लिए अपना सेनिक संदेश लेकर भेजा क्योकि बादशाह सही दरबार में थे, इसलिय वह संदेश लेकर दरबार में ही पहुच गया | बादशाह ने सोचा कि में कार्य समाप्त करके ही जाऊगा | कुछ समय पश्चात महारानी ने संदेश भेजा | बादशाह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे | इसलिय वह तुरंत कार्य छोड़ कर चलने लगे | बादशाह कि रानी से मिलने कि उत्सुकता को देखकर बीरबल अपनी मुस्कुराहट नहीं रोक पाया | उसे इस प्रकार मुस्कुराता देख बादशाह क्रोधित हो गए |

“मुझ पर इस प्रकार हंसने कि तुम्हारी हिम्मत केसे हुई ? तुम्हे तुम्हारे इस व्यवहार के लिए दंड दिया जायगा | में तुम्हे आदेश देता हु कि तुम अपने पैर जमीन पैर नहीं रखोगे | तुम यहाँ से चले जाओ|”

बीरबल ने बादशाह कि आज्ञा का तुरंत पालन किया और शाही दरबार छोड़ दिया | कई हफ्तों तक वह दरबार में नहीं गया | कई दरबारी जो उससे इर्षा करते थे वे प्रसन्न थे | बादशाह अकबर भी चिंतित हो उठे | वह बीरबल को अनुपस्थिति में खुद को असहाय महसूस का रहे थे | समस्याओ से उन्हें अकेले जूझना पड़ रहा था | जिनका वे कोई समाधान नहीं कर पा रहे थे | जबकि बीरबल चुट्कियो में बादशाह को समाधान बता देता था |

 एक शाम बादशाह अकबर महल कि खिड़की से बहार देख रहे थे | उन्होंने बीरबल को एक रथ में जाते देखा | बीरबल को बुलाने उनके सामने उपसिथत हुआ तो वह बोला “बीरबल तुमने मेरी आज्ञा का पालन क्यों नहीं किया?”

“में तो आपके आदेश का पालन कर रहा हु  महाराज | अपने कहा था कि में इस राज्य कि जमीन पैर पैर न रखू क्योकि यह राज्य आपका है | मेरे पास अन्य कोई विकल्प नहीं था | में दुसरे देश में गया और वाह से कुछ मिटटी ले कर आया हू | इस रथ में मैने वही मिटटी फेला राखी है | अब में आपकी जमीन पैर नहीं खड़ा हू | मुझे सारी जिंदगी इसी छोटे से रथ में गुजारनी होगी|”

बीरबल के बुदिमानी भरे उतर ने बादशाह का दिल जीत लिया और बादशाह ने उसे क्षमा कर दिया |