Friday, June 1, 2018

प्रायश्चित के आंसू

सुनो खुशबू ..
मम्मी पापा आ रहे हैं कल ..... दस दिन
यही रूकेंगे.....एडजस्ट कर लेना....."राजेश ने खुशबू को
बैड पर लेटते हुए कहा।
"..कोई बात नही राजेश ... आने दिजिए आपको शिकायत का कोई मौका नही मिलेगा....."....खुशबू
ने रिप्लाई दिया .....

सुबह जब राजेश की आंख खुली ... खुशबू बिस्तर छोड़ चुकी थी। "चाय ले लो..खुशबू ने राजेश की तरफ चाय का कप बढाते हुए कहा..

अरे खुशबू... तुम आज इतनी जल्दी नहा ली..
हां तुमने ही तो रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को थोड़ा अरेंज कर
लूं.....वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग..
"दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे....
राजेश ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया..

"खुशबू..देखना कभी पिछली बार की तरह....."नही
नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..खुशबू ने भी कप खत्म करते हुए राजेश को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई।.......
नाश्ता करने के बाद राजेश ने खुशबू से पूछा "..तुम तैयार नही हुई..क्या
बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??.." नही..आज तुम
निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट
निकलूंगी..खुशबू ने लंच बाक्स थमाते हुए राजेश को
कहा।...."..बाय बाय..कहकर राजेश बाइक से आफिस
के लिए निकल गया। और खुशबू घर के काम में लग
गई......

"..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से राजेश
के पास जा तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से
जिस तरह खटपट हुई थी ...मेरा तो मन ही भर गया
।....ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं..राजेश के
पिताजी राजेश की मम्मी से कह रहे थे।...."..अजी..
भूल भी जाइये..बच्ची है.......कुछ हमारी भी तो
गलती थी....हम भी तो खुशबू से कुछ ज्यादा ही
उम्मीद लगाए बैठे थे....उन बातों को अब सालभर
बीत गया है..क्या पता कुछ बदलाव आ गया
हो...इंसान हर पल कुछ नया सीखता है....क्या पता
कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे राजेश की
मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा......

दरअसल दो भाइयों में राजेश बड़ा था और श्रवण
छोटा।...राजेश गांव से दसवीं करके शहर आ गया आगे
पढने..... और श्रवण पढाई में कमजोर था इसलिए गांव
में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने
लगा....राजेश बी टेक करके शहर में ही बीस हजार रू
की नौकरी करने लगा....खुशबू से कोचिंग सेन्टर में ही
राजेश की जान पहचान हुई थी यह बात मम्मी
पापा को राजेश ने खुशबू से शादी के कुछ दिन पहले
बताई....पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस
रिश्ते के लिए.....फिर भी बड़ा दिल रखकर जब
पिछली बार राजेश और खुशबू के पास शहर आए थे तो
मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही खुशबू के
तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ
हो लिए.....

"अरे भागवान..उठ जाओ..स्टेशन आ गया उतरना नही
है क्या.... राजेश के पिताजी की आवाज से माँ की
नींद टूटी ..सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ
गए और आटो में बैठकर दोनो राजेश के घर के लिए
रवाना हो गए..घर पहुंचे तो खुशबू घर पर ही
थी...जाते ही खुशबू ने दोनो के पैर छुए.....चाय
पिलाई ....नहाने के लिए गरम पानी किया ....
पिताजी नहाने चले गए और खुशबू रसोई में खाना
बनाने लगी। थोड़ी देर में राजेश भी आ गया।
फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और खाना
खाया। अगले दिन सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो
खुशबू पहले ही उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही
गरम पानी पीने की आदत थी खुशबू ने पहले से ही
पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा
धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी..खुशबू
ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया..नाश्ता भी
पिताजी की पसंद का तैयार था..सबको नाश्ता
करवाकर खुशबू राजेश के साथ चली गई ...तो
पिताजी ने चैन की सांस ली..
चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे.....दिन
के खाने की तैयारी भी खुशबू करके गई थी...... स्कूल
से आते ही खुशबू फिर से रसोई में घुस गई ...
शाम को हम दोनों को लेकर खुशबू पास के पार्क में
गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से
करवाया.....अगले दिन सण्डे था.... खुशबू , राजेश और
हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए..हमारे लिए ताज्जुब
की बात ये थी कि प्रोग्राम खुशबू ने बनाया
था..खुशबू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और
शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई.....खाना
पीना भी हम सबने बाहर ही किया.. इस
खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब
पंख लगाकर उड़ गया..
कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और
कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे...।
आखिर कल जब श्रवण का फोन आया कि फसल
तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें
अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना
पड़ा।
रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए
तो खुशबू हमारे कमरे में आ गई उसकी आंखों से आंसू बह
रहे थे।
मैने पूछा.."क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो.?.......
तो खुशबू ने पूछा "..पिताजी, मां जी.....पहले आप
लोग एक बात बताइये..पिछले पन्द्रह दिनों में कभी
आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है
या बेटी के पास......"नही बेटा सच कहूं तो तुमने
हमारा मन जीत लिया..हमें किसी भी पल यह नही
लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा
बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ
बेटा......"तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..??

"पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई
थी।...मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा
बढिया नही है।...इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई
तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए
तरसते देखा..बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत
होते देखा..मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर
सकता था।...मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत
दुखी थी....उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही
थी..कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ
किया था।
""किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे
वैसा काटोगे।""

मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती
लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में
जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी
बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी
होंगे......खुशबू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई।
मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया....."हां बेटा
अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा...

खुशबू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो
आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के
प्रायश्चित के आंसू थे..

Wednesday, May 30, 2018

नर्क में जाने की छूट

एक बार एक व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने  की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिका वासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा,  फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे  बरसायेगा...  ! यह सुनकरवह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क  की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग  वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क  में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-  एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे  जाकर आया, सभी जगह उसे  भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में  जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में  जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे,  उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से  पूछा कि सजा क्या है ? पहरेदार ने  कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले  आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक  घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक  कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर  आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा...  ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क  में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड  क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर
 तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य
सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत  करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से  जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़  मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ
 जाओ अन्दर !!!

कलम का उपयोग

जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी  थी कलम !!उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था 

 परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं  यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ  है ?
कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग  दीपावली के दिन पूजन के  बाद कलम रख देते है और फिर  यमदुतिया के दिन  कलम- दवात  के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I

इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है ?
ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग्य कायस्थ युवा पीढ़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला I

कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने  गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की  व्यवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I
ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान  चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I
सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I 
*#तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर 
( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) 
*में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद  भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: *कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और *#यमदुतिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है*

कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से  दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है I

Monday, May 28, 2018

आदतें नस्लों का पता देती हैं

एक बादशाह के दरबार मे एक अजनबी नौकरी की तलब के लिए हाज़िर हुआ ।

क़ाबलियत पूछी गई, 
कहा, 
"सियासी हूँ ।" ( अरबी में सियासी  अक्ल ओ तदब्बुर से मसला हल करने वाले मामला फ़हम को कहते हैं ।) 

बादशाह के पास सियासतदानों की भरमार थी, उसे खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना लिया। 
चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के मुताल्लिक़ पूछा, 
उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।"

बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से साईस को बुला कर दरियाफ्त किया..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है। 

बादशाह ने अपने मसूल को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?" 
 
""उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।"""

बादशाह उसकी फरासत से बहुत मुतास्सिर हुआ, उसने मसूल के घर अनाज ,घी, भुने दुंबे, और परिंदों का आला गोश्त बतौर इनाम भिजवाया। 

और उसे मलिका के महल में तैनात कर दिया। 
चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो मलिका जैसे हैं लेकिन शहज़ादी नहीं हैं ।"

बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं,  कि आपके वालिद ने मेरे खाविंद से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपकी बादशाहत से करीबी ताल्लुक़ात क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"

बादशाह ने अपने मुसाहिब से पूछा "तुम को कैसे इल्म हुआ ?"

""उसने कहा, "उसका खादिमों के साथ सुलूक जाहिलों से भी बदतर हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक मुलाहजा एक अदब होता हैं, जो शहजादी में बिल्कुल नहीं । """

बादशाह फिर उसकी फरासत से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे मुतय्यन कर दिया। 

कुछ वक्त गुज़रा, मुसाहिब को बुलाया,अपने बारे में दरियाफ्त किया ।

मुसाहिब ने कहा "जान की अमान ।"

बादशाह ने वादा किया । 

उसने कहा, "न तो आप बादशाह ज़ादे हो न आपका चलन बादशाहों वाला है।"

बादशाह को ताव आया, मगर जान की अमान दे चुका था, सीधा अपनी वालिदा के महल पहुंचा ।

वालिदा ने कहा, 
"ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे लेकर हम ने पाला ।"

बादशाह ने मुसाहिब को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे इल्म हुआ ????"

उसने कहा "बादशाह जब किसी को "इनाम ओ इकराम" दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें इनायत करते हैं...ये असलूब बादशाह ज़ादे का नही,  किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।" 
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी मुल्लम्मा हैं । 
इंसान की असलियत, उस के खून की किस्म उसके व्यवहार, 
उसकी नियत से होती हैं...

*तब चाय बेचने बाले की सोच, पकौडें बेचने से ऊपर नही उठ सकती,

**इंसान की हैसियत बदल जाती है,
पर समझ और औकात नहीं..

Friday, May 25, 2018

स्त्री की चाहत

एक विद्वान को फांसी लगने वाली थी।

राजा ने कहा, आपकी जान बख्श दुंगा यदि सही उत्तर बता देगा तो
प्रशन : आखिर स्त्री चाहती क्या है?

विद्वान ने कहा, मोहलत मिले तो पता कर के बता सकता हूँ।

राजा ने एक साल की मोहलत दे दी और साथ में बताया कि अगर उतर नही मिला तो फांसी पर चढा दिये जाओगे,

विद्वान बहुत घूमा बहुत लोगों से मिला पर कहीं से भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।

आखिर में किसी ने कहा दूर एक जंगल में एक चुड़ैल रहती है वही बता सकती है।

चुड़ैल ने कहा कि मै इस शर्त पर बताउंगी  यदि तुम मुझसे शादी करो।

उसने सोचा, जान बचाने के लिए शादी की सहमति देदी।

शादी होने के बाद चुड़ैल ने कहा, चूंकि तुमने मेरी बात मान ली है, तो मैंने तुम्हें खुश करने के लिए फैसला किया है कि 12 घन्टे मै चुड़ैल और 12 घन्टे खूबसूरत परी बनके रहूंगी,
अब तुम ये बताओ कि दिन में चुड़ैल रहूँ या रात को।
उसने सोचा यदि वह दिन में चुड़ैल हुई तो दिन नहीं कटेगा, रात में हुई तो रात नहीं कटेगी।

अंत में उस विद्वान कैदी ने कहा, जब तुम्हारा दिल  करे परी बन जाना, जब दिल करे चुड़ैल बनना।

ये बात सुनकर चुड़ैल ने प्रसन्न हो के कहा, चूंकि तुमने मुझे अपनी मर्ज़ी की  करने की छूट देदी है, तो मै हमेशा ही परी बन के रहा करूँगी।

यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है।

स्त्री अपनी मर्जी का करना चाहती है। 

*यदि स्त्री को अपनी मर्ज़ी का करने देंगे तो*,

*वो परी बनी रहेगी वरना चुड़ैल*

Wednesday, May 23, 2018

भाग्य

एक सेठ जी थे
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी. 
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.  
जिससे सब धन समाप्त हो गया. 
 बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, 
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?
सेठ जी कहते कि 
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये... 

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये...
दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया.
उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया. 
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली...
सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा... 
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में.
इसलिये कहते हैं कि भाग्य से 
ज्यादा
और... 
समय
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो...
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।
सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।
जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा।
बहुत ही खूबसूरत लाईनें.
.किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..!
डरिये वक़्त की मार से,बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..!
अकल कितनी भी तेज ह़ो,नसीब के बिना नही जीत सकती..!
बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,कभी बादशाह नही बन सका...!!
""ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!
इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!
रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है!!

Tuesday, May 22, 2018

सही प्यार

पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा....

छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया...

अब फाइनल इंटरव्यू
कंपनी के डायरेक्टर को लेना था...

और डायरेक्टर को ही तय
करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं...

डायरेक्टर ने छात्र का सीवी (curricular vitae)  देखा और पाया  कि पढ़ाई के साथ- साथ यह  छात्र ईसी (extra curricular activities)  में भी हमेशा अव्वल रहा...

डायरेक्टर- "क्या तुम्हें  पढ़ाई के दौरान
कभी छात्रवृत्ति (scholarship)  मिली...?"

छात्र- "जी नहीं..."

डायरेक्टर- "इसका मतलब स्कूल-कॉलेज  की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."

छात्र- "जी हाँ , श्रीमान ।"

डायरेक्टर- "तुम्हारे पिताजी  क्या काम  करते  है?"

छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं..."

यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ तो दिखाना..."

छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...

डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी  कपड़े धोने में अपने  पिताजी की मदद की...?"

छात्र- "जी नहीं, मेरे  पिता हमेशा यही चाहते थे 
कि मैं पढ़ाई  करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें
पढ़ूं...

हां , एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी  से कपड़े धोते हैं..."

डायरेक्टर- "क्या मैं तुम्हें  एक काम कह सकता हूं...?"

छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."

डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना...
फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."

छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया...
उसे लगा कि अब नौकरी  मिलना तो पक्का है,

तभी तो  डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है...

छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा...

पिता को थोड़ी हैरानी हुई...
लेकिन फिर भी उसने बेटे
की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके
हाथों में दे दिए...

छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया। कुछ देर में ही हाथ धोने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे...

पिता के हाथ रेगमाल (emery paper) की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे...

यहां तक कि जब भी वह  कटे के निशानों पर  पानी डालता, चुभन का अहसास
पिता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था...।

छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये
वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके
लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे...

पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक
कामयाबी का...

पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने  उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले...

उसके पिता रोकते ही रह गए , लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया...

उस रात बाप- बेटे ने काफ़ी देर तक बातें कीं ...

अगली सुबह छात्र फिर नौकरी  के लिए कंपनी के  डायरेक्टर के ऑफिस में था...

डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं...

डायरेक्टर- "हूं , तो फिर कैसा रहा कल घर पर ?
क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे....?"

छात्र- " जी हाँ , श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...

नंबर एक... मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है...
मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था...

नंबर दो... पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है...

नंबर तीन.. . मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार
इतनी शिद्दत के साथ महसूस की..."

डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं...

मैं यह नौकरी केवल उसे  देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे,
ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे...

ऐसा शख्स जिसने
सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो...

मुबारक हो, तुम इस नौकरी  के पूरे हक़दार हो..."

आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें,
बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें...

लेकिन साथ ही  अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है ?

उन्हें  भी अपने हाथों से ये  काम करने दें...

खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें...

ऐसा इसलिए
नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते,
बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं...

आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर
क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं...

सबसे अहम हैं आप के बच्चे  किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें...

एक दूसरे का हाथ
बंटाते हुए काम करने का जज्ब़ा अपने अंदर 
लाएं...

यही है सबसे बड़ी सीख..............

 उक्त कहानी यदि पसंद आई हो तो अपने परिवार में सुनाएँ और अपने बच्चों को सर्वोच्च शिक्षा प्रदान कराये

आँखे बन्द करके जो प्रेम करे वो 'प्रेमिका' है।
आँखे खोल के जो प्रेम करे वो 'दोस्त' है।
आँखे दिखाके जो प्रेम करे वो 'पत्नी' है।
अपनी आँखे बंद होने तक जो प्रेम करे वो 'माँ' है।
परन्तु आँखों में प्रेम न जताते हुये भी जो प्रेम करे वो 'पिता' है।
 दिल से पढ़ो और ग़ौर करो