Sunday, September 25, 2016

नि:स्वार्थ भाव

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दो लड़के पढ़ते थे। एक समय उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई। अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने महान पियानो वादक इगनैसी पैडरेस्की को बुलाने की सोची। पैडरेस्की के मैनेजर ने 2000 डॉलर की गारंटी मांगी। उन्होंने गारंटी के लिए 1600 डॉलर जमा कर लिए और 400 डॉलर बाद में चुकाने का करारनामा दे दिया। लेकिन वे शेष राशि इकट्ठा नहीं कर पाए।

पैडरेस्की को यह पता चला तो उन्होंने करारनामा फाड़ा और 1600 डॉलर लौटाते हुए कहा-'मुझे पढ़ाई के प्रति लगनशील बच्चों से कुछ नहीं चाहिए। इसमें से अपने खर्चे के लायक डॉलर निकाल लो और बची रकम में से 10 प्रतिशत अपने मेहनताने के तौर पर रख लो। बाकी रकम मैं रख लूंगा।' दोनों लड़के पैडरेस्की की महानता के आगे नतमस्तक हो गए।

समय गुजरता गया। पहला विश्वयुद्ध हुआ और समाप्त हो गया। पैडरेस्की अब पोलैंड के प्रधानमंत्री थे और अपने देश के हजारों भूख से तड़पते लोगों के लिए भोजन जुटाने का संघर्ष कर रहे थे। उनकी मदद केवल यू.एस फूड एंड रिलीफ ब्यूरो का अधिकारी हर्बर्ट हूवर कर सकता था। हूवर ने बिना देर किए हजारों टन अनाज वहां भिजवा दिया। पैडरेस्की हर्बर्ट हूवर को धन्यवाद देने के लिए पेरिस पहुंचे।

उन्हें देखकर हूवर बोला,'सर, धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं है। कॉलेज में आपने मेरी पढ़ाई जारी रखने में मदद की थी। यदि उस समय मेरी मदद न होती तो आज मैं इस पद पर नहीं होता।' यह सुनकर पैडरेस्की की आंखें नम हो गईं। उन्हें दो विद्यार्थियों की पुरानी बात याद आ गई और वह बोले,'किसी ने सच ही कहा है कि नि:स्वार्थ भाव से की गई मदद का मूल्य कई गुना होकर लौटता है।'

Saturday, September 24, 2016

तकलीफ का स्वाद

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था । उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था ।
कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था । वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था ।
मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी । वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा । परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था । ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था । पर, कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था ।
नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया । वह बादशाह के पास गया और बोला - "सरकार ! अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ ।" बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी । दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया । कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा । उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे । कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया ।
वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया । नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ । बादशाह ने दार्शनिक से पूछा - "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था, अब देखो कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है 
दार्शनिक बोला -
"खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है । इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी ।"
*भारत में रहकर भारत को गाली देने वालों के लिए*.

Friday, September 23, 2016

इच्छापूर्ति वृक्ष

एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था उसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी यह बात बहुत कम लोग जानते थे.. क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था एक बार संयोग से एक थका हुआ इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी
उसने आस पास देखकर कहा ' काश कुछ खाने को मिल जाए ! तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई उस इंसान ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..  काश कुछ पीने को मिल जाए.. तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के शरबत आ गए शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा ' कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ
हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा ' न ही सुना.. जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा  ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया. इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे ' वह आपको अवश्य मिलेगी अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं.. क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं इंसान ज्यादातर समय सोचता है..  कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ और वह बीमार हो जाता हैं.. इंसान सोचता है ' कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए? और घाटा हो जाता हैं.. इंसान सोचता है ' मेरी किस्मत ही खराब है ' और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं . इंसान सोचता है ' कहीं मेरा बाँस मुझे नौकरी से न निकाल दे.. और बाँस उसे नौकरी से निकाल देता है इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए
 अगर गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे. विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू करने का रहस्य है
*आपके विचारों से ही आपका जीवन या तो.. स्वर्ग बनता है या नरक.. उनकी बदौलत ही आपका जीवन.. 
सुखमय या दुखमय बनता है..
विचार जादूगर की तरह होते है '
जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..

Thursday, September 22, 2016

हमारे ज़माने में मोबाइल

चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में मोबाइल नहीं थे..
पत्नी : पर ठीक पाँच बजकर पचपन मिनट पर मैं पानी का ग्लास लेकर दरवाज़े पे आती और आप आ पहुँचते..
पति : हाँ मैंने तीस साल नौकरी की पर आज तक मैं ये नहीं समझ पाया कि मैं आता इसलिए तुम पानी लाती थी या तुम पानी लेकर आती थी इसलिये मैं आता था.. पत्नी : हाँ.. और याद है.. तुम्हारे रिटायर होने से पहले जब तुम्हें डायबीटीज़ नहीं थी और मैं तुम्हारी मनपसन्द खीर बनाती तब तुम कहते कि आज दोपहर में ही ख़याल आया कि खीर खाने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए.. पति : हाँ.. सच में.. ऑफ़िस से निकलते वक़्त जो भी सोचता, घर पर आकर देखता कि तुमने वही बनाया है.. पत्नी : और तुम्हें याद है जब पहली डिलीवरी के वक़्त मैं मैके गई थी और जब दर्द शुरु हुआ मुझे लगा काश.. तुम मेरे पास होते.. और घंटे भर में तो जैसे कोई ख़्वाब हो, तुम मेरे पास थे.. पति : हाँ.. उस दिन यूँ ही ख़याल आया कि ज़रा देख लूँ तुम्हें !! पत्नी : और जब तुम मेरी आँखों में आँखें डाल कर कविता की दो लाइनें बोलते.. पति : हाँ और तुम शर्मा के पलकें झुका देती और मैं उसे कविता की 'लाइक' समझता !! पत्नी : और हाँ जब दोपहर को चाय बनाते वक़्त मैं थोड़ा जल गई थी और उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब अपनी ज़ेब से निकाल कर बोले, इसे अलमारी में रख दो.. पति : हाँ.. पिछले दिन ही मैंने देखा था कि ट्यूब ख़त्म हो गई है,पता नहीं कब ज़रूरत पड़ जाए, यही सोच कर मैं ट्यूब ले आया था !! पत्नी : तुम कहते आज ऑफ़िस के बाद तुम वहीं आ जाना सिनेमा देखेंगे और खाना भी बाहर खा लेंगे..पति : और जब तुम आती तो जो मैंने सोच रखा हो तुम वही साड़ी पहन कर आती..फिर नज़दीक जा कर उसका हाथ थाम कर कहा : हाँ हमारे ज़माने में मोबाइल नहीं थे..पर.."हम दोनों थे !!" पत्नी : आज बेटा और उसकी बहू साथ तो होते हैं पर  बातें नहीं व्हाट्सएप होता है.. लगाव नहीं टैग होता है केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है.. लव नहीं लाइक होता है.. मीठी नोकझोंक नहीं अनफ़्रेन्ड होता है.. उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा, टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए.. पति : छोड़ो ये सब बातें.. हम अब वायब्रंट मोड पे हैं हमारी बैटरी भी 1 लाइन पे है.. अरे..!! कहाँ चली..? पत्नी : चाय बनाने.. पति : अरे मैं कहने ही वाला था कि चाय बना दो ना.. पत्नी : पता है.. मैं अभी भी कवरेज में हूँ और मैसेज भी आते हैं.. दोनों हँस पड़े.. पति : हाँ हमारे ज़माने में मोबाइल नहीं थे..!!

Tuesday, September 20, 2016

जैसी भावना वैसी मनोकामना

एक बार भगवान बुद्ध एक शहर में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने प्रवचन के बाद आखिर में कहा, 'जागो! समय हाथ से निकला जा रहा है।' इस तरह उस दिन की प्रवचन सभा समाप्त हो गई।
सभा के बाद तथागत ने अपने शिष्य आनंद से कहा, थोड़ी दूर घूम कर आते हैं। आनंद, भगवान बुद्ध के साथ चल दिए। अभी वे विहार के मुख्य द्वार तक ही पहुंचे ही थे कि एक किनारे रुक कर खड़े हो गये।
प्रवचन सुनने आये लोग एबाहर निकल रहे थे, इसलिए भीड़ का माहौल था, लेकिन उसमें से निकल कर एक स्त्री तथागत से मिलने आई। उसने कहा, 'तथागत मैं नर्तकी हूं'। आज नगर के श्रेष्ठी के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मैं उसके बारे में भूल चुकी थी। आपने कहा, ' जागो समय निकला जा रहा है तो मुझे तुरंत इस बात की याद आई।'
उसके बाद एक डाकू भगवान बुद्ध से मिला उसने कहा, 'तथागत मैं आपसे कोई बात छिपाऊंगा मै भूल गया था कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था कि आज उपदेश सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गई।'
इस तरह एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया वृद्ध ने कहा, 'तथागत! जिन्दगी भर दुनिया भर की चीजों के पीछे भागता रहा। अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक आता जा रहा है, तब मुझे लगता है कि सारी जिन्दगी यूं ही बेकार हो गई।
आपकी बातों से आज मेरी आंखें खुल गईं। आज से मैं अपने सारे मोह छोड़कर निर्वाण के लिए कोशिश करूंगा। जब सब लोग चले गए तो भगवान बुद्ध ने कहा, 'आनंद! प्रवचन मैंने एक ही दिया, लेकिन उसका हर किसी ने अलग अलग मतलब निकाला

Saturday, September 17, 2016

प्रेम ही सफल जीवन का राज

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”“पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में  प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं। 
इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार पढ़ें ........
अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें,  प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें क्यों कि प्रेम ही सफल जीवन का राज है। 

Thursday, September 15, 2016

एक ब्राम्हण

एक ब्राम्हण था, कृष्ण के मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था। उसकी पत्नी इस बात से  हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात  में वह पहले भगवान को लाता। भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज  पहले भगवान को समर्पित करता। एक दिन घर में लड्डू बने। ब्राम्हण ने लड्डू लिए और भोग लगाने चल दिया। पत्नी इससे नाराज हो गई,  कहने लगी कोई पत्थर की  मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं  जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ  दौड़ पड़ते हो।  अबकी बार बिना खिलाए न  लौटना, देखती हूं कैसे भगवान खाने आते हैं। बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के  ताने सुनकर ठान ली कि बिना  भगवान को खिलाए आज मंदिर  से लौटना नहीं है। मंदिर में जाकर धूनि लगा ली। भगवान के सामने लड्डू रखकर विनती करने लगा। एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता, न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा। आसपास देखने वालों की भीड़ लग गई।  सभी कौतुकवश देखने  लगे कि आखिर होना क्या है। मक्खियां भिनभिनाने लगी  ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।  मीठे की गंध से चीटियां  भी लाईन लगाकर चली आईं।  ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया,  फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा  कुत्ते भी ललचाकर आने लगे।  ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।  लड्डू पड़े देख मंदिर के  बाहर बैठे भिखारी भी आए गए।  एक तो चला सीधे  लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने  जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।  दिन ढल गया, शाम हो गई।  न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।  शाम से रात हो गई। लोगों ने सोचा ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं,  भगवान तो आने से रहे।  धीरे-धीरे सब घर चले गए।  ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया। लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।  भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी तो दिनभर से ही इस घड़ी क इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े।  उदास ब्राम्हण भगवान को कोसता हुआ घर लौटने लगा।  इतने सालों की सेवा बेकार चली गई।कोई फल नहीं मिला।  ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया। रात को सपने में भगवान आए।  बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने।  बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह  ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा होता। कितने रूप धरने पड़े  तेरे लड्डू खाने के लिए। मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी।  पर तुने हाथ नहीं धरने दिया।  दिनभर इंतजार करना पड़ा। आखिर में लड्डू खाए लेकिन जमीन से उठाकर खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी।  अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना।  भगवान चले गए। ब्राम्हण की नींद खुल गई।  उसे एहसास हो गया।  भगवान तो आए थे खाने  लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।  बस, ऐसे ही हम भी भगवान के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं।
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****मुझमें राम ,तुझमें राम
सबमें राम समाया,
सबसे करलो प्रेम जगतमें ,
कोई नहीं पराया....