उत्तर प्रदेश के ढोलपुर ज़िले का छोटा-सा गाँव था नरसोली। मिट्टी के घर, कच्ची गलियाँ औरचारों ओर सरसों के खेत। उसी गाँव में रहता था जयन्त सिंह—एक साधारण खेत-मज़दूर का बेटा, लेकिन असाधारण सपनों वाला। बचपन से ही वह पुलिस कांस्टेबल बनकर अपने गाँव औरपरिवार का नाम रोशन करना चाहता था।
पहली उड़ान—पहला गिरना
बीस वर्ष की उम्र में उसने पहली बार कांस्टेबल भर्ती परीक्षा दी। लिखित परीक्षा तो निकाल ली, पर फिजिकल टेस्ट के 1.6 किलोमीटर की दौड़ में वह अंतिम 200 मीटर पर हाँफ गया और गिरपड़ा। डॉक्टर ने कहा, “तुम्हारी साँस की दिक्कत है, आराम करो।” पर उसके कानों में बस पिता कीआवाज़ गूँजती रही—
“हार मत मानो, क्योंकि बड़ी जीत अक्सर आख़िरी कोशिश के बाद ही मिलती है।”
दूसरी कोशिश—फिर झटका
एक साल बाद जयन्त ने दवाई-इंजेक्शन छोड़ योग और प्राणायाम शुरू किए। दौड़ पास कर ली, पर लिखित परीक्षा में चार नंबर से रह गया। रिज़ल्ट देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गए। गाँववाले हँसे—“किस्मत ही ख़राब है, छोड़ दे पढ़ाई-लिखाई, खेत में मज़दूरी कर!”
मगर माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “बेटा, दो बार हारे हो तो क्या? आख़िरी बाज़ी अभीबाकी है।”
तीसरी ठोकर—सब कुछ खोने का डर
तीसरे साल जयन्त ने दिन-रात पढ़ाई की। दौड़, पुश-अप, करंट अफ़ेयर्स—सब पर मेहनत। मगरइंटरव्यू में हकलाहट के कारण अफ़सरों ने कम नंबर दे दिए। अब केवल एक मौका बचा था; उम्र-सीमा के हिसाब से अगली भर्ती उसका अंतिम प्रयास होती। यह सोचकर उसकी हिम्मतडगमगा गई।
मोड़—असली तैयारी
उस रात खेत की मेड़ पर बैठे जयन्त ने तारों की तरफ़ देखा। मन में सवाल था—“क्या मैं सच मेंहार जाऊँगा?” तभी उसे पिता की पुरानी साइकिल की घंटी सुनाई दी। बूढ़े पिता पास आए, तपती हथेली उसके सिर पर रखी और बोले, “बेटा, जब खेत का हल आख़िरी बार मिट्टी चीरता है, तभी बीज बोया जाता है और फसल लहलहाती है। तेरा अगला प्रयास वही आख़िरी हल है।”
जयन्त ने निर्णय लिया—अब अपने डर को हराना है। वह रोज़ सूर्योदय से पहले उठकर दौड़ता, फिर गाँव से 12 किलोमीटर दूर शहर के सरकारी पुस्तकालय में पढ़ता। शाम को एक किराने कीदुकान पर हिसाब-किताब लिखता, रात में स्टाम्प-पेपर पर टाइपिंग का काम करता। जो पगारमिलती, उससे अंग्रेज़ी बोलने की क्लास और स्पीच-थैरेपी की फीस देता।
परीक्षा-दिवस—सहनशक्ति की परख
अप्रैल 2025 की भरी दोपहरी में फिजिकल टेस्ट हुआ। पारा 40 डिग्री पार, मगर जयन्त ने तयकिया था—आज मैं गिरूँगा नहीं। उसने दौड़ पूरी की, समय टेबल से 12 सैकंड कम। लिखितपरीक्षा में उसे हर विषय में उत्तीर्ण अंक मिले। बारी थी इंटरव्यू की, जहाँ पहले वह अटकता था।इस बार उसने साँस गहरी ली, धीमी मगर दृढ़ आवाज़ में बोला, “सर, मैं जानता हूँ बड़ी जीतआख़िरी कोशिश के बाद मिलती है; यह मेरी आख़िरी कोशिश है, पर हिम्मत मेरी पहली साथी।” पैनल मुस्कुराया।
परिणाम-दिवस—सपने की उड़ान
दो महीने बाद रिज़ल्ट लगा। मेरिट-लिस्ट में 17वाँ नाम—जयन्त सिंह, नरसोली। आँसू फिरनिकले, मगर इस बार ख़ुशी के थे। उसने सबसे पहले माँ-पिता के पैर छुए, फिर दौड़कर गाँव केस्कूल पहुँचा, जहाँ उसने बोर्ड पर चॉक से लिखा:
> “हार मत मानो, क्योंकि बड़ी जीत अक्सर आख़िरी कोशिश के बाद ही मिलती है।”
लौटकर देखा—रौशन रास्ते
अब जयन्त प्रयागराज पुलिस लाइन में ट्रेनिंग ले रहा है, पर छुट्टी मिलते ही गाँव आकर बच्चों कोदौड़ाना, उन्हें पढ़ाना उसका शौक़ है। वह हर छात्र को वही कहानी सुनाता—तीन बार गिरा, आख़िरी बार जीता, क्योंकि उसने हार नहीं मानी।
निष्कर्ष / सीख
यह कथा हमें याद दिलाती है कि असफलताएँ राह का पत्थर हैं, दीवार नहीं। जब हम थककररुकने को तैयार हों, तभी हमें अपनी आख़िरी ताक़त जुटानी चाहिए, क्योंकि जीत अक्सर उसी मोड़पर हमारा इंतज़ार करती है। आख़िरी कोशिश दरअसल हमारी सबसे सशक्त कोशिश होती है—जो स्वयं-विश्वास, परिश्रम और धैर्य का त्रिवेणी संगम बनकर मंज़िल तक पहुँचा देती है।
संदेश: जीवन के किसी भी मोड़ पर, अगर दिल में उम्मीद ज़िंदा है और हाथ कर्म से जुड़े हैं, तो हारकभी अंतिम सच नहीं होती। आख़िरी कोशिश तक डटे रहिए—वहीं आपकी बड़ी जीत मुस्कुरा रहीहोगी।