Saturday, October 31, 2015

श्रेष्ठ मनुष्य की पहचान

एक दिन राजा मलिक ने सोचा कि उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली है। प्रजा और राज दरबारी उसकी प्रशंसा करते हैं। क्या वह सचमुच श्रेष्ठ है, इसका पता लगाना चाहिए। इस संदर्भ में राजा ने विद्वानों, मंत्रियों और सेनापति से पूछा। उन्होंने कहा, 'महाराज, आपका चरित्र तो चंद्रमा के समान धवल है।' राजा ने सोचा, जब तक मेरी प्रशंसा प्रजा नहीं करती, मैं प्रशंसनीय नहीं हो सकता। उन्होंने प्रजा से पूछा। कइयों ने कहा,'आप में कोई त्रुटि नहीं है।' राजा ने सोचा- शायद भय के कारण प्रजा ने प्रशंसा की हो। अतः सच जानने हेतु मुझे बाहर निकलना चाहिए।
राजा मलिक रथ पर बैठकर बाहर निकल गए। वह गांव-गांव जाकर पूछने लगे। सभी जगह से यही उत्तर मिला कि राजा में कोई अवगुण नहीं है। राजा का रथ आगे बढ़ रहा था, उधर दूसरी ओर से वाराणसी के राजा ब्रम्हादत्त का रथ आ रहा था। राजा मलिक ने ब्रम्हादत्त के सारथी से कहा, 'अपने रथ को सामने से हटा लो।' सारथी ने उत्तर दिया-'मेरे रथ पर सभी गुणों के भंडार काशी के राजा ब्रम्हादत्त बैठे हुए हैं। मेरे रथ को पहले निकल जाने दीजिए।' राजा मलिक बोले, 'सभी गुणों का भंडार तो मैं हूं। तुम अपने रथ को बगल में कर लो।' राजा ब्रम्हादत्त अभी तक मौन थे।
राजा मलिक की बात सुनकर उन्होंने पूछा, 'क्या मैं जान सकता हूं कि आप अपने को श्रेष्ठ क्यों समझते हैं?' राजा मलिक ने कहा, 'क्योंकि मैं बुराई करने वालों के साथ बुराई और भलाई करने वालों के साथ भलाई करता हूं।' राजा ब्रम्हादत्त बोले, 'श्रेष्ठ मनुष्य वह है जो बुराई करने वालों के साथ भी भलाई करे।' यह सुन राजा मलिक के ज्ञान चक्षु खुल गए। उन्होंने ब्रह्मदत्त को मार्ग दे दिया

Friday, October 30, 2015

हमारी जीभ की कीमत

एक राहगीर थककर कहीं टिकने का स्थान खोजने लगा। एक महिला ने उसे अपने बाड़े में ठहरने का स्थान बता दिया। बूढ़ा वहीं चैन से सो गया। सुबह उठने पर उसने आगे चलने से पूर्व सोचा कि यह अच्छी जगह है, यहीं पर खिचड़ी पका ली जाए और फिर उसे खाकर आगे का सफर किया जाए। बूढ़े ने वहीं पड़ी सूखी लकड़ियां इकठ्ठा कीं और ईंटों का चूल्हा बनाकर खिचड़ी पकाने लगा। बटलोई उसने उसी महिला से मांग ली।

बूढ़े राहगीर ने महिला का ध्यान बंटाते हुए कहा, 'एक बात कहूं? बाड़े का दरवाजा कम चौड़ा है। अगर सामने वाली मोटी भैंस मर जाए तो फिर उसे उठाकर बाहर कैसे ले जाया जाएगा?' महिला को इस व्यर्थ की कड़वी बात का बुरा तो लगा, पर वह यह सोचकर चुप रह गई कि बुजुर्ग है और फिर कुछ देर बाद जाने ही वाला है, इसके मुंह क्यों लगा जाए। उधर चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी आधी ही पक पाई थी कि वह महिला किसी काम से बाड़े से होकर गुजरी। इस बार बूढ़ा उससे बोला, 'तुम्हारे हाथों का चूड़ा बहुत कीमती लगता है। यदि तुम विधवा हो गईं तो इसे तोड़ना पड़ेगा। ऐसे तो बहुत नुकसान हो जाएगा?'

इस बार महिला से सहा न गया। वह भागती हुई आई और उसने बुड्ढे के गमछे में अधपकी खिचड़ी उलट दी। चूल्हे की आग पर पानी डाल दिया। अपनी बटलोई छीन ली और बुड्ढे को धक्के देकर निकाल दिया। तब बुड्ढे को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने माफी मांगी और आगे बढ़ गया। उसके गमछे से अधपकी खिचड़ी का पानी टपकता रहा और सारे कपड़े उससे खराब होते रहे। रास्ते में लोगों ने पूछा,'यह सब क्या है?' बूढ़े ने कहा, 'यह मेरी जीभ का रस टपका है, जिसने तिरस्कार कराया और अब हंसी उड़वा रहा है।'

समय अनमोल है:

कल्पना कीजिए कि आपके पास एक बैंक अकाउंट है (Bank Account) और हर रोज सुबह उस बैंक अकाउंट में 86,400 रूपये जमा हो जाते है, जिसे आप उपयोग में ले सकते है| आप रूपयों को बैंक अकाउंट (Bank Account) से निकाल कर अपनी तिजोरी में जमा करके नहीं रख सकते| इस बैंक अकाउंट में कैरी फोरवर्ड (Carry Forward) का सिस्टम नहीं है यानि कि जिन रूपयों को आप उपयोग में नहीं ले पाते, वह रूपये शाम को वापस ले लिए जाते है और आपका अब उन पर कोई अधिकार नहीं रहता|
यह बैंक अकाउंट कभी भी बंद हो सकता है| हो सकता है कि कल ही यह बैंक अकाउंट (Bank Account) बंद हो जाए या फिर 2 वर्ष बाद या फिर 50 वर्ष बाद| लेकिन इतना तो निश्चित है कि यह बैंक अकाउंट एक दिन जरूर बंद होगा|
 ऐसी परिस्थिति में आप क्या करेंगे????
जाहिर है आप पूरे के पूरे 86,400 रूपयों का उपयोग कर लेंगे और इन 86,400 रूपयों का उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करेंगे क्योंकि यह बैंक अकाउंट (Bank Account) कभी भी बंद हो सकता है|
क्या आप जानते है कि ऐसा ही एक बैंक अकाउंट हमारे पास होता है जिसका नाम है “जिंदगी (Life)” और इस “जीवन” रुपी बैंक अकाउंट में प्रतिदिन 86,400 सेकंड्स (Seconds) जमा होते है जिनका उपयोग कैसे करना है यह हम पर निर्भर करता है| हम चाहें तो इन 86,400 सेकंड्स का उपयोग बेहतरीन कार्यों के लिए कर सकते है और अगर ऐसा नहीं करते तो यह व्यर्थ हो जाएंगे| यह जीवन रुपी बैंक अकाउंट कभी भी बंद हो सकता है इसलिए देर मत कीजिए आपके जीवन का हर पल अमूल्य है इसलिए समय का सदुपयोग कीजिए|
अगर किसी को भी ऐसा बैंक अकाउंट दे दिया जाए जिसमें रोज 86,400 रूपये जमा हो तो वह व्यक्ति बहुत खुश हो जाएगा और एक रूपया भी व्यर्थ नहीं गवाएंगा | क्या हमारे जीवन के एक सेकंड की कीमत एक रूपये से भी कम है| हम कैसे अपने जीवन की सबसे अनमोल सम्पति को ऐसे ही व्यर्थ गँवा सकते है|
खोया हुआ धन फिर कमाया जा सकता  है, लेकिन खोया हुआ समय वापस नहीं आता| उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है। हर एक दिन को व्यर्थ गंवाना आत्महत्या करने के समान है| बिना समय प्रबंधन के आज तक कोई भी सफल नहीं हुआ|
कबीर दास जी का यह छोटा सा दोहा, जीवन का सबसे बड़ा मंत्र बता देता है-

Wednesday, October 28, 2015

एक गिलास दूध

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजाखोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उस...ने पानी का एक गिलास पानी माँगा.लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक........बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया." कितने पैसे दूं?" लड़के ने पूछा." पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव मेंकहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."" तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देताहूँ."जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकीथी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था.
 
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहरके बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वहएकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा..उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बचगयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान लेलेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुकाहै." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालोंपर आंसूटपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपकाबहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है.


Tuesday, October 27, 2015

दुनिया एक जंगल है

 बहुत पुरानी बात है। एक समय जंगल से एक यात्री अपनी मंजिल की ओर जा रहा था। अचानक एक जगह उसे तीन डाकुओं ने घेर लिया और उसका सारा धन लूट लिया। उसे लूट लेने के बाद एक डाकू अपने साथियों से बोला,'अब इस आदमी को जिंदा छोड़ देने से क्या लाभ?' यह कह कर उसने म्यान से तलवार खींच ली। यह देख कर दूसरे डाकू ने उसे रोका और कहा,'जब हम इसका सारा धन ले ही चुके हैं तो इसे मारने से क्या लाभ? इसे रस्सी से बांधकर यहीं छोड़ जाते हैं। अगर भाग्य ने साथ दिया तो यह बच जाएगा, नहीं तो यहीं किसी जंगली जानवर का भोज बन जाएगा।'
तय रणनीति के तहत डाकुओं ने ऐसा ही किया। कुछ देर बाद तीसरा डाकू लौटकर आया, उसने उस यात्री की रस्सी खोल उसे मुक्त कर दिया और बोला,'भाई! मैं तुम्हें सही रास्ते तक छोड़ देता हूं।' तीसरे डाकू की कृतज्ञता देख यात्री ने कहा,'आप मेरे यहां आतिथ्य ग्रहण करो।' डाकू ने कहा, मैं किसी और दिन तुम्हें दूसरे वेश में मिलूंगा। यात्री अपने घर पहुंचा तो उसके चेहरे पर गम की वजह मुस्कान आ गई। क्योंकि उसका लुटा हुआ सामान पहले से यहां मौजूद था।
साथ में एक पत्र रखा हुआ था उसमें लिखा था- दुनिया एक जंगल है। उसमें तीन डाकू रहते हैं। वे हैं सत,रज और तम। तम मनुष्य को समाप्त करने का प्रयत्न करता है। रज उसे संसार में बांधता है। परंतु सत उसे तम और रज के चंगुल से छुड़ाकर उस मार्ग पर छोड़ता है, जहां कोई भय नहीं। यह मार्ग हर किसी को ईश्वर के चरणों में पहुंचा देता है।

Thursday, October 22, 2015

सबसे बड़ा मूर्ख



एक साधु रोज नगरवासियों के बीच जाकर भिक्षा मांगता और जो कुछ मिलता उसी से गुजारा चलाता। एक रोज उसके मन में तीर्थयात्रा का विचार आया। लेकिन वह सोच में पड़ गया कि रास्ते के खर्च के लिए धन का इंतजाम कैसे हो? उसी नगर में एक कंजूस सेठ रहता था। साधु ने उसके पास जाकर कुछ सहयोग की विनती की। सेठ बोला, 'साधु महाराज, अभी धंधे में मंदी चल रही है और फिर मुझे कारोबार में कुछ दिन पूर्व घाटा भी हुआ है। अभी तो आप मुझे माफ करें।'

साधु समझ गया कि सेठ झूठी कहानी गढ़ रहा है। वह वहां से लौटने लगा। तभी सेठ बोला, 'रुकिए, आप मेरे यहां आए हैं तो मैं आपको एक चीज देता हूं।' उसने एक दर्पण निकाला और साधु से कहा, 'आपको अपने प्रवास के दौरान जो सबसे बड़ा मूर्ख मिले, उसे यह दर्पण दे दीजिए।' साधु सेठ को आशीष देते हुए वहां से निकल गया। कई दिनों के बाद जब साधु तीर्थयात्रा से लौटकर आया तो उसे पता चला कि सेठ बेहद बीमार और मरणासन्न अवस्था में है। साधु उससे मिलने पहुंचा।

अपनी कंजूस वृत्ति के कारण सेठ न तो अपना इलाज ढंग से करा पाया था और न धन को किसी सत्कर्म में लगा पाया। अब सेठ मरणासन्न स्थिति में था और उसके कुटुंबीजन उसका पैसा और सामान ले जा रहे थे। साधु ने यह देखकर अपने झोले में से दर्पण निकाला और सेठ को लौटाते हुए कहा, 'मुझे आपसे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं मिला जिसने कमाया तो बहुत, लेकिन जिसके मन में धन का सदुपयोग करने का विचार तक नहीं आया। यदि अपने धन का सदुपयोग किया होता तो आपको अंतिम समय में इस तरह कष्ट नहीं भोगना पड़ता।'

Tuesday, October 20, 2015

सच्चा हीरा

एक राजा का दरबार लगा हुआ था। सर्दियों के दिन थे, इसीलिये राजा का दरबार खुले में बैठा था। पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थीl 
​​

महाराज ने सिंहासन के सामने एक मेज रखवा रखी थी। पंडित लोग दीवान आदि सभी दरबार में बैठे थे ।

राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे। 

उसी समय एक व्यक्ति आया और राजा से दरबार में मिलने की आज्ञां मांगी। प्रवेश मिल गया तो उसने कहा, मेरे पास दो वस्तुएँ हैं, बिलकुल एक जैसी लेकिन एक नकली है और एक असली, मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और उन्हें परखने का आग्रह करता हूँ, लेकिन कोई परख नही पाता, सब हार जाते है और मैं विजेता बनकर घूम रहा हूँ । 

अब आपके नगर मे आया हूँ।

राजा ने उसे दोनों वस्तुओं को पेश करने का आदेश दिया।  

तो उसने दोनों वस्तुयें टेबल पर रख दीं।  बिल्कुल समान आकार समान रुप रंग, समान प्रकाश, सब कुछ नख शिख समान। राजा ने कहा, ये दोनों वस्तुएँ एक हैं, तो उस व्यक्ति ने कहा, हाँ दिखाई तो एक सी देती है लेकिन हैं भिन्न। इनमें से एक है बहुत कीमती हीरा और एक है काँच का टुकडा, लेकिन रूप रंग सब एक है। कोई आज तक परख नही पाया कि कौन सा हीरा है और कौन सा काँच? कोई परख कर बताये कि ये हीरा है या काँच। अगर परख खरी निकली तो मैं हार जाऊँगा और यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी में जमा करवा दूँगा, यदि कोई न पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको मुझे देनी होगी। इसी प्रकार मैं कई राज्यों से जीतता आया हूँ। 

राजा ने कई बार उन दोनों वस्तुओं को गौर से देखकर परखने की कोशिश की और अंत में हार मानते हुए कहा- मैं तो नहीं परख सकूंगा।

दीवान बोले- हम भी हिम्मत नही कर सकते, क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है।

सब हारे, कोई हिम्मत नही जुटा पाया। हारने पर पैसे देने पडेंगे, इसका किसी को कोई मलाल नहीं था क्योंकि राजा के पास बहुत धन था लेकिन राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी, इसका सबको भय था।

कोई व्यक्ति पहचान नही पाया। आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुई। एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा। उसने कहा, मुझे महाराज के पास ले चलो, मैंने सब बाते सुनी हैं और यह भी सुना कि कोई परख नहीं पा रहा है। एक अवसर मुझे भी दो। एक आदमी के सहारे वह राजा के पास पहुचा उसने राजा से प्रार्थना की- मैं तो जनम से अंधा हूँ फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये जिससे मैं भी एक बार अपनी बुद्धि को परखूँ और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊँ और यदि सफल न भी हुआ तो वैसे भी आप तो हारे ही हैं। 

राजा को लगा कि इसे अवसर देने मे कोई हर्ज नहीं है और राजा ने उसे अनुमति दे दी। उस अंधे आदमी को दोनों वस्तुएं उसके हाथ में दी गयी और पूछा गया कि इनमे कौन सा हीरा है और कौन सा काँच? 

कहते हैं कि उस आदमी ने एक मिनट मे कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच। जो आदमी इतने राज्यों को जीतकर आया था वह नतमस्तक हो गया और बोला सही है, आपने पहचान लिया! आप धन्य हैं।

अपने वचन के मुताबिक यह हीरा मैं आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हूँ। सब बहुत खुश हो गये और जो आदमी आया था वह भी बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम कोई तो मिला परखने वाला। राजा और अन्य सभी लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही जिज्ञासा जताई कि, 'तुमने यह कैसे पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच?' 

उस अंधे ने कहा- सीधी सी बात है राजन, धूप में हम सब बैठे हैं, मैंने दोनो को छुआ। जो ठंडा रहा वह हीरा, जो गरम हो गया वह काँच।


यही बात हमारे जीवन में भी लागू होती है, जो व्यक्ति बात बात में अपना आप खो देता है, गरम हो जाता है और छोटी से छोटी समस्याओं में उलझ जाता है वह काँच जैसा है और जो विपरीत परिस्थितियों में भी सुदृढ़ रहता है और बुद्धि से काम लेता है वही सच्चा हीरा है।  

Sunday, October 18, 2015

कोयला और चंदन

हकीम लुकमान का पूरा जीवन जरूरतमंदों की सहायता के लिए समर्पित हुआ था। जब उनका अंतिम समय नजदीक आया तो उन्होंने अपने बेटे को पास बुलाया। बेटा पास आ गया तो उन्होंने उससे कहा, 'देखो बेटा, मैंने अपना सारा जीवन दुनिया को शिक्षा देने में गुजार दिया। अब अपने अंतिम समय में मैं तुम्हें कुछ जरूरी बातें बताना चाहता हूं। लेकिन इससे पहले जरा तुम एक कोयला और चंदन का एक टुकड़ा उठा कर ले लाओ।

बेटे को पहले तो यह बड़ा अटपटा लगा, लेकिन उसने सोचा कि अब पिता का हुक्म है तो यह सब लाना ही होगा। उसने रसोई घर से कोयले का एक टुकड़ा उठाया। संयोग से घर में चंदन की एक छोटी लकड़ी भी मिल गई। वह दोनों को लेकर अपने पिता के पास पहुंच गया। उसे आया देख लुकमान बोले, 'बेटा, अब इन दोनों चीजों को नीचे फेंक दो।' बेटे ने दोनों चीजें नीचे फेंक दीं और हाथ धोने जाने लगा तो लुकमान बोले, 'जरा ठहरो बेटा। मुझे अपने हाथ तो दिखाओ।'

बेटे ने हाथ दिखाए तो वह उसका कोयले वाला हाथ पकड़ कर बोले, 'देखा तुमने। कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया। लेकिन उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारे हाथ में कालिख लगी रह गई। गलत लोगों की संगति ऐसी ही होती है। उनके साथ रहने पर भी दुख होता है और उनके न रहने पर भी जीवन भर के लिए बदनामी साथ लग जाती है। दूसरी ओर सज्जनों का संग इस चंदन की लड़की की तरह है जो साथ रहते हैं तो दुनिया भर का ज्ञान मिलता है और उनका साथ छूटने पर भी उनके विचारों की महक जीवन भर बनी रहती है। इसलिए हमेशा अच्छे लोगों की संगति में ही रहना।

सदेव अच्छी चीज़ें दूसरो के साथ बांटनी चाहिए

एक बार की बात है, एक नदी किनारे एक पेड़ पर एक पक्षी रहता था जिसका नाम भरूनदा था। वह पक्षी अनोखा था क्योंकि उसके दो सिर मगर पेट एक ही था। एक दिन वह पक्षी झील के किनारे घूम रहा था की तभी उससे एक लाल रंग का फल मिला। वह फल देखने में बड़ा ही स्वादिस्ट लग रहा था। एक सिर ने बोला की “वाह! क्या फल है! लगता है की भगवान ने यह फल मेरे लिए भेजा है। में कितना भाग्यशाली हूँ।“ फिर वो सर उस फल को बड़ी प्रसन्नता से खाने लगा और खाते हुए उसकी प्रशंसा करने लगा।

यह सुन कर दूसरा सिर बोला “ओ प्यारे! मुझे भी यह फल चखने दो जिसकी तुम इतनी प्रशंसा कर रहे हो।“ इस बात पर पहला सिर हंसने लगा और बोला “जब हमारा पेट एक ही है तो कोई भी सिर यह फल खाये, यह फल तो उसी पेट में जाएगा ना। तो इस बात से कोई अंतर नहीं है की मैं फल खाऊ या फिर तुम और क्योंकि यह फल मुझे मिला है तो फल खाने का पहला अधिकार भी मेरा ही हुआ।“ इस बात को सुन कर दूसरे सिर को बहुत दुख हुआ और उसको पहले सिर का स्वार्थी होने पर गुस्सा भी आया।

फिर एक दिन दूसरे सिर हो एक पेड़ पर विषैले फल मिले। उसने वह फल ले लिए और पहले सिर से बोला “धोखेबाज! आज में विषैले फल खाऊँगा और फिर में अपने अपमान का तूझसे बदला लूँगा।“ इस पर पहला सिर बोला की कृपया वह विषैले फल ना खाये क्योंकि एक पेट होने हम दोनों की मार जाएंगे।“ इसपर दूसरा सिर बोला “चुप रहो! यह फल मुझे मिला है और इस फल को खाने का मेरा पूरा अधिकार है। इस पर पहला सिर रोने लगा मगर दूसरे सिर ने एक ना सुनी और वह विषैला फल खा लिया। इस की परिणाम सरूप दोनों सिरों को अपनी जान से हाथ धोने पड़ा।

Friday, October 16, 2015

राजा का प्रश्न

एक राजा का तीन पुत्र थे और वह अपने राज पाठ को अपने सबसे योग्य पुत्र दे कर अजनी सभी जिम्मेदरी मुक्त होना चहाता था इसी कारण अपने तीनों पुत्रों की एक परिक्षा के आधार योग्ता जानना चहाता था जिसके चलते उन्होने सर्व प्रथम अपने सबसे ब़डे पुत्र को अपने राज्य की सम्पूर्ण सीमाऔ का निरिक्षण करने भेजा जब वह सम्पूर्ण निरिक्षण के उपरान्त वापस आया तो उन्होने अपने दूसरे पुत्र को भेजा और जब वो सम्पूर्ण निरिक्षण के बाद वापस आया तो आखिर में अपने तीसरे पुत्र को भेजा और जब वो भी अपने राज्य वापस आया तब राजा ने अपने तीनों पुत्रों को अपने पास बुलाया और बारी बारी तीनो से उनके अनुभवो के बारे बताने को कहा सबसे पहले सबसे बडे पुत्र ने अपने अनुभव बताते हुऐ कहा सम्पर्ण राज्य में सुख शान्ति थी और खेतो में फसलें उगना शुरू हुई थी और बागो में पेडो पर पतझण आया हुआ था
राजा ने दूसरे पुत्र से कहा तुम बताऔ उसने बताया कि राज्य में सुख शान्ति थी खतों में फसले बडी बडी लहरा रही थी और बागों में पेडो पर फूल और फल आना शुरू हो गए थे
और  राजा ने अपने तीसरे पुत्र से कहा अब तुम बताऔ वह बोला राज्य में तो सुख शान्ति थी लेकिन खेतो में फसलें कट गयी थी और बागो में पेडो के फल भी पक कर टूट चुके थे
राजा ने तीनो की बातो को सुना और पूछा कि हम ने आप तीनो को एक ही स्थान पर भेजा था फिर आप तीनो के अनुभव अलग अलग कैसे हो गये कोन सच बोल रहा कोन सच इसका कोन करगा ये सुनते ही उनके दोनो बडे पुत्र जोर जोर से कहने लगे कि में सच बोल रहा हूँ बाकी सब झूट बोल रहे है जैसे ही राजा की नजर अपने तीसरे पुत्र पर गई तो उन्होने उससे पूछा तुम क्यों शान्त खडे हो तब वह बोला कि हम तीनो ही सही बोल रहे है ये सुन्नते ही दोनो बडे भाई शान्त हो गए तब राजा ने उससे कारण पूछा उसने जबाब देते बोला हम तीनो के निरिक्षण के जाते समय ऋतुऐ अलग अलग थी  और हमारी खेती पड पौधे ऋतुऔ के अनुसार लगाए जाते है
राजा अपने पुत्र के जबाब से अत्याधिक प्रसन्न हुआ और बोला तुम जैसा बुद्धिमान व्यक्ति ही मेरे राज्य का राजा बन सकता

Thursday, October 15, 2015

व्यापारी की समस्या

एक बार एक व्यापारी अपने व्यवसाय की आर्थिक समस्याऔ से ईतना अधिक परेशान था कि जिसके उपचार के

लिए  कुछ भी करने को तैयार था तभी उसके एक मित्र ने उसे  अपने घर आऐ बाबा को मिलने के लिए कहा और

बताया कि वो किसी भी व्यक्ति समस्या का शीघ्र ही समाधान कर देते है ये सब सुनते ही वह व्यापारी सारा काम

छोड अपने मित्र के घर चला गया और वहाँ बाबा से मिल कर अपनी समस्या के बारे में विस्तार से बताया उस

व्यापारी की सारी बातै सुन बाबा ने  उसे एक कहानी सुनाई

एक बार माता पारवति ने भगवान शिव से अत्याधिक गरीबी की स्थिति से गुजर रहे एक शिव भक्त की विपदाऔ

को समाप्त करने का आग्रह किया लेकिन भगवान शिव ने उनकी बात ये कहते अस्विकार कर दिया कि सबकी

किसमत और भाग्य का पहले से ही लिखा जा चुका होता है उसे चहा कर भी नही बदला जा सकता लेकिन उनकी

इस बात से माता पारवति सहमत नही हुई और उन्होने जिद पकड ली कि आप को अपने भक्त के दुखों का अंत

करना ही होगा और अंत में भगवान ने अपने भक्त की सहयता के लिए उन्होने जिस रस्ते वह रोज सुबह घर से

मंदिर जाता था वहँ एक सोने के आभूशणो से भरे कपडे को उसके रसते में डाल दिया और जैसे ही वह भक्त अपने

घर से निकला उसने देखा कि एक अंधा व्यक्ति उसी की तरफ चला आ रहा है उस अंधे व्यक्ति को देख उसके मन

में विचार आया कि अगर ये व्यक्ति बिना आखौ के कैसे चलता अगर मुझे ये जानना है तो आज अपनी आखें बंद

करके ही मंदिर तक जाना होगा और उसने वैसा ही किया और  सोने के आभूशणो से भरे कपडे को बिना देखे आगे

चला गया ये सब देख माता को अत्याधिक क्रोध आया तब भगवान शिव ने माता को समझाया कि इस सब में उस

भक्त का कोई दोष नही है सदैव किसी भी व्यक्ति को वही मिलता है जो उसकी किसमत में होता है

ये कहानी सुनाने के बाद बाबा ने उस व्यापरी से पूछा कि अभी भी तुम्हारे  दिमाग में कोई और प्रश्न है क्या नही

बाबा जी अब मुझे ये समझ आ गया है कि हर समस्या के हल का उचित समय व उचित रस्ता होता है बस हम

सभी को अपने अंदर धैर्य बनाए रखना चाहिए तभी हम अपनी सभी समस्याऔ को हल कर सकते है

Wednesday, October 14, 2015

मन की झील

भगवान बुद्ध को प्यास लगी थी। आनन्द पास के पहाड़ी झरने पर पानी लेने गया किन्तु देखा कि झरने से अभी-अभी बैलगाडियाँ गुजरी हैं और सारा जल गन्दा हो गया है।
वापस लौट आए और भगवान से बोले-"मैं पीछे छुट गई नदी पर जल लेने जाता हूँ,इस झरने का पानी बैलगाडि यों के कारण गन्दा हो गया है।"
किन्तु भगवान ने आन्नद को वापस उसी झरने पर भेजा ।तब भी पानी साफ नहीं हुआ था और आन्नद लौट आए।ऐसा तीन बार हुआ। परन्तु चौथी बार आन्नद हैरान रह गये। तब सडे -गले पत्ते नीचे बैठ चुके थे,काई सिमटकर दूर जा चुकी थी और पानी आईने की भाँति चमक रहा था।इस बार वे पानी सहित लौटे।
भगवान ने तब कहा-" आन्नद,हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाडियाँ रोज-रोज गन्दा करती हैं और हम जीवन से भाग खडे होते हैं। किन्तु हम भागें नहीं,मन की झील के शान्त होने की थोडी प्रतीक्षा कर लें,तो सब कुछ स्वच्छ हो जाता है,उसी झरने की तरह"

Monday, October 12, 2015

राजा और लकड़हारा

राजा यशकीर्ति नित्य छद्म वेश में रात्रिभ्रमण को निकलते। एक बार एक गांव में भ्रमण करते हुए उन्होंने देखा कि कुछ युवक एक खेल खेल रहे हैं। एक युवक राजा बना बैठा था। शेष सभासद के रूप में थे।

युवक बोला, 'सभासदो, जिस राज्य के कर्मचारी सदैव वैभव-विलास में डूबे रहते हों, उसका राजा कितना ही नेक और प्रजावत्सल क्यों न हो, प्रजा सुखी नहीं रह सकती। यशकीर्ति के राज्याधिकारी जो भूल कर रहे हैं, वह तुम सब मत करना।'
राजा यशकीर्ति उस युवक के विचारों से इतना प्रभावित हुए कि उसे अपने साथ ले आए और अपना महामंत्री बना लिया। सुकेश नाम का वह युवक एक लकड़हारा था। वह अपने साथ एक कुल्हाड़ी, बिछौना और अंगोछा भी लाया था। राज्य के इस नए महामंत्री ने समस्त मंत्रियों, सामंतों और कर्मचारियों के लिए एक सख्त आचार-संहिता बनाई।
अब सभी को 10 घंटे काम नित्य करना पड़ता था। राजकोष का धन प्रजा की भलाई में लगने लगा। कुछ सभासद सुकेश के पीछे लग गए। उन्होंने पता लगाया कि उसे जो आवास मिला है, वहां एक कक्ष है जहां और कोई नहीं जा सकता। राजा से शिकायत की कि उसने बहुत सारा धन वहां छिपा रखा है।
राजा ने महामंत्री के आवास का दौरा किया। सुकेश ने स्वयं उस कक्ष को खोला और राजा को प्रवेश के लिए आमंत्रित किया। वहां कुल्हाड़ी, बिछौना और अंगोछा रखे हुए थे। सुकेश ने ये सारी चीजें उठाईं और चल दिया-'बस,अब मेरा यहां कोई काम नहीं।' राजा यशकीर्ति सभासदों के षड्यंत्र के चलते हाथ मलते रह गए। जो राजा दूसरों के कहे पर आंख मूंद कर यकीन करता है, वह योग्य महामंत्री से हाथ धो बैठता है।

Friday, October 9, 2015

सफलता का मूल मंत्र

एक बार एक व्यक्ति को पता चला चला कि उसके पास के गाँब में बाबा आया हुया है जो भी उसको अपनी समस्या  के बारे में बताता है उसको उसी समय उचित बाबा हल प्रदान करते और जिसके चलते लम्बी लाईन भी है उस व्यक्ति ने वहँ जाने का निर्णय किया और जैसे ही वो बाबा से मिला उसने अपने जीवन की सबसे बढी समस्या के बारे में बताते हुऐ कहा कि जब भी में कोई कार्य शुरू करता हूँ सफलता प्राप्त न होने के कारण करके किसी और कार्य को शुरू करना पढता है जिसके चलते न जाने कितने कामों को शुरू करके बन्द करना पढा है जिसके चलते आर्थिक रूप से ही नही मन्सिक  रूप से छति हुई है लेकिन आज तक अपनी असफलता का प्रमुख कारण नही जान सका हूँ बस अभी तक अपनी किस्मत को ही दोशी मान्ता रहा हूँ और अब मेरे मिश्र तथा परिवार जन भी दूर होते जा रहे है हर कोई मुझे अयोग्य समता है कोई भी मुझसे अधिक बात करना भी  पसन्द नही करता मुझे क्या करना चाहिए
बाबा ने उसकी बात ध्यान से सुनने के बाद उसे एक रात आश्रम में रुकने को कहा और शाम को जब दोंनों एक साथ टहल रहे थे तभी उस व्यक्ति की नजर एक मकड़ी  पर गई वो एक पेड की ऊची डाल पर अपने जाल की मदद से लटकी हुई थी और बार बार ऊपर डाल की तरफ चढने की कोशिश कर रही थी लेकिन बार बार असफल हो रही थी और उस व्यक्ति को भी विश्वास हो चला था कि वो अपने कार्य में सफल नही हो सकति बेकार की कोशिश कर रही और सोचते सोचते मुसकुराने लगा तभी उस मकड़ी को अपने कार्य में सफल होते देख उसकी आखें खुली की खुली रह गई अब उसे विश्वास नही हो रहा था
तब बाबा ने उस व्यक्ति से पूछा कि ये सब देख तम्हें कुछ समझ आया उसने जबाब देते हुऐ पूछा ऐसे कैसे हो सकता है तब बाबा ने जबाब देते हुऐ कहा कि यदि  हम खुद पर विश्वास करै और किसी भी कार्य जब भी किसी कार्य को अपना हाथ में लैं उसे पूण करने के लिऐ अपनी सम्पूर्ण  शक्ति लगा दें तो कोई भी कार्य असम्भव नही है और सदैव सफलता की ही प्रप्ति होगी और आपके मिश्र तथा परिवार जन की विचार धारा भी स्वयंम आपके साथ हो जयेगी तुम सदैव याद रखना लोगो की सोच से हमारी सफलता या विफलता का निर्णय नही होता लेकिन हमारी सफलता से लोगो की आपके बारे में सोच का सदैव निर्णय होता है
और ये ही हमारे सुख दुख तथा सफलता का मूल मंत्र है जो भी व्यक्ति अपनाता है उसे जीवन भर सफलता ही सफलता प्राप्त होती है  

Thursday, October 8, 2015

कठिन परिश्रम या Smart Work

दो दोस्त काफी समय बाद अचानक सडक पर टकरा गऐ जैसे ही दौनौ की नजर एक दूसरे पर गई तो उनकी खुशी का ठिकाना ऩा रहा और जब दौनौ एक स्थान पर बैठ कर पुरानी यादै ताजा कर रहे थे तभी एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से  कहा यार में अपनी नौकरी से अत्याधिक परेशान हूँ  जितनी भी कोशिश कर लू लेकिन अपने काम से अपने boss  को खुश नही कर पाता जिसके चलते ना मुझे कभी  सही Increment  मिलता और ना ही boss का सहयोग जबकि एक दूसरा कलीग है सदैव boss उससे खुश भी रहता और सहयोग भी करता है और समय समय पर Increment भी लेता रहता और जबकि उसकी तुलना में मे सदैव काम भी अधिक करता हूँ office में समय भी अधिक देता हूँ office के काम को अपने सभी कार्यो से अधिक महत्व भी देता हूँ  और वो इसमें से कुछ भी नही करत हमेशा office late आता है कभी काम पर ध्यान नही देता office  में भी कुछ काम नही करता दोस्त की सारी बात सुन्ने के बाद उसने अपने मित्र को एक कहानी सुनाने का आग्रह किया
एक बार की बात है जब भगवन गणेश और भगवान कार्तिके में शर्त लगी कि हम दौनो में से जो सारे संसार के सात चक्कर सबसे पहले पूर्ण करता वही विजेता कहलाऐगा तभी समय को खराब न करके कार्तिके अपनी से शर्त पूर्ण करने निकल पढे जैसे ही उन्होने पीछे देखा तो भगवान गणेश वही के वही खढे थे ये देख वो अत्यधिक प्रसंचित हुऐ और सोचने लगे कि अब विजय उनकी होगी तभी गणेश भगवान जी ने अपनी सवारी सवार हुऐ और उन्होने अपने माता पिता के 7 चक्कर शीघ्र ही पूर्ण करके अपने स्थान पर पहुच गये और जब कर्तिके भगवान वापस आऐ तो उन्होने गणेश भगवान की विजय को नही माना जब पिता भगवान शिव और माता पर्वती ये बताने पर कि सम्पूर्ण संसार के बराबर ही माता पिता का स्थान होता है दौनौ की परिक्रमा महत्व भी समान है जिसके चलते गणेश की विजय  हुई है
मेरे मित्र आज का समय भी वैसा ही है आज कठिन परिश्रम की स्थान पर smart work की अधिक आवश्कता है और तुम कठिन परिश्रम करते और तुम्हारा कलीग smart work करता है अब तुम ही बतऔ कि कौन अच्छा है और किसको आगे होना चाहिऐ

Wednesday, October 7, 2015

जीवन में जो सोचते हैं सदैव हमैं वो ही प्राप्त नही होता


एक गाँव में  किसान विशाल परिवार के साथ रहता था उसकी आर्थिक स्थिति अत्याधिक दैनिय थी जिसके कारण वो अपने परिवार का भरण पोक्षण करने में भी योग्य नही था लेकिन इन सभी परिस्थियो के बाद भी परिवार के लालन पालन में कोइ कमी नही रखी और इसी कारण उनका एक पुत्र पढाई में बहुत अच्छा था और पूरे परिवार की उमीदै उसी से थी जिसके कारण उच्च शिक्षा के लिऐ बाहर भेजा गया और जिसके लिए सम्पूण परिवार ने कडी मेंहनत करी और अपना सब कुछ गिरबी रखे जाने के बाद भी अपने बेटे की शिक्षा में कोई  बाधा नही आने दी
और इन सब बातो का ज्ञान उस बालक को भी था जिसके कारण वो भी शीघ्र ही अपनी शिक्षा पूण करके परिवार स्थिति सुधारने में सहयोग करना चहाता था और अपनी शिक्षा पूण होने का इन्तजर कर रहा था
और जैसे ही शिक्षा पूर्ण करते ही प्रथम JOB का संदेशा आया उसकी प्रसंता का कोई ठिकाना न रहा और जब कुछ समय बाद RESULT में उसका NO. नही आया तो वह पूरी तरह टूट गया और अपने परिवार का विश्वास को टूट के बिखरता सोच उसने आत्म दा का निर्णयं किया और जैसे ही
 वो आगे बढा तो उसको कुछ आवाज सुनाई दी  एक बाबा प्रवचन देते हुऐ कह रहा था हम जीवन में जो सोचते हैं सदैव हमैं वो ही प्राप्त नही होता लेकिन हम अपनी हार का कारण जानकर और पुहं प्रयास से हम कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं और हमें कितनी बढी हार का सामना करना पढे तब भी निरशा और हार के बारे में चिन्ता नही करनी चाहिए
इन सब बतों ने उस बालक के जीवन में इतना प्रभाव डाला कि उस बालक ने अपने आत्म दा के विचार को बदला और अपने जीवन की नई  शुरुआत करी और अपने जीवन में कई हार और कठिन समय को देखने के बाद भी उसने अपने  जीवन हार नही मानी और वो अपने परिवार के गोँरव को ही नही देश के गोँरव भी बढाया है और आज उस बालक को सम्पूण विश्व मिसाइल मैन औफ INDIA  के नाम से जाना जाता है वो कोई और नही भारत के भूतपूर्व राट्र पति A.P.J. ABUDAL KALAM  AAJAD  के नाम से जाना जाता है 




Tuesday, October 6, 2015

समय , धैर्य की शक्ति


एक बार सडक पर एक व्यक्ति जोर जोर से चिल्ला रहा था मेरे दौनौ  हाथौ में वो शक्तिया हैं जो चाहऔगे वो मिलेगा  मेरे दौनौ  हाथौ में वो शक्तिया हैं जो चाहऔगे वो मिलेगा  ये सुनकर और उसकी हालत देख कर लोग वहा से दूर दूर होने लगे लेकिन वो अपनी धुन में मस्त चिल्ला रहा था तभी वहा से एक व्यक्ति अपनी धुन में और जिन्दगी से परेशान व्यक्ति वहां चला जा रहा था लोगो ने उसे आवाज लगा के रोकने की कोशिश करी तभी उस व्यक्ति की नजर उस पागल व्यक्ति पर गयी और उसने देखा कि वो पागल चिल्ला रहा हैं जो चाहिए वो मिलेगा मेरे दौनौ हातौ में वो शक्ति हैं पहले वो रुका लेकिन कुछ क्षण बाद वो चल दिया
                          और जैसे ही वो उस बाबा से मिला तो बाबा ने एक हाथ खोल कर बोला ये लो समय की शक्ति सदैव समय के साथ चलना और दूसर हाथ खोल कर बोला ये लो धैर्य इसे सदैव किसी भी कार्य को करते समय स्वंयम के अन्दर बनाये रखना
                            इसी सीख के साथ वो व्यक्ति वहां से चला गया और सदैव उसने बाबा की दौनौ बातौ का उपयोग अपने जीवन में किया और आगे चल कर वो अपने जीवन में इतना सफल हुआ कि आज सारी दुनिया उस व्यक्ति को धीरू भाई अम्बानी के नाम से जान्ती हैं और इन्हीं सिध्दंतो का उपयोग कर के उनके दौनौ बेटे सफलताऔ के शिखरौ को छू रहे हैं
कहानी का साराश ये हैं कि यदि अपने जीवन में सफलता पनी हैं तो हमें सदैव समय के साथ और धैर्य बनाये रखते हुऐ किसी भी कार्य़ को करना चाहिए

Monday, October 5, 2015

उपयोगी हल

एक बार की बात है एक राजा था। उसका एक बड़ा-सा राज्य था। 
एक दिन उसे देश घूमने का विचार आया और उसने देश भ्रमण की योजना बनाई और घूमने निकल पड़ा। जब वह यात्रा से लौट कर अपने महल आया।
उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। 
राजा का कहना था कि मार्ग में जो कंकड़ पत्थर थे वे मेरे पैरों में चुभ गए और इसके लिए कुछ इंतजाम करना चाहिए।
कुछ देर विचार करने के बाद उसने अपने सैनिकों व मंत्रियों को आदेश दिया कि देश की संपूर्ण सड़कें चमड़े से ढंक दी जाएं।
राजा का ऐसा आदेश सुनकर सब सकते में आ गए।
लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो निश्चित ही था कि इस काम के लिए बहुत सारे रुपए की जरूरत थी। लेकिन फिर भी किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद राजा के एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली।
उसने राजा के पास जाकर डरते हुए कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ।
अगर आप इतने रुपयों को अनावश्यक रूप से बर्बाद न करना चाहें तो एक अच्छी तरकीब मेरे पास है।
जिससे आपका काम भी हो जाएगा और अनावश्यक रुपयों की बर्बादी भी बच जाएगी।
राजा आश्चर्यचकित था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की बात कही थी।
उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की सड़कों को चमड़े से ढंकने के बजाय आप चमड़े के एक टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते।
राजा ने अचरज की दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए जूता बनवाने का आदेश दे दिया।
यह कहानी हमें एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है कि हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है।
दूसरों के साथ बातचीत से भी अच्छे हल निकाले जा सकते हैं।

Saturday, October 3, 2015

नज़रिए का फ़र्क

एक गांव में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। उधर से एक साधु गुजरे। उन्होंने एक मजदूर से पूछा- यहां क्या बन रहा है? उसने कहा- देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं? साधु ने कहा- हां, देख तो रहा हूं। लेकिन यहां बनेगा क्या? मजदूर झुंझला कर बोला- मालूम नहीं। यहां पत्थर तोड़ते- तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा। साधु आगे बढ़े। एक दूसरा मजदूर मिला। साधु ने पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर बोला- देखिए साधु बाबा, यहां कुछ भी बने। चाहे मंदिर बने या जेल, मुझे क्या। मुझे तो दिन भर की मजदूरी के रूप में १०० रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है। साधु आगे बढ़े तो तीसरा मजदूर मिला। साधु ने उससे पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर ने कहा- मंदिर। इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूं। ये सारे मजदूर इसी गांव के हैं। मैं एक- एक छेनी चला कर जब पत्थरों को गढ़ता हूं तो छेनी की आवाज में मुझे मधुर संगीत सुनाई पड़ता है। मैं आनंद में हूं। कुछ दिनों बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा और यहां धूमधाम से पूजा होगी। मेला लगेगा। कीर्तन होगा। मैं यही सोच कर मस्त रहता हूं। मेरे लिए यह काम, काम नहीं है। मैं हमेशा एक मस्ती में रहता हूं। मंदिर बनाने की मस्ती में। मैं रात को सोता हूं तो मंदिर की कल्पना के साथ और सुबह जगता हूं तो मंदिर के खंभों को तराशने के लिए चल पड़ता हूं। बीच- बीच में जब ज्यादा मस्ती आती है तो भजन गाने लगता हूं। जीवन में इससे ज्यादा काम करने का आनंद कभी नहीं आया। साधु ने कहा- यही जीवन का रहस्य है मेरे भाई। बस नजरिया का फर्क है। कोई काम को बोझ समझ रहा है और पूरा जीवन झुंझलाते और हाय- हाय करते बीत जाता है। लेकिन कोई काम को आनंद समझ कर जीवन का लुत्फ ले रहा है।

Friday, October 2, 2015

शक्ति जीवन , दुर्बलता मृत्यु

एक बहुत बड़े ठेकेदार के यहां हजारों मजदूर काम करते थे। एक बार उस क्षेत्र के मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर दी। महीनों हड़ताल चलती रही। नतीजतन मजदूर भूखे मरने लगे और रोजी-रोटी कमाने के लिए दूसरी बस्तियों में चले गए, लेकिन दूसरी बस्तियों के गरीब मजदूर इस बस्ती में आ पहुंचे। ठेकेदार नित्य ही ऐसे लोगों की तलाश में रहता था, जो उसके ठेके का काम पूरा कर सकें। अत: एक दिन वह बस्ती के चौराहे पर आकर खड़ा हो गया। तभी एक मजदूर कंधे पर कुदाली रखे वहां आया। ठेकेदार ने उससे पूछा- क्या मजदूरी लेगा? मजदूर ने कहा- बारह आने। ठेकेदार ने उससे कहा -अच्छा दूंगा, जाकर मेरे ईंटों के भट्ठे के लिए मिट्टी खोदो। इसके बाद एक दूसरा मजदूर वहां आया, ठेकेदार ने उससे भी मजदूरी पूछी। वह बोला- तीन रुपए। ठेकेदार ने उसे खान में कोयला खोदने भेज दिया। तीसरे मजदूर ने बड़े ताव से दस रुपए अपनी मजदूरी बताई। ठेकेदार ने उसे हीरे की खान में भेज दिया। शाम को तीनों मजदूरी लेने पहुंचे। पहले ने सौ टोकरी मिट्टी खोदी। दूसने ने दस मन कोयला निकाला और तीसरे को एक हीरा मिला। तीनों के हाथ पर जब मजदूरी रखी गई तो पहला मजदूर तीसरे मजदूर के हाथ पर दस रुपए देखकर नाराज होने लगा। तब ठेकेदार बोला- तुम्हारी मजदूरी तुमने ही तय की थी। जिसमें जितनी शक्ति और इच्छा थी, उसने उतनी मजदूरी बताई और सभी ने काम भी उसी के अनुरूप किया है। यह सुनकर पहला मजदूर चुप हो गया। सार यह है कि शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता ही मृत्यु है। अत: आशावादी, दृढ़ व अनुकूल विचारों को अपनाकर तदनुकूल कर्म करना चाहिए।