Thursday, December 13, 2018

आखिर अंतर रह ही गया

बचपन में जब हम ट्रैन की सवारी  करते थें, माँ घर से सफर के  लिए खाना बनाकर लें जाती थी l पर ट्रैन में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए l पापा नें समझाया ये हमारे  बस का नहीँ l अमीर लोग इस तरह  पैसे खर्च कर सकते है,  हम नहीँ l बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो वर्ग घर से भोजन बांध  कर लें जा रहें हैंl स्वास्थ  सचेतन हैं वे l आखिर वो अंतर रह ही गया l

बचपन मेंं जब हम सूती कपड़ा पहनते थें, तब वो वर्ग टेरीलीन का वस्त्र पहनता था l बड़ा  मन करता था पर  पापा कहते हम इतना खर्च  नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरेलिन पहने तब वो वर्ग सूती  के कपड़े पहनने  लगा l सूती  कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च  नहीँ कर सकते l आखिर अंतर रह ही गया l

बचपन मेंं जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनो के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनो के पास का वो हिस्सा ढक लेते l बड़े होकर देखा वो वर्ग घुटनो के पास फटे पतलून महंगे दामों  मेंं बड़े दुकानों  से खरीदकर पहन रहा है l आखिर अंतर रह ही गया l

बचपन मेंं हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते,  तब वे 
स्कूटर पर जाते l जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जबतक हम मारुति खरीदे, वो बीएमडब्लू पर जाते दिखे l आखिर अंतर रह ही गया l

और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर  BMW खरीदे अंतर को मिटाने के लिए तो वो साइकलिंग करते नज़र आये ...अंतर रह ही गया।

Thursday, December 6, 2018

वचन

रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया, 
तब लंका मे सीता जी वट व्रक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी,
रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था 
लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी,यहाँ तक की रावण 
ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को भी 
भ्रमित करने की कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,
रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी 
बोली आप ने तो राम का वेश धर कर गया था फिर क्या हुआ,
रावण बोला जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी !
रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जगत 
जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका फिर रावण
भी कैसे समझ पाता !
रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी 
हो की मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर 
घूर कर देखने लगती हो,
क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है रावण के 
इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी,और 
आँख से आसुओं की धार बह पड़ी
"अब इस प्रश्न का उत्तर समझो" -
जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,
तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश 
भी हुआ बहुत उत्सव मनाया गया,
जैसे की एक प्रथा है की 
नव वधू जब ससुराल आती है तो उस नववधू के हाथ से 
कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है,ताकि जीवन भर 
घर पर मिठास बनी रहे !
इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथो से घर पर 
खीर बनाई और समस्त परिवार राजा दशरथ सहित चारो 
भ्राता और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे ,
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तल सम्हाली,
सीता जी देख रही थी,
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा 
सा घास का तिनका गिर गया,
माँ सीता जी ने उस तिनके 
को देख लिया,लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया,
माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर जो देखा, तो वो तिनका जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया,
सीता जी ने सोचा अच्छा 
हुआ किसी ने नहीं देखा, लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी 
का यह चमत्कार को देख रहे थे,फिर भी दशरथ जी चुप रहे 
और अपने कक्ष मे चले गए और माँ सीता जी को बुलवाया !
फिर राजा दशरथ बोले मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ,
आप साक्षात जगत जननी का दूसरा रूप हैं,लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना
आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी मत देखना,
इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को 
उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी,
यही है उस तिनके का रहस्य ! 
मात सीता जी चाहती तो रावण को जगह पर ही राख़ कर 
सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन की 
वजह से वो शांत रही !

Saturday, December 1, 2018

कर्मो की दौलत

एक राजा था जिसने ने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके( एकतरह शाही खजाना ) आबादी से बाहर जंगल एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने मे सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी एक चाबी राजा के पास और एक उसकेएक खास मंत्री के पास थी इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला , तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख देख कर खुश हो रहा था , और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था।
उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खजाने का दरवाजा खुला है वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कही कल रात जब मैं खजाना देखने आया तब शायद खजाना का दरवाजा खुला रह गया होगा, उसने जल्दी जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया . उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ , और दरवाजे के पास आया तो ये क्या ...दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था . उसने जोर जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहां उनकी आवाज सुननेवाला उस जंगल में कोई ना था ।
राजा चिल्लाता रहा , पर अफसोस कोई ना आया वो थक हार के खजाने को देखता रहा अब राजा भूख और पानी की प्यास से बेहाल हो रहा था , पागलो सा हो गया.. वो रेंगता रेंगता हीरो के संदूक के पास गया और बोला ए दुनिया के नायाब हीरो मुझे एक गिलास पानी दे दो.. फिर मोती सोने चांदी के पास गया और बोला ए मोती चांदी सोने के खजाने मुझे एक वक़्त का खाना दे दो..राजा को ऐसा लगा की हीरे मोती उसे बोल रहे हो की तेरे सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे एक गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती..राजा भूख से बेहोश हो के गिर गया ।
जब राजा को होश आया तो सारे मोती हीरे बिखेर के दीवार के पास अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया , वो दुनिया को एक पैगाम देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था ।
राजा ने पत्थर से अपनी उंगली फोड़ी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया . उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा को ढूंढते रहे पर बहुत दिनों तक राजा ना मिला तो मंत्री राजा के खजाने को देखने आया , उसने देखा कि राजा हीरे जवाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है , और उसकी लाश को कीड़े मोकड़े खा रहे थे . राजा ने दीवार पर खून से लिखा हुआ था...ये सारी दौलत एक घूंट पानी ओर एक निवाला नही दे सकी...
यही अंतिम सच है |आखिरी समय आपके साथ आपके कर्मो की दौलत जाएगी , चाहे आप कितनी बेईमानी से हीरे पैसा सोना चांदी इकट्ठा कर लो सब यही रह जाएगा |इसीलिए जो जीवन आपको प्रभु ने उपहार स्वरूप दिया है , उसमें अच्छे कर्म लोगों की भलाई के काम कीजिए बिना किसी स्वार्थ के ओर अर्जित कीजिए अच्छे कर्मो की अनमोल दौलत |जो आपके सदैव काम आएगी

Sunday, November 25, 2018

हमारी सोच

एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे. समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.
पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी.
सन्त बहुत दु:खी हुए.
उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.
थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,
सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,
मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.
स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.
थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.
सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.
वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया 
मैं एक मछुआरा हूँ
मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.
मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.
कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था
और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.
सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ, जो देखा उसके बारे में
मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.
कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.
किसी के प्रति
कोई निर्णय लेने से पहले
सौ बार सोचें और तब फैसला करें
क्या हमारी सोच भी ऐसी ही हो चुकी है, जो दिखाई दिया, खुद ही  अपनी सोच बना लेते है

Thursday, November 22, 2018

जीवन में झट़का

चेन्नई में समुद्र के किनारे, एक सज्जन धोती कुर्ता में भगवद गीता पढ़ रहे थे। तभी वहां एक लड़का आया और बोला कि आज साइंस का जमाना है... फिर भी आप लोग ऐसी किताबें पढ़ते हो! 

देखिए, जमाना चांद पर पहुंच गया है... और आप लोग ये गीता रामायण पर ही अटके हुए हो...।

उन सज्जन ने लड़के से पूंछा की - "तुम गीता के बारे में क्या जानते हो?"

वह लड़का जोश में आकर बोला - "अरे बकवास... मैं विक्रम साराभाई रिसर्च संस्थान का छात्र हूं... I am a scientist... ये गीता तो बकवास है हमारे आगे।

वह सज्जन हंसने लगे... तभी 2 बड़ी-बड़ी गाड़ियां वहां आयी... एक गाड़ी से कुछ ब्लैक कमांडो निकले... और एक गाड़ी से एक सैनिक। सैनिक ने कार के पीछे का गेट खोला तो वह सज्जन पुरुष चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ गए।

लड़का ये सब देखकर हक्का-बक्का था।  उसने दौड़कर उनसे पूंछा - "सर... सर आप कौन हैं??

वह सज्जन बोले - "तुम जिस विक्रम साराभाई रिसर्च इंस्टीट्यूट में पढ़ते हो, मैं वहीं विक्रम साराभाई हूं...।

लड़के को 440 वाट का झट़का लगा!!!

इसी भगवद गीता को पढ़कर, डॉ अब्दुल कलाम ने हिन्दू जीवन शैली अपना ली और आजीवन मांस न खाने की प्रतिज्ञा कर ली थी! 

Saturday, November 17, 2018

दौड़

 एक दस वर्षीय लड़का प्रतिदिन अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर करने जाता था। एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पर लगी उस झंडी को छू लेगा वह दौड़ जीत जाएगा।”
 पिताजी तैयार हो गए। दूरी अधिक थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना आरंभ किया।
कुछ देर दौड़ने के बाद ही पिताजी अचानक रुक गए।
 “क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
 “नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ”, पिताजी बोले।
 लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, लेकिन यदि मैं रुक गया तो दौड़ हार जाऊँगा…”, और यह कहता हुआ वह तेज़ी से आगे भागा।
पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे़, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का अनुभव हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके समीप आने लगे थे।
 लड़के के पैरों में कष्ट देख पिताजी पीछे से चिल्लाए, “क्यों नहीं तुम भी अपने जूते में से कंकड़ निकाल लेते?”
 “मेरे पास इसके लिए समय नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा। कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।
चुभते कंकडों की कारण लड़के का कष्ट बहुत बढ़ चुका था और अब उससे चला भी नहीं जा रहा था। वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता।”
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आए और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था। वे उसे झटपट घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
 जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने ने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था न कि पहले अपने कंकडों को निकाल लो और फिर दौड़ो।”
 “मैंने सोचा यदि मैं रुका तो दौड़ हार जाऊँगा।” बेटा बोला।
 “ऐसा नही है बेटा, यदि हमारे जीवन में कोई समस्या आती है तो हमें उसे यह कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है। वास्तव में होता क्या है, जब हम किसी समस्या की अनदेखी करते हैं तो वह धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितनी हानि पहुँचा सकती थी उससे कहीं अधिक हानि पहुँचा देती है। तुम्हें कंकड़ निकालने में अधिक से अधिक एक मिनट का समय लगता पर अब उस एक मिनट के बदले तुम्हें एक सप्ताह तक पीढ़ा सहनी होगी।” पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
 मित्रों, हमारा जीवन तमाम ऐसे कंकडों से भरा हुआ है, कभी हम अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर परेशान होते हैं तो कभी हमारे रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है तो कभी हमें अपने साथ काम करने वाले सहकर्मी से समस्या होती है।
 आरंभ में ये समस्याएँ छोटी प्रतीत होती हैं और हम इनके बारे में बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा होता जाता है। जैसे कोई ऋण जिसे हम समय रहते एक हज़ार रुपये देकर चुका सकते थे उसके लिए बाद में 5000 रूपये चाहिए होते हैं… रिश्ते की जिस कड़वाहट को हम ‘खेद है’ कहकर दूर कर सकते थे वह अब टूटने की कगार पर आ जाता है और एक छोटी सी बातचीत से हम अपने सहकर्मी का भ्रम दूर कर सकते थे वह कुछ समय बाद कार्य-स्थल की राजनीति  में परिवर्तित हो जाता है।
 समस्याओं का समाधान समय रहते कर लेना चाहिए अन्यथा देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।

Friday, November 16, 2018

गोपाष्ठमी का महत्व एवं कथा

एक दिन भगवान मैया से बोले – ‘मैया...अब हम बड़े हो गये है।
मैया ने कहा- अच्छा लाला... तुम बड़े हो गये तो बताओ क्या करे?
भगवान ने कहा - मैया अब हम बछड़े नहीं चरायेगे, अब हम गाये चरायेगे।
मैया ने कहा - ठीक है।बाबा से पूँछ लेना...
झट से भगवान बाबा से पूंछने गये.
बाबा ने कहा – लाला..., तुम अभी बहुत छोटे हो, अभी बछड़े ही चराओ।
भगवान बोले- बाबा मै तो गाये ही चराऊँगा।
जब लाला नहीं माने तो बाबा ने कहा -ठीक है लाला,.. जाओ पंडित जी को बुला लाओ, वे गौ-चारण का मुहूर्त देखकर बता देगे।
भगवान झट से पंडितजी के पास गए बोले- पंडितजी.... बाबा ने बुलाया है
गौचारण का मुहूर्त देखना है आप आज ही का मुहूर्त निकल दीजियेगा, यदि आप ऐसा करोगे तो मै आप को बहुत सारा माखन दूँगा ।
पंडितजी घर आ गए पंचाग खोलकर बार-बार अंगुलियों पर गिनते,..बाबा ने पूँछा -पंडित जी क्या बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे है ?
पंडित जी ने कहा – क्या बताये,.. नंदबाबाजी, केवल आज ही का मुहूर्त निकल रहा है इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त है ही नहीं।
बाबा ने गौ चारण की स्वीकृति दे दी ।
भगवान जिस समय, जो काम करे, वही मुहूर्त बन जाता है
उसी दिन भगवान ने गौचारण शुरू किया वह शुभ दिन कार्तिक-माह का “गोपा-अष्टमी” का दिन था।
माता यशोदा जी ने लाला का श्रृंगार कर दिया और जैसे ही पैरों में जूतियाँ पहनाने लगी तो बाल कृष्ण ने मना कर दिया और कहने लगे - मैया !
यदि मेरी गौ जुते नही पहनती तो मै कैसे पहन सकता हूँ
यदि पहना सकती हो तो सारी गौओ को जूतियाँ पहना दो।फिर में भी पहन लूंगा ।
और भगवान जब तक वृंदावन में रहे कभी भगवान ने पैरों में जूतियाँ नाही पहनी।
अब भगवान अपने सखाओ के साथ गौए चराते हुए वृन्दावन में
जाते और अपने चरणों से वृन्दावन को अत्यंत पावन करते।
यह वन गौओ के लिए हरी-हरी घास से युक्त एवं रंग- बिरंगे
पुष्पों की खान हो रहा था, आगे-आगे गौएँ उनके पीछे-पीछे बाँसुरी बजाते हुए श्यामसुन्दर तदन्तर बलराम और फिर श्रीकृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वालबाल।
इस प्रकार विहार करने के लिए उन्होंने उस वन में प्रवेश किया। और तब से गौ चारण लीला करने लगे।
भगवान कृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा था क्योंकि भगवान कृष्ण ने गायों तथा ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर रखा था।
आठवें दिन इन्द्र अपना अहं त्याग कर भगवान कृष्ण की शरण में आया था।
उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया। और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर संबोधित किया और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नाम से पुकारा जाने लगा।
इसी दिन से अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।
गौ ही सबकी माता है, भगवान भी गौ की पूजा करते है, सारे देवी-देवो का वास गौ में होता है,
जो गौ की सेवा करता है गौ उसकी सारी इच्छाएँ पूरी कर देती है।
तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से, जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को खिलाने से प्राप्त होता है ।

एक बीज की कहानी