Saturday, November 17, 2018

दौड़

 एक दस वर्षीय लड़का प्रतिदिन अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर करने जाता था। एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पर लगी उस झंडी को छू लेगा वह दौड़ जीत जाएगा।”
 पिताजी तैयार हो गए। दूरी अधिक थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना आरंभ किया।
कुछ देर दौड़ने के बाद ही पिताजी अचानक रुक गए।
 “क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
 “नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ”, पिताजी बोले।
 लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, लेकिन यदि मैं रुक गया तो दौड़ हार जाऊँगा…”, और यह कहता हुआ वह तेज़ी से आगे भागा।
पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे़, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का अनुभव हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके समीप आने लगे थे।
 लड़के के पैरों में कष्ट देख पिताजी पीछे से चिल्लाए, “क्यों नहीं तुम भी अपने जूते में से कंकड़ निकाल लेते?”
 “मेरे पास इसके लिए समय नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा। कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।
चुभते कंकडों की कारण लड़के का कष्ट बहुत बढ़ चुका था और अब उससे चला भी नहीं जा रहा था। वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता।”
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आए और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था। वे उसे झटपट घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
 जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने ने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था न कि पहले अपने कंकडों को निकाल लो और फिर दौड़ो।”
 “मैंने सोचा यदि मैं रुका तो दौड़ हार जाऊँगा।” बेटा बोला।
 “ऐसा नही है बेटा, यदि हमारे जीवन में कोई समस्या आती है तो हमें उसे यह कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है। वास्तव में होता क्या है, जब हम किसी समस्या की अनदेखी करते हैं तो वह धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितनी हानि पहुँचा सकती थी उससे कहीं अधिक हानि पहुँचा देती है। तुम्हें कंकड़ निकालने में अधिक से अधिक एक मिनट का समय लगता पर अब उस एक मिनट के बदले तुम्हें एक सप्ताह तक पीढ़ा सहनी होगी।” पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
 मित्रों, हमारा जीवन तमाम ऐसे कंकडों से भरा हुआ है, कभी हम अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर परेशान होते हैं तो कभी हमारे रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है तो कभी हमें अपने साथ काम करने वाले सहकर्मी से समस्या होती है।
 आरंभ में ये समस्याएँ छोटी प्रतीत होती हैं और हम इनके बारे में बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा होता जाता है। जैसे कोई ऋण जिसे हम समय रहते एक हज़ार रुपये देकर चुका सकते थे उसके लिए बाद में 5000 रूपये चाहिए होते हैं… रिश्ते की जिस कड़वाहट को हम ‘खेद है’ कहकर दूर कर सकते थे वह अब टूटने की कगार पर आ जाता है और एक छोटी सी बातचीत से हम अपने सहकर्मी का भ्रम दूर कर सकते थे वह कुछ समय बाद कार्य-स्थल की राजनीति  में परिवर्तित हो जाता है।
 समस्याओं का समाधान समय रहते कर लेना चाहिए अन्यथा देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।

Friday, November 16, 2018

गोपाष्ठमी का महत्व एवं कथा

एक दिन भगवान मैया से बोले – ‘मैया...अब हम बड़े हो गये है।
मैया ने कहा- अच्छा लाला... तुम बड़े हो गये तो बताओ क्या करे?
भगवान ने कहा - मैया अब हम बछड़े नहीं चरायेगे, अब हम गाये चरायेगे।
मैया ने कहा - ठीक है।बाबा से पूँछ लेना...
झट से भगवान बाबा से पूंछने गये.
बाबा ने कहा – लाला..., तुम अभी बहुत छोटे हो, अभी बछड़े ही चराओ।
भगवान बोले- बाबा मै तो गाये ही चराऊँगा।
जब लाला नहीं माने तो बाबा ने कहा -ठीक है लाला,.. जाओ पंडित जी को बुला लाओ, वे गौ-चारण का मुहूर्त देखकर बता देगे।
भगवान झट से पंडितजी के पास गए बोले- पंडितजी.... बाबा ने बुलाया है
गौचारण का मुहूर्त देखना है आप आज ही का मुहूर्त निकल दीजियेगा, यदि आप ऐसा करोगे तो मै आप को बहुत सारा माखन दूँगा ।
पंडितजी घर आ गए पंचाग खोलकर बार-बार अंगुलियों पर गिनते,..बाबा ने पूँछा -पंडित जी क्या बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे है ?
पंडित जी ने कहा – क्या बताये,.. नंदबाबाजी, केवल आज ही का मुहूर्त निकल रहा है इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त है ही नहीं।
बाबा ने गौ चारण की स्वीकृति दे दी ।
भगवान जिस समय, जो काम करे, वही मुहूर्त बन जाता है
उसी दिन भगवान ने गौचारण शुरू किया वह शुभ दिन कार्तिक-माह का “गोपा-अष्टमी” का दिन था।
माता यशोदा जी ने लाला का श्रृंगार कर दिया और जैसे ही पैरों में जूतियाँ पहनाने लगी तो बाल कृष्ण ने मना कर दिया और कहने लगे - मैया !
यदि मेरी गौ जुते नही पहनती तो मै कैसे पहन सकता हूँ
यदि पहना सकती हो तो सारी गौओ को जूतियाँ पहना दो।फिर में भी पहन लूंगा ।
और भगवान जब तक वृंदावन में रहे कभी भगवान ने पैरों में जूतियाँ नाही पहनी।
अब भगवान अपने सखाओ के साथ गौए चराते हुए वृन्दावन में
जाते और अपने चरणों से वृन्दावन को अत्यंत पावन करते।
यह वन गौओ के लिए हरी-हरी घास से युक्त एवं रंग- बिरंगे
पुष्पों की खान हो रहा था, आगे-आगे गौएँ उनके पीछे-पीछे बाँसुरी बजाते हुए श्यामसुन्दर तदन्तर बलराम और फिर श्रीकृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वालबाल।
इस प्रकार विहार करने के लिए उन्होंने उस वन में प्रवेश किया। और तब से गौ चारण लीला करने लगे।
भगवान कृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा था क्योंकि भगवान कृष्ण ने गायों तथा ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर रखा था।
आठवें दिन इन्द्र अपना अहं त्याग कर भगवान कृष्ण की शरण में आया था।
उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया। और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर संबोधित किया और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नाम से पुकारा जाने लगा।
इसी दिन से अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।
गौ ही सबकी माता है, भगवान भी गौ की पूजा करते है, सारे देवी-देवो का वास गौ में होता है,
जो गौ की सेवा करता है गौ उसकी सारी इच्छाएँ पूरी कर देती है।
तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से, जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को खिलाने से प्राप्त होता है ।

Thursday, November 8, 2018

एक छिपकली

अपने मकान का नवीनीकरण करने के लिये, एक जापानी अपने मकान की दीवारों को तोड़ रहा था। जापान में लकड़ी की दीवारों के बीच ख़ाली जगह होती हैं, यानी दीवारें अंदर से पोली होती हैं।

जब वह लकड़ी की दीवारों को चीर-तोड़ रहा था, तभी उसने देखा कि दीवार के अंदर की तरफ लकड़ी पर एक छिपकली, बाहर से उसके पैर पर ठुकी कील के कारण, एक ही जगह पर जमी पड़ी है।

जब उसने यह दृश्य देखा तो उसे बहुत दया आई पर साथ ही वह जिज्ञासु भी हो गया। जब उसने आगे जाँच की तो पाया कि वह कील तो उसके मकान बनते समय पाँच साल पहले ठोंका गई थी!

एक छिपकली इस स्थिति में पाँच साल तक जीवित थी! दीवार के अँधेरे पार्टीशन के बीच, बिना हिले-डुले? यह अविश्वसनीय, असंभव और चौंका देने वाला था!

उसकी समझ से यह परे था कि एक छिपकली, जिसका एक पैर, एक ही स्थान पर पिछले पाँच साल से कील के कारण चिपका हुआ था और जो अपनी जगह से एक इंच भी न हिली थी, वह कैसे जीवित रह सकती है?

अब उसने यह देखने के लिये कि वह छिपकली अब तक क्या करती रही है और कैसे अपने भोजन की जरुरत को पूरा करती रही है, अपना काम रोक दिया।

थोड़ी ही देर बाद, पता नहीं कहाँ से, एक दूसरी छिपकली प्रकट हुई, वह अपने मुँह में भोजन दबाये हुये थी - उस फँसी हुई छिपकली को खिलाने के लिये! उफ़्फ़! वह सन्न रह गया! यह दृश्य उसके दिल को अंदर तक छू गया!

एक छिपकली, जिसका एक पैर कील से ठुका हुआ था, को, एक दूसरी छिपकली पिछले पाँच साल से भोजन खिला रही थी!

अद्भुत! दूसरी छिपकली ने अपने साथी के बचने की उम्मीद नहीं छोड़ी थी, वह पहली छिपकली को पिछले पाँच साल से भोजन करवा रही थी।

अजीब है, एक छोटा-सा जंतु तो यह कर सकता है, पर हम मनुष्य जैसे प्राणी, जिसे बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ होने का आशीर्वाद मिला हुआ है, नहीं कर सकता!

*कृपया अपने प्रिय लोगों को कभी न छोड़ें!  लोगों को उनकी तकलीफ़ के समय अपनी पीठ न दिखायें! अपने आप को महाज्ञानी या सर्वश्रेष्ठ समझने की भूल न करें! आज आप सौभाग्यशाली हो सकते हैं पर कल तो अनिश्चित ही है और कल चीज़ें बदल भी सकती हैं!*

प्रकृति ने हमारी अंगुलियों के बीच शायद जगह भी इसीलिये दी है ताकि हम किसी दूसरे का हाथ थाम सकें!

*आप आज किसी का साथ दीजिये, कल कोई-न-कोई दूसरा आपको साथ दे देगा!*

धर्म चाहे जो भी हो बस अच्छे इंसान बनो, मालिक हमारे कर्म ,देखता है धर्म नहीं

तुलसी कौन थी

`तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा``` -
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर``` आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प
नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे
ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे
सती हो गयी।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में
बिना तुलसी जी के भोग```
```स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में```
```किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !```

Friday, November 2, 2018

असली पहचान

 एक राजा के दरबार मे एक अजनबी इंसान नौकरी मांगने के लिए आया। उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई, तो वो बोला- "मैं आदमी हो चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ।
         राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया। कुछ दिनों बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा, उसने कहा- "नस्ली नहीं हैं।" राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा, उसने बताया, घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसकी पैदायश पर इसकी माँ मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है। 
          राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं है ?" उसने कहा- "जब ये घास खाता है तो गाय की तरह सिर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुँह में लेकर सिर उठा लेता हैं। राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज, घी, मुर्गे, और अंडे बतौर इनाम भिजवा दिए। और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया। 
         कुछ दिनों बाद, राजा ने उस से रानी के बारे में राय मांगी, उसने कहा- "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन पैदाइशी नहीं हैं।" राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, उसने अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये है,  कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।" 
         राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा "तुम को कैसे पता चला ?" उसने कहा- "रानी साहिबा का नौकरों के साथ सुलूक गँवारों से भी बुरा हैं। एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता हैं, जो रानी साहिबा में बिल्कुल नहीं है। राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ और बहुत से अनाज, भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे तैनात कर दिया। 
        कुछ वक्त गुज़रा, राजा ने फिर नौकर को बुलाया, और अपने बारे में पूछा। नौकर ने कहा- "जान की सलामती हो तो कहूँ।" राजा ने वादा किया। उसने कहा- "न तो आप राजा के बेटे हो और न ही आपका चलन राजाओं वाला है।" 
        राजा को बहुत गुस्सा आया, मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था, राजा सीधा अपनी माँ के महल पहुँचा। माँ ने कहा- "ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी कोई औलाद नहीं थी, तो तुम्हें गोद लेकर हम ने पाला।" 
        राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा- बता, "तुझे कैसे पता चला ?" उसने कहा- "जब राजा किसी को इनाम दिया करते हैं, तो हीरे, मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं। लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं। ये रवैया राजाओं का नहीं, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।"

          "इंसान के पास कितनी भी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हो पर ये सब बाहरी दिखावा है। इंसान की असलियत की पहचान तो उसके व्यवहार और उसकी नीयत से होती है।

Monday, October 29, 2018

अपने बच्चे को पहचानिए

पिता बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था।

बेटा इतना मेधावी नहीं था कि NEET क्लियर कर लेता।e

इसलिए  दलालों से MBBS की  सीट खरीदने का जुगाड़ किया ।

ज़मीन, जायदाद, ज़ेवर सब गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए, लेकिन अफसोस वहाँ धोखा हो गया।

अब क्या करें...?

लड़के को तो डॉक्टर बनाना है कैसे भी...!!

फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ लड़का चल नहीं पाया।

फेल होने लगा..
डिप्रेशन में रहने लगा।

रक्षाबंधन पर घर आया और घर में ही फांसी लगा ली।
सारे अरमान धराशायी.... रेत के महल की तरह ढह गए....

20 दिन बाद माँ-बाप और बहन ने भी कीटनाशक खा कर आत्म-हत्या कर ली।

अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार लील लिया।
माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं ...

मैंने देखा कि कुछ माँ बाप अपने बच्चों को Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं
कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है। 

आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की Evaluation और Grading ऐसे करती है, जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जाती है।
पूरे देश के करोड़ों बच्चों को एक ही Syllabus पढ़ाया जा रहा है ..

For Example -

जंगल में सभी पशुओं को एकत्र कर सबका इम्तिहान लिया जा रहा है और पेड़ पर चढ़ने की क्षमता देख कर Rank निकाली जा रही है।

यह शिक्षा व्यवस्था, ये भूल जाती है कि इस प्रश्नपत्र में तो बेचारा हाथी का बच्चा फेल हो जाएगा और बन्दर First आ जाएगा।

अब पूरे जंगल में ये बात फैल गयी कि कामयाब वो है जो झट से पेड़ पर चढ़ जाए।

बाकी सबका जीवन व्यर्थ है।

इसलिए उन सब जानवरों के,  जिनके बच्चे कूद के झटपट पेड़ पर न चढ़ पाए, उनके लिए कोचिंग Institute खुल गए, वहां पर बच्चों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है।

चल पड़े हाथी, जिराफ, शेर और सांड़, भैंसे और समंदर की सब मछलियाँ चल पड़ीं अपने बच्चों के साथ, Coaching institute की ओर ........

हमारा बिटवा भी पेड़ पर चढ़ेगा और हमारा नाम रोशन करेगा।

हाथी के घर लड़का हुआ ....... 
तो उसने उसे गोद में ले के कहा- "हमरी जिन्दगी का एक ही मक़सद है कि हमार बिटवा पेड़ पर चढ़ेगा।" 

और जब बिटवा पेड़ पर नहीं चढ़ पाया, तो हाथी ने सपरिवार ख़ुदकुशी कर ली।

अपने बच्चे को पहचानिए।
वो क्या है, ये जानिये।

हाथी है या शेर ,चीता, लकडबग्घा , जिराफ ऊँट है
या मछली , या फिर हंस , मोर या कोयल ?
क्या पता वो चींटी ही हो ?

और यदि चींटी है आपका बच्चा, तो हताश निराश न हों।
चींटी धरती का सबसे परिश्रमी जीव है और अपने खुद के वज़न की तुलना में एक हज़ार गुना ज्यादा वजन उठा सकती है। 

इसलिए अपने बच्चों की क्षमता को परखें और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें.... ना कि भेड़ चाल चलाते हुए उसे हतोत्साहित करें

Monday, October 22, 2018

राजनीति

एक गाँव में बाहर से आकर एक ब्राह्मण रहने लगा । 
उसने गाँव की एक लड़की के साथ शादी कर ली ।
उसके दो बच्चे हुए ।
एक का नाम राजाराम और दूसरे का नाम सीताराम था ।
दोनों बड़े हुए इसलिए जरूरत बढ़ी ।
माँग कर पेट भरना मुश्किल था और मेहनत वाला कोई काम तो ब्राह्मण नहीं करेगा ।
दान दक्षिणा से ही काम चलायेगा ।
ऐसे में सरपंच का चुनाव एक साल बाद आने वाला था ।
दोनों ब्राह्मण पुत्रों ने रोज एक दूसरे से लड़ना चालू किया और गाँव के लोगों को अपने पक्ष में करने लगे ।
पूरा गाँव दो भागों में बँट गया । आधा राजाराम के पक्ष में और आधा सीताराम के पक्ष में ।
चुनाव में राजाराम जीत गया और सरपंच बन गया ।
दोनों का रहना एक ही घर में था । ब्राह्मण की लॉटरी लग गयी ।
पूरा घर और राजाराम सीताराम की बहुएँ खुश हो गयी, क्योंकि घी तो खीचड़ी में ही जानेवाला था। यानि फायदा दोनों को था ।
राजाराम ने 5 साल में भ्रष्टाचार करके काफी सम्पत्ति इकट्ठी कर ली ।
चुनाव नजदीक आते ही सीताराम ने राजाराम के भ्रष्टाचार को expose करना चालू कर दिया और गाँव वालो से कहने लगा कि मुझे सरपंच बना दे तो मैं राजाराम को जेल में डलवा दूँगा ।और ऐसा बोल कर वह खुद सरपंच चुनाव के लिये योग्य उम्मीवार बन गया ।
चुनाव आते ही ज्यादातर गाँव के लोग सीताराम के समर्थन में आ गये और चुनाव होते ही सीताराम पूर्ण बहुमत से चुनाव जीत गया ।
 आज सीताराम सरपंच है और राजाराम की पत्नी उपसरपंच है ।
पूरा गाँव के लोग इसलिए खुश है क्योंकि राजाराम हार गया ।
न राजाराम जेल में गया, न सीताराम !
दोनों के पास अकूत सम्पत्ति है, पर फिर भी पूरा गाँव दोनों को अलग अलग समझता है और बारी बारी से उनको चुनता है