Thursday, October 4, 2018

तुम धन्य हो

एक पंडित था, वो रोज घर घर जाके भगवत गीता का पाठ करता था |
एक दिन उसे एक चोर ने पकड़ लिया और उसे कहा तेरे पास जो कुछ भी है मुझे दे दो ,

तब वो पंडित जी बोला की बेटा मेरे पास कुछ भी नहीं है,

तुम एक काम करना मैं यहीं पड़ोस के घर मैं जाके भगवत गीता का पाठ करता हूँ,
वो यजमान बहुत दानी लोग हैं, जब मैं कथा सुना रहा होऊंगा

तुम उनके घर में जाके चोरी कर लेना!
चोर मान गया

अगले दिन जब पंडित जी कथा सुना रहे थे तब वो चोर भी वहां आ गया तब पंडित जी बोले की यहाँ से मीलों दूर एक गाँव है वृन्दावन, वहां पे एक लड़का आता है जिसका नाम कान्हा है,वो हीरों जवाहरातों से लदा रहता है,
अगर कोई लूटना चाहता है तो उसको लूटो वो रोज रात को इस पीपल के पेड़ के

नीचे आता है,। 

जिसके आस पास बहुत सी झाडिया हैं चोर ने ये सुना और ख़ुशी ख़ुशी वहां से चला गया!
वो चोर अपने घर गया और अपनी बीवी से बोला आज मैं एक कान्हा नाम के बच्चे को

लुटने जा रहा हूँ ,

मुझे रास्ते में खाने के लिए कुछ बांध कर दे दो ,पत्नी ने कुछ सत्तू उसको दे दिया

और कहा की बस यही है जो कुछ भी है,
चोर वहां से ये संकल्प लेके चला कि अब तो में उस कान्हा को लुट के ही आऊंगा,
वो बेचारा पैदल ही पैदल टूटे चप्पल में ही वहां से चल पड़ा, 

रास्ते में बस कान्हा का नाम लेते हुए, वो अगले दिन शाम को वहां पहुंचा जो जगह उसे

पंडित जी ने बताई थी!
अब वहां पहुँच के उसने सोचा कि अगर में यहीं सामने खड़ा हो गया तो बच्चा मुझे देख कर

भाग जायेगा तो मेरा यहाँ आना बेकार हो जायेगा,

इसलिए उसने सोचा क्यूँ न पास वाली झाड़ियों में ही छुप जाऊँ,

वो जैसे ही झाड़ियों में घुसा, झाड़ियों के कांटे उसे चुभने लगे!
उस समय उसके मुंह से एक ही आवाज आयी…

कान्हा, कान्हा , उसका शरीर लहू लुहान हो गया पर मुंह से सिर्फ यही निकला,

कि कान्हा आ जाओ! कान्हा आ जाओ!
अपने भक्त की ऐसी दशा देख के कान्हा जी चल पड़े

तभी रुक्मणी जी बोली कि प्रभु कहाँ जा रहे हो वो आपको लूट लेगा!
प्रभु बोले कि कोई बात नहीं अपने ऐसे भक्तों के लिए तो मैं लुट जाना तो क्या

मिट जाना भी पसंद करूँगा!
और ठाकुर जी बच्चे का रूप बना के आधी रात को वहां आए वो जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे

चोर एक दम से बहार आ गया और उन्हें पकड़ लिया और बोला कि

ओ कान्हा तुने मुझे बहुत दुखी किया है, अब ये चाकू देख रहा है न, अब चुपचाप अपने

सारे गहने मुझे दे दे…

कान्हा जी ने हँसते हुए उसे सब कुछ दे दिया!
वो चोर हंसी ख़ुशी अगले दिन अपने गाँव में वापिस पहुंचा,

और सबसे पहले उसी जगह गया जहाँ पे वो पंडित जी कथा सुना रहे थे,
और जितने भी गहने वो चोरी करके लाया था उनका आधा उसने पंडित जी के

चरणों में रख दिया!
जब पंडित ने पूछा कि ये क्या है, तब उसने कहा आपने ही मुझे उस कान्हा का पता दिया था

मैं उसको लूट के आया हूँ, और ये आपका हिस्सा है , पंडित ने सुना और उसे यकीन ही

नहीं हुआ!
वो बोला कि मैं इतने सालों से पंडिताई कर रहा हूँ

वो मुझे आज तक नहीं मिला, तुझ जैसे पापी को कान्हा कहाँ से मिल सकता है!
चोर के बार बार कहने पर पंडित बोला कि चल में भी चलता हूँ तेरे साथ वहां पर,

मुझे भी दिखा कि कान्हा कैसा दिखता है, और वो दोनों चल दिए!
चोर ने पंडित जी को कहा कि आओ मेरे साथ यहाँ पे छुप जाओ,

और दोनों का शरीर लहू लुहान हो गया और मुंह से बस एक ही आवाज निकली

कान्हा, कान्हा, आ जाओ!
ठीक मध्य रात्रि कान्हा जी बच्चे के रूप में फिर वहीँ आये ,

और दोनों झाड़ियों से बहार निकल आये!
पंडित जी कि आँखों में आंसू थे वो फूट फूट के रोने लग गया, और जाके चोर के चरणों में गिर गया और बोला कि हम जिसे आज तक देखने के लिए तरसते रहे, 

जो आज तक लोगो को लुटता आया है, तुमने उसे ही लूट लिया तुम धन्य हो,

आज तुम्हारी वजह से मुझे कान्हा के दर्शन हुए हैं,

तुम धन्य हो……!!
ऐसा है हमारे कान्हा का प्यार, अपने सच्चे भक्तों के लिए ,

जो उसे सच्चे दिल से पुकारते हैं, तो वो भागे भागे चले आते हैं…..!!

प्रेम से कहिये श्री राधे ~ हे राधे ! जय जय श्री राधे—–

मेरो तो गिरधर-गोपाल, दूसरो न कोई

Monday, October 1, 2018

गज़ब की एकता

किसी गाँव में चार मित्र रहते थे।

चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते,
 योजनाएँ बनाते।

एक ब्राह्मण

एक ठाकुर
 
एक बनिया और
एक नाई था

पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था,

 गज़ब की एकता थी।

इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने, चने आदि चीजे उखाड़ कर खाते थे।

एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े...

और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे।

खेत का मालिक किसान आया.....

चारों की दावत देखी

उसे बहुत क्रोध आया

उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे

पर चार के आगे एक?

वो स्वयं पिट जाता

सो उसने एक युक्ति सोची।

चारों के पास गया,

ब्राह्मण के पाँव छुए,

ठाकुर साहब की जयकार की

बनिया महाजन से राम जुहार

और फिर नाई से बोला--

देख भाई....

ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं,

ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं अन्नदाता हैं,

महाजन सबको उधारी दिया करते हैं.....

ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं

*तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू?*

 तू तो ठहरा नाई तूने चने क्यों उखाड़े?*

*इतना कहकर उसने नाई के दो तीन लट्ठ रसीद किये।*

बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया.....

क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी।

अब किसान बनिए के पास आया और बोला-

तू साहूकार होगा तो अपने घर का

पण्डित जी और ठाकुर साहब तो नहीं है ना!

तूने चने क्यों उखाड़े?

बनिये के भी दो तीन तगड़े तगड़े लट्ठ जमाए।

पण्डित और ठाकुर ने कुछ नहीं कहा।

अब किसान ने ठाकुर से कहा--

ठाकुर साहब....

 माना आप अन्नदाता हो...

पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है....

अरे पण्डित महाराज की बात दीगर है

उनके हिस्से जो भी चला जाये दान पुन्य हो जाता है.....

पर आपने तो बटमारी की!

ठाकुर साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया,

पण्डित जी कुछ बोले नहीं,

नाई और बनिया अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे।

जब ये तीनों पिट चुके....

तब किसान पण्डितजी के पास गया और बोला--

माना आप भूदेव हैं,

पर इन तीनों के गुरु घण्टाल आप ही हैं

आपको छोड़ दूँ

ये तो अन्याय होगा

तो दो लट्ठ आपके भी पड़ने चाहिए।

मार खा चुके बाकी तीनों बोले.....
 
हाँ हाँ, पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए।

अब क्या पण्डित जी भी पीटे गए।

किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके पीटा....
 
किसी ने किसी के पक्ष में कुछ नहीं कहा,

उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये।

मित्रों पिछली दो तीन सदियों से हिंदुओं के साथ यही होता आया है,

कहानी सच्ची लगी हो तो समझने का प्रयास करो और......

अगर कहानी केवल कहानी लगी हो.......

तो आने वाले समय के लट्ठ तैयार हैं।

Sunday, September 30, 2018

ये बेटिया

 ​​पापा मैने आपके लिए हलवा बनाया है 11 साल की बेटी​​ बोली
 ​​अपने पिता से बोली जो की अभी ऑफिस से घर में पहुंचे ही थे 
 ​​पिता​ - वाह क्या बात है,लाकर खिलाओ फिर पापा को !!​ 
 ​​बेटी दौड़ती हुई फिर रसोई में गई और बड़ा कटोरा भरकर हलवा लेकर आई​​ 
 ​​पिता ने खाना शुरू किया और बेटी को देखा पिता की आखों में आंशू आ गये  
 ​क्या हुआ पापा हलवा अच्छा नहीं लगा​ क्या 
 ​पिता - नहीं मेरी बेटी बहुत अच्छा बना है , और देखते देखते पूरा कटोरा खाली कर दिया​ 
 ​इतने में माँ बाथरूम से नहाकर बाहर आई, और बोली : ला मुझे खिला अपना हलवा !!​ 
 ​पिता ने बेटी को 50 रुपए इनाम में दिये ।​
 ​बेटी खुशी से मम्मी के लिए रसोई से हलवा लेकर आई​ 
 ​मगर ये क्या जेसे ही उसने हलवा की पहली चम्मच मुँह में डाली तो तुरंत थूक दिया ।​ 
 ​और बोली ये क्या बनाया है ... ये कोई हलवा है​ ​इसमें चीनी नहीं नमक भरा है,​ 
 ​और आप इसे कैसे खा गए ये तो एकदम कड़वा है !!​ 
 ​पत्नी :- मेरे बनाये खाने में तो कभी नमक कम है कभी मिर्च तेज है कहते रहते हो​ 
 ​और बेटी को बजाय कुछ कहने के इनाम देते हो !!​ 
 ​पिता हँसते हुए : पगली ... तेरा मेरा तो जीवन भर का साथ है ...​
 ​रिश्ता है पति पत्नी का, जिसमे नोक झोक .. रूठना मनाना सब चलता है !!​ 
 ​मगर ये तो बेटी है कल चली जाएगी ।​
 ​आज इसे वो अहसास ... वो अपनापन महसूस हुआ जो मुझे इसके जन्म के समय हुआ था ।​ 
 ​आज इसने बड़े प्यार से पहली बार मेरे लिए कुछ बनाया है ,​ 
 ​फिर बो जैसा भी हो मेरे लिए सबसे बेहतर और सबसे स्वादिष्ट है !!​ 
 ​ये बेटिया अपने पापा की परीया और राजकुमारी होती है जैसे तुम अपने पापा की परी हो !!​ 
 ​वो रोते हुए पति के सीने से लग गई और सोच रही थी ... इसी लिए हर लड़की अपने पति में  अपने पापा की छवि ढूंढ़ती है !!​ 
 ​दोस्तों ... यही सच है,​ 
 ​हर बेटी अपने पिता के बड़े करीब होती है या यूँ कहें कलेजे का टुकड़ा​ 
 ​इसलिए शादी में विदाई के समय सबसे ज्यादा पिता ही रोता है !!​
 ​कई जन्मों की जुदाई के बाद बेटी का जन्म होता है ,​  ​इसलिए तो कन्या दान करना सबसे बड़ा पूण्य होता है 

Friday, September 28, 2018

संसार स्त्रीप्रधान है

एक राजा था ।.. उसने एक सर्वे करनेका सोचा कि 
मेरे राज्य के लोगों की घर गृहस्थि पति से चलती है या पत्नि से..। 
उसने एक ईनाम रखा कि "  जिसके घर में पतिका हुकम चलता हो उसे मनपसंद घोडा़ ईनाम में मिलेगा और जिसके घर में पत्नि की सरकार हो वह एक सेब ले जाए.. 
एक के बाद एक सभी नगरजन सेब उठाकर जाने लगे । राजाको चिंता होने लगी.. क्या मेरे राज्य में सभी सेब ही हैं ?
इतने में एक लम्बी लम्बी मुछों वाला, मोटा तगडा़ और लाल लाल आखोंवाला जवान आया और बोला 
" राजा जी मेरे घर में मेरा ही हुकम चलता है .. ला ओ घोडा़ मुझे दिजीए .."
राजा खुश हो गए और कहा जा अपना मनपसंद घोडा़ ले जा ..। जवान काला घोडा़ लेकर रवाना हो गया । 
घर गया और फिर थोडी़ देरमें दरबार में वापिस लौट आया।
राजा: " क्या हुआ जवामर्द ? वापिस क्यों आया !
जवान : " महाराज, घरवाली कहती है काला रंग अशुभ होता है, सफेद रंग शांति का प्रतिक होता है तो आप मुझे सफेद रंग का घोडा़ दिजिए
राजा: " घोडा़ रख ..और सेब लेकर चलती पकड़ ।
इसी तरह रात हो गई .. दरबार खाली हो गया लोग सेब लेकर चले गए ।
आधी रात को महामंत्री ने दरवाजा खटखटाया..
राजा : " बोलो महामंत्री कैसे आना हुआ ?
महामंत्री : " महाराज आपने सेब और घोडा़ ईनाम में रखा ,इसकी जगह एक मण अनाज या सोना महोर रखा होता तो लोग लोग कुछ दिन खा सकते या जेवर बना सकते ।
राजा :" मुझे तो ईनाम में यही रखना था लेकिन महारानी ने कहा कि सेब और घोडा़ ही ठीक है इसलिए वही रखा 
महामंत्री : " महाराज आपके लिए सेब काट दुँ..!!
राजा को हँसी आ गई । और पुछा यह सवाल तुम दरबारमें या कल सुबह भी पुछ सकते थे । तो आधी रात को क्यों आये ??
महामंत्री : " मेरी धर्मपत्नि ने कहा अभी जाओ और पुछ के आओ सच्ची घटना का पता चले ..।
राजा ( बात काटकर ) : " महामंत्री जी , सेब आप खुद ले लोगे या घर भेज दिया जाए ।"
 समाज चाहे पुरुषप्रधान हो लेकिन संसार स्त्रीप्रधान है 

Thursday, September 27, 2018

श्राद्ध का दिन

एक बार गुरु रामानंद ने कबीर से कहा कि हे कबीर! आज श्राद्ध का दिन है और पितरो के लिये खीर बनानी है. आप जाइये, पितरो की खीर के लिये दूध ले आइये....

कबीर उस समय 9 वर्ष के ही थे..
कबीर दूध का बरतन लेकर चल पडे.....चलते चलते आगे एक गाय मरी हुई पडी मिली....कबीर ने आस पास से घास को उखाड कर, गाय के पास डाल दिया और वही पर बैठ गये...!!!
दूध का बरतन भी पास ही रख लिया.....

काफी देर हो गयी, कबीर लौटे नहीं, तो गुरु रामानंद ने सोचा....
पितरो को छिकाने का टाइम हो गया है...कबीर अभी तक नही आया....तो रामानंद जी खुद चल पडे दूध लेने.
चले जा रहे थे तो आगे देखा कि कबीर एक मरी हुई गाय के पास बरतन रखे बैठे है...!!!

गुरु रामानंद बोले, अरे कबीर तू दूध लेने नही गया.?

कबीर बोले: स्वामीजी, ये गाय पहले घास खायेगी तभी तो दुध देगी...!!!

रामानंद बोले: अरे ये गाय तो मरी हुई है, ये घास कैसे खायेगी??

कबीर बोले: स्वामी जी, ये गाय तो आज मरी है....जब आज मरी गाय घास नही खा सकती...!!!
...तो आपके 100 साल पहले मरे हुए पितर खीर कैसे खायेगे...??

यह सुनते ही रामानन्दजी
मौन हो गये..!!
उन्हें अपनी भूल का ऐहसास
हुआ.!!
*
*जो जीवित है उनकी सेवा करो..!!*
*वही सच्चा श्राद्ध है.!!*

Tuesday, September 25, 2018

बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ

एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा, "आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी"

पति-"अगर हमारा लड़का होता है, तो मैं उसे गणित पढाऊगा, हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।" 

पत्नी - "अगर लड़की हुई तो...?" 
पति- "अगर हमारी लड़की होगी तो, मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत ही नही होगी"

"क्योंकि, उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी, कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।"

"एक तरह से वो, मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी, चाहे मैं उसके लिए कुछ खास करू या ना करू।"

"जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी। वो हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी।"

"यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।"

"वो मेरे लिए संसार से लडेगी, जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी।"

पत्नी - "कहने का मतलब है कि, आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा।"

पति- "नहीं, नहीं क्या पता मेरा बेटा भी ऐसा ही करेगा, पर वो सिखेगा।"

"परंतु बेटी, इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है।"

पत्नी -  "पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी...?"

पति- "हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे।"

"इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए, बेटियाँ परी होती हैं"

"जो सदा बिना शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।"

*"बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ होती हैं*
*जो घर खुदा को पसंद हो, वहां होती हैं"*

Saturday, September 22, 2018

गुरु की कृपा

काशी नगर के एक धनी सेठ थे, जिनके कोई संतान नही थी । बड़े-बड़े विद्वान् ज्योतिषो से सलाह-मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला । सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठजी को किसी ने सलाह दी की आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते है तब भगवान "राम" स्वयं कथा सुनने आते हैं । इसलिये उनसे कहना कि भगवान् से पूछे की आपके संतान कब होगी ।

सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते है और अपनी समस्या के बारे में भगवान् से बात करने को कहते हैं। कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है, की प्रभु वो सेठजी आये थे, जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे । तब भगवान् ने कहा कि गोवास्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं इस कारण उनके तो सात जन्मो तक संतान नही लिखी हुई हैं ।

दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं । सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते हैं  ।
थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते है। और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है की भिक्षा दो फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं । तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी । व्यापारी की पत्नी उसे दो रोटी दे देती है । उससे प्रसन्न होकर संत ये कहकर चला जाता है कि जाओ तुम्हारे दो संतान होगी ।

एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वाँ संताने हो जाती है । कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता हैं । व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते है । उन्हें देखकर वे व्यापारी से पूछते है की ये बच्चे किसके है। व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही है । आपने तो झूठ बोल दिया की भगवान् ने कहा की मेरे संतान नही होगी, पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वा संताने हुई है  । 

गोस्वामी जी ये सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते है । फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं । उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है ।

शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं, तो भगवान् उनसे पूछते है कि-- गोस्वामी जी आज क्या बात है ? चिन्तित मुद्रा में क्यों हो ? तो गोस्वामी जी कहते है की प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा पटक दिया । आपने तो कहा ना कि व्यापारी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है फिर उसके दो संताने कैसे हो गई ।

तब भगवान् बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता क्योकि में नियमो की मर्यादा में बंधा हूँ । पर अगर.. मेरे किसी भक्त ने उन्हें कह दिया की तुम्हारे संतान होगी, तो उस समय में भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी। क्योकि में भी मेरे भक्तों की मर्यादा से बंधा हूँ । मै मेरे भक्तो के वचनों को काट नही सकता मुझे मेरे भक्तों की बात रखनी पड़ती हैं । इसलिए गोस्वामी जी अगर आप भी उसे कह देते की जा तेरे संतान हो जायेगी तो - - *मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वो सब कुछ देना पड़ता हैं जो उसके नही लिखा हैं ।*
मित्रों कहानी से तात्पर्य यही हैं कि भले हीं विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो , पर अगर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नही 
भाग लिखी मिटे नही, लिखे विधाता लेख
मिल जावे गुरु मेहर तो, लगे लेख पे मेख ।।
भाग्य में लिखा विधाता का लेख मिट नही सकता । पर किसी पर गुरु की मेहरबानी हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता हैं

एक बीज की कहानी