Thursday, July 12, 2018

भाग्य

एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है...
नारदमुनि ने कहा - भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा...
नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है...
आदमी बहुत खुश रहने लगा...
उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी...
एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ...
आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना...
इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को...
मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है...
अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई...
उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है...??
नारदमुनि ने कहा - तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या...??
हाँ हुई है...
तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है...
इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे...
एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी...
फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है...
क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ...??
मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है...
हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है...
किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता...
लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया,,,मैंने कमाया,,,
मेरा है,,,
मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है...
हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है

Saturday, July 7, 2018

हमेशा अच्छा करो

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।*
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।*
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"*
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा....*
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"*
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली -"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"*
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई ओर वह बोली - "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।*
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके, "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।*
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।*
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।*
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।*
वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।*
जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।*
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"*
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया.....।*
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला कर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?*
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था -*
जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"*
              *" निष्कर्ष "*
*हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..

Thursday, July 5, 2018

किस्मत की आदत

कृष्ण और सुदामा का प्रेम बहुत गहरा था। प्रेम भी इतना कि कृष्ण, सुदामा को रात दिन अपने साथ ही रखते थे। 
कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते।
एक दिन दोनों वनसंचार के लिए गए और रास्ता भटक
गए। भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ पर एक
ही फल लगा था। 
कृष्ण ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा। कृष्ण ने फल के छह टुकड़े
किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा सुदामा को दिया।
सुदामा ने टुकड़ा खाया और बोला,
'बहुत स्वादिष्ट! ऎसा फल कभी नहीं खाया। एक
टुकड़ा और दे दें। दूसरा टुकड़ा भी सुदामा को मिल
गया।
 सुदामा ने एक टुकड़ा और कृष्ण से मांग
लिया। इसी तरह सुदामा ने पांच टुकड़े मांग कर खा
लिए।
जब सुदामा ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो कृष्ण ने
कहा, 'यह सीमा से बाहर है। आखिर मैं भी तो भूखा
हूं। 
मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं
करते।' और कृष्ण ने फल का टुकड़ा मुंह में रख
लिया।
मुंह में रखते ही कृष्ण ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह
कड़वा था।
कृष्ण बोले,
'तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?
उस सुदामा का उत्तर था,
'जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक
कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं?
 सब टुकड़े इसलिए
लेता गया ताकि आपको पता न चले।
दोस्तों जँहा मित्रता हो वँहा संदेह न हो, आओ
कुछ ऐसे रिश्ते रचे...
कुछ हमसे सीखें , कुछ हमे
सिखाएं. अपने इस ग्रुप को कारगर बनायें।
 किस्मत की एक आदत है कि
वो पलटती जरुर है 
और जब पलटती है,
 तब सब कुछ पलटकर रख देती है।
इसलिये अच्छे दिनों मे अहंकार
न करो और 
खराब समय में थोड़ा सब्र करो

Sunday, July 1, 2018

समय" तो "प्रभु के ही हाथ" में हैं न

वे एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए
जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..
.
संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी
.
अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी..
.
संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है.. 
.
चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..
.
संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला..
.
उन्होंने देखा लड्डू में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए
.
बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए
.
पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना
.
बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..
.
सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..
.
बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए
.
कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था, 
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अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!
.
पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!
.
मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया
.
नहीं मुझे वापस जाना होगा..
.
और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।
.
उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए
.
मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ
.
दूकानदार ने देखा तो आया..
.
महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..
.
संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी
.
इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!
.
दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया
.
इधर दुकानदार रो रहा था... उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!
.
बात भाव की है.. बात उस निर्मल मन की है.. बात ब्रज की है.. बात मेरे वृन्दावन की है.. 
.
बात मेरे नटवर नागर और उनकी राधारानी की है.. बात मेरे कृष्ण की राजधानी की है।

बूझो तो बहुत कुछ है.. नहीं तो बस पागलपन है.. बस एक कहानी

          घर से जब भी बाहर जाये
 तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर   
                 मिलकर जाएं
                       और
 जब लौट कर आए तो उनसे जरूर मिले
                    क्योंकि
 उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार     
                    रहता है
*"घर" में यह नियम बनाइए की जब भी आप घर से बाहर निकले तो घर में मंदिर के पास दो घड़ी खड़े रह कर कहें * 
               "प्रभु चलिए..
        आपको साथ में रहना हैं"..!
     *ऐसा बोल कर ही घर से निकले *
           * क्यूँकिआप भले ही*
"लाखों की घड़ी" हाथ में क्यूँ ना पहने हो        
                      पर
  * "समय" तो "प्रभु के ही हाथ" में हैं न*

Thursday, June 28, 2018

जरा सोचना

बन्दरों का एक समूह था,
 जो फलो के बगिचों मे फल तोड़ कर खाया करते थे। 
माली की मार और डन्डे भी खाते थे, 
रोज पिटते भी थे ।
उनका एक सरदार भी था 
जो सभी बंदरो से ज्यादा समझदार था। एक दिन बन्दरों के कर्मठ और जुझारू सरदार ने सब बन्दरों से विचार-विमर्श कर निश्चय किया 
कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है 
कि यदि हम अपना फलों का बगीचा लगा लें 
तो इतने फल मिलेंगे की हर एक के हिस्से मे 15-15 फल आ सकते है, 
हमे फल खाने मे कोई रोक टोक भी नहीं होगी और हमारे
 अच्छे दिन आ जाएंगे ।
सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया । 
जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ।
पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया 
और सुबह देखा तो फलो के पौधे 
भी नहीं आये थे ! 
जिसे देखकर बंदर भड़क गए 
और सरदार को गरियाने लगे 
और नारे लगाने लगे, "कहा है हमारे 15-15 फल"???
 "क्या यही अच्छे दिन है?" 
सरदार ने इनकी मुर्खता पर अपना सिर पिट लिया
 और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोला, " अभी तो हमने बीज बोया है, 
मुझे थोड़ा समय और दे दो, 
फल आने मे थोड़ा समय लगता है।" 
इस बार तो बंदर मान गए।
दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया, परन्तु पौधे नहीं आये, अब 
मुर्ख बन्दरों से नही रहा  गया 
तो उन्होंने मिट्टी हटाई - देखा 
फलो के बीज जैसे के तैसे मिले ।
बन्दरों ने कहा - सरदार फेकु है, 
झूठ बोलते हैं । 
हमारे कभी अच्छे दिन नही आने वाले । 
हमारी किस्मत में तो माली के डन्डे ही 
लिखे हैं और बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर फलो के बीज निकाल निकाल कर फेंक दिये । पुन: अपने भोजन के लिये माली की मार और डन्डे खाने लगे ।
 जरा सोचना कहीं हम भी तो  बन्दरों वाली हरकत तो नहीं कर रहे हो..?

Sunday, June 24, 2018

मन की हालत

एक बार एक सेठ ने पंडित जी को निमंत्रण किया पर पंडित जी का एकादशी का व्रत था तो  पंडित जी नहीं जा सके पर पंडित जी ने अपने दो शिष्यो को सेठ के यहाँ भोजन के लिए भेज दिया.

पर जब दोनों शिष्य वापस लौटे तो उनमे एक शिष्य दुखी और दूसरा प्रसन्न था!

पंडित जी को देखकर आश्चर्य हुआ और पूछा बेटा क्यो दुखी हो -- क्या सेठ नेभोजन मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी" 

क्या सेठ ने आसन मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी" 

क्या सेठ ने दच्छिना मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी ,बराबर दच्छिना दी 2 रुपये मुझे और 2 रुपये दूसरे को"

अब तो गुरु जी को और भी आश्चर्य हुआ और पूछा फिर क्या कारण है ? 
जो तुम दुखी हो ?

तब दुखी चेला बोला गुरु जी मे तो सोचता था सेठ बहुत बड़ा आदमी है कम से कम 10 रुपये दच्छिना देगा पर उसने 2 रुपये दिये इसलिए मे दुखी हू !!

अब दूसरे से पूछा तुम क्यो प्रसन्न हो ?

तो दूसरा बोला गुरु जी मे जानता था सेठ बहुत कंजूस है आठ आने से ज्यादा दच्छिना नहीं देगा पर उसने 2 रुपए दे दिये तो मे प्रसन्न हू ...!

बस यही हमारे मन का हाल है संसार मे घटनाए समान रूप से घटती है पर कोई उनही घटनाओ से सुख प्राप्त करता है कोई दुखी होता है ,पर असल मे न दुख है न सुख ये हमारे मन की स्थिति पर निर्भर है!

इसलिए मन प्रभु चरणों मे लगाओ ,क्योकि - कामना पूरी न हो तो दुख और कामना पूरी हो जाये तो सुख पर यदि कोई कामना ही न हो तो आनंद ...
जिस शरीर को लोग सुन्दर समझते हैं।
मौत के बाद वही शरीर सुन्दर क्यों नहीं लगता ? 
उसे घर में न रखकर जला क्यों दिया जाता है ? 
जिस शरीर को सुन्दर मानते हैं।
जरा उसकी चमड़ी तो उतार कर देखो।
तब हकीकत दिखेगी कि भीतर क्या है ?  
भीतर तो बस 
रक्त, 
रोग, 
मल 
और 
कचरा 
भरा पड़ा है ! 
फिर यह शरीर सुन्दर कैसे हुआ.?
शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है ! 
सुन्दर होते हैं 
व्यक्ति के कर्म, 
उसके विचार, 
उसकी वाणी, 
उसका व्यवहार, 
उसके  संस्कार, 
और 
उसका चरित्र !  
जिसके जीवन में यह सब है।
वही इंसान दुनियां का सबसे सुंदर शख्स है .... !!

Sunday, June 17, 2018

प्रायश्चित

एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए
जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..
संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी
अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी..
संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है.. 
चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..
संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला..
उन्होंने देखा लड्डू में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए
बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए
पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना
बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..
सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..
बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए
कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था, 
अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!
पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!
मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया
नहीं मुझे वापस जाना होगा..
और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।
उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए
मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ
दूकानदार ने देखा तो आया..
महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..
संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी
इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!
दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया
इधर दुकानदार रो रहा था... उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!