Thursday, June 28, 2018

जरा सोचना

बन्दरों का एक समूह था,
 जो फलो के बगिचों मे फल तोड़ कर खाया करते थे। 
माली की मार और डन्डे भी खाते थे, 
रोज पिटते भी थे ।
उनका एक सरदार भी था 
जो सभी बंदरो से ज्यादा समझदार था। एक दिन बन्दरों के कर्मठ और जुझारू सरदार ने सब बन्दरों से विचार-विमर्श कर निश्चय किया 
कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है 
कि यदि हम अपना फलों का बगीचा लगा लें 
तो इतने फल मिलेंगे की हर एक के हिस्से मे 15-15 फल आ सकते है, 
हमे फल खाने मे कोई रोक टोक भी नहीं होगी और हमारे
 अच्छे दिन आ जाएंगे ।
सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया । 
जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ।
पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया 
और सुबह देखा तो फलो के पौधे 
भी नहीं आये थे ! 
जिसे देखकर बंदर भड़क गए 
और सरदार को गरियाने लगे 
और नारे लगाने लगे, "कहा है हमारे 15-15 फल"???
 "क्या यही अच्छे दिन है?" 
सरदार ने इनकी मुर्खता पर अपना सिर पिट लिया
 और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोला, " अभी तो हमने बीज बोया है, 
मुझे थोड़ा समय और दे दो, 
फल आने मे थोड़ा समय लगता है।" 
इस बार तो बंदर मान गए।
दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया, परन्तु पौधे नहीं आये, अब 
मुर्ख बन्दरों से नही रहा  गया 
तो उन्होंने मिट्टी हटाई - देखा 
फलो के बीज जैसे के तैसे मिले ।
बन्दरों ने कहा - सरदार फेकु है, 
झूठ बोलते हैं । 
हमारे कभी अच्छे दिन नही आने वाले । 
हमारी किस्मत में तो माली के डन्डे ही 
लिखे हैं और बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर फलो के बीज निकाल निकाल कर फेंक दिये । पुन: अपने भोजन के लिये माली की मार और डन्डे खाने लगे ।
 जरा सोचना कहीं हम भी तो  बन्दरों वाली हरकत तो नहीं कर रहे हो..?

Sunday, June 24, 2018

मन की हालत

एक बार एक सेठ ने पंडित जी को निमंत्रण किया पर पंडित जी का एकादशी का व्रत था तो  पंडित जी नहीं जा सके पर पंडित जी ने अपने दो शिष्यो को सेठ के यहाँ भोजन के लिए भेज दिया.

पर जब दोनों शिष्य वापस लौटे तो उनमे एक शिष्य दुखी और दूसरा प्रसन्न था!

पंडित जी को देखकर आश्चर्य हुआ और पूछा बेटा क्यो दुखी हो -- क्या सेठ नेभोजन मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी" 

क्या सेठ ने आसन मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी" 

क्या सेठ ने दच्छिना मे अंतर कर दिया ? 

"नहीं गुरु जी ,बराबर दच्छिना दी 2 रुपये मुझे और 2 रुपये दूसरे को"

अब तो गुरु जी को और भी आश्चर्य हुआ और पूछा फिर क्या कारण है ? 
जो तुम दुखी हो ?

तब दुखी चेला बोला गुरु जी मे तो सोचता था सेठ बहुत बड़ा आदमी है कम से कम 10 रुपये दच्छिना देगा पर उसने 2 रुपये दिये इसलिए मे दुखी हू !!

अब दूसरे से पूछा तुम क्यो प्रसन्न हो ?

तो दूसरा बोला गुरु जी मे जानता था सेठ बहुत कंजूस है आठ आने से ज्यादा दच्छिना नहीं देगा पर उसने 2 रुपए दे दिये तो मे प्रसन्न हू ...!

बस यही हमारे मन का हाल है संसार मे घटनाए समान रूप से घटती है पर कोई उनही घटनाओ से सुख प्राप्त करता है कोई दुखी होता है ,पर असल मे न दुख है न सुख ये हमारे मन की स्थिति पर निर्भर है!

इसलिए मन प्रभु चरणों मे लगाओ ,क्योकि - कामना पूरी न हो तो दुख और कामना पूरी हो जाये तो सुख पर यदि कोई कामना ही न हो तो आनंद ...
जिस शरीर को लोग सुन्दर समझते हैं।
मौत के बाद वही शरीर सुन्दर क्यों नहीं लगता ? 
उसे घर में न रखकर जला क्यों दिया जाता है ? 
जिस शरीर को सुन्दर मानते हैं।
जरा उसकी चमड़ी तो उतार कर देखो।
तब हकीकत दिखेगी कि भीतर क्या है ?  
भीतर तो बस 
रक्त, 
रोग, 
मल 
और 
कचरा 
भरा पड़ा है ! 
फिर यह शरीर सुन्दर कैसे हुआ.?
शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है ! 
सुन्दर होते हैं 
व्यक्ति के कर्म, 
उसके विचार, 
उसकी वाणी, 
उसका व्यवहार, 
उसके  संस्कार, 
और 
उसका चरित्र !  
जिसके जीवन में यह सब है।
वही इंसान दुनियां का सबसे सुंदर शख्स है .... !!

Sunday, June 17, 2018

प्रायश्चित

एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए
जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..
संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी
अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी..
संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है.. 
चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..
संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला..
उन्होंने देखा लड्डू में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए
बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए
पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना
बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..
सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..
बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए
कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था, 
अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!
पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!
मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया
नहीं मुझे वापस जाना होगा..
और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।
उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए
मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ
दूकानदार ने देखा तो आया..
महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..
संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी
इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!
दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया
इधर दुकानदार रो रहा था... उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!

Thursday, June 14, 2018

स्वर्ग का सेब

 एक बार स्वर्ग से घोषणा हुई कि भगवान सेब बॉटने आ रहे है सभी लोग भगवान के प्रसाद के लिए तैयार हो कर लाइन लगाकर खड़े हो गए। एक छोटी बच्ची बहुत उत्सुक थी क्योंकि वह पहली बार भगवान को देखने जा रही थी।एक बड़े और सुंदर सेब के साथ साथ भगवान के दर्शन की कल्पना से ही खुश थी।अंत में प्रतीक्षा समाप्त हुई। बहुत लंबी कतार में जब उसका नम्बर आया तो भगवान ने उसे एक बड़ा और लाल सेब दिया। लेकिन जैसे ही उसने सेब पकड़कर लाइन से बाहर निकली उसका सेब हाथ से छूटकर कीचड़ में गिर गया। बच्ची उदास हो गई।अब उसे दुबारा से लाइन में लगना पड़ेगा। दूसरी लाइन पहली से भी लंबी थी।लेकिन कोई और रास्ता नहीं था। सब लोग ईमानदारी से अपनी बारी बारी से सेब लेकर जा रहे थे।
        अन्ततः वह बच्ची फिर से लाइन में लगी और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगी।आधी क़तार को सेब मिलने के बाद सेब ख़त्म होने लगे। अब तो बच्ची बहुत उदास हो गई। उसने सोचा कि उसकी बारी आने तक तो सब सेब खत्म हो जाएंगे। लेकिन वह ये नहीं जानती थी कि भगवान के भंडार कभी ख़ाली नही होते।जब तक उसकी बारी आई तो और भी नए सेब आ गए ।
    भगवान तो अन्तर्यामी होते हैं। बच्ची के मन की बात जान गए।उन्होंने इस बार बच्ची को सेब देकर कहा कि पिछली बार वाला सेब एक तरफ से सड़ चुका था। तुम्हारे लिए सही नहीं था इसलिए मैने ही उसे तुम्हारे हाथों गिरवा दिया था। दूसरी तरफ लंबी कतार में तुम्हें इसलिए लगाया क्योंकि नए सेब अभी पेडों पर थे। उनके आने में समय बाकी था। इसलिए  तुम्हें अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ी। 
ये सब अधिक लाल, सुंदर और तुम्हारे लिए उपयुक्त है। भगवान की बात सुनकर बच्ची संतुष्ट हो कर गई 
इसी प्रकार यदि आपके किसी काम में विलंब हो रहा है तो उसे भगवान की इच्छा मानकर स्वीकार करें। भगवान अपने बच्चों को वही देंगे जो उनके लिए उत्तम होगा। ईमानदारी से अपनी बारी की प्रतीक्षा करने में सबकी भलाई है। 

Monday, June 11, 2018

देखने का नज़रिया

एक माँ अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने विदेश में रहने वाले बेटे से विडियो चैट करते वक्त पूछ बैठी-

"बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या नहीं?"

बेटा बोला-

"माँ, मैं एक जीव वैज्ञानिक हूँ। मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ। विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन.. क्या आपने उसके बारे में सुना भी है?"

उसकी माँ मुस्कुराई और बोली.....
"मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ बेटा.. उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है।"
“हो सकता है माँ!” बेटे ने भी व्यंग्यपूर्वक कहा।
“यदि तुम कुछ समझदार हो, तो इसे सुनो..” उसकी माँ ने प्रतिकार किया। “क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है? 
विष्णु के दस अवतार?”
बेटे ने सहमति में कहा...
"हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना?"
माँ फिर बोली-
"लेना-देना है.. मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हो ?"

“पहला अवतार था 'मत्स्य', यानि मछली। ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ। यह बात सही है या नहीं?”
बेटा अब ध्यानपूर्वक सुनने लगा..
“उसके बाद आया दूसरा अवतार 'कूर्म', अर्थात् कछुआ। क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया.. 'उभयचर (Amphibian)', तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर के विकास को दर्शाया।” 

“तीसरा था 'वराह' अवतार, यानी सूअर। जिसका मतलब वे जंगली जानवर, जिनमें अधिक बुद्धि नहीं होती है। तुम उन्हें डायनासोर कहते हो।”
बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई..

“चौथा अवतार था 'नृसिंह', आधा मानव, आधा पशु। जिसने दर्शाया जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों का विकास।”

“पांचवें 'वामन' हुए, बौना जो वास्तव में लंबा बढ़ सकता था। क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों है? क्योंकि मनुष्य दो प्रकार के होते थे- होमो इरेक्टस(नरवानर) और होमो सेपिअंस (मानव), और होमो सेपिअंस ने विकास की लड़ाई जीत ली।”
बेटा दशावतार की प्रासंगिकता सुन के स्तब्ध रह गया..

माँ ने बोलना जारी रखा-
“छठा अवतार था 'परशुराम', जिनके पास शस्त्र (कुल्हाड़ी) की ताकत थी। वे दर्शाते हैं उस मानव को, जो गुफा और वन में रहा.. गुस्सैल और असामाजिक।”

“सातवां अवतार थे 'मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम', सोच युक्त प्रथम सामाजिक व्यक्ति। जिन्होंने समाज के नियम बनाए और समस्त रिश्तों का आधार।”

“आठवां अवतार थे 'भगवान श्री कृष्ण', राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी। जिन्होंने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में रहकर कैसे फला-फूला जा सकता है।”
बेटा सुनता रहा, चकित और विस्मित..

माँ ने ज्ञान की गंगा प्रवाहित रखी -
“नवां अवतार थे 'महात्मा बुद्ध', वे व्यक्ति जिन्होंने नृसिंह से उठे मानव के सही स्वभाव को खोजा। उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की।”

“..और अंत में दसवां अवतार 'कल्कि' आएगा। वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो.. वह मानव, जो आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठतम होगा।”
बेटा अपनी माँ को अवाक् होकर देखता रह गया..

अंत में वह बोल पड़ा-
“यह अद्भुत है माँ.. हिंदू दर्शन वास्तव में अर्थपूर्ण है!”

वेद, पुराण, ग्रंथ, उपनिषद इत्यादि सब अर्थपूर्ण हैं। सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए। फिर चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिकता...!

Friday, June 8, 2018

लीला और शक्ति

एक गाँव में एक वृद्ध स्त्री रहती थीं । उसका कोई
नहीं था, वो गोबर के उपले बनाकर बेचती थी और उसी से
अपना गुजारा चलाती थीं | पर उस स्त्री की एक
विशेषता थी वो कृष्ण भक्त थीं , उठते बैठते कृष्ण नामजप
किया करती थीं यहाँ तक उपले बनाते समय भी | उस
गाँव के कुछ दुष्ट लोग उसकी भक्ति का उपहास करते और
एक दिन तो उन दुष्टों ने एक रात उस वृद्ध स्त्री के सारे
उपले चुरा लिए और आपस में कहने लगे कि अब देखें कृष्ण कैसे
इसकी सहयता करते हैं | सुबह जब वह उठीं तो देखती है
कि सारे उपले किसी ने चुरा लिए | वे मन ही मन हंसने
लगी और अपने कान्हा को कहने लगीं , “पहले माखन
चुराता था और मटकी फोड़
गोपियों को सताता था अब इस बुढ़िया के उपले
छुपा मुझे सताता है, ठीक है जैसी तेरी इच्छा” यह कह
उसने अगले दिन के लिए उपले बनाना आरंभ कर दिये |
दोपहर हो चली तो भूख लग गयी पर घर में कुछ खाने
को नहीं था, दो गुड की डली थीं अतः एक अपने मुह में
डाल पानी के कुछ घूंट ले लेटने चली गयी | भगवान
तो भक्त वत्सल होते हैं अतः अपने भक्त को कष्ट
होता देख वे विचलित हो जाते हैं , उनसे उस वृद्ध
साधिका के कष्ट सहन नहीं हो पाये |
सोचा उसकी सहायता करने से पहले उसकी परीक्षा ले
लेता हूँ अतः वे एक साधू का वेश धारण कर उसके घर पहुँच कुछ खाने को मांगने लगे , वृद्ध स्त्री को अपने घर आए एक साधू को देख आनंद तो हुआ पर घर में कुछ खाने को न था यह सोच दुख भी हुआ उसने गुड
की इकलौती डली बाबा को शीतल जल के साथ खाने
को दे दी | बाबा उस स्त्री के त्याग को देख प्रसन्न
हो गए और जब वृद्ध स्त्री ने
बाबा को अपना सारा वृतांत सुनाया तो बाबा उन्हें
सहायता का आश्वासन दे चले गए और गाँव के सरपंच के यहाँ पहुंचे | सरपंच से कहा , “सुना है इस गाँव के बाहर जो वृद्ध स्त्री रहती है उसके उपले किसी ने चुरा लिए, मेरे पास एक सिद्धि है यदि गाँव के सभी लोग अपने उपले ले आयें तो मैं अपनी सिद्धि के बल पर उस वृद्ध स्त्री के सारे उपले अलग कर दूंगा” | सरपंच एक भला व्यक्ति था उसे भी वृद्ध स्त्री के उपले चोरी होने का दुख था अतः उन्होने साधू बाबा रूपी कृष्ण की बात तुरंत
मान ली और गाँव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सब
अपने घर के उपले तुरंत गाँव की चौपाल पर लाकर रखें | जिन दुष्ट लोगों ने चोरी की थी उन्होंने भी वृद्ध स्त्री के
उपले अपने उपलों में मिलाकर उस ढेर में एकत्रित कर दिये |
उन्हें लगा कि सब उपले तो एक जैसे होते हैं अतः साधू
बाबा कैसे पहचान पाएंगे | दुर्जनों को ईश्वर
की लीला और शक्ति दोनों पर ही विश्वास
नहीं होता | साधू वेशधारी कृष्ण ने सब उपलों को कान
लगाकर वृद्ध स्त्री के उपले अलग कर दिये | वृद्ध स्त्री अपने उपलों को तुरंत पहचान गयी और
उसकी प्रसन्नता का तो ठिकाना ही नहीं था , वो
अपने उपले उठा , साधू बाबा को नमस्कार कर
चली गयी | जिन दुष्टों ने वृद्ध स्त्री के उपले चुराए थे उन्हें यह समझ में नहीं आया कि बाबा ने कान लगाकर उन
उपलों को कैसे पहचाना, अतः जब बाबा गाँव से कुछ दूर निकल आए तो वे दुष्ट, बाबा से इसका कारण जानने
पहुंचे , बाबा ने सरलता से कहा कि “वृद्ध स्त्री सतत ईश्वर
का नाम जप करती थी और उसके नाम में इतनी आर्तता थी कि वह उपलों में भी चला गया , कान लगाकर वे यह सुन रहे थे कि किन उपलों से कृष्ण का नाम
निकलता है और जिनसे कृष्ण का नाम निकल
रहा था उन्होने उन्हे अलग कर दिया” ।

Wednesday, June 6, 2018

तीन बीबीयाँ

गुरूजी विद्यालय से घर लौट रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ती थी । नदी पार करने लगे तो ना जाने क्या सूझा ,
एक पत्थर पर बैठ अपने झोले में से पेन और कागज निकाल अपने वेतन का  हिसाब  निकालने लगे । अचानक…..,
हाथ से पेन फिसला और डुबुक …. पानी में डूब गया । गुरूजी परेशान । आज ही सुबह पूरे पांच रूपये खर्च कर खरीदा था । कातर दृष्टि से कभी इधर कभी उधर देखते , पानी में उतरने का प्रयास करते , फिर डर कर कदम खींच लेते ।
एकदम नया पेन था , छोड़ कर जाना भी मुनासिब न था । अचानक……. पानी में एक तेज लहर उठी , और साक्षात् वरुण देव सामने थे । गुरूजी हक्के -बक्के । कुल्हाड़ी वाली कहानी याद आ गई । वरुण देव ने कहा , ”गुरूजी, क्यूँ इतने परेशान हैं । प्रमोशन , तबादला , वेतनवृद्धि ,क्या चाहिए ? गुरूजी अचकचाकर बोले , ” प्रभु ! आज ही सुबह एक पेन खरीदा था । पूरे पांच रूपये का । देखो ढक्कन भी मेरे हाथ में है । यहाँ पत्थर पर बैठा लिख रहा था कि पानी में गिर गया  प्रभु बोले , ” बस इतनी सी बात ! अभी निकाल लाता हूँ ।” प्रभु ने डुबकी लगाई , और चाँदी का एक चमचमाता पेन लेकर बाहर आ गए । बोले – ये है आपका पेन ? गुरूजी बोले – ना प्रभु । मुझ गरीब को कहाँ ये चांदी का पेन नसीब । ये मेरा नाहीं । प्रभु बोले – कोई नहीं , एक डुबकी और लगाता हूँ  डुबुक ….. इस बार प्रभु सोने का रत्न जडित पेन लेकर आये। बोले – “लीजिये गुरूजी , अपना पेन ।” गुरूजी बोले – ” क्यूँ मजाक करते हो प्रभु । इतना कीमती पेन और वो भी मेरा । मैं टीचर हूँ । थके हारे प्रभु ने कहा , ” चिंता ना करो गुरुदेव । अबके फाइनल डुबकी होगी । डुबुक ….  बड़ी देर बाद प्रभु उपर आये । हाथ में गुरूजी का जेल पेन लेकर ।बोले – ये है क्या ? गुरूजी चिल्लाए – हाँ यही है , यही है ।
प्रभु ने कहा – आपकी इमानदारी ने मेरा दिल जीत लिया गुरूजी । आप सच्चे गुरु हैं । आप ये तीनों पेन ले लो । गुरूजी ख़ुशी – ख़ुशी घर को चले ।

कहानी अभी बाकी है दोस्तों —
गुरूजी ने घर आते ही सारी कहानी पत्नी जी को सुनाई  चमचमाते हुवे कीमती पेन भी दिखाए । पत्नी को विश्वास ना हुवा , बोली तुम किसी का चुरा कर लाये हो । बहुत समझाने पर भी जब पत्नी जी ना मानी  तो गुरूजी उसे घटना स्थल की ओर ले चले । दोनों उस पत्थर पर बैठे ,  गुरूजी ने बताना शुरू किया कि कैसे – कैसे सब हुवा  पत्नी एक एक कड़ी को किसी शातिर पुलिसिये की तरह जोड़ रही थी कि  अचानक ……. डुबुक !!!  पत्नी का पैर फिसला , और वो गहरे पानी में समा गई । गुरूजी की आँखों के आगे तारे नाचने लगे । ये क्या हुवा ! जोर -जोर से रोने लगे । तभी अचानक पानी में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगी । नदी का सीना चीरकर साक्षात वरुण देव प्रकट हुवे । बोले – क्या हुआ गुरूजी ? अब क्यूँ रो रहे हो ? गुरूजी ने रोते हु story प्रभु को सुनाई । प्रभु बोले – रोओ मत। धीरज रखो । मैं अभी आपकी पत्नी को निकाल कर लाता हूँ। प्रभु ने डुबकी लगाईं , और ….. थोड़ी देर में वो  कैटरीना को लेकर प्रकट हुवे ।  बोले –गुरूजी क्या यही आपकी पत्नी जी है ?? गुरूजी ने एक क्षण सोचा , और चिल्लाए – हाँ यही है , यही है । अब चिल्लाने की बारी प्रभु की थी । बोले – दुष्ट मास्टर । ठहर तुझे श्राप देता हूँ । गुरूजी बोले – माफ़ करें प्रभु । मेरी कोई गलती नहीं ।
अगर मैं इसे मना करता तो आप अगली डुबकी में प्रियंका चोपड़ा को लाते । मैं फिर भी मना करता तो आप मेरी पत्नी को लाते । फिर आप खुश होकर तीनों मुझे दे देते । अब आप ही बताओ भगवन ,  इस महंगाई के जमाने में 
7th pay Commission ने भी रुला दिया

अब मैं तीन – तीन बीबीयाँ कैसे पालता ।इन तीन तीन गृहलक्ष्मियों का बोझ प्रभू मुझसे नहीं उठेगा।
क्षमा करे प्रभू।
इसलिये सोचा , कैटरीना से ही काम चला लूँगा ।