Sunday, April 2, 2017

कुबड़े से निजात

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।*

*वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।*

*एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"*

*दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..*

*वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"*

*वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की-"कितना अजीब व्यक्ति है,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"*

*एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली-"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"*

*और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..

Saturday, April 1, 2017

टेढ़ी पूड़ीयाँ

बहू ! आज  माताजी का पूजन करना है घर में ही पूड़ीयाँ , हलवा  और चने का प्रशाद बनेगा ।"
.
"ओहो ! ये त्योहार भी आज ही आना था और ऊपर से ये पुराने रीतिरिवाज ढ़ोने वाली ये सास । इनके मुंह में तो जुबान  ही नहीं है जो कुछ  कह सकें माँ से ! "
.
"अरे! यार कभी तो माँ की भी मान लिया करो  , हमेशा अपनी ही चलाती हो । इस बार तो अपनी मनमर्जी  को लगाम  दो! "
.
"तुम्हें मालूम है न ....मुझसे ये सब  नहीं होने वाला है । रही बात बच्चियों में देवी माँ को देखने की तो मैं समझती हूँ कि अब जिस तरह से छोटी -छोटी देवियाँ राक्षसों द्वारा हलाल की जा  रहीं हैं , पूजा  से ज्यादा उन्हें बचाने की जरूरत है ।"
.
"ये तुम  और तुम्हारी  समाज सेवा मैं  तो समझ सकता हूँ  मगर माँ  नहीं समझेगी और ज्यादा देर हुई तो  वो खुद   बैठ जाएंगी रसोई में और फिर जो होगा तुम जानती ही हो । "
.
"कोई चिंता की  जरूरत नहीं है मुझे मालूम था कि आज  ये सब होने वाला है और मैं पहले ही इंतजाम करके आई थी रात को ही । पंडित जी सुबह नौ बजे आएंगे और साथ ही  बच्चियाँ भी आएंगी ।"
.
लगभग एक घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी तो पंडित जी  के साथ दस बारह बच्चियाँ भी थी । पूजा स्थान पर पंडित जी को सामान देकर वह सास को भी बुला लाई । पूजा  अच्छी तरह से सम्पन्न हुई अब भोग लगाने की बारी थी । 
.
"जाओ बहू  भोग का सामान ले आओ !"
.
"लंच  बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की कई थैलियाँ बहू ने सामने रख दीं । "
.
"अरे! ये क्या है ? कन्या पूजन करना है मुझे ! देवी को भोग लगाना है । प्रसाद क्या बनाया है वो लेकर आओ ।"
.
"माँ ! देवी तो कोई प्रसाद नहीं खाती उन्हें जो भी भोग लगा दो वे ग्रहण कर लेती है । ये बच्चियाँ भी देवी का ही रूप हैं । मैंने इनके लिए पनीर, पुलाव  बनाया  है और रोटियाँ हैं मिठाई बाहर से मँगवा ली  है । इसी का भोग लगेगा आज !"
.
"राम राम राम ! कैसी बात कर रही हो बहू ? क्या तुम पूजा को भी मज़ाक समझती हो ? देवी माँ नाराज  हो जाएंगी !"
.
"माँ जी ! ये तो मैं नहीं जानती कि देवी माँ नाराज  होंगी या नहीं पर ये जरूर जानती हूँ कि ये बच्चियाँ जो मैंने पास की गरीब बस्ती से बुलाई  हैं आज जरूर खुश होंगी और दूसरों को खुशी देना ही पूजा है मेरे लिए । "
.
सास हैरान और परेशान उस सामान को देख रही थी और साथ  ही बहू को । 
.
"पंडित जी से देवी माँ को मिठाई और भोजन का भोग लगवाकर पूजा समाप्त करें ताकि बच्चियों को भोजन करवाया जा सके ।"
.
बच्चियों को अच्छे और नए आसनों पर बैठाया गया । सब के सामने भोजन परोसा गया और प्रेम से बच्चियों को भोजन करवाया गया । 
.
"आइये माँ  जी ! लीजिये कन्याओं को अपने हाथों से उपहार  दीजिये !"
.
अनमने मन से सास आगे आई तो बहू ने पचास -पचास के नोट उनके हाथों  में थमा दिये । हर बच्ची को लंच  बॉक्स, कपियाँ, पेंसिलें , चाकलेट और कपड़े की थैली के साथ पचास रुपये दिये ।
.
"बहू ! तू तो पैसे लुटा रही है बेकार में इन गरीबों पर और ये मनमानी ठीक नहीं    है ।" 
.
"माँ जी ! ये जिंदा देवियाँ हैं , इनकी मदद ही हमारी पूजा है । जो प्रसाद गलियों में फेंक दिया जाय और अनादर हो, मैं पसंद नहीं करती , इसलिए मैंने जरूरत का सामान उन्हें दिया है जिस से सही में खुशी हासिल हो । वैसे भी पूजा के बदले हम चाहते भी क्या हैं खुशी ही न ! अब मेरी टेढ़ी-मेढ़ी पूड़ीयाँ ये खुशी कहाँ दे पाती !"
.
"सही कह रही है बहू ! मैं ही न समझ सकी तेरी बात । तेरी पूजा  ही सफल है ।" और बहू को गले लगा लिया ।

Friday, March 24, 2017

कुत्ते की नींद

मैं दोपहर को बरामदे में बैठा था कि तभी एक अलसेशियन नस्ल का हष्ट पुष्ट लेकिन बेहद थका थका सा कुत्ता कम्पाउंड में दाखिल हुआ। उसके गले में पट्टा भी था। मैंने सोचा जरूर किसी अच्छे घर का पालतू कुत्ता है। मैंने उसे पुचकारा तो वह पास आ गया। मैंने उस पर प्यार से हाँथ फिराया तो वो पूँछ हिलाता वहीं बैठ गया। बाद में मैं जब उठकर अंदर गया तो वह कुत्ता भी मेरे पीछे पीछे हॉल में चला आया और खिड़की के पास अपने पैर फैलाकर बैठा और मेरे देखते देखते सो गया। मैंने भी हॉल का द्वार बंद किया और सोफे पर आ बैठा।
करीब एक घंटे सोने के बाद कुत्ता उठा और द्वार की तरफ गया तो उठकर मैंने द्वार खोल दिया। वो बाहर निकला और चला गया। मैंने सोचा जरूर अपने घर चला गया होगा। अगले दिन उसी समय वो फिर आ गया।
खिड़की के नीचे एक घंटा सोया और फिर चला गया। उसके बाद वो रोज आने लगा। आता, सोता और फिर चला जाता। कई दिन गुजर गए तो मेरे मन में उत्सुकता जागी कि आखिर किसका कुत्ता है ये ? एक रोज मैंने उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बाँध दी जिसमें लिख दिया--- आपका कुत्ता रोज मेरे घर आकर सोता है। ये आपको मालूम है क्या ? " अगले दिन रोज के समय पर कुत्ता आया तो मैंने देखा कि उसके पट्टे में एक चिठ्ठी बँधी है। उसे निकालकर मैंने पढ़ा। उसमे लिखा था---" वो एक अच्छे घर का कुत्ता है, मेरे साथ ही रहता है लेकिन मेरी बीवी की दिनरात की किटकिट, पिटपिट, चिकचिक, बड़बड़ के कारण वो, थोड़ी बहुत तो नींद हो जाए,  ये सोचकर रोज हमारे घर से कहीं चला जाता है। कल से मैं भी उसके साथ आ सकता हूँ क्या ...??
कृपया पट्टे में चिठ्ठी बाँधकर आपकी सहमति की सूचना देने का कष्ट करें !! "

Monday, March 13, 2017

अच्छी सोच

दो भाई थे आपस में बहुत प्यार था। खेत अलग अलग थे आजु बाजू। बड़ा भाई शादीशुदा था ।
छोटा अकेला । एक बार खेती बहुत अच्छी हुई अनाज बहुत हुआ । खेत में काम करते करते बड़े भाई ने बगल के खेत में छोटे भाई को खेत देखने का कहकर खाना खाने चला गया। उसके जाते ही छोटा भाई सोचने लगा...... खेती तो अच्छी हुई इस बार अनाज भी बहुत हुआ। मैं तो अकेला हूँ, बड़े भाई की तो गृहस्थी है। मेरे लिए तो ये अनाज जरुरत से ज्यादा है । भैया के साथ तो भाभी बच्चे है । उन्हें जरुरत ज्यादा है। ऐसा विचारकर वह 10 बोरे अनाज बड़े भाई के अनाज में डाल देता है। बड़ा भाई भोजन करके आता है । उसके आते ही छोटा भाई भोजन के लिए चला जाता है। भाई के जाते ही वह विचारता है । मेरा गृहस्थ जीवन तो अच्छे से चल रहा है... भाई को तो अभी गृहस्थी जमाना है... उसे अभी जिम्मेदारी सम्भालना है... मै इतने अनाज का क्या करूँगा... ऐसा विचार कर उसने 10 बोरे अनाज छोटे भाई के खेत में डाल दिया...। दोनों भाईयों के मन में हर्ष था... अनाज उतना का उतना ही था और हर्ष स्नेह वात्सल्य बढ़ा हुआ था...। सोच अच्छी रखो प्रेम बढेगा...
दुनिया बदल जायेंगी....
जैसी जिसकी भावना वैसा फल पावना :-)

Friday, March 10, 2017

एक गृहणी

वो रोज़ाना की तरह आज फिर इश्वर का नाम लेकर उठी थी ।
किचन में आई और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया।
फिर बच्चों को नींद से जगाया ताकि वे स्कूल के लिए तैयार हो सकें ।
कुछ ही पलों मे वो अपने सास ससुर को चाय देकर आयी फिर बच्चों का नाश्ता तैयार किया और इस बीच उसने बच्चों को ड्रेस भी पहनाई।
फिर बच्चों को नाश्ता कराया।
पति के लिए दोपहर का टिफीन बनाना भी जरूरी था।
इस बीच स्कूल का रिक्शा आ गया और वो बच्चों को रिक्शा तक छोड़ने चली गई ।
वापस आकर पति का टिफीन बनाया और फिर मेज़ से जूठे बर्तन इकठ्ठा किये ।
इस बीच पतिदेव की आवाज़ आई की मेरे कपङे निकाल दो ।
उनको ऑफिस जाने लिए कपङे निकाल कर दिए।
अभी पति के लिए उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था की छोटी ननद आई और ये कहकर ये कहकर गई की भाभी आज मुझे भी कॉलेज जल्दी जाना, मेरा भी नाश्ता लगा देना।
तभी देवर की भी आवाज़ आई की भाभी नाश्ता तैयार हो गया क्या?
अभी लीजिये नाश्ता तैयार है।
पति और देवर ने नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने अपने ऑफिस के लिए निकल चले ।
उसने मेज़ से खाली बर्तन समेटे और सास ससुर के लिए उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी ।
दोनों को नाश्ता कराने के बाद फिर बर्तन इकट्ठे किये और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी ।
इस बीच सफाई वाली भी आ गयी ।
उसने बर्तन का काम सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगेरा इकट्ठा करने पहुँच गयी और फिर सफाई वाली के साथ मिलकर सफाई में जुट गयी ।
अब तक 11 बज चुके थे, अभी वो पूरी तरह काम समेट भी ना पायी थी की काल बेल बजी ।
दरवाज़ा खोला तो सामने बड़ी ननद और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे ।
उसने ख़ुशी ख़ुशी सभी को आदर के साथ घर में बुलाया और उनसे बाते करते करते उनके आने से हुई ख़ुशी का इज़हार करती रही ।
ननद की फ़रमाईश के मुताबिक़ नाश्ता तैयार करने के बाद अभी वो नन्द के पास बेठी ही थी की सास की आवाज़ आई की बहु खाने का क्या प्रोग्राम हे ।
उसने घडी पर नज़र डाली तो 12 बज रहे थे ।
उसकी फ़िक्र बढ़ गयी वो जल्दी से फ्रिज की तरफ लपकी और सब्ज़ी निकाली और फिर से दोपहर के खाने की तैयारी में जुट गयी ।
खाना बनाते बनाते अब दोपहर का दो बज चुके थे ।
बच्चे स्कूल से आने वाले थे, लो बच्चे आ गये ।
उसने जल्दी जल्दी बच्चों की ड्रेस उतारी और उनका मुंह हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया ।
इस बीच छोटी नन्द भी कॉलेज से आगयी और देवर भी आ चुके थे ।
उसने सभी के लिए मेज़ पर खाना लगाया और खुद रोटी बनाने में लग गयी ।
खाना खाकर सब लोग फ्री हुवे तो उसने मेज़ से फिर बर्तन जमा करने शुरू करदिये ।
इस वक़्त तीन बज रहे थे ।
अब उसको खुदको भी भूख का एहसास होने लगा था ।
उसने हॉट पॉट देखा तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी ।
उसने फिर से किचिन की और रुख किया तभी पतिदेव घर में दाखिल होते हुये बोले की आज देर होगयी भूख बहुत लगी हे जल्दी से खाना लगादो ।
उसने जल्दी जल्दी पति के लिए खाना बनाया और मेज़ पर खाना लगा कर पति को किचिन से गर्म रोटी बनाकर ला ला कर देने लगी ।
अब तक चार बज चुके थे ।
अभी वो खाना खिला ही रही थी की पतिदेव ने कहा की आजाओ तुमभी खालो ।
उसने हैरत से पति की तरफ देखा तो उसे ख्याल आया की आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं ।
इस ख्याल के आते ही वो पति के साथ खाना खाने बैठ गयी ।
अभी पहला निवाला उसने मुंह में डाला ही था की आँख से आंसू निकल आये
पति देव ने उसके आंसू देखे तो फ़ौरन पूछा की तुम क्यों रो रही हो ।
वो खामोश रही और सोचने लगी की इन्हें कैसे बताऊँ की ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता हे और लोग इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं ।
पति के बार बार पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा की कुछ नहीं बस ऐसे ही आंसू आगये ।
पति मुस्कुराये और बोले कि तुम औरते भी बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो, बिना वजह रोना शुरू करदेती हो।

Thursday, March 9, 2017

भिखारी की जाती

एक बड़े मुल्क के राष्ट्रपति के बेडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी। रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रते थे। राष्ट्रपति इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।

राष्ट्रपति ने एक सुबह खिड़की का परदा हटाया। भयंकर सर्दी। आसमान से गिरते रुई के फाहे। दूर-दूर तक फैली सफ़ेद चादर। अचानक उन्हें दिखा कि बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता हुआ ।

राष्ट्रपति ने पीए को कहा -उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो।

दो घंटे बाद पीए ने राष्ट्रपति को बताया - सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक अदद कंबल की ज़रूरत है।

राष्ट्रपति ने कहा -ठीक है, उसे कंबल दे दो।

अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से पर्दा हटाया। उन्हें घोर हैरानी हुई। वो भिखारी अभी भी वहां जमा है। उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है।

राष्ट्रपति गुस्सा हुए और पीए से पूछा - यह क्या है? उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया?

पीए ने कहा -मैंने आपका आदेश सेक्रेटरी होम को बढ़ा दिया था। मैं अभी देखता हूं कि आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।

थोड़ी देर बाद सेक्रेटरी होम राष्ट्रपति के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले - सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी भिखारियों को भी देना पड़ेगा और शायद पूरे मुल्क में भी। अगर न दिया तो आम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।

राष्ट्रपति को गुस्सा आया - तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए।

सेक्रेटरी होम ने सुझाव दिया -सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है। आपके नाम से एक 'कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ' योजना शुरू की जाये। उसके अंतर्गत मुल्क के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।

राष्ट्रपति खुश हुए। अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है। राष्ट्रपति आग-बबूला हुए। सेक्रेटरी होम तलब हुए।

उन्होंने स्पष्टीकरण दिया -सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल की खरीद हो सके।

राष्ट्रपति दांत पीस कर रह गए। अगली सुबह राष्ट्रपति को फिर वही भिखारी दिखा वहां। खून का घूंट पीकर रहे गए वो।
सेक्रेटरी होम की फ़ौरन पेशी हुई।

विनम्र सेक्रेटरी ने बताया -सर, ऑडिट ऑब्जेक्शन से बचने के लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है। आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।

राष्ट्रपति ने कहा -यह आख़िरी चेतावनी है। अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है। राष्ट्रपति ने पीए को भेज कर पता लगाया।

पीए ने लौट कर बताया -कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की ठंड से मौत हो गयी है।

गुस्से से लाल-पीले राष्ट्रपति ने फौरन से सेक्रेटरी होम को तलब किया।

सेक्रेटरी होम ने बड़े अदब से सफाई दी -सर, खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन में हमने सारे कंबल बांट भी दिए। मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।

राष्ट्रपति ने पैर पटके -आख़िर क्यों? मुझे अभी जवाब चाहिये।

सेक्रेटरी होम ने नज़रें झुकाकर बोले: श्रीमान पहले हमने कम्बल अनुसूचित जाती ओर जनजाती के लोगो को दिया. फिर अल्पसंख्यक लोगो को. फिर ओ बी सी ... करके उसने अपनी बात उनके सामने रख दी. आख़िर में जब उस भिखारी का नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।

राष्ट्रपति चिंघाड़े -आखिर में ही क्यों?

सेक्रेटरी होम ने भोलेपन से कहा -सर, इसलिये कि उस भिखारी की जाती ऊँची थी और  वह आरक्षण की श्रेणी में नही आता था, इसलिये उस को नही दे पाये ओर जब उसका नम्बर आया तो कम्बल ख़त्म हो गये.

नोट : वह बड़ा मुल्क भारत है जहाँ की योजनाएं इसी तरह चलती हैं और कहा जाता है कि भारत में सब समान हैं सबका बराबर का हक़ है।

Monday, March 6, 2017

"शिक्षा विभाग"

कुछ नन्हीं चींटीयां   रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम अपना काम समय पर करती थी.....

वे जरूरत से ज्यादा काम करके भी खूब खुश थी.......
जंगल के राजा शेर  नें एक दिन चींटीयों को काम करते हुए देखा, और आश्चर्यचकित हुआ कि चींटीयां बिना किसी निरीक्षण के काम कर रही थी........

उसने सोचा कि अगर चींटीयां बिना किसी सुपरवाईजर के इतना काम, कर रही थी तो जरूर सुपरवाईजर के साथ वो अधिक काम कर सकती थी.......

उसनें काक्रोच   को नियुक्त किया जिसे सुपरवाईजरी  का 10 साल का अनुभव था,

और वो रिपोर्टों का बढ़िया अनुसंधान करता था .....

  काक्रोच नें आते ही साथ सुबह आने का टाइम, लंच टाईम और जाने का टाईम निर्धारित किया, और अटेंडेंस रजिस्टर बनाया...

..उसनें अपनी रिपोर्टें टाईप करने के लिये, सेकेट्री भी रखी....

उसनें मकड़ी  को नियुक्त किया जो सारे फोनों  का जवाब देता था और सारे रिकार्डों को मेनटेन करता था......

  शेर को काक्रोच   की रिपोर्टें   पढ़ कर बड़ी खुशी हुई, उसने काक्रोच से कहा कि वो प्रोडक्शन एनालिसिस करे और, बोर्ड मीटिंग में प्रस्तुत करने के लिये ग्राफ   बनाए......

इसलिये काक्रोच को नया कम्प्यूटर  और लेजर प्रिंटर खरीदना पड़ा.........

और उसनें आई टी डिपार्टमैंट संभालने के लिए मक्खी   को नियुक्त किया........

  चींटी जो शांति के साथ पूरा करना चाहती थी इतनी रिपोर्टों को लिखकर और मीटिंगों से परेशान होने लगी.......

  शेर ने सोचा कि अब वक्त आ गया है कि जहां चींटी काम करती है वहां डिपार्टमेंट का अधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिये....

उसनें झींगुर  को नियुक्त किया, झींगुर ने आते ही साथ अपने आॅफिस के लिये कार्पेट और ए.सी. खरीदा.....

नये बाॅस झींगुर को भी कम्प्यूटर  की जरूरत पड़ी और उसे चलाने के लिये वो अपनी पिछली कम्पनी में काम कर रही असिस्टंट को भी नई कम्पनी में ले आया.........

  चींटीयां जहां काम कर रही थी वो दुःख भरी जगह हो गयी जहां सब एक दूसरे पर आदेश चलाते थे और  चिल्लाते रहते थें.....

.झींगुर ने शेर को कुछ समय बाद बताया कि आॅफिस मे टीमवर्क कमजोर हो गया है और माहौल बदलने के लिए कुछ करना चाहिये......

  चींटीयों के डिपार्टमेंट की रिव्यू करते वक्त शेर ने देखा कि पहले से उत्पादकता बहुत कम हो गयी थी.......

उत्पादकता बढ़ाने के लिये शेर ने एक प्रसिद्ध कंसलटेंट उल्लू को नियुक्त किया.......

उल्लू नें चींटीयों के विभाग का गहन अघ्ययन तीन महीनों तक किया फिर उसनें अपनी 1200   पेज की रिपोर्ट दी जिसका निष्कर्ष था कि विभाग में बहुत ज्यादा लोग हैं.....

जो कम करने की आवश्यकता है......

सोचिये शेर   ने नौकरी से किसको निकाला....??? नन्हीं चींटीयों को  ...

क्योंकि उसमें “ नेगेटिव एटीट्यूड, टीमवर्क, और मोटिवेशन की कमी थी....

एक बीज की कहानी