Saturday, September 24, 2022

जो भी कर रहे हो उसे पुरे जूनून और मेहनत के साथ कीजिये

एक गांव के लड़के की घर की मजबूरी और पैसो की कमी की वजह से वह दूर शहर काम करने के लिए जाता है ताकि वहा से वह कुछ पैसे कमा पाए जिससे उसका और उसके घर वालो का खर्चा पूरा हो पाए।

वह लड़का काफी दिनों तक काम की तलाश करता है और आख़िरकार उसे काम मिल जाता है। वह लड़का अपना सारा काम पूरी ईमानदारी और मेहनत से पुरे दिन करता है यह देखकर उसका मालिक खुश हो जाता है।

अब 6 महीनो तक ऐसे ही चलता है 6 महीने बाद वह लड़का अपने मालिक को कहता है अब मैं कुछ दिनों के लिए वापिस अपने घर जाना चाहता हूँ और उस लड़के को पूरी उम्मीद थी की उसका मालिक उसे घर जाने से नहीं रोकेगा।

लेकिन उस लड़के के सोच से विपरीत, उसका मालिक कहता है नहीं तुम्हे दो माहिने का थोड़ा और काम करना है और फिर उसके बाद अपने घर जा सकते हो।

लड़के को थोड़ा गुस्सा आता है लेकिन वह अपने गुस्से को शांत करके मालिक से पूछता है बताईये मालिक कौन सा काम है उसका मालिक कहता है हमें एक घर खरीदना है तुम पुरे शहर में घूमो और तुम्हे जो सबसे अच्छा घर लगे वह घर खरीद लो और जैसे ही यह काम ख़त्म हो जाता है तुम वापिस अपने घर कुछ दिनों के लिए जा सकते हो।

यह सुनकर वह गांव का लड़का खुश हो जाता है और जल्दी-जल्दी घर को खरीदने का काम ख़त्म कर देता है वह मालिक के पास जाता है और कहता है मालिक मैंने सबसे अच्छा घर आपके लिए खरीद लिया है।

मालिक हैरान हो जाता है और कहता है सिर्फ 10 दिनों में तुमने अच्छा सा घर खरीद भी लिया गांव का लड़का कहता है हां ये घर काफी बढ़िया था इसलिए मैंने खरीद लिया और कहता है की क्या अब मैं अपने घर कुछ दिनों के लिए वापिस जा सकता हूँ।

मालिक कहता है नहीं तुम सिर्फ दो दिंनो के लिए अपने घर वापिस जा सकते हो गांव का लड़का कहता है अरे मालिक मुझे गांव जाने में ही एक दिन लगेगा तो कैसे भला मैं दो दिनों में वापिस आ जाऊ।

मुझे मेरे परिवार के साथ वक्त भी बिताना है मालिक खुश होकर कहता है की अब से तुम हमेशा अपने परिवार के साथ ही रहोगे जो घर मैंने तुम्हे खरीदने के लिए कहा था वह घर तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए मेरे तरफ से एक तोफा है।

यह सुनकर वह गांव का लड़का खुश होने के वजाए मायूस हो जाता है और कहता है अगर मालिक आपने मुझे पहले कहा होता की ये घर आप मेरे लिए खरीद रहे हो तो मैं थोड़ी और जानकारी प्राप्त करके इससे और अच्छा घर खरीदता।

मालिक ने कहा मैंने तुम्हे दो महीने दिए थे और दस दिन में खरीद कर तुमने तुम्हारा नुसकान किया है।

इसी तरह जिंदगी में भी हमारे साथ यही होता है कहानी में जो मालिक था वह असल में वक्त था और हमेशा वक्त जाने के बाद कहते है की अगर मुझे पाता होता तो मैं इससे भी अच्छा कर देता इसलिए आप अभी जिंदगी में जो भी कर रहे हो उसे पुरे जूनून और मेहनत के साथ कीजिये क्या पाता आप आज जो काम कर रहे हो वो आने वाले समय में आपको जिंदगी बदल दे।

Wednesday, September 21, 2022

हमारे अंदर छुपी टैलेंट

एक गुरु और शिष्य जंगल से होते हुए अपने गांव जा रहे होते है अँधेरा काफी हो चूका था। शिष्य ने अपने गुरु से कहा की गुरु की काफी रात हो चुकी है अगर आप कहे तो आज की रात यही आस-पास के किसी गांव में गुजार ले, गुरु जी ने अपना सर हिलाया और वो आस-पास के गांव में एक छोटे से घर के पास जाकर रुके।

अब जैसे ही वहा गए तो गुरु जी के शिष्य ने दरवाजा ठकठकाया उस घर से एक गरीब आदमी बाहर आया तो गुरु जी ने बोला हम अपने गांव जा रहे थे लेकिन काफी रात होने के वजह से हमने इसी गांव में रुकने को सोचा। क्या हम आज रात आपके यहां रुक सकते है।

गरीब आदमी बोला हां क्यों नहीं आप दोनों अंदर आ जाईये अब जैसे ही गुरु जी अंदर गए उन्होंने देखा की उस आदमी के घर में बहुत ज्यादा गरीबी थी।

गुरु जी ने उससे पूछा की आप काम क्या करते हो वह गरीब आदमी बोला की मेरे पास बहुत सारी जमीन है तो गुरु जी ने बोला अगर तुम्हारे पास बहुत सारी जमीन है तो इस तरह से क्यों रह रहे हो।

वह आदमी बोला यह किसी काम की नहीं है, गांव वाले बोलते है की ये बंजर जमीन है यहाँ पर कुछ भी नहीं उगाई जा सकती है और वहा फसल उगाना बहुत बड़ी बेवकूफी है।

गुरु जी ने बोला की तुम्हारा गुजारा कैसे होता है उसने बोला की मेरे पास एक भैस है जिससे मेरा पूरा घर चलता है ये सुनने के बाद गुरु जी सो जाते है और रात में जब सब लोग सो रहे होते है तब गुरु जी अपने शिष्य को उठाते है और उस गरीब आदमी की भैस लेकर अपने गांव चले जाते है।

शिष्य अपने गुरु से पूछता है की गुरु जी कही आप ये गलत तो नहीं कर रहे है उस गरीब आदमी की रोज़ी रोटी इसी भैस की वजह से चलती है तो गुरु जी अपने शिष्य की तरफ देखते है और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाते है।

उस बात को तक़रीबन 10 साल गुजर जाती है और जो गुरु का शिष्य था वह बहुत बड़ा गुरु बन चूका था तो एक दिन उन्हें उस गरीब आदमी की याद आती है की मेरे गुरु ने उस आदमी के साथ अच्छा नहीं किया था मुझे एक बार चलकर देखना चाहिए की वह आदमी अब किस परिस्थिति में है।

वह शिष्य उस गांव की तरफ जाता है और वहा जैसे ही पहुँचता है तो वह देखता है की जहा पर उस गरीब आदमी का झोपड़ा था वहा पर एक बड़ा ही आलीशान महल बन चूका था और उस झोपडी के बाहर जो बंजर जमीन थी उसपर फल और फूलो के बगीचे थे।

तभी उधर से उस घर का मालिक आता है शिष्य उसे पहचान लेता है और उस आदमी को बोलता है तुमने मुझे पहचाना मैं अपने गुरु जी के साथ आया था हमने एक रात के लिए आपके यहाँ रुके भी थे।

वह आदमी उसे पहचान लेता है और बोलता है की उस रात में आप कहा चले गए थे और उस रात के बाद ही मेरी भैस कही चली गयी थी मेरे पास कोई रास्ता नहीं था तो मैंने अपने जमीन पर मेहनत की और फसल निकल आयी और आज मैं इस गांव का सबसे बड़ा और सबसे अमीर आदमी बन चूका हूँ।

ये सुनने के बाद शिष्य के आँखों में अपने गुरु जी के लिए आँशु आ गए और उसे ये बात अब समझ आयी और वो रोने लगा।

इस कहानी से हमें ये सिख मिलती है की हमारे अंदर ऐसी बहुत सी टैलेंट छुपी हुई है लेकिन हमें कोई ना कोई चीज़ रुका कर रखी है वो आपके फॅमिली वाले भी हो सकते है, आपको जॉब भी हो सकती है कुछ और भी हो सकता है देखिये आपके पास भी तो भैस की जैसी कोई दूसरी चीज़ तो नहीं है जिसने आपको आगे बढ़ने से रोककर रखा है।

Sunday, September 18, 2022

अत्याचार का विरोध

स्वामी विवेकानंद धर्म प्रचार करते हुए एक रियासत में पहुँचे। उस रियासत का जागीरदार धर्म के नियमों को धता बताकर लोगों का उत्पीड़न करता था ।

प्रवचन समाप्त होने के बाद अपना यही दुःख कहने कुछ व्यक्ति स्वामीजी के पास पहुँचे। उन्होंने स्वामीजी से कहा, ‘हम धर्म के अनुसार सादा जीवन जीने का प्रयास करते हैं, लेकिन जागीरदार के लठैत हमें चैन से भगवान् की भक्ति और परिवार का पालन नहीं करने देते। हमें क्या करना चाहिए?’

स्वामीजी ने पूछा, ‘क्या जागीरदार पड़ोस के शासक से भी झगड़ा करता है?’ उन्हें बताया गया कि पड़ोस का जागीरदार उससे ज्यादा शक्तिशाली है। वह उससे डरता है।

स्वामीजी ने कहा, ‘यही तो प्रकृति का नियम है। शिकारी हिरन और अन्य कमजोर प्राणियों का ही शिकार करता है । मछुआरा निरीह मछली को ही जाल में फांसता है । 

कुछ अंधविश्वासी देवता के सामने निरीह बकरे की ही बलि देते हैं। क्या कभी किसी को शेर की बलि देते देखा है?’ कुछ क्षण रुककर स्वामीजी ने कहा, ‘आप सब भगवान् की भक्ति के साथ-साथ संगठित होकर शक्ति का संचय करें। 

शरीर से बलिष्ठ बनने पर अत्याचार का विरोध करने का साहस पैदा होगा। जब कारिंदा धमकी देने आए, तो सब इकट्ठा होकर उसका मुकाबला करो । ‘

स्वामीजी की प्रेरणा से ग्रामीणों ने संगठित होकर जागीरदार का विरोध किया। विरोध की आवाज उठते ही जागीरदार के होश ठिकाने आ गए, उसने उन्हें सताना छोड़ दिया।

Monday, September 12, 2022

सब्र रखना चाहिए

जब सूरज अस्त हो रहा होता है तब हल्की-हल्की संध्या से उत्पन्न होती है और चारों तरफ शांत वातारण जैसा एक अंधेरा सा छा जाता है। सभी जीव-जंतु, पशु-पक्षी अपने निवास स्थान को जाने लगते हैं और हल्की हल्की हवा चलने लगती है। हम जब आसमान की ओर देखते हैं तो सूर्य अस्त होता रहता है तभी आसमान में तारे टिमटिमाने लगते है।

कुछ तारे अत्यधिक चमकीले होते हैं परंतु कुछ कम चमकीले होते हैं। अधिक चमकीले वाले तारों पर हमारी नजर जल्दी पहुंचती है परंतु कम चमकीले वाले तारों पर हमारी नजर बहुत कम ही जाती है। इसलिए हम उन पर ध्यान नहीं दे पाते और उनकी सुंदरता फीकी पड़ जाती है।

परंतु उन सब में से एक ऐसा तारा होता है, जो अधिक चमकीला होता है। जिसके आने से पूरा आसमान जगमगा जाता है। वह इतना सुंदर और चमकीला होता है कि उसके जगमगाते ही लोगों के चेहरे पर खुशी आ जाती है, उसे हम स्वाति नक्षत्र के नाम से जानते हैं। अत्यधिक चमकीला और सुंदर होता है, जिसके आने से लोग खुश हो जाते हैं। इसीलिए बाकी के नक्षत्र स्वाति नक्षत्र से इर्ष्या करते हैं और अपनी इस ईर्ष्या की कथा को श्री नारद मुनि को बताते हैं।

नारद मुनि उन सभी तारों को समझाते हुए कहते हैं कि देखो जो भी सब्र करता है, उनकी कीर्ति संसार में होती है और मुझे प्रतीत होता है कि आप लोगों में धैर्य नहीं हैं। इसीलिए आप लोग संध्या काल में होते ही तुरंत जगमगाने लगते हैं। लेकिन स्वाति नक्षत्र अत्यधिक समय के बाद आसमान में निकट आता है तभी उसकी प्रतिस्पर्धा इतनी अधिक होती है।

तभी सभी लोग के चेहरे पर मुस्कान आती। इसीलिए कहा जाता है कि हमें सब्र करना चाहिए क्योंकि उसका फल मीठा होता है। यदि तुम देर में आसमान में टिमटिमाते होते तो तुम्हारा भी महत्व होगा और तुम्हें भी लोग अलग नाम से जानेंगे। नारद मुनि द्वारा समझाई गई बात सभी तारों को समझ में आ गई।

सब्र का फल मीठा होता है, यह बात हम सब जानते हैं और इसे हम लोगों ने महसूस भी किया है। मैं हमेशा अपने कार्य को पूरा करने के बाद उसके परिणाम के इंतजार में उतावला हो जाता हूं या फिर अपने आने वाले कार्य को पूरा करने के लिए उतावला हो जाता हूं, जिससे मेरा आने वाला कार्य बिगड़ जाता है। परंतु मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए, मुझे सब्र करना चाहिए। उस परिणाम का या उस आने वाले कार्य का जिससे मैं उस कार्य को अच्छे से समाप्त करूं और उसका परिणाम भी अच्छा हो।

हम जानते हैं जल्दी में लगाया हुआ निशाना हमेशा अपने गोल से बाहर जाता है। हमें धैर्य पूर्वक उस निशाने को भेजना चाहिए तभी हमें जीवन में सफलता मिलेगी। हमें किसी भी कार्य को धैर्यपूर्वक करना चाहिए तभी सफलता के दरवाजे खुलते हैं।

धैर्य ही ऐसा शस्त्र है, जो विकट परिस्थितियों में मनुष्य के मस्तिष्क का संतुलन बनाए रख सकता है और उसको आगे आने वाली चुनौतियों को से निपटने के लिए नए मार्ग को बतला सकता है। बड़े-बड़े महात्मा और महापुरुषों के द्वारा भी बताया गया है कि हमें भी किसी कार्य में सफलता पानी है तो उसे चिंता मुक्त होकर करना चाहिए और सब्र रखना चाहिए परिणाम का सफलता अवश्य मिलेगी।

Tuesday, August 30, 2022

दयापूर्ण और करुणामय काम

आबूरोड की एक चर्चित दूकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त-यार आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 75-80 वर्ष की बुजुर्ग महिला पैसे मांगते हुए मेरे सामने अपने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई।

उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने अपनी जेब से सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया।

“दादी जी लस्सी पियेंगे?”

मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक। क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 30 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।

दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे, वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा –

“ये किस लिए?”

“इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी!”

भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था…, रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी।

एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा… उसने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई।

अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका।

डर था कि कहीं कोई टोक ना दे… कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाए… लेकिन वो कुर्सी जिस पर मैं बैठा था मुझे काट रही थी…

लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था…इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती थी।

हां! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा… लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा-

“ऊपर बैठ जाइए साहब! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है।”

अब सबके हाथों मे लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी, बस एक वो दादी ही थीं, जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसू, होंठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थीं।

न जानें क्यों जब कभी हमें 10-20 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उस पर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं। लेकिन सोचिए कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं?

जब कभी अवसर मिले ऐसे दयापूर्ण और करुणामय काम करते रहें भले ही कोई आपका साथ दे या ना दे!

Saturday, August 27, 2022

समय को बर्बाद नहीं , उसका सदुपयोग करना

एक गांव में एक गरीब आदमी रहता था, उसके घर में उसकी पत्नी और उसकी एक बेटी और एक छोटा बेटा था। उसकी पत्नी दूसरों के घर में काम करके अपने परिवार का खर्च चलाती थी, उसका पति जिसका नाम रामू था। रामू दिन भर नशे में डूबा रहता था और दूसरों के साथ अपना समय बर्बाद किया करता था। कहीं इधर ताश के पत्ते खेलता दिखता था तो कहीं उधर लोगों के दरवाजे बैठकर गपशप मारा करता था। अपने परिवार का ख्याल उसे बिल्कुल नहीं था।

उसके माता-पिता ने उसकी शादी करा कर गलती कर दी थी। बेचारी उसकी पत्नी दिन रात काम कर कर अपने बच्चों का पेट पालती थी। यदि उसकी पत्नी एक भी दिन काम पर न जाए तो उसके बच्चे भूखे रह जाते थे। इसीलिए उसकी पत्नी प्रत्येक दिन दूसरों के वहां काम करती थी।

लेकिन रामू को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसे बस अपना समय बर्बाद करके हंसी मजाक और पत्ते खेलने में बहुत मजा आता था। शाम को शराब पीकर घर आकर जोर-जोर से अपनी पत्नी को चिल्लाता था। कई बार उसने अपनी पत्नी को मारा भी लेकिन अब उसकी पत्नी करें भी तो क्या वह तो अपने बच्चों को छोड़कर नहीं जा सकती थी।

रामू को जो कोई भी समझाता था कि रामू कुछ कार्य करा करो, पैसे कामया करो,अपने परिवार का खर्च तो उठाओ, तुम्हारे दो बच्चे हैं, तुम्हारी पत्नी है, उनकी देखभाल करो, ऐसे अपना समय क्यों बर्बाद करते हो। रामू उसके ऊपर बिगड़ जाता था और कहता तुम्हें इससे लेना देना क्या। मैं कुछ भी करूं यह मेरा जीवन है। मैं तुम्हारे घर में खाता हूं क्या?

इसके कारण कोई भी गांव का सदस्य इससे इस विषय में बात ही नहीं करता था। वह सुबह खाकर निकल जाता था और रात में शराब पीकर आता और अपनी बीवी के ऊपर गुस्सा करता था, ऐसा ही कुछ दिनों तक चलता रहा। कुछ दिनों बाद संसार में एक ऐसी बीमारी ने जन्म लिया, जो मानव जाति के लिए अत्यधिक खतरनाक थी। चारों तरफ उस बीमारी का कहर था।

आप सब जानते होंगे मैं कोरोना वायरस की बात कर रहा हूं। जब सरकार द्वारा लॉकडाउन लगा दिया गया था तब चारों तरफ लोगों का एक दूसरे के वहां आना जाना बंद हो गया था। सारे कार्य, सारी फैक्ट्रियां, सारी गाड़ियां इत्यादि बंद हो गए थे।

अब रामू का परिवार भूखा मरने लगा था। क्योंकि उसकी पत्नी जो रोज कमाने जाती थी, वह अब किसी के घर इसी कारण नहीं जा पाती थी कि कहीं इस बीमारी की वजह मैं न हो जाऊं, लोग उसे अब काम पर बुलाना बंद कर दिए थे। उसके परिवार में अनाज का एक दाना भी नहीं पता था ना उसके घर में कुछ पैसे भी नहीं थे। अब वह क्या करता उसका छोटा बेटा भी बीमार हो गया था।

उसके बच्चे की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी तब भी रामू को समझ आया कि अपने परिवार को ध्यान देना चाहिए। उसने बच्चे को अस्पताल ले जाने की सोचा, परंतु उसके पास पैसे नहीं थे। उसने गांव वालों से पैसे मांगने गया, गांव वालों ने कहा पहले कहने पर तो हम लोगों को ही जली कटी सुना देते थे। अब इस लॉकडाउन में हमारे पास कहां से पैसा आए, यही कहकर वह लौटा देते थे।

रामू अत्यधिक परेशान था। अब करें तो भी क्या करें। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था। एक पूरा दिन बीत गया, उसके बेटे की तबीयत और भी ज्यादा खराब हो गई। तभी किसी तरह उसकी पत्नी ने जहां काम करती थी, वहां से कुछ पैसे जुटा कर लाई और अब रामू अपने बच्चे को हॉस्पिटल ले जाने की तैयारी की।

रामू अपने बच्चे को लेकर गांव के बाहर एक अस्पताल में पहुंचा। रामू दौड़ता हुआ डॉक्टर के पास गया, उसने कहा मेरे बच्चे को बचा लीजिए। डॉक्टर साहब ने सारे इंस्ट्रूमेंट लगाकर लगा कर चेक किया तब उसका बेटा मर चुका था।

डॉक्टर साहब ने यह बात रामू से कहां यदि तुम अपने बच्चे को 10-15 घंटे पहले ले आते तो मैं तुम्हारे बच्चे को बचा लेता। मुझे बहुत दुखी होकर कहना पड़ रहा है कि मैं तुम्हारे बच्चे को बचाना सका।

रामू यह सुनकर रामू के पैरों तले के नीचे से जमीन खिसक गई वह रोने लगा। उससे कहने लगा यह सब मेरी गलती है मैंने जीवन में कुछ नहीं किया, सिर्फ अपना समय को बर्बाद किया है। यदि आज मेरे पास पैसे हो जाते हैं तो मैं अपने बेटे को हॉस्पिटल जल्दी ला पाता और मेरा बेटा बच जाता। मैंने अपने जीवन में समय को बहुत बर्बाद किया है। लेकिन आज मुझे समय को अहमियत पता चल गयी है।

तो हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने समय को बर्बाद नहीं करना चाहिए, उसका सदुपयोग करना चाहिए। तभी हमें अपने जीवन मे सफलता मिल सकती है। इस कहानी में अगर रामू पहले से काम करता होता तो उसके पास पैसे होते और अपने बेटे का इलाज करा पाता, जिससे उसका बेटा आज जिंदा होता।

Monday, August 22, 2022

कुछ न लेने के संकल्प

क्ली एथेंस मातृ-पितृहीन अमेरिकी युवक था। उसने एक धर्मग्रंथ से प्रेरणा लेकर संकल्प किया कि वह परिश्रम करके विद्याध्ययन करेगा, बिना कर्म किए मिले धन-संपत्ति का उपयोग कदापि नहीं करेगा और दुर्व्यसनों से दूर रहकर सदाचारी जीवन बिताएगा । 

एथेंस ने प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया । कुछ संपन्न परिवारों के छात्र उसकी अनूठी प्रतिभा देखकर चिढ़ गए। उन्होंने षड्यंत्र रचकर न्यायाधीश से शिकायत की कि यह अनाथ लड़का अपराध करके धन अर्जित करता है, 

अन्यथा रोटी और पढ़ाई का खर्च उसे कहाँ से मिलता है ? न्यायाधीश ने उससे पूछा, ‘अनाथ होने के बावजूद तुम विश्वविद्यालय की फीस, पुस्तकों व रोटी कपड़े की व्यवस्था कैसे करते हो?’ 

एथेंस ने विनम्रता से कहा ‘सर, दुर्व्यसनों से मुक्त होने के कारण मैं बहुत कम खर्च में रोटी-पानी का जुगाड़ करता हूँ। पढ़ने की व्यवस्था के लिए मैं एक बाग में कुछ घंटे माली का कार्य करता हूँ। 

उससे मिलने वाले धन से पढ़ाई का खर्च चलाता हूँ।’ न्यायाधीश ने जाँच कराई, तो पता चला कि यह होनहार छात्र सुबह और रात को घोर परिश्रम कर धन अर्जित करता है। 

न्यायाधीश ने एथेंस की लगन देखकर दया करके कुछ मुद्राएँ देने का प्रयास किया। उसने हाथ जोड़कर कहा, ‘यदि मैं ये मुद्राएँ स्वीकार कर लूँगा, तो बिना परिश्रम कुछ न लेने के संकल्प से डिगने के पाप का भागी बनूँगा।’ आगे चलकर एथेंस की गणना अमेरिका के अग्रणी बुद्धिजीवियों में हुई।