Tuesday, January 21, 2020

जरा सोचिये

क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रही हैं । विष्णुजी के एक पैर  का अंगूठा शैया के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं । 
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क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह विचार कर कि मैं यदि भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिव्ह्या से स्पर्श कर लूँ तो मेरा मोक्ष हो जायेगा,यह सोच कर उनकी ओर बढ़ा । 
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उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुये शेषनाग ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुँफकारा । फुँफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया । 
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कुछ समय पश्चात् जब शेषजी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया । इस बार लक्ष्मीदेवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया । 
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इस प्रकार उस कछुवे ने अनेकों प्रयास किये पर शेष नाग और लक्ष्मी माता के कारण उसे  सफलता नहीं मिली । यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सत्युग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया । 
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इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा । अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया था । 
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कछुवे को पता था कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का और वही शेषनाग लक्ष्मण का व वही लक्ष्मीदेवी सीता के रूप में अवतरित होंगे तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी । इसीलिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था ।
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एक युग से भी अधिक काल तक तपस्या करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जान लिये थे, इसीलिये उसने रामजी से कहा था कि मैं आपका मर्म जानता हूँ । 
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संत श्री तुलसीदासजी भी इस तथ्य को जानते थे, इसलिये अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया है कि 
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“कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना”।
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केवल इतना ही नहीं, इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । उसे याद था कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था । 
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अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं, पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था, लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं । 
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इसीलिये विद्वान संत श्री तुलसीदासजी ने लिखा है -
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( हे नाथ ! मैं चरणकमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा; मैं आपसे उतराई भी नहीं चाहता । हे राम ! मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है, मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ । भले ही लक्ष्मणजी मुझे तीर मार दें, पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा, तब तक हे तुलसीदास के नाथ ! हे कृपालु ! मैं पार नहीं उतारूँगा । )
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तुलसीदासजी आगे और लिखते हैं -
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केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्रजी जानकी और लक्ष्मण की ओर देख कर हँसे । जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं- कहो, अब क्या करूँ, उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है !
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केवट बहुत चतुर था । उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया । तुलसीदासजी लिखते हैं -.

चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया ।
उस समय का प्रसंग है ... जब केवट भगवान् के चरण धो रहे है ।
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बड़ा प्यारा दृश्य है, भगवान् का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते है, और जब दूसरा धोने लगते है, 
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तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है,
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केवट दूसरा पैर बाहर रखते है, फिर पहले वाले को धोते है, एक-एक पैर को सात-सात बार धोते है ।
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फिर ये सब देखकर कहते है, 
प्रभु, एक पैर कठौती में रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये, ताकि मैला ना हो ।
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जब भगवान् ऐसा ही करते है । तो जरा सोचिये ... क्या स्थिति होगी , यदि एक पैर कठौती में है और दूसरा केवट के हाथों में, 
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भगवान् दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - केवट मैं गिर जाऊँगा ?
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केवट बोला - चिंता क्यों करते हो भगवन्  !.
दोनों हाथों को मेरे सिर पर रख कर खड़े हो जाईये, फिर नहीं गिरेंगे ,
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जैसे कोई छोटा बच्चा है जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है, भगवान् भी आज वैसे ही खड़े है । 
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भगवान् केवट से बोले - भईया केवट ! मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया...
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केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?.
भगवान् बोले - सच कह रहा हूँ केवट, अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि .... मैं भक्तों को गिरने से बचाता हूँ पर.. 
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आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है ।.           जै राम जी की।।

Saturday, January 18, 2020

हर समस्या का हल

बहुत समय पहले, एक निर्जन गाँव में अपने तीन बेटों के साथ एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था, जो एक रेगिस्तान के आस-पास स्थित था।  उसके पास 17 ऊंट थे, और वे उसकी आय का मुख्य स्रोत थे।  वह रेगिस्तान में शिपिंग के साधन के रूप में ऊंटों को किराए पर देता था।  एक दिन उनका निधन हो गया।  उन्होंने अपने तीनों बेटों के लिए अपनी संपत्ति छोड़ दी थी।

 अंतिम संस्कार और अन्य दायित्वों के खत्म होने के बाद, तीनों बेटों ने वसीयत पढ़ी।  जबकि उनके पिता ने सभी संपत्ति को तीन समान भागों में विभाजित किया था, उन्होंने 17 ऊंटों को एक अलग तरीके से विभाजित किया था।  उन्हें तीनों में समान रूप से साझा नहीं किया गया क्योंकि 17 एक विषम संख्या और एक अभाज्य संख्या है, जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता है।

 बूढ़े व्यक्ति ने कहा था कि बड़ा बेटा 17 ऊंटों में से आधे का मालिक होगा, बीच वाले को 17 ऊंटों का एक तिहाई हिस्सा मिलेगा, और सबसे कम उम्र के ऊंटों को उसका हिस्सा नौवें के रूप में मिलेगा!

 वसीयत में वर्णित 17 ऊंटों को कैसे विभाजित किया जाए, यह सभी वसीयत को पढ़कर दंग रह गए और एक दूसरे से सवाल किया।  17 ऊंटों को विभाजित करना और 17 ऊंटों में से आधे को सबसे बड़ा देना संभव नहीं है।  अन्य दो बेटों के लिए ऊंटों को विभाजित करना भी संभव नहीं है।

 उन्होंने कई दिनों तक वसीयत में वर्णित ऊंटों को विभाजित करने के तरीकों पर विचार किया, लेकिन किसी को भी इसका जवाब नहीं मिला।

 वे अंत में इस मुद्दे को अपने गांव के बुद्धिमान व्यक्ति के पास ले गए।  बुद्धिमान व्यक्ति ने समस्या सुनी और तुरंत एक समाधान पाया।  उसने उन्हें सभी 17 ऊंटों को अपने पास लाने के लिए कहा।

 बेटों ने ऊंटों को बुद्धिमान व्यक्ति के स्थान पर लाया।  बुद्धिमान व्यक्ति ने अपने स्वामित्व में एक ऊँट जोड़ा और ऊँटों की कुल संख्या 18 कर दी।

 अब, उन्होंने पहले बेटे को वसीयत पढ़ने के लिए कहा।  इच्छा के अनुसार, बड़े बेटे को आधा ऊंट मिला, जो अब 18/2 = 9 ऊंटों में गिना जाता है!  सबसे बड़े को उसके हिस्से के रूप में 9 ऊंट मिले।

 शेष ऊँट 9 थे।

 बुद्धिमान व्यक्ति ने दूसरे बेटे को वसीयत पढ़ने के लिए कहा।  उन्हें कुल ऊंटों का 1/3 सौंपा गया था।

 यह 18/3 = 6 ऊंटों के लिए आया था।  दूसरे बेटे को उसके हिस्से के रूप में 6 ऊंट मिले।

 बड़े बेटों द्वारा साझा किए गए ऊंटों की कुल संख्या - 9 + 6 = 15 ऊंट।

 तीसरे बेटे ने ऊंटों की अपनी हिस्सेदारी पढ़ी: ऊंटों की कुल संख्या का 1/9 वां हिस्सा - 18/9 = 2 ऊंट।

 सबसे कम उम्र के व्यक्ति को उसके हिस्से के रूप में 2 ऊंट मिले।

 पूरी तरह से भाइयों द्वारा साझा किए गए 9 + 6 + 2 ऊंट थे, जिन्हें 17 ऊंटों में गिना जाता था।

 अब, बुद्धिमान व्यक्ति द्वारा जोड़ा गया एक ऊंट वापस ले लिया गया था।

 बुद्धिमान व्यक्ति ने अपनी बुद्धिमत्ता से इस समस्या को बड़ी चतुराई से हल किया।

 इंटेलिजेंस एक मुद्दे को हल करने के लिए एक सामान्य आधार खोजने के अलावा कुछ भी नहीं है।  संक्षेप में, हर समस्या का हल है।

Wednesday, January 15, 2020

यही ट्रीटमेंट

जानवरों के डॉक्टर के पास एक Lady आई जिनके साथ एक high breed का कुत्ता था।

कहने लगी....

"मेरे कुत्ते के साथ अजीबो गरीब problem हो गई है।

मेरा कुत्ता बड़ा हट्टी (Disobidient) हो गया है.....

इसे अपने पास बुलाती हूँ तो ये दूर भाग जाता है।

Please कुछ करें.. 
I am very attached to him. I can not tolerate his indifference."

 डॉक्टर ने कुत्ते को ग़ौर से देखा।  पन्द्रह मिनट examin करने के बाद मैं  कहा...

ये कुत्ता एक रात के लिए मेरे पास छोड़ दें। मैं इसका observation कर के इलाज करूँगा।

उसने बडी बेदिली से हामी भर ली।

सब चले गए.....

डॉक्टर ने अपने assistant को आवाज़ दी...और कहा कि इसे भैंसों के साथ बांध दो और हर आधे घंटे पर इसे केवल पानी देना और इसको चमड़े के हन्टर से मारना।

डॉक्टर का assistant जट् आदमी था। 

रात भर कुत्ते के साथ हन्टर ट्रीटमेंट करता रहा।

दूसरे दिन लेडी आ धमकीं।

Sir 
what about my pup?

Doctor said__
Hope your pup has missed you too ......

डॉक्टर का assistant कुत्ते को ले आया़. 

ज्यों ही कुत्ता कमरे मे आया..छलांग लगा के madam की गोद मे आ बैठा, 
लगा दुम हिलाने, 
मुंह चाटने!!

Madam कहने लगीँ: 
सर, आपने इसके साथ क्या किया कि अचानक इसका यह हाल है?

डॉक्टर ने कहा: बड़े से एयर कंडीशनर कमरे, रोज़ अति स्वादिष्ट भोजन खा खाके ये अपने को मालिक समझ बैठा था और अपने मालिक की पहचान भूल बैठा था
 बस इसका यही वहम उतारने के लिए थोड़ा
Psychological plus physical treatment की ज़रूरत थी___ 
वह दे दी,----- 
now he is Okay...

सारांश ~~

*"बस यही ट्रीटमेंट अगर देश के अन्दर :

भारत माता को गाली देने वाले, 
भारत के टुकड़े करने वाले, 
आज़ादी का दुरुपयोग करते हुए आजादी मांगने वाले, ,
सीमा के रक्षक जवानों को अपशब्द कहने वाले 
और दुश्मन देश को जिन्दाबाद कहने वालों के साथ हो ,

तो कश्मीर ही नहीं पूरे देश से आतंकवाद और नक्सलवाद समाप्त हो जायेगा.

Sunday, January 12, 2020

हम झूठा व बासी नही खाते

हम झूठा व बासी नही खाते !

अगली बार ये कहने से पहले सोचियेगा

कुछ दिन पहले एक परिचित दावत के लिये उदयपुर के एक मशहूर रेस्टोरेंट में ले गये।

मैं अक़्सर बाहर खाना खाने से कतराता हूँ, किन्तु सामाजिक दबाव तले जाना पड़ा।

आजकल पनीर खाना रईसी की निशानी है, इसलिए उन्होंने कुछ डिश पनीर की ऑर्डर की।

 प्लेट में रखे पनीर के अनियमित टुकड़े मुझे कुछ अजीब से लगे। ऐसा लगा की उन्हें कांट छांट कर पकाया है।

मैंने वेटर से कुक को बुलाने के लिए कहा, कुक के आने पर मैंने उससे पूछा पनीर के टुकड़े अलग अलग आकार के व अलग रंगों के क्यों हैं तो उसने कहा ये स्पेशल डिश है।"

मैंने कहा की मैँ एक और प्लेट पैक करवा कर ले जाना चाहता हूं लेकिन वो मुझे ये डिश बनाकर दिखाये।

सारा रेस्टोरेंट अकबका गया...
बहुत से लोग थे जो खाना रोककर मुझे  देखने लगे...

स्टाफ तरह तरह के बहाने करने लगा। आखिर वेटर ने पुलिस के डर से बताया की अक्सर लोग प्लेटों में खाना,सब्जी सलाद व रोटी इत्यादी छोड़ देते हैं। रसोई में वो फेंका नही जाता। पनीर व सब्जी के बड़े टुकड़ों को इकट्ठा कर दुबारा से सब्जी की शक्ल में परोस दिया जाता है।
 
प्लेटों में बची सलाद के टुकड़े दुबारा से परोस दिए जाते है । प्लेटों में बचे सूखे  चिकन व मांस के टुकड़ों को काटकर करी के रूप में दुबारा पका दिया जाता है। बासी व सड़ी सब्जियाँ भी करी की शक्ल में छुप जाती हैं...

ये बड़े बड़े होटलों का सच है। अगली बार जब प्लेट में खाना बचे तो उसे इकट्ठा कर एक प्लास्टिक की थैली में साथ ले जाएं व बाहर जाकर उसे या तो किसी जानवर को दे दें या स्वयं से कचरेदान में फेंके

वरना क्या पता आपका झूठा खाना कोई और खाये या आप किसी और कि प्लेट का बचा खाना खाएं।

दूसरा क़िस्सा भगवान कृष्ण की भूमि वृंदावन का है. वृंदावन पहुंच कर,मैँ मुग्ध होकर पावन धरा को निहार रहा था। जयपुर से लंबी यात्रा के बाद हम सभी को कड़ाके की भूख लगी थी सो एक साफ से दिखने वाले  रेस्टोरेंट पर रुक गये । समय नष्ठ ना करने के लिए थाली मंगाई गई।

एक साफ से ट्रे में दाल, सब्जी,चावल, रायता व साथ एक टोकरी में रोटियां आई। 

पहले कुछ कौर में ध्यान नही गया फिर मुझे कुछ ठीक नही लगा। मुझे रोटी में खट्टेपन का अहसास हुआ, फिर सब्जी की ओर ध्यान दिया तो देखा सब्जी में हर टुकड़े का रंग अलग अलग सा था। चावल चखा तो वहां भी माजरा गड़बड़ था। सारा खाना छोड़ दिया। फिर काउंटर पर बिल पूछा यो 650 का बिल थमाया।

मैंने कहा 'भैया! पैसे तो दूँगा लेकिन एक बार आपकी रसोई देखना चाहता हूं" वो अटपटा गया और पूछने लगा "क्यों?"

मैंने कहा "जो पैसे देता है उसे देखने का हक़ है कि खाना साफ बनता है या नहीँ?"

इससे पहले की वो कुछ समख पाता मैंने होटल की रसोई की ओर रुख किया।

आश्चर्य की सीमा ना रही जब देखा रसोई में कोई खाना नहीं पक रहा था। एक टोकरी में कुछ रोटियां पड़ी थी। फ्रिज खोल तो खुले डिब्बों में अलग अलग प्रकार की पकी हुई सब्जियां पड़ी हुई थी।कुछ खाने में तो फफूंद भी लगी हुई थी।

फ्रिज से बदबू का भभका आ रहा था।डांटने पर रसोइये ने बताया की सब्जियां करीब एक हफ्ता पुरानी हैं। परोसने के समय वो उन्हें कुछ तेल डालकर कड़ाई में तेज गर्म कर देता है और धनिया टमाटर से सजा देता है। 

रोटी का आटा 2 दिन में एक बार ही गूंधता है।

कई कई घण्टे जब बिजली चली जाती है तो खाना खराब होने लगता है तो वो उसे तेज़ मसालों के पीछे छुपाकर परोस देते हैं। रोटी का आटा खराब हो तो उसे वो नॉन बनाकर परोस देते हैं।

मैंने रेस्टोरेंट मालिक से कहा कि "आप भी कभी यात्रा करते होंगे, इश्वेर करे जब अगली बार आप भूख से बिलबिला रहे हों तो आपको बिल्कुल वैसा ही खाना मिले जैसा आप परोसते हैं"  उसका चेहरा स्याह हो गया....

आज आपको खतरो, धोखों व ठगी से सिर्फ़ जागरूकता ही बचा सकती है। क्यों कि भगवान को भी दुष्टों ने घेर रखा है।

भारत से सही व गलत का भेद खत्म होता जा रहा है....

हर दुकान व प्रतिष्ठान में एक कोने में भगवान का बड़ा या छोटा मंदिर होता है।  व्यापारी सवेरे आते ही उसमें धूप दीप लगाता है, गल्ले को हाथ जोड़ता है और फिर सामान के साथ आत्मा बेचने का कारोबार शुरू हो जाता है!!!

भगवान से मांगते वक़्त ये नही सोचते की वो स्वयं दुनिया को क्या दे रहे हैं!!***

जागरूक बनिये!!
और कोई चारा नही है
 
मेरे पास भी यह मैसेज कहीं और  से आया था,मुझे लगा कि आगे सेंड करना चाहिये। इसलिये कर दिया। हो सकता है आपको सब बातें सही न लगे, लेकिन जागरूक बनने में कोई बुराई नहीं है। 
 हो सकता है कि आपको इन इस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ा हो, पर परिस्थितियां कभी भी एक समान नहीं होती ।

Saturday, November 23, 2019

येसवाल ज़रूर पूछुंगा

😢
माँ मैं एक पार्टी में गया था.
तूने मुझे शराब नहीं पीने
को कहा था,

इसीलिए बाकी लोग शराब पीकर मस्ती कर रहे थे 

और मैं सोडा पीता रहा. 
लेकिन मुझे सचमुच अपने पर
गर्व हो रहा था
माँ,

जैसा तूने कहा था कि 'शराब पीकर
गाड़ी नहीं चलाना'.

मैंने वैसा ही किया.
घर लौटते वक्त मैंने शराब को छुआ तक नहीं,

भले ही बाकी दोस्तों ने
मौजमस्ती के नाम पर
जमकर पी. 
उन्होंने मुझे भी पीने के
लिए बहुत उकसाया था.

पर मैं अच्छे से जानता था कि मुझे
शराब नहीं पीनी है और मैंने
सही किया था.

माँ, तुम हमेशा सही सीख देती हो.
पार्टी अब लगभग खत्म होने
को आयी है और सब लोग अपने-अपने घर लौटने की तैयारी कर रहे हैं.

माँ ,अब जब मैं अपनी कार में बैठ
रहा हूँ तो जानता हूँ कि केवल कुछ
समय बाद मैं

अपने घर अपनी प्यारी स्वीट
माँ और पापा के पास रहूंगा.

तुम्हारे और पापा के इसी प्यार और
संस्कारों ने

मुझे जिम्मेदारी सिखायी और लोग
कहते हैं कि मैं

समझदार हो गया हूँ माँ, मैं घर आ
रहा हूँ और

अभी रास्ते में हूँ. आज हमने बहुत
मजा की और मैं बहुत खुश हूँ.

लेकिन ये क्या माँ...
शायद दूसरी गाड़ी वाले ने मुझे
देखा नहीं और ये भयानक टक्कर....
माँ, मैं यहाँ रास्ते पर खून से लथपथ हूँ.

मुझे पुलिसवाले की आवाज सुनाई पड़
रही है

और वो कह रहा है कि इसने नहीं पी.
दूसरा गाड़ीवाला पीकर चला रहा था.

पर माँ, उसकी गलती की कीमत मैं
क्यों चुकाऊं ?

माँ, मुझे नहीं लगता कि मैं और
जी पाऊंगा.

माँ-पापा, इस आखिरी घड़ी में तुम
लोग मेरे पास क्यों नहीं हो. 
माँ, बताओ ना ऐसा क्यों हो गया.

कुछ ही पलों में मैं सबसे दूर हो जाऊँगा.

मेरे आसपास ये गीला-गीला और
लाल-लाल क्या लग रहा है. 
ओह! ये तो खून है और
वो भी सिर्फ मेरा.

मुझे डाक्टर की आवाज आ रही है
जो कह रहे हैं कि मैं बच नहीं पाऊंगा.
तो क्या माँ,
मैं सचमुच मर जाऊँगा.

मेरा यकीन मानो माँ. मैं तेरी कसम
खाकर कहता हूँ कि मैंने शराब
नहीं पी थी. 
मैं उस दूसरी गाड़ी चलाने वाले
को जानता हूँ.

वो भी उसी पार्टी में था और खूब
पी रहा था.

माँ, ये लोग क्यों पीते हैं और
लोगों की जिंदगी से
खेलते हैं उफ! कितना दर्द हो रहा है.

मानो किसी ने चाकू चला दिया हो या सुइयाँ चुभो रहा हो.

जिसने मुझे टक्कर मारी वो तो अपने
घर चला गया और मैं
यहाँ अपनी आखिरी साँसें गिन
रहा हूँ. तुम ही कहो माँ, क्या ये
ठीक हुआ.

घर पर भैया से कहना, वो रोये नहीं.
पापा से धीरज रखने को कहना. 
मुझे पता है,वो मुझे कितना चाहते हैं 

और मेरे जाने के बाद तो टूट
ही जाएंगे. 
पापा हमेशा गाड़ी धीरे चलाने को कहते
थे.

पापा, मेरा विश्वास करो,
मेरी कोई गलती नहीं थी. अब मुझसे
बोला भी नहीं जा रहा.
कितनी पीड़ा!

साँस लेने में तकलीफ हो रही है.
माँ-पापा, आप मेरे पास
क्यों नहीं हो. शायद

मेरी आखिरी घड़ी आ गयी है. ये
अंधेरा सा क्यों लग रहा है. बहुत डर
लग रहा है.

माँ-पापा प्लीज़ रोना नहीं. मै
हमेशा आपकी यादों में, आपके दिल में
आपके पास ही रहूंगा. 
माँ, मैं जा रहा हूँ. पर जाते-जाते ये
सवाल ज़रूर पूछुंगा कि ये लोग पीकर
गाड़ी क्यों चलाते हैं. 
अगर उसने पी नहीं होतीं तो मैं आज
जिंदा, अपने घर,
अपने परिवार के साथ होता.

Wednesday, November 6, 2019

लौटना कभी आसान नहीं होता

एक आदमी राजा के पास गया कि वो बहुत गरीब है, उसके पास कुछ भी नहीं, उसे मदद चाहिए। राजा दयालु था। उसने पूछा कि क्या मदद चाहिए? 

आदमी ने कहा थोड़ा-सा भूखंड। 

राजा ने कहा, “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना। ज़मीन पर तुम दौड़ना। जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा। ध्यान रहे, जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा। 

आदमी खुश हो गया। 
सुबह हुई। सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा। 
आदमी दौड़ता रहा। दौड़ता रहा। सूरज सिर पर चढ़ आया था। पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था। वो हांफ रहा था, पर रुका नहीं था। थोड़ा और। एक बार की मेहनत है। फिर पूरी ज़िंदगी आराम। 
शाम होने लगी थी। आदमी को याद आया, लौटना भी है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा। 
उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था। अब उसे लौटना था। पर कैसे लौटता? सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था। आदमी ने पूरा दम लगाया। वो लौट सकता है। पर समय तेजी से बीत रहा है। थोड़ी ताकत और लगानी होगी। वो पूरी गति से दौड़ने लगा। पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था। वो थक कर गिर गया। उसके प्राण वहीं निकल गए।

राजा देख रहा था। अपने सहयोगियों के साथ वो वहां गया, जहां आदमी ज़मीन पर गिरा था। 
राजा ने गौर से देखा। राजा बुदबुदाया। इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीं की दरकार थी। नाहक ये इतना दौड़ रहा था।

आदमी को लौटना था। पर लौट नहीं पाया। वो लौट गया वहां, जहां से कोई लौट कर नहीं आता।

हमें अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता। हमारी ज़रूरतें सीमित होती हैं, पर चाहतें अनंत। अपनी चाहतों के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते। जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है। फिर हमारे पास कुछ नहीं बचता। 

हम सब दौड़ रहे हैं। क्यों? नहीं पता।

कौन लौटता है? 

तीस साल पहले मैंने भी खुद से ये वादा किया था कि मैं लौट आऊंगा। 
पर मैं नहीं लौट पाया। 

दौड़ता रहा। 

हम सब दौड़ रहे हैं। बिना ये समझे कि सूरज समय पर लौट जाता है।
अभिमन्यु भी लौटना नहीं जानता था। हम सब अभिमन्यु हैं। हम भी लौटना नहीं जानते। 

जो लौटना जानते हैं, वही जीना जानते हैं। पर लौटना आसान नहीं होता। 

काश टॉलस्टाय की कहानी का वो पात्र समय से लौट पाता..!

काश हम सब लौट पाते..!

Thursday, October 31, 2019

माँ की ममता

👉बेटे के जन्मदिन पर .....

रात के 1:30 बजे फोन आता है, बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है:- "जन्म दिन मुबारक लल्ला"

बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ से कहता है: - सुबह फोन करती। इतनी रात को नींद खराब क्यों की? कह कर फोन रख देता है।

थोडी देर बाद पिता का फोन आता है। बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता बल्कि कहता है:- सुबह फोन करते। 

फिर पिता ने कहा: - मैनें तुम्हे इसलिए फोन किया है कि तुम्हारी माँ पागल है जो तुम्हे इतनी रात को फोन किया। वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी। जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था। वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया। रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ। शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी । लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गयी ।उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे कि अगर कुछ हो जाये तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे। तुम्हे साल में एक दिन फोन किया तो तुम्हारी नींद खराब हो गई......मुझे तो रोज रात को 25 साल से रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था। बस यही कहने के लिए तुम्हे फोन किया था। इतना कहके पिता फोन
रख देते हैं।

बेटा सुन्न हो जाता है। सुबह माँ के घर जा कर माँ के पैर पकड़कर
माफी मांगता है....तब माँ कहती है, देखो जी मेरा लाल आ गया।

फिर पिता से माफी मांगता है तब पिता कहते हैं:- आज तक ये कहती थी कि हमे कोई चिन्ता नहीं हमारी चिन्ता करने वाला हमारा लाल है। पर अब तुम चले जाओ मैं तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी ध्यान रखुंगा।

तब माँ कहती है:- माफ कर दो
बेटा है।

सब जानते हैं दुनियाँ में एक माँ ही है जिसे जैसा चाहे कहो फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी।

पिता अगर तमाचा न मारे तो बेटा 
सर पर बैठ जाये। इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है।

माता पिता को आपकी दौलत नही बल्कि आपका प्यार और
वक्त चाहिए। उन्हें प्यार दीजिए। माँ की ममता तो अनमोल है। 

 भगवान से बढ़कर माता पिता होते हैं 
 I love you mummy