Sunday, December 11, 2016

पृथ्वीलोक से लौटे देवदूत

पृथ्वीलोक से लौटे देवदूतों ने, स्वर्गलोक में मोदी का यशोगान सुनाया सुनते ही देवराज इंद्र का सर चकराया!
उसे इंद्रलोक का सिंहासन डोलता नजर आया!! दौडा -दौडा पहुंचा ब्रह्मा जी के द्वार! रक्षा करो प्रभु!  हे जगत आधार!! पृथ्वीलोक पर "नरेन्द्र" नामक मानव ने कोहराम मचाया है! स्वर्गलोक का सिंहासन हडपने का विचार
उसके मन में आया है!! स्वर्गलोक में मोदी मोदी के नारे लग रहे हैं। लोग राजा का चुनाव करने की मांग कर रहे हैं। बदहवास इन्द्र को देख ब्रह्मा मुस्कुराये। बोले - तुम भी इन्द्र, वो भी नरेन्द्र! फिर दौनों के मध्य किस बात का द्वन्द! हे देवराज, वो मानव है महान। उसे मिला है काशी विश्वनाथ से चक्रवर्ती सम्राट होने का वरदान।। इसलिये तुम कैलाश पर्वत जाओ। महादेव को अपनी व्यथा सुनाओ।। घबराया इन्द्र कैलाश पर्वत आ पहुंचा।
कांधे पे लटके वस्त्र से माथे का पसीना पहुंचा। बोला -हे जटाधारी! स्वर्गलोक पर आई मुसीबत भारी!! पृथ्वीलोक का पूरा वृतांत सुनाया। आंख में आंसू, गला भर आया।। हे प्रभु कुछ तो करो उपाय। मेरा सिंहासन और देवताओं की लाज बच जाये।। एक मानव स्वर्गलोक पर राज करेगा। और देवता राशन, बैंक की लाइन में लगेगा।
अप्सरा और दासी एक ही श्रेणी में आयेगी। हे प्रभु, स्वर्गलोक की औकात क्या रह जायेगी। महादेव बोले -हे देवराज इंद्र! उचित है आपका ये अन्तर्द्वन्द!! पर नरेन्द्र ने कैलाश पर दो वर्ष के कठिन तप से वरदान पाया है!
अमीर और गरीब के भेद को दूर करने का, बीडा उठाया है! उसकी तपस्या व्यर्थ नहीं जायेगी! पृथ्वीलोक के बाद स्वर्गलोक की भी बारी आयेगी! ! हे देव, तुम बैकुंठधाम जाओ। श्री हरि को अपनी व्यथा सुनाओ।। सुनते ही इन्द्र करने लगा विलाप। हुआ नहीं दूर, उसके मन का संताप।। थोडी देर में होश आया। स्वयं को क्षीरसागर में लेटे, लक्ष्मी -नारायण के चरणों में पाया।। बोला हे स्वामी! आप तो हैं अन्तर्यामी!! पृथ्वीलोक पर नरेन्द्र नाम का राजा आतंक मचा रहा है! खुद को लक्ष्मी का शत्रु बता रहा है!! उसने अपने राज्य में लगा दी है लक्ष्मी पर पाबंदी।
प्रजा की भाषा में जिसे कहते हैं नोटबंदी।। लक्ष्मी जी बोली - हे देवराज! तुम्हारी बात सुनकर भर आया है मेरा मन! जिसे तुम लक्ष्मी कह रहे हो दरअसल तो वो है कालाधन!! मजदूर के पसीने में, गरीब की रोटी में, किसान की फसल में, बच्चों की मुस्कान में है मेरा धाम। अरे! बिस्तर, तकिये, बक्से, टायलेट की दीवारों में, मेरा क्या काम।। हे देवराज, आपकी आशा है व्यर्थ। आपकी सहायता करने में हम नहीं है समर्थ।। जाओ वापस, इन्द्रलोक जाओ। अप्सराओं का रास रंग छोड, अमीर गरीब का भेद मिटाओ। शतायु पूर्ण होने पर, जब नरेन्द्र स्वर्गलोक में आयेगा। अपने प्रतापी शौर्य, शत् कर्मों से स्वर्गलोक का राज सिंहासन पायेगा।। स्वर्गलोक को भी है, नरेन्द्र से एक ही आस! सबका साथ - सबका विकास!! और इधर पृथ्वीलोक में कुछ संपाती, जुगनुओं की तरह टिमटिमा रहे हैं। सूरज को छूने की चाह में अपने पंख जला रहे हैं।। पर अंतत:वो सब मुंह की खायेंगे। 30 दिसंबर के बाद जेल जायेंगे ।

Tuesday, December 6, 2016

सुन्दर पोशाक

एक राजा था उसके यहाँ एक दिन 2 दर्जी आये उन्होंने ने कहा की हम स्वर्ग से धागा लाकर पोशाक बनाते है जिसे देवता पहनते है राजा ने कहा एक पोशाक मेरे लिए बनाओ मुँह माँगा इनाम मिलेगा दर्जी ने कहा ठीक है 50दिन का टाइम दो और इस पोशाक की एक खास बात है ये #मूर्खों को नहीं दिखेगी राजा और भी खुश ऐसे तो हम अपने राज्य के मूर्खों की भी पहचान कर लेंगे दोनों ने पोशाक एक बंद कमरे में बनाना शुरू कर दी देर रात तक दो कटर पटर करते रहते थे एक दिन राजा ने मंत्री को भेजा कहा देखो कैसी पोशाक बन रही है मंत्री कमरे के अंदर गया जाते ही एक ने कहा देखो मंत्री कितना सुन्दर रेशा है पर मंत्री को कुछ दिखाई न दिया उसे वो बात याद आई की मुर्ख को ये पोशाक दिखाई न देगी मंत्री ने भी कहा हां बहुत सुन्दर है और आकर राजा को बताया बहुत सुन्दर बन रही है आपकी पोशाक, राजा बहुत खुश् हुआ एक दिन राजा भी गया देखने उसे भी कुछ न दिखाई दिया पर चुप रहा और मन में सोचा लगा मंत्री हमसे ज्यादा बुद्धिमान है तभी उसे दिखाई दी थी मैं मुर्ख हूँ
इस प्रकार राजा चुप रहा पोशाक बनकर तैयार हो गयी दोनों दर्जियों ने कहा कल हम जनता के सामने ये पोसाक पहनाएंगे फिर राजा की सवारी निकलेगी दूसरे दिन राजा को पोशाक पहनाई गयी जो किसी को दिख नहीं रही थी पर बोला कोई नहीं, क्यों क्योंकि मूर्खो को दिखती नहीं थी इस डर से हमें सब मुर्ख कहेंगे सब चुप रहे,
राजा नंग धड़ंग होकर बड़ी शान से सवारी निकाल रहा था तो ये कहानी थी जो आज बिल्कुल फिट बैठ रही है नोटबंदी से परेशानी सबको है पर यदि कह दे तो लोग कहेंगे की तुम्हारे अंदर  देशभक्ति नहीं है देश के लिये कोई भाव नहीं है डरा दिया गया है देश के नाम पर, सभी तारीफों में लगे है जैसे पोशाक की कर रहे थे,
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Sunday, December 4, 2016

पिता का हाथ

एक पिता ने अपने पुत्र की बहुत अच्छी तरह से परवरिश की !उसे अच्छी तरह से पढ़ाया, लिखाया, तथा उसकी सभी सुकामनांओ की पूर्ती की !
 कालान्तर में वह पुत्र एक सफल इंसान बना और एक मल्टी नैशनल कंपनी में सी.ई.ओ. बन गया !
उच्च पद ,अच्छा वेतन, सभी सुख सुविधांए उसे कंपनी की और से प्रदान की गई !
समय गुजरता गया उसका विवाह एक सुलक्षणा कन्या से हो गया,और उसके एक सुन्दर कन्या भी हो गई !
 पिता अब बूढा हो चला था ! एक दिन पिता को पुत्र से मिलने की इच्छा हुई और वो पुत्र से मिलने उसके ऑफिस में गया.....!!!
वहां  उसने देखा कि..... उसका पुत्र एक शानदार ऑफिस का अधिकारी बना  हुआ है, उसके ऑफिस में सैंकड़ो कर्मचारी  उसके अधीन कार्य कर रहे है... !
ये सब देख कर पिता का सीना गर्व से फूल गया !
वो चुपके से उसके चेंबर में पीछे से जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !
और प्यार से अपने पुत्र से पूछा...
"इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है"? पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा "मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी "!
पिता को इस जवाब की  आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया !
उनकी आँखे छलछला आई ! वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे !
उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???
पुत्र ने  इस बार कहा
       "पिताजी आप हैैं, इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान "!
पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा "अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो " ???
पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते  हुए कहा "पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,
बोलिए पिताजी"  !
पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लग लिया !
सच है जिस के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ होता है, वो इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान होता है !

Thursday, December 1, 2016

सफल जीवन का राज

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने  देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा –  “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर 
हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और  औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के  लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर  लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब  बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए।  हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को 
आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।  वह उनके पास आई और बोली –  “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना  चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने
कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –  “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में  प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा –  “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और  सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता  तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।  प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता  उसके पीछे जाते हैं।
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अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें
प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें
क्यों कि प्रेम ही
सफल जीवन का राज है।
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Tuesday, November 29, 2016

दुष्टता का फल

कंचनपुर के एक धनी व्यापारी के घर में रसोई में एक कबूतर ने घोंसला बना रखा था । किसी दिन एक लालची कौवा जो है वो उधर से आ निकला । वंहा मछली को देखकर उसके मुह में पानी आ गया ।  तब उसके मन में विचार आया कि मुझे इस रसोघर में घुसना चाहिए लेकिन कैसे घुसू ये सोचकर वो परेशान था तभी उसकी नजर वो कबूतरों के घोंसले पर पड़ी ।
उसने सोचा कि मैं अगर कबूतर से दोस्ती कर लूँ तो शायद मेरी बात बन जाएँ । कबूतर जब दाना चुगने के लिए बाहर निकलता है तो कौवा उसके साथ साथ निकलता है । थोड़ी देर बाद कबूतर ने पीछे मुड़कर देखता तो देखा कि कौवा उसके पीछे है इस पर कबूतर ने कौवे से कहा भाई तुम मेरे पीछे क्यों हो इस पर कौवे ने कबूतर से कहा कि तुम मुझे अच्छे लगते हो इसलिए मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ इस पर कौवे से कबूतर ने कहा कि हम कैसे दोस्त बन सकते है हमारा और तुम्हारा भोजन भी तो अलग अलग है मैं बीज खाता हूँ और तुम कीड़े । इस पर कौवे ने चापलूसी दिखाते हुए कहा “कौनसी बड़ी बात है मेरे पास घर नहीं है इसलिए हम साथ साथ तो रह ही सकते है है न और साथ ही भोजन खोजने आया करेंगे तुम अपना और मैं अपना ।”
घर के मालिक ने देखा कि कबूतर के साथ एक कौवा भी है तो उसने सोचा कि चलो कबूतर का मित्र होगा इसलिए उसने उस बारे में अधिक नहीं सोचा । अगले दिन कबूतर खाना खोजने के लिए साथ चलने को कहता है तो कौवे ने पेट दर्द का बहाना बना कर मना कर दिया । इस पर कबूतर अकेला ही चला गया क्योंकि कौवे ने घर के मालिक को यह कहते हुए सुना था नौकर को कि आज कुछ मेहमान आ रहे है इसलिए तुम मछली बना लेना ।
उधर कौवा नौकर के रसोई से बाहर निकलने का इन्तजार ही कर रहा था कि उसके जाते ही कौवे ने थाली और झपटा और मछली उठाकर आराम से खाने लगा । नौकर जब वापिस आया तो कौवे को मछली खाते देख गुस्से से भर गया और उसने कौवे को पकड़ कर गर्दन मरोड़ कर मार डाला
जब शाम में कबूतर वापिस आया तो उसने कौवे की हालत देखी तो सारी बात समझ गया । इसलिए कहा गया है दुष्ट प्रकृति के प्राणी को उसके किये की सज़ा अवश्य मिलती है ।

Sunday, November 27, 2016

दूसरों से तुलना

जंगल में एक कौआ रहता था जो अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट था. लेकिन एक दिन उसने बत्तख देखी और सोचा  “यह बत्तख कितनी सफ़ेद है और मैं कितना काला हूँ. यह बत्तख तो संसार की सबसे ज़्यादा खुश पक्षी होगी....!” उसने अपने विचार बत्तख को बतलाए. बत्तख ने उत्तर दिया : - “दरअसल मुझे भी ऐसा ही लगता था कि मैं सबसे अधिक खुश पक्षी हूँ जब तक मैंने दो रंगों वाले तोते को नहीं देखा था. अब मेरा ऐसा मानना है कि तोता सृष्टि का सबसे अधिक खुश पक्षी है...!” फिर कौआ तोते के पास गया. तोते ने उसे समझाया  “मोर को मिलने से पहले तक मैं भी एक अत्यधिक खुशहाल ज़िन्दगी जीता था. परन्तु मोर को देखने के बाद मैंने जाना कि मुझमें तो केवल दो रंग हैं जबकि मोर में विविध रंग हैं...!” तोते को मिलने के बाद वह कौआ चिड़ियाघर में मोर से मिलने गया.
वहाँ उसने देखा कि उस मोर को देखने के लिए हज़ारों लोग एकत्रित थे. सब लोगों के चले जाने के बाद कौआ मोर के पास गया और बोला  “प्रिय मोर...! तुम तो बहुत ही खूबसूरत हो. तुम्हें देखने प्रतिदिन हज़ारों लोग आते हैं. पर जब लोग मुझे देखते हैं तो तुरन्त ही मुझे भगा देते हैं. मेरे अनुमान से तुम भूमण्डल के सबसे अधिक खुश पक्षी हो...!” मोर ने जवाब दिया : - “मैं हमेशा सोचता था कि मैं भूमण्डल का सबसे खूबसूरत और खुश पक्षी हूँ. परन्तु मेरी इस सुन्दरता के कारण ही मैं इस चिड़ियाघर में फँसा हुआ हूँ. मैंने चिड़ियाघर का बहुत ध्यान से निरीक्षण किया है और तब मुझे यह अहसास हुआ कि इस पिंजरे में केवल कौए को ही नहीं रखा गया है. इसलिए पिछले कुछ दिनों से मैं इस सोच में हूँ कि अगर मैं कौआ होता तो मैं भी खुशी से हर जगह घूम सकता था...!” ये कहानी इस संसार में हमारी परेशानियों का सार प्रस्तुत करती है. कौआ सोचता है कि बत्तख खुश है, बत्तख को लगता है कि तोता खुश है, तोता सोचता है कि मोर खुश है जबकि मोर को लगता है कि कौआ सबसे खुश है.


कथासार : -
दूसरों से तुलना हमें सदा दुखी करती है. हमें दूसरों के लिए खुश होना चाहिए, तभी हमें भी खुशी मिलेगी. हमारे पास जो है उसके लिए हमें सदा आभारी रहना चाहिए. खुशी हमारे मन में होती है. हमें जो दिया गया है उसका हमें सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए. हम दूसरों के जीवन का अनुमान नहीं लगा सकते. हमें सदा कृतज्ञ रहना चाहिए. जब हम जीवन के इस तथ्य को समझ लेंगें तो सदा प्रसन्न रहेंगें

Saturday, November 26, 2016

सिर्फ शोर मचाकर

मुझे याद है कि मेरे बचपन में केरोसीन लेना हो, तो राशन की दुकान पर घंटों तक लाइन में लगना पड़ता था। चीनी खरीदनी हो, तो भी लाइन लगानी पड़ती थी। मेरे ननिहाल में एक सार्वजनिक नल था, जहां से मोहल्ले के सभी लोग पानी भरते थे। उसके लिए भी सुबह-शाम लाइन में लगना पड़ता था। आज एलपीजी सिलिंडर मोबाइल पर बुक हो जाता है और अगले दिन घर पहुंचा दिया जाता है। लेकिन बचपन में सिलिंडर बुक करवाने के लिए नीला कार्ड लेकर एजेंसी में जाना पड़ता था और 'नंबर' लगवाना पड़ता था, जिसमें १५-२० दिनों बाद की तारीख मिलती थी। फिर जब किसी दिन पता चलता कि एजेंसी में सिलिंडर का ट्रक आ गया है, तो साइकल के कैरियर के पीछे पुरानी ट्यूब से बांधकर सिलिंडर ले जाते थे और एक-दो घंटे लाइन में खड़े होने के बाद कहीं जाकर सिलिंडर मिल पाता था। अब बिजली का बिल ऑनलाइन भरे जाते हैं, लेकिन बचपन में हर महीने बिजली का बिल जमा करवाने के लिए १-२ घंटे लाइन में खड़ा होना पड़ता था। यही बात रेलवे रिजर्वेशन और ऐसे सभी अन्य कामों के लिए थी।
आज जो लोग लंबी लाइन और लोगों की परेशानी के बहाने वर्तमान सरकार को घेरना और अपना राजनैतिक अजेंडा चलाना चाहते हैं, वे यह न भूलें कि नोटों वाली यह परेशानी तो सिर्फ कुछ दिनों की है, लेकिन ऊपर मैंने जितने उदाहरण दिए हैं, वह परेशानी मैंने और शायद भारत के ८०-९०% लोगों ने लगातार कई सालों तक रोज झेली है और इन्हीं की सरकारों के कुशासन, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के कारण झेली है। उस समय न कोई मोदी थे, न कहीं भाजपा की सरकार थी। नोटों पर गांधीजी थे और सत्ता में उनके कथित वंशज थे। इसलिए कृपया हमें मूर्ख न समझें और फालतू के उपदेश न दें। जो मूर्ख हैं, भुलक्कड़ हैं या स्वार्थी हैं वे ही आपकी हां में हां मिलाकर गर्दन हिला सकते हैं, बाकी कोई नहीं।
यह समझने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है कि अधिकांश नेताओं की छटपटाहट का असली कारण यही है कि उनका करोड़ों-अरबों रुपये का काला पैसा रातोंरात रद्दी कागज़ हो गया है। अगर ये कारण नहीं है और वास्तव में गरीबों की चिंता सता रही है, तो घर में बैठकर सरकार को कोसने की बजाय बाहर आएं, बैंकों और एटीएम के आस-पास स्टॉल लगाकर बैंक का फॉर्म भरने में गरीबों की मदद करें, घंटों तक लाइन में खड़े लोगों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करें, और भी ज्यादा करुणा जाग रही हो, तो उनके लिए कुछ दिनों के राशन-अनाज आदि की व्यवस्था करवा दें। अगर वाकई अस्पताल के मरीजों के कष्ट देखकर दुःख हो रहा है, तो उनके बिलों का भुगतान करने की व्यवस्था करवा दें। ऐसा बहुत-कुछ किया जा सकता है। लेकिन अगर कुछ भी नहीं करना है और सिर्फ शोर मचाकर किसी तरह सरकार को घेरना है, तो स्पष्ट है कि आपकी तकलीफ का कारण कुछ और ही है!

एक बीज की कहानी