Saturday, November 26, 2016

सिर्फ शोर मचाकर

मुझे याद है कि मेरे बचपन में केरोसीन लेना हो, तो राशन की दुकान पर घंटों तक लाइन में लगना पड़ता था। चीनी खरीदनी हो, तो भी लाइन लगानी पड़ती थी। मेरे ननिहाल में एक सार्वजनिक नल था, जहां से मोहल्ले के सभी लोग पानी भरते थे। उसके लिए भी सुबह-शाम लाइन में लगना पड़ता था। आज एलपीजी सिलिंडर मोबाइल पर बुक हो जाता है और अगले दिन घर पहुंचा दिया जाता है। लेकिन बचपन में सिलिंडर बुक करवाने के लिए नीला कार्ड लेकर एजेंसी में जाना पड़ता था और 'नंबर' लगवाना पड़ता था, जिसमें १५-२० दिनों बाद की तारीख मिलती थी। फिर जब किसी दिन पता चलता कि एजेंसी में सिलिंडर का ट्रक आ गया है, तो साइकल के कैरियर के पीछे पुरानी ट्यूब से बांधकर सिलिंडर ले जाते थे और एक-दो घंटे लाइन में खड़े होने के बाद कहीं जाकर सिलिंडर मिल पाता था। अब बिजली का बिल ऑनलाइन भरे जाते हैं, लेकिन बचपन में हर महीने बिजली का बिल जमा करवाने के लिए १-२ घंटे लाइन में खड़ा होना पड़ता था। यही बात रेलवे रिजर्वेशन और ऐसे सभी अन्य कामों के लिए थी।
आज जो लोग लंबी लाइन और लोगों की परेशानी के बहाने वर्तमान सरकार को घेरना और अपना राजनैतिक अजेंडा चलाना चाहते हैं, वे यह न भूलें कि नोटों वाली यह परेशानी तो सिर्फ कुछ दिनों की है, लेकिन ऊपर मैंने जितने उदाहरण दिए हैं, वह परेशानी मैंने और शायद भारत के ८०-९०% लोगों ने लगातार कई सालों तक रोज झेली है और इन्हीं की सरकारों के कुशासन, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के कारण झेली है। उस समय न कोई मोदी थे, न कहीं भाजपा की सरकार थी। नोटों पर गांधीजी थे और सत्ता में उनके कथित वंशज थे। इसलिए कृपया हमें मूर्ख न समझें और फालतू के उपदेश न दें। जो मूर्ख हैं, भुलक्कड़ हैं या स्वार्थी हैं वे ही आपकी हां में हां मिलाकर गर्दन हिला सकते हैं, बाकी कोई नहीं।
यह समझने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है कि अधिकांश नेताओं की छटपटाहट का असली कारण यही है कि उनका करोड़ों-अरबों रुपये का काला पैसा रातोंरात रद्दी कागज़ हो गया है। अगर ये कारण नहीं है और वास्तव में गरीबों की चिंता सता रही है, तो घर में बैठकर सरकार को कोसने की बजाय बाहर आएं, बैंकों और एटीएम के आस-पास स्टॉल लगाकर बैंक का फॉर्म भरने में गरीबों की मदद करें, घंटों तक लाइन में खड़े लोगों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करें, और भी ज्यादा करुणा जाग रही हो, तो उनके लिए कुछ दिनों के राशन-अनाज आदि की व्यवस्था करवा दें। अगर वाकई अस्पताल के मरीजों के कष्ट देखकर दुःख हो रहा है, तो उनके बिलों का भुगतान करने की व्यवस्था करवा दें। ऐसा बहुत-कुछ किया जा सकता है। लेकिन अगर कुछ भी नहीं करना है और सिर्फ शोर मचाकर किसी तरह सरकार को घेरना है, तो स्पष्ट है कि आपकी तकलीफ का कारण कुछ और ही है!

Friday, November 25, 2016

आखरी दिन

एक दिन यमराज एक लड़के के पास आये और बोले - "लड़के, आज तुम्हारा आखरी दिन है!" लड़का  लेकिन मैं अभी तैयार नही हुँ यमराज : "ठिक है लेकिन सूची मे तुम्हारा नाम पहला है". लड़का ठिक है , फिर क्युं ना हम जाने से पहले साथ मे बैठ कर चाय पी ले यमराज : "सहि है लड़के ने चाय मे नीद की गोली मिला कर यमराज को दे दी.यमराज ने चाय खत्म की और गहरी नींद मे सो गया. लड़के ने सूची मे से उसका नाम शुरुआत से हटा कर अंत मे लिख दिया. जब यमराज को होश आया तो वह लड़के से बोले -"क्युंकी तुमने मेरा बहुत ख्याल रखा इसलिये मे अब सूची अंत से चालू करूँगा"..! 
सीख :
किस्मत का लिखा कोई नही मिटा सकता" अर्ताथ - जो तुम्हारी किस्मत मे है वह कोई नही बदल सकता चाहे तुम कितनी भी कोशिश कर लो . इसलिये भगवत गीता मे श्री कृष्ण ने कहा है - "तू करता वही है जो तू चाहता है, पर होता वही है जो मैं चाहता हुँ तू कर वह जो मैं चाहता हुँ फिर होगा वही जो तू चाहता हैं"
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 यह एक अर्थपूर्ण है !
 

 

Wednesday, November 23, 2016

जहाँ प्रेम वहाँ लक्ष्मी जी का वास

एक बनिए  से लक्ष्मी  जी  रूठ गई ।जाते वक्त  बोली मैं जा रही  हूँ और मेरी जगह  टोटा (नुकसान ) आ रहा है ।तैयार  हो जाओ।लेकिन  मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ।मांगो जो भी इच्छा  हो।
बनिया बहुत समझदार  था ।उसने  विनती  की टोटा आए तो आने  दो ।लेकिन  उससे कहना की मेरे परिवार  में आपसी  प्रेम  बना रहे ।बस मेरी यही इच्छा  है।
लक्ष्मी  जी  ने  तथास्तु  कहा।
कुछ दिन के बाद :-
बनिए की सबसे छोटी  बहू  खिचड़ी बना रही थी ।उसने नमक आदि  डाला  और अन्य  काम  करने लगी ।तब दूसरे  लड़के की  बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई ।इसी प्रकार  तीसरी , चौथी  बहुएं  आई और नमक डालकर  चली गई ।उनकी सास ने भी ऐसा किया ।
शाम  को सबसे पहले बनिया  आया ।पहला निवाला  मुह में लिया ।देखा बहुत ज्यादा  नमक  है।लेकिन  वह समझ गया  टोटा(हानि)  आ चुका है।चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया ।इसके बाद  बङे बेटे का नम्बर आया ।पहला निवाला  मुह में लिया ।पूछा पिता जी  ने खाना खा लिया ।क्या कहा उन्होंने ?
सभी ने उत्तर दिया-" हाँ खा लिया  ,कुछ नही बोले।"
अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ  नही  बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ।
इस प्रकार घर के अन्य  सदस्य  एक -एक आए ।पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए ।
रात  को टोटा (हानि) हाथ जोड़कर  बनिए से कहने लगा  -,"मै जा रहा हूँ।"
बनिए ने पूछा- क्यों ?
तब टोटा (हानि ) कहता है, " आप लोग एक किलो तो नमक खा गए  ।लेकिन  बिलकुल  भी  झगड़ा  नही हुआ । मेरा यहाँ कोई काम नहीं।"
निचौङ
⭐झगड़ा कमजोरी ,  टोटा ,नुकसान  की पहचान है।
जहाँ प्रेम है ,वहाँ लक्ष्मी  का वास है।
🔃सदा प्यार -प्रेम  बांटते रहे।छोटे -बङे  की कदर करे ।
जो बङे हैं ,वो बङे ही रहेंगे ।चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई   से बङी हो।
जरूरी नहीं जो खुद के लिए  कुछ नहीं करते वो दूसरों  के  लिए भी कुछ नहीं करते।आपके परिवार  में ऐसे लोग भी  हैं जिन्होंने  परिवार  को उठाने  में अपनी सारी खुशियाँ दाव पर लगा दी ।लेकिन गलतफहमी  में सबकुछ  अलग-थलग  कर बैठते  हैं।विचार जरूर करे।🔃

Sunday, November 20, 2016

अत्यधिक लाभ

एक बार पंक्षियों का राजा अपने दल के साथ भोजन की खोज में एक जंगल में गया।
'जाओ और जाकर दाने और बीज ढूंढ़ो। मिले तो बताना। सब मिलकर खाएगें।' राजा ने पंक्षियों को आदेश दिया।
सभी पक्षी दानों की तलाश में उधर निकल पड़े। उड़ते-उड़ते एक चिड़िया उस सड़क पर आ गई जहां से गाड़ियों में लदकर अनाज जाता था। उसने सड़क पर अनाज बिखरा देखा। उसने सोचा कि वह राजा को इस जगह के बारे में नहीं बताएगी। पर किसी और चिड़िया ने इधर आकर यह अनाज देख लिया तो...? ठीक है, बता भी दूंगी लेकिन यहां तक नहीं पहुंचने दूंगी।
वह वापस अपने राजा के पास पहुंच गई। उसने वहां जाकर बताया कि राजमार्ग पर अनाज के ढेरों दाने पड़े हैं। लेकिन वहां खतरा बहुत है।
तब राजा ने कहा कि कोई भी वहां न जाए।
इस तरह सब पक्षियों ने राजा की बात मान ली।
वह चिड़िया चुपचाप अकेली ही राजमार्ग की ओर उड़ चली और जाकर दाने चुगने लगी। अभी कुछ ही देर बीती कि उसने देखा एक गाड़ी तेजी से आ रही थी।
चिड़िया ने सोचा, गाड़ी तो अभी दूर है। क्यों न दो-चार दाने और चुग लूं। देखते-देखते गाड़ी चिड़िया के उपर से गुजर गई और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
उधर शाम को राजा ने देखा कि वह चिड़िया नहीं आई है तो उसने सैनिकों को उसे ढूंढ़ने का आदेश दिया।
वे सब ढूंढ़ते-ढूंढ़ते राजमार्ग पर पहुंच गए। वहां देखा तो वह चिड़िया मरी पड़ी थी।

Friday, November 18, 2016

घटना का विश्लेषण

एक पेड़ का डंठल अचानक टूट कर गिरता है। जिसके कारण पेड़ के नीचे सोया हुआ एक बूढ़े व्यक्ति की मौत हो जाती है।
आस-पास के चतुर लोग इस घटना का विश्लेषण करते हुए बूढ़े व्यक्ति के मौत के लिए पेड़ को दोषी ठहरा देते है। इस पर दूसरा चतुर आदमी बोलता है की पेड़ का क्या दोष, दोषी तो वो है, जो इस कमजोर मिटटी में पेड़ लगाया था।
अब पेड़ लगाने वाले को बुलाकर उससे बूढ़े का मौत का जिम्मेदार ठहराया जाता है।
पेड़ लगाने वाला भी चतुर था वो बोला- इसमें मेरा क्या दोष, इस पेड़ की डाली में बगुलों का झुण्ड आकर बैठ गया, जिसके वजन से डाली टूट गई और बूढ़े के ऊपर गिर गई।इसलिए दोषी बगुले है।
दूसरा चतुर आदमी बोला- इन बेजुबान बगुलों का कोई दोष नहीं, ये बगुले पहले स्टेट बैंक के पास वाले पेड़ पर बैठते थे। लेकिन आज-कल वहाँ लम्बी-लम्बी लाइन लगी है और बहुत शोर होता है, जिसके कारण बगुले वहा से यहाँ शिप्ट हो गए। दोषी तो स्टेट बैंक है।
इस पर एक और चतुर आदमी बोलता है- स्टेट बैंक का क्या दोष, *दोषी तो नरेंद्र मोदी है*, जिसने नोट बंदी लगा दिया और उसी के कारण इस बूढ़े की मौत हो गई।
अंत में सभी चतुर लोग एक मत से फैसला करते है की स्टेट बैंक से कोसो दूर एक पेड़ की डाली के नीचे सोये हुए बूढ़े की मौत नरेंद्र मोदी के कारण हुआ है।
विश्वास न हो तो 16 नवम्बर से संसद में सुन लेना..।

Thursday, November 17, 2016

जन्म को सफल कर सकूं

कबीर के बेटे कमाल ने भी अपने पिता के रास्ते पर चलते हुए अपना जीवन ईश्वर की उपासना में समर्पित कर दिया था। वह दिन रात ईश्वर की आराधना में लगे रहते थे और बाकी वक्त परोपकार में बिताते थे। एक दिन काशी नरेश को किसी ने बताया कि कमाल भी कबीर की ही तरह लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि से दूर हैं। उन्हें केवल लोगों के दुख-दर्द दूर करने में आनंद मिलता है और वह कीमती से कीमती भेंट को भी तुच्छ समझते हैं। काशी नरेश यह जानने के लिए कमाल के पास आए और कुछ बातें की।
फिर उन्हें एक बहुमूल्य अंगूठी भेंट करते हुए बोले, 'आपने मुझे ज्ञान के अनमोल मोती प्रदान किए हैं। मैं एक छोटी सी भेंट आपको दक्षिणा में देना चाहता हूं।' कमाल ने अंगूठी की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा और बोले, 'यदि आपके मन में दक्षिणा देने की इच्छा है तो यहीं कहीं इस भेंट को छोड़ दें।' कमाल की बात सुनकर काशी नरेश ने अंगूठी झोंपड़ी के छप्पर पर रख दी और वहां से चले गए। उन्होंने सोचा, भला कोई भी व्यक्ति कीमती अंगूठी की ओर नजर भी न मारे ऐसा कैसे हो सकता है। यह सोचकर वह अगले दिन फिर कमाल के पास पहुंचे। कमाल हंसकर बोले, 'आइए महाराज। आज क्या भेंट लाए हैं।' यह जवाब सुनकर काशी नरेश को अत्यंत हैरानी हुई।
वह बोले, 'आज तो मैं कल भेंट की हुई अंगूठी वापस लेने आया हूं। कहां है वह अंगूठी।' इसपर कमाल बोले, 'मुझे क्या पता। आप जहां छोड़ कर गए होंगे वहीं होगी, मुझे तो उसकी आवश्यकता नहीं थी।' यह सुनकर काशी नरेश ने छप्पर पर हाथ बढ़ाया तो अंगूठी वहीं पाकर चकित रह गए। वह कमाल के पैरों में गिर पड़े और बोले, 'ऐसी विरक्ति मेरे अंदर भी ला दें ताकि मैं भी अपने जन्म को सफल कर सकूं।' कमाल ने उन्हें लाभ-लोभ से मुक्त होकर राजकाज चलाने की सलाह दी।

Wednesday, November 16, 2016

प्रभु के चरण

एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवो में घूम रहा था ,,, घूमते-घूमते उसके कुर्ते का बटन टूट गया,,, उसने अपने मंत्री को कहा कि, पता करो की इस गाँव में कौन सा दर्जी हैं,जो मेरे बटन को सिल सके,,, मंत्री ने पता किया ,, उस
गाँव में सिर्फ एक ही दर्जी था,, जो कपडे सिलने का काम करता था,,, उसको राजा के सामने ले जाया गया,, राजा ने कहा,कय़ा तुम मेरे कुर्ते का बटन सी सकते हो,,, दर्जी ने कहा,यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है,,, उसने मंत्री से बटन ले लिया,,, धागे से उसने राजा के कुर्ते
का बटन फोरन सी दिया,,, क्योंकि बटन भी राजा के पास था,, सिर्फ उसको अपना धागे का प्रयोग करना था,,,  राजा ने दर्जी से पूछा कि,, कितने पैसे दू ,,, उसने कहा, महाराज रहने दो,,, छोटा सा काम था,, उसने मन में सोचा कि,बटन भी राजा के पास था,, उसने तो सिर्फ धागा ही लगाया हैं,,, राजा ने फिर से दर्जी को कहा, कि,,, नहीं नहीं बोलो कितनीे माया दू,,, दर्जी ने सोचा कि,, 2 रूपये मांग लेता हूँ,,, फिर मन में सोचा कि; कहीं राजा यह ने सोचलें,कि ,,, बटन टाँगने के मुझ से 2 रुपये ले रहा हैं,,, तो गाँव वालों से कितना लेता होगा,,, क्योंकि उस जमाने में २ रुपये की कीमत बहुत होती थी,,, दर्जी ने राजा से कहा, कि,, महाराज जो भी आपको उचित लगे ,, वह दे दो,, अब था तो राजा ही,,उसने अपने हिसाब से देना था,, कहीं देने में उसकी पोजीशन ख़राब न हो जाये,,, उसने अपने मंत्री से कहा कि,, इस दर्जी को २ गाँव दे दों, यह हमारा हुकम है ,,, कहाँ वो दर्जी सिर्फ २ रुपये की मांग कर रहा था,, और कहाँ राजा ने उसको २ गाँव दे दिए जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ देते हैं, तो वह अपने हिसाब से देता हैं,, सिर्फ हम मांगने में कमी कर जाते है,,, देने वाला तो पता नही क्या देना चाहता हैं,,, इसलिए संत-महात्मा कहते है,,, प्रभु के चरणों पर अपने आपको -अर्पण कर दों,, फिर देखो उनकी लीला,,

एक बीज की कहानी