Wednesday, November 16, 2016

प्रभु के चरण

एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवो में घूम रहा था ,,, घूमते-घूमते उसके कुर्ते का बटन टूट गया,,, उसने अपने मंत्री को कहा कि, पता करो की इस गाँव में कौन सा दर्जी हैं,जो मेरे बटन को सिल सके,,, मंत्री ने पता किया ,, उस
गाँव में सिर्फ एक ही दर्जी था,, जो कपडे सिलने का काम करता था,,, उसको राजा के सामने ले जाया गया,, राजा ने कहा,कय़ा तुम मेरे कुर्ते का बटन सी सकते हो,,, दर्जी ने कहा,यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है,,, उसने मंत्री से बटन ले लिया,,, धागे से उसने राजा के कुर्ते
का बटन फोरन सी दिया,,, क्योंकि बटन भी राजा के पास था,, सिर्फ उसको अपना धागे का प्रयोग करना था,,,  राजा ने दर्जी से पूछा कि,, कितने पैसे दू ,,, उसने कहा, महाराज रहने दो,,, छोटा सा काम था,, उसने मन में सोचा कि,बटन भी राजा के पास था,, उसने तो सिर्फ धागा ही लगाया हैं,,, राजा ने फिर से दर्जी को कहा, कि,,, नहीं नहीं बोलो कितनीे माया दू,,, दर्जी ने सोचा कि,, 2 रूपये मांग लेता हूँ,,, फिर मन में सोचा कि; कहीं राजा यह ने सोचलें,कि ,,, बटन टाँगने के मुझ से 2 रुपये ले रहा हैं,,, तो गाँव वालों से कितना लेता होगा,,, क्योंकि उस जमाने में २ रुपये की कीमत बहुत होती थी,,, दर्जी ने राजा से कहा, कि,, महाराज जो भी आपको उचित लगे ,, वह दे दो,, अब था तो राजा ही,,उसने अपने हिसाब से देना था,, कहीं देने में उसकी पोजीशन ख़राब न हो जाये,,, उसने अपने मंत्री से कहा कि,, इस दर्जी को २ गाँव दे दों, यह हमारा हुकम है ,,, कहाँ वो दर्जी सिर्फ २ रुपये की मांग कर रहा था,, और कहाँ राजा ने उसको २ गाँव दे दिए जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ देते हैं, तो वह अपने हिसाब से देता हैं,, सिर्फ हम मांगने में कमी कर जाते है,,, देने वाला तो पता नही क्या देना चाहता हैं,,, इसलिए संत-महात्मा कहते है,,, प्रभु के चरणों पर अपने आपको -अर्पण कर दों,, फिर देखो उनकी लीला,,

Sunday, November 13, 2016

गुरूजी की आँखों

गुरूजी विद्यालय से घर लौट रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ती थी । नदी पार करने लगे तो ना जाने क्या सूझा , एक पत्थर पर बैठ अपने झोले में से पेन और कागज निकाल अपने वेतन का  हिसाब  निकालने लगे । अचानक हाथ से पेन फिसला और डुबुक ….
पानी में डूब गया । गुरूजी परेशान । आज ही सुबह पूरे पांच रूपये खर्च कर खरीदा था । कातर दृष्टि से कभी इधर कभी उधर देखते ,
पानी में उतरने का प्रयास करते , फिर डर कर कदम खींच लेते । एकदम नया पेन था , छोड़ कर जाना भी मुनासिब न था  अचानक  पानी में एक तेज लहर उठी , और साक्षात् वरुण देव सामने थे  गुरूजी हक्के -बक्के । कुल्हाड़ी वाली कहानी याद आ गई  वरुण देव ने कहा , ”गुरूजी, क्यूँ इतने परेशान हैं । प्रमोशन , तबादला , वेतनवृद्धि ,क्या चाहिए ? गुरूजी अचकचाकर बोले , ” प्रभु ! आज ही सुबह एक पेन खरीदा था । पूरे पांच रूपये का । देखो ढक्कन भी मेरे हाथ में है । यहाँ पत्थर पर बैठा लिख रहा था कि पानी में गिर गया प्रभु बोले , ” बस इतनी सी बात ! अभी निकाल लाता हूँ ।प्रभु ने डुबकी लगाई , और चाँदी का एक चमचमाता पेन लेकर बाहर आ गए । बोले – ये है आपका पेन ? गुरूजी बोले – ना प्रभु । मुझ गरीब को कहाँ ये चांदी का पेन नसीब । ये मेरा नाहीं । प्रभु बोले – कोई नहीं , एक डुबकी और लगाता हूँ डुबुक ….. इस बार प्रभु सोने का रत्न जडित पेन लेकर आये। बोले – “लीजिये गुरूजी , अपना पेन ।”
गुरूजी बोले – ” क्यूँ मजाक करते हो प्रभु । इतना कीमती पेन और वो भी मेरा । मैं टीचर हूँ । थके हारे प्रभु ने कहा , ” चिंता ना करो गुरुदेव । अबके फाइनल डुबकी होगी । डुबुक …. बड़ी देर बाद प्रभु उपर आये । हाथ में गुरूजी का जेल पेन लेकर । बोले – ये है क्या ?
गुरूजी चिल्लाए – हाँ यही है , यही है । प्रभु ने कहा – आपकी इमानदारी ने मेरा दिल जीत लिया गुरूजी । आप सच्चे गुरु हैं । आप ये तीनों पेन ले लो । गुरूजी ख़ुशी – ख़ुशी घर को चले । गुरूजी ने घर आते ही सारी कहानी पत्नी जी को सुनाई चमचमाते हुवे कीमती पेन भी दिखाए । पत्नी को विश्वास ना हुवा , बोली तुम किसी का चुरा कर लाये हो । बहुत समझाने पर भी जब पत्नी जी ना मानी
तो गुरूजी उसे घटना स्थल की ओर ले चले । दोनों उस पत्थर पर बैठे , गुरूजी ने बताना शुरू किया कि कैसे – कैसे सब हुवा पत्नी एक एक कड़ी को किसी शातिर पुलिसिये की तरह जोड़ रही थी कि अचानक  डुबुक !!! पत्नी का पैर फिसला , और वो गहरे पानी में समा गई गुरूजी की आँखों के आगे तारे नाचने लगे । ये क्या हुवा ! जोर -जोर से रोने लगे । तभी अचानक …… पानी में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगी । नदी का सीना चीरकर साक्षात वरुण देव प्रकट हुवे  बोले – क्या हुआ गुरूजी ? अब क्यूँ रो रहे हो ? गुरूजी ने रोते हु story प्रभु को सुनाई । प्रभु बोले – रोओ मत। धीरज रखो । मैं अभी आपकी पत्नी को निकाल कर लाता हूँ। प्रभु ने डुबकी लगाईं ,और  थोड़ी देर में
वो सनी लियोनी को लेकर प्रकट हुवे । बोले –गुरूजी । क्या यही आपकी पत्नी जी है ?? गुरूजी ने एक क्षण सोचा , और चिल्लाए – हाँ यही है , यही है । अब चिल्लाने की बारी प्रभु की थी । बोले – दुष्ट मास्टर । ठहर तुझे श्राप देता हूँ । गुरूजी बोले – माफ़ करें प्रभु । मेरी कोई गलती नहीं । अगर मैं इसे मना करता तो आप अगली डुबकी में प्रियंका चोपड़ा को लाते । मैं फिर भी मना करता तो आप मेरी पत्नी को लाते । फिर आप खुश होकर तीनों मुझे दे देते । अब आप ही बताओ भगवन , इस महंगाई के जमाने में 7th pay Commission ने भी रुला दिया अब मैं तीन – तीन बीबीयाँ कैसे पालता । सो सोचा , सनी से ही काम चला लूँगा । और इस ठंड में आप भी डुबकियां लगा लगा कर थक गये होंगे । 

Friday, November 11, 2016

खतरनाक समाज

एक अंग्रेज ट्रेन से सफ़र कर रहा था  सामने एक बच्चा बैठा था... अंग्रेज ने बच्चे से पूछा यहाँ  सबसे ज्यादा खतरनाक कौन सी समाज  हैं ??? बच्चा:" महाराष्ट्रीयन,पंजाबी, गुजराती, हरयाणवी,और सबसे ज्यादा तो  लाला कायस्थ अंग्रेज : "क्यों ... क्या ये बाकी कम खतरनाक हैं क्या ???" बच्चा : " नहीं ... ये सब खुद में महाभारत हैं   अंग्रेज : 'ओह   इनके पास जाना डेंजरस है'..
कुछ देर पश्चात
अंग्रेज : 'मैं कैसे जान सकता हूँ कि कौन सा व्यक्ति कितना खतरनाक है ?' बच्चा: 'बैठा रह शान्ति से ... अभी दस घंटे के सफ़र
में सबसे मिलवा दूंगा'.... कुछ ही देर बाद हरियाणा का एक चौधरी मूंछों पे ताव देता हुआ बैठ गया । बच्चा: 'भाई ये हरियाणवी है  अंग्रेज : 'इससे बात कैसे करूँ?' बच्चा: "चुपचाप बैठा रह और मूंछों पर ताव देता रह.. ये खुद बात करेगा तेरे से'... अंग्रेज ने अपनी सफाचट मूछों पर ताव दिया.. चौधरी उठा और अंग्रेज के दो कंटाप जड़े - 'बिन खेती के ही हल चला रिया है तू ..?' थोड़ी देर बाद एक मराठी आ के बैठ गया  बच्चा : 'भाई ये मराठी है  अंग्रेज : 'इससे बात कैसे करूँ ?' बच्चा : 'इससे बोल कि बाम्बे बहुत बढ़िया ..' अंग्रेज ने मराठी से यही बोल दिया.. मराठी उठा और थप्पड़ लगाया - "साले बाम्बे नहीं मुम्बई ... समझा क्या" थोड़ी देर बाद एक गुजराती सामने आकर बैठ
गया। बच्चा : 'भाई ये गुजराती है ...' अंग्रेज गाल सहलाते हुए : 'इससे कैसे बात करूँ ?' बच्चा : 'इससे बोल सोनिया गांधी जिंदाबाद अंग्रेज ने गुजराती से यही कह दिया गुजराती ने कसकर घूंसा मारा - 'नरेन्द्र मोदी जिंदाबाद...एक ही विकल्प- मोदी'.. थोड़ी देर बाद एक सरदार जी आकर बैठ गए । बच्चा : 'देख भाई ये पंजाबी है ...' अंग्रेज ने कराहते हुए पूछा - 'इससे कैसे बात करूँ ..' बच्चा : 'बात न कर बस पूछ ले कि 12 बज गए क्या ?' अंग्रेज ने ठीक यही किया ... अंग्रेज : 'ओ सरदार जी 12 बज गए क्या ? सरदार जी ने आव देखा न ताव अंग्रेज को उठा के नीचे पटक दिया... सरदार : साले खोतया नू ... तेरे को मैं मनमोह सिंह लगता हूँ जो चुप रहूँगा'.... पहले से परेशान अंग्रेज बिलबिला गया . खीझ के बच्चे से  बोला : इन सबसे मिलवा दिया अब लाला कायस्थ से भी मिलवा दो'  बच्चा  बोला - तेरे को पिटवा कौन रहा । है

Wednesday, November 9, 2016

रहीम का जवाब

रहीम एक बहुत बड़े दानवीर थे। उनकी ये एक खास बात थी कि जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।*
*ये बात सभी को अजीब लगती थी कि ये रहीम कैसे दानवीर हैं। ये दान भी देते हैं और इन्हें शर्म भी आती है।*
*ये बात जब तुलसीदासजी तक पहुँची तो उन्होंने रहीम को चार पंक्तियाँ लिख भेजीं जिसमें लिखा था* -
*ऐसी देनी देन जु*
*कित सीखे हो सेन।*
*ज्यों ज्यों कर ऊँचौ करौ*
*त्यों त्यों नीचे नैन।।*
*इसका मतलब था कि रहीम तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो? जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यूँ झुक जाते हैं?*
*रहीम ने इसके बदले में जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो रहीम का कायल हो गया।*
*इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नहीं दिया।*
*रहीम ने जवाब में लिखा* -
*देनहार कोई और है*
*भेजत जो दिन रैन।*
*लोग भरम हम पर करैं*
*तासौं नीचे नैन।।*
*मतलब,
 देने वाला तो कोई और है वो मालिक है वो परमात्मा है वो दिन रात भेज रहा है। परन्तु लोग ये समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ रहीम दे रहा है। ये सोच कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखें नीचे झुक जाती हैं।*

Monday, November 7, 2016

जलती लकड़ी

देवों में देव महादेव की कोई जलती लकड़ी से पिटाई करे ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता लेकिन, यह बात बिल्कुल सच है। बात कुछ 1360 ई. के आस-पास की है। उन दिनों बिहार के विस्फी गांव में एक कवि हुआ करते थे। कवि का नाम विद्यापति था। कवि होने के साथ-साथ विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त भी थे। इनकी भक्ति और रचनाओं से प्रसन्न होकर भगवान शिव को इनके साथ रहने की इच्छा हुई।
भगवान शिव एक दिन एक जाहिल गंवार का वेष बनाकर विद्यापति के घर आ गये और साथ रहने की इच्छा ज़ाहिर की, विद्यापति ने मना कर दिया।भगवान शिव जी ने नोकरी करने की इच्छा जाहिर की। विद्यापति को शिव जी ने अपना नाम उगना बताया। विद्यापति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी अतः उन्होंने उगना को नौकरी पर रखने से मना कर दिया। लेकिन शिव जी मानने वाले कहां थे। सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गये। इस पर विद्यापति की पत्नी ने विद्यापति से उगना को नौकरी पर रखने के लिए कहा। पत्नी की बात मानकर विद्यापति ने उगना को नौकरी पर रख लिया।
एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे। तेज गर्मी के वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा। लेकिन आस-पास जल का कोई स्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से जल का प्रबंध करो अन्यथा मैं प्यासा ही मर जाऊंगा। भगवान शिव कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोलकर एक लोटा गंगा जल भर लाए।
विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगा जल का स्वाद लगा और वह आश्चर्य चकित हो उठे कि इस वन में जहां कहीं जल का स्रोत तक नहीं दिखता यह जल कहां से आया। वह भी ऐसा जल जिसका स्वाद गंगा जल के जैसा है। कवि विद्यापति उगना पर संदेह हो गया कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं अतः उगना से उसका वास्तविक परिचय जानने के लिए जिद करने लगे।
जब विद्यापति ने उगना को शिव कहकर उनके चरण पकड़ लिये तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। उगना के स्थान पर स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गये। शिव ने विद्यापति से कहा कि मैं तुम्हारे साथ उगना बनकर रहना चाहता हूं लेकिन इस बात को कभी किसी से मेरा वास्तविक परिचय मत बताना।
विद्यापति को बिना मांगे संसार के ईश्वर का सानिध्य मिल चुका था। इन्होंने शिव की शर्त को मान लिया। लेकिन एक दिन विद्यापति की पत्नी सुशीला ने उगना को कोई काम दिया। उगना उस काम को ठीक से नहीं समझा और गलती कर बैठा। सुशीला इससे नाराज हो गयी और चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर लगी शिव जी की पिटाई करने। विद्यापति ने जब यह दृश्य देख तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा 'ये साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें जलती लकड़ी से मार रही हो।' फिर क्या था, विद्यापति के मुंह से यह शब्द निकलते ही शिव वहां से अर्न्तध्यान हो गये।
इसके बाद तो विद्यापति पागलों की भांति उगना -उगना कहते हुए वनों में, खेतों में हर जगह उगना बने शिव को ढूंढने लगे। भक्त की ऐसी दशा देखकर शिव को दया आ गयी। भगवान शिव उगना के सामने प्रकट हो गये और कहा कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। उगना रूप में मैं जो तुम्हारे साथ रहा उसके प्रतीक चिन्ह के रूप में अब मैं शिव लिंग के रूप विराजमान रहूंगा। इसके बाद शिव अपने लोक लौट गये और उस स्थान पर शिव लिंग प्रकट हो गया। उगना महादेव का प्रसिद्घ मंदिर वर्तमान में बिहार के मधुबनी जिला में भवानीपुर गांव में स्थित है।

Sunday, November 6, 2016

जो तेरे भीतर बैठा है, वही मेरे भीतर भी बैठा

एक बुढ़िया दूसरे गांव जाने के लिए अपने घर से निकली। उसके पास एक गठरी भी थी। चलते-चलते वह थक गई। थकान की वजह से उसे गठरी का बोझ भारी लगने लगा था। तभी उसने देखा कि पीछे से एक घुड़सवार चला आ रहा है। बुढ़िया ने उसे आवाज दी। घुड़सवार पास आया और बोला, 'क्या बात है अम्मा, मुझे क्यों बुलाया?' 
बुढ़िया ने कहा, 'बेटा, मुझे सामने वाले गांव जाना है। बहुत थक गई हूं। गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। ये गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।' घुड़सवार ने कहा, 'अम्मा, तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। मुझे तो आगे जाना है। वहां क्या तेरा इंतजार करते थोड़े ही बैठा रहूंगा?' यह कहकर वह चल पड़ा। 
कुछ दूर जाने के बाद वह सोचने लगा, 'मैं भी कितना मूर्ख हूं। बुढ़िया ढंग से चल भी नहीं सकती। क्या पता, उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं? वह मुझे गठरी दे रही थी। संभव है, उसमें कीमती सामान हो। मैं उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता! बेकार ही मैंने उसे मना कर दिया।' 
गलती सुधारने की गरज से वह फिर बुढ़िया के पास आकर बोला,'अम्मा, लाओ अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।' किंतु बुढ़िया ने कहा, 'ना बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।' यह सुन घुड़सवार बोला, 'अभी तो तू कह रही थी कि ले चल! अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। यह उल्टी बात तुझे किसने समझाई?' 
बुढ़िया मुस्कराकर बोली, 'उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि बुढ़िया की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है, वही मेरे भीतर भी बैठा है। जब तू लौटकर आया तभी मुझे शक हो गया कि तेरी नीयत में खोट आ गया है।'

Wednesday, November 2, 2016

माँ के पैर

 बहु ने आइने मेँ लिपिस्टिक ठिक करते हुऐ कहा -: "माँ जी, आप अपना खाना बना लेना, मुझे और इन्हें आज एक पार्टी में जाना है ."बुढ़ी माँ ने कहा -: "बेटी मुझे गैस वाला चुल्हा चलाना नहीं आता ...!! "तो बेटे ने कहा -: "माँ, पास वाले मंदिर में आज भंडारा है , तुम वहाँ चली जाओ ना खाना बनाने की कोई नौबत ही नहीं आयेगी....!!! "माँ चुपचाप अपनी चप्पल पहनकर मंदिर की ओर हो चली..... यह पुरा वाक्या 10 साल का बेटा रोहन सुन रहा था | पार्टी में जाते वक्त रास्ते में रोहन ने अपने पापा से कहा "पापा, मैं जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ना तब मैं भी अपना घर किसी मंदिर के पास ही बनाऊंगा ....!!! माँ ने उत्सुकतावश पुछा -: क्यों बेटा ?
रोहन ने जो जवाब दिया उसे सुनकर उस बेटे और बहु का सिर शर्म से नीचे झुक गया जो अपनी माँ को मंदिर में छोड़ आए थे..रोहन ने कहा -: क्योंकि माँ, जब मुझे भी किसी दिन ऐसी ही किसी पार्टी में जाना होगा तब तुम भी तो किसी मंदिर में भंडारे में खाना खाने जाओगी ना और मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कहीं दूर के मंदिर में जाना पड़े....!!!! पत्थर तब तक सलामत है जब तक वो पर्वत से जुड़ा है .
पत्ता तब तक सलामत है जब तक वो पेड़ से जुड़ा है इंसान तब तक सलामत है जब तक वो परिवार से जुड़ा है . क्योंकि परिवार से अलग होकर आज़ादी तो मिल जाती है लेकिन संस्कार चले जाते हैं .. एक कब्र पर लिखा था... "किस को क्या इलज़ाम दूं दोस्तो...,
जिन्दगी में सताने वाले भी अपने थे, और दफनाने वाले भी अपने थे...
न अपनों से खुलता है,

न ही गैरों से खुलता है.

ये जन्नत का दरवाज़ा है,

मेरी माँ के पैरो से खुलता है.!!
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