Sunday, October 30, 2016

संगती का फल

एक वृक्ष पर कौआ रहता था। उसी की संगती sangati में एक हंस भी रहता था। काफी समय से दोनों यहीँ पर रह रहे थे। समय बीतता गया और दोनों में दोस्ती हो गई। लेकिन कौवे और हंस के रंग, रूप, स्वभाव, गुण, दोष मैं काफी अन्तर होते हुए भी हंस ने मित्रता जारी रखी।
एक दिन शिकारी जंगल में शिकार करने आया। शिकार करने के बाद, कुछ देर आराम करने का विचार करते हुए वह उस वृक्ष के निचे जा पहुँचा जहाँ हंस और कौआ रहते थे। शिकारी पेड़ के निचे लेट गया। शिकारी काफी थका हुआ था, इसलिए नींद आ गई।
हंस और कौवा यह सब देख रहे थे। थोडी देर मैं शिकारी पर धुप पड़ने लगी’ जब हंस ने देखा की शिकारी के पर सूरज की किरणे पड़ रही हैं, तो डालियों पर जन्हा से धुंप आ रखी थी अपने पंख फेलाकर बेठ गया जिसके कारण किरणे निचे नहीं पहुँचती थीं।
इतने में कोए को शैतानी सूझी क्योंकि यह उसका स्वभाव था। उसने उस शिकारी के मुँह पर मल मूत्र त्याग दिया और पेड़ से उड़ गया।
शिकारी को बहुत बुरा लगा। उसने अपने चारों तरफ देखा! उसे केवल हंस दिखाई दिया। शिकारी ने सोचा कि यह सब इसी हंस ने किया है।
शिकारी ने पास पड़ी बन्दूक उठाई और हंस पर निशाना लगाया और धाएं से गोली चलादी जो सीधी हंस को लगी। हंस नीचे गिर पड़ा। हंस ने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था। यदि वह दुष्ट कौवे की sangati में ना रहता तो हंस बे मौत न माराजाता।
शिक्षा :- किसी ने ठीक ही कहा है की बुरी sangati संगती अच्छी नही होती काहावत है की शराब बेचने वाले की लड़की यदि दूध लेकर जाती हो तो लोग यह सोचेंगे की यह शराब ले जा रही है, इसी प्रकार दुष्ट और शैतान लोग शरारत करके मोके से भाग जाते हैं, और बदले में शरीफ पकड़े जाते हैं, अत: दुष्ट का साथ कुछ देर के लिए भी नही करना चाहिए,

Wednesday, October 26, 2016

एक भिखारी

एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल दिए, इस अंधविश्वास के कारण कि भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देखकर दूसरों को भी लगता है कि इसे पहले से ही किसी ने कुछ दे रखा है।*
*पूर्णिमा का दिन था। भिखारी सोच रहा था कि आज अगर ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती हुई दिखाई दी।*
*भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा कि राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से आज तो उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएंगी और उसका जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रूकवाया और उतर कर उसके निकट पहुंचे।*
*भिखारी की तो मानो सांसें ही रूकने लगीं, लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उल्टे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और उससे भीख की याचना करने लगा। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुनः याचना की। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था।*
*जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकाले और राजा की चादर में डाल दिए। उस दिन हालांकि भिखारी को अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा। शाम को जब उसने अपनी झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही।*
*जो जौ वह अपने साथ झोली में ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। अब उसे समझ में आया कि यह दान की महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि - काश! उस समय उसने राजा को और अधिक जौ दिए होते लेकिन दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने की आदत जो नहीं थी।*

*शिक्षा-*
*१. देने से कोई चीज कभी घटती नहीं।*
*२. लेने वाले से देने वाला बड़ा होता है।*
*३. अंधेरे में छाया बुढ़ापे में काया और अन्त समय में माया किसी का साथ नहीं देती*

Thursday, October 20, 2016

*दही की कीमत

गुप्ता जी जब लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु गुप्ता जी ने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी।
पुत्र जब वयस्क हुआ तो गुप्ता जी ने पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी मंदिर और आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे। पुत्र की शादी के बाद गुप्ता जी और अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया।
पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दुपहरी में गुप्ता जी खाना खा रहे थे, पुत्र भी ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये। पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया।
लगभग दस दिन बाद पुत्र ने गुप्ता जी से कहा- ‘‘ पापा आज आपको कोर्ट चलना है,आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’
पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा विवाह क्यों?’’
पुत्र ने कहा ‘‘ पिता जी, न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी,मैं तो केवल आपके लिये
दही का इन्तजाम कर रहा हूँ।
कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’

Wednesday, October 19, 2016

गरीबो का हक

एक गरीब FAMILY थी..! जिस मे 5 लोग थे...। माँ बाप और 3 बच्चे बाप हमेशा बीमार रहता था । एक दिन वो मर गया । 3 दिन तक पड़ोसियों ने खाना भेजा । बाद में भूखे रहने के दिन आ गए..। माँ ने कुछ दिन तक जैसे तैसे बच्चों को खाना खिलाया । लेकिन कब तक आखिर फिर से भूखे रहना पड़ा । जिस की वजह से 8 साल का बेटा बीमार हो गया । और बिस्तर पकड़ लिया....। एक दिन 5 साल की बच्ची ने माँ के कान में पूछा । माँ भाई कब मरेगा....?? माँ ने तड़प कर पूछा, ऐसा क्यों पूछ रही हो बच्ची ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, जिसे सुन कर आप की आँखों में आँसु आ जायेंगे...! बच्ची का जवाब था । माँ भाई मरेगा तो घर में
खाना आएगा ना...! भाइयो और बहनो, भुख दुनिया में सबसे बड़ी है सुबह मिटाओ शाम को फिर खड़ी है।।
आपके खाने में गरीबो का भी
हक है ।

Tuesday, October 18, 2016

.मुझमें राम ,तुझमें राम

एक ब्राम्हण था, कृष्ण के  मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था। उसकी पत्नी इस बात से  हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात  में वह पहले भगवान को लाता।  भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज  पहले भगवान को समर्पित करता। एक दिन घर में लड्डू बने।  ब्राम्हण ने लड्डू लिए और भोग लगाने चल दिया।  पत्नी इससे नाराज हो गई,
कहने लगी कोई पत्थर की  मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं  जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ  दौड़ पड़ते हो।
अबकी बार बिना खिलाए न  लौटना, देखती हूं कैसे भगवान खाने आते हैं।  बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के
ताने सुनकर ठान ली कि बिना  भगवान को खिलाए आज मंदिर  से लौटना नहीं है।  मंदिर में जाकर धूनि लगा ली।  भगवान के सामने लड्डू रखकर विनती करने लगा।  एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता,  न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा। आसपास देखने वालों  की भीड़ लग गई।  सभी कौतुकवश देखने  लगे कि आखिर होना क्या है। मक्खियां भिनभिनाने लगी  ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।  मीठे की गंध से चीटियां  भी लाईन लगाकर चली आईं।
ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया,  फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा  कुत्ते भी ललचाकर आने लगे।  ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।  लड्डू पड़े देख मंदिर के  बाहर बैठे भिखारी भी आए गए।  एक तो चला सीधे  लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।  दिन ढल गया, शाम हो गई।  न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।  शाम से रात हो गई। लोगों ने सोचा ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं,  भगवान तो आने से रहे।  धीरे-धीरे सब घर चले गए। ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया। लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।  भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी  तो दिनभर से ही इस घड़ी का इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े।  उदास ब्राम्हण भगवान को  कोसता हुआ घर लौटने लगा।  इतने सालों की सेवा बेकार  चली गई।कोई फल नहीं मिला।  ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया। रात को सपने में भगवान आए।  बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने।  बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह  ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा होता। कितने रूप धरने पड़े  तेरे लड्डू खाने के लिए। मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी।  पर तुने हाथ नहीं धरने दिया।  दिनभर इंतजार करना पड़ा। आखिर में लड्डू खाए  लेकिन जमीन से उठाकर  खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी।  अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना।  भगवान चले गए। ब्राम्हण की नींद खुल गई।  उसे एहसास हो गया। भगवान तो आए थे खाने  लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।  बस, ऐसे ही हम भी भगवान
के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं।
.मुझमें राम ,तुझमें राम
सबमें राम समाया,
सबसे करलो प्रेम जगतमें ,
कोई नहीं पराया....
"जय बाबा बालक नाथ जी."

Monday, October 17, 2016

प्रेम कभी अकेला नहीं

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर
हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर
लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और
बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।
 

Friday, October 14, 2016

माँ बाप का प्यार

एक छोटे बालक को आम का पेड बहोत पसंद था। जब भी फुर्सत मिलती वो तुरंत आम के पेड के पास पहुंच जाता। पेड के उपर चढना, आम खाना और खेलते हुए थक जाने पर आम की छाया मे ही सो जाना। बालक और उस पेड के बीच एक अनोखा संबंध बंध गया था।
*
बच्चा जैसे जैसे बडा होता गया वैसे वैसे उसने पेड के पास आना कम कर दिया।
 कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बंद हो गया।
आम का पेड उस बालक को याद करके अकेला रोता रहता।
एक दिन अचानक पेड ने उस बच्चे को अपनी और आते देखा। आम का पेड खुश हो गया।
*
बालक जैसे ही पास आया  तुरंत पेड ने कहा, "तु कहां चला गया था? मै रोज़ तुम्हे याद किया करता था। चलो आज दोनो खेलते है।"
बच्चा अब बडा हो चुका था, उसने आम के पेड से कहा, अब मेरी खेलने की उम्र नही है। मुझे पढना है,
पर मेरे पास फी भरने के लिए पैसे नही है।"
पेड ने कहा, "तु मेरे आम लेकर बाजार मे जा और बेच दे,
 इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।"
*
उस बच्चे ने आम के पेड से सारे आम उतार लिए, पेड़ ने भी ख़ुशी ख़ुशी दे दिए,और वो बालक उन सब आमो को लेकर वहा से चला गया।
*
उसके बाद फिर कभी वो दिखाई नही दिया।
 आम का पेड उसकी राह देखता रहता।
 एक दिन अचानक फिर वो आया और कहा,
अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मेरा संसार तो चल रहा है पर मुझे मेरा अपना घर बनाना है इसके लिए मेरे पास अब पैसे नही है।"
*
आम के पेड ने कहा, " तू चिंता मत कर अभी में हूँ न,
तुम मेरी सभी डाली को काट कर ले जा,
उसमे से अपना घर बना ले।"
उस जवान ने पेड की सभी डाली काट ली और ले के चला गया।
*
आम का पेड के पास कुछ नहीं था वो  अब बिल्कुल बंजर हो गया था।
कोई उसके सामने भी नही देखता था।
 पेड ने भी अब वो बालक/ जवान उसके पास फिर आयेगा यह आशा छोड दी थी।
*
फिर एक दिन एक वृद्ध वहां आया। उसने आम के पेड से कहा,
 तुमने मुझे नही पहचाना, पर मै वही बालक हूं जो बारबार आपके पास आता और आप उसे हमेशा अपने टुकड़े काटकर भी मेरी मदद करते थे।"
आम के पेड ने दु:ख के साथ कहा,
"पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नही जो मै तुझे दे सकु।"
वृद्ध ने आंखो मे आंसु के साथ कहा,
 "आज मै कुछ लेने नही आया हूं, आज तो मुझे तुम्हारे साथ जी भरके खेलना है, तुम्हारी गोद मे सर रखकर सो जाना है।"
*
ईतना कहते वो रोते रोते आम के पेड से लिपट गया और आम के पेड की सुखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी।
*
वो वृक्ष हमारे माता-पिता समान है, जब छोटे थे उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।
जैसे जैसे बडे होते गये उनसे दुर होते गये।पास तब आये जब जब कोई जरूरत पडी, कोई समस्या खडी हुई।

आज भी वे माँ बाप उस बंजर पेड की तरह अपने बच्चों की राह देख रहे है।

आओ हम जाके उनको लिपटे उनके गले लग जाये जिससे उनकी वृद्धावस्था फिर से अंकुरित हो जाये।

यह कहानी पढ कर थोडा सा भी किसी को एहसास हुआ हो और अगर अपने माता-पिता से थोडा भी प्यार करते हो तो...
माँ बाप आपको सिर्फ प्यार प्यार प्यार  देंगे.