Saturday, September 17, 2016

प्रेम ही सफल जीवन का राज

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”“पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में  प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं। 
इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार पढ़ें ........
अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें,  प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें क्यों कि प्रेम ही सफल जीवन का राज है। 

Thursday, September 15, 2016

एक ब्राम्हण

एक ब्राम्हण था, कृष्ण के मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था। उसकी पत्नी इस बात से  हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात  में वह पहले भगवान को लाता। भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज  पहले भगवान को समर्पित करता। एक दिन घर में लड्डू बने। ब्राम्हण ने लड्डू लिए और भोग लगाने चल दिया। पत्नी इससे नाराज हो गई,  कहने लगी कोई पत्थर की  मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं  जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ  दौड़ पड़ते हो।  अबकी बार बिना खिलाए न  लौटना, देखती हूं कैसे भगवान खाने आते हैं। बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के  ताने सुनकर ठान ली कि बिना  भगवान को खिलाए आज मंदिर  से लौटना नहीं है। मंदिर में जाकर धूनि लगा ली। भगवान के सामने लड्डू रखकर विनती करने लगा। एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता, न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा। आसपास देखने वालों की भीड़ लग गई।  सभी कौतुकवश देखने  लगे कि आखिर होना क्या है। मक्खियां भिनभिनाने लगी  ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।  मीठे की गंध से चीटियां  भी लाईन लगाकर चली आईं।  ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया,  फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा  कुत्ते भी ललचाकर आने लगे।  ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।  लड्डू पड़े देख मंदिर के  बाहर बैठे भिखारी भी आए गए।  एक तो चला सीधे  लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने  जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।  दिन ढल गया, शाम हो गई।  न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।  शाम से रात हो गई। लोगों ने सोचा ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं,  भगवान तो आने से रहे।  धीरे-धीरे सब घर चले गए।  ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया। लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।  भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी तो दिनभर से ही इस घड़ी क इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े।  उदास ब्राम्हण भगवान को कोसता हुआ घर लौटने लगा।  इतने सालों की सेवा बेकार चली गई।कोई फल नहीं मिला।  ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया। रात को सपने में भगवान आए।  बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने।  बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह  ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा होता। कितने रूप धरने पड़े  तेरे लड्डू खाने के लिए। मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी।  पर तुने हाथ नहीं धरने दिया।  दिनभर इंतजार करना पड़ा। आखिर में लड्डू खाए लेकिन जमीन से उठाकर खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी।  अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना।  भगवान चले गए। ब्राम्हण की नींद खुल गई।  उसे एहसास हो गया।  भगवान तो आए थे खाने  लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।  बस, ऐसे ही हम भी भगवान के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं।
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****मुझमें राम ,तुझमें राम
सबमें राम समाया,
सबसे करलो प्रेम जगतमें ,
कोई नहीं पराया....

Tuesday, September 13, 2016

भगवान के संकेत

एक ब्राम्हण था, कृष्ण के  मंदिर में बड़ी सेवा किया करता था।  उसकी पत्नी इस बात से  हमेशा चिढ़ती थी कि हर बात  में वह पहले भगवान को लाता।  भोजन हो, वस्त्र हो या हर चीज  पहले भगवान को समर्पित करता। एक दिन घर में लड्डू बने।  ब्राम्हण ने लड्डू लिए और भोग लगाने चल दिया। पत्नी इससे नाराज हो गई,  कहने लगी कोई पत्थर की  मूर्ति जिंदा होकर तो खाएगी नहीं जो हर चीज लेकर मंदिर की तरफ  दौड़ पड़ते हो।  अबकी बार बिना खिलाए न  लौटना, देखती हूं कैसे भगवान खाने आते हैं।  बस ब्राम्हण ने भी पत्नी के ताने सुनकर ठान ली कि बिना  भगवान को खिलाए आज मंदिर  से लौटना नहीं है।  मंदिर में जाकर धूनि लगा ली।  भगवान के सामने लड्डू रखकर विनती करने लगा।  एक घड़ी बीती। आधा दिन बीता, न तो भगवान आए न ब्राम्हण हटा। आसपास देखने वालों
की भीड़ लग गई।  सभी कौतुकवश देखने  लगे कि आखिर होना क्या है।.मक्खियां भिनभिनाने लगी  ब्राम्हण उन्हें उड़ाता रहा।  मीठे की गंध से चीटियां भी लाईन लगाकर चली आईं।  ब्राम्हण ने उन्हें भी हटाया, फिर मंदिर के बाहर खड़े आवारा  कुत्ते भी ललचाकर आने लगे। ब्राम्हण ने उनको भी खदेड़ा।  लड्डू पड़े देख मंदिर के  बाहर बैठे भिखारी भी आए गए। एक तो चला सीधे  लड्डू उठाने तो ब्राम्हण ने जोर से थप्पड़ रसीद कर दिया।  दिन ढल गया, शाम हो गई।  न भगवान आए, न ब्राम्हण उठा।  शाम से रात हो गई। लोगों ने सोचा
ब्राम्हण देवता पागल हो गए हैं, भगवान तो आने से रहे।  धीरे-धीरे सब घर चले गए। ब्राम्हण को भी गुस्सा आ गया। लड्डू उठाकर बाहर फेंक दिए।  भिखारी, कुत्ते,चीटी, मक्खी तो दिनभर से ही इस घड़ी का इंतजार कर रहे थे, सब टूट पड़े। उदास ब्राम्हण भगवान को
कोसता हुआ घर लौटने लगा। इतने सालों की सेवा बेकार  चली गई।कोई फल नहीं मिला। ब्राम्हण पत्नी के ताने सुनकर सो गया। रात को सपने में भगवान आए। बोले-तेरे लड्डू खाए थे मैंने। बहुत बढिय़ा थे, लेकिन अगर सुबह ही खिला देता तो ज्यादा अच्छा होता। कितने रूप धरने पड़े तेरे लड्डू खाने के लिए। मक्खी, चीटी, कुत्ता, भिखारी। पर तुने हाथ नहीं धरने दिया। दिनभर इंतजार करना पड़ा। आखिर में लड्डू खाए लेकिन जमीन से उठाकर  खाने में थोड़ी मिट्टी लग गई थी। अगली बार लाए तो अच्छे से खिलाना। भगवान चले गए।
ब्राम्हण की नींद खुल गई। उसे एहसास हो गया।  भगवान तो आए थे खाने  लेकिन मैं ही उन्हें पहचान नहीं पाया।  बस, ऐसे ही हम भी भगवान के संकेतों को समझ नहीं पाते हैं।
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मुझमें राम ,तुझमें राम
सबमें राम समाया,
सबसे करलो प्रेम जगतमें ,
कोई नहीं पराया....

Friday, September 9, 2016

तीन बीबीयाँ

गुरूजी विद्यालय से घर लौट रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ती थी ।  नदी पार करने लगे तो ना जाने क्या सूझा ,
एक पत्थर पर बैठ अपने झोले में से पेन और कागज निकाल अपने वेतन का  हिसाब  निकालने लगे अचानक हाथ से पेन फिसला और डु बुक पानी में डूब गया । गुरूजी परेशान । आज ही सुबह पूरे पांच रूपये खर्च कर खरीदा था । कातर दृष्टि से कभी इधर कभी उधर देखते , पानी में उतरने का प्रयास करते , फिर डर कर कदम खींच लेते । एकदम नया पेन था , छोड़ कर जाना भी मुनासिब न था । अचानक. पानी में एक तेज लहर उठी ,
और साक्षात् वरुण देव सामने थे । गुरूजी हक्के -बक्के । कुल्हाड़ी वाली कहानी याद आ गई । वरुण देव ने कहा , ”गुरूजी, क्यूँ इतने परेशान हैं । प्रमोशन , तबादला , वेतनवृद्धि ,क्या चाहिए ? गुरूजी अचकचाकर बोले , ” प्रभु ! आज ही सुबह एक पेन खरीदा था । पूरे पांच रूपये का । देखो ढक्कन भी मेरे हाथ में है । यहाँ पत्थर पर बैठा लिख रहा था कि पानी में गिर गया प्रभु बोले , ” बस इतनी सी बात ! अभी निकाल लाता हूँ ।”प्रभु ने डुबकी लगाई , और चाँदी का एक चमचमाता पेन लेकर बाहर आ गए । बोले – ये है आपका पेन ? गुरूजी बोले – ना प्रभु । मुझ गरीब को कहाँ ये चांदी का पेन नसीब । ये मेरा नाहीं । प्रभु बोले – कोई नहीं , एक डुबकी और लगाता हूँ
डुबुक  इस बार प्रभु सोने का रत्न जडित पेन लेकर आये। बोले – “लीजिये गुरूजी , अपना पेन ।” गुरूजी बोले – ” क्यूँ मजाक करते हो प्रभु । इतना कीमती पेन और वो भी मेरा । मैं टीचर हूँ । थके हारे प्रभु ने कहा , ” चिंता ना करो गुरुदेव ।अबके फाइनल डुबकी होगी । डुबुक  बड़ी देर बाद प्रभु उपर आये । हाथ में गुरूजी का जेल पेन लेकर बोले – ये है क्या ? गुरूजी चिल्लाए – हाँ यही है , यही है । प्रभु ने कहा – आपकी इमानदारी ने मेरा दिल जीत
लिया गुरूजी । आप सच्चे गुरु हैं । आप ये तीनों पेन ले लो । गुरूजी ख़ुशी – ख़ुशी घर को चले ।

कहानी अभी बाकी है दोस्तों —

गुरूजी ने घर आते ही सारी कहानी पत्नी जी को सुनाई चमचमाते हुवे कीमती पेन भी दिखाए । पत्नी को विश्वास ना हुवा , बोली तुम किसी का चुरा कर लाये हो । बहुत समझाने पर भी जब पत्नी जी ना मानी
तो गुरूजी उसे घटना स्थल की ओर ले चले । दोनों उस पत्थर पर बैठे , गुरूजी ने बताना शुरू किया कि कैसे – कैसे सब हुवा पत्नी एक एक कड़ी को किसी शातिर पुलिसिये की तरह जोड़ रही थी कि  अचानक …….
डुबुक !!! पत्नी का पैर फिसला , और वो गहरे पानी में समा गई । गुरूजी की आँखों के आगे तारे नाचने लगे ।
ये क्या हुवा ! जोर -जोर से रोने लगे । तभी अचानक  पानी में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगी । नदी का सीना चीरकर साक्षात वरुण देव प्रकट हुवे । बोले – क्या हुआ गुरूजी ? अब क्यूँ रो रहे हो ? गुरूजी ने रोते हु story प्रभु को सुनाई । प्रभु बोले – रोओ मत। धीरज रखो । मैं अभी आपकी पत्नी को निकाल कर लाता हूँ।  प्रभु ने डुबकी लगाईं , और ….. थोड़ी देर में वो सनी लियोनी को लेकर प्रकट हुवे ।
बोले –गुरूजी । क्या यही आपकी पत्नी जी है ?? गुरूजी ने एक क्षण सोचा , और चिल्लाए – हाँ यही है , यही है ।
अब चिल्लाने की बारी प्रभु की थी । बोले – दुष्ट मास्टर । ठहर तुझे श्राप देता हूँ । गुरूजी बोले – माफ़ करें प्रभु मेरी कोई गलती नहीं । अगर मैं इसे मना करता तो आप अगली डुबकी में प्रियंका चोपड़ा को लाते । मैं फिर भी मना करता तो आप मेरी पत्नी को लाते । फिर आप खुश होकर तीनों मुझे दे देते । अब आप ही बताओ भगवन ,
इस महंगाई के जमाने में  7th pay Commission ने भी रुला दिया अब मैं तीन – तीन बीबीयाँ कैसे पालता ।
सो सोचा , सनी से ही काम चला लूँगा । और इस ठंड में आप भी डुबकियां लगा लगा कर थक गये होंगे ।
जाइये विश्राम करिए

छपाक …

एक आवाज आई ।

प्रभु बेहोश होकर पानी में गिर गए थे ।

गुरूजी सनी का हाथ थामे
सावधानीपूर्वक धीरे – धीरे नदी पार कर रहे थे ।

Tuesday, September 6, 2016

भारतीय नर्क

एक बार एक व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिका वासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर
आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा...  ! यह सुनकरवह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक- एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे  भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे, उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि सजा क्या है ? पहरेदार ने कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा...  ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से
जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़ मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ
जाओ अन्दर !!!

Sunday, September 4, 2016

समोसे की दुकान

एक बडी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी.
लंच टाइम मे अक्सर कंपनी के कर्मचारी वहा आकर समोसे खाया करते थे.
एक दिन कंपनी के एक मॅनेजर समोसे खाते खाते समोसेवाले से मजाक के मूड मे आ गये.
मॅनेजर साहब ने समोसेवाले से कहा, "यार गोपाल, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छेसे मेंटेन की है. लेकीन क्या तुम्हे नही लगता के तुम अपना समय और टॅलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो.? सोचो अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी मे काम कर रहे होते तो आज कहा होते.. हो सकता है शायद तुम भी आज मॅनेजर होते मेरी तरह.."
इस बात पर समोसेवाले गोपाल ने बडा सोचा. और बोला, " सर ये मेरा काम अापके काम से कही बेहतर है. 10 साल पहले जब मै टोकरी मे समोसे बेचता था तभी आपकी जाॅब लगी थी. तब मै महीना हजार रुपये कमाता था और आपकी पगार थी १० हजार.
इन 10 सालो मे हम दोनो ने खूब मेहनत की..
आप सुपरवाइजर से मॅनेजर बन गये.
और मै टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुच गया.
आज आप महीना ५०,००० कमाते है
 और मै महीना २,००,०००
 लेकीन इस बात के लिए मै मेरे काम को आपके काम से बेहतर नही कह रहा हूँ.
ये तो मै बच्चो के कारण कह रहा हूँ.
जरा सोचिए सर मैने तो बहुत कम कमाइ पर धंदा शुरू किया था. मगर मेरे बेटे को यह सब नही झेलना पडेगा.
मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी. मैने जिंदगी मे जो मेहनत की है, वो उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे.
जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे..
अब आपके बेटे को आप डिरेक्टली अपनी पोस्ट पर तो नही बिठा सकते ना..
उसे भी आपकी ही तरह झीरो से शुरूआत करनी पडेगी.. और अपने कार्यकाल के अंत मे वही पहुच जाएगा जहा अभी आप हो.
जबकी मेरा बेटा बिजनेस को यहा से और आगे ले जाएगा..
और अपने कार्यकाल मे हम सबसे बहुत आगे निकल जाएगा..
अब आप ही बताइये किसका समय और टॅलेंट बर्बाद हो रहा है? "
मॅनेजर साहब ने समोसेवाले को २ समोसे के २० रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहा से खिसक लिये.

Friday, September 2, 2016

मानव धर्म एक

मुशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा : "स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लहा एक ही है।  यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ? "स्वामी जी बोले, "सत्य है।". मुशी जी बोले ,"तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये।  जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख्ख, ईसाइ और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये। एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था। सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता। ".स्वामी हँसते हुए बोले, "मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते। केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते!". फैज अली ने कहा सच कहा आपने  यदि  एक ही दाल होती  तो  खाने का स्वाद भी  एक ही होता। दुनिया तो  बङी फीकी सी हो जाती! स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी! इसीलिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए  ताकि हम  पिंजरे का भेद भूलकर  जीव की एकता को पहचाने। मुशी जी ने पूछा, इतने मजहब क्यों ?स्वामी जी ने कहा, " मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं, प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है। "मुशी जी ने कहा कि, " ऐसा क्यों है कि  एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ  और दूसरे में कहा गया है कि  गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ; इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।" स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,"क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?" मुंशी जी बोले नही,"मजहबी लोग यही कहते हैं।" स्वामी जी बोले, "मित्र!  किसी भी देश या प्रदेश का भोजन  वहाँ की जलवायु की देन है। सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह  सागर से पकङ कर  मछलियां ही खायेगा।
उपजाऊ भूमि के प्रदेश में  खेती हो सकती है। वहाँ  अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है। उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे। उन्होने  गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना ।
क्योंकि  ये सब  उनका पालन पोषण माता के समान ही करती हैं।" "अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? खेती नही होगी तो वे  गाय और बैल का क्या करेंगे? अन्न है नही  तो खाद्य के रूप में  पशु को ही खायेंगे। तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है? वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें। "स्वामी जी फैज अलि की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, " हिन्दु कहते हैं कि  मंदिर में जाने से पहले या  पूजा करने से पहले  स्नान करो। मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजु करते हैं।  क्या अल्लहा ने कहा है कि नहाओ मत, केवल लोटे भर पानी से  हांथ-मुँह धो लो? "फैज अलि बोला, क्या पता कहा ही होगा!  स्वामी जी ने आगे कहा, नहीं, अल्लहा ने नही कहा! अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए।  जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है। यह तो 
भारत में ही संभव है,  जहाँ नदियां बहती हैं, झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं। तिब्बत में यदि पानी हो  तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा। यह सब  प्रकृति ने  सबको समझाने के लिये किया है। "स्वामी विवेका नंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि," मनुष्य की मृत्यु होती है। उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है। अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी। अतः  वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ,  जिसे आप दफनाना कहते हैं। भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे, लकडी.पर्याप्त उपलब्ध थी अतः भारत में  अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। जिस देश में जो सुविधा थी  वहाँ उसी का प्रचलन बढा। वहाँ जो मजहब पनपा  उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया। "फैज अलि विस्मित होते हुए बोला!  "स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें  शव का अंतिम संस्कार  प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिये। मजहब के अनुसार नही। "स्वामी जी बोले , "हाँ! यही उचित है। " किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया। मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नही करना चाहता। हिन्दु मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी  इसलिए  उसे मृत शरीर से  एक क्षंण भी मोह नही होता। "फैज अलि ने पूछा  कि, "एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए  तो क्या  प्रभु नाराज नही होंगे? "स्वामी जी ने कहा," प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश हैं। वैसे प्रभु कभी रुष्ट नही होते  वे प्रेमसागर हैं,  करुणा सागर है। "फैज अलि ने पूछा  तो हमें  उनसे डरना नही चाहिए? स्वामी जी बोले, "नही!  हमें तो  ईश्वर से प्रेम करना चाहिए  वो तो पिता समान है,  दया का सागर है  फिर उससे भय कैसा। डरते तो उससे हैं हम जिससे हम प्यार नही करते। "फैज अलि ने हाँथ जोङकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा, "तो फिर  मजहबों के कठघरों से  मुक्त कैसे हुआ जा सकता है? "स्वामी जी ने फैज अलि की तरफ देखते हुए  मुस्कराकर कहा, "क्या तुम सचमुच  कठघरों से मुक्त होना चाहते हो?" फैज अलि ने स्वीकार करने की स्थिति में  अपना सर हिला दिया।
स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा, "फल की दुकान पर जाओ,  तुम देखोगे  वहाँ  आम, नारियल, केले, संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते हैं; किंतु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है। वहाँ अलग-अलग नाम से फल ही रखे होते हैं। " फैज अलि ने  हाँ में सर हिला दिया। स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा कि ,"अंश से अंशी की ओर चलो।  तुम पाओगे कि सब  उसी प्रभु के रूप हैं। "फैज अलि  अविरल आश्चर्य से  स्वामी विवेकानंद जी को  देखते रहे और बोले  "स्वामी जी  मनुष्य  ये सब क्यों नही समझता? "स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा, मित्र! प्रभु की माया को कोई नही समझता। मेरा मानना तो यही है कि, "सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है। जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं,  उसी प्रकार सब मतमतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं।  मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।"...