Monday, June 28, 2021

कठिन परिस्थिति

एक छोटे से इतालवी शहर में, सैकड़ों साल पहले, एक छोटे व्यवसाय के मालिक पर एक ऋण-शार्क के लिए एक बड़ी राशि बकाया थी। लोन-शार्क एक बहुत बूढ़ा, अनाकर्षक दिखने वाला लड़का था जो व्यवसाय के मालिक की बेटी को पसंद आया।

उसने व्यवसायी को एक ऐसा सौदा करने की पेशकश करने का फैसला किया जो उस पर बकाया कर्ज को पूरी तरह से मिटा देगा। हालाँकि, पकड़ यह थी कि हम कर्ज तभी मिटाएंगे जब वह व्यवसायी की बेटी से शादी कर सकता है।
कहने की जरूरत नहीं है कि इस प्रस्ताव को घृणा की दृष्टि से देखा गया था।
लोन-शार्क ने कहा कि वह एक बैग में दो कंकड़ डालेगा, एक सफेद और एक काला।
बेटी को तब बैग में पहुंचना होगा और एक कंकड़ निकालना होगा। काला होता तो कर्ज मिट जाता, लेकिन कर्जदार उससे शादी कर लेता। सफेद होता तो कर्ज भी मिट जाता, लेकिन बेटी को कर्जदार से शादी नहीं करनी पड़ती।
व्यापारी के बगीचे में कंकड़-बिखरे रास्ते पर खड़े होकर, ऋण-शार्क झुक गया और दो कंकड़ उठा लिए।
जब वह उन्हें उठा रहा था, बेटी ने देखा कि उसने दो काले कंकड़ उठाए हैं और उन दोनों को बैग में रख दिया है।
फिर उन्होंने बेटी को बैग में पहुंचने और एक लेने के लिए कहा।
बेटी के पास स्वाभाविक रूप से तीन विकल्प थे कि वह क्या कर सकती थी:
बैग से एक कंकड़ लेने से मना करें।
दोनों कंकड़ को बैग से बाहर निकालें और ऋण-शार्क को धोखा देने के लिए बेनकाब करें।
बैग से एक कंकड़ उठाओ, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि वह काला था और अपने पिता की स्वतंत्रता के लिए खुद को बलिदान कर दिया।
उसने बैग से एक कंकड़ निकाला, और उसे देखने से पहले 'गलती से' उसे अन्य कंकड़ के बीच में गिरा दिया। उसने ऋण-शार्क से कहा;
ओह, मैं कितना अनाड़ी हूं। कोई बात नहीं, यदि आप बैग में जो बचा है, उसे देखें, तो आप बता पाएंगे कि मैंने कौन सा कंकड़ उठाया है।
कहानी का निष्कर्ष
बैग में छोड़ा गया कंकड़ स्पष्ट रूप से काला है, और यह देखते हुए कि ऋण-शार्क उजागर नहीं होना चाहता था, उसे साथ खेलना पड़ा जैसे कि बेटी ने जो कंकड़ गिराया वह सफेद था, और अपने पिता के कर्ज को साफ कर दिया।
पूरी तरह से सोचने के दौरान एक कठिन परिस्थिति को दूर करना हमेशा संभव होता है, और केवल उन विकल्पों में न दें जो आपको लगता है कि आपको चुनना है

Saturday, June 26, 2021

अनमोल तोहफा

कुछ समय पहले एक शख्स ने अपनी 3 साल की बेटी को सोने के रैपिंग पेपर का रोल बर्बाद करने की सजा दी थी। पैसे की तंगी थी और वह क्रोधित हो गया जब बच्चे ने क्रिसमस ट्री के नीचे रखने के लिए एक बॉक्स को सजाने की कोशिश की।   फिर भी, अगली सुबह छोटी लड़की अपने पिता के लिए उपहार लाई और कहा, "यह तुम्हारे लिए है, पिताजी।"वह आदमी पहले अपनी अति प्रतिक्रिया से शर्मिंदा हो गया, लेकिन उसका क्रोध तब जारी रहा जब उसने देखा कि डिब्बा खाली था। वह उस पर चिल्लाया; "क्या आप नहीं जानते, जब आप किसी को उपहार देते हैं, तो माना जाता है कि अंदर कुछ है?" छोटी लड़की ने आंखों में आंसू लिए उसकी ओर देखा और रो पड़ी; वह पिता कुचल गया था। उसने अपनी छोटी लड़की के चारों ओर अपनी बाहें डाल दीं और उसने उससे क्षमा की भीख माँगी। कुछ ही देर बाद एक हादसे ने बच्चे की जान ले ली। उसके पिता ने कई वर्षों के लिए अपने बिस्तर से सोने बॉक्स रखा और, जब भी वह हतोत्साहित किया गया है, वह एक काल्पनिक चुंबन बाहर ले जाना और बच्चा जो यह वहाँ रखा था के प्यार याद होगा।

 कहानी का निष्कर्ष
प्यार दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा है।

Monday, June 21, 2021

जो हासिल करना चाहते हैं वह संभव है

 एक सज्जन हाथी के शिविर से गुजर रहे थे, और उन्होंने देखा कि हाथियों को पिंजरों में नहीं रखा जा रहा था या जंजीरों के उपयोग से नहीं रखा जा रहा था।

वह सब जो उन्हें शिविर से भागने से रोक रहा था, वह था रस्सी का एक छोटा सा टुकड़ा जो उनके एक पैर से बंधा हुआ था।

जब वह आदमी हाथियों को देखता था, 

तो वह पूरी तरह से भ्रमित हो जाता था कि हाथियों ने अपनी ताकत का इस्तेमाल सिर्फ रस्सी को तोड़ने और शिविर से बचने के लिए क्यों नहीं किया।

वे आसानी से ऐसा कर सकते थे, लेकिन इसके बजाय, उन्होंने ऐसा करने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की।

जिज्ञासु और उत्तर जानना चाहते हुए, उसने पास के एक प्रशिक्षक से पूछा कि 

हाथी बस वहाँ क्यों खड़े थे और उन्होंने कभी भागने की कोशिश नहीं की।

जब वे बहुत छोटे होते हैं और बहुत छोटे होते हैं तो हम उन्हें बांधने के लिए एक ही आकार की रस्सी का उपयोग करते हैं और उस उम्र में, उन्हें पकड़ने के लिए पर्याप्त है। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें विश्वास होता है कि वे अलग नहीं हो सकते। उनका मानना ​​​​है कि रस्सी अभी भी उन्हें पकड़ सकती है, इसलिए वे कभी भी मुक्त होने की कोशिश नहीं करते हैं।"

हाथियों के मुक्त नहीं होने और शिविर से भागने का एकमात्र कारण यह था कि समय के साथ उन्होंने इस विश्वास को अपनाया कि यह संभव नहीं था

कहानी का निष्कर्ष

दुनिया आपको कितना भी पीछे करने की कोशिश करे, हमेशा इस विश्वास के साथ बने रहें कि आप जो हासिल करना चाहते हैं वह संभव है। यह विश्वास करना कि आप सफल हो सकते हैं, वास्तव में इसे प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण कदम है

Saturday, May 8, 2021

बदले की भावना

एक बार की बात है, एक गांव में एक पंडित रहता था, वो बहुत
ही विद्वान था, दूर दूर से लोग उसके पास अपनी समस्या लेकर आते
और वो सबका उचित समाधान कर देता था लोग उससे बहुत सम्मान
दिया करते थे .
मगर उसकी खुद की स्थिति बहुत ही खराब थी उसकी पत्नी बहुत
ही कर्कशा थी नित्य उसकी जान से रासे किया करती थी हर समय
झगडा करती मगर पंडितजी हँस कर सब सह लेते थे .
एक बार एक दूसरे गाँव का आदमी उन की प्रशंसा सुनकर उनके पास
अपनी समस्या लेकर आया, तब उसने
देखा कि पंडितजी की तो बड़ी ही फजीहत हो रही है उन्ही के
पत्नी उन्हें बुरा भला कह रही है तो वो वापस जाने
लगा कि जो अपना भाग्य नहीं सवार सका वो मेरी क्या मदद
करेगा मगर जो उसको वह लेकर आया था वो बोला जब हम इतनी दूर
आये हैं तो क्यो न आजमा कर देखे कि लोग इनकी इतनी तारीफ़
क्यों करते हैं और वो अंदर चले गये पंडितजी अपने शांत भाव से
ही बैठे थे .
उन्होंने पंडितजी को अभिवादन किया और पास में ही बैठ गये अब
जो अपनी संशय लेकर आया था उसने कहा पंडितजी मैं आपसे मदद
लेने आया था पर मेरे मन में एक संशय है यदि आप मेरे उस संशय
को दूर करें तो मैं अपनी समस्या आप से कहूँ .
पंडितजी ने कहा आप बिना हिचक मुझ से जो चाहे पूछो, मैं
आपकी हर बात का समाधान करने की पूरी कोशिश करूँगा .
तब वह व्यक्ति कहने लगा पंडितजी जब हम यहाँ आये
तो जो देखा उससे लगता है जब आप अपनी समस्या का समाधान
नहीं कर सकते तो हमारी कैसे करेंगे . तब पंडितजी मुस्कुराते हुए
कहने लगे, यदि ये इस जन्म में मुझे नहीं पकडती तो हो सकता है ये
मुझे किसी और जन्म में पकडती .
तब वो कहने लगा ऐसा क्यों पंडितजी आप हमें खुल कर बताये . तब
पंडितजी कहने लगे ये पहले जन्म में एक ऊँटनी थी और अपने दल के
साथ जा रही थी तब इसका पाँव दलदल में चला गया अब ये
जितना कोशिश करती उतना ही अंदर चली जाती .
धीरे-धीरे रात घिरने लगी और इसके साथी भी हर प्रयास में असफल
रहे तब वो इसे छोड़ कर चले गये. ये वहाँ असहाय होकर छटपटाने
लगी उस जन्म में मै एक गिद्ध था और गिद्ध का ये सवभाव
जगजाहिर है कि ये एकमात्र ही ऐसा जीव है
जो जिन्दा आदमी का माँस खाता है .
तब मैं इसका माँस नोंच-२ कर खाने लगा और ये असहाय अवस्था में
मुझे हटा न सकी और मुझसे बदला लेने की भावना मन में लिये लिये
ही इसने प्राण त्याग दिए
उस जन्म में मैंने जैसे इसे नोंच-नोंच कर खाया ये इस जन्म में मुझे
इसी तरह कचोटती है यदि मैं अपना भाग्य संवारने के चक्कर में
इससे विवाह न करता तो ये मुझे किसी और जन्म में पकडती, इसलिए
मैं इसकी इन बातों का बुरा नहीं मानता हूँ.
.....इसलिए हमें इस जन्म में ऐसे कर्म नहीं करने चाहिये कि कोई
हमसे बदले की भावना लिये संसार से जाये और हमें किसी न
किसी जन्म में पकड़े ।

Tuesday, April 27, 2021

सकारात्मक दृष्टीकोण

 एक 6 वर्षका लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।

अचानक से उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पिछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, "कुछ चाहिये तुम्हे ?" लडकी एक गुडिया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुडिया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी है।
दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुडिया की ?"
दुकानदार एक शांत व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे होते थें। उन्होने बडे प्यार और अपनत्व से बच्चे पूछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?"
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोडी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर लायी थी।
दुकानदार वो सब लेकर यू गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।
सीपें ( शिंपले ) गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?"
दुकानदार :-" नही नही, ये तो इस गुडिया की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मै वापस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बडी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुडिया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?"
दुकानदार मुस्कुराते हुये बोला,
"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र मे वो नही जानता की पैसे क्या होते है ?
पर जब वह बडा होगा ना...
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुडिया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, वह सोचेगा कि,,,,,,
"यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।"
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टीकोण बढाने मे मदद करेगी और वो भी अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा।

Sunday, April 25, 2021

धैर्य बनाये

जब महाराज दशरथ ने रामजी के राज्याभिषेक की घोषणा की थी तब वो बिलकुल स्थिर-चित्त थे, कोई अतिरिक्त उल्लास या हर्ष नहीं फिर जब वनवास की आज्ञा हुई तो भी मन में कोई क्लेश या वेदना नहीं हुई और उसी भाव से उस आज्ञा को भी शिरोधार्य कर लिया।
मुझे या आपको जब घर, परिवार और माँ-बाप से दूर महज चंद दिनों के लिए कहीं जाना होता है तो मन बार-बार यही करता है कि जाने से पहले घर वालों के साथ अधिक से अधिक समय गुजार लें, फिर जब तक ट्रेन खुल न जाए तब तक स्टेशन पर ही परिजनों के साथ खड़े रहें, पर राम जी हमारे आपके जैसे नहीं थे। 
वनवास की आज्ञा हुई तो राम जी एक-एक कर सबसे मिले फिर जितनी धन-संपत्ति और वस्त्राभूषण उनके पास थे सब दान करने के लिए महल से बाहर निकल आये। दान करते समय एक अस्सी वर्षीय बूढ़ा लाठी टेकता हुआ उनके पास याचक रूप में आया। 
राम ने पूछा :- क्या चाहिए ? उस वृद्ध ने गौ की मांग की। राम ने सामने मैदान की तरह अंगुली करते हुए उस वृद्ध से कहा:- बाबा आपके हाथ में जो लाठी है, उसे जितनी जोर से फेंक सकते हो फेंको। जहाँ जाकर लाठी गिरेगी, उससे इधर की सारी गौएँ आपकी। उस बूढ़े को समझ नहीं आया कि ये क्या कह रहे हैं राम। वो नकारात्मकता में सर हिलाते हुए कहने लगा :- राम ! मेरी उम्र इतनी नहीं है कि मुझसे ये लाठी फेंकी जायेगी। 
राम ने उसे उत्साहित करते हुए कहा :- देखो बाबा! लाठी जितनी दूर फेंकोगे उतनी गौएँ आपकी। 
उत्साह में भरे बूढ़े ने पूरे ताकत से लाठी घुमाकर फेंकी और वहां से काफी दूर जा गिरी। राम ने लाठी की सीमा के भीतर की सारी गायें उसे देकर ससम्मान विदा कर दिया। 
ये सारी घटना लक्ष्मण भी देख रहे थे। उन्हें कुछ समझ नही आया तो उन्होंने राम से पूछा :- भैया! आप उसे यूं भी तो गौएँ दे सकते थे तो उससे ये श्रम क्यों करवाया?  
तब राम जी ने लक्ष्मण को समझाते हुए कहा कि अगर उस बूढ़े बाबा को दान में गौएँ मिलती तो वो उसे मुफ्त का माल समझकर अकर्मण्य हो जाते पर चूँकि अब उन्होंने इसे अपने श्रम से पाया है तो वो इसका सम्मान करेंगे और कीमत समझेंगे।
अभी कुछ समय पहले जिसका राज्याभिषेक होते-होते रह गया हो। चौदह साल का कठोर वनवास मिला हो, बाप विरह के दुःख में मरणासन्न हो, माँ पछाड़ें खा रही हो, कभी कालीन के नीचे पैर न रखने वाली धर्मपत्नी वल्कल वस्त्र धारण किये नंगे पैर साथ में खड़ी हो; उस इंसान की मनःस्थिति की कल्पना कीजिये पर राम इस अवस्था में भी न सिर्फ बिलकुल स्थिर, सहज और सामान्य थे बल्कि उनकी दृष्टि तब भी इतनी व्यापक थी कि वो इस अवस्था और स्थिति में भी श्रम का महत्व समझा रहे थे। राम की इसी अवस्था को योगेश्वर कृष्ण ने गीता में इस तरह से कहा है :-
  दुःखेष्वनुद्विग्मनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
  वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ।।  2/56 (गीता)
राम ऐसे अकेले नहीं थी। ऐसी ही साधना वाले राणा प्रताप भी थे जो जंगल में अपनी बच्ची और पत्नी को भूख-प्यास से तड़पता देखकर भी अकबर के सामने झुके नहीं. ऐसे ही शिवाजी भी थे जो शत्रु के घर में कैद होने के बाबजूद निराश और हतोत्साहित हुए बिना बाहर निकलने की योजनायें बना रहे थे। ऐसे ही अनेकों दास्तान हैं हमारे इतिहास में जो हर अपकर्ष काल में अविचलित रहते हुए कर्त्तव्य-निष्ठ रहें।
राम, शिवाजी, सावरकर, तिलक की ऐसी कौन सी साधना थी, ऐसी क्या शिक्षा उन्होंने पाई थी कि सम-विषम किसी भी स्थिति का उनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था? स्थिरप्रज्ञ होने की ये कला उन्हें किस यूनिवर्सिटी या कॉलेज में मिली थी? किस शिक्षा ने उन्हें ऐसा बना दिया था कि दूर तक दिख रहे निराशवाद के पार भी उनके लिए आशा और विश्वास की किरणें आलोकित रहती थी जो उन्हें उन विषम, प्रतिकूल और तोड़ देने वाली परिस्थितियों में आत्मबल से लबरेज़ रखती थी ?  
इसके विपरीत हममें ऐसी कौन सी कमियां हैं जो थोड़ी सी प्रतिकूलता में भी विचलित हो जाती है, जो कल या परसों निश्चित ही समाप्त हो जानी वाली आपदा और कष्ट में घबरा जाती है, हतोत्साहित हो जाती है ? 
ये कोरोना काल भी ऐसा ही है जिसमें ये सारी कमियाँ हम सबमें दृष्टिगोचर हो रही हैं। 
संबल, रेगुलर रूटीन और धैर्य बनाये रखिये। याद रखिये स्वयं को दैनंदिन गतिविधियों में जितना संलग्न रखेंगे कोरोना का डर, तनाव उतना ही कम होगा और आपको तनाव रहित देखकर आपके परिवार वालों की हिम्मत भी बढ़ेगी।
हमारे सारे महान पूर्वज इन्हीं आदर्शों को लेकर जीने वाले थे, हमें भी उन्हीं का अनुगमन करना है।

Wednesday, February 17, 2021

खौफनाक दृश्य

एक आदमी घर लौट रहा था.. रास्ते में गाड़ी खराब हो गयी...  रात काफी थी.. एकदम घना अंधेरा था... मोबाईल का नेटवर्क भी नहीं था.... उसकी हवा खराब... ना कोई आगे ना दुर दुर तक कोई पिछे ...अब उसने गाड़ी साइड में लगा दी और लिफ्ट के लिये किसी गाड़ी का इंतेजार करने लगे... काफी देर बाद एक गाड़ी बहुत धीमे धीमे उनकी ओर बढ रही थी...उसकी जान में जान आयी ...उसने गाड़ी रोकने के लिये हाथ दिया ...गाड़ी धीरे धीरे रूक रूक कर उसके पास आयी...उसने गेट खोला और झट से उसमें बैठ गया।लेकिन अंदर बैठकर उसके होश उड़ गये...गला सुखने लगा... आँखे खुली रह गयी ... छाती धड़कने लगी... उसने देखा कि ड्राइविंग सीट पर कोई नहीं है...गाड़ी अपने आप चल रही थी ... 
एक तो रात का अंधेरा ...ऊपर से यह खौफनाक दृश्य ...
उसको समझ नहीं आ रहा था अब क्या करूँ .. बाहर जाऊँ की अंदर रहूँ ... वो कोई फैसला करता की सामने रास्ते पर एक मोड़ आ गया ... तभी दो हाथ साइड से आये और स्टेयरिंग घुमा दिया और गाड़ी मुड़ गयी ...
और फिर हाथ गायब ..अब तो उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी...हनुमान चालीसा शुरू कर दी...अंदर रहने में ही भलाई समझी ...गाड़ी धीरे धीरे ..रूक रूक कर आगे बढती रही ... तभी सामने पेट्रोल पंप नजर आया ...गाड़ी वहाँ जाकर रूक गयी  उसने राहत की साँस ली और तुरंत गाड़ी से उतर गया  पानी पिया  इतने में उसने देखा एक आदमी गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठने के लिये जा रहा है वह दौड़ते हुये उसके पास पहूंचा और उससे कहा "इस गाड़ी में मत बैठो ...मैं इसी में बैठकर आया हूँ ... इसमें भूत है"उस आदमी ने उसके गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ मारा और कहा... अबे साले... तु बैठा कब रे इसमें? ...तभी मैं सोचूँ गाड़ी एकदम से भारी कैसी हो गयी ...यह मेरी ही गाड़ी है...पेट्रोल खतम था तो पाँच किलोमीटर से धक्का मारते हुये ला रहा हूँ .

Tuesday, February 9, 2021

हमारे शब्द भी हमारे कर्म

18 दिन के युद्ध ने द्रोपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी। उसकी आंखे मानो किसी खड्डे में धंस गई थी, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था। श्याम वर्ण और अधिक काला हो गया था । 

युद्ध से पूर्व प्रतिशोध की ज्वाला ने जलाया था और युद्ध के उपरांत पश्चाताप की आग तपा रही थी । ना कुछ समझने की क्षमता बची थी ना सोचने की । कुरूक्षेत्र मेें चारों तरफ लाशों के ढेर थे । जिनके दाह संस्कार के लिए न लोग उपलब्ध थे न साधन । 

शहर में चारों तरफ विधवाओं का बाहुल्य था पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर केे महल मेंं निश्चेष्ट बैठी हुई शूूूून्य को ताक रही थी । तभी कृष्ण कक्ष में प्रवेश करते हैं ! 
महारानी द्रौपदी की जय हो । 

द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है कृष्ण उसके सर को सहलातेे रहते हैं और रोने देते हैं थोड़ी देर में उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं । 

*द्रोपती* :- यह क्या हो गया सखा ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

कृष्ण नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और तुम सफल हुई द्रौपदी ! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ । सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं सारे कौरव समाप्त हो गए तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए ! 
द्रोपती सखा तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ! 
कृष्ण नहीं द्रौपदी मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं । हमारे कर्मों के परिणाम को हम दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं तो हमारे हाथ मेें कुछ नहीं रहता ।
द्रोपती तो क्या इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदाई हूं कृष्ण ? 
कृष्ण नहीं द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो ।
लेकिन तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी भी दूरदर्शिता रखती तो स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

द्रोपती मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

कृष्ण  जब तुम्हारा स्वयंबर हुआ तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो शायद परिणाम कुछ और होते ! 
इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी परिणाम कुछ और होते । 
और 
उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया वह नहीं करती तो तुम्हारा चीर हरण नहीं होता तब भी शायद परिस्थितियां कुछ और होती ।
हमारे शब्द भी हमारे कर्म होते हैं द्रोपदी और हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत जरूरी होता है अन्यथा उसके दुष्परिणाम सिर्फ स्वयं को ही नहीं अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं 

Saturday, February 6, 2021

परिवार का रक्षण

एक बार गणेशजी ने भगवान शिवजी से कहा,
पिताजी ! आप यह *चिता भस्म लगाकर, मुण्डमाला धारणकर अच्छे नहीं लगते, मेरी माता गौरी अपूर्व सुंदरी और आप उनके साथ इस भयंकर रूप में ! 

पिताजी ! आप एक बार कृपा करके अपने सुंदर रूप में माता के सम्मुख आएं, जिससे हम *आपका असली स्वरूप देख सकें ! 

भगवान शिवजी मुस्कुराये और गणेशजी की बात मान ली !

कुछ समय बाद जब शिवजी स्नान करके लौटे तो उनके शरीर पर भस्म नहीं थी , बिखरी जटाएं सँवरी हुई, *मुण्ड माला उतरी हुई थी !

सभी देवता, यक्ष, गंधर्व, शिवगण उन्हें अपलक देखते रह गये, 
वो  ऐसा रूप था कि मोहिनी अवतार रूप भी फीका पड़ जाये ! 
भगवान शिव ने अपना यह रूप कभी प्रकट नहीं किया था !
 शिवजी का ऐसा अतुलनीय रूप कि करोड़ों कामदेव को भी मलिन कर रहा था ! 

गणेशजी अपने पिता की इस *मनमोहक छवि को देखकर स्तब्ध रह गए और 
मस्तक झुकाकर बोले -
मुझे क्षमा करें पिताजी !
परन्तु अब आप अपने पूर्व स्वरूप को धारण कर लीजिए ! 

भगवान शिव मुस्कुराये और  पूछा - क्यों पुत्र अभी तो तुमने ही मुझे इस रूप में देखने की इच्छा प्रकट की थी,
 अब पुनः पूर्व स्वरूप में आने की बात क्यों ? 
गणेशजी ने मस्तक झुकाये हुए ही कहा - 
क्षमा करें पिताश्री !
मेरी माता से सुंदर कोई और दिखे मैं ऐसा कदापि नहीं चाहता !
और शिवजी हँसे और अपने पुराने स्वरूप में लौट आये !
पौराणिक ऋषि इस प्रसंग का सार स्पष्ट करते हुए कहते हैं.....
आज भी ऐसा ही होता है पिता रुद्र रूप में रहता है क्योंकि उसके ऊपर परिवार की  जिम्मेदारियों अपने परिवार का रक्षण ,उनके मान सम्मान का ख्याल रखना होता है तो थोड़ा कठोर रहता है... 

और माँ सौम्य,प्यार लाड़,स्नेह उनसे बातचीत करके प्यार देकर उस कठोरता का बैलेंस बनाती है ।। इसलिए सुंदर होता है माँ का स्वरूप ।। 

पिता के ऊपर से भी जिम्मेदारियों का बोझ हट जाए तो वो भी बहुत सुंदर दिखता है

Wednesday, January 27, 2021

अद्भुत रिश्तों

एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी (गोबर में रहने वाले) कीड़े से थी ! एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा- भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ!
भंवरा भोजन खाने पहुँचा! बाद में भंवरा सोच में पड़ गया- कि मैंने बुरे का संग किया इसलिये मुझे गोबर खाना पड़ा! अब भंवरे ने कीड़े को अपने यहां आने का निमंत्रन दिया कि तुम कल मेरे यहाँ आओ!*
अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा! भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया! कीड़े ने परागरस पिया! मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढा दिया! कीड़े को ठाकुर जी के दर्शन हुये! चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला! संध्या में पुजारी ने सारे फूल इक्कठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए! कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था! इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया, पूछा-मित्र! क्या हाल है? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गयी! ये सब अच्छी संगत का फल है!
कोई भी नही जानता कि हम इस जीवन के सफ़र में एक दूसरे से क्यों मिलते है,
सब के साथ रक्त संबंध नहीं हो सकते परन्तु ईश्वर हमें कुछ लोगों के साथ मिलाकर अद्भुत रिश्तों में बांध देता हैं,हमें उन रिश्तों को हमेशा संजोकर रखना चाहिए।

Wednesday, January 20, 2021

मेरी मा

एक बार अकबर बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे!
रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा .. मंत्री बीरबल ने झुक कर प्रणाम किया !
अकबर ने पूछा कौन हे ये ?
बीरबल -- मेरी माता हे !
अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़ कर फेक दिया और बोला .. कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की ...!
बीरबल ने उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी! .. आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला ) झाड़ मिला .. बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर कहा: जय हो बाप मेरे ! !
अकबरको गुस्सा आया .. दोनों हाथो से झाड़ को उखाड़ने लगा .. इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो बोला: .. बीरबल ये क्या हो गया !
बीरबल ने कहा आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये गुस्सा हो गए!
अकबर जहाँ भी हाथ लगता खुजली होने लगती .. बोला: बीरबल जल्दी कोई उपाय बतायो!
बीरबल बोला: उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है .. उससे विनती करी पड़ेगी !
अकबर बोला: जल्दी करो !
आगे गाय खड़ी थी बीरबल ने कहा गाय से विनती करो कि ... हे माता दवाई दो..
गाय ने गोबर कर दिया .. अकबर के शरीर पर उसका लेप करने से फौरन खुजली से राहत मिल गई!
अकबर बोला .. बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे?
बीरबलने कहा: .. नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है! सामने गंगा बह रही थी .. आप बोलिए हर -हर गंगे .. जय गंगा मईया की .. और कूद जाइए !
नहा कर अपनेआप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने बीरबल से कहा: .. कि ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत माता हैं! इनको मानने वालों को ही हिन्दू कहते हैं ..!

Friday, January 15, 2021

खुशहाली


एक किसान था, उसके पास 500 बीघा जमीन थी, घर में किसी प्रकार की कमी नही थी। खुशहाली का माहौल था ।किसान के चार पुत्र थे,सभी सामिल में रहते थे।चारों पुत्रों की शादियां हो चुकी थी व सबके बच्चे भी थे ।भरा पूरा संयुक्त  परिवार था। घर का हिसाब व आर्थिक व्यवस्था का संचालन उसका बङा पुत्र करता था । बङे पुत्र के परिवार संचालन से सब खुश थे, क्योकिं किसी को भी काम नही करना पङता था, सब सदस्यों को हाथखर्च हेतू खूब रूपये मिल जाते थे। बङा पुत्र भी ऐशोआराम की जिंदगी जी रहा था, कभी विदेश घूमने जाता तो कभी होटलों में अय्यासी व मौजमस्ती करता, घर का कोई सदस्य उसका विरोध भी नही करता क्योकिं सबको बिना काम किए ही रुपये पैसे मिल जाते और सब मौज मस्ती करते। रोज घर में मिठाइयां बनती, सबकी पसंद के कपङे,गहने आदि मिल जाते। एक बार  बङे पुत्र को किसी काम से एक दो साल के लिए घर से बाहर जाना पङा एवं घर संचालन की जिम्मेदारी दूसरे नम्बर के पुत्र को दी गयी। दूसरे नम्बर के पुत्र ने परिवार की बागडौर संभाली तो उसके होश उङ गये, क्योकिं लगभग आधी जमीन एक साहूकार के गिरवी  रखी पङी थी, उसने परिवार के किसी सदस्य को कुछ नहीं बताया और अपने काम में लग गया। परिवार के प्रत्येक सदस्य को काम बता दिया गया  स्वयं भी दिनरात मेहनत करता व परिवार के सभी सदस्यों को भी प्रेरित करता। किसी को फ़ालतू रुपये पैसे नही मिलते एवं सबको काम करना पङता था। उसने धीरे धीरे साहूकार का सारा ऋण चुकता कर दिया एवं अपनी सारी जमीन वापस छुङवा ली। अब परिवार के सब सदस्य उससे नाखुश रहने लगे क्योंकि अब सबको मेहनत करनी पङ रही थी एवं फ़ालतू के शौक फैशन हेतु रुपये पैसे नही मिल रहे थे। सबने माँग करना शुरू कर दिया कि वापस परिवार की बागडौर बङे पुत्र को ही दी जाए।

Sunday, December 13, 2020

खुशियों रूपी उपहार

एक निर्माणाधीन भवन की सातवीं मंजिल से ठेकेदार ने नीचे काम करने वाले मजदूर को आवाज दी।
निर्माण कार्य की तेज आवाज के कारण मजदूर सुन न सका कि उसका ठेकेदार उसे आवाज दे रहा है।
ठेकेदार ने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए एक 1 रुपये का सिक्का नीचे फेंका जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा।
मजदूर ने सिक्का उठाया और अपनी जेब में रख लिया और फिर अपने काम मे लग गया।अब उसका ध्यान खींचने के लिए ठेकेदार ने पुन: एक 5 रुपये का सिक्का नीचे फैंका।
फिर 10 रुपये का सिक्का फेंका।उस मजदूर ने फिर वही किया और सिक्के जेब मे रख कर अपने काम मे लग गया।
यह देख अब ठेकेदार ने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया और मजदूर के उपर फेंका जो सीधा मजदूर के सिर पर लगा।
अब मजदूर ने ऊपर देखा और ठेकेदार से बात चालू हो गयी।
ऐसी ही घटनायें हमारी जिन्दगी में भी घटती रहती हैं।मालिक हमसे संपर्क करना,मिलना चाहता है लेकिन हम दुनियादारी के कामों में इतने व्यस्त रहते हैं कि हम भगवान को याद नहीं करते।
भगवान हमें छोटी छोटी खुशियों के रूप मे उपहार देता रहता है लेकिन हम उसे याद नहीं करते और वो खुशियां और उपहार कहाँ से आये यह न देखते हुए, उनका उपयोग कर लेते हैं और भगवान को याद ही नहीं करते।भगवान् हमें और भी खुशियों रूपी उपहार भेजता है लेकिन उसे भी हम हमारा भाग्य समझ कर रख लेते हैं,भगवान् का धन्यवाद नहीं करते,उसे भूल जाते हैं.
तब भगवान हम पर एक छोटा सा पत्थर फेंकते हैं, जिसे हम कठिनाई, तकलीफ या दुख कहते हैं फिर हम तुरन्त उसके निराकरण के लिए भगवान की ओर देखते हैं,याद करते हैं।
यही जिन्दगी मे हो रहा है।यदि हम हमारी छोटी से छोटी ख़ुशी भी भगवान के साथ उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें तो हमें भगवान के द्वारा फेंके हुए पत्थर का इन्तजार ही नहीं करना पड़ेगा।

Thursday, December 10, 2020

सदैव प्रयत्नशील रहें

एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया अपने घर, और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो !
उस पेंटर ने पेंट लेकर उस नाव को  लाल रंग से पेंट कर दिया जैसा कि नाव का मालिक चाहता था।
फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया !
अगले दिन, पेंटर के घर पर वह नाव का मालिक पहुँच गया, और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को !
पेंटर भौंचक्का हो गया, और पूछा - ये किस बात के इतने पैसे हैं ? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था !
मालिक ने कहा - ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है !
पेंटर ने कहा - अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है !
मालिक ने कहा - दोस्त, तुम्हें पूरी बात पता नहीं !अच्छा में विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है उसको रिपेयर कर देना !
और जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर नौकायन के लिए  निकल गए !
मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर नौकायन पर निकल गए हैं !
तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है !
मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे !
अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो !
फिर मैंने छेद चेक किया, तो पता चला कि, मुझे बिना बताये तुम उसको रिपेयर कर चुके हो !
तो मेरे दोस्त उस महान कार्य के लिए तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं !
मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हे ठीक ठाक पैसे दे पाऊं !
जीवन मे "भलाई का कार्य" जब मौका लगे हमेशा कर देना चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य ही क्यों न हो !
क्योंकि कभी कभी वो छोटा सा कार्य भी किसी के लिए बहुत अमूल्य हो सकता है।
सभी मित्रों को जिन्होने 'हमारी जिन्दगी की नाव' कभी भी रिपेयर की है उन्हें हार्दिक धन्यवाद .....
 और सदैव प्रयत्नशील रहें कि हम भी किसी की नाव रिपेयरिंग करने के लिए हमेशा तत्पर रहें।

Sunday, December 6, 2020

ग़जब का रिश्ता

मैं बिस्तर पर से उठा, अचानक छाती में दर्द होने लगा मुझे... हार्ट की तकलीफ तो नहीं है. ..? ऐसे विचारों के साथ. ..मैं आगे वाले बैठक के कमरे में गया...मैं देखा कि मेरा पूरा परिवार मोबाइल में व्यस्त था...
मैने... पत्नी को देखकर कहा..."थोड़ा छाती में आज रोज से ज़्यादा दर्द हो रहा है...डाॅक्टर को बताकर आता हूँ।". .."हाँ मगर सँभलकर जाना...काम हो तो फोन करना"   मोबाइल में देखते देखते ही पत्नी बोली...
मैं... एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग में पहुँचा... पसीना, मुझे बहुत आ रहा था...ऐक्टिवा स्टार्ट नहीं हो रही थी...
ऐसे वक्त्त... हमारे घर का काम करने वाला ध्रुव सायकिल लेकर आया... सायकिल को ताला मारते ही उसने मुझे सामने खड़ा देखा..."क्यों साब ऐक्टिवा चालू नहीं हो रही है?.....मैंने कहा "नहीं..."
"आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती साब... इतना पसीना क्यों आया है?
साब... इस हालत में स्कूटर को किक नहीं मारते....मैं किक मारकर चालू कर देता हूँ।" ध्रुव ने एक ही किक मारकर ऐक्टिवा चालू कर दिया, साथ ही पूछा.."साब अकेले जा रहे हो?"
मैंने कहा... "हाँ"
उसने कहा "ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते...चलिए मेरे पीछे बैठ जाइये"
"मैंने कहा तुम्हे एक्टिवा चलाने आती है? "साब... गाड़ी का भी लाइसेंस है, चिंता  छोड़कर बैठ जाओ..."
पास ही एक अस्पताल में हम पहुँचे, ध्रुव दौड़कर अंदर गया, और व्हील चेयर लेकर बाहर आया..."साब... अब चलना नहीं, इस कुर्सी पर बैठ जाओ.."
ध्रुव के मोबाइल पर लगातार घंटियां बजती रही...मैं समझ गया था... फ्लैट में से सबके फोन आते होंगे..कि अब तक क्यों नहीं आया? ध्रुव ने आखिर थक कर किसी को कह दिया कि... आज नहीँ आ सकता....
ध्रुव डाॅक्टर के जैसे ही व्यवहार कर रहा था...उसे बगैर पूछे मालूम हो गया था कि, साब को हार्ट की तकलीफ है... लिफ्ट में से व्हील चेयर ICU कि तरफ लेकर गया....
डाॅक्टरों की टीम तो तैयार ही थी... मेरी तकलीफ सुनकर... सब टेस्ट शीघ्र ही किये... डाॅक्टर ने कहा, "आप समय पर पहुँच गये हो....इसमें भी आपने व्हील चेयर का उपयोग किया...वह आपके लिए बहुत फायदेमन्द रहा..."
"अब... किसी भी प्रकार की राह देखना आपके लिए हानिकारक है। इसलिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन करके आपके ब्लोकेज जल्द ही दूर करने होंगे...इस फार्म पर आप के स्वजन के हस्ताक्षर की ज़रूरत है" डाॅक्टर ध्रुव को सामने देखा...
मैंने कहा, "बेटे, दस्तखत करने आती है?"
उसने कहा "साब इतनी बड़ी जवाबदारी मुझ पर न डालो।"
"बेटे... तुम्हारी कोई जवाबदारी नहीं है... तुम्हारे साथ भले ही लहू का सम्बन्ध नहीं है... फिर भी बगैर कहे तुमने अपनी जवाबदारी पूरी की। वह जवाबदारी हकीकत में मेरे परिवार की थी...एक और जवाबदारी पूरी कर दो बेटा, मैं नीचे सही करके लिख दूँगा कि मुझे कुछ भी होगा तो जवाबदारी मेरी है।" ध्रुव ने सिर्फ मेरे कहने पर ही हस्ताक्षर  किये हैं, बस अब... ..
"और हाँ, घर फोन लगा कर खबर कर दो..."
बस, उसी समय मेरे सामने मेरी पत्नी का मोबाइल ध्रुव के मोबाइल पर आया। वह शांति से फोन सुनने लगा...
थोड़ी देर के बाद ध्रुव बोला, "मैडम, आपको पगार काटने का हो तो काटना, निकालने का हो तो निकाल देना  मगर अभी अस्पताल में ऑपरेशन शुरु होने के पहले पहुँच जाओ। हाँ मैडम, मैं साब को अस्पताल लेकर आया हूँ डाक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है और राह देखने की कोई जरूरत नहीं है..."
मैंने कहा, "बेटा घर से फोन था...?"
"हाँ साब।"
मैंने मन में पत्नी के बारे में सोचा, तुम किसकी पगार काटने की बात कर रही हो और किसको निकालने की बात कर रही हो? आँखों में आँसू के साथ ध्रुव के कन्धे पर हाथ रखकर मैं बोला "बेटा चिंता नहीं करते।"
"मैं एक संस्था में सेवायें देता हूँ, वे बुज़ुर्ग लोगों को सहारा देते हैं, वहां तुम जैसे ही व्यक्तियों की ज़रूरत है।"
"तुम्हारा काम बरतन कपड़े धोने का नहीं है, तुम्हारा काम तो समाज सेवा का है...बेटा. ..पगार मिलेगा, इसलिए चिंता बिल्कुल भी मत करना।"
ऑपरेशन के बाद मैं होश में आया... मेरे सामने मेरा पूरा परिवार नतमस्तक खड़ा था, मैं आँखों में आँसू लिये बोला, "ध्रुव कहाँ है?"
पत्नी बोली "वो अभी ही छुट्टी लेकर गाँव चला गया। कह रहा था कि उसके पिताजी हार्ट अटैक से गुज़र गये है... 15 दिन के बाद फिर आयेगा।"
अब मुझे समझ में आया कि उसको मेरे अन्दर उसका बाप दिख रहा होगा...।
हे प्रभु, मुझे बचाकर आपने उसके बाप को उठा लिया?
पूरा परिवार हाथ जोड़कर , मूक नतमस्तक माफी माँग रहा था...
एक मोबाइल की लत (व्यसन)...अपने व्यक्ति को अपने दिल से कितना दूर लेकर जाता है... वह परिवार देख रहा था....। यही नही मोबाइल  आज घर घर कलह का कारण भी बन गया है। बहू छोटी-छोटी बाते तत्काल  अपने माँ-बाप को बताती है और माँ की सलाह पर ससुराल पक्ष के लोगो से व्यवहार करती है। परिणामस्वरूप  वह बीस बीस साल में भी ससुराल पक्ष के लोगो से अपनापन नहीं जोड़ पाती।
डाॅक्टर ने आकर कहा, "सबसे पहले यह बताइये ध्रुव भाई आप के क्या लगते हैं?"
मैंने कहा "डाॅक्टर साहब,  कुछ सम्बन्धों के नाम या गहराई तक न जायें तो ही बेहतर होगा उससे सम्बन्ध की गरिमा बनी रहेगी।
बस मैं इतना ही कहूँगा कि वो आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया था।"
पिन्टू बोला "हमको माफ़ कर दो पापा... जो फर्ज़ हमारा था,  वह ध्रुव ने पूरा किया यह हमारे लिए शर्मनाक है। अब से ऐसी भूल भविष्य में कभी भी नहीं होगी।
"बेटा,जवाबदारी और नसीहत (सलाह) लोगों को देने के लिए ही होती है...
जब लेने की घड़ी आये तब लोग  बग़लें झाँकते हैं या ऊपर नीचे हो जातें हैं   अब रही मोबाइल की बात...
बेटे, एक निर्जीव खिलोने नें, जीवित खिलोने को गुलाम कर दिया है। समय आ गया है कि उसका मर्यादित उपयोग करना है।
नहीं तो....
परिवार, समाज और राष्ट्र को उसके गम्भीर परिणाम भुगतने पडेंगे और उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहना पड़ेगा।"
अतःबेटे और बेटियों को बड़ा अधिकारी या व्यापारी बनाने की जगह एक अच्छा इन्सान बनायें।

Wednesday, November 18, 2020

इंसान की असलियत

एक राजा के दरबार मे एक अजनबी इंसान नौकरी मांगने के लिए आया।
उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई, 
तो वो बोला,  "मैं आदमी हो चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ
 राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया। 
     चंद दिनों बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा, .....
उसने कहा, "नस्ली नही हैं ।"
राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा..
        उसने बताया, घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है। 
      राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?" "उसने कहा "हुजुर जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं।
राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज, घी, मुर्गे, और अंडे बतौर इनाम भिजवा दिए।
और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया। 
चंद दिनो बाद , राजा ने उस से रानी के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन पैदाइशी नहीं हैं।”
राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, उसने अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं, कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"
राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा "तुम को कैसे पता चला ? ""उसने कहा, " रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता हैं, जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही।
 राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे तैनात कर दिया।
कुछ वक्त गुज़रा, राजा ने फिर नौकर को बुलाया,और अपने बारे में पूछा।
नौकर ने कहा "जान की सलामती हो तो कहूँ।”
राजा ने वादा किया।
उसने कहा, "न तो आप राजा के बेटे हो और न ही आपका चलन राजाओं वाला है।"
राजा को बहुत गुस्सा आया, मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था, राजा सीधा अपनी मां के महल पहुंचा    मां ने कहा, 
      "ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे गोद लेकर हम ने पाला।”
 राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे पता चला ?”
 उसने कहा " जब राजा किसी को "इनाम दिया करते हैं, तो हीरे मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं...ये रवैया किसी राजाओं का नही, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।"
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी दिखावा हैं।
इंसान की असलियत की पहचानउसके व्यवहार और उसकी नियत से होती हैं...
सच्चाई तो सामने आ ही जाती है.. किसी न किसी तरह...ईसलिए थोडा संभलकर और सोच समझकर ...रहें ..वर्ताव करें....किसी से भी।

Saturday, October 17, 2020

आपका प्रकोप

रिपोर्टर :  आपका प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है ? क्यों ?
मच्छर : सही शब्द इस्तेमाल कीजिये, इसे प्रकोप नहीं फलना-फूलना कहते हैं. पर तुम इंसान लोग तो दूसरों को फलते-फूलते देख ही नहीं सकते न ? आदत से मजबूर जो ठहरे.
रिपोर्टर : हमें आपके फलने-फूलने से कोई ऐतराज़ नहीं है पर आपके काटने से लोग जान गँवा रहे हैं, जनता में भय व्याप्त हो गया है ?
मच्छर : हम  सिर्फ अपना काम कर रहे हैं. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि ‘कर्म ही पूजा है’. अब विधाता ने तो हमें काटने के लिए ही बनाया है, हल में जोतने के लिए नहीं ! जहाँ तक लोगों के जान गँवाने का प्रश्न है तो आपको मालूम होना चाहिए कि “हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ’ …!
रिपोर्टर : लोगों की जान पर बनी हुई है और आप हमें दार्शनिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं ?
मच्छर : आप तस्वीर का सिर्फ एक पहलू देख रहे हैं. हमारी वजह से कई लोगों को लाभ भी होता है, ये शायद आपको पता नहीं ! जाइये इन दिनों किसी डॉक्टर, केमिस्ट या पैथोलॉजी लैब वाले के पास, उसे आपसे बात करने की फ़ुर्सत नहीं होगी. अरे भैया, उनके बीवी-बच्चे हमारा ‘सीजन’ आने की राह देखते हैं, ताकि उनकी साल भर से पेंडिंग पड़ी माँगे पूरी हो सकें. क्या समझे आप ? हम देश की इकॉनोमी बढाने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं, ये मत भूलिएगा !
रिपोर्टर : परन्तु मर तो गरीब रहा है न, जो इलाज करवाने में सक्षम ही नहीं है ?
मच्छर : हाँ तो गरीब जी कर भी क्या करेगा ? 
जिस गरीब को आप अपना घर तो छोडो, कॉलोनी तक में घुसने नहीं देना चाहते, उसके साथ किसी तरह का संपर्क नहीं रखना चाहते, उसके मरने पर तकलीफ होने का ढोंग करना बंद कीजिये आप लोग.
रिपोर्टर : आपने दिल्ली में कुछ ज्यादा ही कहर बरपा रखा है ?
मच्छर : देखिये हम पॉलिटिशियन नहीं हैं जो भेदभाव करें … हम सभी जगह अपना काम पूरी मेहनत और लगन से करते हैं. दिल्ली में हमारी अच्छी परफॉरमेंस की वजह सिर्फ इतनी है कि यहाँ हमारे काम करने के लिए अनुकूल  माहौल है. केंद्र और राज्य सरकार की आपसी जंग का भी हमें भरपूर फायदा मिला है.
रिपोर्टर : खैर, अब आखिर में आप ये बताइये कि आपके इस प्रकोप से बचने का उपाय क्या है ?
मच्छर : उपाय तो है अगर कोई कर सके तो … लगातार सात शनिवार तक काले-सफ़ेद धब्बों वाले कुत्ते की पूँछ का बाल लेकर बबूल के पेड़ की जड़ में बकरी के दूध के साथ चढाने से हम प्रसन्न हो जायेंगे और उस व्यक्ति को नहीं काटेंगे !
रिपोर्टर : आप उपाय बता रहे हैं या अंधविश्वास फैला रहे हैं ?
मच्छर : दरअसल आम हिन्दुस्तानी लोग ऐसे ही उपायों के साथ comfortable फील करते हैं ! उन्हें विज्ञानं से ज्यादा किरपा में यकीन होता है…. वैसे सही उपाय तो साफ़-सफाई रखना है, जो रोज ही टीवी चैनलों और अखबारों के जरिये बताया जाता है, पर उसे मानता कौन है ? 
अगर उसे मान लिया होता तो आज आपको मेरा interview लेने नहीं आना पड़ता … !!!

Wednesday, September 30, 2020

खुबसूरत रिश्ता

एक व्यक्ति एक दिन बिना बताए काम पर नहीं गया.....
मालिक ने,सोचा इस कि तन्खाह बढ़ा दी जाये तो यह
और दिल्चसपी से काम करेगा.....
और उसकी तन्खाह बढ़ा दी....
अगली बार जब उसको तन्खाह से ज़्यादा पैसे दिये
तो वह कुछ नही बोला चुपचाप पैसे रख लिये.....
कुछ महीनों बाद वह फिर ग़ैर हाज़िर हो गया......
मालिक को बहुत ग़ुस्सा आया.....
सोचा इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ
यह नहीं सुधरेगाऔर उस ने बढ़ी हुई
तन्खाह कम कर दी और इस बार उसको पहले वाली ही
तन्खाह दी......
वह इस बार भी चुपचाप ही रहा और
ज़बान से कुछ ना बोला....
तब मालिक को बड़ा ताज्जुब हुआ....
उसने उससे पूछा कि जब मैने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद तुम्हारी तन्खाह बढा कर दी तुम कुछ नही बोले और आज तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्खाह
कम कर के दी फिर भी खामोश ही रहे.....!!
इस की क्या वजह है..? उसने जवाब दिया....
जब मै पहले ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर
एक बच्चा पैदा हुआ था....!!
आपने मेरी तन्खाह बढ़ा कर दी तो मै समझ गया.....
परमात्मा ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेज दिया है..
और जब दोबारा मै ग़ैर हाजिर हुआ तो मेरी माता जी
का निधन हो गया था...
जब आप ने मेरी तन्खाह कम
दी तो मैने यह मान लिया की मेरी माँ अपने हिस्से का
अपने साथ ले गयीं.....
फिर मै इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ
जिस का ज़िम्मा ख़ुद परमात्मा ने ले रखा है......!!
!! एक खूबसूरत सोच !!
अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया,
तो बेशक कहना,
जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी
और जो भी पाया वो प्रभू की मेहेरबानी थी,
खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच में,
ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वो देता नहीं.....!!

Sunday, September 13, 2020

जन्मांध

एक दादा जी के दो पोते थे। एक का नाम “प्राइवेट” और दूसरे का नाम “सरकारी” था।
एक दिन दादा जी के मोबाइल की ब्राइटनेस कम हो गई। दादा जी “सरकारी” के पास गए और बोले, "बेटा मोबाइल में देखो क्या समस्या है, कुछ दिखाई नहीं दे रहा।"
“सरकारी” बोला :- "दादा जी थोड़ा इंतजार कीजिए, मुझे पिता जी  ने काफी काम दिए हैं, थोड़ा सा फुर्सत मिलते ही आपका काम करता हूं।"
दादा जी में इतना धैर्य कहां था कि इंतजार करते।
दादा जी पहुंचे “प्राइवेट” के पास, “प्राइवेट” बड़े फुर्सत में बैठा था। उसने दादा जी को पानी पिलाया, चाय मंगवाई और पूछा, दादा जी बताइए क्या सेवा करूं?
दादा जी उसके व्यवहार से बहुत खुश हुए और उसको अपनी समस्या बताई।
“प्राइवेट” बोला, दादा जी आप निश्चिंत हो के बैठिए, मैं अभी देखता हूं।
उसने मोबाइल की ब्राइटनेस बढ़ा दी और बोला –
“लीजिए दादा जी, मोबाइल का बल्ब फ्यूज हो गया था, मैंने नया लगा दिया है। बल्ब 500 रूपये का है।”
(हालांकि बल्ब फ्यूज नहीं था, तथापि दादा जी उसकी जी-हुजूरी से इतने गदगद थे, कि उन्हें “प्राइवेट” की इस चालबाजी और अपने ठगे जाने का ख्याल भी नहीं आया)
दादा जी ने खुशी-खुशी 500 रूपये उसको बल्ब के दे दिए।
कुछ देर बाद दादा जी से उनका बड़ा बेटा, जिसका नाम 'निजी_आयोग' था, मिलने आया।
दादा जी ने बातों-बातों में “सरकारी” के निकम्मेपन और “प्राइवेट” की कार्य कुशलता की तारीफ करते हुए आज की पूरी घटना बता दी।
'निजी_आयोग' भोले-भाले दादा जी के साथ हुए अन्याय को समझ गया।
'निजीआयोग' ने “प्राइवेट” से संपर्क किया तो उसने 100 रूपये चाचा के हाथ में रख दिए और बोला-
“दादा जी और पिता जी के सामने मेरी थोड़ी जमकर तारीफ कर देना।”
अगले दिन 'निजी_आयोग' ने दादा जी और पिता जी को “प्राइवेट” के गुणों का बखान कर दिया।
पिताजी एकदम धृतराष्ट्र के माफिक जन्मांध थे, गुस्से में आकर बोले - "इस निकम्मे “सरकारी” को घर से बाहर निकालो, आज से पूरे घर की देखभाल “प्राइवेट” करेगा!"
“सरकारी” अवाक है, निःशब्द है, उसके मुंह से बोल नहीं फूट पा रहा है। वह अपनी सामर्थ्य और उपयोगिता दादा जी एवं पिता जी को समझाना चाहता है, परंतु सामने से बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। डर रहा है कि कहीं घर से निकालने के साथ ही उसे भी राष्ट्र विरोधी और राष्ट्र-द्रोही न घोषित कर दिया जाए।
दरवाजे के पीछे से “प्राइवेट” मुस्कुरा रहा है।

Friday, September 11, 2020

दृष्टिकोण के परिवर्तन

ट्रेन के डिब्बे में दो बच्चे  यहाँ-वहाँ दौड़ रहे थे,  कभी आपस में झगड़ जाते, तो  कभी किसी सीट के ऊपर कूदते. पास ही बैठा पिता ... किन्हीं विचारों में खोया था. बीच-बीच में जब बच्चे ... उसकी ओर देखते तो वह एक  स्नेहिल मुस्कान  बच्चों पर डालता और फिर ...बच्चे उसी प्रकार अपनी शरारतों में  व्यस्त हो जाते, और पिता फिर से उन्हें निहारने लगता. ट्रेन के सहयात्री  बच्चों की चंचलता से  परेशान हो गए थे, और ... पिता के रवैये से नाराज़.  चूँकि रात्रि का समय था, अतः सभी आराम करना चाहते थे. बच्चों की भागदौड़ को देखते हुए  एक यात्री से रहा न गया और  लगभग झल्लाते हुए  बच्चों के     पिता से बोल उठा ~ कैसे पिता हैं आप ? बच्चे इतनी शैतानियाँ कर रहे हैं, और आप उन्हें रोकते-टोकते नहीं,  बल्कि मुस्कुराकर प्रोत्साहन दे रहे हैं. क्या आपका दायित्त्व नहीं कि  आप इन्हें समझाएं ?   उस सज्जन की शिकायत से  अन्य यात्रियों ने  राहत की साँस ली, कि  अब यह व्यक्ति लज्जित होगा, और बच्चों को रोकेगा. परन्तु ..  उस पिता ने कुछ क्षण रुक कर  कहा कि ~ कैसे समझाऊँ ?
  बस यही सोच रहा हूँ भाई साहब ! यात्री बोला ~ मैं कुछ समझा नहीं. व्यक्ति बोला ~  मेरी पत्नी अपने मायके गई थी.  वहाँ एक दुर्घटना मे कल उसकी मौत हो गई.  मैं बच्चों को उसके  अंतिम दर्शनों के लिए  ले जा रहा हूँ, और इसी उलझन में हूँ कि कैसे समझाऊँ इन्हें कि ...अब ये अपनी माँ को ... कभी देख नहीं पाएंगे.  उसकी यह बात सुनकर ... जैसे सभी लोगों को साँप सूँघ गया. बोलना तो दूर .. सभी का  सोचने तक का सामर्थ्य जाता रहा. बच्चे यथावत शैतानियाँ कर रहे थे. अभी भी वे कंपार्टमेंट में  दौड़ लगा रहे थे. वह व्यक्ति फिर मौन हो गया. वातावरण में कोई परिवर्तन न हुआ,  पर वे बच्चे .. अब उन यात्रियों को  शैतान, अशिष्ट नहीं लग रहे थे, बल्क ऐसे नन्हें कोमल पुष्प लग रहे थे,  जिन पर सभी अपनी ममता  उड़ेलना चाह रहे थे.  उनका पिता अब उन लोगों को ...   लापरवाह इंसान नहीं, वरन अपने जीवन साथी के  विछोह से दुखी  दो बच्चों का अकेला पिता  और माता भी दिखाई दे रहा था.
कहने को तो यह एक कहानी है  सत्य या असत्य .. पर  एक मूल बात यह अनुभूत हुई कि .. आखिर ... क्षण भर में ही  इतना परिवर्तन कैसे ....  सभी के व्यवहार में आ गया क्योंकि ... उनकी दृष्टि में         परिवर्तन आ चुका था.
 हम सभी इसलिए उलझनों में हैं,  क्योंकि ... हमने अपनी  धारणाओं रूपी उलझनों का संसार  अपने इर्द-गिर्द स्वयं रच लिया है. मैं यह नहीं कहता कि ... किसी को परेशानी या  तकलीफ नहीं है. पर क्या  निराशा या नकारात्मक विचारों से हम उन परिस्थितियों को बदल सकते हैं  
नहीं ना .आवश्यकता है एक आशा, एक उत्साह से भरी  सकारात्मक सोच की,  फिर परिवर्तन तत्क्षण आपके भीतर आपको अनुभव होगा. उस लहर में हताशा की मरुभूमि भी 
 नंदन वन की भाँति सुरभित हो उठेगी.
दोस्तों,
   बदला जाये दृष्टिकोण तो ...
     इंसान बदल सकता है.
        दृष्टिकोण के परिवर्तन से 
          सारा ज़हान बदल सकता है.