Wednesday, January 27, 2021

अद्भुत रिश्तों

एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी (गोबर में रहने वाले) कीड़े से थी ! एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा- भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ!
भंवरा भोजन खाने पहुँचा! बाद में भंवरा सोच में पड़ गया- कि मैंने बुरे का संग किया इसलिये मुझे गोबर खाना पड़ा! अब भंवरे ने कीड़े को अपने यहां आने का निमंत्रन दिया कि तुम कल मेरे यहाँ आओ!*
अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा! भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया! कीड़े ने परागरस पिया! मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढा दिया! कीड़े को ठाकुर जी के दर्शन हुये! चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला! संध्या में पुजारी ने सारे फूल इक्कठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए! कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था! इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया, पूछा-मित्र! क्या हाल है? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गयी! ये सब अच्छी संगत का फल है!
कोई भी नही जानता कि हम इस जीवन के सफ़र में एक दूसरे से क्यों मिलते है,
सब के साथ रक्त संबंध नहीं हो सकते परन्तु ईश्वर हमें कुछ लोगों के साथ मिलाकर अद्भुत रिश्तों में बांध देता हैं,हमें उन रिश्तों को हमेशा संजोकर रखना चाहिए।

Wednesday, January 20, 2021

मेरी मा

एक बार अकबर बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे!
रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा .. मंत्री बीरबल ने झुक कर प्रणाम किया !
अकबर ने पूछा कौन हे ये ?
बीरबल -- मेरी माता हे !
अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़ कर फेक दिया और बोला .. कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की ...!
बीरबल ने उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी! .. आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला ) झाड़ मिला .. बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर कहा: जय हो बाप मेरे ! !
अकबरको गुस्सा आया .. दोनों हाथो से झाड़ को उखाड़ने लगा .. इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो बोला: .. बीरबल ये क्या हो गया !
बीरबल ने कहा आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये गुस्सा हो गए!
अकबर जहाँ भी हाथ लगता खुजली होने लगती .. बोला: बीरबल जल्दी कोई उपाय बतायो!
बीरबल बोला: उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है .. उससे विनती करी पड़ेगी !
अकबर बोला: जल्दी करो !
आगे गाय खड़ी थी बीरबल ने कहा गाय से विनती करो कि ... हे माता दवाई दो..
गाय ने गोबर कर दिया .. अकबर के शरीर पर उसका लेप करने से फौरन खुजली से राहत मिल गई!
अकबर बोला .. बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे?
बीरबलने कहा: .. नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है! सामने गंगा बह रही थी .. आप बोलिए हर -हर गंगे .. जय गंगा मईया की .. और कूद जाइए !
नहा कर अपनेआप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने बीरबल से कहा: .. कि ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत माता हैं! इनको मानने वालों को ही हिन्दू कहते हैं ..!

Friday, January 15, 2021

खुशहाली


एक किसान था, उसके पास 500 बीघा जमीन थी, घर में किसी प्रकार की कमी नही थी। खुशहाली का माहौल था ।किसान के चार पुत्र थे,सभी सामिल में रहते थे।चारों पुत्रों की शादियां हो चुकी थी व सबके बच्चे भी थे ।भरा पूरा संयुक्त  परिवार था। घर का हिसाब व आर्थिक व्यवस्था का संचालन उसका बङा पुत्र करता था । बङे पुत्र के परिवार संचालन से सब खुश थे, क्योकिं किसी को भी काम नही करना पङता था, सब सदस्यों को हाथखर्च हेतू खूब रूपये मिल जाते थे। बङा पुत्र भी ऐशोआराम की जिंदगी जी रहा था, कभी विदेश घूमने जाता तो कभी होटलों में अय्यासी व मौजमस्ती करता, घर का कोई सदस्य उसका विरोध भी नही करता क्योकिं सबको बिना काम किए ही रुपये पैसे मिल जाते और सब मौज मस्ती करते। रोज घर में मिठाइयां बनती, सबकी पसंद के कपङे,गहने आदि मिल जाते। एक बार  बङे पुत्र को किसी काम से एक दो साल के लिए घर से बाहर जाना पङा एवं घर संचालन की जिम्मेदारी दूसरे नम्बर के पुत्र को दी गयी। दूसरे नम्बर के पुत्र ने परिवार की बागडौर संभाली तो उसके होश उङ गये, क्योकिं लगभग आधी जमीन एक साहूकार के गिरवी  रखी पङी थी, उसने परिवार के किसी सदस्य को कुछ नहीं बताया और अपने काम में लग गया। परिवार के प्रत्येक सदस्य को काम बता दिया गया  स्वयं भी दिनरात मेहनत करता व परिवार के सभी सदस्यों को भी प्रेरित करता। किसी को फ़ालतू रुपये पैसे नही मिलते एवं सबको काम करना पङता था। उसने धीरे धीरे साहूकार का सारा ऋण चुकता कर दिया एवं अपनी सारी जमीन वापस छुङवा ली। अब परिवार के सब सदस्य उससे नाखुश रहने लगे क्योंकि अब सबको मेहनत करनी पङ रही थी एवं फ़ालतू के शौक फैशन हेतु रुपये पैसे नही मिल रहे थे। सबने माँग करना शुरू कर दिया कि वापस परिवार की बागडौर बङे पुत्र को ही दी जाए।

Sunday, December 13, 2020

खुशियों रूपी उपहार

एक निर्माणाधीन भवन की सातवीं मंजिल से ठेकेदार ने नीचे काम करने वाले मजदूर को आवाज दी।
निर्माण कार्य की तेज आवाज के कारण मजदूर सुन न सका कि उसका ठेकेदार उसे आवाज दे रहा है।
ठेकेदार ने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए एक 1 रुपये का सिक्का नीचे फेंका जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा।
मजदूर ने सिक्का उठाया और अपनी जेब में रख लिया और फिर अपने काम मे लग गया।अब उसका ध्यान खींचने के लिए ठेकेदार ने पुन: एक 5 रुपये का सिक्का नीचे फैंका।
फिर 10 रुपये का सिक्का फेंका।उस मजदूर ने फिर वही किया और सिक्के जेब मे रख कर अपने काम मे लग गया।
यह देख अब ठेकेदार ने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया और मजदूर के उपर फेंका जो सीधा मजदूर के सिर पर लगा।
अब मजदूर ने ऊपर देखा और ठेकेदार से बात चालू हो गयी।
ऐसी ही घटनायें हमारी जिन्दगी में भी घटती रहती हैं।मालिक हमसे संपर्क करना,मिलना चाहता है लेकिन हम दुनियादारी के कामों में इतने व्यस्त रहते हैं कि हम भगवान को याद नहीं करते।
भगवान हमें छोटी छोटी खुशियों के रूप मे उपहार देता रहता है लेकिन हम उसे याद नहीं करते और वो खुशियां और उपहार कहाँ से आये यह न देखते हुए, उनका उपयोग कर लेते हैं और भगवान को याद ही नहीं करते।भगवान् हमें और भी खुशियों रूपी उपहार भेजता है लेकिन उसे भी हम हमारा भाग्य समझ कर रख लेते हैं,भगवान् का धन्यवाद नहीं करते,उसे भूल जाते हैं.
तब भगवान हम पर एक छोटा सा पत्थर फेंकते हैं, जिसे हम कठिनाई, तकलीफ या दुख कहते हैं फिर हम तुरन्त उसके निराकरण के लिए भगवान की ओर देखते हैं,याद करते हैं।
यही जिन्दगी मे हो रहा है।यदि हम हमारी छोटी से छोटी ख़ुशी भी भगवान के साथ उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें तो हमें भगवान के द्वारा फेंके हुए पत्थर का इन्तजार ही नहीं करना पड़ेगा।

Thursday, December 10, 2020

सदैव प्रयत्नशील रहें

एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया अपने घर, और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो !
उस पेंटर ने पेंट लेकर उस नाव को  लाल रंग से पेंट कर दिया जैसा कि नाव का मालिक चाहता था।
फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया !
अगले दिन, पेंटर के घर पर वह नाव का मालिक पहुँच गया, और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को !
पेंटर भौंचक्का हो गया, और पूछा - ये किस बात के इतने पैसे हैं ? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था !
मालिक ने कहा - ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है !
पेंटर ने कहा - अरे साहब, वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे, ठीक नहीं लग रहा है !
मालिक ने कहा - दोस्त, तुम्हें पूरी बात पता नहीं !अच्छा में विस्तार से समझाता हूँ। जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है उसको रिपेयर कर देना !
और जब पेंट सूख गया, तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर नौकायन के लिए  निकल गए !
मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर नौकायन पर निकल गए हैं !
तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है !
मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे !
अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो !
फिर मैंने छेद चेक किया, तो पता चला कि, मुझे बिना बताये तुम उसको रिपेयर कर चुके हो !
तो मेरे दोस्त उस महान कार्य के लिए तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं !
मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हे ठीक ठाक पैसे दे पाऊं !
जीवन मे "भलाई का कार्य" जब मौका लगे हमेशा कर देना चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य ही क्यों न हो !
क्योंकि कभी कभी वो छोटा सा कार्य भी किसी के लिए बहुत अमूल्य हो सकता है।
सभी मित्रों को जिन्होने 'हमारी जिन्दगी की नाव' कभी भी रिपेयर की है उन्हें हार्दिक धन्यवाद .....
 और सदैव प्रयत्नशील रहें कि हम भी किसी की नाव रिपेयरिंग करने के लिए हमेशा तत्पर रहें।

Sunday, December 6, 2020

ग़जब का रिश्ता

मैं बिस्तर पर से उठा, अचानक छाती में दर्द होने लगा मुझे... हार्ट की तकलीफ तो नहीं है. ..? ऐसे विचारों के साथ. ..मैं आगे वाले बैठक के कमरे में गया...मैं देखा कि मेरा पूरा परिवार मोबाइल में व्यस्त था...
मैने... पत्नी को देखकर कहा..."थोड़ा छाती में आज रोज से ज़्यादा दर्द हो रहा है...डाॅक्टर को बताकर आता हूँ।". .."हाँ मगर सँभलकर जाना...काम हो तो फोन करना"   मोबाइल में देखते देखते ही पत्नी बोली...
मैं... एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग में पहुँचा... पसीना, मुझे बहुत आ रहा था...ऐक्टिवा स्टार्ट नहीं हो रही थी...
ऐसे वक्त्त... हमारे घर का काम करने वाला ध्रुव सायकिल लेकर आया... सायकिल को ताला मारते ही उसने मुझे सामने खड़ा देखा..."क्यों साब ऐक्टिवा चालू नहीं हो रही है?.....मैंने कहा "नहीं..."
"आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती साब... इतना पसीना क्यों आया है?
साब... इस हालत में स्कूटर को किक नहीं मारते....मैं किक मारकर चालू कर देता हूँ।" ध्रुव ने एक ही किक मारकर ऐक्टिवा चालू कर दिया, साथ ही पूछा.."साब अकेले जा रहे हो?"
मैंने कहा... "हाँ"
उसने कहा "ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते...चलिए मेरे पीछे बैठ जाइये"
"मैंने कहा तुम्हे एक्टिवा चलाने आती है? "साब... गाड़ी का भी लाइसेंस है, चिंता  छोड़कर बैठ जाओ..."
पास ही एक अस्पताल में हम पहुँचे, ध्रुव दौड़कर अंदर गया, और व्हील चेयर लेकर बाहर आया..."साब... अब चलना नहीं, इस कुर्सी पर बैठ जाओ.."
ध्रुव के मोबाइल पर लगातार घंटियां बजती रही...मैं समझ गया था... फ्लैट में से सबके फोन आते होंगे..कि अब तक क्यों नहीं आया? ध्रुव ने आखिर थक कर किसी को कह दिया कि... आज नहीँ आ सकता....
ध्रुव डाॅक्टर के जैसे ही व्यवहार कर रहा था...उसे बगैर पूछे मालूम हो गया था कि, साब को हार्ट की तकलीफ है... लिफ्ट में से व्हील चेयर ICU कि तरफ लेकर गया....
डाॅक्टरों की टीम तो तैयार ही थी... मेरी तकलीफ सुनकर... सब टेस्ट शीघ्र ही किये... डाॅक्टर ने कहा, "आप समय पर पहुँच गये हो....इसमें भी आपने व्हील चेयर का उपयोग किया...वह आपके लिए बहुत फायदेमन्द रहा..."
"अब... किसी भी प्रकार की राह देखना आपके लिए हानिकारक है। इसलिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन करके आपके ब्लोकेज जल्द ही दूर करने होंगे...इस फार्म पर आप के स्वजन के हस्ताक्षर की ज़रूरत है" डाॅक्टर ध्रुव को सामने देखा...
मैंने कहा, "बेटे, दस्तखत करने आती है?"
उसने कहा "साब इतनी बड़ी जवाबदारी मुझ पर न डालो।"
"बेटे... तुम्हारी कोई जवाबदारी नहीं है... तुम्हारे साथ भले ही लहू का सम्बन्ध नहीं है... फिर भी बगैर कहे तुमने अपनी जवाबदारी पूरी की। वह जवाबदारी हकीकत में मेरे परिवार की थी...एक और जवाबदारी पूरी कर दो बेटा, मैं नीचे सही करके लिख दूँगा कि मुझे कुछ भी होगा तो जवाबदारी मेरी है।" ध्रुव ने सिर्फ मेरे कहने पर ही हस्ताक्षर  किये हैं, बस अब... ..
"और हाँ, घर फोन लगा कर खबर कर दो..."
बस, उसी समय मेरे सामने मेरी पत्नी का मोबाइल ध्रुव के मोबाइल पर आया। वह शांति से फोन सुनने लगा...
थोड़ी देर के बाद ध्रुव बोला, "मैडम, आपको पगार काटने का हो तो काटना, निकालने का हो तो निकाल देना  मगर अभी अस्पताल में ऑपरेशन शुरु होने के पहले पहुँच जाओ। हाँ मैडम, मैं साब को अस्पताल लेकर आया हूँ डाक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है और राह देखने की कोई जरूरत नहीं है..."
मैंने कहा, "बेटा घर से फोन था...?"
"हाँ साब।"
मैंने मन में पत्नी के बारे में सोचा, तुम किसकी पगार काटने की बात कर रही हो और किसको निकालने की बात कर रही हो? आँखों में आँसू के साथ ध्रुव के कन्धे पर हाथ रखकर मैं बोला "बेटा चिंता नहीं करते।"
"मैं एक संस्था में सेवायें देता हूँ, वे बुज़ुर्ग लोगों को सहारा देते हैं, वहां तुम जैसे ही व्यक्तियों की ज़रूरत है।"
"तुम्हारा काम बरतन कपड़े धोने का नहीं है, तुम्हारा काम तो समाज सेवा का है...बेटा. ..पगार मिलेगा, इसलिए चिंता बिल्कुल भी मत करना।"
ऑपरेशन के बाद मैं होश में आया... मेरे सामने मेरा पूरा परिवार नतमस्तक खड़ा था, मैं आँखों में आँसू लिये बोला, "ध्रुव कहाँ है?"
पत्नी बोली "वो अभी ही छुट्टी लेकर गाँव चला गया। कह रहा था कि उसके पिताजी हार्ट अटैक से गुज़र गये है... 15 दिन के बाद फिर आयेगा।"
अब मुझे समझ में आया कि उसको मेरे अन्दर उसका बाप दिख रहा होगा...।
हे प्रभु, मुझे बचाकर आपने उसके बाप को उठा लिया?
पूरा परिवार हाथ जोड़कर , मूक नतमस्तक माफी माँग रहा था...
एक मोबाइल की लत (व्यसन)...अपने व्यक्ति को अपने दिल से कितना दूर लेकर जाता है... वह परिवार देख रहा था....। यही नही मोबाइल  आज घर घर कलह का कारण भी बन गया है। बहू छोटी-छोटी बाते तत्काल  अपने माँ-बाप को बताती है और माँ की सलाह पर ससुराल पक्ष के लोगो से व्यवहार करती है। परिणामस्वरूप  वह बीस बीस साल में भी ससुराल पक्ष के लोगो से अपनापन नहीं जोड़ पाती।
डाॅक्टर ने आकर कहा, "सबसे पहले यह बताइये ध्रुव भाई आप के क्या लगते हैं?"
मैंने कहा "डाॅक्टर साहब,  कुछ सम्बन्धों के नाम या गहराई तक न जायें तो ही बेहतर होगा उससे सम्बन्ध की गरिमा बनी रहेगी।
बस मैं इतना ही कहूँगा कि वो आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया था।"
पिन्टू बोला "हमको माफ़ कर दो पापा... जो फर्ज़ हमारा था,  वह ध्रुव ने पूरा किया यह हमारे लिए शर्मनाक है। अब से ऐसी भूल भविष्य में कभी भी नहीं होगी।
"बेटा,जवाबदारी और नसीहत (सलाह) लोगों को देने के लिए ही होती है...
जब लेने की घड़ी आये तब लोग  बग़लें झाँकते हैं या ऊपर नीचे हो जातें हैं   अब रही मोबाइल की बात...
बेटे, एक निर्जीव खिलोने नें, जीवित खिलोने को गुलाम कर दिया है। समय आ गया है कि उसका मर्यादित उपयोग करना है।
नहीं तो....
परिवार, समाज और राष्ट्र को उसके गम्भीर परिणाम भुगतने पडेंगे और उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहना पड़ेगा।"
अतःबेटे और बेटियों को बड़ा अधिकारी या व्यापारी बनाने की जगह एक अच्छा इन्सान बनायें।

Wednesday, November 18, 2020

इंसान की असलियत

एक राजा के दरबार मे एक अजनबी इंसान नौकरी मांगने के लिए आया।
उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई, 
तो वो बोला,  "मैं आदमी हो चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ
 राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया। 
     चंद दिनों बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा, .....
उसने कहा, "नस्ली नही हैं ।"
राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा..
        उसने बताया, घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है। 
      राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?" "उसने कहा "हुजुर जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं।
राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज, घी, मुर्गे, और अंडे बतौर इनाम भिजवा दिए।
और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया। 
चंद दिनो बाद , राजा ने उस से रानी के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन पैदाइशी नहीं हैं।”
राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, उसने अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं, कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"
राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा "तुम को कैसे पता चला ? ""उसने कहा, " रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता हैं, जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही।
 राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे तैनात कर दिया।
कुछ वक्त गुज़रा, राजा ने फिर नौकर को बुलाया,और अपने बारे में पूछा।
नौकर ने कहा "जान की सलामती हो तो कहूँ।”
राजा ने वादा किया।
उसने कहा, "न तो आप राजा के बेटे हो और न ही आपका चलन राजाओं वाला है।"
राजा को बहुत गुस्सा आया, मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था, राजा सीधा अपनी मां के महल पहुंचा    मां ने कहा, 
      "ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे गोद लेकर हम ने पाला।”
 राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे पता चला ?”
 उसने कहा " जब राजा किसी को "इनाम दिया करते हैं, तो हीरे मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं...ये रवैया किसी राजाओं का नही, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।"
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी दिखावा हैं।
इंसान की असलियत की पहचानउसके व्यवहार और उसकी नियत से होती हैं...
सच्चाई तो सामने आ ही जाती है.. किसी न किसी तरह...ईसलिए थोडा संभलकर और सोच समझकर ...रहें ..वर्ताव करें....किसी से भी।

Saturday, October 17, 2020

आपका प्रकोप

रिपोर्टर :  आपका प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है ? क्यों ?
मच्छर : सही शब्द इस्तेमाल कीजिये, इसे प्रकोप नहीं फलना-फूलना कहते हैं. पर तुम इंसान लोग तो दूसरों को फलते-फूलते देख ही नहीं सकते न ? आदत से मजबूर जो ठहरे.
रिपोर्टर : हमें आपके फलने-फूलने से कोई ऐतराज़ नहीं है पर आपके काटने से लोग जान गँवा रहे हैं, जनता में भय व्याप्त हो गया है ?
मच्छर : हम  सिर्फ अपना काम कर रहे हैं. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि ‘कर्म ही पूजा है’. अब विधाता ने तो हमें काटने के लिए ही बनाया है, हल में जोतने के लिए नहीं ! जहाँ तक लोगों के जान गँवाने का प्रश्न है तो आपको मालूम होना चाहिए कि “हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ’ …!
रिपोर्टर : लोगों की जान पर बनी हुई है और आप हमें दार्शनिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं ?
मच्छर : आप तस्वीर का सिर्फ एक पहलू देख रहे हैं. हमारी वजह से कई लोगों को लाभ भी होता है, ये शायद आपको पता नहीं ! जाइये इन दिनों किसी डॉक्टर, केमिस्ट या पैथोलॉजी लैब वाले के पास, उसे आपसे बात करने की फ़ुर्सत नहीं होगी. अरे भैया, उनके बीवी-बच्चे हमारा ‘सीजन’ आने की राह देखते हैं, ताकि उनकी साल भर से पेंडिंग पड़ी माँगे पूरी हो सकें. क्या समझे आप ? हम देश की इकॉनोमी बढाने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं, ये मत भूलिएगा !
रिपोर्टर : परन्तु मर तो गरीब रहा है न, जो इलाज करवाने में सक्षम ही नहीं है ?
मच्छर : हाँ तो गरीब जी कर भी क्या करेगा ? 
जिस गरीब को आप अपना घर तो छोडो, कॉलोनी तक में घुसने नहीं देना चाहते, उसके साथ किसी तरह का संपर्क नहीं रखना चाहते, उसके मरने पर तकलीफ होने का ढोंग करना बंद कीजिये आप लोग.
रिपोर्टर : आपने दिल्ली में कुछ ज्यादा ही कहर बरपा रखा है ?
मच्छर : देखिये हम पॉलिटिशियन नहीं हैं जो भेदभाव करें … हम सभी जगह अपना काम पूरी मेहनत और लगन से करते हैं. दिल्ली में हमारी अच्छी परफॉरमेंस की वजह सिर्फ इतनी है कि यहाँ हमारे काम करने के लिए अनुकूल  माहौल है. केंद्र और राज्य सरकार की आपसी जंग का भी हमें भरपूर फायदा मिला है.
रिपोर्टर : खैर, अब आखिर में आप ये बताइये कि आपके इस प्रकोप से बचने का उपाय क्या है ?
मच्छर : उपाय तो है अगर कोई कर सके तो … लगातार सात शनिवार तक काले-सफ़ेद धब्बों वाले कुत्ते की पूँछ का बाल लेकर बबूल के पेड़ की जड़ में बकरी के दूध के साथ चढाने से हम प्रसन्न हो जायेंगे और उस व्यक्ति को नहीं काटेंगे !
रिपोर्टर : आप उपाय बता रहे हैं या अंधविश्वास फैला रहे हैं ?
मच्छर : दरअसल आम हिन्दुस्तानी लोग ऐसे ही उपायों के साथ comfortable फील करते हैं ! उन्हें विज्ञानं से ज्यादा किरपा में यकीन होता है…. वैसे सही उपाय तो साफ़-सफाई रखना है, जो रोज ही टीवी चैनलों और अखबारों के जरिये बताया जाता है, पर उसे मानता कौन है ? 
अगर उसे मान लिया होता तो आज आपको मेरा interview लेने नहीं आना पड़ता … !!!

Wednesday, September 30, 2020

खुबसूरत रिश्ता

एक व्यक्ति एक दिन बिना बताए काम पर नहीं गया.....
मालिक ने,सोचा इस कि तन्खाह बढ़ा दी जाये तो यह
और दिल्चसपी से काम करेगा.....
और उसकी तन्खाह बढ़ा दी....
अगली बार जब उसको तन्खाह से ज़्यादा पैसे दिये
तो वह कुछ नही बोला चुपचाप पैसे रख लिये.....
कुछ महीनों बाद वह फिर ग़ैर हाज़िर हो गया......
मालिक को बहुत ग़ुस्सा आया.....
सोचा इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ
यह नहीं सुधरेगाऔर उस ने बढ़ी हुई
तन्खाह कम कर दी और इस बार उसको पहले वाली ही
तन्खाह दी......
वह इस बार भी चुपचाप ही रहा और
ज़बान से कुछ ना बोला....
तब मालिक को बड़ा ताज्जुब हुआ....
उसने उससे पूछा कि जब मैने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद तुम्हारी तन्खाह बढा कर दी तुम कुछ नही बोले और आज तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्खाह
कम कर के दी फिर भी खामोश ही रहे.....!!
इस की क्या वजह है..? उसने जवाब दिया....
जब मै पहले ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर
एक बच्चा पैदा हुआ था....!!
आपने मेरी तन्खाह बढ़ा कर दी तो मै समझ गया.....
परमात्मा ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेज दिया है..
और जब दोबारा मै ग़ैर हाजिर हुआ तो मेरी माता जी
का निधन हो गया था...
जब आप ने मेरी तन्खाह कम
दी तो मैने यह मान लिया की मेरी माँ अपने हिस्से का
अपने साथ ले गयीं.....
फिर मै इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ
जिस का ज़िम्मा ख़ुद परमात्मा ने ले रखा है......!!
!! एक खूबसूरत सोच !!
अगर कोई पूछे जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया,
तो बेशक कहना,
जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी
और जो भी पाया वो प्रभू की मेहेरबानी थी,
खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच में,
ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वो देता नहीं.....!!

Sunday, September 13, 2020

जन्मांध

एक दादा जी के दो पोते थे। एक का नाम “प्राइवेट” और दूसरे का नाम “सरकारी” था।
एक दिन दादा जी के मोबाइल की ब्राइटनेस कम हो गई। दादा जी “सरकारी” के पास गए और बोले, "बेटा मोबाइल में देखो क्या समस्या है, कुछ दिखाई नहीं दे रहा।"
“सरकारी” बोला :- "दादा जी थोड़ा इंतजार कीजिए, मुझे पिता जी  ने काफी काम दिए हैं, थोड़ा सा फुर्सत मिलते ही आपका काम करता हूं।"
दादा जी में इतना धैर्य कहां था कि इंतजार करते।
दादा जी पहुंचे “प्राइवेट” के पास, “प्राइवेट” बड़े फुर्सत में बैठा था। उसने दादा जी को पानी पिलाया, चाय मंगवाई और पूछा, दादा जी बताइए क्या सेवा करूं?
दादा जी उसके व्यवहार से बहुत खुश हुए और उसको अपनी समस्या बताई।
“प्राइवेट” बोला, दादा जी आप निश्चिंत हो के बैठिए, मैं अभी देखता हूं।
उसने मोबाइल की ब्राइटनेस बढ़ा दी और बोला –
“लीजिए दादा जी, मोबाइल का बल्ब फ्यूज हो गया था, मैंने नया लगा दिया है। बल्ब 500 रूपये का है।”
(हालांकि बल्ब फ्यूज नहीं था, तथापि दादा जी उसकी जी-हुजूरी से इतने गदगद थे, कि उन्हें “प्राइवेट” की इस चालबाजी और अपने ठगे जाने का ख्याल भी नहीं आया)
दादा जी ने खुशी-खुशी 500 रूपये उसको बल्ब के दे दिए।
कुछ देर बाद दादा जी से उनका बड़ा बेटा, जिसका नाम 'निजी_आयोग' था, मिलने आया।
दादा जी ने बातों-बातों में “सरकारी” के निकम्मेपन और “प्राइवेट” की कार्य कुशलता की तारीफ करते हुए आज की पूरी घटना बता दी।
'निजी_आयोग' भोले-भाले दादा जी के साथ हुए अन्याय को समझ गया।
'निजीआयोग' ने “प्राइवेट” से संपर्क किया तो उसने 100 रूपये चाचा के हाथ में रख दिए और बोला-
“दादा जी और पिता जी के सामने मेरी थोड़ी जमकर तारीफ कर देना।”
अगले दिन 'निजी_आयोग' ने दादा जी और पिता जी को “प्राइवेट” के गुणों का बखान कर दिया।
पिताजी एकदम धृतराष्ट्र के माफिक जन्मांध थे, गुस्से में आकर बोले - "इस निकम्मे “सरकारी” को घर से बाहर निकालो, आज से पूरे घर की देखभाल “प्राइवेट” करेगा!"
“सरकारी” अवाक है, निःशब्द है, उसके मुंह से बोल नहीं फूट पा रहा है। वह अपनी सामर्थ्य और उपयोगिता दादा जी एवं पिता जी को समझाना चाहता है, परंतु सामने से बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। डर रहा है कि कहीं घर से निकालने के साथ ही उसे भी राष्ट्र विरोधी और राष्ट्र-द्रोही न घोषित कर दिया जाए।
दरवाजे के पीछे से “प्राइवेट” मुस्कुरा रहा है।

Friday, September 11, 2020

दृष्टिकोण के परिवर्तन

ट्रेन के डिब्बे में दो बच्चे  यहाँ-वहाँ दौड़ रहे थे,  कभी आपस में झगड़ जाते, तो  कभी किसी सीट के ऊपर कूदते. पास ही बैठा पिता ... किन्हीं विचारों में खोया था. बीच-बीच में जब बच्चे ... उसकी ओर देखते तो वह एक  स्नेहिल मुस्कान  बच्चों पर डालता और फिर ...बच्चे उसी प्रकार अपनी शरारतों में  व्यस्त हो जाते, और पिता फिर से उन्हें निहारने लगता. ट्रेन के सहयात्री  बच्चों की चंचलता से  परेशान हो गए थे, और ... पिता के रवैये से नाराज़.  चूँकि रात्रि का समय था, अतः सभी आराम करना चाहते थे. बच्चों की भागदौड़ को देखते हुए  एक यात्री से रहा न गया और  लगभग झल्लाते हुए  बच्चों के     पिता से बोल उठा ~ कैसे पिता हैं आप ? बच्चे इतनी शैतानियाँ कर रहे हैं, और आप उन्हें रोकते-टोकते नहीं,  बल्कि मुस्कुराकर प्रोत्साहन दे रहे हैं. क्या आपका दायित्त्व नहीं कि  आप इन्हें समझाएं ?   उस सज्जन की शिकायत से  अन्य यात्रियों ने  राहत की साँस ली, कि  अब यह व्यक्ति लज्जित होगा, और बच्चों को रोकेगा. परन्तु ..  उस पिता ने कुछ क्षण रुक कर  कहा कि ~ कैसे समझाऊँ ?
  बस यही सोच रहा हूँ भाई साहब ! यात्री बोला ~ मैं कुछ समझा नहीं. व्यक्ति बोला ~  मेरी पत्नी अपने मायके गई थी.  वहाँ एक दुर्घटना मे कल उसकी मौत हो गई.  मैं बच्चों को उसके  अंतिम दर्शनों के लिए  ले जा रहा हूँ, और इसी उलझन में हूँ कि कैसे समझाऊँ इन्हें कि ...अब ये अपनी माँ को ... कभी देख नहीं पाएंगे.  उसकी यह बात सुनकर ... जैसे सभी लोगों को साँप सूँघ गया. बोलना तो दूर .. सभी का  सोचने तक का सामर्थ्य जाता रहा. बच्चे यथावत शैतानियाँ कर रहे थे. अभी भी वे कंपार्टमेंट में  दौड़ लगा रहे थे. वह व्यक्ति फिर मौन हो गया. वातावरण में कोई परिवर्तन न हुआ,  पर वे बच्चे .. अब उन यात्रियों को  शैतान, अशिष्ट नहीं लग रहे थे, बल्क ऐसे नन्हें कोमल पुष्प लग रहे थे,  जिन पर सभी अपनी ममता  उड़ेलना चाह रहे थे.  उनका पिता अब उन लोगों को ...   लापरवाह इंसान नहीं, वरन अपने जीवन साथी के  विछोह से दुखी  दो बच्चों का अकेला पिता  और माता भी दिखाई दे रहा था.
कहने को तो यह एक कहानी है  सत्य या असत्य .. पर  एक मूल बात यह अनुभूत हुई कि .. आखिर ... क्षण भर में ही  इतना परिवर्तन कैसे ....  सभी के व्यवहार में आ गया क्योंकि ... उनकी दृष्टि में         परिवर्तन आ चुका था.
 हम सभी इसलिए उलझनों में हैं,  क्योंकि ... हमने अपनी  धारणाओं रूपी उलझनों का संसार  अपने इर्द-गिर्द स्वयं रच लिया है. मैं यह नहीं कहता कि ... किसी को परेशानी या  तकलीफ नहीं है. पर क्या  निराशा या नकारात्मक विचारों से हम उन परिस्थितियों को बदल सकते हैं  
नहीं ना .आवश्यकता है एक आशा, एक उत्साह से भरी  सकारात्मक सोच की,  फिर परिवर्तन तत्क्षण आपके भीतर आपको अनुभव होगा. उस लहर में हताशा की मरुभूमि भी 
 नंदन वन की भाँति सुरभित हो उठेगी.
दोस्तों,
   बदला जाये दृष्टिकोण तो ...
     इंसान बदल सकता है.
        दृष्टिकोण के परिवर्तन से 
          सारा ज़हान बदल सकता है.

Saturday, September 5, 2020

सन ऑफ सोमचन्द

एक गाय ने अपने सींग एक दीवार की बागड़ में कुछ ऐसे फंसाए कि बहुत कोशिश के बाद भी वह उसे  निकाल नही पा रही थी..  भीड़ इकट्ठी हो गई,लोग गाय को निकालने के लिए तरह तरह के सुझाव देने लगे । सबका ध्यान एक ही और था कि गाय को कोई कष्ट ना हो।  
तभी एक व्यक्ति आया और आते ही बोला कि गाय के सींग काट दो। यह सुनकर भीड़ में सन्नाटा छा गया। 
खैर घर के मालिक ने दीवाल को गिराकर गाय को सुरक्षित निकल लिया।  गौ माता के सुरक्षित निकल आने पर सभी प्रसन्न हुए, किन्तु गौ के सींग काटने की बात महाराजा तक पहुंची।  महाराजा ने उस व्यक्ति को तलब किया।  उससे पूछा गया क्या नाम है तेरा ? 
 उस व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए नाम बताया दुलीचन्द।  पिता का नाम - सोमचंद  जो एक लड़ाई में मारा जा चुका था।  महाराजा ने उसकी अधेड़ माँ को बुलवाकर पूछा तो माँ ने भी यही सब दोहराया, किन्तु महाराजा असंतुष्ट थे। 
 उन्होंने जब उस महिला से सख्ती से पूछताछ करवाई तो पता चला कि  उसके अवैध संबंध उसके पड़ोसी समसुद्दीन से हो गए थे। और ये लड़का   दुलीचंद उसी समसुद्दीन की औलाद है, सोमचन्द की नहीं।  महाराजा का संदेह सही साबित हुआ।   
उन्होंने अपने दरबारियों से कहा कि कोई भी शुद्ध सनातनी हिन्दू रक्त अपनी संस्कृति, अपनी मातृ भूमि, और अपनी गौ माता के अरिष्ट,अपमान और उसके  पराभाव को सहन नही कर सकता जैसे ही मैंने सुना कि दुली चंद ने गाय के सींग काटने की बात की, तभी मुझे यह अहसास हो गया था कि हो ना हो इसके रक्त में अशुद्धता आ गई है।  सोमचन्द की औलाद ऐसा नहीं सोच सकती तभी तो वह समसुद्दीन की औलाद निकला
 आज भी  हमारे समाज में सन ऑफ सोमचन्द की आड़ में बहुत से सन ऑफ समसुद्दीन घुस आए हैं।

Tuesday, August 25, 2020

देने का आनन्द

शाम हो चली थी..
लगभग साढ़े छह बजे थे..
वही हॉटेल, वही किनारे वाली टेबल और वही चाय, सिगरेट..
सिगरेट के एक कश के साथ साथ चाय की चुस्की ले रहा था..

उतने में ही सामने वाली टेबल पर एक आदमी अपनी नौ-दस साल की लड़की को लेकर बैठ गया..

उस आदमी का शर्ट फटा हुआ था, ऊपर की दो बटने गायब थी. पैंट भी मैला ही था, रास्ते पर खुदाई का काम करने वाला मजदूर जैसा लग रहा था..

लड़की का फ्रॉक धुला हुआ था और उसने बालों में वेणी भी लगाई हुई थी..

उसके चेहरा अत्यंत आनंदित था और वो बड़े कुतूहल से पूरे हॉटेल को इधर-उधर से देख रही थी.. 
उनके टेबल के ऊपर ही चल रहे पँखे को भी वो बार-बार देख रही थी, जो उनको ठंडी हवा दे रहा था..

बैठने के लिये गद्दी वाली कुर्सी पर बैठकर वो और भी प्रसन्न दिख रही थी..

उसी समय वेटरने दो स्वच्छ गिलासों में ठंडा पानी उनके सामने रखा..

उस आदमी ने अपनी लड़की के लिये एक डोसा लाने का आर्डर दिया. 
यह आर्डर सुनकर लड़की के चेहरे की प्रसन्नता और बढ़ गई..

और तुमको? वेटर ने पूछा..
नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिये: उस आदमी ने कहा.

कुछ ही समय में गर्मागर्म बड़ा वाला, फुला हुआ डोसा आ गया, साथ में चटनी-सांभार भी..

लड़की डोसा खाने में व्यस्त हो गई. और वो उसकी ओर उत्सुकता से देखकर पानी पी रहा था..

इतने में उसका फोन बजा. वही पुराना वाला फोन. उसके मित्र का फोन आया था, वो बता रहा था कि आज उसकी लड़की का जन्मदिन है और वो उसे लेकर हॉटेल में आया है..

वह बता रहा था कि उसने अपनी लड़की को कहा था कि यदि वो अपनी स्कूल में पहले नंबर लेकर आयेगी तो वह उसे उसके जन्मदिन पर डोसा खिलायेगा..

और वो अब डोसा खा रही है..
थोडा पॉज..

नहीं रे, हम दोनों कैसे खा सकते हैं? हमारे पास इतने पैसे कहां है? मेरे लिये घर में बेसन-भात बना हुआ है ना..

उसकी बातों में व्यस्त रहने के कारण मुझे गर्म चाय का चटका लगा और मैं वास्तविकता में लौटा..

कोई कैसा भी हो..
अमीर या गरीब,
दोनों ही अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिये कुछ भी कर सकते हैं..
मैं उठा और काउंटर पर जाकर अपनी चाय और दो दोसे के पैसे दिये और कहा कि उस आदमी को एक और डोसा दे दो उसने अगर पैसे के बारे में पूछा  तो उसे कहना कि हमनें तुम्हारी बातें सुनी आज तुम्हारी बेटी का जन्मदिन है और वो स्कूल में पहले नंबर पर आई है..
इसलिये हॉटेल की ओर से यह तुम्हारी लड़की के लिये ईनाम उसे आगे चलकर इससे भी अच्छी पढ़ाई करने को बोलना..
परन्तु, परंतु भूलकर भी "मुफ्त" शब्द का उपयोग मत करना, उस पिता के "स्वाभिमान" को चोट पहुचेंगी..
होटल मैनेजर मुस्कुराया और बोला कि यह बिटिया और उसके पिता आज हमारे मेहमान है, आपका बहुत-बहुत आभार कि आपने हमें इस बात से अवगत कराया।
उनकी आवभगत का पूरा जिम्मा आज हमारा है आप यह  पुण्य कार्य और किसी अन्य जरूरतमंद के लिए कीजिएगा।
वेटर ने एक और डोसा उस टेबल पर रख दिया, मैं बाहर से देख रहा था..
उस लड़की का पिता हड़बड़ा गया और बोला कि मैंने एक ही डोसा बोला था..
तब मैनेजर ने कहा कि, अरे तुम्हारी लड़की स्कूल में पहले नंबर पर आई है..
इसलिये ईनाम में आज हॉटेल की ओर से तुम दोनों को डोसा दिया जा रहा है,
उस पिता की आँखे भर आई और उसने अपनी लड़की को कहा, देखा बेटी ऐसी ही पढ़ाई करेंगी तो देख क्या-क्या मिलेगा..
उस पिता ने वेटर को कहा कि क्या मुझे यह डोसा बांधकर मिल सकता है? 
यदि मैं इसे घर ले गया तो मैं और मेरी पत्नी दोनों आधा-आधा मिलकर खा लेंगे, उसे ऐसा खाने को नहीं मिलता...
जी नहीं श्रीमान आप अपना दूसरा यहीं पर थोड़ा खाइए।
आपके घर के लिए मैंने 3 डोसे  और मिठाइयों का एक पैक अलग से बनवाया है।
आज आप घर जाकर अपनी बिटिया का बर्थडे बड़ी धूमधाम से मनाइए गा और मिठाईयां इतनी है कि आप पूरे मोहल्ले को बांट सकते हो।

यह सब सुनकर मेरी आँखे खुशी से भर आई,
मुझे इस बात पर पूरा विश्वास हो गया कि जहां चाहे वहां राह है अच्छे काम के लिए एक कदम आप आगे तो बढ़ाइए,
फिर देखिए आगे आगे होता है क्या!!!

Friday, July 3, 2020

अनोखा रिश्ता

पिता पुत्र का अनोखा रिश्ता
भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है ।

दुनिया के किसी भी सम्बन्ध में, 
अगर सबसे कम बोल-चाल है, 
तो वो है पिता-पुत्र की जोड़ी में ।

एक समय तक दोनों अंजान होते हैं
एक दूसरे के बढ़ते शरीरों की उम्र से फिर धीरे से अहसास होता है हमेशा के लिए बिछड़ने का ।

जब लड़का,
अपनी जवानी पार कर अगले पड़ाव पर चढ़ता है तो यहाँ इशारों से बाते होने लगती हैं  या फिर इनके बीच मध्यस्थ का दायित्व निभाने वाली माँ के माध्यम से ।

पिता अक्सर उसकी माँ से कहा करते हैं जा "उससे कह देना"
और
पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहा करता है "पापा से पूछ लो ना"

इसी दोनों धूरियों के बीच घूमती रहती है माँ । 

जब एक कहीं होता है तो दूसरा नहीं होने की कोशिश करता है,
शायद पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं ।
जबकि 
वो डर नज़दीकी का नहीं है, डर है उसके बाद बिछड़ने का । 

भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को कहा हो कि बेटा मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ ।

पिता की अनंत गालियों का उत्तराधिकारी भी वही होता है,
क्योंकि पिता हर पल ज़िन्दगी में अपने बेटे को अभिमन्यु सा पाता है ।

पिता समझता है,
कि इसे सम्भलना होगा, 
इसे मजबूत बनना होगा, ताकि ज़िम्मेदारियो का बोझ इसका वध नहीं कर सके । 
पिता सोंचता है,
जब मैं चला जाऊँगा, 
इसकी माँ भी चली जाएगी, 
बेटियाँ अपने घर चली जायँगी,
रह जाएगा सिर्फ ये, 
इसे हर-दम हर-कदम परिवार के लिए,
आजीविका के लिए,
बहु के लिए,
अपने बच्चों के लिए चुनौतियों से,
सामाजिक जटिलताओं से लड़ना होगा ।

पिता जानता है
हर बात घर पर नहीं बताई जा सकती,
इसलिए इसे खामोशी में ग़म छुपाने सीखने होंगे ।

परिवार के विरुद्ध खड़ी हर विशालकाय मुसीबत को अपने हौंसले से छोटा करना होगा।
ना भी कर सके तो ख़ुद का वध करना होगा । 

इसलिए वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता,
पिता जानता है
प्रेम कमज़ोर बनाता है ।
फिर कई दफ़ा उसका प्रेम झल्लाहट या गुस्सा बनकर निकलता है । 

वो अपने बेटे की
कमियों मात्र के लिए नहीं है,
वो झल्लाहट है जल्द निकलते समय के लिए, 
वो जानता है उसकी मौजूदगी की अनिश्चितताओ को । 

पिता चाहता है कहीं ऐसा ना हो इस अभिमन्यु का वध मेरे द्वारा दी गई कम शिक्षा के कारण हो जाये,

पिता चाहता है कि 
पुत्र जल्द से जल्द सीख ले, 
वो गलतियाँ करना बंद करे,
क्योंकि गलतियां सभी की माफ़ हैं पर मुखिया की गलतियां माफ़ नहीं होती, 

यहाँ मुखिया का वध सबसे पहले होता है । 

फिर
एक समय आता है जबकि
पिता और बेटे दोनों को अपनी बढ़ती उम्र का एहसास होने लगता है, बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है, 
कड़ी कमज़ोर होने लगती है ।

पिता का सीखा देने की लालसा और बेटे की उस भावना को नहीं समझ पाने के कारण, 
वो सौम्यता भी खो देते हैं
यही वो समय होता है जब
बेटे को लगता है कि उसका पिता ग़लत है, 
बस इसी समय को समझदारी से निकालना होता है, 
वरना होता कुछ नहीं है,
बस बढ़ती झुर्रियां और बूढ़ा होता शरीर जल्द बीमारियों को घेर लेता है । 
फिर
सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखी पर पीछे, रात भर से जागा पिता नहीं दिखा, 
पिता की उम्र और झुर्रियां बढ़ती जाती है ।

ये समय चक्र है , 
जो बूढ़ा होता शरीर है बाप के रूप में उसे एक और बूढ़ा शरीर झांक रहा है आसमान से, 
जो इस बूढ़े होते शरीर का बाप है, 
कब समझेंगे बेटे, 
कब समझेंगे बाप, 
कब समझेगी दुनिया,
ये इतने भी मजबूत नहीं, 
पता है क्या होता है उस आख़िरी मुलाकात में, 
जब, 
जिन हाथों की उंगलियां पकड़ पिता ने चलना सिखाया था वही हाथ, 
लकड़ी के ढेर पर पढ़े नग्न पिता को लकड़ियों से ढकते हैं,
उसे तेल से भिगोते हैं, उसे जलाते हैं, 

ये कोई पुरुषवादी समाज की चाल नहीं थी, 
ये सौभाग्य नहीं है, 
यही बेटा होने का सबसे बड़ा अभिशाप भी है ।

ये होता है,
हो रहा है, 
होता चला जाएगा ।

जो नहीं हो रहा,
और जो हो सकता है,
वो ये की हम जल्द से जल्द कह दें,
हम आपस में कितनी प्यार करते हैं.

हे मेरे महान पिता.!
मेरे गौरव
मेरे आदर्श
मेरा संस्कार मेरा स्वाभिमान
मेरा अस्तित्व...

मैं न तो इस क्रूर समय की गति को समझ पाया

और न ही आपको अपने दिल की बात आपको कह पाया.........

Thursday, June 11, 2020

अद्भत चमत्कार

वृंदावन मे बिहार से एक परिवार आकर रहने लगा..
परिवार मे केवल दो सदस्य थे-राजू और उसकी पत्नी।
राजू वृंदावन मे रिक्शा चलाकर अपना जीवन यापन करता था और रोज राधारमण जी की शयन आरती में जाता था...
पर जिंदगी की भागम भाग मे धीरे-धीरे उसे राधा रमण लाल जू के दर्शन का सौभाग्य ना मिलता। 
हरि कृपा से उसके घर एक बेटी हुई लेकिन वो जन्म से ही नेत्रहीन थी.. उसने बड़ी कोशिश की..  पर हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी।
बेचारा गरीब करता भी क्या ? इसे ही किस्मत समझ कर खुश रहने की कोशिश करने लगा।
उसकी दिनचर्या बस इतनी थी। वृंदावन में भक्तों को इधर से उधर लेकर जाना।
लोगों से राधा रमण लाल जू के चमत्कार सुनता और सोचता मैं भी राधा रमण लाल जू से जाकर अपनी तकलीफ कह आता हूँ..
फिर ये सोचकर चुप हो जाता राधा रमण लाल जू के पास जाऊं और वो भी कुछ माँगने के लिए ही,नही ये ठीक नही है.. 
पर एक दिन पक्का मन करके राधा रमण लाल जू के मंदिर तक पहुँचा और देखा गोस्वामी जी बाहर आ रहे हैं।
उसने पुजारी से कहा, क्या मैं ठाकुर जी के दर्शन कर सकता हूँ ?
पुजारी जी बोले, मंदिर तो बंद हो गया है।तुम कल आना।
पुजारी जी बोले, क्या तुम मुझे घर तक छोड़ दोगे ?
राजू ने रोती आंखों को छुपाते हुए, हाँ में सिर को हिला दिया।
पुजारी जी रिक्शा पर बैठ गए और राजू से पूछा, ठाकुर जी से क्या कहना था ?
राजू ने कहा, ठाकुर जी से अपनी बेटी के लिए आंँखों की रोशनी माँगनी थी.. वो बचपन से देख नही सकती। 
बातों बातों मे पुजारी जी का घर कब आ गया... पता ही ना चला पर.. 
घर आकर राजू ने जो देखा सुना वो हैरान कर देने वाला था..,!!
घर आकर राजू ने देखा उसकी बेटी दौड़ भाग कर रही है..
उसने अपनी बेटी को उठाकर पूछा ये कैसे हुआ..?
बेटी बोली पिताजी..! आज एक लड़का मेरे पास आया और बोला तुम राजू की बेटी हो...
मैंने जैसे ही हाँ कहा उसने अपने दोनों हाथ मेरी आँखों पर रख दिए.. फिर मुझे सब दिखने लगा.. पर वो लड़का मुझे कहीं नही दिखा।
राजू भागते-भागते पुजारी जी के घर पहुँचा.. 
पर पुजारी जी बोले.. मैं तो दो दिन से बीमार हूँ... मैं तो दो दिन से राधा रमण लाल जू के दर्शन को मंदिर ही नही गया..!!
      जय जय श्री राधे

Saturday, May 23, 2020

प्रारब्ध

 एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।

     जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।

    धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे

    अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है । अब ये रोज का नियम हो गया ।

    एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये  तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।

    एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं ।

    अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआऔर उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।

     वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है । यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना ।

     प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है । आप मेरे सच्चे साधक है; हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।

     व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ।

     प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा । यही कर्म नियम है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ ।

Friday, May 8, 2020

आदतें

एक दिन
अचानक बुख़ार आता है!
गले में दर्द होता है!
साँस लेने में कष्ट होता है!
Covid टेस्ट की जाती है!
3 दिन तनाव में बीतते हैं...
अब टेस्ट+ve आने पर--
रिपोर्ट नगर पालिका जाती है
रिपोर्ट से हॉस्पिटल तय होता है
फिर एम्बुलेंस कॉलोनी में आती है
कॉलोनी वासी खिड़की से झाँक कर तुम्हें देखते हैं
कुछ एक की सदिच्छा आप के साथ है
कुछ मन ही मन हँस रहे होते हैं
एम्बुलेंस वाले उपयोग के कपड़े रखने का कहते हैं...
बेचारे
घरवाले तुम्हें जीभर कर देखते हैं
तुम्हारी आँखों से आँसू बोल रहे होते हैं...
तभी...
"चलो जल्दी बैठो" आवाज़ दी जाती है,
एम्बुलेंस का दरवाजा बन्द...
सायरन बजाते रवानगी...
फिर कॉलोनी सील कर दी जाती है...
14 दिन पेट के बल सोने को कहा जाता है... 
दो वक्त का जीवन योग्य खाना मिलता है...
Tv, mobile सब अदृश्य हो जाते हैं...
सामने की दीवार पर अतीत, और भविष्य के दृश्य दिखने लगते हैं...
अब
आप ठीक हो गए... तो ठीक... 
वो भी जब 3 टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आ जाएँ...
तो घर वापसी... 
लेकिन
इलाज के दौरान यदि आपके साथ कोई अनहोनी हो गई
तो... आपके शरीर को प्लास्टिक में रैप करके सीधे शवदाहगृह...

शायद अपनों को अंतिमदर्शन भी नहीं...
कोई अंत्येष्टि क्रिया भी नहीं...
सिर्फ
परिजनों को एक डेथ सर्टिफिकेट
और....खेल खत्म

बेचारा चला गया... अच्छा था

इसीलिए,
बेवजह बाहर मत निकलिए...
घर में सुरक्षित रहिए...
'बाह्यजगत का मोह' और 'हर बात को हल्के, मजाक में लेने' की आदतें त्यागिए...

जीवन अनमोल है...

Wednesday, April 29, 2020

पॉजिटिव

सुबह आठ बजे मेरे पड़ोसी ने मेरी बाइक की चाबी मांगी कहा "मुझे लैब से एक रिपोर्ट लानी है"
मैंने कहा ठीक है भाई ले जा
थोड़ी देर बाद पड़ोसी रिपोर्ट ले कर वापिस आया, 
मुझे चाबी दी और मुझे गले लगाया,
और "बहुत बहुत धन्यवाद" कह कर अपने घर चला गया,
जैसे ही वह अपने घर गया, 
गेट पर ही खड़े हो कर अपनी पत्नी से कहने लगा, 
"रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है" 
जब यह बात मेरे कान में पड़ी तो मैं गिरते गिरते बचा,
घबरा कर मेने अपने हाथ सैनिटाइज़र से साफ़ किये, 
फिर बाइक को दो बार सर्फ से धोया, 
फिर याद आया मुझे उसने गले भी लगया था, 
मैंने मन मे सोचा मारा गया तू, तुझे भी अब कोरोना होगा, 
में डेटोल साबुन से रगड़ रगड़ कर नहाया,
और बाथरूम में ही दुखी हो कर एक कोने में बैठ गया,
थोड़ी देर बाद मेने पड़ोसी को फोन करके बोला,
"भाई अगर आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव थी"
 तो कम से कम मुझे तो बख्श देते...?
"मैं बेचारा गरीब तो बच जाता" 
पड़ोसी जोर जोर से हंसने लगा, 
और कहने लगा " वो रिपोर्ट..?"
वो रिपोर्ट तो आपकी भाभी की प्रेग्नेंसी की रिपोर्ट थी,
"जो पोजटिव आयी है"   

Friday, April 3, 2020

इक्कीस दिन

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के
बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर
अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक
घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में
डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और
लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।
राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह
घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है । अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक
बाल्टी "पानी" डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ
भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए
के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है।
दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी।
राजा समझ गया कि इसी कारण से
महामारी दूर नहीं हुई और लोग
अभी भी मर रहे हैं।
दरअसल ऐसा इसलिये हुआ
क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में
आया था वही विचार पूरे राज्य के
लोगों के मन में आ गया और किसी ने
भी कुंए में दूध नहीं डाला।
मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ
वैसा ही हमारे जीवन में
भी होता है। जब
भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे
लोगों को मिल कर करना होता है
तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह
सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और
हमारी इसी सोच की वजह से
स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं।
अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश में भी ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।  सभी घर में रहकर कोरोना को हराने मे सहयोग करें । *इक्कीस* दिन घर में रहकर हमें अपनेआप को बचाना है किसी ओर को नहीं।  

Saturday, March 21, 2020

जीवन का सार

एक व्यक्ति एक गांव में गया। वहां की श्मशान भूमि से जब वह गुजरा तो उसने एक विचित्र बात देखी। वहां पत्थर की पट्टियों पर मृतक की आयु लिखी थी। किसी पर छह महीने, तो
किसी पर दस वर्ष तो किसी पर इक्कीस वर्ष लिखा था। वह सोचने लगाकि इस गांव के लोग जरूर अल्पायु होते हैं। सबकी अकाल मृत्यु ही होती है।

जब वह गांव के भीतर गया तो लोगों ने उसका खूब स्वागत सत्कार किया। वह वहीं रहने लगा लेकिन उसके भीतर यह डर भी समा गया कि यहां रहने पर उसकी भी जल्दी ही मौत हो जाएगी क्योंकि यहां के लोग कम जीते हैं। इसलिए उसने वहां से जाने का फैसला किया।

जब गांव वालों को पता चला तो वे दुखी हुए। उन्हें लगा कि जरूर उन लोगों से कोई गलती हो गई है। जब उस व्यक्ति ने उन्हें अपने मन की बात बताई तो सब हंस पड़े। उन्होंने कहा- लगता है आपने केवल किताबी ज्ञान पढ़ा है, व्यावहारिक ज्ञान नहीं हासिल किया । आप देख नहीं रहे कि हमारे बीच ही साठ से अस्सी साल तक के लोग हैं, फिर आपने कैसे सोच लिया कि यहां लोग जल्दी मर जाते हैं। तब उस व्यक्ति ने श्मशान भूमि की पट्टियों के बारे में बताया। 

इस पर एक गांव वासी ने कहा, "हमारे गांव में एक नियम है। जब कोई व्यक्ति सोने के लिए जाता है तो सबसे पहले वह हिसाब लगाता है कि उसने कितना समय सत्संग में बिताया । 
उसे वह प्रतिदिन एक डायरी में लिख लेता है। गांव में किसी भी मरने वाले की वह डायरी निकाली जाती है फिर उसके जीवन के उन सभी घंटों को जोड़ा जाता है। उन घंटों के आधार पर ही उसकी उम्र निकाली जाती है और उसे पट्टे पर अंकित किया जाता है। 

व्यक्ति का जितना समय सत्संग में बीता, वही तो उसका सार्थक समय है। 

वही उसकी उम्र है !!

मनुष्य जीवन का सार भगवद्भक्ति है और भक्ति का मूल आधार सत्संग है ।

सत्संग सर्वोच्च चेतना प्रदान करता है ।