Wednesday, June 19, 2019

विचारों में उदारता

एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं।

उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है।

महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई।

उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी।

क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।

" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया।

असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"

'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"

दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई।

महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"

एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी।

एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है।

अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई।

कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है |

इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"

'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती...

एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा

"सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।

यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।

तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा,

"मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे।

सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..?

लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"

और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।

'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।

अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।

Thursday, June 13, 2019

जीवन को स्वर्ग बनाएं

एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।

औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक।

यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं।

तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं।

बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है।

मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग - नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं।

यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं।

चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें।

दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया।

नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी।

वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे।

औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है।

आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया।

भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं

बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था।

उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी।

बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में कया है।

आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है।

बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है

तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं।

आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें

ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता।

बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया
सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं।

शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा

यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है।

दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया।

वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी।

सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।
उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई।

पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था।

बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में कया है।

स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है।

बुजुर्ग औरत हैरान हो गई

उनसे बोली पर ये पतीला तो 300 फीट ऊंचा है

आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें

उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें

पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे

लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं

औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है।

लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो

यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं

हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के विशाल सिढी़ का निर्माण किया

उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं

और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं

बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी

यमराज मुसकाये बोले

*ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं*

*उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता*

*वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं*

*कयोकिं ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है,जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा*

दोस्तों ये ही आज का सुविचार है, स्वर्ग और नरक आपके हाथ में है
मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वर्ग बनाएं।

Friday, June 7, 2019

इंद्र भगवान की भूल

एक बार इंद्र भगवान ने गुस्से मे आकर सभी को श्राप दे दिया कि 12 साल वो बरसात नही करेंगे जिससे लोग पानी को तरसेंगे... 


लोगो मे हाहाकार मच गया


बडे बडे देवो ने समझाया पर इंद्र भगवान नही माने....


बारिश का महीना आया , इंद्रदेव ने बारिश नही की


पर एक किसान अपने बच्चो के साथ खेत मे गया और खेती के वो सभी काम करने लगा जो बरसात से पहले किये जाते है साथ मे वो अपने बच्चो को भी समझा रहा था के काम कैसे किया जाये... 


इंद्रदेव को देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि 12 साल तक पानी नही बरसेगा फिर भी ये काम क्यूं कर रहा है ????


इंद्रदेव ब्राह्मण का रूप धर के उसके पास गये और कहा , हे किसान क्या तूमने श्रापित आकाशवाणी नही सुनी कि12 साल बरसात नही होगी??? फिर क्यू खेत जोत रहे हो??? 


किसान ने कहा सुनी थी ब्राह्मणदेवता


पर अगर मै और मेंरे बेटे 12 साल काम नही करेंगे तो हम भूल जायेगे कि खेती कैसे करते है फिर बारिश होगी तो भूखो मर जायेंगे इसलिये हम खेती कर रहे है....


इंद्रदेव की आंखे खुल गई


वो सोचने लगे 12 साल मे तो शायद मैं भी बारिश गिराने का कौशल भूल जाउंगा...... 

उन्होने तुरंत श्राप वापस लिया और बारिश करवा दी...

मोरल:- इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि ...

हमें कितनी भी कडकी लगी हो या पैसे की तंगी हो ..

31 दिसंबर तो मनाना ही चाहिये.. नही तो जिस दिन पैसे आयेंगे हम पार्टी करना भूल गये होंगे.....

Sunday, June 2, 2019

अद्भुत रिश्तों

एक भंवरे की मित्रता एक गोबरी (गोबर में रहने वाले) कीड़े से थी ! एक दिन कीड़े ने भंवरे से कहा- भाई तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो, इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ!

भंवरा भोजन खाने पहुँचा! बाद में भंवरा सोच में पड़ गया- कि मैंने बुरे का संग किया इसलिये मुझे गोबर खाना पड़ा! अब भंवरे ने कीड़े को अपने यहां आने का निमंत्रन दिया कि तुम कल मेरे यहाँ आओ!

अगले दिन कीड़ा भंवरे के यहाँ पहुँचा! भंवरे ने कीड़े को उठा कर गुलाब के फूल में बिठा दिया! कीड़े ने परागरस पिया! मित्र का धन्यवाद कर ही रहा था कि पास के मंदिर का पुजारी आया और फूल तोड़ कर ले गया और बिहारी जी के चरणों में चढा दिया! कीड़े को ठाकुर जी के दर्शन हुये! चरणों में बैठने का सौभाग्य भी मिला! संध्या में पुजारी ने सारे फूल इक्कठा किये और गंगा जी में छोड़ दिए! कीड़ा अपने भाग्य पर हैरान था! इतने में भंवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया, पूछा-मित्र! क्या हाल है? कीड़े ने कहा-भाई! जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गयी! ये सब अच्छी संगत का फल है!

कोई भी नही जानता कि हम इस जीवन के सफ़र में एक दूसरे से क्यों मिलते है,


सब के साथ रक्त संबंध नहीं हो सकते परन्तु ईश्वर हमें कुछ लोगों के साथ मिलाकर अद्भुत रिश्तों में बांध देता हैं,हमें उन रिश्तों को हमेशा संजोकर रखना चाहिए।


Saturday, May 25, 2019

 व्रत कथा


एक सुंदर शहर था। वहाँ एक सुंदर स्त्री रहती थी


वह घरेलू परेशानियों से तंग और बच्चों की शिक्षा को लेकर बहुत परेशान रहती थी परंतु कड़ी मेहनत करती थी


जिम्मेदारी का बोझ, अकेलेपन से बीमार पड़ गई थी।

बीपी, शुगर ने शरीर में घर कर लिया था और हंसी, खुशी, आनंद सब गायब हो गया था।

फिर एक दिन एक सहेली ने उसे स्मार्टफोन उपहार में दिया।

उसने व्हाट्सएप से दोस्तों के साथ संवाद करना शुरू कर दिया।

कुछ ही दिनों में उसकी सारी रिपोर्ट सामान्य आ गई।

बैठे बैठे बी.पी. शक्कर सब नार्मल होने लगी

वह आनंद से व्हाट्सएप व्रत की सफलता की कहानी सबको बताने लगी।

उसकी एक सहेली थी, उसने कहा मुझे भी बताओ, यह व्रत कैसे किया जाता है और इसके करने से क्या फल मिलता है। मैं भी यह व्रत करूंगी।

महिला ने कहा, हर सुबह उठने के साथ इस भगवान के दर्शन कर जीएम, जीएन का समय-समय पर जाप करना चाहिए।

समय समय पर भगवान के दर्शन कर मन को शुद्ध करें।

एक ग्रुप के व्हाट्सएप मैसेज को पूरी भक्ति भावना से दूसरे ग्रुप में अर्पण करें।

गुस्सा नहीं करें, रुठें नहीं और अपना ग्रुप छोड़ें नहीं।

उस स्त्री ने पूरे भक्ति भाव से यह व्रत किया और उसे 4 महीने में ही आश्चर्यजनक रुप से फल मिला।

Sunday, May 19, 2019

माखन चोर नटखट

माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।

उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।

बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे।

श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया।

बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:-

"देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना"

घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी"

बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

ख़ूब बंदरों को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया , त्यों ही घंटी बज उठी।

घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। 

ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई।

सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।

बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी , तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो , पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ...क्यों री घंटी...तू बजी क्यो...मैंने मना किया था न...?"

घंटी क्षमा माँगती हुई बोली - "प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया , मैं नहीं बजी...आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया , मैं नहीं बजी , किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था...मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु...मंदिर में जब पुजारी  भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं...इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी और बजी..."


Thursday, May 16, 2019

स्त्री की चाहत

एक विद्वान को फांसी लगने वाली थी।

राजा ने कहा, आपकी जान बख्श दुंगा यदि सही उत्तर बता देगा तो

*प्रशन : आखिर स्त्री चाहती क्या है ??*

विद्वान ने कहा, मोहलत मिले तो पता कर के बता सकता हूँ।

राजा ने एक साल की मोहलत दे दी और साथ में बताया कि अगर उतर नही मिला तो फांसी पर चढा दिये जाओगे,

विद्वान बहुत घूमा बहुत लोगों से मिला पर कहीं से भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।

आखिर में किसी ने कहा दूर एक जंगल में एक चुड़ैल रहती है वही बता सकती है।

चुड़ैल ने कहा कि मै इस शर्त पर बताउंगी  यदि तुम मुझसे शादी करो।

उसने सोचा, जान बचाने के लिए शादी की सहमति देदी।

शादी होने के बाद चुड़ैल ने कहा, चूंकि तुमने मेरी बात मान ली है, तो मैंने तुम्हें खुश करने के लिए फैसला किया है कि 12 घन्टे मै चुड़ैल और 12 घन्टे खूबसूरत परी बनके रहूंगी,
अब तुम ये बताओ कि दिन में चुड़ैल रहूँ या रात को।
उसने सोचा यदि वह दिन में चुड़ैल हुई तो दिन नहीं कटेगा, रात में हुई तो रात नहीं कटेगी।

अंत में उस विद्वान कैदी ने कहा, जब तुम्हारा दिल  करे परी बन जाना, जब दिल करे चुड़ैल बनना।

ये बात सुनकर चुड़ैल ने प्रसन्न हो के कहा, चूंकि तुमने मुझे अपनी मर्ज़ी की  करने की छूट देदी है, तो मै हमेशा ही परी बन के रहा करूँगी।

यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है।

*स्त्री अपनी मर्जी का करना चाहती है।*

*यदि स्त्री को अपनी मर्ज़ी का करने देंगे तो*,

*वो परी बनी रहेगी वरना चुड़ैल*

Saturday, April 20, 2019

बादशाह का रफूगर

कहते हैं एक बादशाह ने रफूगर रखा हुआ था, 

जिसका काम कपड़ा रफू करना नहीं, बातें रफू करना था.!!

दरसल वो बादशाह की हर बात की कुछ ऐसी वज़ाहत करता के सुनने वाले सर धुनने लगते के वाकई बादशाह सलामत ने सही फरमाया,

एक दिन बादशाह दरबार लगाकर अपनी जवानी के शिकार की कहानी सुनकर रियाया को मरऊब कर रहे थे,

जोश में आकर कहने लगे के एकबार तो ऐसा हुआ मैंने आधे किलोमीटर से निशाना लगाकर जो एक हिरन को तीर मारा तो तीर सनसनाता हुआ गया और हिरन की बाईं आंख में लगकर दाएं कान से होता हुआ पिछले पैर की दाईं टांग के खुर में जा लगा,

बादशाह को तवक़क़ो थी के अवाम दाद देंगे लेकिन अवाम ने कोई दाद नहीं दी,

वो बादशाह की इस बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थे,

इधर बादशाह भी समझ गया ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी छोड़ दी.. और अपने रफूगर की तरफ देखने लगा,

रफूगर उठा और कहने लगा.. हज़रात मैं इस वाक़ये का चश्मदीद गवाह हूँ,

दरसल बादशाह सलामत एक पहाड़ी के ऊपर खड़े थे हिरन काफी नीचे था,

हवा भी मुआफ़िक चल रही थी वरना तीर आधा किलोमीटर कहाँ जाता है..

जहां तक ताअल्लुक़ है "आंख "कान और "खुर का, तो अर्ज़ करदूँ जिस वक्त तीर लगा था उस वक़्त हिरन दाएं खुर से दायाँ कान खुजला रहा था,

इतना सुनते ही अवाम ने दादो तहसीन के लिए तालियां बजाना शुरू कर दीं

अगले दिन रफूगर बोरिया बिस्तरा उठाकर जाने लगा..

बादशाह ने परेशान होकर पूछा कहाँ चले?


Sunday, April 14, 2019

कंजक पूजन

मुहल्ले की औरतें कंजक पूजन के लिए तैयार थी,

मिली नहीं कोई लड़की, उन्होंने हार अपनी मान ली।

फिर किसी ने बताया, अपने मोहल्ले के है बाहर जी,

बारह बेटियों का बाप,  है सरदार जी।

सुन कर उसकी बात , हसकर मैंने यह कह दिया,


बेटे के चक्कर में, सरदार, बेटियां बारह कर के बैठ गया।

पड़ोसियों को साथ लेकर, जा पुहाचां उसके घर पे,

सत श्री अकाल कहा, मैंने प्रणाम उसे कर के।

कंजक पूजन के लिए आपकी बेटियां घर लेकर जानी है,

आपकी पत्नी ने कंजके बिठा ली, या बिठानी है ?

सुन के मेरी बात बोला , कोई गलतफहमी हुई है।

किसकी पत्नी जी ,  मेरी तो अभी शादी नहीं हुई है।

सुन के उसकी बात, मै तो चक्करा गया,

बातों बातों में वो मुझे क्या क्या बता गया।

मत पूछो इनके बारे में, जो बातें मैंने छुपाई है,

क्या बताओ आपको, की मैंने कहां कहां से उठाई है।

मां बाप इनके हैवानियत की हदें सब तोड़ गए,

मन्दिर मस्ज़िद कई हस्पतालों में थे छोड़ गए।

बड़े बड़े दरिंदे है, अपने इस जहान में,

यह जो दो छोटियां है, मिली थी मुझे कूड़ेदान में।

इसका बाप कितना निर्दयी होगा, जिसे दया ना आई नन्ही सी जान पे,

हम मुर्दों को लेकर जाते हैं, वो जिन्दा ही छोड़ गया इसे श्मशान में।

यह जो बड़ी प्यारी सी है, थोड़ा लंगड़ा के चल रही थी,

मैंने देखा के तलाब के पास एक गाड़ी खड़ी थी।

बैग फेक भगा ली गाड़ी, जैसे उसे जल्दी बड़ी थी।

शायद उसके पीछे कोई आफ़त पड़ी थी।

बैग था आकर्षित, मैंने लालच में  उठाया था,

देखा जब खोल के, आंसू रोक नहीं पाया था।

जबरन बैग में डालने के लिए, उसने पैर इसके मोड़ दिये,

शायद उसे पता नहीं चला, की उसने कब पैर इसके तोड़ दिये।

सात साल हो गए इस बात को, ये दिल पे लगा कर बैठी है,

बस गुम सुम सी रहती हैं, दर्द सीने में छुपा कर बैठी है।

सुन के बात सरदार जी की, सामने आया सब पाप था,

लड़की के सामने जो खड़ा था कोई और नहीं उसका बाप था।

देखा जब पडोसियों के तरफ़, उनके चेहरे के रंग बताते थे,     

वो भी किसी ना किसी लड़की के, मुझे मां बाप नजर आते थे।

दिल पे पत्थर रख कर , लड़कियों को घर लेकर आ गया,

बारी बारी सब को हमने पूजा के लिए बिठा दिया।

जिन हाथों ने अपने हाथ से , तोड़े थे जो पैर जी,

टूटे हुए पैरों को छू कर, मांग रहे थे ख़ैर जी।

क्यों लोग खुद की बेटी मार कर,

दूसरों की पूजना चाहते हैं।


कुछ लोग कंजक पूजन ऐसे ही मनाते हैं


Sunday, March 31, 2019

कान्हा जी से विरक्ति

गौरी रोटी बनाते-बनाते कान्हा नाम का जाप कर रही थी।
अलग से जाप करने का समय कहां निकाल पाती थी बेचारी,
तो बस काम करते-करते ही कान्हा का नाम जप लिया करती थी।
एकाएक धड़ाम से जोरों की आवाज हुई और साथ में एक दर्दनाक चीख।
कलेजा धक से रह गया जब आंगन में दौड़कर‌ झांका।
आठ साल का उसका बेटा चुन्नू चित्त पड़ा था खून से लथपथ। 
मन हुआ दहाड़ मारकर रोये।
परंतु घर में उसके अलावा कोई था नहीं,
तो रोकर भी किसे बुलाती।
फिर चुन्नू को संभालना भी तो था।
दौड़ कर नीचे गई तो देखा चुन्नू आधी बेहोशी में मां-मां की रट लगाए हुए है।
अंदर की ममता ने आंखों से निकलकर अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया।
फिर दस दिन पहले करवाये अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बावजूद ना जाने कहां से इतनी शक्ति आ गयी,
कि चुन्नू को गोद मे उठाकर पड़ोस के नर्सिंग होम की ओर दौड़ी।
रास्ते भर कान्हा जी को जी भर कर कोसती रही और बड़-बड़ करती रही- हे कान्हा जी ! क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा,
जो मेरे ही बच्चे को तकलीफ दी।
खैर! डॉक्टर साहब मिल गए और समय पर इलाज होने पर चुन्नू बिल्कुल ठीक हो गया।
चोटें गहरी नहीं थी बस ऊपरी थीं,
तो कोई खास परेशानी नहीं हुई।
रात को घर पर जब सब टीवी देख रहे थे,
तब गौरी का मन बेचैन था।
कान्हा जी से विरक्ति होने लगी थी।
एक मां की ममता कान्हा जी को चुनौती दे रही थी।
उसके दिमाग में दिन की सारी घटना चलचित्र की तरह चलने लगी।
कैसे चुन्नू आंगन में गिरा,
कि एकाएक उसकी‌ आत्मा सिहर उठी।
कल ही तो पुराने लोहे के पाइप का टुकड़ा आंगन से हटवाया था,
और वो ठीक उसी जगह था जहां चिंटू गिरा पड़ा था।
अगर कल मिस्त्री न आया होता, तो?
उसका हाथ अब अपने पेट की तरफ गया,
जहां ऑपरेशन के टांके अभी हरे ही थे।
आश्चर्य हुआ कि उसने बीस-बाइस किलो के चुन्नू को उठाया कैसे?
कैसे वो आधा किलोमीटर तक दौड़ती चली गयी?
फूल सा हल्का लग रहा था चुन्नू।
वैसे तो वो कपड़ों की बाल्टी तक छत पर नहीं ले जा पाती थी।
फिर उसे ख्याल आया कि डॉक्टर साहब तो दो बजे तक ही रहते हैं,
पर जब वो पहुंची थी तो साढ़े तीन बज रहे थे।
उसके जाते ही तुरंत इलाज हुआ,
मानो किसी ने डाॅक्टर साहब को रोक रखा था।
उसका कान्हा जी की श्रद्धा में झुक गया।
अब वो सारा खेल समझ चुकी थी।
मन ही मन कान्हा जी से अपने शब्दों के लिए क्षमा मांगी।
टीवी पर प्रवचन आ रहा था,
कान्हा जी कहते हैं-
मैं तुम्हारे आने वाले संकट को रोक नहीं सकता,
लेकिन तुम्हें इतनी शक्ति दे सकता हूँ,
कि तुम आसानी से उन्हें पार कर सको,
और तुम्हारी राह आसान कर सकता हूं।
तुम बस परमार्थ के मार्ग पर चलते रहो ,फिर
कान्हा जी का जाप करते-करते अश्रुओं की धारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी .. उसके अंतर में पछतावा और सच्ची तड़फ थी ... उसकी रूह ऊपर चढ़ गई...
गौरी ने अंतर में झांक कर देखा,
कान्हा जी मुस्कुरा रहे थे. !!

Friday, March 29, 2019

दान का महत्व

एक बार द्रोपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी। 

भोर का समय था तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी.

साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोके से उड़कर पानी मे चली गयी और बह गयी. 

सँयोगवस साधु ने जो लँगोटी पहनी थी वो भी फटी हुई थी. साधु सोच में पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए थोडी देर में सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड़ बढ़ जाएगी. 

साधु तेजी से पानी से बाहर आया और झाड़ी मे छिप गया. 

द्रोपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साड़ी जो पहन रखी थी उसमे से आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी और उसे आधी साड़ी देते हुए बोली, 

तात मै आपकी परेशानी समझ गयी इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए.

साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया क़ि जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान् तुम्हारी लाज बचाएगें. 

और जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रोपदी की करुण पुकार नारद जी ने भगवान् तक पहुचायी तो भगवान् ने कहा, 

कर्मो के बदले मेरी कृपा बरसती है क्या कोई पुण्य है द्रोपदी के खाते मे ? 

जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब में मिला जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ गया था जिसको चुकता करने भगवान् पहुंच गये द्रोपदी की मदद करने, 

दुस्सासन चीर खीचता गया और हज़ारों गज कपड़ा बढता गया.

इन्सान जैसा कर्म करता है परमात्मा उसे वैसा ही उसे लौटा देता है.!!

Monday, March 25, 2019

हमारे परिधान

तन्वी को सब्जी मण्डी जाना था..
उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मण्डी की ओर चल पड़ी...
तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी : —
'कहाँ जायेंगी माता जी...?''
तन्वी ने ''नहीं भैय्या'' कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया.
अगले दिन 
तन्वी अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी...
तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :—
''बहनजी चन्द्रनगर जाना है क्या...?''
तन्वी ने मना कर दिया...
पास से गुजरते उस ऑटोवाले को देखकर
तन्वी पहचान गयी कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था.
आज तन्वी को 
अपनी सहेली के घर जाना था.
वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो की प्रतीक्षा
करने लगी.
तभी एक ऑटो आकर रुका :—
''कहाँ जाएंगी मैडम...?'' 
तन्वी ने देखा 
ये वो ही ऑटोवाला है
जो कई बार इधर से गुज़रते हुए उससे पूछता रहता है चलने के लिए..
तन्वी बोली :—
''मधुबन कॉलोनी है ना सिविल लाइन्स में, वहीँ जाना है.. चलोगे...?''
ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला :— 
''चलेंगें क्यों नहीं मैडम..आ जाइये...!"
ऑटो वाले के ये कहते ही तन्वी ऑटो में बैठ गयी.
ऑटो स्टार्ट होते ही तन्वी ने जिज्ञासावश उस ऑटोवाले से पूछ ही लिया : —
''भैय्या एक बात बताइये...?
दो-तीन दिन पहले 
आप मुझे माताजी कहकर
चलने के लिए पूछ रहे थे,
कल बहनजी और आज मैडम, ऐसा क्यूँ...?''
ऑटोवाला थोड़ा झिझककर शरमाते हुए बोला :—
''जी सच बताऊँ...
आप चाहे जो भी समझेँ 
पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है.
आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थीं तो एकाएक मन में आदर के भाव जागे,
क्योंकि,
मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है.
इसीलिए मुँह से 
स्वयं ही *"माताजी'"* निकल गया.
कल आप 
सलवार-कुर्ती में थीँ, 
जो मेरी बहन भी पहनती है.
इसीलिए आपके प्रति
*स्नेह का भाव* मन में जागा और
मैंने *''बहनजी''* कहकर आपको आवाज़ दे दी.
आज आप जीन्स-टॉप में हैं, और *इस लिबास में माँ या*
*बहन के भाव तो नहीँ जागते*.
इसीलिए मैंने 
आपको *"मैडम"* कहकर पुकारा.
*कथासार*
हमारे परिधान का न केवल हमारे विचारों पर वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करता है.
टीवी, फिल्मों या औरों को देखकर पहनावा ना बदलें, बल्कि विवेक और संस्कृति की ओर भी ध्यान दें.