Saturday, April 7, 2018

पंडित

एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नहीं था। इसलिए उसकी पत्नी पड़ोस से पानी ले आई। पानी पीकर पंडित ने पूछा....

पंडित - कहाँ से लायी हो? बहुत ठंडा पानी है।

पत्नी - पड़ोस के कुम्हार के घर से।

(पंडित ने यह सुनकर लोटा फेंक दिया और उसके तेवर चढ़ गए। वह जोर-जोर से चीखने लगा )

पंडित - अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया। कुम्हार ( शूद्र ) के घर का पानी पिला दिया।

(पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी)

उसने पण्डित से माफ़ी मांग ली।

पत्नी - अब ऐसी भूल नहीं होगी।

शाम को पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं था।

पंडित - रोटी नहीं बनाई। भाजी नहीं बनाई। क्यों????

पत्नी - बनायी तो थी। लेकिन अनाज पैदा करने वाला कुणबी(शूद्र) था और जिस कड़ाई में बनाया था, वो कड़ाई लोहार (शूद्र) के घर से आई थी। सब फेंक दिया।

पण्डित - तू पगली है क्या?? कहीं अनाज और कढ़ाई में भी छूत होती है?

यह कह कर पण्डित बोला- कि पानी तो ले आओ।

पत्नी - पानी तो नहीं है जी।

पण्डित - घड़े कहाँ गए???

पत्नी - वो तो मैंने फेंक दिए। क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थे।

पंडित बोला- दूध ही ले आओ। वही पीलूँगा।

पत्नी - दूध भी फेंक दिया जी। क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था, वो तो नीची (शूद्र) जाति से था।

पंडित- हद कर दी तूने तो यह भी नहीं जानती की दूध में छूत नहीं लगती है।

पत्नी-यह कैसी छूत है जी, जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नहीं लगती।

(पंडित के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ लूं)

वह गुर्रा कर बोला - तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है।

पत्नी- खाट!!!! उसे तो मैनें तोड़ कर फेंक दिया है जी। क्योंकि उसे शूद्र (सुथार ) जात वाले ने बनाया था।

पंडित चीखा - वो फ़ूलों का हार तो लाओ। भगवान को चढ़ाऊंगा, ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये।

पत्नी - हार तो मैंने फेंक दिया। उसे माली (शूद्र) जाति के आदमी ने बनाया था।

पंडित चीखा- सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी हैं या नहीं।

पत्नी - हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोड़ना बाकी है। क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है।

पंडित के पास कोई जबाब नहीं था।
उसकी अक्ल तो ठिकाने आयी।
बाकी लोगों कि भी आ जायेगी।

Friday, April 6, 2018

मेरी माता

एक बार अकबर बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे!

रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा .. मंत्री बीरबल ने झुक कर प्रणाम किया !

अकबर ने पूछा कौन हे ये ?
बीरबल -- मेरी माता हे !

अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़ कर फेक दिया और बोला .. कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की ...!

बीरबल ने उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी! .. आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला ) झाड़ मिला .. बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर कहा: जय हो बाप मेरे ! !
अकबर को गुस्सा आया .. दोनों हाथो से झाड़ को उखाड़ने लगा .. इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो बोला: .. बीरबल ये क्या हो गया !

बीरबल ने कहा आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये गुस्सा हो गए!

अकबर जहाँ भी हाथ लगता खुजली होने लगती .. बोला: बीरबल जल्दी कोई उपाय बतायो!

बीरबल बोला: उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है .. उससे विनती करनी पड़ेगी !

अकबर बोला: जल्दी करो !

आगे गाय खड़ी थी बीरबल ने कहा गाय से विनती करो कि ... हे माता दवाई दो..

गाय ने गोबर कर दिया .. अकबर के शरीर पर उसका लेप करने से फौरन खुजली से राहत मिल गई!
अकबर बोला .. बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे?

बीरबल ने कहा: .. नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है! सामने गंगा बह रही थी .. आप बोलिए हर -हर गंगे .. जय गंगा मईया की .. और कूद जाइए !

नहा कर अपनेआप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने बीरबल से कहा: .. कि ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत माता हैं! इनको मानने वालों को ही हिन्दू कहते हैं

Thursday, April 5, 2018

माँ की कोख

बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी
जंगल में शिकार खेलने गया।
संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा
पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी
वर्षा पड़ने लगी।
जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत
डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में
रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने
लगा।
रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक
दिखाई दिया।
वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी ।
वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था,
इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने
का स्थान बना रखा था।
अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी
की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी
और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।
उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका,
लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न
देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर
जाने देने के लिए प्रार्थना की।
बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-
कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ,
लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।
इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर
वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने
की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे
झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।।
इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता।
मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।
राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस
झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो
बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है,
सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।
बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह
होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर
देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।
राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में
झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि
सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने
जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास
करने की बात सोचने लगा।
वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस
पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा
कहने लगा।
राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और
दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा
हो गया।
कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से
पूछा," परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान
पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ?
परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् ! वह कौन राजा
था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी
मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी
प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य
भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है।
उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है। "
श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा
परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं।
इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय
आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि
तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक
जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट
फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी
मूर्खता नहीं है ?"
राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन
मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
मेरे भाई - बहनों, वास्तव में यही सत्य है।
जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो
अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना
करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त
कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा।
और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो ( उस
राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं
ये कहाँ आ गया ( और पैदा होते ही रोने लगता है )
फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की
खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक
उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है।
यही मेरी भी कथा है और आपकी भी।

Tuesday, April 3, 2018

तड़पती है मां

आधी रात को बहुत बारिश हो रही थी।
Vijay और उसकी बीवी  एक मित्र की
पार्टी से अपनी
गाडी से घर वापस लौट रहे थे..

बारिश की वजह से vijay बहुत धीमी गति से
गाड़ी चला रहा
था,

तभी अचानक बिजली गिरी..

बिजली की रोशनी में vijay को गाड़ी के सामने
एक बदहवास सी
एक औरत दिखाई दी..

Vijay ने गाड़ी रोक दी..!

गाड़ी रुकने पर उसकी 

बीवी ने कहा :- क्या
हूआ..? गाड़ी क्यों
रोक दी..?

Vijay ने आगे की ओर इशारा किया।

Biwi ने आगे देखा तो वो डर गयी,

 क्यों कि
गाड़ी के सामने एक
औरत खड़ी थी।
वो औरत गाड़ी के पास आयी, और हाथ से गाड़ी
का शीशा नीचे
करने का इशारा करने लगी।

Vijay की बीवी  काफी डर गयी थी,

उसने vijay को गाडी
चलाने को कहा, लेकिन गाड़ी भी स्टार्ट नही
हुईं।

गाड़ी के बाहर खडी औरत बारिश की वजह से
भींग गयी थी।

वो हाथ जोडकर गाड़ी का शीशा नीचे करने
का इशारा कर रही
थी।

Vijay को लगा कि वो औरत किसी मुसीबत मे है,

इसलिए उसने
गाड़ी का शीशा नीचे किया।

वो औरत हाथ जोडकर बोली, "भाई साहब मेरी
मदद करे..

 तेज
बारिश की वजह से मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट हो
गया है,

 मेरी
गाड़ी रास्ते के नीचे गिर गयी है, 
उसमें मेरी
छोटी बच्ची है..
 प्लिज
उसे बचाईये..।"


Vijay गाड़ी से उतरा और उस औरत के पीछे गया।

उस औरत की गाड़ी रास्ते के काफी नीचे गिर
गयी थी।


Vijay नीचे उतरकर उस गाडी केपास गया तो देखा
कि उसमें एक

प्यारी छोटी सी फूल सी बच्ची रो रही है..

उसने बच्ची को बाहर निकाला, 

फिर vijay को
लगा की ड्रायवर
की सीट पर भी कोई है।

जब vijay ने ड्रायवर की सीट पर देखा तो उसके
होश उड
गये,

क्योंकि ड्रायवर के सीट पर वही औरत खून से
लथपथ मरी पडी
थी।

Vijay को अब सब समझ में आया।
वो बच्ची को लेकर अपनी गाड़ी के पास
आया

,बच्ची को अपनी
बीवी  को दिया।

उसकी बीवी बोली, "वो औरत कहा है..? वह
कौन थीं...?"
Vijay बोल
"वो एक माँ थी। मर कर भी बेटियों के लिये
तड़पती है मां ..!!"

तड़पती है मां

आधी रात को बहुत बारिश हो रही थी।
Vijay और उसकी बीवी  एक मित्र की
पार्टी से अपनी
गाडी से घर वापस लौट रहे थे..

बारिश की वजह से vijay बहुत धीमी गति से
गाड़ी चला रहा
था,

तभी अचानक बिजली गिरी..

बिजली की रोशनी में vijay को गाड़ी के सामने
एक बदहवास सी
एक औरत दिखाई दी..

Vijay ने गाड़ी रोक दी..!

गाड़ी रुकने पर उसकी 

बीवी ने कहा :- क्या
हूआ..? गाड़ी क्यों
रोक दी..?

Vijay ने आगे की ओर इशारा किया।

Biwi ने आगे देखा तो वो डर गयी,

 क्यों कि
गाड़ी के सामने एक
औरत खड़ी थी।
वो औरत गाड़ी के पास आयी, और हाथ से गाड़ी
का शीशा नीचे
करने का इशारा करने लगी।

Vijay की बीवी  काफी डर गयी थी,

उसने vijay को गाडी
चलाने को कहा, लेकिन गाड़ी भी स्टार्ट नही
हुईं।

गाड़ी के बाहर खडी औरत बारिश की वजह से
भींग गयी थी।

वो हाथ जोडकर गाड़ी का शीशा नीचे करने
का इशारा कर रही
थी।

Vijay को लगा कि वो औरत किसी मुसीबत मे है,

इसलिए उसने
गाड़ी का शीशा नीचे किया।

वो औरत हाथ जोडकर बोली, "भाई साहब मेरी
मदद करे..

 तेज
बारिश की वजह से मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट हो
गया है,

 मेरी
गाड़ी रास्ते के नीचे गिर गयी है, 
उसमें मेरी
छोटी बच्ची है..
 प्लिज
उसे बचाईये..।"


Vijay गाड़ी से उतरा और उस औरत के पीछे गया।

उस औरत की गाड़ी रास्ते के काफी नीचे गिर
गयी थी।


Vijay नीचे उतरकर उस गाडी केपास गया तो देखा
कि उसमें एक

प्यारी छोटी सी फूल सी बच्ची रो रही है..

उसने बच्ची को बाहर निकाला, 

फिर vijay को
लगा की ड्रायवर
की सीट पर भी कोई है।

जब vijay ने ड्रायवर की सीट पर देखा तो उसके
होश उड
गये,

क्योंकि ड्रायवर के सीट पर वही औरत खून से
लथपथ मरी पडी
थी।

Vijay को अब सब समझ में आया।
वो बच्ची को लेकर अपनी गाड़ी के पास
आया

,बच्ची को अपनी
बीवी  को दिया।

उसकी बीवी बोली, "वो औरत कहा है..? वह
कौन थीं...?"
Vijay बोल
"वो एक माँ थी। मर कर भी बेटियों के लिये
तड़पती है मां ..!!"

Monday, March 26, 2018

सर्वशक्तीमान

एक शख्स गाड़ी से उतरा.. और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट मे घुसा , जहाज़ उड़ने के लिए तैयार था , उसे किसी कांफ्रेंस मे पहुंचना था जो खास उसी के लिए  आयोजित की जा रही थी.....*
*वह अपनी सीट पर बैठा और जहाज़ उड़ गया...अभी कुछ दूर ही जहाज़ उड़ा था कि....कैप्टन ने ऐलान किया  , तूफानी बारिश और बिजली की वजह से जहाज़ का रेडियो सिस्टम ठीक से काम नही कर रहा....इसलिए हम क़रीबी एयरपोर्ट पर उतरने के लिए मजबूर हैं.।*
*जहाज़ उतरा वह बाहर निकल कर कैप्टन से शिकायत करने लगा कि.....उसका एक-एक मिनट क़ीमती है और होने वाली कांफ्रेस मे उसका पहुचना बहुत ज़रूरी है....पास खड़े दूसरे मुसाफिर ने उसे पहचान लिया....और बोला डॉक्टर पटनायक  आप जहां पहुंचना चाहते हैं.....टैक्सी द्वारा यहां से केवल तीन घंटे मे पहुंच सकते हैं.....उसने शुक्रिया अदा किया और टैक्सी लेकर निकल पड़ा...*

*लेकिन ये क्या आंधी , तूफान , बिजली , बारिश ने गाड़ी का चलना मुश्किल कर दिया , फिर भी ड्राइवर चलता रहा...*
*अचानक ड्राइवर को एह़सास हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है...*
*ना उम्मीदी के उतार चढ़ाव के बीच उसे एक छोटा सा घर दिखा....इस तूफान मे वही ग़नीमत समझ कर गाड़ी से नीचे उतरा और दरवाज़ा खटखटाया....*
*आवाज़ आई....जो कोई भी है अंदर आ जाए..दरवाज़ा खुला है...*

*अंदर एक बुढ़िया आसन बिछाए भगवद् गीता पढ़ रही थी...उसने कहा ! मांजी अगर इजाज़त हो तो आपका फोन इस्तेमाल कर लूं...*

*बुढ़िया मुस्कुराई और बोली.....बेटा कौन सा फोन ?? यहां ना बिजली है ना फोन..*
*लेकिन तुम बैठो..सामने चरणामृत है , पी लो....थकान दूर हो जायेगी..और खाने के लिए भी कुछ ना कुछ फल मिल जायेगा.....खा लो ! ताकि आगे सफर के लिए कुछ शक्ति आ जाये...*

*डाक्टर ने शुक्रिया अदा किया और चरणामृत पीने लगा....बुढ़िया अपने पाठ मे खोई थी कि उसकेे पास उसकी नज़र पड़ी....एक बच्चा कंबल मे लपेटा पड़ा था जिसे बुढ़िया थोड़ी थोड़ी देर मे हिला देती थी...*
*बुढ़िया फारिग़ हुई तो उसने कहा....मांजी ! आपके स्वभाव और एह़सान ने मुझ पर जादू कर दिया है....आप मेरे लिए भी दुआ कर दीजिए....यह मौसम साफ हो जाये मुझे उम्मीद है आपकी दुआऐं ज़रूर क़बूल होती होंगी...*

*बुढ़िया बोली....नही बेटा ऐसी कोई बात नही...तुम मेरे अतिथी हो और अतिथी की सेवा ईश्वर का आदेश है....मैने तुम्हारे लिए भी दुआ की है.... परमात्मा का शुक्र है....उसने मेरी हर दुआ सुनी है..*
*बस एक दुआ और मै उससे माँग रही हूँ शायद  जब वह चाहेगा उसे भी क़बूल कर लेगा...*

 *कौन सी दुआ..?? डाक्टर बोला...*

*बुढ़िया बोली...ये जो 2 साल का बच्चा तुम्हारे सामने अधमरा पड़ा है , मेरा पोता है , ना इसकी मां ज़िंदा है ना ही बाप , इस बुढ़ापे मे इसकी ज़िम्मेदारी मुझ पर है , डाक्टर कहते हैं...इसे कोई खतरनाक रोग है जिसका वो इलाज नही कर सकते , कहते हैं एक ही नामवर डाक्टर है , क्या नाम बताया था उसका !*
*हां "डॉ पटनायक " ....वह इसका ऑप्रेशन कर सकता है , लेकिन मैं बुढ़िया कहां उस डॉ तक पहुंच सकती हूं ? लेकर जाऊं भी तो पता नही वह देखने पर राज़ी भी हो या नही ? बस अब बंसीवाले से ये ही माँग रही थी कि वह मेरी मुश्किल आसान कर दे..!!*

*डाक्टर की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा है....वह भर्राई हुई आवाज़ मे बोला !*
 *माई...आपकी दुआ ने हवाई जहाज़ को नीचे उतार लिया , आसमान पर बिजलियां कौदवां दीं , मुझे रस्ता भुलवा दिया , ताकि मैं यहां तक खींचा चला आऊं ,हे भगवान! मुझे यकीन ही नही हो रहा....कि कन्हैया एक दुआ क़बूल करके अपने भक्तौं के लिए इस तरह भी मदद कर सकता है

Saturday, March 24, 2018

मोक्ष का मार्ग

जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,,
की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,,
उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,,
और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,,
सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस ( वरदान द्वारा प्राप्त ) पुत्र हैं,,
और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,,
बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,,
उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,,
जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,,
रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,,
अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,,
और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,,
अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,,
हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,,
अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,,
एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था,,
और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो,,
है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो,,
जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे,,
इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था,,
संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी,, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे,,
बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा,,
और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर,, हे ब्रम्ह अंश,, हे राजकुमार बाली,,
( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो,,
हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो,
फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो,,
अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो,,
इससे तुम्हे क्या मिलेगा,,
तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता,,
क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा,,
उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी,,
इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर,,
और राम नाम का जाप कर,,
इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा,,
और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे,,
इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को,,
जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है,,
और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है,,
जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के,,
और जिस राम की तू बात कर रहा है,
वो है कौन,
और केवल तू ही जानता है राम के बारे में,
मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना,
और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है,,
हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है,,
उनकी महिमा अपरंपार है,
ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए,,
बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा,,
मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में,,
बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे,,
हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली,,
तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा,,
पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा,,
बाली-  तब ठीक है कल     के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा,,
हनुमान जी ने बाली की बात मान ली,,
बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा,,
अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे,,
तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए,,
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा,,
ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान,,
मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो,,
और युद्ध के लिए न जाओ,
हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु,,
बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता,,
परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता,,
और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है,,
जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा,,
अन्यथा सारी विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है,,
तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी,,
पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं,,
केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं,,
बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे,,
युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें,,
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले,,
उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था,,
और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था,,
पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था,,
हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,,
बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा,,
ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा,,
उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई,,
बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई,,
बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे,
उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया,
बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा,,
उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा,,
बाली को कुछ समझ नही आ रहा था,,
तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,
बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा,,
वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया,,
सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया,,
कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला- ये सब क्या है,
हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना,,
फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ,
मुझे कुछ समझ नही आया,,
ब्रम्हा जी बोले-, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा,,
बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही है,,
ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार मे मेरे तेज़ का सामना कोई नही कर सकता,,
पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा,,,
ब्रम्हा जो बोले- हे बाली,
मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा,,
पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके,,
सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते,,
इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया,,
और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे,,
ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे,,
क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती,,
ये सुन कर बाली ने वही हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था,,
मुझे क्षमा करें,,
और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया,,

Thursday, March 22, 2018

उजड़े और रेगिस्तान

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? 

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

ये उल्लू चिल्ला रहा है। 

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! 

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा 

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये। 

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। 

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। 

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए! 

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। 

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? 

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी! 

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है! 

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!