Wednesday, February 20, 2019

नटखट श्री कृष्ण

माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।

उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।

बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे।

श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया।

बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:-

"देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना"

घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी"

बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

ख़ूब बंदरों को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया , त्यों ही घंटी बज उठी।

घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। 
ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई।
सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।

बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी , तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो , पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ...क्यों री घंटी...तू बजी क्यो...मैंने मना किया था न...?"

घंटी क्षमा माँगती हुई बोली - "प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया , मैं नहीं बजी...आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया , मैं नहीं बजी , किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था...मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु...मंदिर में जब पुजारी  भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं...इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी और बजी..."

Monday, February 18, 2019

बेटी

एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई~~!!
लड़का बड़े अच्छे घर से था!
तो पिता बहुत खुश हुए!
लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव~~!!
बड़ा अच्छा था!
तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया~~!!
एक दिन शादी से पहले!
लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया~~!!

पिता की तबीयत ठीक नहीं थी~~!!
फिर भी वह ना न कह सके!
लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया~~!!
फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई~~!!
शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था~~!!

लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली~~!!
चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चोक से गये!चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी~~!! 
और इलायची भी डली हुई थी!

वो सोच मे पड़ गये कि ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं~~!!

दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर!उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया~~!!

वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे मुझे क्या खाना है~~!!
क्या पीना है!मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है!
ये परफेक्टली आपको कैसे पता है!
.
तो बेटी कि सास ने धीरे से कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था~~!!

ओर उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं!
बोलेंगे कुछ नहीं प्लीज अगर हो सके!
तो आप उनका ध्यान रखियेगा!
.
पिता की आंखों मे वहीँ पानी आ गया था~~!!
लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया~~!!

जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो!
तो लडकी का पिता बोले-मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है~~!!
बल्कि वो तो मेरी बेटी!
के रुप में इस घर में ही रहती है!

और फिर पिता की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक कर रो पड़े

दुनिया में सब कहते हैं ना!
कि बेटी है
एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी!

मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ
कि बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जाती
बल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है

Tuesday, February 12, 2019

पत्नि हो तो ऐैसी

बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...इसलिए  बात-बात पर  अपनी माँ से झगड़ पड़ता था .... ये  वही माँ थी जो बेटे के  लिए पति से भी लड़ जाती थी।मगर अब फाइनेसिअली   इंडिपेंडेंट बेटा  पिता के कई बार समझाने पर भी  इग्नोर  कर देता और कहता, "यही तो उम्र है शौक की, खाने पहनने की, जब  आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा।"
बहू खुशबू  भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इसलिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी। बेटे की नौकरी  अच्छी थी तो  फ्रेंड सर्किल  उसी हिसाब से मॉडर्न थी । बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती .....वो कहता "कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो। क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।"
और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि  लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।"
आज अचानक पापा   आई. सी. यू. में एडमिट  हुए थे। हार्ट अटेक आया  था। डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, तीन लाख और जमा करने थे। डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था मगर अब ये तीन लाख भारी लग रहे थे। वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे..... उसने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ बहाना कर दिया। आँखों में आँसू थे और वह उदास था।.....तभी खुशबू  खाने का टिफिन लेकर आई और बोली, "अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। ऐसे उदास होने से क्या होगा? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा आप चिन्ता मत करो । कुछ खा लो  फिर पैसों का इंतजाम भी तो करना है आपको।.... मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये। ".......पति की आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे।
"कहा न आप चिन्ता मत कीजिये। जिन दोस्तों के साथ आप मॉडर्न पार्टियां करते हैं आप उनको फ़ोन  कीजिये , देखिए तो सही, कौन कौन मदद को आता हैं।"......पति खामोश और सूनी निगाहों से जमीन की तरफ़ देख रहा था। कि खुशबू का   का हाथ  उसकी पीठ  पर आ गया। और वह पीठ  को सहलाने लगी।
"सबने मना कर दिया। सबने कोई न कोई बहाना बना दिया खुशबू ।आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है जब तक जेब में पैसा है। किसी ने  भी  हाँ नहीं  कहा  जबकि उनकी पार्टियों पर मैंने लाखों उड़ा दिये।"
"इसी दिन के लिए बचाने को तो माँ-बाबा कहते थे। खैर, कोई बात नहीं, आप चिंता न करो, हो जाएगा सब ठीक। कितना जमा कराना है?"
"अभी तो तनख्वाह मिलने में भी समय है, आखिर चिन्ता कैसे न करूँ खुशबू ?"
"तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा है।"
"क्या मतलब?"
"तुम जो नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए मुझे पैसे देते थे वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं। माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं। मेरे पास दो लाख थे। बाकी मैंने अपने भैया से मंगवा लिए हैं। टिफिन में सिर्फ़ एक ही डिब्बे में खाना है बाकी में पैसे हैं।" खुशबू  ने थैला टिफिन सहित उसके हाथों में थमा दिया।

"खुशबू ! तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें मॉडर्न बनाना चाहता था, हवा में उड़ रहा था। मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े.... आज वही काम आए हैं। "

सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू थे  उसे आज  खुद के नहीं  बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था  और वो  बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपरवाले का शुक्रिया अदा कर रही थी।

Sunday, February 10, 2019

मायने

एक   जंगल में दोपहर के वक्त एक खोह के बाहर एक खरगोश जल्दी-जल्दी अपने computer
 से कुछ टाइप कर रहा था l
तभी वहां एक लोमड़ी आई उसने खरगोश से पूछा ...
लोमड़ी - तुम क्या कर रहे हो ?
खरगोश - मैं थीसिस लिख रहा हूँ !
लोमड़ी - अच्छा ! किस बारे में लिख रहे हो ?
खरगोश - विषय है -- खरगोश किस तरह लोमड़ी को मार के खा जाता है ?

लोमड़ी - क्या बकवास है !! कोई मूर्ख भी बता देगा कि खरगोश कभी लोमड़ी को मार कर खा नहीं सकता ...

खरगोश - आओ मैं तुम्हें प्रत्यक्ष दिखाता हूँ  ...

ये कह कर खरगोश लोमड़ी के साथ खोह में घुस जाता है और कुछ मिनट बाद लोमड़ी की हड्डियाँ लेकर वापस आता है....

और दोबारा से टाइपिंग में व्यस्त हो जाता है..
थोड़ी देर बाद वहां एक भेड़िया घूमता-घामता आता है वो खरगोश से पूछता है ...
भेड़िया- क्या कर रहे हो इतने ध्यान से ....

खरगोश - थीसिस लिख रहा हूँ
भेड़िया - हा हा ह l!  किस बारे में जरा बताओ तो ?

खरगोश - विषय है - एक खरगोश किस तरह एक भेड़िये को खा गया ...

भेड़िया - गुस्से में .. मूर्ख ये कभी हो नहीं सकता ...

खरगोश - अच्छा !! आओ सबूत देता हूँ ..
और कह कर भेड़िये को उस खोह में ले गया ...

 थोड़ी देर बाद खरगोश भेड़िये की हड्डी लेकर बाहर आ गया....

और फिर टाइपिंग ...

उसी वक्त एक भालू वहां से गुजरा उसने पूछा ये हड्डियाँ कैसी पड़ी हैं ...

खरगोश ने कहा एक खरगोश ने इन्हें मार दिया ....

भालू हंसा ... और बोला मजाक अच्छा करते हो .. अब बताओ ये क्या लिख रहे हो .... ?

खरगोश - थीसिस लिख रहा हूँ ...एक खरगोश ने एक भालू को मार के कैसे खा लिया .....

भालू -- क्या कह रहे हो ?? ये कभी नहीं हो सकता !

खरगोश - चलो दिखाता हूँ ...

और खरगोश भालू को खोह में ले गया .....

जहां एक शेर बैठा था ......

इसी लिए ये मायने नहीं रखता कि आपकी थीसिस कितनी बकवास है या बेबुनियाद है

मायने रखता है ...
आपका गाइड कितना ताकतवर है 

Sunday, January 20, 2019

तकलीफ का स्वाद

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।

उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।*

कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था।

वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था।

मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी।

वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा।

परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था।

ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।

नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया।

वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"

 बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी।

दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।

 कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा।

उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे।

कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया।

वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया।

नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ।

 बादशाह ने दार्शनिक से पूछा : "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था। अब देखो, कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"

दार्शनिक बोला : "खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।"

Wednesday, January 9, 2019

बुद्धिमान व्यक्ति

एक गाँव में एक बुद्धिमान व्यक्ति रहता था। उसके पास 19 ऊंट थे। एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को, उसका एक चौथाई मेरी बेटी को, और उसका पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?

19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार फिर??

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।

सबने पहले तो सोचा कि एक वो पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10 बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5 बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4 नौकर को दे दिए।

10+5+4=19 बच गया एक ऊँट जो बुद्धिमान व्यक्ति का था वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

सो हम सब के जीवन में 5 ज्ञानेंद्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 प्राण, और 4 अंतःकरण चतुष्टय( मन,बुद्धि, चित्त, अहंकार) कुल 19 ऊँट होते हैं। सारा जीवन मनुष्य इन्हीं के बँटवारे में उलझा रहता है और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन (आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता) नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

Friday, January 4, 2019

कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है

एक बार एक अमीर आदमी कहीं जा रहा होता है तो उसकी कार ख़राब हो जाती है। उसका कहीं पहुँचना बहुत जरुरी होता है। उसको दूर एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई देता है। वो उस रिक्शा वाले पास जाता है। वहा जाकर देखता है कि रिक्शा वाले ने अपने पैर हैंडल के ऊपर रखे होते है। पीठ उसकी अपनी सीट पर होती है और सिर जहा सवारी बैठती है उस सीट पर होती है ।

 और वो मज़े से लेट कर गाना गुन-गुना रहा होता है। वो अमीर व्यक्ति रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान होता है कि एक व्यक्ति ऐसे बेआराम जगह में कैसे रह सकता है, कैसे खुश रह सकता है। कैसे गुन-गुना सकता है।

 वो उसको चलने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला झट से उठता है और उसे 20 रूपए देने के लिए बोलता है।

  रास्ते में वो रिक्शा वाला वही गाना गुन-गुनाते हुए मज़े से रिक्शा खींचता है। वो अमीर व्यक्ति एक बार फिर हैरान कि एक व्यक्ति 20 रूपए लेकर इतना खुश कैसे हो सकता है। इतने मज़े से कैसे गुन-गुना सकता है। वो थोडा इर्ष्यापूर्ण  हो जाता है और रिक्शा वाले को समझने के लिए उसको अपने बंगले में रात को खाने के लिए बुला लेता है। रिक्शा वाला उसके बुलावे को स्वीकार कर देता है।

 वो अपने हर नौकर को बोल देता है कि इस रिक्शा वाले को सबसे अच्छे खाने की सुविधा दी जाए। अलग अलग तरह के खाने की सेवा हो जाती है। सूप्स, आइस क्रीम, गुलाब जामुन सब्जियां यानि हर चीज वहाँ मौजूद थी।

  वो रिक्शा वाला खाना शुरू कर देता है, कोई प्रतिक्रिया, कोई घबराहट बयान नहीं करता। बस वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से वो खाना खाता है। सभी लोगो को ऐसे लगता है जैसे रिक्शा वाला ऐसा खाना पहली बार नहीं खा रहा है। पहले भी कई बार खा चुका है। वो अमीर आदमी एक बार फिर हैरान एक बार फिर इर्ष्यापूर्ण कि कोई आम आदमी इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देख के भी कोई हैरानी वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता और वैसे कैसे गुन-गुना रहा है जैसे रिक्शे में गुन-गुना रहा था।

 यह सब कुछ देखकर अमीर आदमी की इर्ष्या और बढती है।
अब वह रिक्शे वाले को अपने बंगले में कुछ दिन रुकने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला हाँ कर देता है।

  उसको बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है। कोई उसको जूते पहना रहा होता है, तो कोई कोट। एक बेल बजाने से तीन-तीन नौकर सामने आ जाते है। एक बड़ी साइज़ की टेलीविज़न स्क्रीन पर उसको प्रोग्राम दिखाए जाते है। और एयर-कंडीशन कमरे में सोने के लिए बोला जाता है।

 अमीर आदमी नोट करता है कि वो रिक्शा वाला इतना कुछ देख कर भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। वो वैसे ही साधारण चल रहा है। जैसे वो रिक्शा में था वैसे ही है। वैसे ही गाना गुन-गुना रहा है जैसे वो रिक्शा में गुन-गुना रहा था।

  अमीर आदमी के इर्ष्या बढ़ती चली जाती है और वह सोचता है कि अब तो हद ही हो गई। इसको तो कोई हैरानी नहीं हो रही, इसको कोई फरक ही नहीं पढ़ रहा। ये वैसे ही खुश है, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा।

 अब अमीर आदमी पूछता है: आप खुश हैं ना?
वो रिक्शा वाला कहते है: जी साहेब बिलकुल खुश हूँ।

  अमीर आदमी फिर पूछता है: आप आराम में  हैं ना ?
रिक्शा वाला कहता है: जी बिलकुल आरामदायक हूँ।

 अब अमीर आदमी तय करता है कि इसको उसी रिक्शा पर वापस छोड़ दिया जाये। वहाँ जाकर ही इसको इन बेहतरीन चीजो का एहसास होगा। क्योंकि वहाँ जाकर ये इन सब बेहतरीन चीजो को याद करेगा।

  अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी को बोलता है की इसको कह दो कि आपने दिखावे के लिए कह दिया कि आप खुश हो, आप आरामदायक हो। लेकिन साहब समझ गये है कि आप खुश नहीं हो आराम में नहीं हो। इसलिए आपको उसी रिक्शा के पास छोड़ दिया जाएगा।”

 सेक्रेटरी के ऐसा कहने पर रिक्शा वाला कहता है: ठीक है सर, जैसे आप चाहे, जब आप चाहे।

  उसे वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है जहाँ पर उसका रिक्शा था।

 अब वो अमीर आदमी अपने गाड़ी के काले शीशे ऊँचे करके उसे देखता है।

  रिक्शे वाले ने अपनी सीट उठाई बैग में से काला सा, गन्दा सा, मेला सा कपड़ा निकाला, रिक्शा को साफ़ किया, मज़े में बैठ गया और वही गाना गुन-गुनाने लगा।

 अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी से पूछता है: “कि चक्कर क्या है। इसको कोई फरक ही नहीं पड रहा इतनी आरामदायक वाली, इतनी बेहतरीन जिंदगी को ठुकरा के वापस इस कठिन जिंदगी में आना और फिर वैसे ही खुश होना, वैसे ही गुन-गुनाना।”

  फिर वो सेक्रेटरी उस अमीर आदमी को कहता है: “सर यह एक कामियाब इन्सान की पहचान है। एक कामियाब इन्सान वर्तमान में जीता है, उसको मनोरंजन (enjoy) करता है और बढ़िया जिंदगी की उम्मीद में अपना वर्तमान खराब नहीं करता।

 अगर उससे भी बढ़िया जिंदगी मिल गई तो उसे भी वेलकम करता है उसको भी मनोरंजन (enjoy) करता है उसे भी भोगता है और उस वर्तमान को भी ख़राब नहीं करता। और अगर जिंदगी में दुबारा कोई बुरा दिन देखना पड़े तो वो भी उस वर्तमान को उतने ही ख़ुशी से, उतने ही आनंद से, उतने ही मज़े से, भोगता है मनोरंजन करता है और उसी में आनंद लेता है।”

कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है, और अच्छे दिनों की उम्मीद में अपने वर्तमान को ख़राब नहीं करें। और न ही कम अच्छे दिनों में ज्यादा अच्छे दिनों को याद करके अपने वर्तमान को ख़राब करना है।

Monday, December 31, 2018

कौशल भूल जाउंगा


एक बार इंद्र भगवान ने गुस्से मे आकर सभी को श्राप दे दिया कि 12 साल वो बरसात नही करेंगे जिससे लोग पानी को तरसेंगे... 

लोगो मे हाहाकार मच गया
बडे बडे देवो ने समझाया पर इंद्र भगवान नही माने....

बारिश का महीना आया , इंद्रदेव ने बारिश नही की
पर एक किसान अपने बच्चो के साथ खेत मे गया और खेती के वो सभी काम करने लगा जो बरसात से पहले किये जाते है साथ मे वो अपने बच्चो को भी समझा रहा था के काम कैसे किया जाये... 

इंद्रदेव को देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि 12 साल तक पानी नही बरसेगा फिर भी ये काम क्यूं कर रहा है ????

इंद्रदेव ब्राह्मण का रूप धर के उसके पास गये और कहा , हे किसान क्या तूमने श्रापित आकाशवाणी नही सुनी कि12 साल बरसात नही होगी??? फिर क्यू खेत जोत रहे हो??? 

किसान ने कहा सुनी थी ब्राह्मणदेवता

पर अगर मै और मेंरे बेटे 12 साल काम नही करेंगे तो हम भूल जायेगे कि खेती कैसे करते है फिर बारिश होगी तो भूखो मर जायेंगे इसलिये हम खेती कर रहे है....

इंद्रदेव की आंखे खुल गई
वो सोचने लगे 12 साल मे तो शायद मैं भी बारिश गिराने का कौशल भूल जाउंगा...... 

उन्होने तुरंत श्राप वापस लिया और बारिश करवा दी...

मोरल:- इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि ...

हमें कितनी भी कडकी लगी हो या पैसे की तंगी हो ..

31 दिसंबर तो मनाना ही चाहिये.. नही तो जिस दिन पैसे आयेंगे हम पार्टी करना भूल गये होंगे.....

इतनी देर सब्र से पढने के लिये धन्यवाद

Thursday, December 27, 2018

लिफाफे

एक नव नियुक्त मैनेजर को पुराने मैनेजर ने जाते जाते तीन बन्द
लिफाफे दिये।
जिन पर क्रमशः १ २ ३ की गिनती लिखी थी 
और कहा कि जब कभी भी तुम्हें इस कार्यालय में कोई बड़ी समस्या आ जाए तो ये
१ नंबर का लिफाफा खोलना
और जब कभी दूसरी बड़ी समस्या आ जाए तो ये
२ नंबर का लिफाफा खोलना
और जब कभी तुम्हें तीसरी बड़ी समस्या आ जाए तो ये
३नंबर का लिफाफा खोलना

नव नियुक्त मैनेजर ने खुश होकर हामी भरी, और तीनों लिफाफों को संभाल कर रख लिया

काफी समय के बाद हेड अॉफिस ने बिजनेस नहीं बढ़ने पर काफी कड़ा पत्र लिखा 

मैनेजर साहब को कुछ सूझा नहीं कि मैनेजमेंट को क्या
जवाब दें। तभी उन्हें याद आया और उन्होंने लिफाफा नंबर १ खोला अंदर जो लेटर निकला उस पर लिखा था

*अपना सारा दोष पुराने मैनेजर के माथे डाल दो कि उसने कुछ किया नहीं अतः वह सब नये सिरे से ठीक कर रहा है!*

मैनेजर साहब ने वैसा ही कियाऔर समस्या टल गई

कुछ महीनों बाद  फिर वैसा ही पत्र आया कि टारगेट पूरे नहीं हो रहे हैं क्यों न उसके विरूद्घ कोई कार्यवाही की जाये? 

घबराकर मैनेजर साहब ने लिफाफा नंबर २ खोला

उसमें लिखा था कि जवाब दो कि 

*स्टाफ बराबर काम नहीं करता वह कुछ को हटा रहा है व कुछ को ट्रान्सफर कर रहा है,कार्यालय में भारी परिवर्तन कर रहा है* 

ऐसा लिख दो ""

मैनेजर साहब ने वैसा ही किया और मुसीबत फिर टल गई

कुछ समय पश्चात फिर प्रधान कार्यालय द्वारा बिजनेस नहीं बढ़ने पर भारी चिन्ता व्यक्त की गयी कि चेयरमैन साहब भी बहुत नाराज हैं

मैनेजर को तीसरे लिफाफे की याद आई

 उन्होंने लिफाफा नंबर ३ खोला उसमें
लिखा था
.
.
.
.
.
.
.
. *अब तुम भी तीन लिफाफे बना लो.

Sunday, December 23, 2018

दानें दानें पर लिखा हैं खाने वाले का नाम

एक' सेठ "कृष्ण" जी का परम भक्त था, निरंतर उनका जाप, और सदैव उनको अपने दिल में बसाए रखता था, 
वो रोज स्वादिष्ट पकवान बना कर कृष्ण जी की मंदिर निकलता पर रास्तें में ही उसे नींद आ जाती और उसके पकवान चोरी हो जाते, 
वहाँ बहुत दुखी होता और कान्हा से शिकायत करते हुये कहता हे_राधे 
ऐसा क्यूँ होता हैं
मैं आपको भोग क्यू नही लगा पाता हूँ
कान्हा कहते हे_वत्स दानें_दानें पे लिखा हैं खाने वाले का नाम, वो मेरे नसीब में नही हैं, इसलिए मुज तक नही पहुंचता, 
सेठ थोड़ा गुस्सें से कहता हैं ऐसा नही हैं, प्रभु कल मैं आपको भोग लगाकर ही रहूंगा आप देख लेना, और सेठ चला जाता हैं...

दूसरे दिन सेठ सुबह_सुबह जल्दी नहा धोकर तैयार हो जाता हैं, और अपनी पत्नी से चार डब्बें भर बढिया_बढिया स्वादिष्ट पकवान बनाता हैं, और उसे लेकर मंदिर के लिए निकल पड़ता हैं, और रास्तें भर सोचता हैं, आज जो भी हो जाए सोऊगा नही कान्हा को भोग लगाकर रहूंगा,

...मंदिर के रास्तें में ही उसे एक भूखा बच्चा दिखाई देता हैं, और वो सेठ के पास आकर हाथ फैलातें हुये कुछ देने की गुहार लगाता हैं, सेठ उसे ऊपर से नीचे तक देखता हैं एक 5_6 साल का बच्चा हड्डियों का ढाँचा उसे उस पर तरस आ जाता हैं और वो एक लड्डू निकाल के उस बच्चें को दे देता हैं,
जैसे ही वहाँ उस बच्चें को लड्डू देता हैं, बहुत से बच्चों की भीड़ लग जाती हैं, ना जाने कितने दिनो के खाए पीए नही, सेठ को उन पर करूणा आ जाती है उन सब को पकवान बाँटने लगता हैं, देखते ही देखते वो सारे पकवान बाँट देता हैं, फिर उसे याद आता हैं, आज तो मैंने राधें को भोग लगाने का वादा किया था, पर मंदिर पहुंचने से पहले ही मैंने भोग खत्म कर दिया, अधूरा सा मन लेकर वहाँ मंदिर पहुँच जाता हैं, और कान्हा की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े बैठ जाता हैं...

"कान्हा प्रकट होते हैं और सेठ को चिढ़ाते हुये कहते हैं, लाओ जल्दी लाओ मेरा भोग मुजे बहुत भूख लगी हैं, मुजे पकवान खिलाओं,
सेठ सारा कम्र कान्हा को बता देता हैं, कान्हा मुस्कुराते हुये कहते हैं, मैंने तुमसे कहा था ना, दानें_दानें पर लिखा हैं खानें वाले का नाम, जिसका नाम था उसने खा लिया तुम क्यू व्यर्थ चिंता करते हो, 
सेठ कहता हैं, प्रभु मैंने बड़े अंहकार से कहा था, आज आपको भोग लगाऊंगा पर मुजे उन बच्चों की करूणा देखी नही गयी, और मैं सब भूल गया,
कान्हा फिर मुस्कुराते और कहते हैं, चलो आओ मेरे साथ, और वो सेठ को उन बच्चों के पास ले जाते हैं जहाँ सेठ ने उन्हें खाना खिलाया था, और सेठ से कहते हैं जरा देखो, कुछ नजर आ रहा हैं...

"सेठ" की ऑखों से ऑसूओं का सैलाब बहने लगता हैं, स्वंय बाँके_बिहारी लाल, उन भूखे बच्चों के बीच में खाना के लिए लड़ते नजर आते हैं, कान्हा कहते हैं वही वो पहला बच्चा हैं जिसकी तुमने भूख मिटाई, मैं हर जीव में हूँ, अलग_अलग भेष में, अलग_अलग कलाकारी में, अगर तुम्हें लगें मैं ये काम इसके लिए कर रहा था, पर वो दूसरे के लिए हो जाए, तो उसे मेरी ही इच्छा समझना, क्यूकि मैं तो हर कही हूँ, बस दानें नसीब की जगह से खाता हूँ, जिस_जिस जगह नसीब का दाना हो वहाँ पहुँच जाता हूँ, फिर इसको तुम क्या कोई भी नही रोक सकता, क्यूकि नसीब का दाना, नसीब वाले तक कैसे भी पहुँच जाता हैं, चाहें तुम उसे देना चाहों या ना देना चाहों अगर उसके नसीब का हैं, तो उसे प्राप्त जरूर होगा....

"सेठ" कान्हा के चरणों में गिर जाता हैं,
और कहता हैं आपकी माया, आप ही जानें, प्रभु मुस्कुराते हैं और कहते हैं कल मेरा भोग मुजे ही देना दूसरों को नही, प्रभु और भक्त हंसने लगते हैं

Wednesday, December 19, 2018

शब्दों का प्रयोग

18 दिन के युद्ध ने द्रोपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी। उसकी आंखे मानो किसी खड्डे में धंस गई थी, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था। श्याम वर्ण और अधिक काला हो गया था । 

युद्ध से पूर्व प्रतिशोध की ज्वाला ने जलाया था और युद्ध के उपरांत पश्चाताप की आग तपा रही थी । ना कुछ समझने की क्षमता बची थी ना सोचने की । कुरूक्षेत्र मेें चारों तरफ लाशों के ढेर थे । जिनके दाह संस्कार के लिए न लोग उपलब्ध थे न साधन । 

शहर में चारों तरफ विधवाओं का बाहुल्य था पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर केे महल मेंं निश्चेष्ट बैठी हुई शूूूून्य को ताक रही थी । तभी कृष्ण कक्ष में प्रवेश करते हैं ! 
महारानी द्रौपदी की जय हो । 

द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है कृष्ण उसके सर को सहलातेे रहते हैं और रोने देते हैं थोड़ी देर में उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं । 

*द्रोपती* :- यह क्या हो गया सखा ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

*कृष्ण* :-नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और तुम सफल हुई द्रौपदी ! तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ । सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं सारे कौरव समाप्त हो गए तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए ! 

*द्रोपती*:-सखा तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ! 

*कृष्ण* :-नहीं द्रौपदी मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं । हमारे कर्मों के परिणाम को हम दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं तो हमारे हाथ मेें कुछ नहीं रहता ।

*द्रोपती* :-तो क्या इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदाई हूं कृष्ण ? 

*कृष्ण* :-नहीं द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो ।
लेकिन तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी भी दूरदर्शिता रखती तो स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

*द्रोपती* :-मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

*कृष्ण*:- जब तुम्हारा स्वयंबर हुआ तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो शायद परिणाम कुछ और होते ! 

इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी परिणाम कुछ और होते । 
और 

उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया वह नहीं करती तो तुम्हारा चीर हरण नहीं होता तब भी शायद परिस्थितियां कुछ और होती ।

*हमारे शब्द भी हमारे कर्म होते हैं द्रोपदी और हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत जरूरी होता है अन्यथा उसके दुष्परिणाम सिर्फ स्वयं को ही नहीं अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।*

*संसार में केवल मनुष्य*
*ही एकमात्र ऐसा प्राणी*
*है*

*जिसका " जहर "*
*उसके " दांतों " में नही,*
*" शब्दों " में है...*

*इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करिये। ऐसे शब्द का प्रयोग करिये जिससे किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे।

Thursday, December 13, 2018

आखिर अंतर रह ही गया

बचपन में जब हम ट्रैन की सवारी  करते थें, माँ घर से सफर के  लिए खाना बनाकर लें जाती थी l पर ट्रैन में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए l पापा नें समझाया ये हमारे  बस का नहीँ l अमीर लोग इस तरह  पैसे खर्च कर सकते है,  हम नहीँ l बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो वर्ग घर से भोजन बांध  कर लें जा रहें हैंl स्वास्थ  सचेतन हैं वे l आखिर वो अंतर रह ही गया l

बचपन मेंं जब हम सूती कपड़ा पहनते थें, तब वो वर्ग टेरीलीन का वस्त्र पहनता था l बड़ा  मन करता था पर  पापा कहते हम इतना खर्च  नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरेलिन पहने तब वो वर्ग सूती  के कपड़े पहनने  लगा l सूती  कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च  नहीँ कर सकते l आखिर अंतर रह ही गया l

बचपन मेंं जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनो के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनो के पास का वो हिस्सा ढक लेते l बड़े होकर देखा वो वर्ग घुटनो के पास फटे पतलून महंगे दामों  मेंं बड़े दुकानों  से खरीदकर पहन रहा है l आखिर अंतर रह ही गया l

बचपन मेंं हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते,  तब वे 
स्कूटर पर जाते l जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जबतक हम मारुति खरीदे, वो बीएमडब्लू पर जाते दिखे l आखिर अंतर रह ही गया l

और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर  BMW खरीदे अंतर को मिटाने के लिए तो वो साइकलिंग करते नज़र आये ...अंतर रह ही गया।

Thursday, December 6, 2018

वचन

रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया, 
तब लंका मे सीता जी वट व्रक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी,
रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था 
लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी,यहाँ तक की रावण 
ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को भी 
भ्रमित करने की कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,
रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी 
बोली आप ने तो राम का वेश धर कर गया था फिर क्या हुआ,
रावण बोला जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी !
रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जगत 
जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका फिर रावण
भी कैसे समझ पाता !
रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी 
हो की मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर 
घूर कर देखने लगती हो,
क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है रावण के 
इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी,और 
आँख से आसुओं की धार बह पड़ी
"अब इस प्रश्न का उत्तर समझो" -
जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,
तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश 
भी हुआ बहुत उत्सव मनाया गया,
जैसे की एक प्रथा है की 
नव वधू जब ससुराल आती है तो उस नववधू के हाथ से 
कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है,ताकि जीवन भर 
घर पर मिठास बनी रहे !
इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथो से घर पर 
खीर बनाई और समस्त परिवार राजा दशरथ सहित चारो 
भ्राता और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे ,
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तल सम्हाली,
सीता जी देख रही थी,
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा 
सा घास का तिनका गिर गया,
माँ सीता जी ने उस तिनके 
को देख लिया,लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया,
माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर जो देखा, तो वो तिनका जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया,
सीता जी ने सोचा अच्छा 
हुआ किसी ने नहीं देखा, लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी 
का यह चमत्कार को देख रहे थे,फिर भी दशरथ जी चुप रहे 
और अपने कक्ष मे चले गए और माँ सीता जी को बुलवाया !
फिर राजा दशरथ बोले मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ,
आप साक्षात जगत जननी का दूसरा रूप हैं,लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना
आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी मत देखना,
इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को 
उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी,
यही है उस तिनके का रहस्य ! 
मात सीता जी चाहती तो रावण को जगह पर ही राख़ कर 
सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन की 
वजह से वो शांत रही !

Saturday, December 1, 2018

कर्मो की दौलत

एक राजा था जिसने ने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके( एकतरह शाही खजाना ) आबादी से बाहर जंगल एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने मे सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी एक चाबी राजा के पास और एक उसकेएक खास मंत्री के पास थी इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला , तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख देख कर खुश हो रहा था , और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था।
उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खजाने का दरवाजा खुला है वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कही कल रात जब मैं खजाना देखने आया तब शायद खजाना का दरवाजा खुला रह गया होगा, उसने जल्दी जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया . उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ , और दरवाजे के पास आया तो ये क्या ...दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था . उसने जोर जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहां उनकी आवाज सुननेवाला उस जंगल में कोई ना था ।
राजा चिल्लाता रहा , पर अफसोस कोई ना आया वो थक हार के खजाने को देखता रहा अब राजा भूख और पानी की प्यास से बेहाल हो रहा था , पागलो सा हो गया.. वो रेंगता रेंगता हीरो के संदूक के पास गया और बोला ए दुनिया के नायाब हीरो मुझे एक गिलास पानी दे दो.. फिर मोती सोने चांदी के पास गया और बोला ए मोती चांदी सोने के खजाने मुझे एक वक़्त का खाना दे दो..राजा को ऐसा लगा की हीरे मोती उसे बोल रहे हो की तेरे सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे एक गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती..राजा भूख से बेहोश हो के गिर गया ।
जब राजा को होश आया तो सारे मोती हीरे बिखेर के दीवार के पास अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया , वो दुनिया को एक पैगाम देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था ।
राजा ने पत्थर से अपनी उंगली फोड़ी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया . उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा को ढूंढते रहे पर बहुत दिनों तक राजा ना मिला तो मंत्री राजा के खजाने को देखने आया , उसने देखा कि राजा हीरे जवाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है , और उसकी लाश को कीड़े मोकड़े खा रहे थे . राजा ने दीवार पर खून से लिखा हुआ था...ये सारी दौलत एक घूंट पानी ओर एक निवाला नही दे सकी...
यही अंतिम सच है |आखिरी समय आपके साथ आपके कर्मो की दौलत जाएगी , चाहे आप कितनी बेईमानी से हीरे पैसा सोना चांदी इकट्ठा कर लो सब यही रह जाएगा |इसीलिए जो जीवन आपको प्रभु ने उपहार स्वरूप दिया है , उसमें अच्छे कर्म लोगों की भलाई के काम कीजिए बिना किसी स्वार्थ के ओर अर्जित कीजिए अच्छे कर्मो की अनमोल दौलत |जो आपके सदैव काम आएगी

Sunday, November 25, 2018

हमारी सोच

एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे. समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.
पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी.
सन्त बहुत दु:खी हुए.
उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.
थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,
सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,
मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.
स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.
थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.
सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.
वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया 
मैं एक मछुआरा हूँ
मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.
मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.
कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था
और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.
सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ, जो देखा उसके बारे में
मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.
कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.
किसी के प्रति
कोई निर्णय लेने से पहले
सौ बार सोचें और तब फैसला करें
क्या हमारी सोच भी ऐसी ही हो चुकी है, जो दिखाई दिया, खुद ही  अपनी सोच बना लेते है

Thursday, November 22, 2018

जीवन में झट़का

चेन्नई में समुद्र के किनारे, एक सज्जन धोती कुर्ता में भगवद गीता पढ़ रहे थे। तभी वहां एक लड़का आया और बोला कि आज साइंस का जमाना है... फिर भी आप लोग ऐसी किताबें पढ़ते हो! 

देखिए, जमाना चांद पर पहुंच गया है... और आप लोग ये गीता रामायण पर ही अटके हुए हो...।

उन सज्जन ने लड़के से पूंछा की - "तुम गीता के बारे में क्या जानते हो?"

वह लड़का जोश में आकर बोला - "अरे बकवास... मैं विक्रम साराभाई रिसर्च संस्थान का छात्र हूं... I am a scientist... ये गीता तो बकवास है हमारे आगे।

वह सज्जन हंसने लगे... तभी 2 बड़ी-बड़ी गाड़ियां वहां आयी... एक गाड़ी से कुछ ब्लैक कमांडो निकले... और एक गाड़ी से एक सैनिक। सैनिक ने कार के पीछे का गेट खोला तो वह सज्जन पुरुष चुपचाप गाड़ी में जाकर बैठ गए।

लड़का ये सब देखकर हक्का-बक्का था।  उसने दौड़कर उनसे पूंछा - "सर... सर आप कौन हैं??

वह सज्जन बोले - "तुम जिस विक्रम साराभाई रिसर्च इंस्टीट्यूट में पढ़ते हो, मैं वहीं विक्रम साराभाई हूं...।

लड़के को 440 वाट का झट़का लगा!!!

इसी भगवद गीता को पढ़कर, डॉ अब्दुल कलाम ने हिन्दू जीवन शैली अपना ली और आजीवन मांस न खाने की प्रतिज्ञा कर ली थी! 

Saturday, November 17, 2018

दौड़

 एक दस वर्षीय लड़का प्रतिदिन अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर करने जाता था। एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पर लगी उस झंडी को छू लेगा वह दौड़ जीत जाएगा।”
 पिताजी तैयार हो गए। दूरी अधिक थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना आरंभ किया।
कुछ देर दौड़ने के बाद ही पिताजी अचानक रुक गए।
 “क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
 “नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ”, पिताजी बोले।
 लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, लेकिन यदि मैं रुक गया तो दौड़ हार जाऊँगा…”, और यह कहता हुआ वह तेज़ी से आगे भागा।
पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे़, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का अनुभव हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके समीप आने लगे थे।
 लड़के के पैरों में कष्ट देख पिताजी पीछे से चिल्लाए, “क्यों नहीं तुम भी अपने जूते में से कंकड़ निकाल लेते?”
 “मेरे पास इसके लिए समय नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा। कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।
चुभते कंकडों की कारण लड़के का कष्ट बहुत बढ़ चुका था और अब उससे चला भी नहीं जा रहा था। वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता।”
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आए और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था। वे उसे झटपट घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
 जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने ने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था न कि पहले अपने कंकडों को निकाल लो और फिर दौड़ो।”
 “मैंने सोचा यदि मैं रुका तो दौड़ हार जाऊँगा।” बेटा बोला।
 “ऐसा नही है बेटा, यदि हमारे जीवन में कोई समस्या आती है तो हमें उसे यह कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है। वास्तव में होता क्या है, जब हम किसी समस्या की अनदेखी करते हैं तो वह धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितनी हानि पहुँचा सकती थी उससे कहीं अधिक हानि पहुँचा देती है। तुम्हें कंकड़ निकालने में अधिक से अधिक एक मिनट का समय लगता पर अब उस एक मिनट के बदले तुम्हें एक सप्ताह तक पीढ़ा सहनी होगी।” पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
 मित्रों, हमारा जीवन तमाम ऐसे कंकडों से भरा हुआ है, कभी हम अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर परेशान होते हैं तो कभी हमारे रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है तो कभी हमें अपने साथ काम करने वाले सहकर्मी से समस्या होती है।
 आरंभ में ये समस्याएँ छोटी प्रतीत होती हैं और हम इनके बारे में बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा होता जाता है। जैसे कोई ऋण जिसे हम समय रहते एक हज़ार रुपये देकर चुका सकते थे उसके लिए बाद में 5000 रूपये चाहिए होते हैं… रिश्ते की जिस कड़वाहट को हम ‘खेद है’ कहकर दूर कर सकते थे वह अब टूटने की कगार पर आ जाता है और एक छोटी सी बातचीत से हम अपने सहकर्मी का भ्रम दूर कर सकते थे वह कुछ समय बाद कार्य-स्थल की राजनीति  में परिवर्तित हो जाता है।
 समस्याओं का समाधान समय रहते कर लेना चाहिए अन्यथा देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।

Friday, November 16, 2018

गोपाष्ठमी का महत्व एवं कथा

एक दिन भगवान मैया से बोले – ‘मैया...अब हम बड़े हो गये है।
मैया ने कहा- अच्छा लाला... तुम बड़े हो गये तो बताओ क्या करे?
भगवान ने कहा - मैया अब हम बछड़े नहीं चरायेगे, अब हम गाये चरायेगे।
मैया ने कहा - ठीक है।बाबा से पूँछ लेना...
झट से भगवान बाबा से पूंछने गये.
बाबा ने कहा – लाला..., तुम अभी बहुत छोटे हो, अभी बछड़े ही चराओ।
भगवान बोले- बाबा मै तो गाये ही चराऊँगा।
जब लाला नहीं माने तो बाबा ने कहा -ठीक है लाला,.. जाओ पंडित जी को बुला लाओ, वे गौ-चारण का मुहूर्त देखकर बता देगे।
भगवान झट से पंडितजी के पास गए बोले- पंडितजी.... बाबा ने बुलाया है
गौचारण का मुहूर्त देखना है आप आज ही का मुहूर्त निकल दीजियेगा, यदि आप ऐसा करोगे तो मै आप को बहुत सारा माखन दूँगा ।
पंडितजी घर आ गए पंचाग खोलकर बार-बार अंगुलियों पर गिनते,..बाबा ने पूँछा -पंडित जी क्या बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे है ?
पंडित जी ने कहा – क्या बताये,.. नंदबाबाजी, केवल आज ही का मुहूर्त निकल रहा है इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त है ही नहीं।
बाबा ने गौ चारण की स्वीकृति दे दी ।
भगवान जिस समय, जो काम करे, वही मुहूर्त बन जाता है
उसी दिन भगवान ने गौचारण शुरू किया वह शुभ दिन कार्तिक-माह का “गोपा-अष्टमी” का दिन था।
माता यशोदा जी ने लाला का श्रृंगार कर दिया और जैसे ही पैरों में जूतियाँ पहनाने लगी तो बाल कृष्ण ने मना कर दिया और कहने लगे - मैया !
यदि मेरी गौ जुते नही पहनती तो मै कैसे पहन सकता हूँ
यदि पहना सकती हो तो सारी गौओ को जूतियाँ पहना दो।फिर में भी पहन लूंगा ।
और भगवान जब तक वृंदावन में रहे कभी भगवान ने पैरों में जूतियाँ नाही पहनी।
अब भगवान अपने सखाओ के साथ गौए चराते हुए वृन्दावन में
जाते और अपने चरणों से वृन्दावन को अत्यंत पावन करते।
यह वन गौओ के लिए हरी-हरी घास से युक्त एवं रंग- बिरंगे
पुष्पों की खान हो रहा था, आगे-आगे गौएँ उनके पीछे-पीछे बाँसुरी बजाते हुए श्यामसुन्दर तदन्तर बलराम और फिर श्रीकृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वालबाल।
इस प्रकार विहार करने के लिए उन्होंने उस वन में प्रवेश किया। और तब से गौ चारण लीला करने लगे।
भगवान कृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा था क्योंकि भगवान कृष्ण ने गायों तथा ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर रखा था।
आठवें दिन इन्द्र अपना अहं त्याग कर भगवान कृष्ण की शरण में आया था।
उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया। और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर संबोधित किया और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नाम से पुकारा जाने लगा।
इसी दिन से अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।
गौ ही सबकी माता है, भगवान भी गौ की पूजा करते है, सारे देवी-देवो का वास गौ में होता है,
जो गौ की सेवा करता है गौ उसकी सारी इच्छाएँ पूरी कर देती है।
तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से, जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को खिलाने से प्राप्त होता है ।