Sunday, February 18, 2018

जीवन में निर्णय

दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें | 2 कहानियाँ 

पहली कहानी :

ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे.

24 वर्षीय पुत्र खिड़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं !
पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया. ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई.

तब तक वो लड़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं !

युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े – आप अपने लड़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?

लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं. मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है.

दूसरी कहानी :

एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जोकि इस प्रकार है –

एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है. इस मौके पर आदमी ने औरत को धक्का दिया और नाव पर कूद गया.

डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा.
अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?

ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you !

प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ?

वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना !

प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?

लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी.

प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है !

प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया. कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली.

डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे.

ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया और लाइफबोट पर कूद गया. उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन को कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा.

जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की तो, पूरी क्लास में शांति थी.

          —————

इस संसार में कईयों सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं. इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता.

– कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो. हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो.

– दोस्तों के साथ खाते-पीते, पार्टी करते समय जो दोस्त बिल पे करता है, जरुरी नहीं उसकी जेब नोटों से ठसाठस भरी हो. हो सकता है उसके लिए दोस्ती के सामने पैसों की अहमियत कम हो.

– जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों. वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है.

आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है. थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है. जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें

Friday, February 16, 2018

ज़रूरतमंद

एक पाँच छ: साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर मंदिर के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था ।

कपड़े में मैल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे ।

बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था ।

जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा : -
"क्या मांगा भगवान से"
उसने कहा : -
"मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्ग,
मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र,
मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे".. 

"तुम स्कूल जाते हो"..?
अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था ।

हां जाता हूं, उसने कहा ।

किस क्लास में पढ़ते हो ? अजनबी ने पूछा

नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ ।
बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है ।
बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था ।

"तुम्हारा कोई रिश्तेदार"
न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा ।

पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता,
माँ झूठ नहीं बोलती,
पर अंकल,
मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है,
जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है ।
जब कहता हूँ 
माँ तुम भी खाओ, तो कहती है मैने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है ।

बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?
"बिल्कुलु नहीं"

"क्यों"
पढ़ाई करने वाले, गरीबों से नफरत करते हैं अंकल,
हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं ।

अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी ।

फिर उसने कहा
"हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँ,
कभी किसी ने नहीं पूछा - यहाँ सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता ।

"बच्चा जोर-जोर से रोने लगा"

 अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?

मेरे पास इसका कोई जवाब नही था... 

ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं ।
बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतीमों, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए 


Wednesday, February 14, 2018

हमारा अहंकार

एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे ।
रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्र भु – एक जिज्ञासा है  मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?
श्री कृष्ण ने कहा – अर्जुन , तुम मुझसे बिना किसी हिचक , कुछ भी पूछ सकते हो ।
तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ?
यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा ।
श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया ।
इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो ।
अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया ।
उसने सभी गाँव वालों को बुलाया ।
उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया ।
गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी ।
अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए ।
लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे ।
उनमे अब तक अहंकार आ चुका था ।
गाँव के लोग वापस आ कर दोबारा से लाईन में लगने लगे थे ।
इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे ।
जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी ।
उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि अब  मुझसे यह काम और न हो सकेगा ।
मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए ।
प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया  ।
उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो ।
कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये ।
उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा – यह सोना आप लोगों का है , जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये ।
ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए ।
यह देख कर अर्जुन ने कहा कि ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया ?
श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को शिक्षा
इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हे सोने से मोह हो गया था ।
तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है ।
उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे ।
तुम में दाता होने का भाव आ गया था ।
दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया ।
वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए ।
वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे ।
उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता ।
यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है 
इस तरह श्री कृष्ण ने खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया , अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ।
निष्कर्ष
दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है ।*
यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए ।
ताकि यह हमारा सत्कर्म हो,
न कि हमारा अहंकार ।

Sunday, February 11, 2018

संस्कार क्या है

एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थी Iकुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था ।

बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया, इस पर घोड़ी बोली: बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया ।

यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: मां मैं इसका बदला लूंगा ।

मां ने कहा राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये, पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली ।

एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया ।

इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है ।

तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है ।

यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं ।

हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं ! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा ।

अत: हमें प्रतिदिन कोशिश करनी चाहिए  कि हमसे जान बूझ कर कोई धोखा ना हो, गलत काम ना हो और हम किसी के साथ कोई भी धोखा ना करें।

Saturday, February 10, 2018

आदतें नस्लों का पता देती हैं

एक बादशाह के दरबार मे एक अजनबी नौकरी की तलब के लिए हाज़िर हुआ ।

क़ाबलियत पूछी गई, 
कहा, 
"सियासी हूँ ।" ( अरबी में सियासी  अक्ल ओ तदब्बुर से मसला हल करने वाले मामला फ़हम को कहते हैं ।) 

बादशाह के पास सियासतदानों की भरमार थी, उसे खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना लिया। 
चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के मुताल्लिक़ पूछा, 
उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।"

बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से साईस को बुला कर दरियाफ्त किया..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है। 

बादशाह ने अपने मसूल को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?" 
 
""उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।"""

बादशाह उसकी फरासत से बहुत मुतास्सिर हुआ, उसने मसूल के घर अनाज ,घी, भुने दुंबे, और परिंदों का आला गोश्त बतौर इनाम भिजवाया। 

और उसे मलिका के महल में तैनात कर दिया। 
चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तरीके तो मलिका जैसे हैं लेकिन शहज़ादी नहीं हैं ।"
बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये हैं,  कि आपके वालिद ने मेरे खाविंद से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपकी बादशाहत से करीबी ताल्लुक़ात क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"

बादशाह ने अपने मुसाहिब से पूछा "तुम को कैसे इल्म हुआ ?"

""उसने कहा, "उसका खादिमों के साथ सुलूक जाहिलों से भी बदतर हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक मुलाहजा एक अदब होता हैं, जो शहजादी में बिल्कुल नहीं । """

बादशाह फिर उसकी फरासत से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे मुतय्यन कर दिया। 

कुछ वक्त गुज़रा, मुसाहिब को बुलाया,अपने बारे में दरियाफ्त किया ।

मुसाहिब ने कहा "जान की अमान ।"

बादशाह ने वादा किया । 

उसने कहा, "न तो आप बादशाह ज़ादे हो न आपका चलन बादशाहों वाला है।"

बादशाह को ताव आया, मगर जान की अमान दे चुका था, सीधा अपनी वालिदा के महल पहुंचा ।

वालिदा ने कहा, 
"ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे लेकर हम ने पाला ।"

बादशाह ने मुसाहिब को बुलाया और पूछा , बता, "तुझे कैसे इल्म हुआ ????"

उसने कहा "बादशाह जब किसी को "इनाम ओ इकराम" दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं....लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें इनायत करते हैं...ये असलूब बादशाह ज़ादे का नही,  किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।" 

किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी मुल्लम्मा हैं । 
इंसान की असलियत, उस के खून की किस्म उसके व्यवहार, 
उसकी नियत से होती हैं...

*तब चाय बेचने बाले की सोच, पकौडें बेचने से ऊपर नही उठ सकती,

**इंसान की हैसियत बदल जाती है,
पर समझ और औकात नहीं...

Wednesday, February 7, 2018

आपकी बेटी

एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा"आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी"।
पति-अगर हमारा लड़का होता है तो मैं उसे गणित पढाऊगा,हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।
पत्नी -"अगर लड़की हुई तो "?
पति-अगर हमारी लड़की होगी तो
मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत
ही नही होगी क्योंकि ,
उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।
 एक तरह से वो मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी चाहे मैं उसके लिए
कुछ खास करू या ना करू। 
जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी। वो
हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी।यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।
 वो मेरे लिए संसार से लडेगी जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी।
पत्नी -कहने का मतलब है कि आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा।
पति- नहीं नहीं क्या पता मेरा बेटा
भी ऐसा ही करेगा पर वो सिखेगा।
परंतु बेटी इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है।
पत्नी - पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी।
पति- हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे। 
इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए।
बेटियाँ परी होती हैं ,!
जो सदा बिना
शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।

Sunday, February 4, 2018

श्रद्धा की लाज

एक राजा ने भगवान कृष्ण का एक मंदिर बनवाया
और पूजा के लिए एक पुजारी को लगा दिया. पुजारी बड़े भाव से
बिहारीजी की सेवा करने लगे. भगवान की पूजा-अर्चना और
सेवा-टहल करते पुजारी की उम्र बीत गई. राजा रोज एक फूलों की
माला सेवक के हाथ से भेजा करता था.पुजारी वह माला बिहारीजी
को पहना देते थे. जब राजा दर्शन करने आता तो पुजारी वह माला बिहारीजी के गले से उतारकर राजा को पहना देते थे. यह रोज का
नियम था. एक दिन राजा किसी वजह से मंदिर नहीं जा सका.
उसने एक सेवक से कहा- माला लेकर मंदिर जाओ. पुजारी से कहना
आज मैं नहीं आ पाउंगा. सेवक ने जाकर माला पुजारी को दे दी और
बता दिया कि आज महाराज का इंतजार न करें. सेवक वापस आ
गया. पुजारी ने माला बिहारीजी को पहना दी. फिर उन्हें विचार आया कि आज तक मैं अपने बिहारीजी की चढ़ी माला
राजा को ही पहनाता रहा. कभी ये सौभाग्य मुझे नहीं
मिला.जीवन का कोई भरोसा नहीं कब रूठ जाए. आज मेरे प्रभु ने
मुझ पर बड़ी कृपा की है. राजा आज आएंगे नहीं, तो क्यों न माला
मैं पहन लूं. यह सोचकर पुजारी ने बिहारीजी के गले से माला
उतारकर स्वयं पहन ली. इतने में सेवक आया और उसने बताया कि राजा की सवारी बस मंदिर में पहुंचने ही वाली है.यह सुनकर
पुजारी कांप गए. उन्होंने सोचा अगर राजा ने माला मेरे गले में देख
ली तो मुझ पर क्रोधित होंगे. इस भय से उन्होंने अपने गले से
माला उतारकर बिहारीजी को फिर से पहना दी. जैसे ही राजा
दर्शन को आया तो पुजारी ने नियम अुसार फिर से वह माला
उतार कर राजा के गले में पहना दी. माला पहना रहे थे तभी राजा को माला में एक सफ़ेद बाल दिखा.राजा को सारा माजरा समझ गया
कि पुजारी ने माला स्वयं पहन ली थी और फिर निकालकर
वापस डाल दी होगी. पुजारी ऐसाछल करता है, यह सोचकर राजा
को बहुत गुस्सा आया. उसने पुजारी जी से पूछा- पुजारीजी यह
सफ़ेद बाल किसका है.? पुजारी को लगा कि अगर सच बोलता हूं
तो राजा दंड दे देंगे इसलिए जान छुड़ाने के लिए पुजारी ने कहा- महाराज यहसफ़ेद बाल तो बिहारीजी का है. अब तो राजा गुस्से
से आग- बबूला हो गया कि ये पुजारी झूठ पर झूठ बोले जा रहा
है.भला बिहारीजी के बाल भी कहीं सफ़ेद होते हैं. राजा ने कहा-
पुजारी अगर यह सफेद बाल बिहारीजी का है तो सुबह शृंगार के
समय मैं आउंगा और देखूंगा कि बिहारीजी के बाल सफ़ेद है या
काले. अगर बिहारीजी के बाल काले निकले तो आपको फांसी हो जाएगी. राजा हुक्म सुनाकर चला गया.अब पुजारी रोकर
बिहारीजी से विनती करने लगे- प्रभु मैं जानता हूं आपके
सम्मुख मैंने झूठ बोलने का अपराध किया. अपने गले में डाली
माला पुनः आपको पहना दी. आपकी सेवा करते-करते वृद्ध हो
गया. यह लालसा ही रही कि कभी आपको चढ़ी माला पहनने का
सौभाग्य मिले. इसी लोभ में यह सब अपराध हुआ. मेरे ठाकुरजी पहली बार यह लोभ हुआ और ऐसी विपत्ति आ पड़ी है. मेरे
नाथ अब नहींहोगा ऐसा अपराध. अब आप ही बचाइए नहीं तो
कल सुबह मुझे फाँसी पर चढा दिया जाएगा. पुजारी सारी रात रोते
रहे. सुबह होते ही राजा मंदिर में आ गया. उसने कहा कि आज
प्रभु का शृंगार वह स्वयं करेगा. इतना कहकर राजा ने जैसे ही मुकुट
हटाया तो हैरान रह गया. बिहारीजी के सारे बाल सफ़ेद थे. राजा को लगा, पुजारी ने जान बचाने के लिए बिहारीजी के बाल रंग
दिए होंगे. गुस्से से तमतमाते हुए उसने बाल की जांच करनी
चाही. बाल असली हैं या नकली यब समझने के लिए उसने जैसे
ही बिहारी जी के बाल तोडे, बिहारीजी के सिर से खून
कीधार बहने लगी. राजा ने प्रभु के चरण पकड़ लिए और क्षमा
मांगने लगा. बिहारीजी की मूर्ति से आवाज आई- राजा तुमने आज तक मुझे केवल मूर्ति ही समझा इसलिए आज से मैं तुम्हारे
लिए मूर्ति ही हूँ. पुजारीजी मुझे साक्षात भगवान् समझते हैं.
उनकी श्रद्धा की लाज रखने के लिए आज मुझे अपने बाल सफेद
करने पड़े व रक्त की धार भी बहानी पड़ी तुझे समझाने के लिए.

 कहते हैं- समझो तो देव नहीं तो पत्थर.श्रद्धा हो तो उन्हीं पत्थरों में भगवान सप्राण
होकर भक्त से मिलने आ जाएंगे ।।

Wednesday, January 31, 2018

व्यस्त रहिये, स्वस्थ रहिये

एक दिन एक कुत्ता 🐕 जंगल में रास्ता खो गया..

तभी उसने देखा, एक शेर 🦁 उसकी तरफ आ रहा है..

कुत्ते की सांस रूक गयी..
"आज तो काम तमाम मेरा..!" 

He thought, & applied A lesson of
MBA..

फिर उसने सामने कुछ सूखी हड्डियाँ ☠ पड़ी देखी..

वो आते हुए शेर की तरफ पीठ कर के बैठ गया..

और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा,
और जोर जोर से बोलने लगा..

 "वाह ! शेर को खाने का मज़ा ही कुछ और है..
एक और मिल जाए तो पूरी दावत हो जायेगी !"

और उसने जोर से डकार मारी..
इस बार शेर सोच में पड़ गया..

उसने सोचा-
"ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है ! जान बचा कर भागने मे ही भलाइ है !"

और शेर वहां से जान बचा के भाग गया..

पेड़ पर बैठा एक बन्दर 🐒 यह सब तमाशा देख रहा था..

उसने सोचा यह अच्छा मौका है,
शेर को सारी कहानी बता देता हूँ ..

शेर से दोस्ती भी हो जायेगी,
और उससे ज़िन्दगी भर के लिए जान का खतरा भी दूर हो जायेगा.. 

वो फटाफट शेर के पीछे भागा..

कुत्ते ने बन्दर को जाते हुए देख लिया और समझ गया की कोई लोचा है..

उधर बन्दर ने शेर को सारी कहानी बता दी, की कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ बनाया है..

शेर जोर से दहाडा -
"चल मेरे साथ, अभी उसकी लीला ख़तम करता हूँ".. 

और बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ चल दिया..

Can you imagine the quick "management" by the DOG...???

कुत्ते ने शेर को आते देखा तो एक बार फिर उसके आगे जान का संकट आ गया,

मगर फिर हिम्मत कर कुत्ता उसकी तरफ पीठ करके बैठ गया l

He applied Another lesson of MBA ..

और जोर जोर से बोलने लगा..

"इस बन्दर को भेजे 1 घंटा हो गया..
साला एक शेर को फंसा कर नहीं ला सकता !"

यह सुनते ही शेर ने बंदर को वही पटका और वापस पिछे भाग गया ।

*शिक्षा 1:- मुश्किल समय में अपना आत्मविश्वास कभी नहीं खोएं*

*शिक्षा 2:- हार्ड वर्क के बजाय स्मार्ट वर्क ही करें क्योंकि यहीं जीवन की असली सफलता मिलेगी*

*शिक्षा 3 :- आपका ऊर्जा, समय और ध्यान भटकाने वाले कई बन्दर आपके आस पास    हैं, उन्हें पहचानिए और उनसे सावधान रहिये*

Saturday, January 27, 2018

माँ का धैर्य

अक्सर माँ डिब्बे में भरती रहती थी  कंभी मठरियां , मैदे के नमकीन  तले हुए काजू ..और कंभी मूंगफली  तो कभी कंभी बेसन के लड्डू 
आहा ..कंभी खट्टे मीठे लेमनचूस  थोड़ी थोड़ी कटोरियों में  जब सारे भाई बहनों को  एक सा मिलता  न कम न ज्यादा तो अक्सर यही  ख्याल आता  माँ ..ना सब नाप कर देती हैं काश मेरी कटोरी में थोड़ा ज्यादा आता  फिर सवाल कुलबुलाता  माँ होना कितना अच्छा है ना 
ऊँचा कद लंबे हाथ  ना किसी से पूछना ना किसी से माँगना रसोई की अलमारी खोलना कितना है आसान  जब मर्जी खोलो और खा लो 
लेकिन रह रह सवाल कौंधता  पर माँ को तो कभी खाते नहीं देखा ओह शायद  तब खाती होगी जब हम स्कूल चले जाते होगे  या फिर रात में हमारे सोने के बाद  पर ये भी लगता ये डिब्बे तो वैसे ही रहते  कंभी कम नही होते  छुप छुप कर भी देखा  माँ ने डिब्बे जमाये करीने से 
बिन खाये मठरी नमकीन या लडडू  ओह्ह  अब समझी शायद माँ को ये सब है नही पसन्द  एक दिन माँ को पूछा माँ तुम्हें लड्डू नही पसन्द  माँ हँसी और बोली  बहुत है पसन्द और खट्टी मीठी लेमनचूस भी  अब माँ बनी पहेली  अब जो सवाल मन मन में था पूछा मैंने 
माँ तुमको जब है सब पसन्द  तो क्यों नही खाती  क्या डरती हो पापा से  माँ हँसी पगली  मैं भी खूब खाती थी जब मै बेटी थी  अब माँ हूँ जब तुम खाते हो तब मेरा पेट भरता है  अच्छा छोडो जाओ खेलो  जब तुम बड़ी हो जाओगी सब समझ जाओगी  आज इतने अरसे बाद 
बच्चे  की पसन्द की चीजें भर रही हूँ  सुन्दर खूबसूरत डिब्बों में  मन हीं मन बचपन याद कर रही सच कहा था माँ ने   माँ बनकर हीं जानोगी  माँ का धैर्य माँ का प्यार माँ का संयम 
सच है माँ की भूख बच्चे संग जुड़ी है
आज मैं माँ हूँ 

Wednesday, January 24, 2018

हमारे कर्म

एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।

एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।

दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।

और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता।

एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।

अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?

वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।

उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था। आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।

अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।

फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं।

वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।

फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था, और अपनी समस्या सुनाई।

तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।

अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है...?

तो चलिये हम आपको बताते है इस कथा का सार।

जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते है।

सब से पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर' हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।

दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी' जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।

और तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म' जो सदा ही साथ जाते है।

अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता। जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।

दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है। तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।

और तीसरा मित्र आपके कर्म है।

कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।

अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी

Sunday, January 21, 2018

देने वाला कौन

आज हमने भंडारे में भोजन करवाया। आज हमने ये बांटा, आज हमने वो दान किया...
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 हम अक्सर ऐसा कहते और मानते हैं। इसी से सम्बंधित एक अविस्मरणीय कथा सुनिए...
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एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।
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एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
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कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला। 
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।"
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समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा---
"ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।"
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अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया। 
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लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। 
उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
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लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। 
यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
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कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---"ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।"
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साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया। 
इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।"
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कथासार- *किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो  ये मैंने दिया*!
दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं, तो कहते हैं मैंने दिलाया । 
वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निमित्त मात्र बनाया हैं। ताकी उन तक उनकी जरूरते पहुचाने के लिये। तो निमित्त होने का घमंड कैसा ??
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दान किए से जाए दुःख, दूर होएं सब पाप।।
नाथ आकर द्वार पे, दूर करें संताप।।

Friday, January 19, 2018

नदी में..."धक्का

एक कम्पनी का बॉस अपने स्टॉफ के कामकाज से इतना खुश हुआ कि, एक विदेशी टूर परिवार सहित सबको गिफ्ट किया...!
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परिवार के सदस्यों के साथ, जब स्टॉफ नदी के मझधार में था.....तभी बॉस ने कहा कि........जो सदस्य, मगरमच्छों से भरी इस नदी को तैर कर पर करेगा उसे 5 करोड़ का ईनाम मिलेगा......!!
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और हां यदि जान चली गई तो, आश्रितों को 2 करोड़ दीये जायेंगे.....!!!

सबको सांप सूंघ गया,
सभी के हाथ पांव सुन्न हो गए,
गला सूखा और बोलती बंद थी,
सब एक दूसरे की तरफ देख रहे थे...???
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तभी यह क्या....
एक पुरुष झटके से नदी में कूदा और फटाफट,
तैरते हुए नदी की धार को पार कर, किनारे जा लगा...!!
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सभी हक्के-बक्के थे...!!
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सभी उसकी हिम्मत की दाद दे रहे थे, तथा उसे करोड़पति बनने की बधाई दे रहे थे, कोई भविष्य का प्लान पूछ रहा था, तो कोई जानना चाह रहा था, कि वह अब कम्पनी की नौकरी करेगा या नहीं....??
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पर उसकी पत्नी खामोश थी.....!!
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उधर नदी पार करने वाले की सांस, 
धीमी होने का नाम ही नहीं ले रही थी....!!
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वह जानना चाह रहा था कि आखिर उसे
नाव से नदी में..."धक्का"....किसने दिया....???
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और जब धक्का देने वाले के बारे में पता चला...!
तभी से यह कहावत बनी कि..... 

"हर पुरुष की कामयाबी की पीछे महिला का हाथ होता है"

Wednesday, January 17, 2018

बेटी तो अनमोल भेंट

एक दिन की बात है लड़की की माँ खूब परेशान होकर अपने पति को बोली की एक तो हमारा एक समय का खाना पूरा नहीं होता और बेटी दिन ब दिन बड़ी होती जा रही है गरीबी की हालत में इसकी शादी कैसे करेंगे ? बाप भी विचार में पड़ गया दोनों ने दिल पर पत्थर रख कर एक फैसला किया की कल बेटी को मार कर गाड़ देंगे . दुसरे दिन का सूरज निकला , माँ ने लड़की को खूब लाड प्यार किया , अच्छे से नहलाया , बार - बार उसका सर चूमने लगी .  यह सब देख कर लड़की बोली : माँ मुझे कही दूर भेज रहे हो क्या ?  वर्ना आज तक आपने मुझे ऐसे कभी प्यार नहीं किया , माँ केवल चुप रही और रोने लगी , तभी उसका बाप हाथ में फावड़ा और चाकू लेकर आया , माँ ने लड़की को सीने से लगाकर बाप के साथ रवाना कर दिया . रास्ते में चलते - चलते बाप के पैर में कांटा चुभ गया , बाप एक दम से नीचे बैठ गया ,  बेटी से देखा नहीं गया उसने तुरंत कांटा निकालकर फटी चुनरी का एक हिस्सा पैर पर बांध दिया .
बाप बेटी दोनों एक जंगल में पहुचे बाप ने फावड़ा लेकर एक गढ्ढा खोदने लगा बेटी सामने बैठे - बेठे देख रही थी , थोड़ी देर बाद गर्मी के कारण बाप को पसीना आने लगा . बेटी बाप के पास गयी और पसीना पोछने के लिए अपनी चुनरी दी . बाप ने धक्का देकर बोला तू दूर जाकर बैठ।थोड़ी देर बाद जब बाप गढ्ढा खोदते - खोदते थक गया , बेटी दूर से बैठे -बैठे देख रही थी, जब उसको लगा की पिताजी शायद थक गये तो पास आकर बोली पिताजी आप थक गये
है  लाओ फावड़ा में खोद देती हु आप थोडा आराम कर लो . मुझसे आप की तकलीफ नहीं देखी जाती . यह सुनकर बाप ने अपनी बेटी को गले लगा लिया, उसकी आँखों में आंसू की नदियां बहने लगी , उसका दिल पसीज गया ,  बाप बोला : बेटा मुझे माफ़ कर दे , यह गढ्ढा में तेरे लिए ही खोद रहा था . और तू मेरी चिंता करती है , अब जो होगा सो होगा तू हमेशा मेरे कलेजा का टुकड़ा बन कर रहेगी मैं खूब मेहनत करूँगा और तेरी शादी धूम धाम से करूँगा -

सारांश : बेटी तो भगवान की अनमोल भेंट
है ,इसलिए कहते हैं बेटा भाग्य से मिलता है और बेटी सौभाग्य से।।

Sunday, January 14, 2018

कमियो को नजरन्दाज कर देना चाहिए

एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की. शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी. वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था. लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग (skin Disease) से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी. खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी.

इस बीच एक दिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा. काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका accident हो गया. Accident में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी. लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही.

समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी. वह बदसूरत हो गई. लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा.

एक दिन उस लड़की की मौत हो गई. पति अब अकेला हो गया था. वह बहुत दु:खी था. वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था. उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा. तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा, “अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे? इतने साल तो तुम्हारी पत्नि तुम्हारी मदद किया करती थी.”

पति ने जवाब दिया, “दोस्त! मैं अंधा नहीं हूँ. मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था. क्योंकि यदि मेरी पत्नि को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ, तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता. 
इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया. वह बहुत अच्छी पत्नि थी. 
मैं बस उसे खुश रखना चाहता था.”
..
...
सीख--खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियो के प्रति आखे वंद कर लेनी चाहिए..
और उन कमियो को नजरन्दाज कर देना चाहिए ||||

Thursday, January 11, 2018

राम नाम की महिमा

क संत महात्मा श्यामदासजी रात्रि के समय में ‘श्रीराम’ नाम का अजपाजाप करते हुए अपनी मस्ती में चले जा रहे थे। जाप करते हुए वे एक गहन जंगल से गुज़र रहे थे।
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विरक्त होने के कारण वे महात्मा बार-बार देशाटन करते रहते थे। वे किसी एक स्थान में अधिक समय नहीं रहते थे। वे इश्वर नाम प्रेमी थे। इस लिये दिन-रात उनके मुख से राम नाम जप चलता रहता था। स्वयं राम नाम का अजपाजाप करते तथा औरों को भी उसी मार्ग पर चलाते।
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श्यामदासजी गहन जंगल में मार्ग भूल गये थे पर अपनी मस्ती में चले जा रहे थे कि जहाँ राम ले चले वहाँ….। दूर अँधेरे के बीच में बहुत सी दीपमालाएँ प्रकाशित थीं। महात्मा जी उसी दिशा की ओर चलने लगे।
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निकट पहुँचते ही देखा कि वटवृक्ष के पास अनेक प्रकार के वाद्ययंत्र बज रहे हैं, नाच -गान और शराब की महफ़िल जमी है। कई स्त्री पुरुष साथ में नाचते-कूदते-हँसते तथा औरों को हँसा रहे हैं। उन्हें महसूस हुआ कि वे मनुष्य नहीं प्रेतात्मा हैं।
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श्यामदासजी को देखकर एक प्रेत ने उनका हाथ पकड़कर कहाः ओ मनुष्य ! हमारे राजा तुझे बुलाते हैं, चल। वे मस्तभाव से राजा के पास गये जो सिंहासन पर बैठा था। वहाँ राजा के इर्द-गिर्द कुछ प्रेत खड़े थे।
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प्रेतराज ने कहाः तुम इस ओर क्यों आये ? हमारी मंडली आज मदमस्त हुई है, इस बात का तुमने विचार नहीं किया ? तुम्हें मौत का डर नहीं है ?
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अट्टहास करते हुए महात्मा श्यामदासजी बोलेः मौत का डर ? और मुझे ? राजन् ! जिसे जीने का मोह हो उसे मौत का डर होता हैं। हम साधु लोग तो मौत को आनंद का विषय मानते हैं। यह तो देहपरिवर्तन हैं जो प्रारब्धकर्म के बिना किसी से हो नहीं सकता।
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प्रेतराजः तुम जानते हो हम कौन हैं ?
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महात्माजीः मैं अनुमान करता हूँ कि आप प्रेतात्मा हो।
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प्रेतराजः तुम जानते हो, लोग समाज हमारे नाम से काँपता हैं।
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महात्माजीः प्रेतराज ! मुझे मनुष्य में गिनने की ग़लती मत करना। हम ज़िन्दा दिखते हुए भी जीने की इच्छा से रहित, मृततुल्य हैं।
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यदि ज़िन्दा मानो तो भी आप हमें मार नहीं सकते। जीवन-मरण कर्माधीन हैं। मैं एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?
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महात्मा की निर्भयता देखकर प्रेतों के राजा को आश्चर्य हुआ कि प्रेत का नाम सुनते ही मर जाने वाले मनुष्यों में एक इतनी निर्भयता से बात कर रहा हैं। सचमुच, ऐसे मनुष्य से बात करने में कोई हरकत नहीं।
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प्रेतराज बोलाः पूछो, क्या प्रश्न है ?
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महात्माजीः प्रेतराज ! आज यहाँ आनंदोत्सव क्यों मनाया जा रहा है ?
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प्रेतराजः मेरी इकलौती कन्या, योग्य पति न मिलने के कारण अब तक कुआँरी हैं। लेकिन अब योग्य जमाई मिलने की संभावना हैं। कल उसकी शादी हैं इसलिए यह उत्सव मनाया जा रहा हैं।
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महात्मा (हँसते हुए): तुम्हारा जमाई कहाँ हैं ? मैं उसे देखना चाहता हूँ।”
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प्रेतराजः जीने की इच्छा के मोह के त्याग करने वाले महात्मा ! अभी तो वह हमारे पद (प्रेतयोनी) को प्राप्त नहीं हुआ हैं। वह इस जंगल के किनारे एक गाँव के श्रीमंत (धनवान) का पुत्र है।
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महादुराचारी होने के कारण वह इसवक्त भयानक रोग से पीड़ित है। कल संध्या के पहले उसकी मौत होगी। फिर उसकी शादी मेरी कन्या से होगी। इस लिये रात भर गीत-नृत्य और मद्यपान करके हम आनंदोत्सव मनायेंगे।
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श्यामदासजी वहाँ से विदा होकर श्रीराम नाम का अजपाजाप करते हुए जंगल के किनारे के गाँव में पहुँचे। उस समय सुबह हो चुकी थी। एक ग्रामीण से महात्मा नें पूछा "इस गाँव में कोई श्रीमान् का बेटा बीमार हैं ?"
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ग्रामीणः हाँ, महाराज ! नवलशा सेठ का बेटा सांकलचंद एक वर्ष से रोगग्रस्त हैं। बहुत उपचार किये पर उसका रोग ठीक नहीं होता।
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महात्मा नवलशा सेठ के घर पहुंचे सांकलचंद की हालत गंभीर थी। अन्तिम घड़ियाँ थीं फिर भी महात्मा को देखकर माता-पिता को आशा की किरण दिखी। उन्होंने महात्मा का स्वागत किया।
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सेठपुत्र के पलंग के निकट आकर महात्मा रामनाम की माला जपने लगे। दोपहर होते-होते लोगों का आना-जाना बढ़ने लगा।
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महात्मा: क्यों, सांकलचंद ! अब तो ठीक हो ?
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सांकलचंद ने आँखें खोलते ही अपने सामने एक प्रतापी संत को देखा तो रो पड़ा। बोला "बापजी ! आप मेरा अंत सुधारने के लिए पधारे हो।
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मैंने बहुत पाप किये हैं। भगवान के दरबार में क्या मुँह दिखाऊँगा ? फिर भी आप जैसे संत के दर्शन हुए हैं, यह मेरे लिए शुभ संकेत हैं।" इतना बोलते ही उसकी साँस फूलने लगी, वह खाँसने लगा।
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"बेटा ! निराश न हो भगवान राम पतित पावन है। तेरी यह अन्तिम घड़ी है। अब काल से डरने का कोई कारण नहीं। ख़ूब शांति से चित्तवृत्ति के तमाम वेग को रोककर श्रीराम नाम के जप में मन को लगा दे। अजपाजाप में लग जा। शास्त्र कहते हैं-
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चरितम् रघुनाथस्य शतकोटिम् प्रविस्तरम्।
एकैकम् अक्षरम् पूण्या महापातक नाशनम्।।
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अर्थातः सौ करोड़ शब्दों में भगवान राम के गुण गाये गये हैं। उसका एक-एक अक्षर ब्रह्महत्या आदि महापापों का नाश करने में समर्थ हैं।
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दिन ढलते ही सांकलचंद की बीमारी बढ़ने लगी। वैद्य-हकीम बुलाये गये। हीरा भस्म आदि क़ीमती औषधियाँ दी गयीं। किंतु अंतिम समय आ गया यह जानकर महात्माजी ने थोड़ा नीचे झुककर उसके कान में रामनाम लेने की याद दिलायी।
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राम बोलते ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये। लोगों ने रोना शुरु कर दिया। शमशान यात्रा की तैयारियाँ होने लगीं। मौक़ा पाकर महात्माजी वहाँ से चल दिये।
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नदी तट पर आकर स्नान करके नामस्मरण करते हुए वहाँ से रवाना हुए। शाम ढल चुकी थी। फिर वे मध्यरात्रि के समय जंगल में उसी वटवृक्ष के पास पहुँचे। प्रेत समाज उपस्थित था।
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प्रेतराज सिंहासन पर हताश होकर बैठे थे। आज गीत, नृत्य, हास्य कुछ न था। चारों ओर करुण आक्रंद हो रहा था, सब प्रेत रो रहे थे।
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महात्मा ने पूछा "प्रेतराज ! कल तो यहाँ आनंदोत्सव था, आज शोक-समुद्र लहरा रहा हैं। क्या कुछ अहित हुआ हैं ?"
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प्रेतराजः हाँ भाई ! इसीलिए रो रहे हैं। हमारा सत्यानाश हो गया। मेरी बेटी की आज शादी होने वाली थी। अब वह कुँआरी रह जायेगी
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महात्मा: प्रेतराज ! तुम्हारा जमाई तो आज मर गया हैं। फिर तुम्हारी बेटी कुँआरी क्यों रही ?
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प्रेतराज ने चिढ़कर कहाः तेरे पाप से। मैं ही मूर्ख हूँ कि मैंने कल तुझे सब बता दिया। तूने हमारा सत्यानाश कर दिया।
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महात्मा ने नम्रभाव से कहाः मैंने आपका अहित किया यह मुझे समझ में नहीं आता। क्षमा करना, मुझे मेरी भूल बताओगे तो मैं दुबारा नहीं करूँगा।
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प्रेतराज ने जलते हृदय से कहाः यहाँ से जाकर तूने मरने वाले को नाम स्मरण का मार्ग बताया और अंत समय भी राम नाम कहलवाया। इससे उसका उद्धार हो गया और मेरी बेटी कुँआरी रह गयी।
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महात्माजीः क्या ? सिर्फ़ एक बार नाम जप लेने से वह प्रेतयोनि से छूट गया ? आप सच कहते हो ?
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प्रेतराजः हाँ भाई ! जो मनुष्य राम नामजप करता हैं वह राम नामजप के प्रताप से कभी हमारी योनि को प्राप्त नहीं होता। भगवन्नाम जप में नरकोद्धारिणी शक्ति हैं।
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प्रेत के द्वारा रामनाम का यह प्रताप सुनकर महात्माजी प्रेमाश्रु बहाते हुए भाव समाधि में लीन हो गये। उनकी आँखे खुलीं तब वहाँ प्रेत-समाज नहीं था, बाल सूर्य की सुनहरी किरणें वटवृक्ष को शोभायमान कर रही थीं।

Thursday, January 4, 2018

प्रभू का पत्र

मेरे प्रिय...
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात
करोगे। तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे। लेकिन तुम फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!

फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे। पर तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!!

फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।

मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात
ही नहीं की...

एक मौका ऐसा भी आया जब तुम
बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया।

दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-
उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये। जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे।
तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गये।

मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं...

तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताऊँ...

तुम्हारी कुछ सुनूं...

तुम्हे कुछ सुनाऊँ।

कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय
ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।

मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।

हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे।

पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है
कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते
भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ।

खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये!!!

ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम
में आस्था है। आखिरकार मेरा दूसरा नाम...आस्था और विश्वास ही तो है।
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तुम्हारा ईश्वर