Sunday, January 8, 2017

अहंकार युक्त जीवन

एक पति-पत्नी में तकरार हो गयी ---
पति कह रहा था :
"मैं नवाब हूँ इस शहर का लोग इसलिए मेरी इज्जत करते
है और तुम्हारी इज्जत मेरी वजह से है।"
पत्नी कह रही थी :
"आपकी इज्जत मेरी वजह से है। मैं चाहूँ तो आपकी
इज्जत एक मिनट में बिगाड़ भी सकती हूँ और बना भी सकती हूँ।"
नवाब को तैश आ गया।
नवाब बोला :" ठीक है दिखाओ मेरी इज्जत खराब
करके।"
बात आई गई हो गयी।
नवाब के घर शाम को महफ़िल जमी थी दोस्तों की हंसी मजाक हो रहा था कि
अचानक नवाब को अपने बेटे के रोने की आवाज आई ।
वो जोर जोर से रो रहा था और नवाब की पत्नी बुरी तरह उसे डांट रही थी।
नवाब ने जोर से आवाज देकर पूछा कि क्या हुआ बेगम क्यों डाँट रही हो?
तो बेगम ने अंदर से कहा कि देखिये न---आपका बेटा खिचड़ी मांग रहा है और जब भर पेट खा चुका है।
नवाब ने कहा कि दे दो थोड़ी सी और बेगम ने कहा घर में और भी तो लोग है सारी इसी को कैसे दे दूँ?
पूरी महफ़िल शांत हो गयी ।
लोग कानाफूसी करने लगे कि कैसा नवाब है ?
जरा सी खिचड़ी के लिए इसके घर में झगड़ा होता है।
नवाब की पगड़ी उछल गई।
सभी लोग चुपचाप उठ कर चले
गए घर में अशांति हो रही है देख कर।
नवाब उठ कर अपनी बेगम के पास आया और बोला कि मैं मान गया तुमने आज मेरी इज्जत तो उतार दी लोग भी कैसी-कैसी बातें कर रहे थे।
अब तुम यही इज्जत वापस लाकर दिखाओ।
बेगम बोली :"इसमे कौन सी बड़ी बात है आज जो लोगमहफ़िल में थे उन्हें आप फिर किसी बहाने से निमंत्रण दीजिये।"
ऐसे ही नवाब ने सबको बुलाया बैठक और मौज मस्ती के बहाने।
सभी मित्रगण बैठे थे । हंसी मजाक चल रहा था
कि फिर वही नवाब के बेटे की रोने की आवाज आई ---
नवाब ने आवाज देकर पूछा :
बेगम क्या हुआ क्यों रो रहा है हमारा बेटा ?" बेगम ने कहा फिर वही खिचड़ी खाने की जिद्द कर रहा है।"
लोग फिर एक दूसरे का मुंह देखने लगे कि यार एक मामूली खिचड़ी के लिए इस नवाब के घर पर रोज झगड़ा होता है।
नवाब मुस्कुराते हुए बोला "अच्छा बेगम तुम एक काम करो तुम खिचड़ी यहाँ लेकर आओ .. हम खुद अपने हाथों से अपने बेटे को देंगे ।
वो मान जाएगा और सभी मेहमानो को भी खिचड़ी खिलाओ। "
बेगम ने आवाज दी '' जी नवाब साहब''
बेगम बैठक खाने में आ गई पीछे नौकर खाने का सामान सर पर रख आ रहा था। हंडिया नीचे रखी और मेहमानो को भी देना शुरू किया अपने बेटे के साथ।
सारे नवाब के दोस्त हैरान -जो परोसा जा रहा था वो चावल की खिचड़ी तो कत्तई नहीं थी।
उसमे खजूर-पिस्ता-काजू बादाम-किशमिश -गरी इत्यादि से मिला कर बनाया हुआ सुस्वादिष्ट व्यंजन था।
अब लोग मन ही मन सोच रहे थे कि ये खिचड़ी है?
नवाब के घर इसे खिचड़ी बोलते हैं तो -मावा-मिठाई किसे बोलते होंगे ?
नवाब की इज्जत को चार-चाँद लग गए ।
लोग नवाब की रईसी की बातें करने लगे।
नवाब ने बेगम के सामने हाथ
जोड़े और कहा "मान गया मैं कि घर की औरत इज्जत बना
भी सकती है बिगाड़ भी सकती है---
और जिस व्यक्ति को
घर में इज्जत हासिल नहीं उसे दुनियाँ मे कहीं इज्जत नहीं
मिलती।"
सृष्टि मे यह सिद्धांत हर जगह लागू हो जाएगा ।
अहंकार युक्त जीवन में सृष्टि जब चाहे हमारे अहंकार की
इज्जत उतार सकती है और नम्रता युक्त जीवन मे इज्ज़त
बना सकती है ...!!

Saturday, January 7, 2017

दूध का कर्ज

कसाई गाय काट रहा था और गाय हँस रही थी ये सब देख के कसाई बोला"मै तुम्हे मार रहा हू और तुम मुझपर हँस क्यो रही हो...?" गाय बोलीः जिन्दगी भर मैने घास के सिवा कुछ नही खाया फिर भी मेरी मौत इतनी दर्दनाक है. तो हे इंसान जरा सोच तु मुझे मार के खायेगा तो तेरा अंत कैसा होगा...?. दूध पिला कर   मैंने तुमको बड़ा किया...  अपने बच्चे से भी छीना   पर मैंने तुमको दूध दिया  रूखी सूखी खाती थी मैं, कभी न किसी को सताती थी मैं...  कोने में पड़ जाती थी मैं, दूध नहीं दे सकती मैं, अब तो गोबर से काम तो आती थी मैं,मेरे उपलों की आग से तूने,  भोजन अपना पकाया था.  गोबर गैस से रोशन कर के,  तेरा घर उजलाया था.  क्यों मुझको बेच रहा रे  उस कसाई के हाथों में...??  पड़ी रहूंगी इक कोने में,  मत कर लालच माँ हूँ मैं..  मैं हूँ तेरे कृष्ण की प्यारी, 
वह कहता था जग से न्यारी...  उसकी बंसी की धुन पर मैं,   भूली थी यह दुनिया सारी.. . मत कर बेटा तू  यह पाप,  अपनी माँ को न बेच आप...  रूखी सूखी खा लूँगी मैं  किसी को नहीं सताऊँगी मैं   तेरे काम ही आई थी मैं  तेरे काम ही आउंगी मैं..

Friday, January 6, 2017

बीते हुए दिन

हमारे बचपन में कपड़े तीन टाइप के ही होते थे ••• स्कूल का ••• घर का ••• और किसी खास मौके का ••• अब तो ••• कैज़ुअल, फॉर्मल, नॉर्मल, स्लीप वियर, स्पोर्ट वियर, पार्टी वियर, स्विमिंग, जोगिंग, संगीत ड्रेस, फलाना - ढिमका ••• जिंदगी आसान बनाने चले थे ••• पर वह कपड़ों की तरह कॉम्प्लिकेटेड हो गयी है •••  बचपन में पैसा जरूर कम था पर साला उस बचपन में दम था" "पास में महंगे से मंहगा मोबाइल है पर बचपन वाली गायब वो स्माईल है" "न गैलेक्सी, न वाडीलाल, न नैचुरल था, पर घर पर जमीं आइसक्रीम का मजा ही कुछ ओर था" अपनी अपनी बाईक और  कारों में घूम रहें हैं हम पर किराये की उस साईकिल का मजा ही कुछ और था "बचपन में पैसा जरूर कम था पर यारो उस बचपन में दम था *कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे* *हमारे भी जहाज.. चला करते थे।* *हवा में.. भी।* *पानी में.. भी।* *दो दुर्घटनाएं हुई।* *सब कुछ.. ख़त्म हो गया।* *पहली दुर्घटना जब क्लास में.. हवाई जहाज उड़ाया। टीचर के सिर से.. टकराया। स्कूल से.. निकलने की नौबत आ गई। बहुत फजीहत हुई। कसम दिलाई गई।  औऱ जहाज बनाना और.. उडाना सब छूट गया।
*दूसरी दुर्घटना*
बारिश के मौसम में, मां ने.. अठन्नी दी। चाय के लिए.. दूध लाना था।कोई मेहमान आया था। हमने अठन्नी.. गली की नाली में तैरते.. अपने जहाज में.. बिठा दी। तैरते जहाज के साथ.. हम शान से.. चल रहे थे। ठसक के साथ खुशी खुशी। अचानक.. तेज बहाब आया। और.. जहाज.. डूब गया। साथ में.. अठन्नी भी डूब गई। ढूंढे से ना मिली। मेहमान बिना चाय पीये चले गये। फिर.. जमकर.. ठुकाई हुई। घंटे भर.. मुर्गा बनाया गया। औऱ हमारा.. पानी में जहाज तैराना भी.. बंद हो गया। आज जब.. प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें चलती हैं , तो.. उन दिनों की याद दिलाती हैं। वो भी क्या जमाना था ! और.. आज के जमाने में.. मेरे बेटी ने... पंद्रह हजार का मोबाइल गुमाया तो.. मां बोली ~ कोई बात नहीं ! पापा.. दूसरा दिला देंगे। हमें अठन्नी पर.. मिली सजा याद आ गई। फिर भी आलम यह है कि.. आज भी.. हमारे सर.. मां-बाप के चरणों में.. श्रद्धा से झुकते हैं। औऱ हमारे बच्चे.. 'यार पापा ! यार मम्मी ! कहकर.. बात करते हैं। हम प्रगतिशील से.. प्रगतिवान.. हो गये हैं। कोई लौटा दे.. मेरे बीते हुए दिन।।
 
माँ बाप की लाइफ गुजर जाती है *बेटे
की लाइफ बनाने में......*
और बेटा status_ रखता है---
" *My wife is my Life*"

Thursday, January 5, 2017

भगवान पर विश्वास

यह कहानी एक ऐसे पर्वतारोही की है जो सबसे ऊँचे पर्वत पर विजय पाना चाहता था।
कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद उसने अपना साहसिक अभियान शुरु किया। पर वह यह उपलब्धि किसी के साथ साझा नहीं करना चाहता था, अत: उसने अकेले ही चढ़ाई करने का निश्चय किया। उसने पर्वत पर चढ़ना आरंभ किया, जल्दी ही शाम ढलने लगी। पर वह विश्राम के लिए तम्बू में ठहरने की जगह अंधेरा होने तक चढ़ाई करता रहा। घने अंधकार के कारण वह कुछ भी देख नहीं पा रहा था। हाथ को हाथ भी सुझाई नहीं दे रहा था। चंद्रमा और तारे सब बादलों की चादर से ढके हुए थे। वह निरंतर चढ़ता हुआ पर्वत की चोटी से कुछ ही फुट के फासले पर था कि तभी अचानक उसका पैर फिसला और वह तेजी से नीचे की तरफ गिरने लगा। गिरते हुए उसे अपने जीवन के सभी अच्छे और बुरे दौर चलचित्र की तरह दिखाई देने लगे। उसे अपनी मृत्यु बहुत नजदीक लग रही थी, तभी उसकी कमर से बंधी रस्सी ने झटके से उसे रोक दिया। उसका शरीर केवल उस रस्सी के सहारे हवा में झूल रहा था। उसी क्षण वह जोर से चिल्लाया: ‘भगवान मेरी मदद करो!’ तभी अचानक एक गहरी आवाज आकाश में गूँजी:- तुम मुझ से क्या चाहते हो ?
पर्वतारोही बोला - भगवन् मेरी रक्षा कीजिए!
- क्या तुम्हें सच में विश्वास है कि मैं तुम्हारी रक्षा कर सकता हूँ ?
वह बोला - हाँ, भगवन् मुझे आप पर पूरा विश्वास है ।
- ठीक है, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है तो अपनी कमर से बंधी रस्सी काट दो.....
कुछ क्षण के लिए वहाँ एक चुप्पी सी छा गई और उस पर्वतारोही ने अपनी पूरी शक्ति से रस्सी को पकड़े रहने का निश्चय कर लिया।
अगले दिन बचाव दल को एक रस्सी के सहारे लटका हुआ एक पर्वतारोही का ठंड से जमा हुआ शव मिला । उसके हाथ रस्सी को मजबूती से थामे थे... और वह धरती से केवल 5 फुट की ऊँचाई पर था।
और आप? आप अपनी रस्सी से कितने जुड़े हुए हैं । क्या आप अपनी रस्सी को छोड़ेंगे?
भगवान पर विश्वास रखिए। कभी भी यह नहीं सोचिए कि वह आपको भूल गया है या उसने आपका साथ छोड़ दिया है ।
याद रखिए कि वह हमेशा आपको अपने हाथों में थामे हुए है।

Monday, January 2, 2017

नुकसान की पहचान

एक बनिए से लक्ष्मी जी रूठ गई ।जाते वक्त बोली मैं जा रही हूँ और मेरी जगह टोटा (नुकसान) आ रहा है, तैयार हो जाओ, लेकिन मै तुम्हे अंतिम भेंट जरूर देना चाहती हूँ। मांगो जो भी इच्छा हो।
बनिया बहुत समझदार था। उसने 🙏 विनती की कि,टोटा आए तो आने दो। लेकिन उससे कहना कि मेरे परिवार  में आपसी प्रेम बना रहे। बस मेरी यही इच्छा है।
लक्ष्मी जी ने तथास्तु कहा और चली गयी।
कुछ दिन के बाद :-
बनिए की सबसे छोटी बहू खिचड़ी बना रही थी। उसने नमक आदि डाला और अन्य काम करने लगी। तब दूसरे  लड़के की बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई।इसी प्रकार तीसरी, चौथी बहुएं आई और नमक डालकर चली गई। उनकी सास ने भी ऐसा किया ।
सबसे पहले बनिया आया। पहला निवाला मुहँ में लिया। तो देखा बहुत ज्यादा नमक है। लेकिन वह समझ गया टोटा (हानि) आ चुका है। चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया। इसके बाद बङे बेटे का नम्बर आया। पहला निवाला मुहँ में लिया और पूछा पिताजी ने खाना खा लिया। क्या कहा उन्होंने ?
सभी ने उत्तर दिया-" हाँ खा लिया, कुछ नही बोले।"
अब लड़के ने सोचा जब पिताजी ही कुछ नही बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ।
इस प्रकार घर के अन्य सदस्य एक -एक आए और पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए ।
रात को टोटा (हानि) हाथ जोड़कर  बनिए से कहने लगा -"मै जा रहा हूँ।"
बनिए ने पूछा- क्यों ?
तब टोटा (हानि ) कहता है, "आप लोग इतना सारा नमक खा गए लेकिन बिलकुल भी झगड़ा नही हुआ। मेरा यहाँ कोई काम नहीं।"
⭐झगड़ा, कमजोरी ,टोटा ,नुकसान की पहचान है।
जहाँ प्रेम है ,वहाँ लक्ष्मी का वास है। सदा प्यार -प्रेम बांटते रहे। छोटे बङे की कदर करे।
जो बङे हैं,वो बङे ही रहेंगे। चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई से बङी हो।

Wednesday, December 28, 2016

माँ के चरणों मे स्वर्ग

एक गाँव में 10, साल का लड़का अपनी माँ के साथ रहता था। माँ ने सोचा कल मेरा बेटा मेले में  जाएगा, उसके पास 10 रुपए तो हो, ये सोचकर माँ ने खेतो में काम करके शाम तक पैसे ले आई। बेटा स्कूल से आकर बोला खाना खाकर जल्दी सो जाता हूँ, कल मेले में जाना है। सुबह माँ से बोला - मैं नहाने जाता हूँ,नाश्ता तैयार रखना,
माँ ने रोटी बनाई, दूध अभी चूल्हे पर था..! माँ ने देखा बरतन पकडने के लिए कुछ नहीं है, उसने गर्म पतीला हाथ से उठा लिया, माँ का हाथ जल गया। बेटे ने गर्दन झुकाकर दूध रोटी खाई और मेले में चला गया। शाम को घर आया,तो माँ ने पूछा - मेले में क्या देखा,10 रुपए का कुछ खाया कि नहीं..!! बेटा बोला - माँ आँखें बंद कर,तेरे लिए कुछ लाया हूँ। माँ ने आँखें बंद की,तो बेटे ने उसके हाथ में गर्म बरतन उठाने के लिए लाई सांडसी रख दी। अब माँ तेरे हाथ नहीं जलेंगे। माँ की आँखों से आँसू बहने लगे। दोस्तों, माँ के चरणों मे स्वर्ग है, कभी उसे दुखी मत करो..!
सब कुछ मिल जाता है,
पर माँ दुबारा नहीं मिलती।

Monday, December 26, 2016

जीवन साथी

कॉलेज में Happy married life पर एक  workshop हो रही थी, जिसमे कुछ शादीशुदा जोडे हिस्सा ले रहे थे। जिस समय प्रोफेसर  मंच पर आए उन्होने नोट किया कि सभी पति- पत्नी शादी पर जोक कर  हँस रहे थे... ये देख कर प्रोफेसर ने कहा  कि चलो पहले  एक Game खेलते है... उसके बाद  अपने विषय पर बातें करेंगे। सभी  खुश हो गए और कहा कोनसा Game ? प्रोफ़ेसर ने एक married  लड़की को खड़ा किया और कहा कि तुम ब्लेक बोर्ड पे  ऐसे 25- 30 लोगों के  नाम लिखो जो तुम्हे सबसे अधिक प्यारे हों लड़की ने पहले तो अपने परिवार के लोगो के नाम लिखे फिर अपने सगे सम्बन्धी, दोस्तों,पडोसी और सहकर्मियों के नाम लिख दिए... अब प्रोफ़ेसर ने उसमे से कोई भी कम पसंद वाले 5 नाम मिटाने को कहा...  लड़की ने अपने सह कर्मियों के नाम मिटा दिए.. प्रोफ़ेसर ने और 5 नाम मिटाने को कहा... लड़की ने थोडा सोच कर अपने पड़ोसियो के नाम मिटा दिए... अब प्रोफ़ेसर ने और 10 नाम मिटाने को कहा... लड़की ने अपने सगे सम्बन्धी  और दोस्तों के नाम मिटा दिए... अब बोर्ड पर सिर्फ 4 नाम बचे थे  जो उसके मम्मी- पापा, पति और बच्चे का नाम था..  अब प्रोफ़ेसर ने कहा इसमें से  और 2 नाम मिटा दो... लड़की असमंजस में पड गयी  बहुत सोचने के बाद बहुत दुखी होते हुए उसने अपने मम्मी- पापा का नाम मिटा दिया... सभी लोग स्तब्ध और शांत थे  क्योकि वो जानते थे कि ये गेम सिर्फ वो लड़की ही नहीं खेल रही थी  उनके दिमाग में भी  यही सब चल रहा था। अब सिर्फ 2 ही नाम बचे थे... पति और बेटे का...  प्रोफ़ेसर ने कहा और एक नाम मिटा दो... लड़की अब सहमी सी रह गयी... बहुत सोचने के बाद रोते हुए  अपने बेटे का नाम काट दिया... प्रोफ़ेसर ने  उस लड़की से कहा  तुम अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओ.. और सभी की तरफ गौर से देखा... और पूछा- क्या कोई बता सकता है कि ऐसा क्यों हुआ कि सिर्फ  पति का ही नाम बोर्ड पर रह गया। कोई जवाब नहीं दे पाया... सभी मुँह लटका कर बैठे थे... प्रोफ़ेसर ने फिर उस लड़की को खड़ा किया और कहा... ऐसा क्यों ! जिसने तुम्हे जन्म दिया और पाल पोस कर इतना बड़ा किया उनका नाम तुमने मिटा दिया...  और तो और तुमने अपनी कोख से जिस बच्चे को जन्म दिया उसका भी नाम तुमने मिटा दिया ? लड़की ने जवाब दिया  कि अब मम्मी- पापा बूढ़े हो चुके हैं,कुछ साल के बाद वो मुझ  और इस दुनिया को छोड़ के चले जायेंगे ...... मेरा बेटा जब बड़ा हो जायेगा तो जरूरी नहीं कि वो शादी के बाद मेरे साथ ही रहे। लेकिन मेरे पति जब तक मेरी  जान में जान है  तब तक मेरा आधा शरीर बनके  मेरा साथ निभायेंगे इस लिए मेरे लिए सबसे अजीज मेरे पति हैं.. प्रोफ़ेसर और बाकी स्टूडेंट ने  तालियों की गूंज से लड़की को सलामी दी... प्रोफ़ेसर ने कहा तुमने बिलकुल सही कहा  कि तुम और सभी के बिना रह सकती हो पर अपने आधे अंग अर्थात  अपने पति के बिना नहीं रह सकती l मजाक मस्ती तक तो ठीक है पर हर इंसान का अपना जीवन साथी ही उसको सब  से ज्यादा अजीज होता है... ये सचमुच सच है

Friday, December 23, 2016

बसना हो तो... 'ह्रदय' में बसो

एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद,श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया। दूध ज्यदा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला- " हे राधे ! " सुनते ही रुक्मणी बोली- प्रभु ! ऐसा क्या है राधा जी में,
जो आपकी हर साँस पर उनका ही नाम होता है ? मैं भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूँ... फिर भी, आप हमें नहीं पुकारते !! श्री कृष्ण ने कहा -देवी ! आप कभी राधा से मिली हैं ? और मंद मंद मुस्काने लगे... अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंची । राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा...
और, उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि- ये ही राधाजी है और उनके चरण छुने लगी ! तभी वो बोली -आप कौन हैं ? तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया... तब वो बोली- मैं तो राधा जी की दासी हूँ। राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी !! रुक्मणी ने सातो द्वार पार किये... और, हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी क़ि-  अगर उनकी दासियाँ इतनी रूपवान हैं...
तो, राधारानी स्वयं कैसी होंगी ? सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंची... कक्ष में राधा जी को देखा-  अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था। रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ी... पर, ये क्या राधा जी के पुरे शरीर पर तो छाले पड़े हुए है ! रुक्मणी ने पूछा- देवी आपके  शरीर पे ये छाले कैसे ? तब राधा जी ने कहा- देवी ! कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया... वो ज्यदा गरम था ! जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए... और, उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है..!! इसलिए कहा जाता है- बसना हो तो... 'ह्रदय' में बसो किसी के..! 'दिमाग' में तो.. लोग खुद ही बसा लेते है..!!

Thursday, December 22, 2016

प्रणाम का महत्व

महाभारत का युद्ध चल रहा था -
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -
"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"
उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -
भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए|
तब -
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -
श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -
शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -
द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने -
"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!
"वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ?
तब द्रोपदी ने कहा कि -
"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया -
भीष्म ने कहा -
"मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"
शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -
"तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है " -
" अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती " -
......तात्पर्य्......
वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -
"जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है "
" यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो "
बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता -
"निवेदन 🙏 सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।"

Tuesday, December 20, 2016

मुझे मेंहदी लगवानी है

"पाँच साल की बेटी बाज़ार में बैठी मेंहदी वाली को देखते ही मचल गयी... "कैसे लगाती हो मेंहदी " पापा नें सवाल किया... "एक हाथ के पचास दो के सौ  मेंहदी वाली ने जवाब दिया. पापा को मालूम नहीं था मेंहदी लगवाना इतना मँहगा हो गया है. "नहीं भई एक हाथ के बीस लो वरना हमें नहीं लगवानी." यह सुनकर बेटी नें मुँह फुला लिया. "अरे अब चलो भी , नहीं लगवानी इतनी मँहगी मेंहदी" पापा के माथे पर लकीरें उभर आयीं .
"अरे लगवाने दो ना साहब.. अभी आपके घर में है तो आपसे लाड़ भी कर सकती है... कल को पराये घर चली गयी तो पता नहीं ऐसे मचल पायेगी या नहीं. तब आप भी तरसोगे बिटिया की फरमाइश पूरी करने को... मेंहदी वाली के शब्द थे तो चुभने वाले पर उन्हें सुनकर पापा को अपनी बड़ी बेटी की याद आ गयी..? जिसकी शादी उसने तीन साल पहले एक खाते -पीते पढ़े लिखे परिवार में की थी. उन्होंने पहले साल से ही उसे छोटी  छोटी बातों पर सताना शुरू कर दिया था.  दो साल तक वह मुट्ठी भरभर के रुपये उनके मुँह में ठूँसता रहा पर उनका पेट बढ़ता ही चला गया और अंत में एक दिन सीढियों से गिर कर बेटी की मौत की खबर ही मायके पहुँची. आज वह छटपटाता है कि उसकी वह बेटी फिर से उसके पास लौट आये..? और वह चुन चुन कर उसकी सारी अधूरी इच्छाएँ पूरी कर दे... पर वह अच्छी तरह जानता है कि अब यह असंभव है. "लगा दूँ बाबूजी..  एक हाथ में ही सही " मेंहदी वाली की आवाज से पापा की तंद्रा टूटी... "हाँ हाँ लगा दो. एक हाथ में नहीं दोनों हाथों में. और हाँ, इससे भी अच्छी वाली हो तो वो लगाना." पापा ने डबडबायी आँखें पोंछते हुए कहा और बिटिया को आगे कर दिया. जब तक बेटी हमारे घर है उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करे, क्या पता आगे कोई इच्छा पूरी हो पाये या ना हो पाये । ये बेटियां भी कितनी अजीब होती हैं जब ससुराल में होती हैं तब माइके जाने को तरसती हैं। सोचती हैं
कि घर जाकर माँ को ये बताऊँगी पापा से ये मांगूंगी बहिन से ये कहूँगी भाई को सबक सिखाऊंगी और मौज मस्ती करुँगी।
लेकिन
जब सच में मायके जाती हैं तो एकदम शांत हो जाती है किसी से कुछ भी नहीं बोलती बस माँ बाप भाई बहन से गले मिलती है। बहुत बहुत खुश होती है। भूल जाती है कुछ पल के लिए पति ससुराल।
क्योंकि
एक अनोखा प्यार होता है मायके में एक अजीब कशिश होती है मायके में। ससुराल में कितना भी प्यार मिले
माँ बाप की एक मुस्कान को तरसती है ये बेटियां। ससुराल में कितना भी रोएँ पर मायके में एक भी आंसूं नहीं
बहाती ये बेटियां
क्योंकि बेटियों का सिर्फ एक ही आंसू माँ बाप भाई बहन को हिला देता है रुला देता है।कितनी अजीब है ये बेटियां
कितनी नटखट है ये बेटियां भगवान की अनमोल देंन हैं ये बेटियां हो सके तो बेटियों को बहुत प्यार दें उन्हें कभी भी न रुलाये क्योंकि ये अनमोल बेटी दो परिवार जोड़ती है दो रिश्तों को साथ लाती है। अपने प्यार और मुस्कान से। हम चाहते हैं कि सभी बेटियां खुश रहें हमेशा भले ही हो वो मायके में या ससुराल में।
खुशकिस्मत है वो जो बेटी के बाप हैं, उन्हें भरपूर प्यार दे, दुलार करें और यही व्यवहार अपनी पत्नी के साथ भी करें क्यों की वो भी किसी की बेटी है और अपने पिता की छोड़ कर आपके साथ पूरी ज़िन्दगी बीताने आयी है।  उसके पिता की सारी उम्मीदें सिर्फ और सिर्फ आप से हैं।

Monday, December 19, 2016

सकारात्मक दृष्टीकोण

एक 6 वर्षका लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।
अचानक से उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पिछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, "कुछ चाहिये तुम्हे ?" लडकी एक गुडिया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुडिया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी है।
दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुडिया की ?"
दुकानदार एक शांत व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे होते थें। उन्होने बडे प्यार और अपनत्व से बच्चे पूछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?"
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोडी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर लायी थी।
दुकानदार वो सब लेकर यू गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।
सीपें ( शिंपले ) गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?"
दुकानदार :-" नही नही, ये तो इस गुडिया की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मै वापस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बडी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुडिया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?"
दुकानदार मुस्कुराते हुये बोला,
"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र मे वो नही जानता की पैसे क्या होते है ?
पर जब वह बडा होगा ना...
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुडिया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, वह सोचेगा कि,,,,,,
"यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।"
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टीकोण बढाने मे मदद करेगी और वो भी अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा।

Thursday, December 15, 2016

भाग्य में सुख

एक सेठ जी थे   जिनके पास काफी दौलत थी.  सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी.
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.   जिससे सब धन समाप्त हो गया. बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो,  मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो? सेठ जी कहते कि   "जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे..." एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया.  सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये... यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये... दामाद लड्डू लेकर घर से चला,  दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया. उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया. सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया.  सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली... सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा... देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में...  इसलिये कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा  और... समय   से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो...  झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।  सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं। जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा। बहुत ही खूबसूरत लाईनें. किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये, कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता..! डरिये वक़्त की मार से,बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता..अकल कितनी भी तेज ह़ो,नसीब के बिना नही जीत सकती..!बीरबल अकलमंद होने के बावजूद,कभी बादशाह नही बन सका...!""ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो, ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है! इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!
 रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है

Sunday, December 11, 2016

पृथ्वीलोक से लौटे देवदूत

पृथ्वीलोक से लौटे देवदूतों ने, स्वर्गलोक में मोदी का यशोगान सुनाया सुनते ही देवराज इंद्र का सर चकराया!
उसे इंद्रलोक का सिंहासन डोलता नजर आया!! दौडा -दौडा पहुंचा ब्रह्मा जी के द्वार! रक्षा करो प्रभु!  हे जगत आधार!! पृथ्वीलोक पर "नरेन्द्र" नामक मानव ने कोहराम मचाया है! स्वर्गलोक का सिंहासन हडपने का विचार
उसके मन में आया है!! स्वर्गलोक में मोदी मोदी के नारे लग रहे हैं। लोग राजा का चुनाव करने की मांग कर रहे हैं। बदहवास इन्द्र को देख ब्रह्मा मुस्कुराये। बोले - तुम भी इन्द्र, वो भी नरेन्द्र! फिर दौनों के मध्य किस बात का द्वन्द! हे देवराज, वो मानव है महान। उसे मिला है काशी विश्वनाथ से चक्रवर्ती सम्राट होने का वरदान।। इसलिये तुम कैलाश पर्वत जाओ। महादेव को अपनी व्यथा सुनाओ।। घबराया इन्द्र कैलाश पर्वत आ पहुंचा।
कांधे पे लटके वस्त्र से माथे का पसीना पहुंचा। बोला -हे जटाधारी! स्वर्गलोक पर आई मुसीबत भारी!! पृथ्वीलोक का पूरा वृतांत सुनाया। आंख में आंसू, गला भर आया।। हे प्रभु कुछ तो करो उपाय। मेरा सिंहासन और देवताओं की लाज बच जाये।। एक मानव स्वर्गलोक पर राज करेगा। और देवता राशन, बैंक की लाइन में लगेगा।
अप्सरा और दासी एक ही श्रेणी में आयेगी। हे प्रभु, स्वर्गलोक की औकात क्या रह जायेगी। महादेव बोले -हे देवराज इंद्र! उचित है आपका ये अन्तर्द्वन्द!! पर नरेन्द्र ने कैलाश पर दो वर्ष के कठिन तप से वरदान पाया है!
अमीर और गरीब के भेद को दूर करने का, बीडा उठाया है! उसकी तपस्या व्यर्थ नहीं जायेगी! पृथ्वीलोक के बाद स्वर्गलोक की भी बारी आयेगी! ! हे देव, तुम बैकुंठधाम जाओ। श्री हरि को अपनी व्यथा सुनाओ।। सुनते ही इन्द्र करने लगा विलाप। हुआ नहीं दूर, उसके मन का संताप।। थोडी देर में होश आया। स्वयं को क्षीरसागर में लेटे, लक्ष्मी -नारायण के चरणों में पाया।। बोला हे स्वामी! आप तो हैं अन्तर्यामी!! पृथ्वीलोक पर नरेन्द्र नाम का राजा आतंक मचा रहा है! खुद को लक्ष्मी का शत्रु बता रहा है!! उसने अपने राज्य में लगा दी है लक्ष्मी पर पाबंदी।
प्रजा की भाषा में जिसे कहते हैं नोटबंदी।। लक्ष्मी जी बोली - हे देवराज! तुम्हारी बात सुनकर भर आया है मेरा मन! जिसे तुम लक्ष्मी कह रहे हो दरअसल तो वो है कालाधन!! मजदूर के पसीने में, गरीब की रोटी में, किसान की फसल में, बच्चों की मुस्कान में है मेरा धाम। अरे! बिस्तर, तकिये, बक्से, टायलेट की दीवारों में, मेरा क्या काम।। हे देवराज, आपकी आशा है व्यर्थ। आपकी सहायता करने में हम नहीं है समर्थ।। जाओ वापस, इन्द्रलोक जाओ। अप्सराओं का रास रंग छोड, अमीर गरीब का भेद मिटाओ। शतायु पूर्ण होने पर, जब नरेन्द्र स्वर्गलोक में आयेगा। अपने प्रतापी शौर्य, शत् कर्मों से स्वर्गलोक का राज सिंहासन पायेगा।। स्वर्गलोक को भी है, नरेन्द्र से एक ही आस! सबका साथ - सबका विकास!! और इधर पृथ्वीलोक में कुछ संपाती, जुगनुओं की तरह टिमटिमा रहे हैं। सूरज को छूने की चाह में अपने पंख जला रहे हैं।। पर अंतत:वो सब मुंह की खायेंगे। 30 दिसंबर के बाद जेल जायेंगे ।

Tuesday, December 6, 2016

सुन्दर पोशाक

एक राजा था उसके यहाँ एक दिन 2 दर्जी आये उन्होंने ने कहा की हम स्वर्ग से धागा लाकर पोशाक बनाते है जिसे देवता पहनते है राजा ने कहा एक पोशाक मेरे लिए बनाओ मुँह माँगा इनाम मिलेगा दर्जी ने कहा ठीक है 50दिन का टाइम दो और इस पोशाक की एक खास बात है ये #मूर्खों को नहीं दिखेगी राजा और भी खुश ऐसे तो हम अपने राज्य के मूर्खों की भी पहचान कर लेंगे दोनों ने पोशाक एक बंद कमरे में बनाना शुरू कर दी देर रात तक दो कटर पटर करते रहते थे एक दिन राजा ने मंत्री को भेजा कहा देखो कैसी पोशाक बन रही है मंत्री कमरे के अंदर गया जाते ही एक ने कहा देखो मंत्री कितना सुन्दर रेशा है पर मंत्री को कुछ दिखाई न दिया उसे वो बात याद आई की मुर्ख को ये पोशाक दिखाई न देगी मंत्री ने भी कहा हां बहुत सुन्दर है और आकर राजा को बताया बहुत सुन्दर बन रही है आपकी पोशाक, राजा बहुत खुश् हुआ एक दिन राजा भी गया देखने उसे भी कुछ न दिखाई दिया पर चुप रहा और मन में सोचा लगा मंत्री हमसे ज्यादा बुद्धिमान है तभी उसे दिखाई दी थी मैं मुर्ख हूँ
इस प्रकार राजा चुप रहा पोशाक बनकर तैयार हो गयी दोनों दर्जियों ने कहा कल हम जनता के सामने ये पोसाक पहनाएंगे फिर राजा की सवारी निकलेगी दूसरे दिन राजा को पोशाक पहनाई गयी जो किसी को दिख नहीं रही थी पर बोला कोई नहीं, क्यों क्योंकि मूर्खो को दिखती नहीं थी इस डर से हमें सब मुर्ख कहेंगे सब चुप रहे,
राजा नंग धड़ंग होकर बड़ी शान से सवारी निकाल रहा था तो ये कहानी थी जो आज बिल्कुल फिट बैठ रही है नोटबंदी से परेशानी सबको है पर यदि कह दे तो लोग कहेंगे की तुम्हारे अंदर  देशभक्ति नहीं है देश के लिये कोई भाव नहीं है डरा दिया गया है देश के नाम पर, सभी तारीफों में लगे है जैसे पोशाक की कर रहे थे,
..

Sunday, December 4, 2016

पिता का हाथ

एक पिता ने अपने पुत्र की बहुत अच्छी तरह से परवरिश की !उसे अच्छी तरह से पढ़ाया, लिखाया, तथा उसकी सभी सुकामनांओ की पूर्ती की !
 कालान्तर में वह पुत्र एक सफल इंसान बना और एक मल्टी नैशनल कंपनी में सी.ई.ओ. बन गया !
उच्च पद ,अच्छा वेतन, सभी सुख सुविधांए उसे कंपनी की और से प्रदान की गई !
समय गुजरता गया उसका विवाह एक सुलक्षणा कन्या से हो गया,और उसके एक सुन्दर कन्या भी हो गई !
 पिता अब बूढा हो चला था ! एक दिन पिता को पुत्र से मिलने की इच्छा हुई और वो पुत्र से मिलने उसके ऑफिस में गया.....!!!
वहां  उसने देखा कि..... उसका पुत्र एक शानदार ऑफिस का अधिकारी बना  हुआ है, उसके ऑफिस में सैंकड़ो कर्मचारी  उसके अधीन कार्य कर रहे है... !
ये सब देख कर पिता का सीना गर्व से फूल गया !
वो चुपके से उसके चेंबर में पीछे से जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !
और प्यार से अपने पुत्र से पूछा...
"इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है"? पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा "मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी "!
पिता को इस जवाब की  आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया !
उनकी आँखे छलछला आई ! वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे !
उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???
पुत्र ने  इस बार कहा
       "पिताजी आप हैैं, इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान "!
पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा "अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो " ???
पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते  हुए कहा "पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,
बोलिए पिताजी"  !
पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लग लिया !
सच है जिस के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ होता है, वो इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान होता है !

Thursday, December 1, 2016

सफल जीवन का राज

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने  देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा –  “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।” संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर 
हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और  औरत ने उसे यह सब बताया। पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के  लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर  लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब  बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए।  हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को 
आमंत्रित करना चाहिए।” उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।  वह उनके पास आई और बोली –  “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना  चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने
कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –  “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में  प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा –  “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और  सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता  तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।  प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता  उसके पीछे जाते हैं।
........
अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें
प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें
क्यों कि प्रेम ही
सफल जीवन का राज है।
...

Tuesday, November 29, 2016

दुष्टता का फल

कंचनपुर के एक धनी व्यापारी के घर में रसोई में एक कबूतर ने घोंसला बना रखा था । किसी दिन एक लालची कौवा जो है वो उधर से आ निकला । वंहा मछली को देखकर उसके मुह में पानी आ गया ।  तब उसके मन में विचार आया कि मुझे इस रसोघर में घुसना चाहिए लेकिन कैसे घुसू ये सोचकर वो परेशान था तभी उसकी नजर वो कबूतरों के घोंसले पर पड़ी ।
उसने सोचा कि मैं अगर कबूतर से दोस्ती कर लूँ तो शायद मेरी बात बन जाएँ । कबूतर जब दाना चुगने के लिए बाहर निकलता है तो कौवा उसके साथ साथ निकलता है । थोड़ी देर बाद कबूतर ने पीछे मुड़कर देखता तो देखा कि कौवा उसके पीछे है इस पर कबूतर ने कौवे से कहा भाई तुम मेरे पीछे क्यों हो इस पर कौवे ने कबूतर से कहा कि तुम मुझे अच्छे लगते हो इसलिए मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ इस पर कौवे से कबूतर ने कहा कि हम कैसे दोस्त बन सकते है हमारा और तुम्हारा भोजन भी तो अलग अलग है मैं बीज खाता हूँ और तुम कीड़े । इस पर कौवे ने चापलूसी दिखाते हुए कहा “कौनसी बड़ी बात है मेरे पास घर नहीं है इसलिए हम साथ साथ तो रह ही सकते है है न और साथ ही भोजन खोजने आया करेंगे तुम अपना और मैं अपना ।”
घर के मालिक ने देखा कि कबूतर के साथ एक कौवा भी है तो उसने सोचा कि चलो कबूतर का मित्र होगा इसलिए उसने उस बारे में अधिक नहीं सोचा । अगले दिन कबूतर खाना खोजने के लिए साथ चलने को कहता है तो कौवे ने पेट दर्द का बहाना बना कर मना कर दिया । इस पर कबूतर अकेला ही चला गया क्योंकि कौवे ने घर के मालिक को यह कहते हुए सुना था नौकर को कि आज कुछ मेहमान आ रहे है इसलिए तुम मछली बना लेना ।
उधर कौवा नौकर के रसोई से बाहर निकलने का इन्तजार ही कर रहा था कि उसके जाते ही कौवे ने थाली और झपटा और मछली उठाकर आराम से खाने लगा । नौकर जब वापिस आया तो कौवे को मछली खाते देख गुस्से से भर गया और उसने कौवे को पकड़ कर गर्दन मरोड़ कर मार डाला
जब शाम में कबूतर वापिस आया तो उसने कौवे की हालत देखी तो सारी बात समझ गया । इसलिए कहा गया है दुष्ट प्रकृति के प्राणी को उसके किये की सज़ा अवश्य मिलती है ।

Sunday, November 27, 2016

दूसरों से तुलना

जंगल में एक कौआ रहता था जो अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट था. लेकिन एक दिन उसने बत्तख देखी और सोचा  “यह बत्तख कितनी सफ़ेद है और मैं कितना काला हूँ. यह बत्तख तो संसार की सबसे ज़्यादा खुश पक्षी होगी....!” उसने अपने विचार बत्तख को बतलाए. बत्तख ने उत्तर दिया : - “दरअसल मुझे भी ऐसा ही लगता था कि मैं सबसे अधिक खुश पक्षी हूँ जब तक मैंने दो रंगों वाले तोते को नहीं देखा था. अब मेरा ऐसा मानना है कि तोता सृष्टि का सबसे अधिक खुश पक्षी है...!” फिर कौआ तोते के पास गया. तोते ने उसे समझाया  “मोर को मिलने से पहले तक मैं भी एक अत्यधिक खुशहाल ज़िन्दगी जीता था. परन्तु मोर को देखने के बाद मैंने जाना कि मुझमें तो केवल दो रंग हैं जबकि मोर में विविध रंग हैं...!” तोते को मिलने के बाद वह कौआ चिड़ियाघर में मोर से मिलने गया.
वहाँ उसने देखा कि उस मोर को देखने के लिए हज़ारों लोग एकत्रित थे. सब लोगों के चले जाने के बाद कौआ मोर के पास गया और बोला  “प्रिय मोर...! तुम तो बहुत ही खूबसूरत हो. तुम्हें देखने प्रतिदिन हज़ारों लोग आते हैं. पर जब लोग मुझे देखते हैं तो तुरन्त ही मुझे भगा देते हैं. मेरे अनुमान से तुम भूमण्डल के सबसे अधिक खुश पक्षी हो...!” मोर ने जवाब दिया : - “मैं हमेशा सोचता था कि मैं भूमण्डल का सबसे खूबसूरत और खुश पक्षी हूँ. परन्तु मेरी इस सुन्दरता के कारण ही मैं इस चिड़ियाघर में फँसा हुआ हूँ. मैंने चिड़ियाघर का बहुत ध्यान से निरीक्षण किया है और तब मुझे यह अहसास हुआ कि इस पिंजरे में केवल कौए को ही नहीं रखा गया है. इसलिए पिछले कुछ दिनों से मैं इस सोच में हूँ कि अगर मैं कौआ होता तो मैं भी खुशी से हर जगह घूम सकता था...!” ये कहानी इस संसार में हमारी परेशानियों का सार प्रस्तुत करती है. कौआ सोचता है कि बत्तख खुश है, बत्तख को लगता है कि तोता खुश है, तोता सोचता है कि मोर खुश है जबकि मोर को लगता है कि कौआ सबसे खुश है.


कथासार : -
दूसरों से तुलना हमें सदा दुखी करती है. हमें दूसरों के लिए खुश होना चाहिए, तभी हमें भी खुशी मिलेगी. हमारे पास जो है उसके लिए हमें सदा आभारी रहना चाहिए. खुशी हमारे मन में होती है. हमें जो दिया गया है उसका हमें सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए. हम दूसरों के जीवन का अनुमान नहीं लगा सकते. हमें सदा कृतज्ञ रहना चाहिए. जब हम जीवन के इस तथ्य को समझ लेंगें तो सदा प्रसन्न रहेंगें

Saturday, November 26, 2016

सिर्फ शोर मचाकर

मुझे याद है कि मेरे बचपन में केरोसीन लेना हो, तो राशन की दुकान पर घंटों तक लाइन में लगना पड़ता था। चीनी खरीदनी हो, तो भी लाइन लगानी पड़ती थी। मेरे ननिहाल में एक सार्वजनिक नल था, जहां से मोहल्ले के सभी लोग पानी भरते थे। उसके लिए भी सुबह-शाम लाइन में लगना पड़ता था। आज एलपीजी सिलिंडर मोबाइल पर बुक हो जाता है और अगले दिन घर पहुंचा दिया जाता है। लेकिन बचपन में सिलिंडर बुक करवाने के लिए नीला कार्ड लेकर एजेंसी में जाना पड़ता था और 'नंबर' लगवाना पड़ता था, जिसमें १५-२० दिनों बाद की तारीख मिलती थी। फिर जब किसी दिन पता चलता कि एजेंसी में सिलिंडर का ट्रक आ गया है, तो साइकल के कैरियर के पीछे पुरानी ट्यूब से बांधकर सिलिंडर ले जाते थे और एक-दो घंटे लाइन में खड़े होने के बाद कहीं जाकर सिलिंडर मिल पाता था। अब बिजली का बिल ऑनलाइन भरे जाते हैं, लेकिन बचपन में हर महीने बिजली का बिल जमा करवाने के लिए १-२ घंटे लाइन में खड़ा होना पड़ता था। यही बात रेलवे रिजर्वेशन और ऐसे सभी अन्य कामों के लिए थी।
आज जो लोग लंबी लाइन और लोगों की परेशानी के बहाने वर्तमान सरकार को घेरना और अपना राजनैतिक अजेंडा चलाना चाहते हैं, वे यह न भूलें कि नोटों वाली यह परेशानी तो सिर्फ कुछ दिनों की है, लेकिन ऊपर मैंने जितने उदाहरण दिए हैं, वह परेशानी मैंने और शायद भारत के ८०-९०% लोगों ने लगातार कई सालों तक रोज झेली है और इन्हीं की सरकारों के कुशासन, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के कारण झेली है। उस समय न कोई मोदी थे, न कहीं भाजपा की सरकार थी। नोटों पर गांधीजी थे और सत्ता में उनके कथित वंशज थे। इसलिए कृपया हमें मूर्ख न समझें और फालतू के उपदेश न दें। जो मूर्ख हैं, भुलक्कड़ हैं या स्वार्थी हैं वे ही आपकी हां में हां मिलाकर गर्दन हिला सकते हैं, बाकी कोई नहीं।
यह समझने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है कि अधिकांश नेताओं की छटपटाहट का असली कारण यही है कि उनका करोड़ों-अरबों रुपये का काला पैसा रातोंरात रद्दी कागज़ हो गया है। अगर ये कारण नहीं है और वास्तव में गरीबों की चिंता सता रही है, तो घर में बैठकर सरकार को कोसने की बजाय बाहर आएं, बैंकों और एटीएम के आस-पास स्टॉल लगाकर बैंक का फॉर्म भरने में गरीबों की मदद करें, घंटों तक लाइन में खड़े लोगों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करें, और भी ज्यादा करुणा जाग रही हो, तो उनके लिए कुछ दिनों के राशन-अनाज आदि की व्यवस्था करवा दें। अगर वाकई अस्पताल के मरीजों के कष्ट देखकर दुःख हो रहा है, तो उनके बिलों का भुगतान करने की व्यवस्था करवा दें। ऐसा बहुत-कुछ किया जा सकता है। लेकिन अगर कुछ भी नहीं करना है और सिर्फ शोर मचाकर किसी तरह सरकार को घेरना है, तो स्पष्ट है कि आपकी तकलीफ का कारण कुछ और ही है!

Friday, November 25, 2016

आखरी दिन

एक दिन यमराज एक लड़के के पास आये और बोले - "लड़के, आज तुम्हारा आखरी दिन है!" लड़का  लेकिन मैं अभी तैयार नही हुँ यमराज : "ठिक है लेकिन सूची मे तुम्हारा नाम पहला है". लड़का ठिक है , फिर क्युं ना हम जाने से पहले साथ मे बैठ कर चाय पी ले यमराज : "सहि है लड़के ने चाय मे नीद की गोली मिला कर यमराज को दे दी.यमराज ने चाय खत्म की और गहरी नींद मे सो गया. लड़के ने सूची मे से उसका नाम शुरुआत से हटा कर अंत मे लिख दिया. जब यमराज को होश आया तो वह लड़के से बोले -"क्युंकी तुमने मेरा बहुत ख्याल रखा इसलिये मे अब सूची अंत से चालू करूँगा"..! 
सीख :
किस्मत का लिखा कोई नही मिटा सकता" अर्ताथ - जो तुम्हारी किस्मत मे है वह कोई नही बदल सकता चाहे तुम कितनी भी कोशिश कर लो . इसलिये भगवत गीता मे श्री कृष्ण ने कहा है - "तू करता वही है जो तू चाहता है, पर होता वही है जो मैं चाहता हुँ तू कर वह जो मैं चाहता हुँ फिर होगा वही जो तू चाहता हैं"
         ..^..
        ,(-_-),
  '\'''''.\'='-.
     \/..\\,'
        //"")
        (\  /
          \ |,
 यह एक अर्थपूर्ण है !
 

 

Wednesday, November 23, 2016

जहाँ प्रेम वहाँ लक्ष्मी जी का वास

एक बनिए  से लक्ष्मी  जी  रूठ गई ।जाते वक्त  बोली मैं जा रही  हूँ और मेरी जगह  टोटा (नुकसान ) आ रहा है ।तैयार  हो जाओ।लेकिन  मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ।मांगो जो भी इच्छा  हो।
बनिया बहुत समझदार  था ।उसने  विनती  की टोटा आए तो आने  दो ।लेकिन  उससे कहना की मेरे परिवार  में आपसी  प्रेम  बना रहे ।बस मेरी यही इच्छा  है।
लक्ष्मी  जी  ने  तथास्तु  कहा।
कुछ दिन के बाद :-
बनिए की सबसे छोटी  बहू  खिचड़ी बना रही थी ।उसने नमक आदि  डाला  और अन्य  काम  करने लगी ।तब दूसरे  लड़के की  बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई ।इसी प्रकार  तीसरी , चौथी  बहुएं  आई और नमक डालकर  चली गई ।उनकी सास ने भी ऐसा किया ।
शाम  को सबसे पहले बनिया  आया ।पहला निवाला  मुह में लिया ।देखा बहुत ज्यादा  नमक  है।लेकिन  वह समझ गया  टोटा(हानि)  आ चुका है।चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया ।इसके बाद  बङे बेटे का नम्बर आया ।पहला निवाला  मुह में लिया ।पूछा पिता जी  ने खाना खा लिया ।क्या कहा उन्होंने ?
सभी ने उत्तर दिया-" हाँ खा लिया  ,कुछ नही बोले।"
अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ  नही  बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ।
इस प्रकार घर के अन्य  सदस्य  एक -एक आए ।पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए ।
रात  को टोटा (हानि) हाथ जोड़कर  बनिए से कहने लगा  -,"मै जा रहा हूँ।"
बनिए ने पूछा- क्यों ?
तब टोटा (हानि ) कहता है, " आप लोग एक किलो तो नमक खा गए  ।लेकिन  बिलकुल  भी  झगड़ा  नही हुआ । मेरा यहाँ कोई काम नहीं।"
निचौङ
⭐झगड़ा कमजोरी ,  टोटा ,नुकसान  की पहचान है।
जहाँ प्रेम है ,वहाँ लक्ष्मी  का वास है।
🔃सदा प्यार -प्रेम  बांटते रहे।छोटे -बङे  की कदर करे ।
जो बङे हैं ,वो बङे ही रहेंगे ।चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई   से बङी हो।
जरूरी नहीं जो खुद के लिए  कुछ नहीं करते वो दूसरों  के  लिए भी कुछ नहीं करते।आपके परिवार  में ऐसे लोग भी  हैं जिन्होंने  परिवार  को उठाने  में अपनी सारी खुशियाँ दाव पर लगा दी ।लेकिन गलतफहमी  में सबकुछ  अलग-थलग  कर बैठते  हैं।विचार जरूर करे।🔃

Sunday, November 20, 2016

अत्यधिक लाभ

एक बार पंक्षियों का राजा अपने दल के साथ भोजन की खोज में एक जंगल में गया।
'जाओ और जाकर दाने और बीज ढूंढ़ो। मिले तो बताना। सब मिलकर खाएगें।' राजा ने पंक्षियों को आदेश दिया।
सभी पक्षी दानों की तलाश में उधर निकल पड़े। उड़ते-उड़ते एक चिड़िया उस सड़क पर आ गई जहां से गाड़ियों में लदकर अनाज जाता था। उसने सड़क पर अनाज बिखरा देखा। उसने सोचा कि वह राजा को इस जगह के बारे में नहीं बताएगी। पर किसी और चिड़िया ने इधर आकर यह अनाज देख लिया तो...? ठीक है, बता भी दूंगी लेकिन यहां तक नहीं पहुंचने दूंगी।
वह वापस अपने राजा के पास पहुंच गई। उसने वहां जाकर बताया कि राजमार्ग पर अनाज के ढेरों दाने पड़े हैं। लेकिन वहां खतरा बहुत है।
तब राजा ने कहा कि कोई भी वहां न जाए।
इस तरह सब पक्षियों ने राजा की बात मान ली।
वह चिड़िया चुपचाप अकेली ही राजमार्ग की ओर उड़ चली और जाकर दाने चुगने लगी। अभी कुछ ही देर बीती कि उसने देखा एक गाड़ी तेजी से आ रही थी।
चिड़िया ने सोचा, गाड़ी तो अभी दूर है। क्यों न दो-चार दाने और चुग लूं। देखते-देखते गाड़ी चिड़िया के उपर से गुजर गई और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
उधर शाम को राजा ने देखा कि वह चिड़िया नहीं आई है तो उसने सैनिकों को उसे ढूंढ़ने का आदेश दिया।
वे सब ढूंढ़ते-ढूंढ़ते राजमार्ग पर पहुंच गए। वहां देखा तो वह चिड़िया मरी पड़ी थी।